स्त्री के लिए साष्टांग प्रणाम वर्जित
संजय तिवारी
जननी स्वयं को कैसे प्रणाम कर सकती है। भारतीय दर्शन और संस्कृति में स्त्री केवल एक शरीर भर नहीं है। वह वही है जो धरती है। एक ही अस्तित्व है। धरती की तरह ही स्त्री भी क्षेत्र है और कोई भी क्षेत्र दूसरे क्षेत्र को कैसे साष्टांग प्रणाम कर सकता है। खेत के ऊपर भला खेत आएगा तो प्रलय ही आ जायेगा। इसीलिए नारी के लिए साष्टांग दंडवत का विधान ही नहीं है।
प्रणाम करते समय वैसे आजकल पैरों को हल्का सा स्पर्श कर लोग चरण स्पर्श की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं। कभी-कभी पैरों को स्पर्श किए बिना ही चरण स्पर्श पूरा कर लिया जाता है। मंदिर में जाकर भगवान की मूर्ति के सामने माथा टेकने में भी आजकल लोग कोताही बरतते हैं। खैर ये तो सब मॉडर्न तकनीक हैं, लेकिन कभी आपने उन लोगों को देखा है जो जमीन पर पूरा लेटकर माथा टेकते हैं, इसे साष्टांग दंडवत प्रणाम कहा जाता है।
यह एक आसन है जिसमें शरीर का हर भाग जमीन के साथ स्पर्श करता है, बहुत से लोगों को यह आसन आउटडेटेड लग सकता है लेकिन यह आसन इस बात का प्रतीक है व्यक्ति अपना अहंकार छोड़ चुका है। इस आसन के जरिए आप ईश्वर को यह बताते हैं कि आप उसे मदद के लिए पुकार रहे हैं। यह आसन आपको ईश्वर की शरण में ले जाता है। इस तरह का आसन सामान्य तौर पर पुरुषों द्वारा ही किया जाता है। क्या आप जानते हैं शास्त्रों के अनुसार स्त्रियों को यह आसन करने की मनाही है, जानना चाहते हैं क्यों?
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार स्त्री का गर्भ और उसके वक्ष कभी जमीन से स्पर्श नहीं होने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि उसका गर्भ एक जीवन को सहेजकर रखता है और वक्ष उस जीवन को पोषण देते हैं। इसलिए यह आसन स्त्रियों को नहीं करना चाहिए। धार्मिक दृष्टिकोण के अलावा साष्टांग प्रणाम करने के स्वास्थ्य लाभ भी बहुत ज्यादा हैं। ऐसा करने से आपकी मांसपेशियां पूरी तरह खुल जाती हैं और उन्हें मजबूती भी मिलती है।