बड़े मंगल पर विशेष   निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा

बड़े मंगल पर विशेष निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा

बड़े मंगल पर विशेष 
निर्मल मन जन सो मोहि पावा,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा 

संजय तिवारी 
संकट कैसा भी हो राम भक्त हनुमान उसे पल भर में दूर करने की क्षमता रखते हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीराम से हनुमान जी की पहली मुलाकात ज्येष्ठ (जेठ) के महीने में हुई थी। यही वजह है कि इस महीने में पड़ने वाले सभी मंगलवार का विशेष महत्व है। हनुमानजी संकट हरने वाले देवता हैं। पूर्ण समर्पण से भक्ति करने वालों के सभी संकट पलभर में छूमंतर हो जाते हैं। लेकिन उनकी भक्ति और श्रद्धा वैसी ही होनी चाहिए, जैसी हनुमानजी की श्रीराम के प्रति थी, जहां न स्वार्थ हो, न आडंबर, न आकांक्षा और न ही किसी प्रकार की आशंका।
श्रीमदरामचरितमानस में गोस्वामी जी ने लिखा है-

निर्मल मन जन सो मोहि पावा,
 मोहि कपट छल छिद्र न भावा। 
लखनऊ में बड़े मंगल की महत्ता
हनुमान जी का लखनऊ से बहुत ही गहरा सम्बन्ध है। कलियुग में भी सर्वत्र विद्यमान परम ग्यानी , रामभक्त हनुमान जी की उपस्थिति तो सर्व विदित है।  मानस में गोस्वामी जी ने हनुमान जी को कलियुग का कल्पवृक्ष कहा है।लखनऊ में इस कल्पवृक्ष का अनुभव यहाँ का प्रत्येक प्राणी करता है। इस अनुभव में जाती , पंथ, मजहब आदि की कोई बंदिश कहीं नहीं है। लखनऊ में ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले सभी मंगल 'बडा़ मंगल' के रूप में मनाए जाते हैं और इस आयोजन में हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आदि सभी धर्मों के लोग भी  बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। मंगलवार के इस आयोजन के लिए प्रशासन द्वारा की गई सुरक्षा व्यवस्था के बीच सभी धर्मों के लोगों ने इसमें बडे़ हर्षोल्लास के साथ भाग लेते हैं। इस दिन पूरा लखनऊ लाल लंगोटे वाले की जय के उद्घोष से गूंज उठता है।

चार सौ वर्ष पुरानी है परंपरा
मान्यता है कि इस परंपरा की शुरुआत लगभग 400 वर्ष पूर्व मुगल शासक ने की थी। नवाब मोहमद अली शाह का बेटा एक बार गंभीर रूप से बीमार हुआ। उनकी बेगम रूबिया ने उसका कई जगह इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। बेटे की सलामती की मन्नत मांगने वह अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर आईं। पुजारी ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने कहा। रूबिया रात में बेटे को मंदिर में ही छोड गईं। दूसरे दिन रूबिया को बेटा पूरी तरह स्वस्थ मिला। उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था कि एक ही रात में बीमार बेटा पूरी तरह से चंगा कैसे हो सकता है।


बेगम रुबिया ने कराया जीर्णोद्धार
 रूबिया ने इस पुराने हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। जीर्णोद्धार के समय लगाया गया प्रतीक चांद तारा का चिह्न आज भी मंदिर के गुंबद पर चमक रहा है। मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ ही मुगल शासक ने उस समय ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले मंगल को पूरे नगर में गुड़-धनिया, भूने हुए गेहूं में गुड़ मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद.. बंटवाया और प्याऊ लगवाए थे। तभी से इस बडे़ मंगल की परंपरा की नींव पडी़।

ऐसे बना नया  मंदिर
बडा मंगल मनाने के पीछे एक और कहानी है। नवाब सुजा-उद-दौला की दूसरी पत्नी जनाब-ए-आलिया को स्वप्न आया कि उसे हनुमान मंदिर का निर्माण कराना है। सपने में मिले आदेश को पूरा करने के लिए आलिया ने हनुमानजी की मूर्ति मंगवाई। हनुमानजी की मूर्ति हाथी पर लाई जा रही थी। मूर्ति को लेकर आता हुआ हाथी अलीगंज के एक स्थान पर बैठ गया और फिर उस स्थान से नहीं उठा। आलिया ने उसी स्थान पर मंदिर बनवाना शुरू कर दिया जो आज नया हनुमान मंदिर कहा जाता है।

ज्येष्ठ में ही हुआ था पहला भंडारा
मंदिर का निर्माण ज्येष्ठ महीने में पूरा हुआ। मंदिर बनने पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई और बडा़ भंडारा हुआ। तभी से जेष्ठ के महीने का हर मंगलवार बडा़ मंगल के रूप में मनाने की परंपरा चल पडी़। चार सौ साल पुरानी इस परंपरा ने इतना बृहद रूप ले लिया है कि अब पूरे लखनऊ के हर चौराहे, हर गली और हर नुक्कड पर भंडारा चलता है। पूरे दिन शहर बजरंगबली की आराधना से गूंजता रहता है और हर व्यक्ति जाति, धर्म, अमीरी-गरीबी सब भूला कर भंडारा में हिस्सा लेने और हनुमानजी का प्रसाद ग्रहण करने की होड़ में लग जाता है।

घर से मंदिर तक लेट कर जाने की परंपरा
पुराने हनुमान मंदिर की मान्यता है कि बडे़ मंगल के दिन अपने निवास स्थान से लेटकर जमीन नापते हुए मंदिर तक जाने से मन्नत पूरी होती है। इसलिए बडे़ मंगल के दिन प्रातःकाल सैकड़ों लोग सड़क पर लेट-लेट कर मंदिर तक जाते हुए दिखाई पड़ते हैं और हर बार लेटते हुए... लाल लंगोटे वाले की जय.. बोलते हैं। इन परिक्रमा करने वालों में पांच वर्ष के बच्चे से लेकर बूढे़ तक दिखाई पडते हैं। मन्नत पूरी होने पर फिर यही परिक्रमा करते हैं।

अलीगंज मंदिर से जुड़ है सुनीलदत्त का नाम
अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर के साथ अभिनेता स्वर्गीय सुनील दत्त का भी नाम जुडा़ हुआ है। देश विभाजन के बाद लखनऊ आने पर अभिनेता सुनील दत्त ने इसी मंदिर के प्रांगण में रात बिताई थी और उन्हें सोते समय स्वप्न हुआ था कि मुंबई जाओ। वहां तुम्हारा भाग्य चमकेगा। सुनील दत्त ने लखनऊ से सीधे मुंबई का रूख किया और सफलता प्राप्त की।

दिन भर चलता है भंडारा
बडा़ मंगल की सबसे बडी़ विशेषता यह है कि इतने बृहद रूप में पूरे दिन भंडारा होता है और हनुमान जी की आराधना लाउडस्पीकर पर गूंजती रहती है, लेकिन इस दिन कभी भी, कहीं भी कोई तनाव की घटना नहीं हुई। मुस्लिम बहुल क्षेत्र में भी सभी मंदिरों में हजारों श्रद्धालु दर्शन-पूजन करते हैं। पूरा माहौल हनुमान मय रहता है लेकिन पूरी तरह शांति और उल्लापूर्ण वातावरण बना रहता है। पूरे मंदिर क्षेत्र में मेले जैसा माहौल रहता है।

अलग अलग मंदिरों में अलग अलग श्रृंगार
 लखनऊ में स्थित विभिन्न हनुमानजी के मंदिरों में मूर्ति का श्रृंगार भी अलग-अलग तरह से किया जाता है। पक्का पुल स्थित अहिमर्दन पाताल पुरी में 11 क्विंटल गुलाब और गेंदे के फूलों से श्रृंगार होता है। यहां भक्त सिन्दूर चढा़ते हैं। चोला बदलने के बाद भव्य आरती होती है। किसी मंदिर में सोने और चांदी के वर्क से श्रृंगार किया जाता है, तो कहीं मेवा और मखाना से श्रृंगार होता है। अमीनाबाद के हनुमान मंदिर में चमेली के तेल, दुग्ध, मधु से अभिषेक के बाद सिन्दूर चढा़या जाता है तथा सोने-चांदी के वर्क और पुष्पों तथा मेवे से श्रृंगार किया जाता है और इसके बाद 108 दीपों की आरती होती है। अलीगंज स्थित पुराने और नए हनुमान मंदिर, विकास नगर का पंचमुखी हनुमान मंदिर, छाछीकुआं मंदिर, हजरतगंज का दक्षिणेश्वर हनुमान मंदिर, इंदिरा नगर के सिद्धेश्वर महादेव मंदिर, निशातगंज बंधा मार्ग के पंचमुखी हनुमान मंदिर, आशियाने के छुहारे वाले हनुमान मंदिर, आलमबाग बडा़ चौराहा हनुमान मंदिर, गोलागंज के दुर्गा हनुमान मंदिर, सीतापुर रोड के हाथी बाबा मंदिर इत्यादि तमाम मंदिरों में श्रृंगार की अलग-अलग विधाएं हैं।

डालीगंज जैन मंदिर से निकलती है राम बारात
बडे़ मंगल की पूर्व संध्या पर डालीगंज जैन मंदिर से राम बारात निकाली जाती है, जिसमें सजे-धजे रथ पर भगवान राम सवार होते हैं, तो उनके पीछे वानर सेना भी रहती हैं। बैंड-बाजे और रंगबिरंगी आतिशबाजी के साथ बारात विभिन्न मार्गों से गुजरती है।

ऐसे खुश होंगे संकटमोचन
मंगलवार के दिन ही हनुमानजी का जन्म हुआ था। इसलिए मान्यता है कि मंगलवार के दिन विशेष उपाय करने से हनुमानजी शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। हम आपको हनुमानजी को प्रसन्न करने के कुछ खास उपाय बता रहे हैं, जिनके करने से आपकी हर समस्या का समाधान हो सकता है और मनोकामनाएं भी पूरी हो सकती हैं। संकटमोचन हनुमानजी को प्रसन्न करना है तो कुछ उपाय करने होंगे, जिनसे वीरवर हनुमान आपके सारे संकट हर लेंगे। कहा भी गया है-

प्रेम प्रतीतिह कपि भजै सदा धरै उर ध्यान
तेहि के कारज सकल शुभ सिद्धि करैं हनुमान।

हनुमान चालीसा का पाठ करें
हनुमान चालीसा का पाठ करने से भक्तों के सारे दुःख दूर होते हैं। हनुमानजी के स्मरण मात्र से भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती है। हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित महान कृति है। इसे पढ़ने और सुनने से बल बुद्धि और विद्या बढ़ती है।

संकटमोचक हनुमाष्टक
मंगलवार के दिन संकटमोचक हनुमाष्टक का पाठ करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है कि- श्री हनुमानाष्टक पढ़ति निसि दिन विष्णु लोक सुगक्षितम्...

बजरंगबाण का पाठ करें
बड़े मंगल के दिन बजरंगबाण का पाठ सभी कष्टों से निजात दिला सकता है। साथ ही इसका नित्य पाठ सुरक्षा कवच बनकर आपकी रक्षा करता है। बजरंग बाण का रोजाना पाठ करने वाले शत्रु भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता, चाहे वो जितना भी ताकतवर क्यों न हो।
गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है- जो बजरंग बाण यह जापै, ताते भूत-प्रेत सब कांपै

सुंदरकांड का पाठ करें
वैसे तो पूरी रामचरितमानस का पाठ मनवांछित फल प्रदान करने वाला है, लेकिन मानना है कि सुंदरकांड के कुछ दोहों का रोजाना पाठ करने से हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस कांड में हनुमान का समुद्र लांघना, सीता का पता लगाना, लंका दहन करना, अशोक वाटिका उजाड़ना और भगवान राम को माता सीता का हाल सुनाना आदि वर्णित है।

उतारें हनुमानजी की आरती
मान्यता है कि मंगलवार के दिन या रोजाना हनुमान लला की आरती करने वाले भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और अंत समय में मोक्ष धाम की प्राप्ति होती है। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है-
जो हनुमानजी की आरती गावै, बसि बैकुंठ परम पद पावै...

इस बार नौ बड़े मंगल
ज्येष्ठ माह के 2018 में अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) होने की वजह से नौ बड़े मंगल होंगे। इनमें मई में पांच और जून माह में चार बड़े मंगल होंगे। हर चौथे साल में ऐसा होता है। पुरुषोत्तम मास का निर्धारण हर 32 माह 16 दिन और चार घड़ी पर होता है। इस बार चूंकि ज्येष्ठ माह में ही यह शुरू हो रहा है तो ज्येष्ठ माह का विस्तार हो गया है। इससे पहले 2007 में भी ज्येष्ठ के महीने में पुरुषोत्तम मास आया था और बड़े मंगल की पूजा का कई बार अवसर मिला था।

 किस महीने की कौन सी तारीख को बड़ा मंगल
मई माह - एक मई, आठ मई, 15 मई, 22 मई, 29 मई
जून माह - पांच जून, 12 जून, 19 जून, 26 जून
महज क़ानून से रुक जाएँगी घटनाएं ?

महज क़ानून से रुक जाएँगी घटनाएं ?

