ताजमहल का सच

ताजमहल का सच 
प्राचीन भारत का गर्व था तेजोमहालय
संजय तिवारी

तेजोमहालय का निर्माण महाराजा जय सिंह प्रथम के समय में हुआ था।  यह विराट शिवालय भारत की शान हुआ करता था। इस तेजोमहालय पर कब्जे और इसके अधिपत्य को लेकर मुगलो ने अनेक बार आक्रमण किये जिनके उल्लेख कोई वामपंथी इतिहासकार नहीं करता। जिस शाहजहाँ द्वारा इसके निर्माण की कथा गढ़ी गयी है वह कितनी झूठी है , इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुमताज बेगम उसकी ग्यारहवीं पत्नी थी और उससे चौदहवे संतान के जन्म के समय उसकी मृत्यु बुरहानपुर नमक स्थान पर हुई। यह बेवकूफी नहीं तो क्या है कि मुमताज के मरने की तिथि के छह माह बाद उसे यहाँ ताजमहल में दफ़नाने की कथा रच दी गयी। आज भी ताज की गुंम्बद से गर्भगृह में टपकने वाली पानी की बूँद के बारे में किसी इतिहासकार के पास कोई तर्क नहीं है। यह बूँद वह टपकती है जहा भगवान् शिव के विग्रह विराजमान था। भारतीय कामगारों ने इसे इस रूप में बनाया था कि भगवान् का जलाभिषेक होता रहे। यह वायु और तप के संघनन की प्रणाली से बना है। प्राचीन भारत के इस गौरव को जिस तरह शाहजहाँ जैसे ऐयाश बादशाह की निशानी बता दिया गया ,यह भारत और सनातन परंपरा के लिए ही शर्म जैसा है। 

दुःख तो इस बात पर होता है कि देश के स्वाधीन होने के बाद भी हमारी सरकारों ने कभी यह कोशिश नहीं की कि अपनी गौरवमयी ऐतिहासिक गाथाओ को अपनी नयी पीढ़ी तक पहुंचाया जाय। जो मुसलमान दरबारी कवी और अंग्रेज लिख कर मर गए उसी तथ्य को भारत का इतिहास बना कर पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जाता रहा।  Image result for हिस्ट्री ऑफ ताज महल
जैसा कि पर्यटकों को बताया जाता है – ताज महल शाहजहां की बनाई हुई एक मजार है,हालांकि सच्चाई यह है कि ताज महल ‘तेजो महालय’ नामक एक शिव मंदिर है जिसको पांचवी पीढ़ी के मुगल शासक शाहजहां ने जयपुर नरेश से बलपूर्वक छीन लिया था. इस कारण ताज महल को एक मंदिर स्थापत्य माना जाना चाहिए न कि एक मजार. इस में काफ़ी गहरा अंतर है.

आप ताज महल को थोपी गई कहानी के आधार पर सिर्फ एक मजार के रूप में देखकर उसके कद, उसकी भव्यता, विशालता और उसके सौंदर्य की बारीकियों पर गौर नहीं कर सकते. लेकिन जब आपको यह कहा जाता है कि आप एक मंदिर को देखने जा रहे हो तब आप उसके गलियारों, संरक्षक दिवारों को जो अब ध्वस्त हो चुकी हैं, टेकड़ियों, खंदकों, पगथियों, फव्वारों, सुंदर बगीचों, सैकड़ों कमरों, कमान वाले बरामदों, अट्टालिकाओं, बहुमंजिली मीनारों, गुप्त और बंद किए हुए कक्षों, अतिथी कक्षों, अस्तबल, गुम्बद पर जड़े गए त्रिशूल और गर्भगृह की बाह्य दिवारों पर गोदे गए ‘ॐ‘ के चिन्ह को जिनकी जगह अब मजारों ने ले ली है, अनदेखा नहीं कर सकते.
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नाम

1. ताज महल नाम का उल्लेख औरंगजेब के काल तक किसी भी मुगल दरबारी दस्तावेजों, वृत्तांतों या ऐतिहासिक घटनाक्रमों में कहीं नहीं मिलता. इसलिए इसे ‘ताज-इ-महल’ कहने की कोशिश बहुत ही हास्यास्पद है.

2. ताज महल का अंतिम पद ‘महल’ इस्लामिक है ही नहीं बल्कि संस्कृत भाषा के शब्द ‘महालय’ का अपभ्रंश है. क्योंकि अफ़गानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी इस्लामिक देश में ‘महल’ नामक कोई इमारत दिखाई नहीं पड़ती.

3. यह कहना कि इस इमारत का नाम ताज महल इस में दफ़नाई गई मुमताज़ महल के नाम पर पड़ा, कम से कम दो बातों में असंगत है. पहली बात, उसका नाम मुमताज महल नहीं बल्कि मुमताज़-उल्-ज़मानी था और दूसरी यह कि उसके नाम के प्रथम दो अक्षर ‘मुम्’ उड़ा कर शेष दो अक्षरों से इमारत का नाम रखना समझ में नहीं आता.

4. फ़िर भी यदि मुमताज़ में आए ‘ताज़’ पर ही इमारत का नाम होता, तो वह ‘ताज़ महल’ होना चाहिए न कि ‘ताज महल’.

5. शाहजहां के समय के कुछ यूरोपीय पर्यटक, इस स्थापत्य को ताज-ए-महल कह कर संबोधित करते हैं जो कि वास्तव में परंपरा के अनुरूप है क्योंकि युगों पुराना संस्कृत नाम ‘तेजो महालय’ इसे शिव मंदिर ही घोषित करता है. शाहजहां और औरंगजेब ने प्रामाणिकता से संस्कृत नाम का प्रयोग टाला है और उसे मात्र पवित्र कब्र ही बताया है.

6. मजार का अर्थ भव्य इमारत नहीं बल्कि उस के अंदर बनी कब्र को ही जानना चाहिए. इस से लोगों को अनुभूति होगी कि सभी मृत मुस्लिम दरबारियों और राजसी लोगों जैसे हुमायूं, अकबर, मुमताज़, एतमाद्-उद्-दौला, सफ़दरजंग इत्यादि मुसलमान बादशाहों को हिन्दू भवनों और मंदिरों को ही बलात् हस्तगत कर के दफ़नाया गया है.

7. यदि ताज कोई दफ़नाने की जगह होती तो उसके साथ ‘महल’ अर्थात् ‘आलय’ जैसा नाम क्यों लगाया जाएगा?

8. जब ताज महल मुगल दरबारों में कहीं परिभाषित हुआ मिलता ही नहीं, तब उसके लिए किसी भी मुगल खुलासे को खोजना व्यर्थ ही होगा. इस के दोनों पदों- ‘ताज’ और ‘महल’ का मूल संस्कृत में ही है.
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मंदिर परंपराएं

9. ताज महल शब्द, शिव मंदिर के वाचक संस्कृत शब्द ‘तेजो महालय’ का बिगड़ा हुआ रूप है. आगरा के स्वामी- अग्रेश्वर महादेव – यहां प्रतिष्ठित किए गए थे.

10. ताज महल में संगमरमरी चबूतरे पर चढ़ने से पहले जूते-चप्पल इत्यादि उतारे जाने की परंपरा बहुत प्राचीन है, जो कि शाहजहां से भी बहुत पूर्व, जब कि ताज महल एक शिवालय था तब से चली आ रही है. यदि ताज एक मक़बरा ही होता, तो वहां जूते आदि उतारने की आवश्यकता ही नहीं थी बल्कि दफ़न भूमि में तो अनिवार्य रूप से जूतेचप्पल पहने जाते हैं.

11. पर्यटक यह देख सकते हैं कि संगमरमरी तहखाने में बनी कब्र की आधारशिला सफ़ेद रंग की बिलकुल सादी है, जब कि उसकी ऊपरी मंजिल और अन्य दो मंजिलों पर बनी तीन कब्रों पर बेल-बूटों की नक्काशी की गई है. इससे पता चलता है कि शिव लिंग का संगमरमरी तल अब भी वहां मौजूद है और मुमताज़ की कब्र मात्र एक छलावा है.

12. संगमरमरी ज़ाली की ऊपरी किनारी पर उकेरी गई कलशों की झालर और ज़ाली में जड़े कलश – सभी मिलाकर कुल संख्या 108 है, जो कि हिन्दू मंदिर परंपराओं की एक पवित्र संख्या है.

13. ताज की मरम्मत और रख-रखाव से जुड़े कई व्यक्तियों द्वारा प्राचीन पवित्र शिव लिंग और अन्य मूर्तियों को मोटी दिवारों, गुप्त कक्षों और  संगमरमरी तहखाने के नीचे बनी लाल पत्थरों की मंजिलों में बंद पड़ा देखा गया है. भारतीय पुरातत्व विभाग भी इस बारे में अपनी जिम्मेदारी टाल चुका है. पुरातत्व विभाग कूटनीतिक चालाकी, छद्म नम्रता से और दूरी बनाए रखते हुए अभी तक अप्राप्त ऐतिहासिक दस्तावेजों का अनुसंधान करने के अपने दायित्व से मुकर रहा है.

14. भारतवर्ष में बारह ज्योर्तिलिंग हैं अर्थात बारह मुख्य शिव लिंग हैं. जिन में से एक तेजो महालय अर्थात् तथा-कथित ताज महल है. क्योंकि इस के दिवारों की मुंड़ेर पर नाग की आकृतियां लिपटी हुई हैं, इसलिए लगता है कि यह मंदिर नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था. शाहजहां के हथियाने के बाद से यह मंदिर अपनी हिन्दू महत्ता खो बैठा है.

15. वास्तु विद्या पर प्रसिद्ध हिन्दू ग्रन्थ विश्वकर्मा वास्तु शास्त्र में उल्लिखित विविध प्रकार के शिव लिंगों में एक तेज लिंग भी है. जो कि हिन्दुओं के आराध्य देव शिव जी का चिन्ह है. ऐसा ही एक तेज लिंग, ताज महल में स्थापित था, इसलिए यह तथा-कथित ताज महल ही तेजो महालय है.

