बाहुबली : अमर चित्रकथा बनी प्रेरणा

बाहुबली : अमर चित्रकथा बनी प्रेरणा


यह  पीएम मोदी के मेक इन इंडिया अभियान का चमकता उदाहरण  है.एक के बाद एक आ रही फिल्मों में हमें मेक इन इंडिया की झलक दिखती है. ये फिल्में न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में इसे पसंद किया जा रहा है. चाहे वो दंगल हो, सुल्तान हो या न्यू रिलीज फिल्म बाहुबली. फिल्म बाहुबली भव्यता के मामले में एक पैमाना बन गई है. इसमें हमारे ही लोगों की तैयार की गई हमारे देश की प्रतिभा दिखती है. ये ‘मेक इन इंडिया’ का चमकता उदाहरण है. मैं डायरेक्टर को उनके स्किल और शानदार उपलब्धि के लिए बधाई देता हूं जिसपर हम सब को गर्व है। 1913 में 'राजा हरिश्चंद्र' के बाद से, भारतीय सिनेमा में एक महान बदलाव आया है.सिनेमा की भाषा यूनिवर्सल है. भारतीय सिनेमा ने हमारी सांस्कृति, विविधता, एकता, भाषा और हमारे लैंडस्केप को दुनिया के सामने दिखाने में काफी योगदान दिया है। फिल्म बाहुबली भारतीय सिनेमा को नई उंचाईयों तक ले गया है। इसमें शानदार विजुअल के प्रयोग हैं ,जो हॉलीवुड की फिल्म ‘बेन हर’ और ‘टेन कमांडेंट्स’ जैसा एक्सपीरियंस देती है. मैं फिल्म के कैनवास, डायरेक्टर राजामौली के साहस, चरित्र, प्रोडक्शन क्वालिटी से आश्चर्यचकित हूं और इस तरह के ग्लोबल क्वालिटी फिल्म बनाने की प्रशंसा करता हूं। 

वेंकैय्या नायडू 
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री 
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------


----------------------------
राज से पर्दा उठ चुका है। कटप्पा ने बाहुबली को मारा, इस बहुप्रतिक्षित सवाल का जवाब देश को मिल चुका है। दूसरे भाग बाहुबली: द कॉन्क्लूज़न को देखने के लिए लोगों की बेसब्री का तो ये हाल रहा कि कई सिनेमाघरों में टिकट का दाम 2000 तक पहुंच गया। शुरुआती कुछ दिनों के लिए सभी शो हाउसफुल हैं। कटप्पा ने राजमाता शिवागमी के कहने पर बाहुबली को मारा था। कटप्पा ने बाहुबली को मारने से मना किया तो राजमाता ने कहा कि वो खुद बाहुबली को मारेंगी। लेकिन कटप्पा ने बाहुबली को मारने का फैसला इसलिए लिया कि कहीं मां को सब गलत न समझने लगें। अमरेंद्र बाहुबली का बेटा महेंद्र बाहुबली वापस आता है और कटप्पा के साथ मिलकर भल्लालदेव को खत्म कर अपने पिता की साजिशन करवाई गई हत्या का बदला लेता है।

----------------------------------------
Image result for bahubali 2
बाहुबली : अमर चित्रकथा बनी प्रेरणा 

संजय तिवारी 



भारतीय सिनेमा की अब तक की सबसे चर्चित फिल्मों में से एक बाहुबली के सेट, इसके पात्र, हथियार हर चीज के पीछे एक रोचक बात है। नयापन है। फिल्म के निर्माता राजामौली बताते हैं - मैं तब 7 वर्ष का रहा था जब भारत में प्राकशित अमर चित्र कथा पढ़ा करता था। इनमें किसी महानायक या सुपरहीरो के विषय नहीं होता था, लेकिन भारत से जुड़ी लोककथाओं, दंतकथाओं और ऐसे ही कई कहानियों का इसमें चित्रण किया जाता था। पर उनमें से अधिकतर कहानियाँ भारतीय इतिहास को रेखांकित करती थी। मैं महज उन राजमहलों, युद्धों, राजाओं-महाराजाओं की कहानियों को पढ़ता ही नहीं था बल्कि उन्हीं कहानियों को अपने तरीके से मेरे दोस्तों को सुनाया करता था।

