भारतीय विवाह संस्कार की वैज्ञानिकता



सूर्यास्त के बाद नहीं हो सकता वैदिक विवाह





भातर वर्ष में विवाह संस्कार एक विशुद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इसे समझने के लिए इसके सम्पूर्ण विधियों को ठीक से समझना आवश्यक है। उन विधियों को कभी विस्तार से बताएँगे लेकिन आज हम बात करने जा रहे है विवाह के मुहूर्त और उसे आधुनिक रूप में सम्पन्न करायी जाने वाली प्रक्रिया लेकर। शास्त्रीय और वैधानिक पहलू यह है की पिछले कई शतकों से वास्तव में विवाह की शास्त्रीयता बची ही नहीं है।

यह सार्वभौमिक सत्य है कि कोई भी वैदिक अनुष्ठान सूर्यास्त के पश्चात हो ही नहीं सकता। यहाँ तक की स्वयं वेद पाठ भी शास्त्रीय उपयोग में सूर्यास्त के बाद नहीं होते। ऐसे में वैदिक मंत्रो के साथ रात्रि बेला में विवाह कैसे संभव हो सकता है। भारत वर्ष में वास्तव में विवाह की परम्परा दिन की ही होती थी लेकिन जब यवन और मुग़ल लोग भारत पर शासन करने आये तथा युद्ध की विभीषिकाएँ हर और से देश को निगलने लगी तब मारे डर के विवाह की परम्परा को चोरी चोरी से रात को सम्पन्न कराने की जुगत निकाली गयी। इसके लिए पोरे विवाह पद्दति को कई भागो में बाँट दिया गया। अधिकाँश मंत्र पहली किश्त में वर रक्षण यानी बरक्षा के समय ही पूर्ण कर लिए जाते थे। दूसरी किश्त तिलक के दिन पूरी होती थी और आखिरी के मंत्र विवाह की तिथि को प्रयोग में लायर जाते थे। अब सैकड़ो वर्षो की वाही परम्परा आज भी हम मानते आ रहे है। अब जब कि देश आज़ाद हो चुका है और हमें अपने अनुष्ठान पूर्ण विधि से करने की आज़ादी मिल चुकी है ऐसे में अब जरूरी हो गया है कि अपनी वैदिक विधि को सही रूप में स्वीकार किया जाय।

यह कुछ लापरवाही हमारे धर्माचार्यो की भी रही है जिन्होंने समय से इस सच्चाई से आम भारतीय को अवगत तक नहीं कराया। कुछ पीढ़ियों की गुलामी का दोष है कि शायद हमारे पास सच्चे आचार्यो की ही कमी हो गयी। धर्म, आध्यात्म, ज्ञान और भारतीयता पर लम्बी बहस करने वालो की तो फ़ौज है अपने देश में लेकिन इतने महत्वपूर्ण पक्ष पर विचार करने का समय शायद नहीं बचा। वेद, पुराण, धर्म, शास्त्र, उपनिषद्, अनुष्ठान, तंत्र ,मंत्र आदि पर अभी बहस करनी हो तो हज़ारो विद्वान सामने आ जाएंगे लेकिन विवाह की पद्धति में इस आवश्यक सुधार को कोई बताना नहीं चाहता।


यह भी विचित्र सी बात है कि जिन मंत्रो के सहारे दो वक्तियो को आजीवन साथ निभाने के लिए बांधने वाले मंत्र जब आवेशित नहीं होंगे तो उन मंत्रो और उस विवाह का मतलब ही क्या है। आज तो विवाह समारोह बस कुछ मौज मस्ती और नाच गाने के साथ डिनर के कार्यक्रम ही के रूप में रह गए है। इनमे विवाह के कार्य हो ही कहा रहे है। फिर जब तलाक होने लगते है तो हो हल्ला मचने लगता है। अरे जब मंत्र आवेशित ना हुए , विवाह के मंत्र बैंड और dj के साथ मदिरा के बोतलों में बह गए उस कथित विवाह से क्या अपेक्षा है तुम्हारी. क्या साक्षात लक्ष्मी जी जाएंगी आपके घर में?

सामान्य सी बात क्यों नहीं समझ में आने वाली कि कोई भी वैदिक अनुष्ठान अत्यंत पवित्रता के वातावरण में ही संभव है। सामान्य सी सत्यनारायण की कथा के लिए भी घर को साफ सुथरा किया जाता है ,व्रत रखा जाता है, मांस,मदिरा,आदि से दूर रहा जाता है। तो विवाह जैसे सम्पूर्ण वैदिक विधान का फल क्या मुर्गा और मट्टन के साथ शराब की पार्टी और तेज आवाज़ वाले डीजे के स्वरों से मिलेगा?
दरअसल हम भारतीय बहुत ही वितण्डावादी लोग है। सब अपनी सुविधा से चाहते है। ऊपर से बाजार ने अलग ही परम्परा विकसित कर ली है। विवाह वास्तव में एक अत्यंत अल्प खरच वाला वैदिक अनुष्ठान है जिसमे पैसे का कोई महत्व ही नहीं है। यह विशुद्ध प्राकृतिक और सांस्कारिक अनुष्ठान है जिसमे वेद मंत्रो की शुद्धता का अत्यंत महत्त्व है। अब दिक्कत यह है कि रूढ़ि के वष में आ चुकी रात्रिकालीन विवाह व्यवस्था को पहले तो वैदिक विधान में सूर्या साक्षी बनाया जाय. भारतीय विवाह पद्धति को उसके उस प्राचीन मूल स्वरुप में लाना बहुत ही जरूरी है।

संजय शांडिल्य
अध्यक्ष
भारत संस्कृति न्यास ,नयी दिल्ली
9450887186

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