‘डार्क वेब’ में सब कुछ काला ही नहीं
ड्रग्स, चाइल्ड पोर्न, भाड़े के हत्यारे, प्रतिबंधित चीजें वगैरह, ‘डार्क वेब’ को यही पहचान मिली हुई है। २०१३ में जब ‘सिल्क रोड’ नामक वेबसाइट का संचालक गिरफ्तार किया गया था तब बहुतों को इंटरनेट के उस हिस्से की जानकारी मिली जहां एक अलग ही डरावनी और छिपी हुई दुनिया और उसके बाजार हैं। लेकिन जिस तरह डार्क वेब बना हुआ है उसमें यह पता कर पाना असंभव है कि किसी भी साइट में क्या चल रहा है। आसान भाषा में बताया जाए तो डार्क वेब गूगल की तरह का सर्च इंजन नहीं है। न ही इसे क्रोम या सफारी जैसे सामान्य ब्राउजर से एक्सेस किया जा सकता है। डार्क वेब में अधिकांश सामग्री अजीबीगरीब और असमान्य चीजों, चुराए हुई निजी जानकारियों और शोध पत्रों व अनुसंधान में सेंध से भरी हुई है।
लेकिन डार्क वेब और इसका ब्राउजर ‘टॉर’ जो छिपी हुई साइट्स (डार्क वेब की भाषा में इन्हें ‘ओनियन्स’ कहा जाता है) तक पहुंचाता है, इसके ढेरों और विभिन्न प्रकार के वैधानिक इस्तेमाल भी हैं। डार्क वेब का विश्लेषण करने वाली कंपनी टेरबियम लैब्स ने ४०० ओनियन साइट्स पर कुछ नए शोध किए हैं। इन साइट्स को इनके उद्देश्य और कंटेंट के आधार पर अलग अलग किया गया। शोध के नतीजों से पता चला कि आधी से ज्यादा साइट्स में गैरकानूनी चीजें हैं। लेकिन आधी साइट्स में वैधानिक सामग्री और उद्देश्य थे।
ऐसी साइट्स में फेसबुक और प्रोपब्लिका जैसी साइट्स के प्रतिरूप, कंपनियों और राजनीतिक दलों की वेब साइट्स के अलावा टेक्रोलॉजी, गेम्स, प्राइवेसी आदि पर चैटिंग करने के फोरम पाए गए। सामान्य या साफ इंटरनेट की तरह बहुत सी वेबसाइट्स पोर्नोग्राफी से संबंधित थीं। जिन साइट्स को देखा गया उनमें १५ फीसदी से ज्यादा ऐसी साइट्स थीं जहां औषधियां और नशीली दवाएं बेची जाती हैं, हैकिंग, फ्रॉड, गैरकानूनी पोर्न और आतंकवाद से संबंधित साइट्स भी इनमें शुमार थीं।
टेरबियम के शोध ने डार्क वेब का बहुत ही छोटा हिस्सा देखा और इसका अध्धयन नहीं किया कि इंटरनेट के इस हिस्से पर लोग क्या देखने आते हैं। वैसे, २०१४ में किए गह एक अध्ययन के मुताबिक डार्क वेब पर ८० फीसदी से ज्यादा लोग चाइल्ड पोर्न साइट्स पर जाते हैं। लेकिन यह पता करना करना मुश्किल है कि यह कौन लोग हैं। यह भी पता करना मुश्किल है कि डार्क वेब में कितनी साइट्स होंगी। टॉर के ही मुताबिक उसके ब्राउजन से जिन छिपी साइट्स को देखा गया उनकी तादाद पिछले साल छह हजार थी। टॉर के मुताबिक इसके नेटवर्क पर आने वाले कुल ट्रैफिक का मात्र दो फीसदी ही डार्क वेब पर गया। वैसे डार्क वेब की साइट्स की संख्या बीसों लाख हो सकती है। टेरबियम ने जिन साइट्स पर शोध किया उनके नतीजे इस प्रकार थे : ४७ फीसदी वैधानिक साइट्स, १७.७ फीसदी ठप साइट्स, १२.३ फीसदी ड्रग्स संबंधी, ६.८ फीसदी पोर्न, ६.५ फीसदी नाजायज, ३.२ फीसदी दवाएं, १.३ फीसदी हैकिंग, १.३ फीसदी फ्रॉड।
चीन बर्बाद न कर दे इंटरनेट को
पिछले महीने इंटरनेट पर अब तक का सबसे बड़ा हमला बोला गया जिससे अमेरिका और यूरोप की बड़ी साइट्स ठप हो गयीं। खैर, हमला तो आया और गया लेकिन इसके तरीकों की पड़ताल में पता चला कि एक कंपनी इसकी जिम्मेदार थी - चीन की हांगझाऊ शियोंगमी टेक्रॉलजीौ सुरक्षा शोधकर्ताओं के अनुसार इस चीनी कंपनी ने इंटरनेट से जुड़े सिक्योरिटी कैमरे का हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर बनाया था जो कहीं से भी सुरक्षित नहीं था। हैकर्स ने इन कैमरों में मिराई नामका मालवेयर (गलत इरादे वाला कोड) डाल दिया और इन कैमरों को नियंत्रित करके इंटरनेट ट्रैफिक का बड़ा हिस्सा अपने सर्वर तक पहुंचा दिया। नतीजा यह हुआ कि ट्विटर, स्पॉटीफाई, नेटïिफ्लक्सि और पे-पाल जैसी बड़ी साइट्स ठप हो गयीं।
