वेद भाषा है भोजपुरी

वेद भाषा है भोजपुरी 

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संस्कृत की लोकभाषा 
संजय तिवारी 
अध्यक्ष , भारत संस्कृति न्यास , नयी दिल्ली 
9450887186 

सृष्टि में भोजपुरी तब से है जब से इसका अस्तित्व है। मूलतः संस्कृत से लोकस्वर के रूप में उपज कर भोजपुरी ने सामान्य मानव सभ्यता में संवाद के माध्यम के रूप में खुद को स्थापित किया है। यह एक मात्र भाषा है जिसमे वैयाकरण की दृष्टि से संस्कृत से समानता की क्षमता है। भोजपुरी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमे किसी भी क्रिया या संज्ञा का कोई पर्यायवाची नहीं है , बल्कि हर क्रिया और  संज्ञा के लिए अलग शब्द हैं। यहाँ शब्दो की अद्भुत ढंग से प्रचुरता है। यही वजह है कि संवाद सम्प्रेषण की जो क्षमता भोजपुरी में है वह किसी अन्य भाषा में संभव ही नहीं हो सकता। 

संस्कृत से ही निकली भोजपुरी

आचार्य हवलदार त्रिपाठी "सह्मदय" लम्बे समय तक अन्वेषण कार्य करके इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि भोजपुरी संस्कृत से ही निकली है। उनके कोश-ग्रन्थ ('व्युत्पत्ति मूलक भोजपुरी की धातु और क्रियाएं') में मात्र 761 धातुओं की खोज उन्होंने की है, जिनका विस्तार "ढ़" वर्ण तक हुआ है। इस प्रबन्ध के अध्ययन से ज्ञात होता है कि 761 पदों की मूल धातु की वैज्ञानिक निर्माण प्रक्रिया में पाणिनि सूत्र का अक्षरश: अनुपालन हुआ है। इस कोश-ग्रन्थ में वर्णित विषय पर एक नजर डालने से भोजपुरी तथा संस्कृत भाषा के मध्य समानता स्पष्ट परिलक्षित होती है। वस्तुत: भोजपुरी-भाषा संस्कृत-भाषा के अति निकट और संस्कृत की ही भांति वैज्ञानिक भाषा है। भोजपुरी-भाषा के धातुओं और क्रियाओं का वाक्य-प्रयोग विषय को और अधिक स्पष्ट कर देता है। प्रामाणिकता हेतु संस्कृत व्याकरण को भी साथ-साथ प्रस्तुत कर दिया गया है। इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि इसमें भोजपुरी-भाषा के धातुओं और क्रियाओं की व्युत्पत्ति को स्रोत संस्कृत-भाषा एवं उसके मानक व्याकरण से लिया गया है।
भाषा के अर्थ में ‘भोजपुरी’ शब्द का पहला लिखित प्रयोग रेमंड की पुस्तक ‘शेरमुताखरीन’ के अनुवाद (दूसरे संस्करण) की भूमिका में मिलता है। इसका प्रकाशन वर्ष 1789 है। इसके नामकरण के बारे में कई तरह के मत मिलते हैं। जिनमें से तीन मत काफी प्रचलित हैं। पहले मत के अनुसार राजा भोजदेव (सन् 1005-55 ई.) के नाम पर भोजपुर पड़ा। इस मत के समर्थक जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन, उदयनारायण तिवारी आदि हैं। इस संबंध में उदयनारायण तिवारी ने लिखा है कि “भोजपुरी बोली का नामकरण शाहाबाद जिले के भोजपुर परगने के नाम पर हुआ है। शाहाबाद जिले में भ्रमण करते हुए डॉ. बुकनन सन् 1812 ई. में भोजपुर आए थे। उन्होंने मालवा के भोजवंशी ‘उज्जैन’ राजपूतों के चेरों जाति को पराजित करने के संबंध में उल्लेख किया है। आधुनिक इतिहासकारों ने मालवा के राजा भोजदेव या उनके वंशजों के भोजपुर विजय को संदिग्ध् माना हैं। इसपर विचार करते हुए दुर्गाशंकर सिंह नाथ ने लिखा है कि (मालवा के भोज का)” भोजपुर-भोजदेव पूर्वी प्रांत में कभी नहीं आए। दूसरे मत के अनुसार इसका नामकरण वेद से जोड़ा गया है। वेद में भोज शब्द का प्रयोग मिलता है। इस मत के समर्थकों में डा.ए.बनर्जी शास्त्री, रघुवंश नारायण सिंह, जितराम पाठक का नाम प्रमुख है। एक तीसरा मत भी है जिसके अनुसार भोजपुरी भाषा का नामकरण कन्नौज के राजामिहिर भोज के नाम पर भोजपुर बसा था। इस मत के पक्षधर पृथ्वी सिंह मेहता और परमानंद पांडेय हैं। परमानंद पांडेय के अनुसार “ गुर्जर प्रतिहारवंशी राजा मिहिरभोज का बसाया हुआ भोजपुर आज भी पुराना भोजपुर नाम से विद्यमान है। मिहिरभोज का शासनकाल सन् 836 ई. के आसपास माना जाता है।