रेप पर फांसी की सजा 
महज क़ानून से रुक जाएँगी घटनाएं ?
संजय तिवारी 
देश में बलात्कार के मामले में सजा को लेकर फिर से गंभीर  बहस चल रही है। मध्यप्रदेश की सरकार ने पिछले नवम्बर के महीने में ही बलात्कारियो  फांसी की सजा देने का ऐलान कर केंद्र को क़ानून में संशोधन का प्रस्ताव भेज दिया है। छत्तीसगढ़ , झारखण्ड , हरियाणा  और राजस्थान ने भी फांसी की सजा पर विचार की बात की है। उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने भी इसी तरह सोचना शुरू किया है और केंद्र को पत्र लिखने की बात कही है। उन्नाव और कठुआ की घटनाओ के बाद देश में उबाल है। मीडिया तल्ख़ है। सरकार दबाव में है। इस बीच कुछ ऐसे तथ्य भी हैं जिनके कारण यह विषय और भी प्रासंगिक हो गया है। कुछ प्रश्न भी खड़े हो रहे हैं। ऐसा नहीं है कि देश में पहले से क़ानून नहीं है। क़ानून भी मौजूद है। सजा का प्राविधान भी है। लेकिन जटिलताएं गजब की हैं। एक उदहारण से इसे समझा जा सकता है। 

14 साल पहले दी गयी थी रेप के मामले में फांसी 
भारत में बलात्कार के मामले में फांसी की आखिरी सजा अब से 14 साल पहले दी गयी थी।  मामला पश्चिम बंगाल का था। इस मामले में भी 15 साल तक मुक़दमा चला था।  कोलकाता में एक 15 वर्षीय स्कूली छात्रा के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के मुजरिम धनंजय चटर्जी को 14 अगस्त 2004 को तड़के साढ़े चार बजे फांसी पर लटका दिया गया था। 14 साल तक चले मुक़दमे और विभिन्न अपीलों और याचिकाओं को ठुकराए जाने के बाद धनंजय को कोलकाता की अलीपुर जेल में फांसी दे दी गई थी। धनंजय को अलीपुर जेल में फाँसी के फंदे पर क़रीब आधे घंटे तक लटकाए रखा गया जिसके बाद उसे पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया। कोलकाता के टॉलीगंज के रहने वाले जल्लाद नाटा मलिक ने धनंजय को फाँसी देने का काम अंजाम दिया था। 

रेप पर फांसी का प्रावधान हो-योगी
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि नाबालिग से रेप पर फांसी का प्रावधान हो, इसके लिए वह केंद्र सरकार को पत्र लिखेंगे। उन्होंने कहा कि सभी जिलों के एसपी, डीएम जिले की शैक्षणिक संस्थाओं, व्यापार मंडल, एनजीओ को साथ लेकर जागरूकता फैलाएं। लोगों में सुरक्षा भाव पैदा करने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि स्कूलों चौराहों पर सार्वजनिक स्थलों पर सीसीटीवी लगाए जाएं। प्रदेश की महिला हेल्पलाइन 1090 और डायल 100 के बीच समन्वय बढ़ाया जाए। डॉक्टरों को रेप जैसे मामलों में मेडिकल करते समय संवेदनशीलता बरतने की ट्रेनिंग दी जाए। योगी ने कहा कि ऐसे मामलों की क़ानूनी प्रक्रिया पर पैनी निगरानी की जाए और उसका फॉलोअप किया जाए। साथ ही ऐसे मनोवृति वाले लोगों में भय पैदा करने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर फुट पेट्रोलिंग हो। डायल 100 के वाहन भी सक्रिय रहें। ऐसी घटनाओं मे कांस्टेबल से लेकर अधिकारी तक सबकी जवाबदेही तय होगी। सीएम ने कहा कि एडीजी और आईजी जिलों में जाएं और ज़मीन पर जाकर हालात का जायज़ा ले और कार्रवाई सुनिश्चित करें। सीएम योगी ने कहा कि यह देखना होगा कि समाज में ऐसी मनोवृति क्यों बढ़ रही है और कैसे इस पर अंकुश किया जाएं।
 

मध्यप्रदेश सरकार की पहल 
मध्य प्रदेश सरकार ने 12 साल या उससे कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार के दोषियों को फांसी की सजा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। दण्ड संहिता की धारा 376 AA और 376 DA के रूप में संशोधन किया गया और सजा में वृध्दि के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। इसके अलावा लोक अभियोजन की सुनवाई का अवसर दिए बिना जमानत नहीं होगी। इस विधेयक को विधानसभा में पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। मृत्युदंड को अमल में लाने के लिए दुष्कर्म की धारा 376 में ए और एडी को जोड़ा जाएगा, जिसमें मृत्युदंड का प्रावधान होगा। सरकार ने बलात्कार मामले में सख्त फैसला लेते हुए आरोपियों के जमानत की राशि बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी है। इस तरह मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है, जहां बलात्कार के मामले में इस तरह के कानून के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। साथ ही शादी का प्रलोभन देकर शारीरिक शोषण करने के आरोपी को सजा के लिए 493 क में संशोधन करके संज्ञेय अपराध बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। महिलाओं के खिलाफ आदतन अपराधी को धारा 110 के तहत गैर जमानती अपराध और जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है। महिलाओं का पीछा करने, छेड़छाड़, निर्वस्त्र करने, हमला करने और बलात्कार का आरोप साबित होने पर न्यूनतम जुर्माना एक लाख रुपए लगाया जाएगा।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा , कडा क़ानून बनाइये  
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ऐसा कानून लाने का सुझाव दिया है जिससे नाबालिगों से दुष्कर्म करने वाले को मृत्युदंड दिया जाए ताकि ऐसे अपराध के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संदेश जाए । न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की पीठ ने पिछले साल निचली अदालत द्वारा एक व्यक्ति को सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। जून 2016 में आठ वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म और उसकी हत्या के लिए व्यक्ति को सजा सुनाई गई थी। हालिया वर्षों में बच्चों के खिलाफ अपराध में जबरदस्त बढ़ोतरी का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि उपयुक्त कानून लाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर है जिससे 15 साल या कम उम्र के नाबालिगों से दुष्कर्म के दोषियों पर मृत्युदंड लगाया जा सके। कोर्ट ने कहा कि सख्त कार्रवाई की जरूरत है क्योंकि कई मामले आ रहे हैं जहां 15 साल या उससे कम के पीड़ितों से दुष्कर्म कर हत्या कर दी जाती है। 

फांसी के प्रावधान से कैसे रुकेंगी घटनाएं 
अब प्रश्न यह है कि फांसी की सजा का प्रावधान बना देने भर से क्या ये घटनाएं  जाएंगी ? हत्या के आरोप में फांसी की सजक प्रावधान तो है लेकिन क्या इससे हत्याएं होना बंद हो सका ? एक बार संसद में पूर्व गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि क़ानून चाहे जितने बना लिए जाय , जब तक मामलों के निस्तारण के लिए एक टाइम फ्रेम नहीं तय होगा तब तक कुछ नहीं हो सकता। दिल्ली के निर्भया काण्ड में जिन लीगो को सजा मिली क्या उस पर अमल हो सका ? यह  सवाल मौजूं इसलिए है, क्योंकि जिन बेटियों की लड़ाई में जनता के साथ ने समाज की एक गलीज परत को उघाड़कर रहनुमाओं की प्राथमिकता बदल दी, वह जनता  अपनी लड़ाई में केवल निचले पायदान तक पहुंच पाई हैं। न्याय की चौखट पर उनके सामने अभी इतनी लंबी चढ़ाई बाकी है जिसे नाप पाने में शायद उनकी उम्र ही निकल जाएगी. जब तक उन्हें न्याय मिलेगा हो सकता है अपनी जिन बेटियों को आज हम चिंताग्रस्त हो स्कूल भेज रहे हैं, तब तक उनकी शादी की तैयारियों में व्यस्त हों. ये मेरे वक्ती जज्बात नहीं, आकड़े कहते हैं। 

1996 का सूर्यनेल्ली बलात्कार मामला 
 याद कीजिये ,16 बरस की स्कूली छात्रा को अगवा कर 40 दिनों तक 37 लोगों बलात्कार ने किया। कांग्रेस नेता पीजे कुरियन का नाम उछलने से मामले ने राजीनितक रंग भी ले लिया. नौ साल बाद 2005 में केरल हाईकोर्ट ने मुख्य आरोपी के अलावा छोड़ सभी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. विरोध हुआ, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की दोबारा सुनवाई के आदेश दिए, इस बार सात को छोड़ ज़्यादातर को सजा हुई, लेकिन कई आरोपी अभी भी कानून की पहुंच से बाहर हैं. इधर पीड़िता की आधी उम्र निकल चुकी है. उसे ना अपने दफ्तर में सहज सम्मान मिल पाया ना समाज में. पड़ोसियों की बेरुखी से परेशान उसका परिवार कई बार घर और शहर बदल चुका है।

प्रियदर्शनी मट्टू काण्ड
1996 में दिल्ली में लॉ की पढ़ाई कर रही प्रियदर्शनी मट्टू की उसी के साथी ने बलात्कार कर नृशंस हत्या कर दी थी। अपराधी संतोष सिंह जम्मू-कश्मीर के आईजी पुलिस का बेटा है. बेटे के खिलाफ मामला दर्ज होने के बावजूद उसके पिता को दिल्ली का पुलिस ज़्वाइंट कमिश्नर बना दिया गया. ज़ाहिर है जांच में पुलिस ने इतनी लापरवाही बरती कि चार साल बाद सबूतों के अभाव में निचली अदालत ने उसे बरी कर दिया। लोगों के आक्रोश के बाद जब तक मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा संतोष सिंह खुद वकील बन चुका था और उसकी शादी भी हो चुकी थी, जबकि प्रियदर्शनी का परिवार उसे न्याय दिलाने के लिए अदालतों के बंद दरवाजों को बेबसी से खटखटा रहा था. ग्यारहवें साल में हाईकोर्ट ने संतोष सिंह को मौत की सजा सुनाई, जिसे 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद में तब्दील कर दिया. उसके बाद भी संतोष सिंह कई बार पैरोल पर बाहर आ चुका है।

दर्ज मामले  152165 , निपटारा हुआ मात्र 25 का
वैसे भी ये वे  मामले हैं यहां अदालती फाइलों में केस अपने मुकाम तक पहुंच पाया।  नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में देश की विभिन्न अदालतों में चल रहे बलात्कार के 152165 नए-पुराने मामलों में केवल 25 का निपटारा किया जा सका, जबकि इस एक साल में 38947 नए मामले दर्ज किए गए. और ये तो केवल रेप के आंकड़े हैं, बलात्कार की कोशिश, छेड़खानी जैसी घटनाएं इसमें शामिल भी नहीं। 
भारत के हालात बदतर, आंकड़े दे रहे हैं गवाही

 देश में होने वाले रेप की वारदातों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि कड़े कानूनों के बावजूद रेप की वारदातें कम नहीं हो रही हैं. ये आंकड़े मखौल उड़ाते हैं कानून का, और महिला सुरक्षा को लेकर किये जाने वाले तमाम दावों की पोल भी खोलते हैं। साल 2012 में दिल्ली के चर्चित निर्भया गैंगरेप मामले के वक्त भी ऐसा ही माहौल था. लाखों की तादाद में लोग सड़कों पर उतर आये थे. इस खौफनाक मामले के बाद ये जनता के आक्रोश का ही असर था कि वर्मा कमिशन की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने नया एंटी रेप लॉ बनाया. इसके लिए आईपीसी और सीआरपीसी में तमाम बदलाव किए गए, और इसके तहत सख्त कानून बनाए गए. साथ ही रेप को लेकर कई नए कानूनी प्रावधान भी शामिल किए गए. लेकिन इतनी सख्ती और इतने आक्रोश के बावजूद रेप के मामले नहीं रुके।  आंकड़े यही बताते हैं।

 'रेप कैपिटल' दिल्ली
देश की राजधानी दिल्ली में साल 2011 से 2016 के बीच महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में 277 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. दिल्ली में साल 2011 में जहां इस तरह के 572 मामले दर्ज किये गए थे, वहीं साल 2016 में यह आंकड़ा 2155 रहा. इनमें से 291 मामलों का अप्रैल 2017 तक नतीजा नहीं निकला था। निर्भया कांड के बाद दिल्ली में दुष्कर्म के दर्ज मामलों में 132 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. साल 2017 में अकेले जनवरी महीने में ही दुष्कर्म के 140 मामले दर्ज किए गए थे. मई 2017 तक दिल्ली में दुष्कर्म के कुल 836 मामले दर्ज किए गए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर एक घंटे में 4 रेप, यानी हर 14 मिनट में 1 रेप हुआ है. दूसरे शब्दों में, साल 2014 में देश भर में कुल 36975 रेप के मामले सामने आए हैं।

सबसे ज्यादा बलात्कार वाले तीन राज्य
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बलात्कार के मामले 2015 की तुलना में 2016 में 12.4 फीसदी बढ़े हैं. 2016 में 38,947 बलात्कार के मामले देश में दर्ज हुए. मध्य प्रदेश इनमें अव्वल है, क्योंकि बलात्कार के सबसे ज्यादा -   4,882 मामले मध्य प्रदेश में दर्ज हुए. इसके बाद दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश आता है, जहां 4,816 बलात्कार के मामले दर्ज हुए. बलात्कार के 4,189 दर्ज मामलों के साथ महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर रहा. दूसरी ओर दिल्ली को NCRB के सालाना सर्वेक्षण के बाद महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहर माना गया। 
सबसे कम रिपोर्ट होने वाला क्राइम है बलात्कार
दुनियाभर में बलात्कार सबसे कम रिपोर्ट होने वाला अपराध है. शायद इसलिए भी कि दुनियाभर के कानूनों में बलात्कार सबसे मुश्किल से साबित किया जाने वाला अपराध भी है, ये तब जबकि खुद को प्रगतिशील और लोकतांत्रिक कहने वाले देश औरतों को बराबरी और सुरक्षा देना सदी की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं। ज़्यादातर मामलों में पीड़िता पुलिस तक पहुंचने की हिम्मत जुटाने में इतना वक्त ले लेती है कि फॉरेंसिक साक्ष्य नहीं के बराबर बचते हैं. उसके बाद भी कानून की पेचीदगियां ऐसी कि ये जिम्मेदारी बलात्कार पीड़िता के ऊपर होती है कि वो अपने ऊपर हुए अत्याचार को साबित करे बजाय इसके कि बलात्कारी अदालत में खुद के निर्दोष साबित करे।

अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य
यौन उत्पीड़न के खिलाफ काम कर रही अमेरिकी संस्था रेप, असॉल्ट एंड इन्सेस्ट नेशनल नेटवर्क (RAINN) ने यौन अपराधों में सजा से जुड़ा एक दिल दहला देने वाला आंकड़ा जारी किया है. इसके मुताबिक अमेरिका में होने वाले हर एक हजार यौन अपराधों में केवल 310 मामले पुलिस को सामने आते हैं, जिसमें केवल 6 मामलों में अपराधी को जेल हो पाती है, जबकि चोरी के हर हजार मामले में 20 और मार-पीट की स्थिति में 33 अपराधी सलाखों के पीछे होते हैं। बलात्कार को नस्ल और धर्म का चोगा पहनाने से पहले संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट की बात भी करते चलें. ‘Conflict Related Sexual Violence’ नाम की इस रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई है कि आंतरिक कलह या आंतकवाद जनित युद्ध के दौरान यौन हिंसा को योजनाबद्ध तरीके से हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की प्रवृति किस तेजी से बढ़ी है. गृह युद्ध और आतंकवाद से जूझ रहे 19 देशों से जुटाए आंकड़े बताते हैं कि इन क्षेत्रों में बलात्कार की घटनाएं छिटपुट नहीं बल्कि सोची-समझी सामरिक रणनीति के तहत हो रही हैं. सामूहिक बलात्कार, महीनों तक चले उत्पीड़न और यौन दास्तां से जन्में बच्चे और बीमारियां एक नहीं कई पीढ़ियों को खत्म कर रहे हैं. इन घृणित साजिशों के पीछे की बर्बरता को हम और आप पूरी तरह महसूस भी नहीं कर सकते। 