किलिकिलि नाम की नयी भाषा मिली 
किसी भी भारतीय फिल्म के लिए ये पहला मौका है जब उसके लिए कोई नई भाषा रची गई है। एसएस राजामौली की ब्लॉकबस्टर 'बाहुबली’ में ऐसा किया गया है। तीन दिन में करीब 160 करोड़ की वैश्विक कमाई कर चुकी इस फिल्म में कालकेय कबीले द्वारा बोली जाने वाली भाषा किलिकिलि बनाई गई। इस भाषा में कथित तौर पर 750 शब्द और 40 व्याकरण के नियम हैं। इससे पहले ऐसा सिर्फ हॉलीवुड फिल्मों में ही किया गया है। जेम्स कैमरॉन ने 'अवतार’ और 'द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स’ सीरीज में भी ऐसी भाषाएं रची जा चुकी हैं जिनकी बाकायदा डिक्शनरी हैं, जिनमें व्याकरण के नियम हैं।

----------------------------------------------------------------
Image result for bahubali 2

माहिष्मती साम्राज्य 
भारत के प्राचीन साम्राज्यों में से एक माहिष्मति, की रानी शिवागामी (रमैया कृष्णन), एक विशाल जलप्रपात के निकट की मांद से एक शिशु को गोद लिए बाहर आती है। वह बड़ी निडरता से अपने पीछा करते सिपाहियों को मार डालती है और शिशु की रक्षा खातिर स्वयं के प्राण बलिदान देती है। ऐन समय पर, स्थानीय ग्रामीण पानी में डूबी रानी की ऊपर उठी बांह में शिशु को देख लेते हैं और उस बच्चे को सुरक्षित बचा लेते हैं।

इस तरह रानी पर्वत की ऊँचाई से गिरते जलप्रपात में डूब कर विलीन होती है। सांगा (रोहिणी) एवं उसके पति उस शिशु का नाम शिवा रखते हैं और अपने बालक समान ही परवरिश करते हैं। गुजरते समय के साथ शिवा (प्रभास) एक बलवान युवक के रूप में बड़ा होता है जिसकी आकांक्षा पर्वत चढ़ने की रहती है और कई बार की वह नाकाम प्रयत्न करता है। एक रोज उसे जलप्रपात में बहते हुए किसी युवती का मुखौटा मिलता है। उस युवती की पहचान ढूंढने की चाह में, वह पुनः पर्वत चढ़ाई का प्रयास करता है और आखिरकार वह सफल भी होता है।

जलप्रपात के शिखर पर, शिवा उस मुखौटे की मालिक अवनतिका (तमन्ना) को खोज निकालता है, एक विद्रोही योद्धा जिसका दल गुरिल्ला पद्धति के जरिए माहिष्मति साम्राज्य के राजा भल्लाल देव/पल्लवाथेवान (राणा दग्गुबती) के विरुद्ध युद्ध लड़ रहा है। दल का लक्ष्य है कि वे पूर्व महारानी देवसेना (अनुष्का शेट्टी) को छुड़ाए जिन्हें राजमहल में गत २५ वर्षों से ज़जीरों में जकड़ रखा है। और यह महत्वपूर्ण जिम्मेवारी अवनतिका को सौंपा गया है। अवनतिका को शिवा की यह बात सुन प्रेम होता है कि वह इस जलप्रपात की तमाम मुश्किलों पर चढ़ाई करता हुआ सिर्फ उसके लिए आया है। शिवा अब इस अभियान को अपने जिम्मे लेने वचन देता है और छिपते-छुपाते हुए माहिष्मति में प्रवेश कर देवसेना को कैद से मुक्त कराता है। शिवा उसे छुड़ा लाता है और साथ लेकर भाग निकलता है मगर जल्द ही राजा का शाही गुलाम कट्टप्पा (सत्यराज), जिन्हें बेहतरीन युद्धकौशल के लिए जाना जाता है, उसके पीछे पड़ता है। मगर घात लगाए भद्रा (अदिवि शेष), भल्लाल देव का पुत्र, अचानक ही शिवा के सर पर वार करता है, मगर कटप्पा अपने शस्त्र गिरा देता है जब उसे मालूम होता है कि शिवा असल में माहेन्द्र बाहुबली है, दिवंगत राजा अमरेंद्र बाहुबली का पुत्र।