16. ताज महल जहां स्थित है वह आगरा शहर, प्राचीन काल से ही शिव पूजा का केन्द्र रहा है. यहां की धर्मनिष्ठ जनता प्राचीन काल से ही विशेषतः श्रावण मास में रात्री के भोजन से पहले पांच शिव मंदिरों में पूजा करने की परंपरा को निभाती आ रही थी, लेकिन पिछले कुछ सौ सालों से आगरा के निवासी केवल चार प्रमुख शिव मंदिरों – बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राज-राजेश्वर के दर्शनों में ही सन्तोष प्राप्त कर रहे हैं.  क्योंकि उनके पूर्वजों द्वारा पूजित पांचवे मंदिर का देवता उनसे छिन गया है. स्पष्ट है कि अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही यह पांचवे देवता हैं जो तेजो महालय अर्थात तथा-कथित ताज महल में विराजमान थे.

17. आगरा क्षेत्र में जाटों का वर्चस्व रहा है, वे लोग शिव भगवान को ‘तेजा जी’ कहते हैं. इलस्ट्रेटेड़ वीकली ऑफ़ इण्ड़िया के जाट विशेषांक (28 जून,1971) में ज़िक्र है कि जाटों के ‘तेज मन्दिर’ होते थे. इसलिए शिव लिंग के विविध नामों में से एक नाम तेज लिंग भी है. इससे पता चलता है कि ताज महल ही तेज महालय अर्थात् – तेज (शिव) का महान आलय (आवास) है.

दस्तावेजीय प्रमाण

18. स्वंय शाहजहां के दरबारी अभिलेख बादशाहनामा (पृष्ठ 403, खंड1) में कहा गया है कि मुमताज़ को दफ़नाने के लिए जयपुर नरेश महाराजा जयसिंह से एक अपूर्व वैभवशाली गुम्बदयुक्त भव्य प्रासाद (इमारत-ए-आलीशान वा गुम्बजे) लिया गया. जो कि राजा मानसिंह के महल के नाम से विख्यात था.

19. ताज के बाहर लगे पुरातत्वीय फ़लक के अनुसार, ताज महल एक मकबरा है. जिसका निर्माण शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज़ महल के लिए सन् 1631 से सन् 1653 तक सततबाईस वर्षों तक करवाया. यह फ़लक अपने आप में ऐतिहासिक घपले का एक नमूना है.

पहला, इस फ़लक पर किए गए दावे का कोई आधार नहीं बताया गया.

दूसरा, यह कि उस महिला का नाम मुमताज़-उल्-ज़मानी था, न कि मुमताज़ महल.

और तीसरा, यह जो बाईस वर्ष का काल दिया गया है वह किसी मुस्लिम इतिहास से नहीं बल्कि एक किसी ऐरे-गैरे फ्रेंच प्रवासी टैवर्नियर की ऊलज़लूल टिप्पणियों से लिया गया है.

20. औरंगज़ेब द्वारा अपने पिता शाहजहां को लिखित पत्र, कम से कम तीन इतिवृत्तों – ‘आदाब-ए-आलमगिरी, यादगारनामा और मुरक्का-ई-अकबराबादी (सईद अहमद संपादित, आगरा,1931, पृष्ठ 43, पादटिप्पणी 2) में पाया जाता है. सन्1652 के लिखे इस पत्र में औरंगजेब ने स्वंय कहा है कि – मुमताज़ की काल्पनिक दफ़न भूमि के परिसर की कई सात मंजिला इमारतें इतनी पुरानी हो गई थीं कि उन में से पानी रिसने लगा था और गुम्बद के उत्तरी भाग में दरार पड़ गई थी. अतः औरंगजेब ने तत्काल अपने खर्चे से इन इमारतों की मरम्मत का आदेश दिया और शाहजहां को बाद में इसकी विस्तार से मरम्मत करवाने की सलाह दी. इससे सिद्ध होता है कि शाहजहां के शासन काल में ही ताज महल परिसर इतना पुराना हो गया था कि उसकी तत्काल मरम्मत करवानी पड़ी.

21. जयपुर के एक पूर्व महाराजा के पास, उनके निजी संग्रह ‘कपड़ द्वारा’ में  ताज भवन समूह की मांग करने वाले शाहजहां के दो लिखित हुक्म,  तारीख़-दिसंबर 18,1633 (जिनके आधुनिक क्रमांक 176 और 177 हैं) रखे हुए हैं. उस स्थापत्य का हथियाया जाना इतना स्पष्ट था कि इससे उस समय के जयपुर के महाराजा को यह दस्तावेज जनता के सामने रखने में शर्म महसूस होती थी.

22. राजस्थान के बीकानेर स्थित अभिलेखागार में शाहजहां द्वारा जयपुर नरेश जयसिंह को संबोधित अन्य तीन फ़रमान (आदेश) रखे हुए हैं. उस में शाहजहां ने जयसिंह को मकराना की खानों से संगमरमर और उसे काटने और गढ़ने वाले संगतराशों को भेजने का आदेश दिया है.
स्वाभाविक रूप से जयसिंह ताज महल को कपट पूर्वक हथिया लेने से इतना क्रोधित था कि उसने ताज महल में हिंदू अंशों को नष्ट कर, कुरान की आयतों को जोड़ने के लिए और बनावटी कब्र बनाकर उसे और अधिक भ्रष्ट करने के लिए संगमरमर और संगतराश देने से मना कर दिया.  शाहजहां की इस संगमरमर और संगतराश देने की मांग को जयसिंह ने जले पर नमक के समान  समझा.अतः उसने और संगमरमर देने से मना तो किया ही परन्तु कोई संगतराश वहां पहुंच न जाए इसलिए उन्हें अपनी हिरासत में भी रखा.

23. मुमताज़ की मृत्यु के दो वर्ष के भीतर ही शाहजहां ने राजा जयसिंह को संगमरमर की मांग करनेवाले तीन आदेश भेजे. यदि शाहजहां ने सच में बाईस वर्षों तक ताज महल का निर्माण करवाया होता, तो संगमरमर की आवश्यकता 15 या 20 वर्षों के बाद पड़ती, न कि मुमताज की मृत्यु के तुरंत बाद.

24. इतना ही नहीं, इन तीनों पत्रों में कहीं भी न ताज महल, न मुमताज़ और न ही उसे दफ़नाने का कोई उल्लेख है. उसकी लागत तथा पत्थर की मात्रा का भी कोई उल्लेख नहीं है. इससे पता चलता है कि केवल कुछ जोड़ने के काम के लिए और कुछ हेर-फ़ेर करने के लिए संगमरमर की मामूली मात्रा ही चाहिए थी.

25. टैवर्नियर नामक एक फ्रेंच जौहरी ने अपने यात्रा संस्मरणों में यह लिखा है कि शाहजहां ने जान-बूझकर मुमताज़ को ताज-इ-मकान (ताज की इमारत) के निकट दफ़नाया. क्योंकि वहां विदेशी पर्यटक आया करते थे – जैसा कि आज भी आते हैं, ताकि संपूर्ण विश्व के लोग उसे देखें और उसकी प्रशंसा करें. उसने यह भी लिखा है कि ताज की संपूर्ण लागत की अपेक्षा मचान बनाने का खर्च अधिक था. तेजो महालय शिव मंदिर में जिस काम का आदेश शाहजहां द्वारा दिया गया था, वह था – बहुमूल्य मूर्तियों, सामानों और संपत्ति की लूट-पाट करना, शिव प्रतिमाओं को उखाड़ फेंकना और उसकी जगह दो मंजिलों पर कब्रें जड़ना, उनकी कमानों में कुरान की आयतें खुदवाना और ताज की सात में से छः मंजिलों को दीवार चिनवा कर बंद करवाना आदि. यही लूट और मंदिर को अपवित्र करने का काम ताज के कक्षों में चल रहा था, जिस में बाईस वर्ष लग गए

26. पीटर मंड़ी नामक एक अंग्रेज प्रवासी सन् 1632 में (मुमताज़ की मृत्यु के एक वर्ष के भीतर ही) आगरा आया था. उसने आगरा और उसके आस-पास के दर्शनीय स्थलों में ताज-ए-महल की कब्र, बगीचों और बाजारों का जिक्र किया है. अतः उस की इस बात ने इसकी पुष्टी की है कि ताज महल शाहजहां से पूर्व ही एक उल्लेखनीय इमारत थी.

27. एक ड़च अधिकारी दि लायट ने उल्लेख किया है कि शाहजहां से पूर्व ही आगरा किले से एक मील की दूरी पर एक भव्य मानसिंह महल नामक इमारत विद्यमान थी. शाहजहां के दरबारी रोजनामचे बादशाहनामा में इसी मानसिंह महल में मुमताज़ को दफ़नाने का जिक्र किया गया है.

28. तत्कालीन फ्रेंच पर्यटक बर्नियर ने लिखा है कि मानसिंह महल शाहजहां द्वारा हथिया लेने के बाद से उसके तहखाने में किसी भी गैर-मुस्लिम के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई. वह तहखाना प्रकाश से चकाचौंध रहा करता था. स्पष्ट है कि उसका इशारा चांदी के द्वारों, सोने के जंगलों, रत्न जड़ीत झिलमिल जालियों, शिव मूर्ति पर लटकने वाली मोती की लड़ियों इत्यादि की तरफ था. शाहजहां ने मुमताज़ की मृत्यु का आसान बहाना बनाकर छल से इस सारी संपत्ति को हड़प लिया था.

29. जाॅन अल्बर्ट मण्ड़ेलस्लो ने सन् 1638 (मुमताज़ की मृत्यु के सात वर्ष पश्चात्) के अपने प्रवास के दौरान आगरा के जीवन का विस्तार से वर्णन किया है. उसने यह वर्णन ‘Voyages and Travels to West Indies’ – जाॅन स्तार्कि और जाॅन बेस्सेट लंदन द्वारा प्रकाशित निजी पर्यटन संस्मरणों में किया है. परन्तु उस में ताज के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं है. जबकि सामान्यतः ऐसा माना जाता है और जोर देकर बताया भी जाता है कि सन् 1631- सन् 1653 के बीच ताज का निर्माण कार्य चला.

