वैभव पथ पर भारत 


संजय तिवारी 

भारत अब सच में वैभवपथ पर बढ़ रहा है।  बढ़ ही नहीं रहा दौड़ रहा है।  भारत की ताकत अब केवल सामरिक और बौद्धिक ही नहीं बल्कि आर्थिक समृद्धि भी है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटों के बारे में लिए गए फैसले के बाद केवल भारत ही नहीं दुनिया के कई हिस्सो में भारी बेचैनी और तड़प महसूस की जा रही है। खासकर नेपाल औए पकिस्तान में इस बेचैनी की आह सुनी जा सकती है।  दरअसल यह आह केवल इन पड़ोसियों की ही नहीं है बल्कि हमेशा से हर कदम पर भारत के लिए रोड़े अटकाने वाले चीन की है जो चाहता नहीं कि उसकी बेचैनी को दुनिया देखे।  पिछले दो वर्षो में भारत के हर बड़े प्रयास में अड़ंगा डालने वाले इस बनिए देश के लिए भारत की करेंसी में बदलाव की झटके से कम नहीं है। कथित तौर पर इसके दो चहेतो , पकिस्तान और आंशिक नेपाल को भी साँप सूंघ गया है। भारत के भीतर के जमाखोरों की चाहे जो हालात हुई हो पर बहार वाले तो तड़प कर रह गए है। यही भारत है जिसे कभी  सोने की चिड़िया कहा जाता था। ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने की नीयत से आई, लेकिन भारत का सारा पैसा उसने थेम्स नदी के किनारे उड़ेल दिया और भारत एक तरह से कंगाल हो गया। अंग्रेजों के खिलाफ लंबी लड़ाई के बाद 1947 में जब देश को आजादी मिली तो एक उम्मीद जगी कि अब भारत उड़ान भरेगा, लेकिन नतीजा कुछ और ही रहा। काले धन के कुबेरों ने देश को खोखला कर दिया। काले धन के कुबेरों पर लगाम लगाने की पहल जनता पार्टी की सरकार में मोरार जी देसाई ने शुरू की। उन्होंने बड़े नोटों को अमान्य करार दिया। मोरारजी देसाई के इस फैसले से हिचकोले खा रही अर्थव्यवस्था को थोड़ी गति मिली। लेकिन कुछ खास असर नहीं दिखा।



38 साल बाद दमदार फैसला

1978 से 2016 तक 38 साल का कालखंड करीब-करीब उथल-पुथल से भरा रहा।काले धन पर लगाम लगाने के तमाम बड़े फैसले लिए गए। लेकिन भ्रष्टाचार की जड़ इतनी गहराई तक पहुंच चुकी थी कि जमीन पर कुछ खास नजर नहीं आ रहा था। आठ नवंबर 2016 की तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई जब पीएम मोदी ने राष्ट्र के संबोधन में ऐलान किया कि आधी रात से पांच सौ और एक हजार के नोट अब महज कागज के टुकड़े रह जाएंगे। पीएम मोदी के इस फैसले को विपक्षी दलों ने तानाशाही,अघोषित आपातकाल का नाम दे दिया। लेकिन आर्थिक मामलों से जुड़ी संस्थाओं का कहना है कि भारत एक बार फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है। आइए आप को बताने की कोशिश करते हैं कि इन संस्थाओं का क्या कहना है।


इडेलवीस ने क्या कहा?

मुंबई बेस्ड ब्रोकरेज फर्म इडेलवीस का कहना है कि पीएम मोदी के कर चोरी और काले धन पर प्रहार से भारतीय अर्थव्यवस्था में 45 बिलियन डॉलर यानि तीन ट्रिलियन रुपए का वापस आ जाएंगे जो अब तक काले धन के रूप में धन कुबेरों के पास जमा थे। इडेलवीस का कहना है कि काले धन से मिलने वाली ये रकम आइसलैंड की अर्थव्यवस्था की तिगुनी है।इडेलवीस का कहना है कि सरकार इन पैसों का उपयोग राजकोषीय घाटे को पूरा करने में कर सकती है। सरकार इस रकम का उपयोग आर्थिक सुधारों के लिए कर सकती है। या केंद्रीय बैंक अपनी देनदारी चुका सकता है।

आइसीआइसीआई सेक्युरिटीज ने क्या कहा ?

आइसीआइसीआई सेक्युरिटीज प्राइमरी के आंकड़ों के मुताबिक नोट बैन से काले धन के रुप में छिपा हुआ 4.6 त्रिलियन रुपए वैधानिक तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था में जुड़ जाएंगे।

क्रिसिल की राय

क्रिसिल से जुड़े हुए एक जानकार का कहना है कि सरकार के पास निवेश करने के बेहतर मौके होंगे। सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का दीर्घकालिक असर दिखेगा।

500 और 1000 के नोट बंद - कहीं खुशी कहीं गम!

एस एंड पी का अनुमान

एस एंड पी के मुताबिक छोटी अवधि में जीडीपी पर नकारात्मक असर बाजार में कैश की कमी से हो सकता है। लेकिन दीर्घ अवधि में ये भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर होगा।

जानकारों का कहना है कि लोगों के पास कैस की कम मात्रा उपलब्ध होने की वजह से महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकेगा। 10 नवंबर से 30 दिसंबर के बीच 2.5 लाख से ज्यादा जमा रकम पर आयकर विभाग पर नजर रहेगी। किसी भी शख्स की आय और आमदनी के बीच अंतर होने पर उसे टैक्स के साथ-साथ 200 फीसद पेनल्टी देना होगा।


एक तिहाई काला धन होगा बेनामी

आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि सरकार के इस फैसले से काले धन के रूप में चल रहे 17.6 त्रिलियन रुपए का 86 प्रतिशत हिस्सा भारतीय अर्थव्यवस्था में कानूनी तौर पर वापस आ जाएगा। जानकारों का कहना है कि इसमें से करीब एक तिहाई काला धन होगा या बेनामी होगा।



इन पैसों को मोदी सरकार कहां कर सकती है खर्च ?

जानकारों का कहना है कि केंद्र सरकार ने 2017 के लिए 5.3 ट्रिलियन रुपए के बजट घाटे का अनुमान लगाया है। सरकार इन पैसों से बजट घाटे के आधे हिस्से को खत्म कर सकती है। सरकार के सामने ऊर्जा और सुरक्षा क्षेत्र में ज्यादा खर्च करने का विकल्प होगा। इसके अलावा सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास पर खर्च कर सकती है। आइसीआइसीआई प्रुडेंशियल के एग्जीक्यूटिव डॉयरेक्टर का कहना है कि आने वाले तीन से 6 महीनों के भीतर ब्याज दरों में कटौती हो सकती है। उनके मुताबिक आधारभूत क्षेत्रों में काम करने वालों को कम ब्याज पर कर्ज उपलब्ध हो सकेंगे, जिसके बाद आधारभूत क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

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