मीडिया की भूमिका पर भी सवाल 
बलात्कार के मामलो में मीडिया की भूमिका को लेकर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। सामान्य जनता इन मामलो में ज्यादातर इस्तेमाल हो जाती है। कुछ ख़ास मामलो को लेकर किसी ख़ास मकसद से एक समूह मीडिया ट्रायल  शुरू करता है और देखते देखते देश और दुनिया में हंगामा खड़ा हो जाता है। इसका सबसे ताजा उदाहरण उन्नाव और कठुआ की घटनाएं हैं। इन्ही दो घटनाओ के समय में बलात्कार जैसे जघन्य तीन  अपराध और भी हुए। एक बिहार के सासाराम में हुआ,  दूसरा नागाव , असोम में और तीसरा नगरोटा जम्मू में। लेकिन दुर्भाग्य देखिये कि इन तीन घटनाओ का राष्ट्रीय मीडिया में कोई जिक्र तक नहीं हो रहा। ये तीनो घटनाएं अत्यंत मासूम बच्चियों के साथ हुयी हैं।  इनमे से एक बच्ची की उम्र 7 वर्ष , एक की 5 वर्ष और एक की  महज 6 वर्ष है। तीनो ही घटनाओ में आरोपी एक ख़ास समुदाय के हैं और बाकायदा नामित हैं। देश के मीडिया , आंदोलनकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओ और आक्रोशित लोगो का आक्रोश इन तीन बच्चियों के लिए क्यों नहीं सामने आ रहा , यह अपने आप में प्रश्न है। 




आसाराम को उम्रकैद

आसाराम को उम्रकैद

आसाराम को उम्रकैद 

जोधपुर।  नाबालिग शिष्या से दुष्कर्म के मामले में आसाराम (80) को दाेषी करार दिया गया है। विशेष एससी-एसटी कोर्ट के जज मधुसूदन शर्मा ने बुधवार सुबह सेंट्रल जेल में कोर्ट लगाकर अपना फैसला सुनाया। जोधपुर की जेल में बंद आसाराम के दो सहयोगियों को भी दोषी ठहराया गया। आसाराम  उम्रकैद की सजा सुनाई गयी है। । फैसले और सजा के खिलाफ आसाराम राजस्थान हाईकोर्ट में अपील कर सकता है। इंदिरा गांधी के हत्यारों, आतंकी अजमल आमिर कसाब और डेरा प्रमुख गुरमीत राम-रहीम के केस के बाद ये देश का चौथा ऐसा बड़ा मामला है, जब जेल में कोर्ट लगी और वहीं से फैसला सुनाया गया। पॉक्सो एक्ट के तहत भी ये पहला बड़ा फैसला है।देश में 12 साल से काम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार के दोषियों को फांसी की सजा के अध्यादेश के बाद यह पहला फैसला है।आसाराम के दोनों साथियों को 20 -20 साल की अजा हुई है।

फैसले की सबसे बड़ी कड़ी 
बता दें कि 21 अगस्त 2013 को आसाराम के खिलाफ नाबालिग छात्रा ने दिल्ली में यौन उत्पीड़न का केस दर्ज कराया था। 31 सितंबर को इंदौर से उसे गिरफ्तार किया गया था। मामले में सेवादार शिवा, शरतचंद्र, शिल्पी और प्रकाश भी आरोपी हैं। कानूनी विशेषज्ञ कह रहे हैं कि आसाराम को 10 साल तक की सजा हो सकती है। इस बीच राजस्थान, गुजरात और हरियाणा हाईअलर्ट पर हैं। पीड़ित लड़की ने 27 दिन की लंबी जिरह में 94 पेज के बयान दिए। पीड़ित पक्ष ने 107 दस्तावेज पेश किए। 58 गवाहों की सूची दी। इनमें से 44 के बयान दर्ज हुए। आसाराम ने 12 बार जमानत की अर्जी दी। 6 अर्जी ट्रायल कोर्ट ने खारिज कीं, 3 राजस्थान हाईकोर्ट ने और 3 सुप्रीम कोर्ट ने। 

यह विदित है कि दुष्कर्म की शिकार लड़की उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की रहने वाली है। आसाराम के समर्थकों ने उसे और उसके परिवार को बयान बदलने के लिए बार-बार धमकाया। त्तर प्रदेश से बार-बार जोधपुर आकर केस लड़ने के लिए उसके पिता को ट्रक तक बेचने पड़े। आसाराम के खिलाफ गवाही देने वाले नौ लोगों पर हमला हुआ। तीन गवाहों की हत्या तक हुई। जान गंवाने वालों में लड़की के परिवार के करीबी दोस्त भी थे। कोर्ट को भी गुमराह करने की कोशिशें हुईं। जांच अधिकारी को बचाव पक्ष के वकीलों ने बार-बार कोर्ट में बुलवाया। एक गवाह को 104 बार बुलाया गया। आसाराम की तरफ से लड़की पर अपमानजनक आरोप लगाए गए। ये तक कहा गया कि मानसिक बीमारी के चलते लड़की की पुरुषों से अकेले मिलने की इच्छा होती है। फिर भी 27 दिन की लगातार जिरह के दौरान पीड़ित लड़की अपने बयान पर कायम रही। उसने 94 पन्नों में अपना बयान दर्ज कराया। आसाराम के वकीलों ने पीड़िता को बालिग साबित करने की हर मुमकिन कोशिश की। लेकिन उम्र पर संदेह की कोई जायज वजह नहीं मिली। जांच अधिकारी ने भी 60 दिन तक हर धारा पर ठोस जवाब दिए। 204 पन्नों में बयान दर्ज हुए।

आसाराम का गुनाह
आसाराम के गुरुकुल में पढ़ने वाली इस शिष्या ने अपने बयान में कहा था, ‘"मुझे दौरे पड़ते थे। गुरुकुल की एक शिक्षिका ने मेरे माता-पिता से कहा कि आसाराम से इलाज कराएं। आसाराम ने मुझे जोधपुर के पास मणाई गांव के फार्म हाउस में लाने को कहा। वहां पहुंचे तो मेरे माता-पिता को बाहर रोक दिया गया। उनसे कहा गया कि आसाराम विशेष तरीके से मेरा अकेले में इलाज करेंगे। इसके बाद मुझे एक कमरे में भेज दिया गया। वहां पर आसाराम पहले से मौजूद था। उसने मेरे साथ अश्लील हरकतें की। साथ ही धमकी दी कि यदि मैं चिल्लाई तो कमरे से बाहर बैठे उसके माता-पिता को मार दिया जाएगा। मुझे ओरल सेक्स करने को कहा गया, लेकिन मैंने मना कर दिया।’’

वजह, जिनके चलते दोष साबित हुआ
जहां लाखों लोगों की आस्था जुड़ी होती है, उसका अपराध ज्यादा गंभीर माना जाता है।
जिसके संरक्षण में नाबालिग रहता है, वही उसका शोषण करे तो और भी संगीन है।


न्यायिक और पुलिस अकादमियों में पढ़ाया जाएगा यह फैसला
2012 में बने पॉक्सो एक्ट और 2013 में "द क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट" प्रभाव में आने के बाद ही आसाराम के खिलाफ केस दर्ज हुआ था। उसके खिलाफ आईपीसी की 376, 376(2)(f), 376(d) और पॉक्सो एक्ट की 5(f)(g)/6 व 7/8 धाराएं भी इन नए बदलावों के तहत लगी थी। ऐसे में इस केस में जो भी फैसला होगा, वह देश की न्यायिक और पुलिस अकादमियों में पढ़ाया जाएगा।

आसाराम के दो साथी भी दोषी करार
 अासाराम के अलावा उसके सेवादार शिल्पी और शरतचंद्र को भी दोषी करार दिया गया है। इन दोनों ने लड़की को आसाराम तक पहुंचाने में मदद की थी। वे गिरोह बना कर दुष्कर्म करने की धारा 376डी के तहत दोषी साबित हुए।
कोर्ट ने सेवादार शिवा और रसोइया प्रकाश को बरी कर दिया गया।

इसी जेल में बनी थी टाडा कोर्ट
जोधपुर की जेल का जो हॉल कोर्ट रूम बना, उसी हॉल में 31 साल पहले टाडा कोर्ट बनी थी और कठघरे में अकाली नेता गुरचरणसिंह टोहरा खड़े थे।
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दिल्ली पुलिस ने 19 अगस्त 2013 की रात को नाबालिग का मेडिकल कराया और 20 अगस्त 2013 को आसाराम के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। पुलिस ने 20 अगस्त 2013 को ही नाबालिग के मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराए थे। इसके बाद 21 अगस्त 2013 को यह एफआईआर जोधपुर स्थानांतरित कर दी गई थी।

12 जमानत याचिकाएं
इस मामले में न्यायिक हिरासत के तहत साल 2013 से जेल में बंद आसाराम के पक्ष की ओर से 12 जमानत याचिकाएं डाली गई लेकिन सभी अर्जियां विभिन्न अदालतों से खारिज होती गईं। ट्रायल कोर्ट से छह जबकि राजस्थान हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से तीन-तीन जमानत याचिकाएं समय समय पर खारिज कर दी गईं।

 दिग्गज वकील भी रहे फेल
आसाराम को राम जेठमलानी, सुब्रह्मण्यम स्वामी, सलमान खुर्शीद, के. के. मनन, राजु रामचंद्रन, सिद्धार्थ लूथरा, के. एस. तुलसी सहित देश के कई जाने माने वकील भी जमानत दिलाकर जेल से बाहर निकालने में फेल साबित हुए।

सुप्रीम कोर्ट से मिला था तगड़ा झटका
आखिरी बार 30 जनवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने जबर्दस्त फटकार लगाते हुए मेडिकल ग्राउंड पर आधारित जमानत याचिका खारिज कर दी और एक लाख रुपए तक का जुर्माना भी ठोक दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम के स्वास्थ्य से जुड़े फर्जी दस्तावेज पेश करने के मामले में नई एफआईआर भी दर्ज करने के निर्देश दिए।

एक के बाद एक मरते चले गए गवाह
जोधपुर की सेंट्रल जेल में बंद आसाराम मामले की सुनवाई चल रही थी, वहीं बाहर एक के बाद एक गवाह मारे जा रहे थे और कई हमलों में गम्भीर घायल हो गए। कुछ गवाह तो ऐसे गायब हुए कि अब तक उनका पता नहीं चल सका  है। आसाराम बापू रेप केस के मुख्य गवाह 35 वर्षीय कृपाल सिंह को 10 जुलाई 2015 को शाहजहांपुर में अज्ञात बाइक सवार हमलावरों ने गोली मार दी थी। बरेली में निजी अस्पताल में इलाज के दौरान 11 जुलाई 2015 को उसकी मौत हो गई। कुछ दिन बाद पुलिस ने पुष्पेंद्र को जोधपुर से गिरफ्तार किया और शाहजहांपुर लेकर आई और यहां पुलिस द्वारा पूछताछ के दौरान उसने कृपाल सिंह की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली।

आसाराम मामले में मुख्य गवाह कृपाल सिंह की मौत तीसरा मामला था। इससे पहले दो गवाहों की भी मौत हो चुकी थी। मामले की सुनवाई के दौरान 9 गवाहों पर जानलेवा हमले भी हुए थे। आसाराम के खिलाफ गवाही देने वाले उनके पूर्व वैद्य अमृत प्रजापति पर कातिलाना हमला किया गया, जिसमें इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। गवाह महेन्द्र सिंह चावला पर भी जानलेवा हमला हुआ और वह गंभीर रूप से घायल हुए। गवाह राहुल के. सच्चान पर जोधपुर कोर्ट परिसर में गवाही देने के दौरान चाकुओं से हमला किया गया। वह गंभीर रूप से घायल हो गया, जिसका इलाज जोधपुर के अस्पताल में करवाया गया। लेकिन उसके बाद वह कहां गया, पुलिस को अब तक पता नहीं चल पाया है।

साढ़े चार साल से अपने ही घर में जी रहे जेल का जीवन
शाहजहांपुर में पीड़िता के घर के घर सन्नाटा था। घर के बाहर पुलिस तैनात थी। फैसले के मद्देनजर सरगर्मी बढ़ी तो महिला पुलिस भी लगा दी गई। किसी बाहरी को जाने नहीं दिया जा रहा। शक है कि शहर में आसाराम के समर्थक छुपे हो सकते हैं। इस बीच प्रशासन ने पीड़िता के भाई को दो दिन पहले हथियार का लाइसेंस दे दिया। पीड़िता की मां ने बताया कि वो साढ़े चार साल से अपने ही घर में जेल की तरह रह रहे हैं। इस दौरान बेटी ने मोबाइल तक नहीं छुआ। वह काफी तकलीफों से गुजरी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। पीड़िता के परिवार ने बताया कि कि साढ़े चार साल से हमारे परिवार के दिन कैद में गुजर रहे हैं। हम इन सालों के बारे में क्या बताएं। उसकी माँ कहती हैं कि हमारी बेटी तो किसी बाहरी आदमी से बात तक नहीं करती। मैं भी किसी तरह दिनभर के कामों में खुद को उलझाए रखती हूं। पहले की तरह हम घर के बाहर घूम नहीं सकते। 24 घंटे सिक्युरिटी में रहना पड़ता है। आम आदमी की तरह कहीं जा नहीं पाते। अपना ही घर जेल जैसा लगता है। मेरी बेटी ने तो साढ़े चार साल से मोबाइल तक नहीं छुआ। जब बेटी घर से बाहर ही नहीं निकल पाती तो करेगी क्या? उसे बहुत तकलीफ होती है, लेकिन बेटी ने हिम्मत नहीं हारी है।"
वह कहती हैं कि  हम तो जल्द से जल्द चाहते हैं कि इस केस से पीछा छूटे... बस। बेटे को तो आए दिन धमकी मिलती रहती है। हम बाहर होते हैं, तो डर लगा रहता है। लोग कहते हैं कि फैसले के बाद मेरी बेटी अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करेगी... पर मैं कहती हूं कि अपनी जिंदगी में इतना पीछे होने के बाद कोई कैसे आगे बढ़ सकता है। अगर फैसला हमारे पक्ष में भी आ गया तो क्या होगा... हमारे सोचने से कुछ नहीं होता है। ईश्वर साथ है। उसके पिता का कहना है कि पांच साल से आसाराम क्या जेल में है? जेल में तो हम हैं। मेरी बेटी इस घटना की बात करने मात्र से गुस्से में आ जाती है। फैसले को लेकर पूरा परिवार भयभीत और डिप्रेशन में है। बच्ची सो नहीं पाती है, कई मीडिया वाले आ चुके हैं, किसी से बात नहीं की, और क्या बात करें? अदालत से अर्ज करते हैं कि आरोपियों को उम्रकैद की सजा दे, ताकि जिन्हें लोग भगवान माने वे शैतान न बन पाए।