30. एक संस्कृत शिलालेख भी इसकी साक्ष्य देता है कि ताज मूलतः एक शिवालय ही था. इसे बटेश्वर शिलालेख के नाम से पुकारा गया है -जो कि गलत है. वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ संग्रहालय की ऊपरी मंजिल में सुरक्षित है. इस पर संकेत है कि “एक स्फटिक जैसे शुभ्र शिव मंदिर का निर्माण हुआ जो इतना मनोहर था कि उस में निवास करने पर भगवान शिव की वापस कैलाश लौटने की इच्छा ही नहीं रही.” सन् 1155 ईसवी का यह शिलालेख शाहजहां के आदेश पर ताज के बगीचे से हटा लिया गया था. इतिहासकारों और पुरातत्व विदों ने इसे‘बटेश्वर शिलालेख’ कहने की भारी भूल की है, जबकि प्रमाण के अनुसार यह शिलालेख बटेश्वर में पाया ही नहीं गया था. इस शिलालेख को असल में ‘तेजो महालय शिलालेख’ कहा जाना ही उचित है क्योंकि यह मूलतः ताज के बगीचे में स्थापित था – जिसे वहां से उखाड़ फेंकने का काम शाहजहां के आदेश पर हुआ.

 आर्किओलोजिकल सर्वे आफ़ इण्ड़िया के वार्षिक वृत्तांत (प्रकाशित 1874), खंड़ 4, पृष्ठ 216-217, पर शाहजहां द्वारा की गई ताज की तोड़-फोड़ का पता चलता है. इस में लिखा है कि, “भव्य चौकोनी काला बैलेस्टिक स्तंभ तथा उसके साथ का ही दूसरा स्तंभ, उसके शिखर तथा चबूतरे सहित …..जो कि अब आगरा की जमीन में खड़ा है
कभी ताज महल के उद्यान में स्थापित थे.”

लुप्त गज प्रतिमाएं

31. ताज निर्माण की बात तो दूर रही, बल्कि काले अक्षरों में कुरान की आयतें ऊपर से लिखवा कर शाहजहां ने ताज का सौंदर्य नष्ट करने का काम किया. साथ ही संस्कृत शिलालेखों, नाना प्रकार की मूर्तियों और दो भव्य गज प्रतिमाओं को बेतरह लूटने का काम भी शाहजहां ने किया. जहां आजकल पर्यटक प्रवेश टिकीट
खरीदते हैं वहां प्रवेश द्वार के स्वागत करने वाले तोरणों के नोक पर इन गज प्रतिमाओं की सूंड़े जुड़ी हुई थीं.
थाॅमस ट्विनिंग की पुस्तक “Travels in India A Hundred Years Ago” के पृष्ठ 191पर लिखा है कि नवम्बर 1794 में -” मैं ताज-ए-महल और उसके आस-पास की इमारतों के प्रांगण में पालकी से उतरा……….और कुछ छोटी-छोटी पैड़ियां चढ़ते हुए उस भव्य प्रवेश द्वार पर पहुंचा, जो “हाथी चौक” की इस दिशा के बीच में था, जैसा कि उस स्थान को कहा जाता था.”

कुरान की पैबन्द पट्टियां

32. ताज महल पर कुरान के चौदह अध्याय जड़े हुए हैं परन्तु इस ऊपरीलेखन में कहीं भी शाहजहां के ताज का निर्माण कर्ता होने का हल्का सा भी जिक्र नहीं है. यदि शाहजहां ताज का बनानेवाला होता, तो इस बात का उल्लेख वह कुरान की आयतें जड़वाने से पहले ही करता.
33. शाहजहां ने ताज महल का निर्माण करने की बजाए काले अक्षरों से आयतें लिखवाकर, उसे मलिन कर दिया. ताज के बाहर लगे शिलालेख में अंकित है कि अमानत ख़ान शिराज़ी द्वारा यह आयतें लिखी गई हैं. इन आयतों के सूक्ष्म निरीक्षण से पता चलता है कि वे रंग-बिरंगे पत्थर के टुकड़ों से पैबंद की तरह प्राचीन शिव मंदिर पर जड़ी गई हैं.

कार्बन 14 जांच

34. यमुना किनारे वाले ताज के द्वार से लकड़ी का एक टुकड़ा लेकर अमेरिकन प्रयोगशाला में कार्बन 14 जांच के लिए भेजा गया था. इस जांच में वह टुकड़ा शाहजहां से 300 वर्ष पूर्व का पाया गया. क्योंकि 11वीं शताब्दी से ही विभिन्न मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा ताज के द्वार तोड़े जाते रहे, इसलिए समय-समय पर उनका पुनर्निर्माण भी होता रहा. तथापि, ताज की इमारत इससे भी प्राचीन सन्1155 ईसवी की है – अर्थात् शाहजहां से भी 500 वर्ष पूर्व बनी हुई इमारत है – ताज.

स्थापत्य के साक्ष्य

35. पश्चिमी जगत् के प्रख्यात वास्तुविद् ई.बी. हवेल, मिसेस केनोयर और सर ड़ब्ल्यू. ड़ब्ल्यू. हण्टर के अनुसार ताज महल हिंदू मंदिर की शैली से बनाया गया है. हवेल कहते हैं कि ताज की रूप रेखा, जावा के प्राचीन हिंदू चण्ड़ी सेवा मंदिर की रूप रेखा से मिलती-जुलती है.

36. चार कोनों पर चार छत्र और बीच में गुम्बद यह हिंदू मंदिरों का सर्व व्यापी वैशिष्ट्य है.

37. ताज महल के चार कोनों पर खड़े चार संगमरमरी स्तंभ हिंदू शैली के प्रतीक हैं. वे रात्री में प्रकाश स्तंभ का काम देते थे और दिन में पहरेदारों द्वारा निगरानी के काम में लाए जाते थे. इस तरह के स्तंभ पूजास्थल के चारों ओर की सीमाएं निर्धारित करने के लिए लगाए जाते हैं. आज भी ऐसे स्तंभ हिंदू विवाह वेदी और सत्यनारायण भगवान की पूजा इत्यादि में लगाए जाते हैं.

38. ताज महल का आकार अष्टकोणी है जो कि हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. क्योंकि एकमात्र हिंदुओं में ही आठों दिशाओं का विशिष्ट नामकरण किया गया है और प्रत्येक दिशा का अपना एक दैवी पालक नियुक्त किया गया है. ऐसा माना गया है कि किसी वास्तु का शिखर आकाश का संकेत करता है और नींव पाताल को सूचित करती है. बहुधा हिंदू किले, नगर, राजप्रासाद और मंदिर इत्यादि के निर्माण का खाका अष्टकोणी होता है या उस में कुछ अष्टकोणी आकार या आकृति रखी जाती है. ताकि उस में शिखर और नींव मिलाकर सभी दस दिशाएं समाहित हो जाएं. हिंदू मान्यता है कि राजा या परमात्मा का स्वामित्व दसों दिशाओं में होता है.

39. ताज के गुम्बद की चोटी पर त्रिशूल खड़ा है. त्रिशूल के मध्य दण्ड़ की नोक पर दो झुके हुए आम के पत्तों और नारियल सहित एक कलश दर्शाया गया है. यह विशुद्ध हिंदू कल्पना है. हिमालय क्षेत्र में बने हिंदू और बौध्द मंदिरों के शिखर ऐसे ही होते हैं. ताज के लाल पत्थरों से बने पूर्वी आंगन में भी एक पूर्ण आकार का त्रिशूल वाला कलश जड़ा हुआ है. ताज की चार दिशाओं में बने भव्य संगमरमरी मेहराबदार प्रवेशद्वारों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठ भूमि में त्रिशूल दर्शाए गए हैं. लोग बड़े चाव से किन्तु गलत अवधारणा पर इतनी सारी शताब्दियों से यह मान बैठे हैं कि ताज के शिखर पर इस्लामिक अर्धचंद्र या दूज का चांद दिखाया गया है और उसके ऊपर जो तारा दिखाया गया है, वह जब भारतवर्ष में अंग्रेज शासक आए थे, तब उन्होंने आकाशीय बिजली गिरते समय बचाव के लिए विद्युत वाहक के तौर पर स्थापित किया था. परन्तु इस से विपरीत ताज का शिखर हिंदू धातुशास्त्र का एक चमत्कार है. वह ऐसी धातुओं के मिश्रण से निर्मित है जिस को कभी जंग नहीं लगता और साथ ही जो गिरती हुई बिजली का निरसन करने में भी सहायक होता है.पूर्व दिशा क्योंकि सूर्योदय की दिशा है इसलिए यह दिशा हिंदुओं के लिए विशिष्ट महत्व रखती है और इसलिए ताज के पूर्वी आंगन में जड़ी त्रिशूल वाले कलश की प्रतिकृति हिंदू दृष्टि से महत्वपूर्ण है. ताज के गुम्बद पर जड़े त्रिशूल वाले कलश पर ‘अल्लाह’ खुदा हुआ है जो कि ताज को हड़पे जाने के बाद की निशानी है. लेकिन ताज महल के पूर्वी आंगन में जड़ी त्रिशूल वाली पूर्णाकृति पर ‘अल्लाह’ नाम नहीं है.

40. संगमरमरी ताज की पूर्व और पश्चिम दिशाओं में दो भवन खड़े हैं- जो कि आकार, परिमाण और प्रारूप में बिलकुल एक जैसे हैं. फ़िर भी पूर्व भवन को सामुदायिक भवन बताया जाता है जब कि पश्चिमी भवन मस्जिद कहलाती है. मूलतः बिलकुल भिन्न प्रयोजन के लिए बनाए गए दो भवन, एक जैसे कैसे हो सकते हैं? इससे पता चलता है कि शाहजहां द्वारा ताज को हड़पने के बाद से ही पश्चिमी भवन को मस्जिद में तब्दील कर दिया गया था. आश्चर्य की बात है कि इस पश्चिमी भवन वाली मस्जिद में एक भी मिनार नहीं है. वास्तव में दोनों भवन – तेजो महालय मंदिर के स्वागत भवन थे.

41. उस तरफ़ कुछ ही गज़ की दूरी पर एक नक्कार खाना भी है- जो कि इस्लाम में एक अक्षम्य असंगति है. नक्कार खाने का इतना निकट होना इस बात का संकेत है कि पश्चिमी भवन असल में मस्जिद थी ही नहीं. इसके विपरीत, नक्कार खाने का होना – हिंदू मंदिरों और महलों का विशेष लक्षण है, क्योंकि हिंदुओं के दैनिक जीवन में प्रातः-सायं कार्यों का प्रारंभ आवश्यक रूप से सुमधुर संगीत से होता है. 42. कब्र के बाहरी कक्ष की संगमरमरी दिवारों पर ‘शंख’ और ‘ॐ’ की आकृतियां उकेरी गई हैं. कब्र के अंदरुनी कक्ष में मौजूद अष्टकोणी संगमरमरी जाली के शीर्ष किनारों पर भी गुलाबी कमल दर्शाए गए हैं. शंख, ॐ और कमल आदि -हिन्दू देवताओं और मंदिरों से जुड़े पवित्र चिन्ह हैं.