फिर यहां भूतकाल में हुए राजा अमरेंद्र बाहुबली की विगत घटनाओं का उल्लेख होता है। अमरेंद्र की माता की मृत्यु उसके जन्म पश्चात होता है, जबकि पिता उससे काफी पूर्व ही गुजर चुके होते हैं। शिवागामी अपने अंगरक्षक कटप्पा के सहयोग से नए राजा चुने तक साम्राज्य के शासन की बागडोर संभालती है। वह अमरेंद्र बाहुबली तथा भल्लाल देव को समान रूप से परवरिश देती है, उन्हें कला, विज्ञान, छल-विद्या, राजनीति और युद्ध कला जैसे कई विद्याओं एवं प्रशिक्षण में पारंगत किया जाता है, मगर दोनों में ही साम्राज्य के शासन की अभिलाषा भिन्न रहती है। जहाँ अमरेंद्र बाहुबली का लोगों के प्रति उदारवादी व्यवहार करते है तो भल्लाल देव बेहद कठोर हैं और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए हर संभव निष्ठुरता बरतता है, यहां तक कि वह बाहुबली की हत्या भी करा देते है।

जब माहिष्मति को शत्रु कालाकेयास द्वारा युद्ध की चुनौती मिलती है, शिवागामी वचन देती है कि जो कोई भी कालाकेयास के राजा का सिर काटकर लाएगा उसे नया राजा बना दिया जाएगा और इस तरह दोनों नातिनों के बीच बराबरी से युद्ध साधनों का बंटवारे का आदेश दिया जाता है। लेकिन भल्लाल देव के अपाहिज पिता, बिज्जाला देव (नस्सर), छल-प्रपंच द्वारा भल्लाल को अधिक से अधिक युद्ध साधन मुहैया कराता है। युद्ध में जब माहिष्मति एक दफा असफल होकर अपना अंत समझ लेती है, अमरेंद्र अपने सैनिकों को उसके साथ मृत्यु से ही लड़ने को पुनः प्रेरित करता है और शत्रुओं को कुचलकर युद्ध समाप्त करता है। मगर भल्लाल देव पहले ही कालाकेया के राजा का वध कर देता है, शिवागामी बतौर नये शासक के रूप में अमरेंद्र बाहुबली का चयन उसके युद्ध में श्रेष्ठता और नेतृत्वता के फैसले पर घोषणा करती है तो भल्लाल देव को उसके साहस और पराक्रम के लिए सेनानायक बनाती है।

इस पूर्व घटनाओं के बाद, जब राजा अमरेंद्र के बारे में प्रश्न किया गया, तो भावुक कटप्पा राजा के देहांत होने की बात कहता है, और कटप्पा स्वयं को ही उनकी मृत्यु का जिम्मेदार बताता है।


फिल्म के निर्माता राजामौली बताते हैं - मैं तब 7 वर्ष का रहा था जब भारत में प्राकशित अमर चित्र कथा पढ़ा करता था। इनमें किसी महानायक या सुपरहीरो के विषय नहीं होता था, लेकिन भारत से जुड़ी लोककथाओं, दंतकथाओं और ऐसे ही कई कहानियों का इसमें चित्रण किया जाता था। पर उनमें से अधिकतर कहानियाँ भारतीय इतिहास को रेखांकित करती थी। मैं महज उन राजमहलों, युद्धों, राजाओं-महाराजाओं की कहानियों को पढ़ता ही नहीं था बल्कि उन्हीं कहानियों को अपने तरीके से मेरे दोस्तों को सुनाया करता था।

 
निर्माण

प्रभास, राणा और अनुष्का ने इस फिल्म के लिए घर में भी काम किया और कड़ी मेहनत से प्रभास और राणा ने घुड़सवारी सीखी और तलवार से लड़ने का भी अभ्यास किया। इस कारण यह फिल्म के निर्माण और प्रदर्शन में अधिक समय लगा और यह फिल्म जुलाई २०१५ में प्रदर्शित हो सकी।। तमिल संस्करण के संवाद लिखने के लिए तमिल गीतकार मदन कर्की को चुना गया था। उन्होंने पुराने महाकाव्यों व ऐतिहासिक फिल्मों की तर्ज पर इस फिल्म के संवादों को लिखा है। फिल्म में लड़ाई के दृश्यों के प्रत्येक दृश्य को ध्यान से बनाया गया था और यह इस फिल्म के मुख्य आकर्षण हैं। एक विशेष दृश्य के लिए, पीटर हेन ने 2000 लोगो और हाथियों को आसपास दिखाया है। के.के. सेंथिल कुमार को फिल्म का छायांकन करने के लिए चुना गया था। एस॰एस॰ राजामौली ने इस फिल्म में कालकेय कबीले द्वारा बोली जाने वाली किलिकिलि नामक एक भाषा बनवाई। भारतीय फ़िल्म के इतिहास में यह पहली बार हुआ है, जब किसी ने सिर्फ फ़िल्म में इस्तेमाल के लिए एक नई भाषा का निर्माण किया हो। इसमें कथित तौर पर 750 शब्द और 40 व्याकरण के नियम हैं।