पुलिस छावनी बना पीड़िता का घर
शाहजहांपुर में पीड़िता का घर पुलिस छावनी बना हुआ है, यहीं से पांच-छह किमी दूर बरेली रोड पर आसाराम का आश्रम भी पुलिस से घिरा हुआ है। जोधपुर जैसा है आशंकित शाहजहांपुर भी है।यहां की पुलिस बताती है कि शहर में कई जगह आसाराम के समर्थक छुपे हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने पूरे परिवार को सुरक्षा घेरे में ले रखा है।

पिता ने कहा- हमें इंसाफ मिला
फैसले के बाद पीड़ित लड़की के पिता ने कहा कि हमें इंसाफ मिल गया। जिन्होंने हमारी इस लड़ाई में मदद की, उनका शुक्रिया। उम्मीद है कि आसाराम को कठोर दंड मिलेगा। मुझे ये भी उम्मीद है कि चश्मदीदों को भी न्याय मिलेगा।
 

आसाराम के लिए जेल भी आश्रम जैसा
 पीड़ित परिवार और गवाह पांच साल से दहशत में है। आसाराम के खिलाफ कई मामलों में अब तक 9 गवाहों पर हमले हो चुके हैं, लेकिन आसाराम खुद जेल में सुरक्षित, बिंदास और स्वस्थ है। जेल का एक पुराना वीडियो है जिसमें आसाराम गाते और तालियां बजाते हुए दिखता है। जबकि, उसने त्रिनाड़ीशूल बीमारी का बहाना बना कर जमानत लेने की नाकाम कोशिश की थी। उसका खाना आश्रम से आता है। कैदियों को प्रसाद में देने के लिए उसके पास टॉफियां और ड्राइफ्रूट भी उपलब्ध है। इस केस का आरोपी प्रकाश फरवरी 14 में जमानत होने के बावजूद बाहर नहीं आया, हर वक्त उसकी सेवा में लगा रहता है। जेल में उसका समानांतर सिक्युरिटी सिस्टम चलता था। पहले दो साल तक तो समर्थक शहर में उत्पात मचाकर धारा 151 में गिरफ्तार होकर जेल पहुंच जाते थे और आसाराम से बदतमीजी करने वालों की पिटाई करते थे। यह बात पुलिस को पता चली तो समर्थकों को जेल भेजना बंद कर दिया। जेल डीआईजी विक्रमसिंह बताते हैं कि सुरक्षा के कारणों से आसाराम को दूसरे कैदियों से अलग रखा है, तीन साल पहले ऐसी घटनाएं होती थी।

फिल्मो से संसद तक वाया सरोज और रेणुका

फिल्मो से संसद तक वाया सरोज और रेणुका

फिल्मो से संसद तक वाया सरोज और रेणुका 
संजय तिवारी 
इसे विडम्बना कहें या प्रगतिशीलता का विकृत स्वरुप। दुःख व्यक्त करें , गुनान करें। करें तो क्या करें।  लगता तो यह है कि पूरे कुएं में भांग पड़ चुकी है। भारत की स्वाधीनता के 70 वर्षो में हम किस तरह के समाज का निर्माण कर सके और कैसी सभ्यता विकसित कर रहे हैं। यह कितनी बड़ी विद्रूपता है कि फ़िल्मी दुनिया की सरोज खान जब वहां कास्टिंग काउच की चर्चा करती हैं तो देश की एक बड़ी राजनेता रेणुका चौधरी स्वीकार करती हैं कि संसद भी इससे अछूती नहीं है। सरोज के बयान पर फ़िल्मी जगत में तो हलचल भी है लेकिन रेणुका चौधरी की स्वीकारोक्ति के बाद राजनीतिक जमात को साप सूंघ गया है। कोई प्रतिक्रया तक नहीं। ये दोनों बयान ऐसे माहौल में आये हैं जब देश में महिलाओ के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार जैसे मुद्दे पर बवाल मचा हुआ है।
 


पिछले दिनों पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान  प्रख्यात कोरियोग्राफर सरोज खान ने कास्टिंग काउच पर एक विवादित बयान दिया है और इस बयान के जारी होते ही बवाल भी खड़ा हो गया है। इंटरव्यू में सरोज खान ने कास्टिंग काउच को गलत नहीं ठहराया। उन्होंने कहा कि कास्टिंग काउच होना कोई नई बात नहीं है। हर लड़की के ऊपर कोई न कोई हाथ साफ करने की कोशिश करता है। सरकार के लोग करते हैं फिर आप लोग फिल्म इंडस्ट्री के पीछे क्यों पड़े रहते हो। फिल्म जगत कम से कम रोटी तो देता है, रेप करके छोड़ तो नहीं देता। ये सब लड़की के ऊपर होता है कि वो क्या चाहती है। अगर वो किसी के हाथ नहीं आना चाहती तो न आए। सरोज के इस विवादित बयान को पढ़कर लोग भड़क गए और सोशल मीडिया पर अपनी राय रखने लगे। सरोज जी के इस बयान के बाद बॉलीवुड सेलेब्रिटीज ने उन्हें खरी-खोटी सुनाई।  सरोज खान ने अपने इस बयान के बाद माफी भी मांग ली ।


संसद भी अछूती नहीं : रेणुका चौधरी 

इसी कड़ी में पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिठ  कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी ने सरोज खान के बयान का यह कहकर समर्थन किया है कि कास्टिंग काउच सिर्फ फिल्‍म इंडस्‍ट्री तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ऐसा लगभग हर क्षेत्र में होता है जो एक कड़वा सच है। रेणुका चौधरी ने एक बयान में कहा, 'देखिए, कास्टिंग काउच सिर्फ फिल्‍म इंडस्‍ट्री में ही नहीं होता है। महिलाओं के साथ ऐसा हर क्षेत्र में हो रहा है। ये हमारे समाज का एक कड़वा सच है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। अगर आप यह सोचते हैं कि देश की संसद या कोई और काम की जगह इससे बची है, तो ऐसा बिल्‍कुल नहीं है। हर क्षेत्र में महिलाओं के साथ शोषण होता है। अब समय आ गया है लोग सामने अाएं और बताएं कि उनके साथ कब और कहां ऐसा हुआ। रेणुका चौधरी के बयान से जाहिर होता है कि राजनीति में भी कास्टिंग काउच का गंदा खेल खेला जाता है। इससे पूर्व भी रेणुका चौधरी ऐसे बयान दे चुकी हैं। अदालत के एकफैसले के बाद उन्होंने कहा था कि   बालिग लड़कियां सहमति से यौन संबंध बना सकती हैं और इसके लिए महिलाओं को कोर्ट के अनुमोदन की जरूरत नहीं है। कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी ने दिल्ली की एक अदालत के फैसले पर टिप्पणी करते हुए सह बात कही। कोर्ट ने कहा था, 'कुछ मामलों में सामने आया है कि पहले महिलाएं सहमति से संबंध बनाती हैं और बाद में इसे दुष्कर्म का नाम दे देती हैं। कोर्ट ने यह भी कहा था कि लड़कियों को सदाचार और सामाजिक आधार पर भी शादी से पहले संबंध स्थापित नहीं करने चाहिए। चौधरी के मुताबिक, इसमें कुछ हद तक सच्चाई भी हो सकती है कि पहले महिलाएं सहमति से संबंध बनाती हों और बाद में बदल जाती हों, लेकिन यह पूरी तरह से लागू होने वाला सच नहीं है। फिर भी मैं फैसले और जज की टिप्पणी पर कुछ नहीं कह सकती। मैं सिर्फ इतना कह सकती हूं कि महिलाओं के सामने बड़ी चुनौती है। साथ ही, महिलाओं को सहमति से यौन संबंध बनाने का अधिकार है। हमें 18 वर्ष की आयु के बाद इसके लिए किसी की अनुमति की जरूरत नहीं है और न ही अदालत के फैसले या अनुमोदन की दरकार है।

कौन हैं सरोज खान
 सरोज खान 2000 से भी ज्यादा गानों को कोरियोग्राफ कर चुकीं हैं। उनका जन्म 22 नवंबर, 1948 को हुआ था। उनका असली नाम निर्मला नागपाल है। पार्टिशन के बाद सरोज का परिवार पाकिस्तान से भारत आ गया था। महज 3 साल की उम्र में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट सरोज ने करियर की शुरुआत फिल्म 'नजराना' से की थी। सरोज खान ने 13 साल की उम्र में इस्लाम कबूल कर 43 साल के डांस मास्टर बी सोहनलाल से शादी की थी। सरोज की उम्र से लगभग 30 साल बड़े सोहनलाल की यह दूसरी शादी थी। वे पहले ही चार बच्चों के पिता थे। एक इंटरव्यू में सरोज ने बताया था कि 13 साल की उम्र में वे स्कूल जाया करती थीं और शादी के मायने नहीं जानती थी। एक दिन उनके डांस मास्टर सोहनलाल ने उनके गले में काला धागा बांध दिया था, ऐसा करने पर सरोज को लगा कि उनकी शादी हो गई।

अभिनेत्री  श्रीरेड्डी ने खुल कर की बात
सरोज के इस बयान को लेकर दक्षिण भारत की अभिनेत्री श्री रेड्डी ने प्रतिक्रया व्यक्त किया है।  श्री रेड्डी ने कहा, 'मैं आपकी बहुत इज्जत करती हूं सरोज मैम। एक बड़ी पर्सनैलिटी और बुजुर्ग होने के नाते आपको नए एक्टर्स को सही रास्ता दिखाना चाहिए। एक्टर्स को प्रोड्यूसर का स्लेव होना चाहिए, ये बात गलत इंडिकेशन दे रहा है।' आपको बता दें कि पिछले दिनों श्री रेड्डी ने तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी। श्री रेड्डी सुर्खियों में तब आई थीं जब उन्होंने अपना विरोध जताने के लिए बीच सड़क अपने कपड़े उतारना शुरू कर दिया था। एक्ट्रेस श्री रेड्डी ने कास्टिंग काउच के मामले पर कोई एक्शन नहीं लेने के आरोप के तहत ऐसा कदम उठाया था। एक्ट्रेस ने शोषण करने वाले इंडस्ट्री के कई बड़े नामों का खुलासा करने की धमकी भी दी थी। उन्होंने कई टॉप साउथ की फिल्मों के निर्माताओं, निर्देशकों और एक्टर्स पर काम के बदले यौन शोषण करने का आरोप लगाया है। एक्ट्रेस ने मांग की है कि फिल्म उद्योग में मूल तेलुगू स्ट्रग्लिंग एक्टर्स को 75 प्रतिशत मौका दिया जाना चाहिए और तेलुगू फिल्म चैंबर में भी सदस्यता देनी चाहिए।


एक अन्य अभिनेत्री ने साझा किये अपने  अनुभव
सरोज खान के इस बयान के बाद एक अभिनेत्री ने भी अपने अनुभव  शेयर किया है । इस इस अभिनेत्री ने एक विदेशी समाचार एजेंसी को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि कैसे एक शख्स ने उसे काम देने के बहाने उसके कपड़ों के अंदर हाथ डाल दिया था । एक्ट्रेस ने बताया, 'एक कास्टिंग एजेंट ने मुझसे कहा कि तुम मुझे पसंद हो । लेकिन मैं तुम्हारे साथ संबंध बनाना चाहता हूं । जब मैंने इसका विरोध किया तो उसने कहा कि ना कहोगी तो मेरी फिल्म में रोल नहीं मिलेगा । मेरी मर्जी के खिलाफ उसने मेरे शरीर को छुआ ।' एक्ट्रेस आगे कहती है, 'उसने मुझे किस किया । मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था और तभी उसने मेरे कपड़ों के अंदर हाथ डाल दिया।' जब एक्ट्रेस से पूछा गया कि उन्होंने इसके खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाई तो उनका जवाब चौंकाने वाला था । एक्ट्रेस ने कहा, 'अगर मैं ये बात सबसे बताती तो उल्टा मुझे ही ब्लेम किया जाता । लोग सोचते कि मेरे अंदर टैलेंट नहीं है । इसलिए ऐसा हुआ । मेरा करियर बर्बाद हो जाता ।' वहीं एक और एक्ट्रेस ने बताया कि एक कास्टिंग एजेंट ने मुझसे कहा कि एक्ट्रेस बनना है तो ये सब करना पड़ेगा । जब एक्ट्रेस ने कास्टिंग एजेंट को मना कर दिया तो उसने कहा कि फिल्म इंडस्ट्री में रहने के लिए तुम्हारा ये एटिट्यूड ठीक नहीं है । इसके बाद एक्ट्रेस ने उसकी फिल्म छोड़ दी । हालांकि इस एक्ट्रेस को करियर बर्बाद करने की धमकी भी दी गई थी।

कोट :
'बॉलीवुड में कुछ लोग खुद को भगवान समझते हैं । एक्टर या एक्ट्रेस इस डर से नहीं बोलते कि उन्हें काम मिलना बंद हो जाएगा । अगर सभी साथ मिलकर इसके खिलाफ आवाज उठाएं तो कास्टिंग काउच जैसे शब्द को खत्म किया जा सकता है ।'
राधिका आप्टे
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संकट में पान : कैसे होंगे किमामी गिलौरियों से होठ लाल लाल

