वन्देमातरम की धुन पर होगी बीटिंग द रिट्रीट
ब्रिटिश साम्राज्यवाद से जुड़ी धुन नहीं बजेगी अब
संजय तिवारी
ब्रिटिश दासतां की एक और निशानी ख़त्म हो जायेगी इस बार के गणतंत्र दिवस समारोह के समापन तक।इस बार से विशुद्ध भारतीय सनातन संस्कृति की धुन बजेगी बीटिंग द रिट्रीट के समय। यह धुन होगी वन्दे मातरम की। कल्पना कीजिये , कितना अद्भुत होगा यह दृश्य। इस वाक्य को लिखने में जब रोयें खड़े हो रहे हैं तो निश्चय ही जब यह धुन विजय चौक पर बजेगी तो आँखें भी भर जाएंगी। यह है विजेता भाव। वह है वास्तविक भारत का गणतंत्र। अभी तक जो सूचना है उसके मुताबिक़ इस वर्ष गणतन्त्र दिवस के पश्चात 29 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी के विजय चौक पर आयोजित होने वाले बीटिंग द रिट्रीट का समापन वन्दे मातरम के साथ होगा।
रक्षा मंत्रालय के एक अफसर के अनुसार , “बीटिंग द रिट्रीट समारोह में हर प्रकार की धुनों के साथ प्रयोग किया जाता है। इस साल समारोह ‘एबाइड विद मी’ की बजाय ‘वंदे मातरम’ के साथ समाप्त होगा”। इस निर्णय के पीछे का प्रमुख कारण है समारोह का भारतीयकरण, जहां भारतीय धुनों पर ज़्यादा ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
एबाइड विद मी एक स्कॉटिश धुन है, जिसे 19वीं सदी में स्कॉटिश कवि हेनरी फ्रांसिस लाइट ने लिखा था और इसे धुन दी थी विलियम हेनरी मंक ने। इस धुन का प्रयोग हमारे बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी में वर्षों से होता आ रहा है। द प्रिंट की माने तो बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी की धुन आर्मी हेडक्वार्टर Adjutant General के विभाग में रक्षा मंत्रालय के सुझाव को स्वीकृत दी जाती है। कहा जाता है कि धुन को मिलने वाली स्वीकृत में रक्षा मंत्रालय का बहुत बड़ा हाथ रहता है।ऐसे में यदि एबाइड विद मी को वास्तव में Beating retreat सेरेमनी से हटाया जाता है, तो ये निस्संदेह मोदी सरकार द्वारा गणतन्त्र दिवस समारोह को और भारतीय बनाने के अभियान का एक अहम और स्वागत योग्य निर्णय होगा।
बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी है क्या?
बीटिंग द रिट्रीट भारत के गणतंत्र दिवस समारोह की समाप्ति का सूचक है। इस कार्यक्रम में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं। यह सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है। गणतंत्र दिवस के पश्चात हर वर्ष 29 जनवरी को बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इसकी नींव ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के पहले भारत दौरे में पड़ी थी। हुआ यूं कि स्वतन्त्रता के पश्चात पहली बार ब्रिटेन का राजपरिवार भारत आ रहा था, और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि उनकी खातिरदारी में कोई कमी न हो। इसलिए उन्होंने द ग्रेनेडियर्स के एक अफसर मेजर जीए रॉबर्ट्स को समन किया और उनसे एक नायाब समारोह सुझाने को कहा। यहीं से शुरू हुआ बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी का आयोजन। यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद के बचे हुए अवशेषों का ही एक हिस्सा है।
वैसे ये पहली बार नहीं जब पीएम मोदी ने इस तरह का कदम उठाया हो, इससे पहले भी मोदी सरकार ने कई ऐसे निर्णय लिए, जिससे गणतन्त्र दिवस में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का लेशमात्र भी अंश न बचे। उदाहरण के लिए नेताजी की जिस इंडियन नेशनल आर्मी के वीर सिपाहियों को गणतन्त्र दिवस समारोह से दूर रखा गया था, उन्हीं वीर सिपाहियों को देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र विजेताओं के साथ गणतन्त्र दिवस समारोह में हिस्सा के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार ने न केवल आमंत्रित किया, अपितु उन्हें उचित सम्मान भी दिया गया।
यही नहीं, 2015 में पहली बार बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी के दौरान ब्रिटिश काल के मिलिट्री बैंड के साथ शास्त्रीय वाद्य यंत्रों का भी उपयोग किया गया। Beating retreat समारोह में पहली बार सितार, संतूर और तबला का उपयोग किया गया था। पिछले वर्ष स्वतंत्र भारत की पहली मार्शल धुन शंखनाद को मार्शल ट्यून के स्थान पर पहली बार गणतन्त्र दिवस समारोह में बजाया गया था। ये धुन महर रेजीमेंट के शौर्य का गुणगान करता है।
2018 में भी बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया, जब समारोह में बजाई गयी 26 में से 25 धुनों के रचयिता भारतीय थे, और एबाइड विद मी ही समारोह में बजाए जाने वाला एकमात्र विदेशी धुन था। अब इस वर्ष के समारोह में शायद एबाइड विद मी भी नहीं बजाया जाएगा।
एबाइड विद मी 1950 से लगभग हर बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी में बजाया गया है। तत्कालीन नेहरू सरकार ने कभी भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद के इन अंशों को हटाने का प्रयासमात्र भी नहीं किया। ये मोदी सरकार में ही संभव हुआ है कि गणतन्त्र दिवस समारोहों को पूरी तरह भारतीय बनाने के अभियान की सराहना होनी चाहिए और एबाइड विद मी का बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी से हटाया जाना भी इसका एक अहम हिस्सा बन सकता है।
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Author: Sanjay Tiwari
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