जब इस्लाम नही था

जब इस्लाम नही था


संजय तिवारी
धरती पर जब इस्लाम नही था। अरब और मक्का तब भी थे यह तथ्य है। धरती के वे सभी हिस्से तब तब भी थे  जहां आज इस्लाम पसरा है। अब जानने की जरूरत इस बात की है कि जब यह मजहब अस्तित्व में नही था और आसमान से कोई वस्तु धरती पर नही आई थी तब धरती के उन हिस्सों में क्या हो रहा था और वहां कौन सी सभ्यता या संस्कृति स्थापित थी। यदि दुनिया के इतिहास को राम से ही देखना शुरू करें तो राम के हजारों साल बाद कृष्ण आते हैं। यह समय आधुनिक गणना के हिसाब से प्रमाणित रूप से 5300 साल पहले का होता है। कृष्ण के बाद महाबीर और बुद्ध का समय उनसे लगभग दो या ढाई हजार साल बाद का है। बुद्ध के पांच सौसाल बाद ईसामसीह एक उद्भव है और ईसा से भी 600 साल बाद आते हैं मोहम्मद। यानी इस्लाम। 
अब जानने का प्रयास कीजिये कि जब मोहम्मद धरती पर नही आये थे उनसे पहले धरती के अरब क्षेत्र में क्या होता था। वहां कौन लोग रहते थे। उनकी संस्कृति और सभ्यता क्या थी। इस प्रश्न का उत्तर देती है एक पुस्तक जिसका नाम है   सेअरुल आकुल । इस पुस्तक का प्रकाशन ईरान की सरकार ने कराया है और यह बिरला मेमोरियल लाइब्रेरी में उपलब्ध है। यह अलग बात है कि अशोक से युधिष्ठिर को नीति सिखाने वाली रोमिला थापर या एक गवर्नर द्वारा तथ्य प्रस्तुत करने पर मारपीट करने वाले इरफान हबीब जैसे कथित इतिहासकारों को ऐसी महत्व की पुस्तकों को पढ़ने की न फुरसत है और न ही दुनिया को वास्तविक इतिहास बता पाने की उनमें कूवत है। 
सेअरुल आकुल को पढ़िए। आंख खुल जाएगी। यह बता रही है कि जब इस्लाम नाम का कोई शब्द भी नही था उस समय भी मक्का था और मक्का के उस उपासना स्थल पर प्रतिदिन शिव काव्य का पारायण होता था। जिस काव्य का पारायण किया जाता था उस कविता को स्वर्ण पट पर अंकित भी किया जाता था। इन स्वर्ण पटो में एक पट्ट ऐसा भी मौजूद है जो मोहम्मद के परिवार के एक सज्जन द्वारा ही गया गया है। इतिहास में मक्केश्वर महादेव को देवो के देव के रूप में बाकायदा गाया गया है जिसके सभी वास्तविक प्राण आज भी उपस्थित हैं। 
अब यह विचार का विषय है कि मक्केश्वर महादेव जैसा शिवालय कब और कैसे इस्लाम का मक्का बन गया। आखिर किसने किया यह सब।
क्रमशः

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