संकट में पान : कैसे होंगे किमामी गिलौरियों से होठ लाल लाल

संकट में पान : कैसे होंगे किमामी गिलौरियों से होठ लाल लाल 

संजय तिवारी 
 खाइके पान बनारसवाला से लेकर पान खाएं सईया हमार जैसे लहरवा गीतों की धूम से सभी वाकिफ हैं। पान और पान लाली के साथ किमाम की खुशबुओं से भरी गिल्लौरियो को लेकर न जाने कितनी कहानियां लिखी जा चुकी हैं। पान भारतीय जीवन शैली में गजब का किरदार रहा है। बनारस और लखनऊ जैसे शहरो की पहचान में पान भी एक रंगीन निशानी है। किमामी गिलौरियों के बिना न लखनऊ की महफ़िलें संभव हैं और न ही बनारसी सुबह। 
भारत में पान खाने की प्रथा कब से प्रचलित हुई इसका ठीक ठीक पता नहीं चलता। परंतु "वात्स्यायनकामसूत्र" और रघुवंश आदि प्राचीन ग्रंथों में "तांबूल" शब्द का प्रयोग मिलता है। इस शब्द को अनेक भाषाविज्ञ आर्येतर मूल का मानते है। बहुतों के विचार से यवद्वीप इसका आदि स्थान है। तांबूल के अतिरिक्त नागवल्ली, नागवल्लीदल, तांबूली, पर्ण (जिससे हिंदी का पान शब्द निकला है), नागरबेल (गुजराती) आदि इसके नाम हैं। यह औषधीय काम में भी आता है पर इसका सर्वाधिक उपयोग के लिये होता है।

नागवल्ली नामक लता का पत्ता
पान भारत के इतिहास एवं परंपराओं से गहरे से जुड़ा है। इसका उद्भव स्थल मलाया द्वीप है। पान विभिन्न भारतीय भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे ताम्बूल (संस्कृत), पक्कू (तेलुगू), वेटिलाई (तमिल और मलयालम) और नागुरवेल (गुजराती) आदि। पान का प्रयोग हिन्दू संस्कार से जुड़ा है, जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत आदि। वेदों में भी पान के सेवन की पवित्रता का वर्णन है। यह तांबूली या नागवल्ली नामक लता का पत्ता है। खैर, चूना, सुपारी के योग से इसका बीड़ा लगाया जाता है और मुख की सुंदरता, सुगंधि, शुद्धि, श्रृंगार आदि के लिये चबा चबाकर उसे खाया जाता है। इसके साथ विभिन्न प्रकार के सुगंधित, असुगंधित तमाखू, तरह तरह के पान के मसाले, लवंग, कपूर, सुगंधद्रव्य आदि का भी प्रयोग किया जाता है। मद्रास में बिना खैर का भी पान खाया जाता है। विभिन्न प्रदेशों में अपने अपने स्वाद के अनुसार इसके प्रयोग में तरह तरह के मसालों के साथ पान खाने का रिवाज है। जहाँ भोजन आदि के बाद, तथा उत्सवादि में पान बीड़ा लाभकर और शोभाकर होता है।  

पान की तरह तरह की किस्में
पान की तरह तरह की किस्में और इसकी अलग अलग शैलियाँ भारतीय लोकजीवन में एक अलग प्रकार का समाज बुनती हैं। आज भी इसके शौक़ीन कम नहीं है। लेकिन अब ऐसी परिस्थितियां बनती जा रही हैं कि पान की कई किसमें संकट में आ गयी है। इन्ही मे से एक है  बुंदेलखंड की पहचान देशावरी पान। यह आल्हा ऊदल की धरती महोबा की पहचान के रूप में भी स्थापित है। अन्य पान की बात करें तो सांची पान मोटा, हरा तथा अधिक रेशेदार होता है। कपूरी पान हल्का कड़वा होता है। पत्ती हल्के पीले रंग की होती है। बांग्ला पान का स्वाद कड़वा होता है। सौंफिया पान में रेशे कम होते हैं, सौंफ की सुगंध तथा मीठे स्वाद का होता है। पत्ता गहरे हरे रंग का होता है। 
भारत के आलावा  बर्मा, सिलोन आदि में पान की अघिक पैदायश होती है। इसकी खेती कि लिये बड़ा परिश्रम अपेक्षित है। एक ओर जितनी उष्णता आवश्यक है, दूसरी ओर उतना ही रस और नमी भी अपेक्षित है। देशभेद से इसकी लता की खेती और सुरक्षा में भेद होता है। पर सर्वत्र यह अत्यंत श्रमसाध्य है। इसकी खेती के स्थान को कहीं बरै, कहीं बरज, कहीं बरेजा और कहीं भीटा आदि भी कहते हैं। खेती आदि कतरनेवालों को बरे, बरज, बरई भी कहते हैं। सिंचाई, खाद, सेवा, उष्णता सौर छाया आदि के कारण इसमें बराबर सालभर तक देखभाल करते रहना पड़ता है और सालों बाद पत्तियाँ मिल पानी हैं और ये भी प्राय: दो तीन साल ही मिलती हैं। कहीं कहीं 7-8 साल तक भी प्राप्त होती हैं। कहीं तो इस लता को विभिन्न पेड़ों-मौलसिरी, जयंत आदि पर भी चढ़ाया जाता है। इसके भीटों और छाया में इतनी ठंढक रहती है कि वहाँ साँप, बिच्छू आदि भी आ जाते हैं। इन हरे पत्तों को सेवा द्वारा सफेद बनाया जाता है। तब इन्हें बहुधा पका या सफेद पान कहते हैं। बनारस में पान की सेवा बड़े श्रम से की जाती है। मगह के एक किस्म के पान को कई मास तक बड़े यत्न से सुरक्षित रखकर पकाते हैं जिसे "मगही पान" कहा जाता है और जो अत्यंत सुस्वादु एवं मूल्यवान् जाता है।

महोबा के पान का नौ सौ साल पुराना  इतिहास 
लगभग नौ सौ साल पुरानी यह फसल आज संकट में है। मौसम की मार और सिंचाई संसाधनों के अभाव में पान किसान तबाह हो गए हैं। नौवीं शताब्दी से चली आ रही पान की खेती अब सिमट कर रह गई है। सरकार की ओर से अनुदान की घोषणा की गई है तो उम्मीद लगाई जा रही है कि पान की खेती से किनारा कर रहे किसान फिर इससे जुड़ेंगे, साथ ही नए किसान भी।

600 से घटकर अब 60 एकड़ में ही खेती
एक अनुमान के अनुसार महोबा में 1960 के आस-पास लगभग 150 एकड़ क्षेत्र में पान की खेती होती थी। 70 से 80 के दशक में रकबा चार सौ एकड़ के करीब पहुंच गया। वर्ष 2000 में यह करीब 600 एकड़ था। इसके बाद मौसम की मार और शासन की उपेक्षा से लगातार रकबा घटता रहा। अब 60 एकड़ के करीब ही पैदावार बची है। पान की खेती अतिवृष्टि, अनावृष्टि, पाला, गर्मी, आग, आंधी, तूफान एवं ओलावृष्टि आदि कारणों से चौपट हो गई। हालात अब भी नहीं बदले हैं। किसान रज्जू, राजेंद्र, अरविंद, महेश चौरसिया का कहना है कि अब पान कृषक भुखमरी के कगार पर जा पहुंचे हैं।

जो गिर कर टुकड़े-टुकड़े हो जाए वह देशावरी
पान जो गिरकर टुकड़ेटुकड़े हो जाए, वही महोबा का करारा देशावरी पान है। देशावरी पान में करारापन, कम रेशे, हल्की कड़वाहट होती है। पत्ता गोल व नुकीला होता है।

इतिहास के आईने में पान
कभी महोत्सव नगर के नाम से मशहूर रहा बुंदेलखंड का यह इलाका चंदेल और प्रतिहार शासकों का गढ़ रहा था। खजुराहो, कालिंजर, चित्रकूट, गोरखगिरी पर्वत, आल्हा-ऊदल... यहां के चप्पे-चप्पे पर इतिहास की छाप है। महोबा में पान का युद्ध संस्कृति से भी नाता रहा है। रिवाज था कि किसी से युद्ध करना हो तब चांदी के थाल में पान रखा जाता था। इसे बीड़ा कहते थे जो वीरों के लिए चुनौती के रूप में आता था। महोबा के पान के लिए जंग भी हो गईं।

राजस्थान से पहुंचा था बुंदेलखंड
नौवीं सदी में महोबा में चंदेल नरेश ने पान की बेल राजस्थान के उदयपुर-बासवाड़ा से यहां मंगाई थी और गोरखगिरी के पश्चिमी क्षेत्र में रोपित कराई था। बुंदेलखंड में पछुआ व दक्षिणी हवाएं ज्यादा ही गर्म होती हैं, इसलिए पान के बरेज मदनसागर, कीरत सागर व अन्य सरोवरों के किनारे-किनारे लगाई गईं ताकि पर्याप्त सिंचाई हो सके। चंदेल शासन में पान कृषि का महत्वपूर्ण अंग था।

दरीबा पान विपणन केंद्र
वर्ष 1905 के गजेटियर में महोबा को दरीबा पान विपणन केंद्र कहा गया। यहीं से पान रेलमार्ग से दिल्ली, मुंबई, सूरत, पुणे तथा देश के विभिन्न शहरों व पाकिस्तान आदि देशों को सप्लाई होता था।

बाराबंकी में भी सिमट गयी पान की खेती 
मुग़ल काल में बाराबंकी का पान ही लखनऊ और बनारस में उपलब्ध होता था। तब यहां के ज्यादातर किसान पान की खेती किया करते थे, लेकिन अब यहाँ मात्र एक दो किसान ही पान की खेती करते हैं। प्रदेश की राजधानी से बिलकुल सटे बाराबंकी जिलामुख्यालय से 32 किलोमीटर की रेहरिया गाँव विकास खन्ड बनीकोडर मे स्थित है। यहां के कई परिवार आज भी दादा परदादाओ के जमाने से पान की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन पान की खेती करने वाले किसानों की मानें तो खेती के लिए पर्याप्त पूंजी के अभाव में अब वे अपनी परम्परागत खेती छोड़कर नई पीढ़ी दिल्ली और मुम्बई में मजदूरी करने के लिए जाने पर मजबूर हो रहे हैं। इस जिले में हजार एकड़ से सिमट कर अब पान की खेती कुल 50 एकड़ में रह गयी है। 

रामसनेहीघाट के बनीकोडर का इलाका मशहूर 
बाराबंकी में  पान की खेती के लिये तहसील रामसनेहीघाट के बनीकोडर का इलाका काफी मशहूर है। इसमें भी बनारस और महोबा के पान की जानी मानी प्रजातियां की पौध को मंगाकर यहां खेती किया जा रहा है। पान की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि सरकार का सहयोग नहीं मिल रहा है। पान की खेती को बचाने के लिए की गई सरकार कई घोषणाओं के बावजूद इसमें सुधार नहीं हो रहा है

किसानो तक नहीं पहुंची सरकारी योजनाएं 
रेहरिया गाँव के किसान विक्रम (48 वर्ष) बताते हैं, "इस खेती को सुधारने के लिए जो घोषणाएं होती रहती हैं। लेकिन हम पान किसानों के पास अभी तक नहीं पहुंची हैं। न हम लोगो को किसी प्रकार से सरकार से अनुदान मिलता है और न नई तकनीक से खेती करने के गुर बताए जाते हैं हम लोग अब भी पुराने तौर तरीकों से खेती करते है जिससे अब सही उत्पादन  कम होता है।विक्रम बताते हैं कि यहाँ पान का  सही मूल्य नहीं मिल पाता है, जिसे बेचने के लिये फैजाबाद जाना पड़ता है फैजाबाद में पान की छोटी मंडी लगती है और पान की बड़ी मंडी बनारस मे लगती है लेकिन दूर होने के कारण बनारस न जा करके फैजाबाद की मंडी करते हैं यहीं पर पान बेचते हैं।

गुटखा ने भी बहुत मारा
पान की खेती पर गुटखा पाउच का भी खूब असर पड़ा है। पान की गुमटियों में गुटके की उपलब्धता ने पारम्परिक पान खाने वालो की संख्या घटा दी है। रेहरिया  के एक पान उत्पादक राम प्रकाश (50 वर्ष) कहते हैं कि पान की खेती करने वाले किसानों ने गुटखा को लेकर काफी विरोध जताया। इसके लिए गांधीवादी तरीका अपनाया गया। इसके तहत दुकान से गुटखा खरीदने वाले को मुफ्त में पान के एक दर्जन पत्ते दिए जाते थे, लेकिन विरोध की यह आवाज भी दबकर रह गई।

बाबरी और भंवरी - 6

बाबरी और भंवरी - 6

वरिष्ठ पत्रकार भाई राघवेंद्र दुबे इन दिनों एक अति गंभीर श्रंखला लिख रहे है। उनकी भीत पर इसकी 6 किस्तें दिख रही हैं। उनके सवालो को उत्तेर की तलाश भी है।  कौन दे सकेगा ? उसी श्रंखला का सांसे ताजा हिस्सा यहाँ प्रस्तुत है।  पढ़िए जरूर -
बाबरी और भंवरी - 6


ख्वाबों के बुनकरी की एक और बानगी ।
प्रधानसेवक ने कहा --
' मैं अम्बेडकर की वजह से प्रधानमंत्री बना ।'
सवाल यह है कि राम ( कबीर के
राम नहीं ) क्या फिलवक्त मुल्तवी
कर दिये गये । क्या हालिया या नये सिरे से उठ खड़े
दलित विमर्श के दवाब में यह नया पैंतरा है ?
और अगर " राम ' या राममंदिर ही
2019 के लोकसभा चुनाव का
सर्वाधिक जिताऊ कार्ड बनना है तो राम और
शम्बूक को एक पांत
करने , कथित समरसता लाने ( वस्तुतः भाजपा फोल्ड में ) की हर कोशिश , वृहत्तर दलित समाज में छुपी रह जायेगी ?
भाजपा यह क्यों नहीं
समझ पा रही कि इतिहास वहां पहुंच चुका है कि यदि देश ने अपना
सामाजिक पुनर्गठन नहीं किया तो
विघटित हो सकता है । अतीत गौरव की कहानियां और सम्मान
की सांकेतिक पहल ( चप्पल पहनना ) बहुत दूर तक नहीं जायेगी । हम भारत के जिस इतिहास को मिथ कथाओं में
बदल कर महिमामण्डित कर रहे
हैं , वह अपने को नये ढंग से समझे जाने की
मांग कर रहा है ।
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की एका इसी दिशा
में एक पहल है ।
कई लोगों को इस एका में कोई दर्शन नहीं दिखता ।
लोग यह जान गये हैं कि गौरव गाथा और सांकेतिक पहल
वस्तुतः किसी की जमीन में
सेंध की कोशिश है । अपना वोट बढ़ाने की यह कोशिश वास्तविक
लोकतंत्र के अपहरण की मंशा
से प्रेरित है ।
एक ने कहा अगर गोरखपर - फूलपुर लोकसभा चुनाव न हारे
होते तो अम्बेडकर इतना न याद
आये होते ।
अम्बेडकर के नव भक्तों से
पूछना चाहता हूं कि क्या वे
संघ के परम पूज्य गुरुजी गोलवलकर की इस उक्ति से
असहमत होने का साहस दिखा
सकते हैं --
' .....स्मृति ईश्वरनिर्मित है और
उसमें बताई गयी चातुर्वर्ण्य व्यवस्था भी ईश्वरनिर्मित है । किंबहुना वह ईश्वरनिर्मित होने
के कारण ही उसमें तोड़ - मरोड़
हो जाती है , तब भी हम चिंता
नहीं करते । क्योंकि मनुष्य तोड़ -फोड़ करता भी है तब भी जो
ईश्वरनिर्मित योजना है , वह
पुनः - पुनः प्रस्थापित होकर ही
रहेगी ।
( पेज 163 , श्री गुरुजी समग्र : खण्ड 9 )
वह कहते हैं --
जन्म से प्राप्त होने वाली चार वर्ण वाली व्यवस्था में अनुचित कुछ भी नहीं है । यह उचित ही है ।
अब दलितों को यह सोचना ही होगा कि अम्बेडकर के लिए भरा
गला आखिर किसका है ?
किराये पर कोख