पात्र चुनाव

अनुष्का शेट्टी जो पहले भी मिर्ची (2013) में काम कर चुकीं हैं को राजमौली ने पुनः इस फिल्म के लिए चुन लिया। इस फिल्म से जुडने के कारण अनुष्का के 2013 और 2014 का पूरा समय पूरी तरह से व्यस्त हो गया।.इससे वे किसी अन्य फिल्म में काम नहीं कर पाई। राणा दग्गुबती को एक मुख्य नकारात्मक किरदार के रूप में चुना गया, जो संयोग से रुध्रमादेवी में भी कार्य कर चुके हैं। इसके बाद सत्यराज जो तमिल फिल्मों में कार्य करते हैं, उन्हें लिया गया। एक अफवाह के अनुसार श्री देवी और सुष्मिता सेन को इस फिल्म में प्रभास की माँ के रूप में लिया जाने वाला था। लेकिन राजमौली ने इस बात का खण्डन किया। इसके बाद मई 2013 में राजमौली ने सोनाक्षी सिन्हा को अनुष्का शेट्टी के स्थान पर हिन्दी संस्करण के लिए रखने से मना कर दिया। एक समाचार के अनुसार श्रुति हासन भी इस फिल्म में मुख्य किरदार निभाने वाली थीं। लेकिन राजमौली ने इस बात को भी एक अफवाह कहा और कहा की मैंने उनसे किसी भी किरदार के लिए नहीं पूछा था।
कन्नड़ भाषा के एक अभिनेता सुदीप को एक छोटे लेकिन महत्वपूर्ण किरदार के लिए चुना गया। लेकिन जुलाई 2013 में चार दिन के इस काम में उनके और सत्यराज के मध्य विवाद और लड़ाई हो गई। इसके बाद पीटर हिन के साथ भी लड़ाई हो गई। अप्रैल 2013 में अदिवि शेष को उनके पंजा (2011) फिल्म में एक महत्वपूर्ण किरदार के लिए लिया गया। इसके बाद रम्या कृष्णन को अगस्त 2013 में राजमाता के किरदार के लिए लिया गया। इसके बाद नस्सर को एक सहायक किरदार के लिए लिया गया। 11 दिसम्बर 2013 को चरणदीप एक नकारात्मक किरदार के लिए चुने गए। उसके बाद 20 दिसम्बर 2013 में तमन्ना को दूसरे महत्वपूर्ण किरदार के लिए लिया गया। इसके बाद राजमौली ने पवन कल्याण, एन टी रामा राव और सुनील के इस फिल्म में कार्य करने की खबर को एक आधारहीन अफवाह कहा।

फिल्मांकन

करनूल में इसकी शुरुआत हुई। फिल्म को करनूल में 6 जुलाई 2013 से फिल्माया जाना शुरू हुआ। यह राजमौली की एक और फ़िल्म, एगा (2012) के लगभग एक वर्ष के पश्चात बननी शुरू हुई। यहाँ इसे अगस्त 2013 तक पूरा किया गया। इसके बाद बाकी के हिस्से हैदराबाद में रामोजी फिल्म सिटी में बने। 29 अगस्त तक का कार्य पूरा हो गया और 17 अक्टूबर को अगले हिस्से को बनाना शुरू किया गया, जो अक्टूबर के अंत तक समाप्त हो गया। लेकिन उसके लिए जो स्थान और सेट बनाया गया था वह बारिश के कारण नष्ट हो गया। उस जगह पर लगभग एक सप्ताह का काम था। इसके बाद प्रभास और राणा ने एक और जगह तलाश की। इसके लिए राजमौली ने सभी से इस बारे में बात की। इस घटना को भी फिल्म के अंत में जोड़ा गया। इसके बाद वह लोग केरल में अगले हिस्से के निर्माण के लिए चले गए। जो 14 नवम्बर 2013 में शुरू हुआ।