43. आज जहां मुमताज़ की कब्र है, वहां कभी हिंदुओं के आराध्य देव शिव जी का प्रतिक चिन्ह ‘तेज लिंग’ स्थापित था. ‘तेज लिंग’ के चारों ओर प्रदक्षिणा करने के पांच मार्ग थे. संगमरमरी जाली के चारों ओर से, फ़िर कब्र वाले कक्ष के चारों ओर बने विस्तीर्ण संगमरमरी गलियारों से और संगमरमरी चबूतरे पर बाहर से भी परिक्रमा की जा सकती थी. परिक्रमा करते समय ‘देवता’ के दर्शन होते रहें, इसलिए हिंदुओं में झरोखे रखने की परंपरा रही है, ताज में मौजूद परिक्रमा मार्गों में भी ऐसे झरोखे बने हुए हैं.

44. ताज के गर्भ-गृह में चांदी के द्वार, सोने के जंगले और रत्न तथा मोती जड़ित संगमरमरी जालीयां लगी हुई थीं, जैसी की हिंदू मंदिरों में होती हैं. यह इस सारी धन-संपदा का प्रलोभन ही था – जिसके लिए शाहजहां ने अपने अधिनस्थ उस समय के असहाय जयपुर नरेश जयसिंह से ताज को छीन लिया था.

45. पीटर मंड़ी नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि सन् 1632 में (मुमताज़ की मृत्यु के एक वर्ष के भीतर ही) – उसने मुमताज़ की कब्र के चारों ओर रत्नजड़ित सुवर्ण जंगले लगे हुए देखे थे. यदि ताज के निर्माण में बाईस वर्ष लगे होते, तो पीटर मंड़ी द्वारा मुमताज़ की मृत्यु के एक वर्ष के भीतर ही यह बहुमूल्य रत्नजड़ित सुवर्ण जंगले नहीं देखे गए होते. क्योंकि ऐसे बहुमूल्य सामान इमारत का निर्माण पूरा होने पर ही लगाए जाते हैं. इससे पता चलता है कि मुमताज़ की कब्र सुवर्ण जंगलों के बीच मौजूद शिवलिंग को उखाड़ कर बनाई गई थी. बाद में यह सुवर्ण जंगले, चांदी के द्वार, मोती की जालीयां और रत्न जड़ित सामान इत्यादि सभी शाहजहां के खजाने में जमा कर दिए गए.
अतः मुगलों द्वारा ताज का हड़पना एक बहुत ही अत्याचारी लूट की घटना है, जिसने शाहजहां और जयसिंह के बीच वैमनस्य पनपाने का काम किया.

46. मुमताज़ की कब्र के चारों ओर के संगमरमरी फर्श पर अब भी छोटी-छोटी चकतियों से बने आकार देखे जा सकते हैं – जो उस स्थान को चिन्हित करते हैं, जहां कभी सुर्वण जंगलों के आधार फर्श में गड़े हुए थे. इससे यह भी पता चलता है कि यह सुर्वण जंगले आयताकार लगे हुए थे.

47. मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटक रही है, जिस अब एक दिपक लटका दिया गया है. शाहजहां द्वारा हड़पने से पूर्व, इस जंजीर के सहारे एक ‘जलहरी’ लटका करती थी, जिससे शिव लिंग पर लगातार जल सिंचन हुआ करता था.

48. ताज की इस पूर्व हिंदू परंपरा से ही यह झूठी बात गढ़ ली गई है कि सर्दियों में पूर्णिमा की रात को शाहजहां के आंसू इस कब्र पर टपका करते हैं.

49. मस्जिद कहलानेवाली इमारत और नक्कारखाने (संगीत घर) के बीच में बहुमंजिला अष्टकोणी कुआँ है, जिसमें जलस्तर तक उतरने के लिए घुमावदार सीढियां बनी हुई हैं। यह हिन्दू राजमंदिरों में ख़जाना रखने के लिए बनाई गई पारंपरिक बावड़ी है. खजाने की पेटियां निचली मंजिल में रखी जाती थीं तथा ऊपरी मंजिल में खजाने के कर्मचारियों के दफ्तर रहा करते थे. कुँए की घुमावदार सीढियों के कारण किसी घुसपैठिए के लिए यह आसान नहीं था कि वह किसी की नजरों में आए बिना तिजोरीवाली निचली मंजिल तक उतर सके या वहां से भाग सके।

यदि कभी उस इलाके पर शत्रु का घेरा पड जाए और शत्रु की शरण जाना पड़े तो तिजोरियां कुँए के पानी में ढ़केल दी जाती थीं ताकि शत्रु से छिपी रहें और वह परिसर वापस जीत लिए जाने पर तिजोरियां सुरक्षित वापस निकाली जा सकें। ऐसी बहुत ही विचारपूर्वक बनाई गई बहुमंजिला बावड़ी की जरुरत एक मकबरे के लिए समझ में नहीं आती, महज़ एक कब्र के लिए ऐसी भव्य बावड़ी बनाने का कोई अर्थ ही नहीं है।

दफ़न की अज्ञात तारीख़

50. यदि शाहजहाँ ताज महल का वास्तविक निर्माता होता तो ताज महल में मुमताज को शाही ठाठ के साथ दफ़नाने की तिथि जरुर दर्ज़ होती। लेकिन, ऐसी किसी तिथि का इतिहास में उल्लेख नहीं मिलता। इतने महत्वपूर्ण विवरण की इतिहास में अनुपस्थिति इस कहानी का झूठापन दर्शाती है।

51. यहाँ तक कि मुमताज की मृत्यु का वर्ष भी अज्ञात है, इसके भी कई अनुमान लगाए गए हैं – सन् १६२९, १६३०, १६३१ या १६३२। यदि वह सचमुच इस शानदार दफ़न की हकदार थी – जैसा कि दावा किया जाता है, तो उसकी मृत्यु की तारीख में इतना घोटाला नहीं होता। पांच हज़ार स्त्रियोंवाले हरम में किस-किस की मृत्यु का हिसाब रखेंगे? स्पष्ट है कि उसकी मृत्यु इतनी महत्वपूर्ण घटना भी नहीं थी कि कोई उसकी तारीख याद रखें, तो उसकी याद में ताज का निर्माण तो दूर की बात है!

52. शाहजहाँ और मुमताज के अनन्य प्रेम की कहानियां कपटजाल मात्र हैं, उनका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है और न ही उनकी इस कल्पित प्रेम कथा पर कोई साहित्य उपलब्ध है। इन कहानियों को बाद में गढ़ा गया ताकि शाहजहाँ को ताज के निर्माता के रूप में पेश किया जा सके।

लागत

53. ताज को बनाने में आई लागत का उल्लेख शाहजहाँ के किसी दरबारी दस्तावेज में नहीं मिलता क्योंकि शाहजहाँ ने ताज कभी बनवाया ही नहीं। इसीलिए तो कई दिग्भ्रमित लेखकों ने ताज के निर्माण की लागत का एक काल्पनिक अनुमान (४ लाख से ९१.७ लाख रुपए) लगाने की कोशिश की है।

निर्माण की अवधि

54. इसी तरह, निर्माण की अवधि भी स्पष्ट नहीं है। ताज महल का निर्माणकाल दस से बाईस वर्षों तक होने का अंदाजा लगाया जाता है। यदि शाहजहाँ ने ही ताज महल बनवाया होता तो इस तरह अंदाजे लगाने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि दरबारी दस्तावेजों में उसकी प्रविष्टि अवश्य ही की गई होती।

वास्तुकार

55. ताज महल के शिल्पकार के रूप में भी विभिन्न नामों का उल्लेख मिलता है। जैसे ईसा एफंदी – एक तुर्क, या अहमद मेहंदिस या आस्तिन् द. बोर्दो – एक फ़्रांसिसी या जेरेनियो विरोनियो – एक इतालवी या फिर कुछ का कहना है कि शाहजहाँ स्वयं ही ताज का वास्तुकार था।

दस्तावेज कहाँ हैं?

56. प्रचलित मान्यता के अनुसार शाहजहाँ की हुकुमत में बीस हज़ार कारीगरों ने लगभग बाईस वर्षों तक सतत ताज का निर्माण किया। यदि यही सच्चाई है तो इससे सम्बन्धित दरबारी दस्तावेज, प्रारंभिक रेखा-चित्र, नक़्शे (Design and drawings), कारीगरों की हाजिरी का ब्यौरा, मजदूरी के हिसाब, दैनिक खर्च का ब्यौरा, निर्माण की सामग्री के नोट, बिल और रसीदें, निर्माण कार्य शुरू करने के आदेश इत्यादि कागजात शाही अभिलेखागार में होने चाहिए थे। परन्तु वहां इस प्रकार के कागज का एक टुकड़ा भी उपलब्ध नहीं है।

57. इसलिए ताज महल पर शाहजहाँ की इस काल्पनिक मिल्कियत को बताने के जिम्मेदार यह लोग हैं – भयंकर भूल करने वाले – गप्पेबाज इतिहासकार, अनदेखी करनेवाले पुरातत्वविद्, कल्पित कथा लेखक, मूर्ख, सठियाए हुए कवी, लापरवाह पर्यटन अधिकारी, भटके हुए स्थलप्रदर्शक (Guides)।

58. शाहजहाँ काल में ताज के उद्यानों में केतकी, जाई, जूही, चम्पा, मौलश्री, हरसिंगार और बेल इत्यादि वृक्षवलियों के होने का उल्लेख मिलता है। यह सभी वह वृक्षवलियां है जिनके फूल-पत्ते इत्यादि हिन्दू देवताओं की पूजा विधि में इस्तेमाल होते हैं। बेल पत्र का प्रयोग विशेषत: भगवान शिव की पूजा में किया में जाता है। जबकि किसी कब्रिस्तान में केवल छायादार वृक्ष ही लगाए जाते हैं, फल-फूलों के पेड़ नहीं। क्योंकि कब्रिस्तान में उगे पेड़ों के फल या फूल मनुष्यों के इस्तेमाल योग्य नहीं समझे जाते। कब्रिस्तान के फल–फूलों को घृणित समझ मानव अन्तः करण स्वीकार नहीं करता।