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यहाँ केवल एक क्रिया से इसकी इस क्षमता को समझा जा सकता है -

केवाड़ी ओठगा  दी 
केवाड़ी भिड़ा दी 
केवाड़ी सटा  दी 
केवाड़ी बंद कर दी 

इसी प्रकार -

बैला मरखाह ना ह , मूडिझत ह 
अन्हार नइख भइल 
अबहिन मुन्हार  बा 
फरछीन  हो गइल बा 
भिनुसार हो गईल 
बिहान हो गईल 

इसी प्रकार 

थरियवा खंगार दी 
थरियवा धो दी 
थरियवा मांज दी 

इसी प्रकार 

धान ओसावै के बा 
धान धरियावे  के बा 

इसी प्रकार 

खेत कोड़े के बा 
खेत झोरे के बा 

इसी प्रकार 

बाबू ओठगल  बाड़े 
बाबू लेटल बाड़े 
बाबू  सुतल बाड़े 

डॉ॰ ग्रियर्सन ने भारतीय भाषाओं को अन्तरंग ओर बहिरंग इन दो श्रेणियों में विभक्त किया है जिसमें बहिरंग के अन्तर्गत उन्होंने तीन प्रधान शाखाएँ स्वीकार की हैं -

(1) उत्तर पश्चिमी शाखा

(2) दक्षिणी शाखा और

(3) पूर्वी शाखा।

इस अन्तिम शाखा के अन्तर्गत उड़िया, असमी, बँग्ला और पुरबिया भाषाओं की गणना की जाती है। पुरबिया भाषाओं में मैथिली, मगही और भोजपुरी - ये तीन बोलियाँ मानी जाती हैं। क्षेत्रविस्तार और भाषाभाषियों की संख्या के आधार पर भोजपुरी अपनी बहनों मैथिली और मगही में सबसे बड़ी है।

नामकरण

भोजपुरी भाषा का नामकरण बिहार राज्य के आरा (शाहाबाद) जिले में स्थित भोजपुर नामक गाँव के नाम पर हुआ है। पूर्ववर्ती आरा जिले के बक्सर सब-डिविजन (अब बक्सर अलग जिला है) में भोजपुर नाम का एक बड़ा परगना है जिसमें "नवका भोजपुर" और "पुरनका भोजपुर" दो गाँव हैं। मध्य काल में इस स्थान को मध्य प्रदेश के उज्जैन से आए भोजवंशी परमार राजाओं ने बसाया था। उन्होंने अपनी इस राजधानी को अपने पूर्वज राजा भोज के नाम पर भोजपुर रखा था। इसी कारण इसके पास बोली जाने वाली भाषा का नाम "भोजपुरी" पड़ गया।
भोजपुरी भाषा का इतिहास 7वीं सदी से शुरू होता है - 1000 से अधिक साल पुरानी! गुरु गोरख नाथ 1100 वर्ष में गोरख बानी लिखा था। संत कबीर दास (1297) का जन्मदिवस भोजपुरी दिवस के रूप में भारत में स्वीकार किया गया है और विश्व भोजपुरी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

क्षेत्रविस्तार

भोजपुरी भाषा प्रधानतया पश्चिमी बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा उत्तरी झारखण्ड के क्षेत्रों में बोली जाती है।

मुख्यरुप से भोजपुरी बोले जाने वाले जिले-

बिहार : बक्सर जिला, सारण जिला, सिवान, गोपालगंज जिला, पूर्वी चम्पारण जिला, पश्चिम चम्पारण जिला, वैशाली जिला, भोजपुर जिला, रोहतास जिला, बक्सर जिला, भभुआ जिला