किराये पर कोख

किराये पर कोख 
संजय तिवारी 
सभ्यता के विकास के किस पायदान पर आ गए हम ? यह कौन सी संवेदना है ? कैसी मानवता का निर्माण ? कैसे परिवार और संतति ? किस तरह के रिश्ते ? माँ , माँ नहीं।   पिता , पिता नहीं।  संतान पाना है तो खरीद लाइए। संतान बेचने वाले स्टोइनुमा अस्पताल खोल कर आखिर सभ्यता की किस उन्नति सीढ़ी पर आदमी चढ़ाना चाह रहा है। जैसे  सब्जी, अनाज , पज्जा , बर्गर , मिठाई , मांस , अंडे बिक रहे हैं वैसे ही बच्चे भी ? मुर्गीफॉर्म में अंडे पैदा किया जा रहे हैं और मालनुमा अस्पतालों में बच्चे। किराए की कोख से ? और ताजुब यह कि स्त्री की इतनी गिरी दशा पर कोई नारीवादी संगठन कुछ भी नहीं बोल रहा ? जिसके पास पैसा है वह स्त्री को किराये पर लेकर उससे बच्चे पैदा करवाता है और फिर छोड़ देता है कीमत देकर ? माँ की भी कोई कीमत होती है क्या ? विश्व के हर साहित्य और सभ्यता में माँ को परमात्मा से भी बड़ा ओहदा दिया गया है।  यहाँ तो माँ तीन चार लाख रुपये में बिकती है।  जो चाहे खरीद ले।
किराए की कोख।  यह वाक्य सुनने में ही बहुत अटपटा सा लगता है। सामान्य आदमी तो इस बात को पूरी तरह समझने में असमर्थ होता है। किराए की कोख का क्या मतलब है या इसकी जरूरत क्या है, ये सारे प्रश्न एकाएक दिमाग में आने लगते हैं। व्यक्ति यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि क्या ऐसा भी होता है? हां, आधुनिक समय में इसका चलन बढ़ता जा रहा है और यह वरदान की जगह अभिशाप बनता जा रहा है। किराए की कोख के लिए अंग्रेजी में शब्द प्रचलित है- सरोगेसी।

 
सबसे पहले इस बात पर चर्चा करते हैं कि आखिर सरोगेसी है क्या? सरोगेसी शब्द लैटिन भाषा के ‘सबरोगेट’ शब्द से आया है, जिसका अर्थ होता है कि किसी और को अपने काम के लिए नियुक्त करना। यानी सरोगेसी का मतलब है- मां का विकल्प। सरोगेट मां, एक ऐसी मां, जिसके गर्भ में किसी और पति-पत्नी का बच्चा पल रहा हो। इस प्रक्रिया में किसी और पति-पत्नी के स्पर्म और एग को एक लैब में  फर्टिलाइज करके उससे बने भ्रूण को सरोगेट मां के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। नौ महीने तक यह बच्चा सरोगेट मां के गर्भ में रहता है और नौ महीने के बाद जन्म लेने पर वह बच्चा उस पति-पत्नी का हो जाता है, जिनके स्पर्म और एग से भ्रूण बना था। जब टेस्ट ट्यूब जैसी तकनीक से भी बच्चा प्राप्त करने में सफलता नहीं मिलती तो आखिरी रास्ता बचता है सरोगेसी का, जिससे इच्छुक दंपति को बच्चा पाप्त होता है। समाज में प्रचलित हर तकनीक के दो पहलू होते हैं- एक लाभदायक और दूसरा हानिकारक। सरोगेसी के मामले में भी कुछ ऐसा ही है। समाज में मेडिकल कारणों से जिनके बच्चे नहीं होते, वे न जाने कहां-कहां भटकते रहते हैं। समाज में बच्चा चाहने वाले मां-बाप का जिस स्तर पर भावनात्मक और आर्थिक शोषण होता है, वह सामाजिक व पारिवारिक शोषण की तुलना में कुछ भी नहीं। नि:संतान दंपत्तियों को परिवार और समाज इतना बेबस कर देता है कि वे या तो उपाय बेचने वाले ठगों का शिकार बनते हैं या चिकित्सा विज्ञान की शरण में आकर उनके विकल्पों को आजमाते है। उनमें से ही एक है सरोगेसी या किराए की कोख। निसंतान लोगों के लिए यह एक  चिकित्सा विकल्प है। इसके माध्यम से वे संतान प्राप्त करने की खुशी हासिल कर सकते हैं। सरोगेसी की जरूरत तब पड़ती है, जब कोई स्त्री गर्भ धारण करने में सक्षम नहीं होती है।

 दो प्रकार की सरोगसी 
सरोगेसी भी दो प्रकार की होती है- ट्रेडिशनल और जेस्टेशनल। ट्रेडिशनल सरोगेसी में पिता के स्पर्म को किसी अन्य महिला के एग के साथ फर्टिलाइज किया जाता है। ऐसी सरोगेसी में बच्चे का जेनेटिक संबंध केवल पिता से होता है, जबकि जेस्टेशनल सरोगेसी में माता-पिता के क्रमश: एग और स्पर्म को परखनली विधि से फर्टिलाइज करके भ्रूण को सरोगेट मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है। इसमें बच्चे का जेनेटिक संबंध माता व पिता दोनों से होता है। यह सही है कि किराए की कोख यानी सरोगेसी व्यावसायिक रूप ले रहा है, जिससे इसका दुरुपयोग हो रहा है। मगर गरीबी जो न कराए! जानकारी के मुताबिक, किराए की कोख के मामले सर्वाधिक भारत में ही हैं। यदि पूरी दुनिया में साल में 500 से अधिक सरोगेसी के मामले होते हैं तो उनमें से करीब 300 भारत में ही होते हैं। 

अब प्रश्न उठता है कि कौन बनती है सरोगेट मां (किराए की मां)। भला दूसरे का बच्चा कौन अपने गर्भ में धारण करना चाहेगा? पर गरीबी ही सब कराती है।  खबरों में आमतौर पर 18 से 35 साल तक की महिलाएं सरोगेट मां बनने के लिए तैयार हो जाती हैं, जिससे उन्हें तीन-चार लाख रुपये तक मिल जाते हैं और उनके परिवार का भविष्य में भरण-पोषण होने में मदद मिल जाती है। भारत-नेपाल बॉर्डर पर किराए की कोख का कार्य धड़ल्ले से चल रहा है। इस कारोबार का हेड ऑफिस नेपालगंज, पोखरा व काठमांडू बना हुआ है। यहां दिल्ली व मुंबई से कई लड़कियां अंडाणु दान करने आती हैं। इन अंडाणुओं को नेपालगंज व पोखरा स्थित एक टेस्टट्यूब सेंटर में फ्रीज करके रखा जाता है। इसके बाद आईवीएफ तकनीक से नेपाली महिलाओं को गर्भधारण कराया जाता है। 

इस पेशे में लगे सूत्र बता रहे हैं कि   भारतीय मूल की युवतियों के अंडाणुओं को चीन, जापान व अन्य देशों में निर्यात किया जाता है। आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों में भुखमरी का बोलबाला इस कदर है कि यहां की महिलाएं मजबूरी में किराए की कोख का धंधा करती हैं। आंध्र प्रदेश का यह क्षेत्र देश में सरोगेसी माताओं की शरण स्थली बनकर रह गया है। भारत में गुजरात के आणंद नामक मशहूर स्थान किराए की कोख का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है। यहां लगभग 150 से भी ज्यादा फर्टिलिटी सेंटर किराए की कोख की सेवाएं देते हैं। अमेरिका में किराए की कोख से संतान प्राप्त करने का खर्च 50 लाख ज्यादा है, जबकि भारत में यह सुविधा सभी खर्चे मिलाकर मात्र 10 से 15 लाख में ही प्राप्त की जा सकती है। भारत में यह सुविधा सस्ती है इसलिए विदेशी किराए की कोख के लिए यहां आते हैं। किराए की कोख वाली महिलाएं ज्यादातर गरीब और अशिक्षित पाई जाती हैं, जिससे उन्हें अपने शरीर से होने वाले कानूनी और मेडिकल नुकसान की समझ भी नहीं होती है। साथ ही इन महिलाओं को स्वीकार की गई पूरी रकम भी नहीं दी जाती है। आज गरीब परिवारों की बेबसी के चलते संतान विहीन परिवार मुस्करा रहे हैं, मगर धन के लालच में लगातार बच्चे पैदा करने से सरोगेट माताओं की शारीरिक हालत सही नहीं है। इनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है। न तो सरकार इस पर कोई ठोस कदम उठा रही है और न ही वे लोग जो इनसे यह काम करवा रहे हैं।  हरियाणा की खाप पंचायतों ने एकजुट होकर सरकार से किराए की कोख पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। वर्तमान केंद्र सरकार ने सरोगेसी (नियमन) बिल 2016 पारित करके सरोगेसी की स्थिति को बेहतर और सीमित करने का प्रयास किया है। केंद्रीय कैबिनेट ने अपने बिल में कामर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाई है। इस बिल के आलोचकों की अपनी अलग राय है। इनका कहना है कि अब जो दंपति बच्चा पाना चाहते हैं उनके पास गिने-चुने विकल्प ही रह जाएंगे। इन लोगों ने यह आशंका भी व्यक्त की है कि प्रस्तावित कानून की वजह से चोरी-छिपे ढंग से एक गैरकानूनी उद्योग पनप उठेगा। साथ ही एकल दंपति को इससे वंचित करना अमानवीय और समानता के अधिकार के खिलाफ है। 

वैसे देखा जाए तो किराए की कोख की सोच बहुत विवादित है। कई बार बच्चे को जन्म देने के बाद सरोगेट मां भावनात्मक लगाव के कारण बच्चे को देने से इनकार कर देती हैं। दूसरी ओर, कई बार ऐसा भी होता है कि जन्म लेने वाली संतान विकलांग या अन्य किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त होती है तो इच्छुक दंपति उसे लेने से इनकार कर देते हैं।  इसलिए किराए की कोख मसले पर सरकार का चिंतित होना जायज है। इस नए बिल का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि गरीब महिलओं का अनुचित लाभ न उठाया जा सके। भारतीय महिलाएं क्या इसी काम के लिए बनी हैं। इस बिल का बचाव इस प्रकार भी किया जा रहा है कि एक सामान्य परिवार को बच्चे की आवश्यकता होती है, लिव इन रिलेशन आदि में नहीं। ऐसे रिश्ते तो कभी भी टूट सकते हैं, जिससे बच्चे का भविष्य असुरक्षित हो सकता है। 


आठ देशो ने लिखा है भारत को पत्र
सरोगेसी से पैदा बच्चे की नागरिकता पेचीदा मामला है। इसलिए आठ यूरोपीय देशों- जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड, चेक गणराज्य, इटली, नीदरलैंड, बेल्जियम और स्पेन ने भारत सरकार को लिखा था कि वह अपने डॉक्टरों को निर्देश दे कि अगर कोई दंपति सरोगेसी के जरिए औलाद पाने का रास्ता अपनाता है, तो उन्हें संबंधित दूतावास की इजाजत के बगैर इस प्रक्रिया से न गुजरने दिया जाए।

क्या कहता है सर्वोच्च न्यायलय
सुप्रीम कोर्ट ने भारत में सरोगेसी व्यवस्था से पैदा होती समस्याओं से निबटने के लिए कानून बनाने की जरूरत पर जोर दिया है। कड़वी सच्चाई यह है कि वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत किराए की कोख के लिए ‘एक बड़ा बाजार’ बन चुका है। शायद यही वजह रही कि विधि आयोग को भी अपनी रिपोर्ट में सरोगेसी को उद्योग की संज्ञा देनी पड़ी। भारत में किराए की कोख से जन्म लेने वाले बच्चों, उनकी वास्तविक मां और उनके मातृत्व के विषय में कोई सार्थक कानून न होने से अब इस संपूर्ण सरोगेसी व्यवस्था से जुड़े तमाम कानूनी मुद्दों के साथ में सामाजिक व नैतिक मुद्दे भी लोगों को मथने लगे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के सवाल पर केंद्र सरकार ऩे कहा है कि वह जल्द ही देश में किराए की कोख को कारोबार बनने से रोकने का उपाय करेगी। अब देखना है कि सरकार इस पर कब तक कानून बना पाती है।