केरल के थ्रिसूर जिले का अथिरप्पली जलप्रपात

नवम्बर 2013 के अंत तक फिल्म का बाहर में होने वाला हिस्सा बारिश के कारण नहीं फिल्माया जा सका था। इसके लिए केरल में इसका निर्माण शुरू हुआ। यह 4 दिसम्बर 2013 तक समाप्त हुआ। इसमें केरल के प्रसिद्ध जलप्रपात अथिरप्पिल्ली को भी दिखाया गया है। रमौजी ने मीडिया को बताया की इस फिल्म का सबसे बड़ा हिस्सा हैदराबाद में बना है। इस फिल्म में शहर के लगभग 2000 छोटे कलाकार शामिल हुए थे जिन्होंने 23 दिसम्बर 2013 में एक मैदान में काम किया। इसके लिए वह सभी अक्टूबर 2013 से तैयारी कर रहे थे। एक सूचना में पता चला की अनाजपुर गाँव के किसान इस फिल्म को बनने से रोक रहे हैं। वह कह रहे हैं की इस फिल्म को बनाने के लिए अनिवार्य आज्ञा नहीं ली गई है। इस बात को राजमौली ने नहीं माना। नए वर्ष के समय इस फिल्म के निर्माण को 2 दिनों के लिए रोक दिया गया। इसे 3 जनवरी 2014 से शुरू किया गया। मकर संक्रांति के दौरान इस फिल्म में पुनः रुकावट आई और फिल्मांकन पुनः 16 जनवरी 2014 से शुरू हो सका। इस फिल्म ने 18 जनवरी 2014 को अपने फिल्म के निर्माण के 100 दिन पूरे किए।

रामोजी फिल्म सिटी, जहाँ फ़िल्म का मुख्य हिस्सा बना 

28 मार्च 2014 से रात के समय सारे भाग रामोजी फिल्म सिटी में ही बनाए गए। 5 अप्रैल 2014 को राजमौली ने बताया की लड़ाई का आखिरी हिस्सा का ही निर्माण बचा हुआ है। इसके लिए एक नई तिथि तय हुई। कुछ समय के आराम के पश्चात 20 अप्रैल 2014 को पुनः कार्य शुरू हुआ। पहले भाग के दल को मई 2014 के रमोजी फ़िल्म सिटी में कार्य के पश्चात उन्हें कुछ समय के लिए आराम करने छुट्टी दी गई। उसके पश्चात राणा भी आराम के लिए छुट्टी में चले गए। इसके पश्चात ही तमन्ना जून 2014 से दिसम्बर 2014 तक दल से जुड़ गई। साथ ही सुदीप भी 7 जून 2014 को वापस दल में शामिल हो गए। उनके साथ सत्यराज भी शामिल हो गए। वह सभी गोलकोण्डा किले से एक नए हिस्से के निर्माण में लग गए। यह हिस्सा 10 जून 2014 को समाप्त हुआ। राजमौली ने इसके कुछ हिस्सों को पुनः बनाते हैं, जो पिछले वर्ष भारी वर्षा के कारण रुक गया था। 23 जून 2014 को हैदराबाद में दल के साथ तमन्ना भी शामिल हो गई। इस फ़िल्म का निर्माण हैदराबाद के अन्नपूर्णा स्टूडियो में शुरू हुआ। जिसमें प्रभास, तमन्ना, अनुष्का और राणा ने काम किया। यहाँ फ़िल्म के कुछ महत्वपूर्ण भाग बनाए गए। इसे बनाने में 4 दिन का समय लग गया। इसी दौरान यह दल बुल्गारिया तक यात्रा करता है। यहाँ उस भाग का निर्माण किया गया, जो अक्टूबर 2013 में भारी बारिश के कारण तबाह हो गया था।