उत्तर प्रदेश : बलिया जिला, वाराणसी जिला,चन्दौली जिला, गोरखपुर जिला, महाराजगंज जिला, गाजीपुर जिला, मिर्जापुर जिला, मऊ जिला, इलाहाबाद जिला, जौनपुर जिला, प्रतापगढ़ जिला, सुल्तानपुर जिला, फैजाबाद जिला, बस्ती जिला, गोंडा जिला, बहराईच जिला, सिद्धार्थ नगर,आजमगढ जिला

झारखण्ड : पलामु जिला, गढ़वा जिला,

नेपाल : रौतहट जिला, बारा जिला, बीरगञ्ज, चितवन जिला, नवलपरासी जिला, रुपनदेही जिला, कपिलवस्तु जिला, पर्सा जिला

भोजपुरी भाषा की प्रधान बोलियाँ[संपादित करें]

(1) आदर्श भोजपुरी,

(2) पश्चिमी भोजपुरी और

(३) अन्य दो उपबोलियाँ (सब डाइलेक्ट्स) "मघेसी" तथा "थारु" के नाम से प्रसिद्ध हैं।

आदर्श भोजपुरी

जिसे डॉ॰ ग्रियर्सन ने स्टैंडर्ड भोजपुरी कहा है वह प्रधानतया बिहार राज्य के आरा जिला और उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर जिले के पूर्वी भाग और घाघरा (सरयू) एवं गंडक के दोआब में बोली जाती है। यह एक लंबें भूभाग में फैली हुई है। इसमें अनेक स्थानीय विशेताएँ पाई जाती है। जहाँ शाहाबाद, बलिया और गाजीपुर आदि दक्षिणी जिलों में "ड़" का प्रयोग किया जाता है वहाँ उत्तरी जिलों में "ट" का प्रयोग होता है। इस प्रकार उत्तरी आदर्श भोजपुरी में जहाँ "बाटे" का प्रयोग किया जाता है वहाँ दक्षिणी आदर्श भोजपुरी में "बाड़े" प्रयुक्त होता है। गोरखपुर की भोजपुरी में "मोहन घर में बाटें" कहते परंतु बलिया में "मोहन घर में बाड़ें" बोला जाता है।

पूर्वी गोरखपुर की भाषा को 'गोरखपुरी' कहा जाता है परंतु पश्चिमी गोरखपुर और बस्ती जिले की भाषा को "सरवरिया" नाम दिया गया है। "सरवरिया" शब्द "सरुआर" से निकला हुआ है जो "सरयूपार" का अपभ्रंश रूप है। "सरवरिया" और गोरखपुरी के शब्दों - विशेषत: संज्ञा शब्दों- के प्रयोग में भिन्नता पाई जाती है।

बलिया (उत्तर प्रदेश) और सारन (बिहार) इन दोनों जिलों में 'आदर्श भोजपुरी' बोली जाती है। परंतु कुछ शब्दों के उच्चारण में थोड़ा अन्तर है। सारन के लोग "ड" का उच्चारण "र" करते हैं। जहाँ बलिया निवासी "घोड़ागाड़ी आवत बा" कहता है, वहाँ छपरा या सारन का निवासी "घोरा गारी आवत बा" बोलता है। आदर्श भोजपुरी का नितांत निखरा रूप बलिया और आरा जिले में बोला जाता है।

पश्चिमी भोजपुरी

जौनपुर, आजमगढ़, बनारस, गाजीपुर के पश्चिमी भाग और मिर्जापुर में बोली जाती है। आदर्श भोजपुरी और पश्चिमी भोजपुरी में बहुत अधिक अन्तर है। पश्चिमी भोजपुरी में आदर सूचक के लिये "तुँह" का प्रयोग दीख पड़ता है परंतु आदर्श भोजपुरी में इसके लिये "रउरा" प्रयुक्त होता है। संप्रदान कारक का परसर्ग (प्रत्यय) इन दोनों बोलियों में भिन्न-भिन्न पाया जाता है। आदर्श भोजपुरी में संप्रदान कारक का प्रत्यय "लागि" है परंतु वाराणसी की पश्चिमी भोजपुरी में इसके लिये "बदे" या "वास्ते" का प्रयोग होता है। उदाहरणार्थ :