कैबिनेट ने सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2016
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2016’ के लिए अपनी मंजूरी दे दी है। इस बिल को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जय प्रकाश नड्डा ने नवम्बर 2016 में लोकसभा में पेश किया था। यह विधेयक केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड एवं राज्य सरोगेसी बोर्डों के गठन और राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों में उपयुक्त प्राधिकारियों के जरिये भारत में सरोगेसी का नियमन करेगा। यह कानून सरोगेसी का प्रभावी विनियमन, वाणिज्यिक सरोगेसी की रोकथाम और जरूरतमंद बांझ दंपतियों के लिए नैतिक सरोगेसी की अनुमति सुनिश्चित करेगा। नैतिक लाभ उठाने की चाहत रखने वाली सभी भारतीय विवाहित बांझ दंपतियों को इससे फायदा मिलेगा। इसके अलावा सरोगेट माता और सरोगेसी से उत्पन्न बच्चों के अधिकार भी सुरक्षित होंगे। यह विधेयक जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत पर लागू होगा। यह कानून देश में सरोगेसी सेवाओं को विनियमित करेगा जो उसका सबसे बड़ा फायदा होगा। हालांकि मानव भ्रूण और युग्मकों की खरीद-बिक्री सहित वाणिज्यिक सरोगेसी पर निषेध होगा, लेकिन कुछ खास उद्देश्यों के लिए निश्चित शर्तों के साथ जरूरतमंद बांझ दंपतियों के लिए नैतिक सरोगेसी की अनुमति दी जाएगी। इस प्रकार यह सरोगेसी में अनैतिक गतिविधियों को नियंत्रित करेगा, सरोगेसी के वाणिज्यिकरण पर रोक लगेगी और सरोगेट माताओं एवं सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों के संभावित शोषण पर रोक लगेगा। मसौदा विधेयक में किसी स्थायी ढांचे के सृजन का प्रस्ताव नहीं है। न ही उसमें किसी नए पद के सृजन का प्रस्ताव है। हालांकि प्रस्तावित कानून एक महत्वपूर्ण क्षेत्र को कवर करता है जिसे इस तरीके से तैयार किया गया है ताकि प्रभावी विनियमन सुनिश्चित हो सके। केंद्र और राज्य स्तर पर लागू वर्तमान नियामकीय ढांचे की ओर इसका अधिक झुकाव नहीं है। इसी प्रकार, राष्ट्रीय और राज्य सरोगेसी बोर्डों एवं उपयुक्त अधिकारियों की बैठक के अलावा इसमें कोई वित्तीय जटिलता भी नहीं है। केंद्र और राज्य सरकारों के नियमित बजट के बाद बोर्डों और अधिकारियों की बैठकें होंगी।

फर्टिलिटी क्लीनिक्स को छूट
यह बिल राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सरोगेसी बोर्ड बनाने का प्रस्ताव रखता है जो कि इस तरह के मामलों को नियमित करेगें, लेकिन यह (एआरटी फर्टिलिटी और असिस्टिड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलजी) क्लीनिक्स के बढ़ते कारोबार को नियमित करने वाली संस्था की ज़रूरत पर अपना रुख बहुत साफ नहीं करता. विधेयक सरोगेसी क्लिनिक्स के रजिस्ट्रेशन और मानकों की निगरानी के लिए ‘अप्रोप्रिएट अथॉरिटी’ की बात तो करता है. लेकिन इस अथॉरिटी के बारे में खुल कर ज्यादा कुछ नहीं कहता.

लेकिन स्टैंडिंग कमेटी की सिफारिशों में इस मुद्दे को शामिल किया गया है. कमेटी ने सिफारिश की है कि इस बिल से पहले असिस्टिड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलॉजी बिल (एआरटी बिल) को लाया जाना चाहिए. कमेटी की सिफारिशी रिपोर्ट कहती है ‘यह एक तथ्य है कि असिस्टिड रिप्रोडक्टिव तकनीकों के बिना सरोगेसी प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता इसलिए सिर्फ सरोगेसी बिल सरोगेसी सुविधाओं के व्यवसायीकरण को रोकने के लिए काफी नहीं होगा.’ बिल में जिस ‘अप्रोप्रिएट अथॉरिटी’ का ज़िक्र किया गया है वह सिर्फ सरोगेसी क्लिनिक्स के लिए है. लेकिन जेस्टेशनल सरोगेसी में इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (आईवीएफ) और एम्ब्रियो ट्रांसफर (ईटी) जैसी एआरटी तकनीकों का भी इस्तेमाल होगा, जो कि सरोगेट महिला के अलावा अन्य महिलाएं भी इस्तेमाल करती हैं. ऐसे में आईवीएफ और ईटी की सुविधा देने वाले क्लिनिक सरोगेसी बिल के दायरे से बाहर रह जाएंगे.

स्टेंडिंग कमेटी की बाकी सिफारिशें

अगस्त 2017 में इस बिल पर राज्य सभा की स्टेंडिंग कमेटी ने अपनी सिफारिशें पेश की थीं. कमेटी ने निस्वार्थ सरोगेसी की जगह मुआवज़ा आधारित सरोगेसी मॉडल का सुझाव दिया था. मुआवज़े में सरोगेट महिला के प्रेग्नेंसी के दिनों का वेतन भुगतान, मनोवैज्ञानिक काउंसिलिंग और डिलीवरी के बाद की देखभाल का खर्चा शामिल होने की बात थी. कमेटी का यह भी कहना था कि विधेयक को यह भी साफ करना चाहिए कि सरोगेट महिला अपने एग डोनेट नहीं करेगी.

सिफारिशों में सरोगेसी सुविधा हासिल कर सकने वाले लोगों का दायरा बढ़ाने की सिफारिश भी की गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक इनमें भारतीय विवाहित जोड़ों के अलावा विदेश में बसे भारतीय मूल के लोगों, अनिवासी भारतीयों और भारतीय लिवइन जोड़ों, विधवा और तलाकशुदा महिलाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए. एलजीबीटीक्यू जोड़े इससे बाहर रखे गए थे. कमेटी ने सरोगेसी के लिए इंतज़ार की सीमा पांच साल से घटाकर एक साल करने की सिफारिश भी की थी. यहाँ  ध्यान रखना चाहिए कि ये सब सिर्फ सिफारिशें हैं और ज़रूरी नहीं कि इन्हें बिल में भी शामिल किया जाए.


बॉलीवुड में बढ़ा चलन
ये लोग खुद को कलाकार कहते हैं।  खुद को बहुत ही संवेदनशील भी मानते हैं।  आंसू इनके अपने हथियार हैं और हर बात पर निकल पड़ते हैं लेकिन यहाँ किराए की कोख से बच्चे प्राप्त करने का खूब चलन है।  ये वे लोग हैं जिनको नयी पीढ़ी और आधुनिक सभ्यता अपना रोल मॉडल मानती है। आइये देखते है अभी तक किन हस्तियों ने इस जरिये बच्चे हासिल किये है -

फिल्म निर्माता करण जौहर और जितेंद्र के बेटे तुषार कपूर तो सिंगल पैरेंट्स हैं।

गौरी खान ने दो संतानें, आर्यन और सुहाना, होने के बावजूद तीसरे बच्चे की ख्वाहिश की तो शाहरुख खान ने सरोगेसी का सहारा लिया। वर्ष 2013 में उन्होंने अपने तीसरे बच्चे अबराम खान के बारे में सभी को बता कर चौंका दिया।

पहली पत्नी से आमिर खान को बेटी इरा खान और बेटा जुनैद खान हैं। किरण राव से आमिर ने दूसरी शादी की और इस बार उन्होंने सरोगेसी का विकल्प आजमाया। आमिर और किरण की पहली संतान आजाद राव खान का जन्म इसी तकनीक के जरिये ही हुआ।

करण जौहर सरोगेसी के जरिये एक बेटी रूही और एक बेटे यश के पिता बने हैं। वे पापा बन कर बहुत खुश हैं।
जीतेंद्र अपने पोते या पोती को देखना चाहते थे। तुषार कपूर शादी नहीं करना चाहते थे। आखिर सरोगेसी के जरिये उन्होंने अपने पापा की इच्छा पूरी कर दी।
  कोरियोग्राफर डायरैक्टर फराह खान का नाम सब से पहले आता है जिन्होंने मैडिकल साइंस के जरिए 3 बच्चों को एकसाथ जन्म दिया। 
बहुत कम लोग जानते हैं कि सोहेल खान और सीमा खान के छोटे बेटे योहान खान का जन्म 2011 में सरोगेसी के जरिये ही हुआ। शाहरुख को सरोगेसी के बारे में सोहेल ने ही बताया था।

वर्षों पहले फिल्म निर्देशक और अभिनेता सतीश कौशिक ने अपने दो वर्षीय बेटे शानू को खोया था। बाद में उन्होंने सरोगेसी के जरिये अपना परिवार बढ़ाया। अब उनकी वंशिका नाम की बेटी है।

  कृष्णा अभिषेक और कश्मीरा शाह ने भी सरोगेसी का सहारा लिया और जुड़वां बच्चों के माता-पिता बने।

क्या कह रहे हैं शोध :
 दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय तथा डेनमार्क के ऑरहस विश्वविद्यालय के जरिए किराए की कोख से जुड़े कारोबार को लेकर एक शोध किया गया। साल भर चले इस शोध में 18 फर्टिलिटी क्लीनिक के 20 डॉक्टरों के साथ 14 सरोगेट मां और पांच एजेंट को शामिल किया गया था। इस शोध से जुड़े निष्कर्ष दो अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं- बायोएथिकल इनयरी और एक्टा आब्सटिट्रीसया एट गॉयनेकोलॉजिया स्कैंडिनेविया में प्रकाशित भी हुए हैं। इस शोध के निष्कर्ष साफ करते हैं कि किराए की कोख संबंधी कारोबार से अधिकांश अशिक्षित और गरीब घरों की महिलाएं जुड़ी हैं। आंकड़े इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि एजेंट प्रतिनिधि देशों के अलग-अलग हिस्सों से कमजोर व गरीब घरों की महिलाओं को पैसे का लालच देकर किराए की कोख के लिए तैयार करते हैं। अधिकांश सरोगेट मां के पति या तो बेरोजगार हैं अथवा किसी कंपनी में कम पगार पर काम करते हैं।

जोखिम की जानकारी नहीं दी जाती
यह बात भी सामने आ रही है कि समझौता करते समय इन्हें इससे जुड़े जोखिम के बारे में भी नहीं बताया जाता है। यह कारोबार एक बड़े कमीशन पर आधारित है। इससे जुड़े कमीशन एजेंट देश के तमाम हिस्से में फैले हुए हैं। किराए की कोख के देश में बढ़ रहे कारोबार को लेकर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी। उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के गृह, विधि और न्याय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा विदेश मंत्रालय से जवाब-तलब किया था।  भारत सरोगेसी में दुनिया की राजधानी बन रहा है। सीएसआर की निदेशक ने भी अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा कि किराए की कोख के कारोबार के जरिए क्लीनिकों में लोगों से 40-50 लाख रुपए वसूले जाते हैं, परंतु गरीब महिलाओं के हिस्से में केवल 3-4 लाख रुपए ही आ रहे हैं। उनकी रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि आर्थिक लाभ का लालच गरीब महिलाओं को सरोगेट मां बनने को मजबूर कर रहा है। आश्चर्य की बात है कि इससे जुड़े अनुबंध के बारे में इन महिलाओं को कुछ पता नहीं होता। सर्वेक्षण बताते हैं कि देश में अब तक दो हजार से भी अधिक बच्चे सेरोगेट प्रक्रिया के माध्यम से जन्म ले चुके हैं।

महिलाओ की मजबूरी
सरोगेसी में नि:संतान दंपति और सरोगेट मां आपस में एक कानूनी समझौता करते हैं। इस समझौते में धन के भुगतान का स्पष्ट विवरण अंकित होता है। तत्पश्चात दंपति के अंडाणु को क्लीनिक की प्रयोगशाला में निशेचित करते हुए भ्रूण को सरोगेट मां के गर्भ में रोपित कर दिया जाता है। पारस्परिक समझौते के आधार पर इस पूरी प्रक्रिया में सरोगेट मां को तीन से चार लाख रुपए का भुगतान होता है। सरोगेट मां बनने की प्रक्रिया में अधिकांश निर्धन परिवारों की महिलाएं आगे आ रही हैं। सामाजिक बहिष्कार के भय से ये महिलाएं अपने सरोगेट गर्भधारण को गोपनीय रखने को भी मजबूर हैं।

किराये के कोख की सबसे बड़ी मंडी भारत
 भारत में सरोगेसी सालाना करीब 445 मिलियन डॉलर का कारोबार बन चुका है। वर्ष 2020 तक इस कारोबार के 2.5 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत में सरोगेसी का सबसे बढ़ा गढ़ गुजरात है। गुजरात में डेढ़ लाख की आबादी वाले आणंद में अब तक सैकड़ों गरीब परिवारों की महिलाएं सरोगेट मां बन चुकी हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इन सरोगेट मदर के ग्राहक भारतीयों की तुलना में विदेशी अधिक हैं। इसका स्पष्ट कारण यह है कि जहां भारत में सरोगेट मां बनाने में 12 हजार डॉलर (छह लाख रुपए) का खर्च आता है, वहीं अमेरिका जैसे देश में 70 हजार डॉलर (35 लाख रुपए) का खर्च आता है। मतलब यह कि भारत में सरोगेट गर्भ का खर्च पश्चिमी देशों के मुकाबले सात गुना कम है।

भारत में दो लाख केंद्र
 आजकल यूरोपीय देशों के लोग सरोगेट मां के लिए भारत की ओर रुख कर रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में इस समय किराए की कोख के तकरीबन दो लाख  केंद्र काम कर रहे हैं। ढांचे और प्रशिक्षित स्टाफ के आधार पर आईसीएमआर इनमें से 270 को अपनी सहमति भी दे चुका है। मुंबई, दिल्ली व चंडीगढ़ आज किराए की कोख के बहुत बड़े केंद्र बन चुके हैं। तथ्य बताते हैं कि भारत में प्रतिवर्ष 30 से 35 लाख महिलाएं विवाह बंधन में बंधती हैं। इनमें सें लगभग 10 लाख नि:संतान होने का दुख झेलती हैं।

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का हलफनामा
सरकार सरोगेसी (किराए की कोख) के व्यावसायीकरण के पक्ष में नहीं है।
सिर्फ परोपकार के उद्देश्य से ही किराए की कोख को अनुमति दी जाएगी। वह भी सिर्फ जरूरतमंद भारतीय शादीशुदा नि:संतानों के लिए। इसके लिए कानून द्वारा स्थापित एक संस्था से अनुमति लेनी होगी।
सरकार सरोगेसी की व्यावसायिक सेवा पर रोक लगाएगी और ऐसा करने वालों को सजा देगी।
सिर्फ भारतीय दंपतियों के लिए ही सरोगेसी की अनुमति होगी।
कोई विदेशी भारत में सरोगेसी की सेवाएं नहीं ले सकता।
सरोगेसी से जन्मे शारीरिक रूप से अक्षम बच्चे की देखभाल का जिम्मा नहीं लेने वाले माता-पिता को सजा दी जाएगी।