59. बहुधा हिन्दू मंदिर नदी तट या सागर किनारे बनाए जाते हैं। ताज भी यमुना किनारे बना एक ऐसा ही शिव मंदिर है। यमुना तट शिव मंदिर के लिए एक आदर्श स्थान है।

60. पैगम्बर मुहम्मद के आदेशानुसार तो मुस्लिमों के दफ़न स्थान बिलकुल छिपे हुए होने चाहिएं, उस पर कोई निशान का पत्थर या कब्र का टीला इत्यादि बना हुआ न हो। परन्तु, पैगम्बर मुहम्मद के इस आदेश का स्पष्ट उल्लंघन करते हुए ताज में मुमताज की एक छोड़, दो कब्रें बनी हुई हैं। एक नीचे तहखाने में और दूसरी उसी के ऊपर पहली मंजिल के कक्ष में है। असल में यह दोनों कब्रें शाहजहाँ को ताज में स्थापित दो स्तरीय शिवलिंगों को गाड़ने के लिए बनवानी पड़ी। हिन्दुओं में एक के ऊपर एक मंजिल में शिवलिंग बनाने का रिवाज़ रहा है। जैसे कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में और अहिल्याबाई होलकर द्वारा बनवाये गए सोमनाथ मंदिर में भी देखा जा सकता है।

61. ताज के चारों मेहराबदार प्रवेशद्वार एक समान हैं। यह हिन्दू स्थापत्य कला का एक विशिष्ट प्रकार है, जिसे चतुर्मुखी कहते हैं।

62. ताज का गुम्बद आवाज़ को प्रतिध्वनित करने वाला गुम्बद है। एक कब्र में जहाँ ख़ामोशी और सन्नाटा पसरा होना चाहिए वहां ऐसे गुम्बद का होना बेतुकापन है। इसके विपरीत हिन्दू मंदिरों में ध्वनी को गुंजायमान करनेवाले ऐसे गुम्बदों की आवश्यकता होती है क्योंकि हिन्दू देवताओं की पूजा-आरती इत्यादि में घन्टे, शंख, मृदंग और बांसुरी इत्यादि प्रयुक्त होते हैं। हिन्दू मन्दिरों में आवाज़ को प्रतिध्वनित और वृद्धि कर भावविभोर करनेवाला नाद निर्माण करने के लिए ऐसे गुम्बद बनाए जाते हैं।

63. ताज के गुम्बद का शिखर कमल की आकृति वाला है। जबकि मूलतः इस्लामिक गुम्बद गंजे होते हैं, मिसाल के तौर पर जैसे हम चाणक्यपुरी दिल्ली में स्थित पाकिस्तान दूतावास की इमारत का या पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की इमारतों के गुम्बद देख सकते हैं।

64. ताज के प्रवेश द्वार का मुख दक्षिण की ओर है। जबकि ताज यदि इस्लामिक इमारत होती तो उसका प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा के सम्मुख होता।

कब्र मजार होती है, इमारत नहीं

65. एक प्रचलित मिथ्या बोध के अनुसार इमारत को ही मजार समझ लिया गया है। आक्रान्ता इस्लाम ने विश्व में जहां भी अपने पांव पसारे वहां की इमारतों पर कब्ज़ा कर उस में कब्रें बनाने का काम किया। इसलिए अब लोगों को यह समझना होगा कि हथियाई गई इमारतों में कब्रें बाद में बनाई गई हैं न कि लाश दफ़नाने के बाद उस के ऊपर इमारत बनाई गई है, जैसे कब्र पर मिट्टी का टीला बनाते हैं। अतः वे इमारत को कब्र का टीला या मजार मानने का भ्रम न पालें। ताज के बारे में भी यही सच है।एक बार को मानने के लिए हम यह मान भी लें कि मुमताज़ ताज में दफनाई गई है, परन्तु इसका यह मतलब बिलकुल नहीं है कि सारा ताज ही उसकी कब्र का टीला या उसकी मजार या मकबरा है।

66. ताज एक सात मंजिला इमारत है। औरंगज़ेब ने भी शाहजहां को लिखे अपने एक पत्र में इसका जिक्र किया है। संगमरमरी ताज की चार मंजिलें हैं। जिसमें शामिल है – शीर्ष में चबूतरे पर बना हुआ एक भव्य प्रमुख कक्ष और तहखाने में स्थित एक कक्ष। इन दोनों के मध्य दो मंजिलें और हैं जिन में बारह से पंद्रह विशाल कमरे हैं। इन चार संगमरमरी मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बनी हुई दो और मंजिलें हैं, जो कि पिछवाड़े में नदी किनारे तक चली गई हैं। उन्हें नदी तट से देखा जा सकता है। सातवीं मंजिल नदी स्तर से नीचे बनी हुई है, क्योंकि सभी प्राचीन हिन्दू इमारतों में अनिवार्यतः एक भूमिगत मंजिल हुआ करती थी।

बाईस कमरे

67. संगमरमरी चबूतरे के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाली इमारत के अन्दर नदी प्रवाह की सीध में बाईस कमरों की एक कतार है। जिनके झरोखे शाहजहां ने बंद करवा दिए थे। शाहजहां द्वारा उजाड़े गए इन कमरों पर भारतीय पुरातत्व विभाग ने ताले जड़ रखे हैं। जन-साधारण को इससे अनजान रखा जाता है। इन कमरों की छतों और दिवारों पर अभी भी हिन्दू रंग लगा हुआ है, इन कमरों की बगल में 33 फीट लम्बा एक गलियारा है। इस गलियारे के दोनों सिरों पर दरवाजों की चौखट लगी हुई है,जिन्हें एक साजिश के तहत ईंट और चूने से बंद करवा दिया गया है।

68. पता चलता है कि मूल रूप से शाहजहां द्वारा बंद करवाए गए ये प्रवेशद्वार उसके बाद कई बार खोले गए और पुनः बंद किए गए हैं। सन् 1934 में दिल्ली निवासी एक पर्यटक ने प्रवेशद्वार के ऊपरी भाग की एक दरार से अन्दर झांककर देखा था। अन्दर एक विशाल कक्ष और उसका नजारा देखकर वे चक्कर में पड गए और सहम-से गए थे। उस कक्ष में शिव की शीश कटी मूर्ति के चारों ओर कई मूर्तियों का ढेर पड़ा हुआ था। हो सकता है कि शायद वहां कई संस्कृत शिलालेख भी हों।

ताज की सभी सातों मंजिलों के कक्ष खुलवाए जाने चाहिएं और वहां साफ़-सफाई करवाकर बारीकी से प्रत्येक चीज़ का निरीक्षण किया जाना जरूरी है। ताकि उनमें छुपी देव मूर्तियां, हिन्दू चित्र, संस्कृत शिलालेख, ग्रन्थ, सिक्के और बरतन इत्यादि के प्रमाणों का ठीक-ठीक पता लग सके।

69. ताज की बंद मंजिलों में तो हिन्दू चित्र, देव मूर्तियां इत्यादि छुपे हुए हैं ही परन्तु यह भी पता चला है कि ताज की विशाल दिवारों में भी देव मूर्तियां कैद हैं। सन् 1959 से सन् 1962 तक जब श्री एस.आर.राव ताज के पुरातत्व अधिकारी थे, तब उन्हें ताज के बीचवाले अष्टकोणी कक्ष की दीवार में लम्बी-चौड़ी दरार दिखाई पड़ी। जब उस दीवार का एक हिस्सा, दरार की जांच-पड़ताल करने के लिए तोडा गया तो अचानक अन्दर से संगमरमरी मूर्तियां बाहर झांक पड़ीं। परन्तु इस घटना को वहीँ दबा दिया गया और वे देव मूर्तियां वापस वहीँ बंद कर दी गईं जहां शाहजहां ने उन्हें दीवार में चिनवाया था। इस बात की पुष्टि कई जगह से हो चुकी है। जब मैंने ताज की पूर्वकालिक घटनाओं का अनुसन्धान शुरू किया तब यह भूला बिसरा राज मेरे सामने आया था। ताज के एक राजमन्दिर होने का इस से बड़ा प्रमाण और क्या होगा? ताज के बंद कक्ष और दिवारें अब भी उन देव मूर्तियों को अपने अन्दर समेटे हुए हैं, जो शाहजहां द्वारा हडपे जाने से पूर्व ताज में शोभायमान हुआ करती थीं।

शाहजहां से पूर्व ताज का उल्लेख

70. एक केन्द्रीय महल के तौर पर ताज के इतिहास ने कई उतार-चढ़ाव देखें हैं। मुहम्मद गज़नी और उस के बाद आने वाले हर मुस्लिम आक्रान्ता की क्रूर नज़र ताज पर पड़ी, जिन्होंने ताज को लूटा-खसोटा और अपवित्र किया। परन्तु बीच-बीच में ताज वापस हिन्दू हाथों में भी जाता रहा और हर मुस्लिम आक्रमण के बाद हिन्दुओं ने एक शिव मंदिर के रूप में ताज की पवित्रता को वापस स्थापित किया। लेकिन शाहजहां वो आखिरी मुस्लिम लूटेरा था जिसने तेजोमहालय का अपहरण कर सदा के लिए उसकी पवित्रता भंग कर दी।

71. विन्सेंट स्मिथ अपनी पुस्तक ‘अकबर द ग्रेट मुग़ल’ में लिखता है कि ‘बाबर की आतंकी जेहादी जिन्दगी का अन्त आगरा में उद्यान महल में 1630 को हुआ’।यह उद्यान महल कोई और नहीं बल्कि ताजमहल ही है।

72. बाबर की बेटी गुलबदन बेग़म ने ‘हुमायूँ नामा’ नामक इतिहास लिखा है। जिसमें वह ताज का उल्लेख एक रहस्यमयी महल के रूप में करती है।

73. बाबर स्वयं अपने संस्मरणों में ताज के बारे में लिखता है कि इब्राहीम लोदी द्वारा कब्ज़ा किया गया एक ऐसा महल जिसमें एक केन्द्रीय अष्टकोणी कक्ष और चारों कोनों में चार स्तंभ हैं। यह सभी ऐतिहासिक सन्दर्भ ताज को शाहजहां से भी सौ वर्ष पूर्व का घोषित करते हैं।