पश्चिमी भोजपुरी -

हम खरमिटाव कइली हा रहिला चबाय के।भेंवल धरल बा दूध में खाजा तोरे बदे।।जानीला आजकल में झनाझन चली रजा।लाठी, लोहाँगी, खंजर और बिछुआ तोरे बदे।। (तेग अली-बदमाश दपर्ण)

मधेसी

मधेसी शब्द संस्कृत के "मध्य प्रदेश" से निकला है जिसका अर्थ है बीच का देश। चूँकि यह बोली तिरहुत की मैथिली बोली और गोरखपुर की भोजपुरी के बीचवाले स्थानों में बोली जाती है, अत: इसका नाम मधेसी (अर्थात वह बोली जो इन दोनो के बीच में बोली जाये) पड़ गया है। यह बोली चंपारण जिले में बोली जाती और प्राय: "कैथी लिपि" में लिखी जाती है।

"थारू" लोग नेपाल की तराई में रहते हैं। ये बहराइच से चंपारण जिले तक पाए जाते हैं और भोजपुरी बोलते हैं। यह विशेष उल्लेखनीय बात है कि गोंडा और बहराइच जिले के थारू लोग भोजपुरी बोलते हैं जबकि वहाँ की भाषा पूर्वी हिन्दी (अवधी) है। हॉग्सन ने इस भाषा के उपर प्रचुर प्रकाश डाला है।

भोजपुरी जन एवं साहित्य

भोजपुरी बहुत ही सुंदर, सरस, तथा मधुर भाषा है। भोजपुरी भाषाभाषियों की संख्या भारत की समृद्ध भाषाओं- बँगला, गुजराती और मराठी आदि बोलनेवालों से कम नहीं है। इन दृष्टियों से इस भाषा का महत्व बहुत अधिक है और इसका भविष्य उज्जवल तथा गौरवशाली प्रतीत होता है। भोजपुरी भाषा में निबद्ध साहित्य यद्यपि अभी प्रचुर परिमाण में नहीं है तथापि अनेक सरस कवि और अधिकारी लेखक इसके भंडार को भरने में संलग्न हैं। भोजपुरिया-भोजपुरी प्रदेश के निवासी लोगों को अपनी भाषा से बड़ा प्रेम है। अनेक पत्रपत्रिकाएँ तथा ग्रन्थ इसमें प्रकाशित हो रहे हैं तथा भोजपुरी सांस्कृतिक सम्मेलन, वाराणसी इसके प्रचार में संलग्न है। विश्व भोजपुरी सम्मेलन समय-समय पर आंदोलनात्म, रचनात्मक और बैद्धिक तीन स्तरों पर भोजपुरी भाषा, साहित्य और संस्कृति के विकास में निरंतर जुटा हुआ है। विश्व भोजपुरी सम्मेलन से ग्रन्थ के साथ-साथ त्रैमासिक 'समकालीन भोजपुरी साहित्य' पत्रिका का प्रकाशन हो रहे हैं। विश्व भोजपुरी सम्मेलन, भारत ही नहीं ग्लोबल स्तर पर भी भोजपुरी भाषा और साहित्य को सहेजने और इसके प्रचार-प्रसार में लगा हुआ है। देवरिया (यूपी), दिल्ली, मुंबई, कोलकता, पोर्ट लुईस (मारीशस), सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और अमेरिका में इसकी शाखाएं खोली जा चुकी हैं।
राहुल सांकृत्यायन ने भोजपुरी को ‘मल्ली’ और ‘काशिका’ दो नाम दिया था। असल में वे प्राचीन गणराज्यों (सोलह महाजनपद) की व्यवस्था से सम्मोहित थे। वे महाजनपदों के नाम से ही वहाँ की भाषाओं का नामकरण करना चाहते थे। बिहार की दो भाषाओं अंगिका और वज्जिका का नामकरण उन्हीं का किया हुआ है। अंग नाम के महाजनपद के नाम पर वहाँ की भाषा का नाम उन्होंने अंगिका रखा। इसके पूर्व ग्रियर्सन ने अंगिका को मैथिली के अंतरर्गत रख था परंतु इसकी स्वतंत्रा भाषिक विशेषता भी उनके ध्यान में थी।इसीलिए उन्होंने अंगिका को मैथिली का ‘छीका-छाकी’ रूप कहा है। राहुल जी द्वारा भोजपुरी का किया गया नामकरण मान्य नहीं हो सका। असल में उस समय तक भोजपुरी नाम प्रचलित हो गया था। दूसरे यह भोजपुरी को मल्ली और काशिका नाम से दो भाषाओं में बाँट रही थी। भाजपुरी की उत्पत्ति मागधी प्राकृत तथा अपभ्रंशों से हुई है। यह पूर्वी परिवार की भाषा है। भाषावैज्ञानिक दृष्टि से पूरा भोजपुरी भाषी इलाका हिंदी क्षेत्रा से बाहर पड़ता है। इस मत का समर्थन जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन, सुनीति कुमार चटर्जी, उदय नारायण तिवारी आदि भाषावैज्ञानिकों ने किया है। 
भोजपुरी एक बड़े भूभाग की भाषा है। यह पूर्वी बिहार और पश्चिमी उत्तर - प्रदेश के साथ-साथ झारखंड के कुछ क्षेत्रों के लोगों की मातृभाषा है। इसके आलावा बिहार और उत्तर प्रदेश के भोजपुरी भाषी जिलों से सटे नेपाल के कुछ हिस्सों में यह बोली जाती है। यह बिहार के पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सारण, सीवान, गोपालगंज, भोजपुर, बक्सर, सासाराम और भभूआ जिलों में तथा उत्तरप्रदेश के बलिया, देवरिया, कुशीनगर, वाराणसी, गोरखपुर महाराजगंज, गाजीपुर, मऊ, जौनपुर, मिर्जापुर के लोगों की मातृभाषा है। झारखंड में यह पलामू, गढ़वा और लातेहार जिलों के कुछ भागों में बोली जाती है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में कुछ भागों में बोलनेवालों की जनसंख्या 26 करोड़ के आस-पास है। नेपाल के रौतहट, बारा, पर्सा, बिरग, चितवन, नवलपरासी, रूपनदेही और कपिलवस्तु में भोजपुरी बोली जाती है। वहाँ के थारू लोग भोजपुरी बोलते हैं। नेपाल में भोजपुरी भाषी लोगों की आबादी ढ़ाई लाख से अधिक है। जो वहाँ की जनसंख्या के लगभग नौ प्रतिशत है। भोजपुरी सही मायने में विश्वभाषा है। भारत और नेपाल के अलावे यह मारीशस, फिजी, सूरीनाम, ट्रीनीडाड, नीदरलैंड जैसे कई देशों की बड़ी आबादी इसे बोलती-समझती है। रोजी – रोजगार की भाषा नहीं रहने के कारण नई पीढ़ी इससे कट रही है |