कोट :
महिलाओं को अपना शरीर बेचने के स्थान पर लघु उद्योगों को अपनाना चाहिए, क्योंकि सरकार के अनुसार किराए की कोख का वाणिज्यिक स्वरूप दो अरब डॉलर का अवैध धंधा बन गया है। इस अवैध धंधे से कमजोर महिलाओं का शोषण होता है। सरकार इसे व्यवसाय नहीं बनाना चाहती, महिलाओं को बच्चा निर्माण फैक्ट्री नहीं बनने देना चाहती। सरकार चाहती है कि किराए की कोख नि:संतान दंपतियों के लिए वरदान ही बनी रहे, अभिशाप न बनने पाए। केंद्र सरकार जल्द ही किराए की कोख को लेकर एक कानून बनाने जा रही है। इस कानून के तहत भारत में महिलाएं अपने बच्चों सहित तीन संतानों को सफल जन्म देने के बाद अपनी कोख किराए पर नहीं दे सकेंगी। दो बच्चों के जन्म में कम से कम दो साल का अंतर होना अनिवार्य होगा। इस कानून के अनुसार, 21 साल से कम और 35 साल से अधिक उम्र की कोई महिला सरोगेट मां नहीं बन सकेगी। इसलिए सरकार प्रयासरत है कि किराए की कोख जैसे विकल्प को वह सीमित व नियमबद्ध कर दे। 
अनुप्रिया पटेल 
केंद्रीय मंत्री 
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ऐसे बच्चें भविष्य में निश्चित ही अनेक भयावह चुनौतियों का सामना करने को मजबूर होंगे।यह प्रवृत्ति पूरे समाजी ढाँचे को तहस नहस करने वाली है। इससे रिश्ते. परिवार और समाज का समग्र मनोविज्ञान ही बदल जायेगा।  समय आ गया है कि देश में गरीबी के आंकड़ों से जुड़ी बहस के साथ सरोगेसी से जुड़ी बहस भी प्रमुख रूप से केंद्र में हो ताकि संपूर्ण सरोगेसी प्रक्रिया में कानून के साथ-साथ गरीबी से जुड़े उन सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर भी निगाह डाली  जा सके जिनके कारण किराए की कोख से जुड़ा यह मुद्दा गरीब परिवारों को आकर्षित कर रहा है।
प्रो. सुषमा पांडेय
अध्यक्ष , मनोविज्ञान विभाग
गोरखपुर विश्वविद्यालय

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 यह आधुनिक समाज के  लिए गंभीर चिता का विषय है। इसमें खतरे भी बहुत है और मानवीय दृष्टि से असंवेदनशीलता भी। जो महिला नौ महीने तक अपने गर्भ में शिशु को पाल रही है ,कैसे संभव है कि उसका लगाव उससे न हो। माँ तो आखिर वही है। दूसरा पहलू यह की किराये की माँ को आखिर कितनी वेदना सहनी पड़ती है। अपनी बेबसी उससे भले ही बच्चे को अलग कर देती है पर मानस में वह उस बच्चे की वास्तविक माता आजीवन रहती है। जब मेडिकल साइंस माता और संतान के जैविक रिश्तो पर शोध करेगा तब बहुत कुछ पता चलेगा। 
डॉ. मृणालिनी 
अध्यक्ष 
क्रायोबैंक इंटरनेशनल 
नयी दिल्ली 

तब प्रलय बन कर उमड़ेगी गंगा

तब प्रलय बन कर उमड़ेगी गंगा

विशेष : ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन 

तब प्रलय बन कर उमड़ेगी गंगा 
संजय तिवारी 
हालात बहुत बदतर हो चुके हैं। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की दर खतरनाक विंदु को छू रही हैं। यदि यही रफ़्तार रही तो भारत में जीवनदायिनी के रूप में पूज्य गंगा सीधे प्रलय बन कर उमड़ पड़ेगी और फिर सबकुछ तबाह हो जायेगा। इससे उत्पन्न बाढ़ और तबाही में कुछ भी नहीं बचेगा। दुनिया में भूखमरी और कंगाली आ जाएगी। कही भयंकर सूखा और कही भयंकर बाढ़ से मानवता संकट में आ जाएगी। 

यह केवल कोरी भविष्यवाणी नहीं है। यह आकलन है उस गंभीर शोध का जिसे ब्रिटैन की  यूनिवर्सिटी ऑफ एक्जीटर के शोधकर्ताओं ने किया है। उनकी रिपोर्ट के मुताबिक दो डिग्री तापमान बढ़ने पर गंगा का बहाव दोगुना हो जाएगा।इसकी धारा में आने वाले खेत-खलिहान नष्ट हो जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के चलते दुनियाभर में कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ आने से भोजन की भारी कमी होने की आशंका है। 122 विकासशील और अल्प विकसित देशों पर हुआ यह शोध फिलॉसाफिकल ट्रांसेक्शन ऑफ द रॉयल सोसाइटी जर्नल में प्रकाशित है। इस शोध ने दुनिया के वैज्ञानिको और पर्यावरणशास्त्रियो को बेचैन कर दिया है। 

इसमें बताया जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग प्रभाव देखने को मिलेगा। कहीं अत्यधिक बाढ़ आएगी तो कहीं भीषण सूखा पड़ेगा। अनियमित मौसम के चलते साफ पानी की उपलब्धता अभी के मुकाबले कहीं बड़ी चुनौती बन जाएगी। बड़ी आबादी के लिए पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक अन्न उगाना मुश्किल होगा। अभी ही दुनिया के तकरीबन 8 करोड़ लोगों को नियमित भोजन नसीब नहीं होता है। आगे स्थिति और खराब हो सकती है। इस शोध के नतीजे बता रहे हैं कि बाढ़ व जलप्लावन का प्रभाव दक्षिण व पूर्वी एशिया में देखा जाएगा। यहां ग्लोबल वार्मिंग दो डिग्री बढ़ने पर गंगा नदी का बहाव दोगुने से अधिक हो जाएगा। सूखे के कारण दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे जहां अमेजन नदी का बहाव 25 फीसद तक कम होने की आशंका है।

 इस रिसर्च में लगे शोधार्थियों ने समुद्री सतह के तापमान और समुद्री बर्फ के पैटर्न पर आधारित ग्लोबल मॉडल के इस्तेमाल से 122 देशों का अध्ययन किया जिनमें से अधिकतर एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में हैं। शोध परिणाम में कहा गया है कि  अगर पेरिस जलवायु समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक रोका जा सकेगा तो स्थिति कुछ नियंत्रण में रहेगी। लेकिन अगर इस सदी के अंत तक तापमान वृद्धि दो डिग्री हो जाती है तो तकरीबन 76 फीसद विकासशील देश गंभीर परिस्थितियों का सामना करने को मजबूर होंगे।


ग्लोबल वार्मिंग से खतरे में ग्लेशियर पृथ्वी के तापमान में निरंतर होती वृद्वि से गंगा बेसिन क्षेत्र के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। गंगोत्री से कुछ किमी पैदल दूरी पर गंगा का उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर निरंतर पीछे खिसक रहा है। ताजा आकड़े के अनुसार वर्ष 1990 से लेकर 2006 तक गोमुख ग्लेशियर 22.8 हेक्टेयर पीछे खिसका है। इंटरनेशनल कमीशन फार स्नो एण्ड आइस के एक समूह द्वारा हिमालय स्थित ग्लेशियरों का अध्ययन किया गया। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार आने वाले 50 वषा में मध्य हिमालय के तकरीबन 15 हिमखंड पिघलकर समाप्त हो जाएंगे। गोमुख ग्लेशियर पर अध्ययन से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार कुछ चौकानें वाले तथ्य सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1935 से 1956 तक गोमुख ग्लेशियर 5.25 हेक्टेयर, 1952 से 1965 तक 3.65 हे., 1962 से 1971तक 12 हे., 1977 से लेकर 1990 तक 19.6 हे. पिघलकर समाप्त हुआ है। वर्ष 1962 से 2006 तक गोमुख ग्लेशियर डेढ़ किमी. पिघला है।
भूगर्भीय सर्वे आफ इंडिया, रिमोट सेंसिग एप्लीकेशन सेंटर, जवाहर लाल नेहरू विश्वविघालय आदि संस्थानो के द्वारा किये गये अध्ययन से स्पष्ट है कि पृथ्वी का तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर पिछले 40 सालों में 25 से 30 मीटर पीछे खिसक चुका है। यदि यही स्थित रही तो 2035 तक ग्लेशियर पिघलकर समाप्त हो जायेगा। समुद्र तल से 12,770 फीट एवं 3770 मीटर ऊचाई पर स्थित गोमुख ग्लेशियर 2.5 किमी चौड़ा व 27 किमी लम्बा है, जबकि कुछ साल पहले गोमुख ग्लेशियर 32 किमी लम्बा व 4 किमी चौडा था। गोमुख ग्लेशियर पिघलने से गंगा बेसिन के क्षेत्र उत्तारांचल, बिहार, उत्तार प्रदेश का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। गोमुख क्षेत्र में लोगों का हजारों की संख्या में पहुंचना भी एक हद तक ग्लेशियर को नुकसान पहुंचा रहा है। यदि ग्लेशियर पर पर्वतारोही दलों के अभ्यास को बंद करने के साथ ही ग्लेशियर पर चढ़ने की सख्त पाबंदी लगा दी जाए तो काफी तक गोमुख ग्लेशियर की उम्र बढ़ सकती है।

 भागीरथी गंगा का प्रमुख श्रोत हैं किन्तु जलभराव की दृष्टि से अलकनंदा की हिस्सेदारी आधिक अल्टीट्यूड उदगम से लेकर समुद्र तक पहुंचने की नदी यात्रायें गम्भीर निगरानी और सुधार चाहती हैं । अलकनंदा के साथ पिंडर, घौलीगंगा, रामगंगा और मंदकिनी जैसी धाराएं भी मिलती हैं । कर्णप्रयाग में ही अलकनंदा पिंडर से मिलती है। अब पिंडर पर अनेक पन बिजली परियोजनायें प्रस्तवित हैं । इस सम्पूर्ण क्षेत्र में वनों की कटाई, निर्माण और भारी भरकम परियोजनाआें से पूरा परिस्थितिक ढांचा बदला और बिगडा है इसका परिणाम 2013 में केदारनाथ त्रासदी के रूप में हम देख चुके हैं । पर्यटन, बेतरतीब निर्माण, पनबिजली योजनायें और बांधों के निर्माण से समूचा हिमालच क्षेत्र आति संवेदनशील हो चुका है। नदियों के मार्ग, नदी के तट में अवरोध पहिüडयों पर बारूदी विस्फोट और सडकों, सुरंगों के निर्माण से स्थितियां बद से बदतर हुई हैं । 557 बांध परियोजनायें जो प्रस्तवित हैं यदि क्रियान्वित हुइ तो हिमालच, गंगा, उत्तराखंड का पर्यावरणीय विनाश तय है। गंगा बहती है, इसलिए नदी है, आविरल है, नदी का बहना बंद होने का अर्थ नदी की मृत्यु है। फिर गंगा की मृत्यु का अर्थ कितना भयावह हो सकता है?  

गंगा पर संकट बेशुमार
इस समय भारत में गंगा के आस्तित्व और भविष्य पर बेशुमार संकट है । लगातार सरकारी वादों और योजनाओ के बाद भी गंगा की दशा खराब ही होती जा रही है। हमारी नीतियों और करतूतों ने हालात को और भी बदतर बना दिया है 1979 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने गंगा में प्रदूषण की विकरालता को समझते हुए एक समीक्षा की थी । 1985 में गंगा एक्शन प्लान का प्रारम्भ हुआ, पर गंगा की हालत नहीं बदली । गंगा बेसिन अथारिटी की स्थापना 2009 में हुई पर नतीजे नहीं मिले । 2014 में नममि गंगे परियोजना की घोषणा हुई है ।इसके अंतर्गत 2037 करोड खर्च होंगे , किनारों के बडे नगरों में घाटों के विकास हेतु 100 करोड रू खर्च होंगे । अप्रवासी भारतीयों को भी सहयोग हेतु कहा गया है । शहरी विकास मंत्रालय ने निर्मल धारा योजना के अंतर्गत गंगा तट पर बसे 118 नगरों में जल-मल शुद्धिकरण के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की योजना बनाई है । जिस पर 51000 करोड रू० खर्च होंगे । गंगा के प्रवाह को जल परिवहन के लिए भी उपयोग करने की योजना है । इलाहाबाद से हल्दिया तक जलमार्ग विकास परियोजना । 42000 करोड रू० की योजना 2020 तक पूरी होगी । हालांकि इस जलमार्ग योजना पर अनेक प्रश्न उठाए गए हैं। जैवविविधता की क्षति से लेकर नदी की सम्पूर्ण परिस्थितिकी के बिगाड तक के खतरों की आशंका जैसे प्रश्न हैं ।
 

गंगा प्रदूषण या गंगा बचाओ
लोग गंगा के प्रदूषण की बात करते हैं लेकिन मैं कहता हूं कि गंगा को बचाना अधिक महत्वपूर्ण है. टिहरी बांध के बाद गंगा नाले जैसी बहती है. कहां है गंगा. गंगोत्री पीछे जा चुका है. इतनी गंदगी है.ग्लेशियर को बचाने का कोई उपाय नहीं किया जा रहा है। जब भूकंप होता है या ऐसी कोई बड़ा कंपन होता है तो ग्लेशियर पर प्रभाव पड़ता है. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तो है ही। 
- डॉ डोभाल, ग्लेशियर विशेषज्ञ  


 उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री के बीच बड़ी परियोजनाओं ने भी ग्लेशियर को नुकसान पहुंचाया है। भैरों घाटी में मनेरी बांध बना है. इसके अलावा लोहारीनाग पाला पनबिजली परियोजना चल रही है जिसके तहत पहाड़ों को काटा जा रहा है. प्रकृति के साथ खिलवाड़ तो सही नहीं है। मुझे लगता है कि इन परियोजनाओं के लिए जिस तरह से पहाड़ो में विस्फोट किए जा रहे हैं वो ग्लेशियरों को नुकसान पहुंचा रहा है। गंगोत्री से उत्तरकाशी के रास्ते में जगह जगह पर हमने भी यह देखा कि पहाड़ों में विस्फोट किए जा रहे हैं जिससे पूरी हिमालय शृंखला हिलती होगी इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। 
ब्रह्मचारी अनिल स्वरुप