74. ताज का अहाता कई सौ ग़ज तक चारों तरफ़ फैला हुआ है। नदी के आर-पार तक उसके टूटे-फूटे अवशेष देखे जा सकते हैं। वहां स्नान और नौका बाँधने के घाट इत्यादि बने हुए थे। विक्टोरिया बाग़ के बाहरी हिस्से में उसकी लताओं से ढकीं हुई प्राचीन लम्बी दीवार बलखाती जा रही है, जिसके अंत में लाल पत्थर से अष्टकोणा छत्र बना हुआ है। शाहजहां द्वारामहज एक कब्र के लिए इतने विस्तृत भूभाग वाली भव्य इमारत का निर्माण करने की बात गले नहीं उतरती।

75. ताज खासतौर से यदि मुमताज को दफ़नाने के लिए ही बनाया गया था, तो उसमें अन्य कब्रें नहीं होनी चाहिए थीं। परन्तु ताज महल परिसर में कई कब्रें हैं। विशेषतः पूर्वी और दक्षिणी हिस्से वाली गुम्बददार इमारतों में।

76. दक्षिणी दिशा में ताजगंज दरवाजे के दूसरी ओर की दो गुम्बददार इमारतों में सरहंदी बेगम, फतेहपुरी बेगम और एक नौकरानी सातुन्निसा खानम की कब्रें हैं। बेगमों और बांदी को इस तरह बराबरी का दफ़न स्थान देना तभी समझा जा सकता है जबकि बेगम का दर्जा कम कर दिया गया हो और नौकरानी का बढ़ा दिया गया हो। लेकिन क्योंकि शाहजहां ने ताज का निर्माण नहीं किया था बल्कि जबरन हड़पा था इसलिए अपने बाप-दादाओं अनुसरण करते हुए एक हिन्दू राजमंदिर को लूटकर एक सामान्य मुस्लिम कब्रिस्तान में बदलना ही उसका मकसद था।जिसके लिए जहाँ ख़ाली जगह मिली उसे वहीँ दफना दिया गया। अतः बेगमें जिस खाली स्थान में दफनाई गईं, वैसे ही समान स्थान पर बांदी को भी दफना दिया।

77. मुमताज से शादी करने से पहले और बाद में भी शाहजहां ने कई निकाह किए थे। अतः मुमताज की मृत्यु के बाद उसके लिए इतना अद्भुत मकबरा बनाए जाने का कारण समझ में नहीं आता।

78. मुमताज जन्म से सामान्य लड़की थी, किसी सुल्तान या बादशाह की बेटी नहीं। इसलिए वह इस तरह के भव्य दफ़न की हकदार नहीं थी।

79. मुमताज की मुत्यु बुरहानपुर में हुई थी, जो कि आगरा से 600 मील की दूरी पर स्थित है। जहाँ उसकी कब्र ज्यों की त्यों बरकरार है। इसलिए उसके नाम से जो दो कब्रें ताज में उभारी गई हैं – दोनों नकली हैं, जिनमें शिवलिंग ही दबे हुए हैं।

80. शाहजहां ने मुमताज के जाली दफ़न का दिखावा इसलिए किया ताकि वह अपने खूंखार सिपाहियों को ताज के अन्दर भेजकर वहां की सारी संपत्ति लूटवाकर अपना खज़ाना भर सके। शाहजहां का दरबारी अभिलेख बादशाहनामा भी दबे शब्दों से इसकी पुष्टि करता है। जिसमें लिखा है कि ‘मुमताज़ का शव कब्र से खोदकर बुरहानपुर से आगरा लाया गया और उसे अगले साल दफनाया गया।’ बादशाहनामा जैसे दरबारी दस्तावेज में दफ़न की सही तारीख के स्थान पर इस तरह अस्पष्ट तिथि लिखना ही इस बात का सबूत है कि किसी तथ्य को छुपाने की कोशिश की जा रही थी।

81. एक सोचने वाली बात यह भी है कि शाहजहां जिसने मुमताज़ के जीते जी उसके लिए एक महल भी नहीं बनवाया, वह मरने के बाद उसकी निर्जीव देह के लिए इतना आलिशान मकबरा बनवाएगा?

82. एक तथ्य यह भी है कि मुमताज़ की मृत्यु शाहजहां के बादशाह बनने के दो-तीन वर्षों के भीतर ही हो गई थी। तो क्या इतने कम समय में ही शाहजहां ने इतनी अपार संपत्ति बना ली थी कि वह उसे एक भव्य मकबरे के निर्माण में लुटा सके?

83. शाहजहां और मुमताज़ के अनन्य प्रेम की कहानी इतिहास में कहीं नहींमिलती। परन्तु हां अन्य स्त्रियों के साथ शाहजहां की अवैध कामलिलाओं का वर्णन अवश्य उस काल के इतिहास में छाया हुआ है। जिनमें बांदियां, रखैलें और यहाँ तक कि उस की स्वयं की बेटी जहांआरा का नाम भी शामिल है। जिसने अपनी बेटी तक को नहीं छोड़ा उस अनाचारी, लम्पट शाहजहां का मुमताज़ के शव पर इस तरह पैसा बहाना क्या अब भी समझ में आता है?

84. शाहजहां एक कंजूस और लोभी बादशाह था। अपने सारे विरोधियों को क़त्ल करके उसने गद्दी हासिल की थी। इसलिए उसे कोमल हृदयी, मुहब्बती और खुले दिल से खर्च करनेवाला बताना सरासर झूठ और छल है।

85. कहा जाता है कि मुमताज़ की मृत्यु से ग़मगीन शाहजहां ने एकाएक ताज के निर्माण का फैसला लिया। यह एक मनोवैज्ञानिक असंगति है। क्योंकि इस तरह का मानसिक क्लेश मनुष्य को अवशता और कृति शून्यता की ओर ले जाता है।

86. ऐसा कहते हैं कि शाहजहां मुमताज़ के लिए इस कदर दिवाना था कि उसने मृत मुमताज़ की याद में ताज का निर्माण किया। परन्तु इस तरह का कामुक, दैहिक या लैंगिक प्रेम भी मनुष्य को निर्बल, उदास, अयोग्य और कर्तव्यविहीन ही बनाता है। एक व्यभिचारी व्यक्ति किसी भी रचनात्मक कार्य के लायक नहीं रहता। जब व्यक्ति वैषयिक प्रेम से अवश हो जाता है तो या तो वह किसी की हत्या कर देता है या फ़िर स्वयं आत्महत्या कर लेता है। परन्तु, ऐसा व्यक्ति ताज महल जैसी इमारत नहीं बना सकता। ताज जैसी इमारत तो वहीँ बन सकती है जहां ईश्वर, जननी और मातृभूमि के प्रति असीम प्रेम, निष्ठा, बल तथा गौरव जैसी उच्च भावनाएं विद्यमान हों।

87. सन् 1973 में ताज के सामनेवाले बगीचे में खुदाई की गई। वहां वर्तमान फव्वारों के 6 फीट नीचे दूसरे प्राचीन फव्वारे निकले। इससे दो बातें पता चलती हैं – 1. शाहजहां द्वारा लगाये गए वर्तमान फव्वारों से पूर्व वहां फव्वारे मौजूद थे, जो कि खुदाई में जमीन के अन्दर से मिले। 2. अन्दर से निकले फव्वारों का रुख़ भी ताज की ओर ही था अतः यह इस बात का साफ़ संकेत है कि ताज भी शाहजहां से पूर्व ही अस्तित्व में था। साफ़ है कि बगीचा और उसके फव्वारे सदियों तक मुगलकाल में रख-रखाव की कमी के कारण और हर साल आने वाली बरसाती बाढ़ में डूब कर बरबाद हो गए थे।

88. शाहजहां ने ताज की ऊपरी मंजिल के शानदार कमरों से संगमरमर उखड़वा कर ताज परिसर में जगह–जगह कब्रें बनाने के काम में लिया। इसलिए निचली मंजिल के कमरे जिन में संगमरमर पूरा लगा हुआ है – उन के मुकाबले ऊपरी मंजिल के कमरे जिनकी दिवारों के निचले हिस्से और फ़र्श से संगमरमर उखाड़ा जा चुका है – भग्न और लूटे हुए नजर आते हैं। क्योंकि ऊपरी मंजिल में किसी प्रेषक के प्रवेश पर पाबन्दी है इसलिए शाहजहां की इस डकैती का रहस्य लोगों से अभी तक छिपा रहा है। लेकिन अब मुगलों का जमाना बीते दो सौ वर्ष से ऊपर हो चुके हैं इसलिए अब कोई कारण नहीं कि शाहजहां की इस ऊपरी मंजिल की संगमरमरी लूट को जनता से छिपाया जाए।

89. एक फ्रेंच प्रवासी बर्नियर लिखता है कि ताज के गुप्त निचले कक्षों में किसी भी गैर-मुस्लिम को जाने की मनाही थी क्योंकि वहां कुछ चमकता–दमकता सामान था। अगर वह सामान शाहजहां ने वहां रखवाया होता तो वह बड़ी शान से जनता को दिखाया जाता। किन्तु वह तो हडपी हुई हिन्दू संपत्ति थी जिससे शाहजहां अपना ख़जाना भरना चाहता था इसलिए इसे लोगों से छिपाया गया।

90. ताज की ओर जाने वाले रास्ते पर जगह-जगह मिट्टी के टीले बने हुए हैं। जब ताज का निर्माण हो रहा था, तब उसकी नींव की खुदाई से निकली मिट्टी से यह टीले बनाए गए थे। ताज परिसर के लिए यह टीले एक तरह से सुरक्षा बाड़ का काम करते हैं। इमारत के बाहर इस तरह के टीले बनाना सुरक्षा का पुरातन हिन्दू तंत्र रहा है। निकट ही भरतपुर में भी ऐसी व्यवस्था देखी जा सकती है।

91. पीटर मंडी ने लिखा है कि शाहजहां ने हजारों मजदूर लगवाकर कुछ टीलों को समतल करवा दिया है। शाहजहां से बहुत पहले ही ताज के अस्तित्व का यह एक पुख्ता सबूत है।

92. ताज के पीछे यमुना नदी किनारे शमशान घाट, स्नान के घाट, कई महल और शिव मंदिर बने हुए हैं।यदि ताजमहल शाहजहां ने बनवाया होता इन हिन्दू चिन्हों का वहां नामो-निशान भी न होता।