मानकीकरण

सर्वविदित है कि भोजपुरी एक विशाल भूखंड की भाषा है। स्वाभाविक रूप से इसके वाचिक रूप में विविधता है । भोजपुरी के पुरोधाओं का ध्यान शुरू से इस ओर रहा है। इसके मानकीकरण के लिए तरह-तरह के प्रयास होते रहें हैं। शुरुआती दौर में भोजपुरी के पुरोधओं का विचार था कि सभी जगहों के लेखक अपनी-अपनी भोजपुरी में लिखें। उस समय सभी लेखकों को उत्साहित करना था। धीरे - धीरे स्थिति बदली। सभी जगहों के भोजपुरी लेखको को भोजपुरी की मान्यता और प्रचार-प्रसार के लिए मानकीकरण की जरूरत महसूस हुई। शुरुआती दौर में राहुल सांकृत्यायन, अवध् बिहारी सुमन (दंडिस्वामी विमलानंद सरस्वती) जैसे कई लेखक भोजपुरी को बोलचाल के हिसाब से लिखते थे परंतु जैसे-जैसे भोजपुरी में लेखन तेज हुआ, इसके मान्यता की बात उठी वैसे-वैसे भोजपुरी में यह आग्रह कम हुआ। भोजपुरी के हितचिंतकों का विचार बना कि भोजपुरी का स्वरूप ऐसा हो जिसमें शिक्षा, सरकारी कामकाज, संचार माध्यमों आदि का काम हो सके। भोजपुरी मानकीकरण की मुख्यतः दो प्रकार की धारा रही है। एक धारा का मानना है कि भोजपुरी एकदम गंवारू रूप में लिखी जानी चाहिए। इसके बोलचाल के ठेठ स्वरूप को किसी हाल में नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इस धारा के हिसाब से श, ष, क्ष, त्र, ज्ञ जैसे अक्षरों या संयुक्ताक्षर का प्रयोग नहीं होना चाहिए। इस विचारधारा को मानने वालों में हवलदार त्रिपाठी सहृदय, रासबिहारी पांडेय, अवधबिहारी कवि प्रमुख हैं। भोजपुरी में इस धारा को न के बराबर समर्थन मिला।

