व्रत, स्नान, दान और तप का पर्व कार्तिक पूर्णिमा 



संजय तिवारी 

  पूर्णिमा को हिन्दू धर्म में अत्यंत शुभ और फलदायी बताया गया है। भविष्यपुराण के अनुसार वैशाख, माघ और कार्तिक माह की पूर्णिमा स्नान-दान के लिए अति श्रेष्ठ होती हैं।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत विधि
कार्तिक पूर्णिमा को अगर संभव हो तो जातक को नदी में स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा-आरती करनी चाहिए। इस दिन मात्र एक समय भोजन करना चाहिए और सामथ्र्यानुसार दान (दुधारू गाय और केला, खजूर, नारियल आदि फलों का) देना चाहिए। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को दान देने का तो फल मिलता ही है साथ ही बहन, भांजे, बुआ आदि को भी दान देने से पुण्य मिलता है। शाम के समय निम्न मंत्र से चन्द्रमा को अघ्र्य देना चाहिए-


वसंतबान्धव विभो शीतांशो स्वस्ति न: कुरु। 
पूर्णिमा का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढक़र 16 हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है।
इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। महाभारत काल में हुए 18 दिनों के विनाशकारी युद्ध में योद्धाओं और सगे संबंधियों को देखकर जब युधिष्ठिर कुछ विचलित हुए तो भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान पर आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके बाद रात में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रूप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने का विशेष महत्व है। मान्यता यह भी है कि इस दिन पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान भोलेनाथ का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा को शैव मत में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही वैष्णव मत में भी।
कार्तिक पूर्णिमा को गोलोक के रासमण्डल में श्री कृष्ण ने श्री राधा का पूजन किया था। हमारे तथा अन्य सभी ब्रह्मांडों से परे जो सर्वोच्च गोलोक हैं वहां इस दिन राधा उत्सव मनाया जाता है तथा रासमण्डल का आयोजन होता है। कार्तिक पूर्णिमा को श्री हरि के बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी का मंगलमय पराकाट्य हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था। कार्तिक पूर्णिमा को राधिका जी की शुभ प्रतिमा का दर्शन और वन्दन करके मनुष्य जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है। इस दिन बैकुण्ठ के स्वामी श्री हरि को तुलसी पत्र अर्पण करते हैं। कार्तिक मास में विशेषत: श्री राधा और श्री कृष्ण का पूजन करना चाहिए। जो कार्तिक में तुलसी वृक्ष के नीचे श्री राधा और श्री कृष्ण की मूर्ति का पूजन (निष्काम भाव से) करते हैं उन्हें जीवनमुक्त समझना चाहिए। तुलसी के अभाव में आंवलें के नीचे पूजन करनी चाहिए। कार्तिक मास में पराये अन्न, गाजर, दाल, चावल, मूली, बैंगन, घीया, तेल लगाना, तेल खाना, मदिरा, कांजी का त्याग करें। कार्तिक मास में अन्न का दान अवश्य करें। कार्तिक पूर्णिमा को बहुत अधिक मान्यता मिली है। इस पूर्णिमा को महाकार्तिकी भी कहा गया है। यदि इस पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। अगर रोहिणी नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह महापूर्णिमा कहलाती है। कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो ‘पद्मक योग’ बनता है जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुणा लाभ मिलता है। मान्यता यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुन:प्राप्त होता है। शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरुक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए।



महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, इसी प्रकार दान देते समय में हाथ में जल लेकर दान करें। आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें।                                                                              तुलसी विवाह                                                               न्यूजटै्रक नेटवर्क
भगवान श्री विष्णु के स्वरूप शालिग्राम का विवाह तुलसी माता से जिस दिन हुआ था। उस दिन को तुलसी विवाह के नाम से जाना जाता है। तुलसी विवाह का उत्सव प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। तुलसी विवाह का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन विश्राम करने के लिए अपने शयनकक्ष में चले जाते हैं। इस दिन से सभी मांगलिक कार्य जैसे गृहप्रवेश, विवाह, व्रत, त्यौहार आदि रूक जाते हैं। माना जाता है। कार्तिक मास की एकादशी के दिन विष्णु भगवान जागते हैं और इस दिन से ही सभी शुभ कार्य दुबारा शुरू हो जाते हैं।
तुलसी विवाह की कथा 
शास्त्रों के अनुसार प्राचीन समय में जालंधर नामक एक राक्षस था। जो बहुत ही अत्याचारी था। इस राक्षस ने चारों तरफ अपने अत्याचारों से उत्पात मचा रखा था। यह राक्षस बहुत ही शक्तिशाली तथा वीर था। कहा जाता है कि जालंधर की वीरता का रहस्य उसकी पत्नी वृंदा का पत्नीधर्म का पालन करना था। वृंदा के द्वारा पत्नी धर्म का पालन करने के कारण ही वह सर्वजयी बना हुआ था। जालंधर से सभी देवता बहुत ही परेशान हो गये थे। जालंधर के आतंक से परेशान होकर सभी देवता विष्णु भगवान के पास गये और उन्होंने जालंधर के उत्पात से छुटकारा पाने के लिए उनसे प्रार्थना की। देवताओं की प्रार्थना सुनकर विष्णु भगवान ने जालंधर की पत्नी वृंदा के सतीत्व धर्म को भंग करने का प्रयास किया। जिसके बाद जालंधर की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु से दुखी होकर वृंदा ने विष्णु भगवान को एक श्राप दिया और कहा कि जैसे मैंने पति वियोग सहा है उसी तरह तुम्हें एक दिन पत्नी वियोग सहना पड़ेगा यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। कहा जाता है कि जिस स्थान पर वृंदा की मृत्यु हुई थी। वहां पर तुलसी का पौधा उत्पन्न हो गया था। 
तुलसी विवाह के बारे में एक अन्य कथा प्रचलित है कि वृंदा ने विष्णु भगवान को पत्थर की मूर्ति बनने का श्राप दिया था। जिसके बाद विष्णु जी ने वृंदा को यह वचन दिया था कि तुम दुबारा जन्म लोगी और तुम्हारा विवाह तुलसी के रूप में मेरे साथ होगा। इसलिए विष्णु जी ने शालिग्राम के रूप में जन्म लिया और वृंदा अर्थात तुलसी से विवाह कर लिया। उस दिन के बाद से ही तुलसी विवाह की यह परम्परा चली आ रही है।
तुलसी विवाह का महत्व 
कार्तिक मास के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह का त्यौहार बहुत ही शुभ होता है। तुलसी को विष्णुप्रिया के नाम से भी जाना जाता है। तुलसी विवाह का अर्थ भगवान का आह्वान करना होता है। माना जाता है कि जब सभी देवता एकादशी के दिन जागते हैं तो सर्व प्रथम तुलसी जी की प्रार्थना को ही स्वीकार करते हैं। तुलसी विवाह के दिन तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह करने से बहुत से कार्यों की सिद्धि होती है। जिनका वर्णन नीचे किया गया है। 
ठ्ठ    यदि किसी व्यक्ति के संतान नहीं हैं या कोई कन्या नहीं है जिसके कारण उन्हें कन्यादान जिसे जीवन के महादान के रूप में जाना जाता है। इस पुण्य को कमाने के लिए उस व्यक्ति को तुलसी विवाह के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह करवाना चाहिए। तुलसी विवाह के दिन विवाह करवाने से कन्यादान के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
ठ्ठ यदि तुलसी विवाह के दिन विधिवत रूप से पूजा की जाए तो तुलसी पूजा करने वाले व्यक्ति को शुभफल की प्राप्ति होती है तथा इसके साथ ही उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
ठ्ठ तुलसी विवाह के दिन व्रत भी रखा जाता है। माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है, उसे इस जन्म के पापों से तो मुक्ति मिल ही जाती है। इसके साथ की उसके पूर्व जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
ठ्ठ तुलसी विवाह के दिन तुलसी माता की पूजा करने से या तुलसी विवाह करवाने से घर में सुखशांति बनी रहती है तथा धन आदि की कभी कमी नहीं होती, क्योंकि तुलसी माता को लक्ष्मी जी का ही एक प्रतीकात्मक रूप माना जाता है।
ठ्ठ तुलसी विवाह के दिन जिन लडक़े या लड़कियों के विवाह होने में अड़चन आती है, इस दिन उनका विवाह बिना किसी रूकावट के हो जाता है। तथा यह दिन विवाह के लिए बहुत ही शुभ भी माना जाता है।
तुलसी विवाह  पूजन विधि
ठ्ठ    तुलसी विवाह के दिन तुलसी माता के पौधे को गेरू से सजा लें। 
ठ्ठ इसके बाद तुलसी के पौधे पर ओढऩी के रूप में एक लाल रंग की चुन्नी ओढ़ा दें।
ठ्ठ अब गमले के चारों ओर गन्नों को खड़ा करके विवाह का मंडप बना लें। इसके बाद तुलसी माता को साड़ी से लपेट दें और उन पर सभी शांृगार की वस्तुएं चढ़ा दें।
ठ्ठ इसके बाद श्री गणेश भगवान की वंदना से पूजा आरम्भ करने के बाद तुलस्यै नम: का जाप करते हुए तुलसी की पूजा करें।
ठ्ठ इसके पश्चात् सभी देवताओं का नाम लें और उन्हें भी धूप बत्ती दिखाएं।
ठ्ठ अब एक नारियल लें और उसे तुलसी माता के समक्ष टीके के रूप में चढ़ा दें।
ठ्ठ इसके बाद भगवान शालिग्राम जी की मूर्ति को अपने हाथ में लेकर तुलसी माता के पौधे की सात बार परिक्रमा करें। इस प्रकार तुलसी विवाह तथा तुलसी पूजा सम्पन्न हो जायेगी।                                                                                     गुरुनानक जयंती
सिख सम्प्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयायी सुबह स्नान कर गुरुद्वारों में जाकर गुरुवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।

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