विश्लेषकों के अनुसार बेशक शियोंगमी कंपनी की लापरवाही रही लेकिन यह दुनिया की हार्डवेयर इंडस्ट्री की एक व्यापक समस्या को दर्शाता है। जिस तरह इलेक्ट्रानिक्स उत्पाद घर-घर पैठ बना चुके हैं उस की तुलना में सुरक्षा मानक तय नहीं हुए हैं। हाल के हैकर आक्रमण में बड़ी साइट्स शिकार बनीं लेकिन आज सच्चाई यह है कि उपभोक्ताओं की निजी जानकारियां जिसमें क्रेडिट-डेबिट कार्ड विवरण से लेकर घर के भीतर खींचे गए फुटेज शामिल हैं, हमेशा जोखिम में हैं। जिस तरह अस्पताल, विमान और कारों में इंटरनेट से जुड़े उपकरण शामिल होते चले जा रहे हैं, उससे न सिर्फ निजता खतरे में है बल्कि लोगों की जान भी जोखिम पर है।
किसी को सुरक्षा की फिक्र नहीं : हालांकि शियोंगमी दोषी है लेकिन वेब सिक्योरिटी कैम उपकरण निर्माता दर्जनों कंपनियां भी ऐसी ही गलतियां कर रही हैं। असल में समस्या जड़ में सुरक्षा कैम बनाने वाली कंपनियों की संरचना से लेकर पूरी इलेक्ट्रानिक्स इंडस्ट्री की लापरवाही और मानकों का न होना है। शियोंगमी एक कंपोनेंट सप्लाई करने वाली कंपनी है। वह एक नियत दर पर हार्डवेयर बना कर किसी कंपनी को दे देती है। खरीदार कंपनी किसी अन्य ब्रांड के तहत इसकी री पैकेजिंग करती है और इसे बाजार में बेचती है। चूंकि शियोंगमी का सामान जब उसके गोदाम से निकल जाता है उसके बाद वह कितना भी मुनाफा कमाए शियोंगमी को कुछ नहीं मिलता सो उसे उस कंपनेंट की सुरक्षा से कोई मतलब भी नहीं है। यह हाल सभी चीनी कंपनियों का है। जहां तक ग्राहकों का सवाल है, उन्हें किसी भी उपकरण के फीचर्स से ज्यादा मतलब होता है उसके सुरक्षा से नहीं। ऐसे में कोई उपकरण कब, कहां और क्या गुल खिलाए कोई नहीं जानता।
साइप्रस के पाफोस में है सेक्स की देवी एफ्रोडाइट का मंदिर
2017 में साइप्रस के शहर पाफोस को यूरोप की सांस्कृतिक राजधानी का द$र्जा मिलेगा। पाफोस पश्चिमी साइप्रस का मशहूर टूरिस्ट ठिकाना है। जहंा भारतीय और चीनी रेस्टोरेंट हैं, पब हैं, छोटी-मोटी दुकानें हैं, पार्लर हैं। कुल मिलाकर यूरोप में जब सत्तर के दशक में टूरिज्म पर बहुत $जोर था, ये शहर उसी दौर की याद दिलाता है। यह शहर, बहुत सी पौराणिक ग्रीक-रोमन कथाओं का केंद्र रहा है। इसका पता बा$की दुनिया को 1966 में चला। जब अपने खेत की जुताई कर रहे एक किसान को जमीन में दबे पुराने शहर के खंडहर दिखाई दिए।
इसके बाद हुई खुदाई में पूरा का पूरा ऐतिहासिक शहर मिला. इसमें विला थे, महल थे, थिएटर थे, $िकले थे और मकबरे थे। भूमध्य सागर के इला$के में ये सबसे बड़ा रोमन शहर था। यह खंडहर भी पौराणिक शहर निया पाफोस का एक हिस्सा भर हैं। ईसा के बाद की चौथी सदी में आए भयंकर भूकंप ने पूरे शहर को नक्शे से मिटा दिया था। इन बचे-खुचे खंडहरों को यूनेस्को ने विश्व की सांस्कृतिक धरोहर का द$र्जा दिया है।
बरसों चली खुदाई और फिर इसे सहेजने का अभियान पूरा होने के बाद पाफोस के इन खंडहरों को बा$की दुनिया के लिए खोल दिया गया है। इसमें यूनान में सेक्स की देवी एफ्रोडाइट का मंदिर भी है। जो ईसा पूर्व बारह सौ में बना था। भूमध्यसागर के आस-पास के इला$कों में एफ्रोडाइट का मंदिर, प्रेम के मंदिर के तौर पर मशहूर है। प्राचीन काल में इस देवी के मंदिर में आने वाले, एफ्रोडाइट के सामने सिजदा करते थे। इसके बाद वो मंदिर की दासियों के साथ यौन संबंध बनाते थे। कहते हैं कि ये उस दौर का सेक्स टूरिज्म था। यहंा आने वाले हर शख्स के लिए अनजान महिला से सेक्स करना अनिवार्य था।