दूसरी धारा भोजपुरी में बदलते समय के अनुसार बदलाव की पक्षधर रही है। इस धारा के अनुसार कुछ लोगों का आग्रह रहता है कि भोजपुरी जैसे बोली जाती है, एकदम वैसे ही लिखी जाए।यह विचार भोजपुरी के हित में नहीं है | यहाँ इस बात का हरदम ध्यान रखना चाहिए कि बोली और भाषा में हमेशा अंतर रहता है। दुनिया की कोई भाषा जिस तरह बोली जाती है एकदम उसी तरह लिखी नहीं जाती है। अब भोजपुरी बोली भर नहीं रह गई है। यह अब सिर्फ गीत-गवनई की भाषा नहीं रह गई है। अब यह विचार और शास्त्र की भाषा बन चुकी है, जल्दी ही शासन-प्रशासन, ज्ञान-विज्ञान आदि की भी भाषा बनेगी। ऐसी स्थिति में इसके लिए देवनागरी लिपि का कोई अक्षर, संयुक्ताक्षर या मात्रा को छोड़ना ठीक नहीं होगा। इससे अभिव्यक्ति में कठिनाई होगी।

जिस चीज के लिए भोजपुरी में शब्द है बेहिचक उसे अपनाना चाहिए परंतु हिंदी, अंग्रेजी तथा अन्य किसी भाषा के शब्दों का भोजपुरीकरण करने के फेरे में उसकी वर्तनी बिगड़ना ठीक नहीं है। जरूरत पड़ने पर दूसरे भाषा के शब्दों को बेहिचक अपनाना चाहिए। इससे भोजपुरी समृद्ध होगी। बंगला, मैथिली आदि ने यही किया है। इससे भोजपुरी का विकास होगा। अंग्रेजी की समृद्धि का एक कारण यह भी है कि उसने अपनी जरूरत के मुताबिक किसी भाषा के शब्दों को अपना लेती है। लाठी, धोती, समोसा, गर्दा उड़ गइल - जैसे बहुत से शब्द इसके उदाहरण हैं। शुद्धतावादी दृष्टिकोण से हिंदी को बहुत नुकसान हुआ है। खांटी भोजपुरी के आग्रह से बचना चाहिए। जब भोजपुरी को हर तरह की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाना है तो मुखसुख, स्थानीय प्रयोग आदि के आग्रह से ऊपर उठना होगा। अंग्रेजी, हिंदी सहित सभी भाषाओं का स्थानीय रूप है परंतु उस हिसाब से लिखे नहीं जाते हैं।
भूमंडलीकरण के दौर में इंटरनेट तथा अन्य नए-नए आविष्कार के प्रयोग, सूचना क्रांति से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समृद्धि बढ़ेगी। इससे भोजपुरिया समाज के आचार-विचार, व्यवहार, जीवन-मूल्यों आदि में बदलाव होगा। चूँकि भाषा सामाजिक विकसित होती है। इसलिए समाज में हो रहे बदलावों के हिसाब से भोजपुरी को अपने-आप को ढालना पड़ेगा। इस समय समाज में कईएक कारणों से एक जगह से दूसरे जगह आना-जाना, संपर्क बढ़ रहा है। इसका प्रभाव भाषा पर भी पड़ता है। नहीं चाहने पर भी एक भाषा दूसरी भाषा से प्रभावित होती है। प्रत्येक भाषा का एक ग्राम रूप  और एक शिष्ट रूप होता है। अब भोजपुरी सिपर्फ गंवार लोगों की भाषा नहीं रह गई है। इसलिए मूर्खतापूर्ण, संस्कारहीन आदि बातों को असली भोजपुरी नहीं माना जाना चाहिए। इसे बोलने वाले हर तरह के लोग हैं।
संदर्भ