महाबलेश्वर, जहाँ धुंध, बारिश और ठण्ड के मौसम में इस फ़िल्म के कुछ भाग बनाए गए।

एक गीत के निर्माण में प्रभास और तमन्ना दोनों रामोजी फ़िल्म सिटी में जुलाई 2014 के तीसरे सप्ताह में के शिवशंकर के द्वारा नृत्य सीखते हैं। यह नृत्य रस्सी आदि के सहारे किए गए, जो सामान्यतः किसी लड़ाई के दौरान उपयोग होते हैं। इसके गाने में के के सेंथिल कुमार द्वारा कई लड़ाई के कई हिस्से लिए गए। इसके अलावा इसमें कई उन्नत प्रभाव भी डाले गए हैं। इसके पूर्ण होने के पश्चात इसका अगला भाग रामोजी फ़िल्म सिटी में पीटर हेन के देख रेख में बनाए गए। 10 अगस्त 2014 में यह बताया गया कि यह पहली तेलुगू फ़िल्म है, जिसे बनाने में 200 दिन लगे। इसके पश्चात एक नया भाग महाबलेश्वर में बनाने का निर्णय लिया गया। यह कार्य 26 अगस्त 2014 को शुरू हुआ। सभी कलाकार और दल इस जगह के बेकार मौसम में भी जिसमें धुंध, बारिश और ठण्ड भी शामिल है। इस हिस्से को पूर्ण कर लिया। इसके पश्चात दल अगले हिस्से के लिए रामोजी फ़िल्म सिटी लौट गया। जहाँ 12 सितम्बर 2014 से निर्माण शुरू हुआ। साबू क्यरिल ने 100 फीट का एक मूर्ति का निर्माण किया।. तेलुगू फ़िल्म संस्थान के कार्यकर्ताओं द्वारा हड़ताल के कारण इसके निर्माण में और समय लग गया।

इसके कुछ हिस्से रमोजी फिल्म सिटी में 30 नवम्बर तक प्रभास और राणा के साथ बनाए गए। इसके निर्माण के दौरान तमन्ना को एक कृत्रिम पेड़ पर दिखाया गया। जिसे साबू क्यरिल ने बनाया था। इसमें इस बात को ध्यान में रखा गया था, की तेज हवा में वह कहीं दूर न उड़ जाए। दिसम्बर 2014 में उन्हें 25वें दिन हैदराबाद से बुल्गारिया में स्थानांतरित करना पड़ा। क्योंकि तेलुगू फिल्म के कर्मचारियों ने हड़ताल कर रखा था। वह तीन सप्ताह बाद 23 दिसम्बर 2014 को वापस हैदराबाद लौट आए। इसके बाद निर्माण कार्य चलता गया। इसके बाद निर्माण के लिए राजस्थान से हजारों घोड़ों को खरीदा गया। इसके बाद मार्च 2015 में मनोहरी नामक एक गाना फिल्माया गया।

संगीत

बाहुबली के गाने हिन्दी, तेलुगू और तमिल तीनों भाषाओं में बने हैं। हिन्दी में गानों के बोलों को मनोज मुंतशिर ने और तमिल के सभी गानों के बोल को मधन कर्की ने लिखा है। वहीं इस फ़िल्म में संगीत इसके निर्देशक राजामौलि के भतीजे एम॰ एम॰ कीरवानी ने दिया है।

प्रदर्शन

इस फिल्म का प्रदर्शन 10 जुलाई 2015 को 4 हज़ार से अधिक सिनेमाघरों में किया गया। तेलुगू और हिन्दी के ट्रेलर को 10 लाख से अधिक लोगों ने देखा। इस ट्रेलर को 24 घंटों में फ़ेसबुक पर 1.50 लाख लोगों ने देखा और 3 लाख ने पसंद किया व 2 लाख लोगों ने इसे साझा किया। लेकिन इसे केरल के कुछ ही सिनेमाघरों में दिखाया गया था।

प्रचार

इसके प्रचार के लिए निर्माण के कुछ छोटे दृश्यों को भी प्रदर्शित किया गया था। यह सभी दृश्य अर्का मीडिया वर्क्स के आधिकारिक यूट्यूब खाते में डाले गए थे। इसका प्रचार मुख्य रूप से हैदराबाद में किया गया। इसके लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया था जिसमें जीतने वाले को फिल्म के निर्माण स्थल में जाने का मौका मिलता। फिल्म के निर्माण की जानकारी व्हाट्सएप पर लगातार उपलब्ध कराई जा रही थी। इसके प्रचार में इस बात से भी काफ़ी मदद मिली कि यह बीबीसी की एक डाक्यूमेंट्री (भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष) में भी उद्धृत हुई जिसका निर्देशन संजीव भास्कर द्वारा किया गया है।