ग्रीक इतिहासकार हेरोडोटस ने इस परंपरा का $िजक्र किया है वो लिखते हैं कि हर घराने की लडक़ी को ऐसा करना होता था। बहुत सी बदसूरत महिलाओं को तो इसके लिए बरसों इंतजार करना पड़ता था। ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स फ्रेजर ने भी साइप्रस की इस परंपरा का जिक्र अपनी $िकताब, ‘द गोल्डेन बो’ में किया है। फ्रेजर के मुताबिक यह परंपरा, आर्मीनिया, बेबीलोन, तुर्की में भी चलन में थी। हालांकि ईसा से चार सौ साल पहले रोमन राजा कंास्टैंटाइन ने इस पर रोक लगा दी थी। आज भी साइप्रस में ऐसे तमाम किस्से खूब मशहूर हैं। स्थानीय निवासियों को अपने इस इतिहास पर बहुत गर्व और यकीन है। हालांकि उस दौर के तमाम किस्सों के बहुत कम सबूत पाफोस में मिलते हैं, मगर कुछ रोमन सिक्कों पर उकेरी गई तस्वीरों से इन दास्तानों पर मुहर सी लगती है।
वह करेगी मंगल की पहली यात्रा
१५ वर्ष के टीनेजर आम तौर पतर दूसरे ग्रहों पर जाने की नहीं सोचते लेकिन अलाइसा कार्सन सबसे अलग है। अपनी अभी तक की पूरी जिंदगी में वह मंगल ग्रह पर कदम रखने वाले पहले इनसान के रूप में तैयारी को समर्पित कर रखा है। जो उसका जज्बा है उसे देख कर लगता है कि उसके ऐसा कर पाने की पूरी संभावना है। अमेरिका की स्पेस एजेंसी ‘नासा’ के विश्व भर में आयोजित किए गए स्पेस कैंप्स में भाग लेने वाली वह पहली है। एडवांस स्पेस एकेडमी कोर्स को सबसे कम उम्र में पूरा करने वाली वह पहली इनसान है। अब वह चार भाषाओं में कालेज स्तर के कोर्स पढ़ रही है। अलाइसा कहती है कि जब वह तीन साल की थी तभी उसे मंगल ग्रह में रुचि पैदा हुई। वह कहती है - ‘मैं वह सब कुछ करती हूं जो बाकी बच्चे करते हैं। बस इसके अलावा मैं सिर्फ अंतरिक्ष यात्री बनने और मंगल पर जाने की ट्रेनिंग कर रही हूं।
अलाइसा को हाल में प्रोजेक्ट पोसम के लिए चुना गया है। ऊपरी वातावरण के अध्ययन वाले इस प्रोजेक्ट के लिए पहली बार इतने कम उम्र के किसी को चुना गया है। इस में अंतरिक्ष यात्रा के लिए भी ट्रेनिंग दी जाती है। नासा के एक अधिकारी के अनुसार इस बच्ची में सही मानसिक एटीट्यूड है और वह मंगल पर जाने के लिए वह सभी प्रशिक्षण ले रही जो पृथ्वी पर संभव है। अलाइसा अगले चरण में बिना ऑक्सीजन रह पाने और गहरे समुद्र में गोताखोरी का प्रशिक्षण लेगी। इसके बाद उसकी योजना कैंब्रिज यूनीवर्सिटी में विज्ञान पढऩे, फ्रांस में ङ्क्षटरनेशनल स्पेस यूनीवसिरटी से स्पेस इंजीनियरिंग करने और फिर एमआईटी से एस्ट्रोबायोजॉजी पढऩे की है। यानी अभी बहुत मेहनत करनी बाकी और सफर लंबा है।
लेकिन अलाइसा के पक्ष में बड़ी बात यह है कि नासा २०३० में मंगल की यात्रा शुरू करेगा। तब तक अलाइसा २९ वर्ष की हो जाएगी और इस यात्रा के लिए उसके पास तब भी काफी उम्र बची रहेगी। माना जा रहा है कि २०३०-३३ में सूर्य का रेडिएशन सबसे निचले स्तर पर होगा और मंगल ग्रह पृथ्वी के सबसे करीब रहेगा।
हालांकि अलाइसा के पिता कार्सन उसे बहुत सहयोग और समर्थन देते रहते हैं लेकिन यह सोच कर वह इमोशनल हो जाते हैं कि जब अलाइसा मंगल ग्रह पर चली जाएगी तो शायद कभी नहीं लौटेगी। जैसा कि सोचा जा रहा है कि मंगल की पहली यात्रा एक तरफ की हो होगी, अलाइसा इससे चिंतित नहीं है। वह कहती है कि मंगल की यात्रा में बहुत जोखिम है लेकिन इसकी तुलना में फायदे बहुत ज्यादा हैं।