93. ताज में सुरक्षा की दृष्टी से दरवाजों पर नोकदार मोटी कीलें लगी हुई हैं तथा ताज के पूर्व में खाई बनी हुई है और पिछवाड़े यमुना नदी भी जल से भरी खाई का ही काम देती है। इस प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था से पता चलता है कि ताज कोई मामूली मकबरा नहीं है बल्कि एक विपुल संपत्तिशाली प्रसिध्द राजमन्दिर था।

94. यह कथन कि शाहजहां यमुना पार भी काले संगमरमर से एक और ताज बनवाना चाहता था – एक और प्रायोजित झूठ है। यमुना के पार मौजूद खंडरों के छितरे हुए अवशेष दरअसल किसी दूसरे ताज महल की नींव का आधारभूत ढांचा नहीं हैं बल्कि उन हिन्दू स्थापत्यों के अवशेष हैं, जो मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा धवस्त कर दिए गए थे। शाहजहां जिसने कि सफ़ेद ताज ही नहीं बनवाया वह काला ताज का बनवाएगा! वह तो इतना अत्याचारी और कंजूस था कि उसने ताज को मुस्लिम मकबरे का रूप देने के लिए जो तोड़-फोड़ कर ऊपरी हेर-फ़ेर का काम किया था वह भी कारीगरों और मजदूरों से बेगारी करवाई गई थी।

95. शाहजहां द्वारा जो संगमरमर कुरान की आयतें जड़वाने के लिए लगाया गया था – वह दूधिया छटा वाला है जबकि बाकी दिवारों के संगमरमर में स्वर्णिम आभा झलकती है। यह असंगति दर्शाती है कि कुरान की आयतों वाला संगमरमर बाद में ऊपर से जड़ा गया है।

96. कई इतिहासकारों ने अपनी कल्पना शक्ति का इस्तेमाल कर ताज के रचनाकारों के जाली नाम गढ़ने का काम कर लोगों की आंखों में बखूबी धूल झोंकी है। कुछ ने तो अपने दिमागी घोड़े स्वयं शाहजहां को ही ताज का शिल्पकार घोषित करने के लिए दौडाएं हैं। उनके अनुसार शाहजहां कलात्मक बुद्धि रखनेवाला उच्च कोटि का वास्तुशिल्पी था। जिसने मुमताज़ के वियोग में इतना दुखी होने के बावजूद आसानी से ताज की कल्पना कर उसे साकार रूप प्रदान कर दिया था। ऐसा कहने वाले इतिहास के प्रति अपनी घोर अज्ञानता प्रदर्शित करते हैं क्योंकि शाहजहां एक अत्यंत क्रूर तानाशाह तथा शराब और नशे की लत से ग्रस्त भयंकर व्यभिचारी बादशाह था।

97. शाहजहां को ताज का निर्माणकर्ता बताने के लिए बढ़ा-चढ़ा कर किये गए सभी दावे गोल-मोल हैं। कुछ का कहना है कि शाहजहां ने दुनिया भर से इमारत की रूप-रेखा के नक़्शे मंगवाए और उन में से एक पसंद किया। जबकि कुछ अन्य के अनुसार शाहजहां ने अपने निकटस्थ व्यक्ति से ही मकबरे की रूप-रेखा बनवाई थी और उसे ही मान्य किया गया। यदि इन में से कोई एक बात भी सच है तो इससे सम्बन्धित हजारों नक़्शे शाहजहां के दरबारी दस्तावेजों में होने चाहिए थे परन्तु वहां कोई एक रेखा-चित्र भी नहीं मिलता। यह एक और ठोस प्रमाण है कि शाहजहां ताज का निर्माता नहीं है।

98. ताज के चारों ओर इमारतों के विशाल खंडहर हैं जो इस बात का संकेत हैं कि वहां कई बार युद्ध हुआ था।

99. ताज के दक्षिण-पूर्वी छोर पर एक प्राचीन राजकीय पशुशाला है। तेजोमहालय राजमंदिर की गौएं यहाँ पाली जाती थीं। एक इस्लामी मकबरे में भला गौशाला का क्या काम? गौशाला और मकबरे का कोई मेल नहीं बैठता।

100. ताज के पश्चिमी किनारे पर लाल पत्थर से बने कई उपभवन हैं जो कि एक मकबरे के हिसाब से अनावश्यक हैं।

101. सम्पूर्ण ताज परिसर में 400 से 500 कमरे बने हुए हैं। एक मकबरे में इतने बड़े पैमाने पर आवासीय व्यवस्था का होना समझ से परे है।

102. निकटस्थ ताजगंज नगरी की विशाल रक्षात्मक दीवार ताज परिसर को भी अपने में समाहित करती है। यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि तेजोमहालय राजमंदिर भी इस ताजगंज नगरी का ही एक भाग हुआ करता था। इस नगरी से एक रास्ता निकलकर सीधे ताज की तरफ़ जाता है। ताजगंज द्वार – लाल पत्थर से बना अष्टकोणी उद्यान द्वार – ताज का भव्य कमानीदार प्रवेशद्वार – यह तीनों दरवाजे एक के बाद एक बिलकुल सीधमें खड़े हुए हैं। ताजगंज द्वार ताज राजमंदिर परिसर के मध्यवर्ती होने से महत्वपूर्ण है। पश्चिमी द्वार जहां से पर्यटक ताज में प्रवेश करते हैं – मुख्य प्रवेश द्वार नहीं है। परन्तु बहुत से पर्यटक इसी दरवाजे से प्रवेश करते हैं क्योंकि बस अड्डा और रेलवे स्टेशन इस तरफ़ पड़ते हैं।

103. ताजमहल में आमोदजनक गुम्बददार इमारतें और आनंद वाटिकाएं बनी हुई हैं। यदि ताज सच में एक कब्र ही होता तो इस तरह सार्वजनिक मनोरंजन की वाटिकाएं नहीं बनी होतीं।

104. आगरा में लाल किले के गलियारे में ताज की छवि दर्शानेवाला एक छोटा शीशा लगा हुआ है। कहते हैं कि शाहजहां ने अपने जीवन के आख़िरी आठ साल इसी गलियारे के शीशे में ताज की छवि निहारते हुए और मुमताज़ की याद में ठंडी आहें भरते हुए बिताए। यह कहानी कई झूठी बातों का मेल है। पहली बात, बूढ़े शाहजहां को उसके बेटे औरंगज़ेब ने किले के तहखाने में बंदी बनाकर रखा था न कि खुली हवादार और शानदार ऊपरी मंजिल में। दूसरी बात, शीशे का यह टुकड़ा सन् 1930 में पुरातत्व विभाग के एक चपरासी इंशा अल्लाह खान द्वारा लगाया गया था। उसने यह शीशा पर्यटकों को ये दिखाने के लिए लगाया था कि प्राचीन समय में किस तरह छोटे शीशों के टुकड़ों में ताज के हजारों प्रतिबिम्ब झलका करते थे। तीसरी बात, एक बूढा कमजोर शाहजहां जिसके जोड़ों में दर्द और आंखों में मोतिया बिन्द उतर आया था, किस तरह सारा दिन गर्दन टेढ़ी करके धुंधली नज़रों से शीशे के टुकड़े में ताज देखता होगा? वैसे भी जब आगरा किले से सम्पूर्ण ताजमहल ही दिखाई देता है तो उसे शीशे के टुकड़ों में देखने की आवश्यकता भी क्या है? परन्तु आम जनता इतनी नादान है कि धूर्त स्थलप्रदर्शकों (Guides) की इन विवेकहीन गप्पों को भी सच मान लेती है।

105. ताज के गुम्बद की बाहरी सतह पर सैंकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुए हैं। गुम्बद की इस विशिष्टता की तरफ़ बहुत कम ध्यान दिया गया है। यह गोल कड़ियां हिन्दुओं द्वारा मिट्टी के दीपक रखने के काम आती थीं, जिनसे पूरा राजमंदिर जगमगा उठता था।

106. जो लोग शाहजहां के ताज पर स्वामित्व और मुमताज़ पर बेइंतहा प्रेम की कहानी पर विश्वास करते हैं, उन्हें लगता है कि शाहजहां-मुमताज़ का जोड़ा कोमल ह्रदय वाले रोमियो और जूलिएट जैसा होगा। परन्तु इसके विपरीत तथ्य कहते हैं कि शाहजहां अत्यंत निर्दयी, क्रूर और अत्याचारी था जिसने मुमताज़ को आजीवन प्रताड़ित ही किया।

107. स्कूल और कॉलेजों में पढाए जाने वाले इतिहास में शाहजहां के शासनकाल को स्वर्णिम युग कहा जाता है – जहां शांति और संपन्नता की भरमार थी। शाहजहां को कई इमारतों का निर्माता और साहित्य का जतन करनेवाला भी बताया जाता है। यह सब मनगढ़ंत बातें हैं। जैसा कि हमने ताजमहल के निर्माण की इस गहरी छान-बीन में देखा – शाहजहां ने एक भी भवन या इमारत का निर्माण नहीं किया बल्कि बनी हुई इमारतों को लूटा और उन्हें नष्ट ही किया। अपने तीस वर्षों के शासनकाल में शाहजहां ने 48 युद्ध अभियान चलाए, इससे पता चलता है कि शाहजहां का शासनकाल शांति और समृद्धि का काल कदापि नहीं था।

108. मुमताज़ की कब्र पर बने गुम्बद के अंदरूनी भाग में सुनहरे रंगों से सूर्य और नाग के चित्र बने हुए हैं। हिन्दू योद्धा स्वयं को सूर्यवंशी कहते हैं अतः सूर्य उनके लिए बहुत महत्व रखता है, जबकि इस्लामिक मकबरे में सूर्य का चित्र होना कोई मायने नहीं रखता और नाग का सम्बन्ध हमेशा से ही भगवान शिव से रहा है।

नकली दस्तावेज

109. ताज में कब्र की देखभाल करनेवाले मुस्लिम “तारीख–ए-ताजमहल” नामक एक दस्तावेज रखते हैं। इतिहासकार एच।जी।कीन उसे ‘संदिग्ध प्रामाणिकता वाला’ दस्तावेज घोषित कर चुके हैं। उनका कथन बिलकुल सही है क्योंकि जब शाहजहां ने ताजमहल बनवाया ही नहीं तो शाहजहां को ताज का निर्माता कहनेवाला कोई भी दस्तावेज सीधे तौर पर जालसाजी ही है। इन नकली दस्तावेजों के अतिरिक्त ताज पर इतिहास के पूरे वृत्तांत भी मिलते है जो इसी तरह से झूठ के पुलिंदे हैं।

110. ताज के बारे में बहुत से इतिहासकार, पुरातत्वविद् और वास्तुकार भी वाद-विवाद, कुतर्क और भ्रामक बातों के कपट जाल में पड़े हुए हैं। वे यह आरम्भ से ही मानकर चलते हैं कि ताज पूरी तरह से मुस्लिम रचना है। लेकिन जब ताज की कमलाकार गुम्बद और चारों कोनों पर मौजूद स्तंभ इत्यादि हिन्दू चिन्हों की तरफ़ उनका ध्यान आकृष्ट कराया जाता है तब वह पाला बदल कर कहते हैं कि संभवतः ऐसा इसलिए है क्योंकि ताज का निर्माण करनेवाले कारीगर हिन्दू थे और इसलिए उन्होंने अपनी हिन्दू शैली को यहां प्रस्तुत कर दिया है। यह दोनों ही दावे गलत हैं क्योंकि मुस्लिम दस्तावेजों के अनुसार ताज का रचनाकार एक मुस्लिम ही था और कारीगर तथा मजदूर हमेशा अपने मालिकों के अनुसार ही चलते हैं। वैसे भी क्या एक मुस्लिम तानाशाह के राज में कारीगर अपनी मनमानी कर सकते थे?