1- "Bhojpuri - definition of Bhojpuri in English". Oxford Dictionaries.
2- भोजपुरी at Ethnologue (18th ed., 2015)
3-कैरेबियन हिंदुस्तानी at Ethnologue (18th ed., 2015)
4- "Census of India: Abstract of speakers’ strength of languages and mother tongues –2001". Censusindia.gov.in. तारीख 2016-10-18
5- Bhojpuri Ethnologue World Languages (2009)
6- Nordhoff, Sebastian; Hammarström, Harald; Forkel, Robert; Haspelmath, Martin, संपा. लोग (2013). "Bhojpuric". Glottolog 2.2. Leipzig: Max Planck Institute for Evolutionary Anthropology.
7- "Nepal - Maps" (in English). Ethnologue. तारीख 2016-10-18 के उतारल गइल.
8- "Bhojpuri" (in English). Ethnologue. तारीख 2016-10-18 के उतारल गइल.
9- L.S.S. O'malley (1 जनवरी 2007). Bihar And Orissa District Gazetteers : Saran. Concept Publishing Company. pp. 40–. ISBN 978-81-7268-136-4.
10- Dineschandra Sircar (1966). Indian Epigraphical Glossary. Motilal Banarsidass Publ. pp. 56–. ISBN 978-81-208-0562-0.
11- Pradyot Kumar Maity (1989). Human Fertility Cults and Rituals of Bengal: A Comparative Study. Abhinav Publications. pp. 34–. ISBN 978-81-7017-263-5.
12- ग्रियर्सन, जॉर्ज अब्राहम (1903). Linguistic Survey of India, Vol. V, Part-2 [भारत क भाषाबैज्ञानिक सर्वे, खंड पाँच, भाग-२] (in English). कलकत्ता: गवर्नमेंट प्रेस. p. 40. 


13- उपाध्याय, कृष्णदेव. भोजपुरी लोकगीत. इलाहाबाद: हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रेस. p. 12.
14- वाजपेयी, आचार्य किशोरीदास. हिंदी शब्दानुशासन. बनारस: नागरी प्रचारिणी सभा.
15-त्रिपाठी, हवलदार. व्युत्पत्ति मूलक भोजपुरी की धातु और क्रियाएं.
16- भोलानाथ तिवारी. हिंदी भाषा का इतिहास. दिल्ली: वाणी प्रकाशन. pp. 107–.
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18- King, Christopher R. 1995. One Language, Two Scripts: The Hindi Movement in Nineteenth Century North India. New York: Oxford University Press.
19- Akira Nakanishi (1990). Writing Systems of the World. Tuttle Publishing. pp. 68–. ISBN 978-0-8048-1654-0.
20- Saroja Agravāla (2004). Hindī ke janajātimūlaka upanyāsoṃ kī samājaśāstrīya cetanā aura usakā aupanyāsika pratiphalana. Star Publications. pp. 115–. ISBN 978-81-85244-86-0.
21- Khabar, Prabhat (2016-05-12). "ढूंढ़ने से भी जिले में नहीं मिल रहे कैथी लिपि के अनुवादक". Prabhatkhabar.com.
22- "कैथी लिपि का प्रशिक्षण शिविर 11 जुलाई से". Bhaskar.com
23- भोजपुरी भाषा और साहित्य, पृष्ठ संख्या-252
24- भोजपुरी के काव्य और कवि, पृष्ठ संख्या-18
25- इमे भोजा अंगिरसो विरूपा दिवस्थुत्रासो, असुरस्थ वीराः। विश्वामित्राय ददतो मद्यानि सहस्त्रासावे प्रतिरन्तु आयुः। --- ऋगवेद (3, 53, 7) (हे इंद्र ! यह भोज और सुदास राजा की ओर से यज्ञ करते हैं। यह अंगिरा ,मेघातिथि आदि विविध् रूप वाले हैं। देवताओं मे अत्यंत बली रुद्रोत्पन्न , मंरूदगण अश्वमेध यज्ञ से मुझ विश्वामित्र का महान धन दे और अन्न बढ़ावे।)
26-अंगिका और भोजपुरी भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन, पृष्ठ संख्या-5
27-लिग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया, जिल्द-5, खंड-2
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