भारत में कश्मीर से लेकर केप कोमोरिन (कन्याकुमारी) तक हिन्दू मूल की सभी ऐतिहासिक इमारतों पर किसी न किसी मुस्लिम शासक या मुस्लिम दरबारी का नाम मढ़ा हुआ है। ताज इसका एक आदर्श उदाहरण है।

पुरुषोत्तम नागेश ओक

प्रख्यात भारतीय इतिहासकार जिन्हे वामपंथी इतिहासकारो ने कभी स्वीकार नहीं किया। जन्म: 2 मार्च, 1917-मृत्यु: 7 दिसंबर, 2007, जिन्हें पी०एन० ओक के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय इतिहास लेखक थे। उन्हीं की एक पुस्तक में दिये उनके परिचय के अनुसार, श्री ओक का जन्म इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध के समय उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी में प्रविष्टि ली, जिसके द्वारा इन्होंने जापानियों के संग अंग्रेज़ों से लड़ाई की थी। इन्होंने कला में स्नातकोत्तर (एम०ए०) एवं विधि स्नातक (एलएल०बी०) की डिग्रियाँ मुंबई विश्वविद्यालय से ली थीं। सन 1947 से 1953 तक वे हिंदुस्तान टाइम्स एवं द स्टेट्समैन जैसे समाचार पत्रों के रिपोर्टर रहे। 1953 से 1957 तक इन्होंने भारतीय केन्द्रीय रेडियो एवं जन मंत्रालय में कार्य किया। 1957 से 1959 तक उन्होंने भारत के अमरीकी दूतावास में कार्य किया।
जिसे वे "भारतीय इतिहास का हमलावरों एवं उपनिवेशकों द्वारा पक्षपाती एवं तोड़ा मरोड़ा गया वृत्तांत" मानते थे, उसे सही करने में उन्मत्त, ओक ने कई पुस्तकें और भारतीय इतिहास से सम्बन्धित लेख लिखे हैं। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय इतिहास पुनरावलोकन संस्थान की स्थापना 14 जून, 1964 को की। ओक के अनुसार, आधुनिक और मार्क्सवादी इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास के "आदर्शीकृत वृत्तांत" को कल्पित करके उसमें से सारे वैदिक सन्दर्भ और सामग्री हटा दिये हैं। ओक के योगदान, हिन्दू धर्म की अन्य धर्मों पर वर्चस्व एवं अपार श्रेष्ठता सिद्ध करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।जहाँ ओक के सिद्धान्तों का कई हिन्दू वादी गुटों ने भरपूर प्रसार एवं समर्थन किया है, वहीं, किसी भी मुख्यधारा के धार्मिक एवं स्थापत्य इतिहासविदों द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है। एडविन ब्राइट के अनुसार, अधिकांश पाठक उन्हें केवल एक अफवाह ही मानते हैं।
अपनी पुस्तक ताजमहल: सत्य कथा में, ओक ने यह दावा किया है, कि ताजमहल, मूलतः एक शिव मन्दिर या एक राजपूताना महल था, जिसे शाहजहाँ ने कब्ज़ा करके एक मकबरे में बदल दिया।
ओक कहते हैं, कि कैसे सभी (अधिकांश) हिन्दू मूल की कश्मीर से कन्याकुमारी पर्यन्त इमारतों को किसी ना किसी मुस्लिम शासक या उसके दरबारियों के साथ, फेर-बदल करके या बिना फेरबदल के, जोड़ दिया गया है। उन्होंने हुमायुं का मकबरा, अकबर का मकबरा एवं एतमादुद्दौला के मकबरे, तथा अधिकांश भारतीय हिन्दू ऐतिहासिक इमारतों, यहाँ तक कि काबा, स्टोनहेन्ज व वैटिकन शहर। तक हिन्दू मूल के बताये हैं। ओक का भारत में मुस्लिम स्थापत्य को नकारना, मराठी जग-प्रसिद्ध संस्कृति का अत्यन्त मुस्लिम विरोधी अंगों में से एक बताया गया है। के०एन०पणिक्कर ने ओक के भारतीय राष्ट्रवाद में कार्य को भारतीय इतिहास की साम्प्रदायिक समझ बताया है।तपन रायचौधरी के अनुसार, उन्हें संघ परिवार द्वारा आदरणीय इतिहासविद कहा गया है।
ओक ने दावा किया है, कि ताज से हिन्दू अलंकरण एवं चिह्न हटा दिये गये हैं और जिन कक्षों में उन वस्तुओं एवं मूल मन्दिर के शिव लिंग को छुपाया गया है, उन्हें सील कर दिया गया है। साथ ही यह भी कि मुमताज महल को उसकी कब्र में दफनाया ही नहीं गया था।
इन दावों के समर्थन में, ओक ने ताज की यमुना नदी की ओर के दरवाजों की काष्ठ की कार्बन डेटिंग के परिणाम दिये हैं, यूरोपियाई यात्रियों के विवरणों में ताज के हिन्दू स्थापत्य/वास्तु लक्षण भी उद्धृत हैं। उन्होंने यहाँ तक कहा है, कि ताज के निर्माण के आँखों देखे निर्माण विवरण, वित्तीय आँकड़े, एवं शाहजहाँ के निर्माण आदेश, आदि सभी केवल एक जाल मात्र हैं, जिनका उद्देश्य इसका हिन्दू उद्गम मिटाना मात्र है।
पी०एस० भट्ट एवं ए०एल० अठावले ने "इतिहास पत्रिका " (एक भारतीय इतिहास पुनरावलोकन संस्थान के प्रकाशन) में लिखा है, कि ओक के लेख और सामग्री इस विषय पर, कई सम्बन्धित प्रश्न उठाते हैं।
ताजमहल के हिन्दू शिवमन्दिर होने के पक्ष में ओक के तर्क
पी०एन० ओक अपनी पुस्तक "ताजमहल ए हिन्दू टेम्पल" में सौ से भी अधिक कथित प्रमाण एवं तर्क देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मन्दिर था जिसका असली नाम 'तेजोमहालय' हुआ करता था। ओक साहब यह भी मानते हैं कि इस मन्दिर को जयपुर के राजा मानसिंह (प्रथम) ने बनवाया था जिसे तोड़ कर ताजमहल बनवाया गया। इस सम्बन्ध में उनके निम्न तर्क विचारणीय हैं। किसी भी मुस्लिम इमारत के नाम के साथ कभी महल शब्‍द प्रयोग नहीं हुआ है।'ताज' और 'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं।
संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परम्परा चली आ रही है जैसी मन्दिरों में प्रवेश पर होती है जब कि सामान्यतः किसी मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता।
संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित हैं तथा उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंदू मन्दिर परम्परा में (भी) 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।
ताजमहल शिव मन्दिर को इंगित करने वाले शब्द 'तेजोमहालय' शब्द का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मन्दिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे।
ताज के दक्षिण में एक पुरानी पशुशाला है। वहाँ तेजोमहालय के पालतू गायों को बाँधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गौशाला होना एक असंगत बात है।
ताज के पश्चिमी छोर में लाल पत्थरों के अनेक उपभवन हैं जो कब्र की तामीर के सन्दर्भ में अनावश्यक हैं।
संपूर्ण ताज परिसर में 400 से 500 कमरे तथा दीवारें हैं। कब्र जैसे स्थान में इतने सारे रिहाइशी कमरों का होना समझ से बाहर की बात है।
वैधानिक प्रतिक्रिया
ओक ने याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने ताज को एक हिन्दू स्मारक घोषित करने एवं कब्रों तथा सील्ड कक्षों को खोलने, व यह देखने कि उनमें शिव लिंग, या अन्य मन्दिर के अवशेष हैं, या नहीं; की अपील की।उनके अनुसार भारतीय सरकार के इस कृत्य की अनुमति न देने का अर्थ सीधे-सीधे हिन्दू धर्म के विरुद्ध षड्यन्त्र है।
सन 2005 में ऐसी ही एक याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा भी रद्द कर दी गयी, जिसमें अमरनाथ मिश्र, एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा यह दावा किया गया था, कि ताज को हिन्दू राजा परमार देव ने 1196 में निर्माण कराया था।
इस्लाम एवं ईसाइयत के हिन्दू मूल
उनकी स्वीकृत इतिहास से उलट, श्री ओक ने दावा किया है, कि इस्लाम एवं ईसाई धर्म, दोनों ही वैदिक धर्म के तोड़-मरोड़े गये रूप हैं। इनके समर्थन में उन्होंने एक शब्दावली भी बतायी है। उदाहरणार्थ शब्द इस्लाम का संस्कृत मूल शब्द है ईशालयम = ईश+आलय = भगवान का घर, जो कि इस्लाम में वर्णित अर्थ से भिन्न है) और हिन्दू एवं इस्लाम या ईसाई धर्म में कई समानताएँ इस दृष्टिकोण के समर्थन में बतायीं हैं।

(लेखक भारत संस्कृति न्यास के अध्यक्ष हैं )

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6 February 2021 at 02:01

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