समालोचना

इसके प्रदर्शन के पश्चात इसे इसके दृश्य प्रभाव, कथन और पृष्ठभूमि के लिए कई सकारात्मक समीक्षा मिल चुकी है। दैनिक भास्कर ने इसे 5 में से 3.5 सितारे ही दिये। इसने राजमौली के निर्देशन की प्रशंसा की और इसके गानों में 2-3 को छोड़ कर सभी गानों को अच्छा और दर्शकों को आकर्षित करने वाला बताया। हरिभूमि ने भी निर्देशन की प्रशंसा की। इसके साथ-साथ प्रभास और राणा दग्गुबती के अभिनय और किरदार की भी प्रशंसा की। 

कमाई

बाहुबली ने पहले ही दिन देश विदेश मे 60-70 करोड़ कमाने वाली भारत की पहली फिल्म का दर्जा प्राप्त किया। बाहुबली ने पहले सप्ताह के अंत तक में 250 करोड़ (US$36.5 मिलियन) की कमाई की। यह चौथी सबसे बड़ी फिल्म है, जिसने तीन दिन में ही 162 करोड़ की कमाई की है। इस फिल्म ने विदेशों में पहले ही दिन 20 करोड़ (US$2.92 मिलियन) की कमाई की। अमेरिका और कनाडा में इसने 1.2 मिलियन डालर (7.2 करोड़ रुपये) की कमाई की। फ़िल्म के हिन्दी संस्करण ने पहले दिन 4.25 करोड़ (US$6,20,500) की कमाई की जो किसी भी डब हिन्दी फ़िल्म के लिये दूसरी सबसे बड़ी कमाई के रूप में दर्ज़ हो गयी। इस तरह बाहुबली देश विदेश में 9 दिन मे 303 करोड़ की कमाई करने वाली पहली दक्षिण भारतीय फिल्म गयी। हिन्दी संस्करण कि कुल कमाई पहले सप्ताह में 19.50 करोड़ (US$2.85 मिलियन) पहुँच गई।


----------------------------------------------------------------
 मुख्य कलाकार 

प्रभास - शिवडु उर्फ माहेन्द्र बाहुबली एवं अमरेंद्र बाहुबली की भूमिका में
राणा डग्गुबती - भल्लाल देव/पल्लवाथेवान
अनुष्का शेट्टी - महारानी देवसेना
तमन्ना - अवनतिका, एक विद्रोही योद्धा और शिवा की प्रेयसी
रमैया कृष्णन - शिवागामी, शिवा की पालक माता
सत्यराज - कट्टप्पा, राज अंगरक्षक
नास्सर - बिज्जालादेव, भल्लाल देव के अपाहिज पिता
रोहिणी - सांगा
तन्नीकेला बहारणी - स्वामीजी
अदिवि शेष - भद्रा, भल्लाल देव का पुत्र
प्रभाकर - राजा कालाकेया
सुदीप (अतिथि भूमिका) - असलम ख़ान
एस. एस. राजामौली (अतिथि भूमिका) - क्रेता
नोरा फ़तेही (अतिथि भूमिका) - नृतक, हरे रंग के परिधान में।
स्कार्लेट मेलिश विल्सन (अतिथि भूमिका) - केसर रंग के परिधान में।
स्नेहा उपाध्याय (अतिथि भूमिका) - नीले रंग के परिधान में।
राकेश वैर्रे -भल्लाल देव का मित्र
तेजा काकुमनु - साकेथुडु
भरानी -मर्थण्डा
सुब्बार्या शर्मा
अदात्या - राज गुरू

------------------------------------------------------

निर्देशक - एस॰एस॰ राजामौली
निर्माता - के राघवेंद्र राव
शोबू यर्लागद्दा
प्रसाद देवीनेनी
पटकथाशंकर,
राहुल कोडा,
मधन कर्की,
विजयेन्द्र प्रसाद
कहानी - वी॰ विजयेन्द्र कुमार

छायाकार - के॰के॰ सेंथिल कुमार
वितरक - अर्का मीडिया वर्क्स


--------------------------------------------------------------------------------------------------------------



बाहुबली की ख़ास 12 बातें 

1. टिशू पेपर से बनाया 1000 फीट का झरना
फिल्म के दोनों पार्ट में करीब 1000 फीट ऊंचाई से गिरने वाले वाटरफॉल के सीन को टिशू पेपर की मदद से शूट किया गया है। टिशू पेपर को लंबे और मीडियम साइज में काटकर झरने वाले सीन में पानी की तरह मशीन से गिराया गया था। टीम ने मशीन की फिक्व्रेंसी ऐसी सेट की थी कि टिशू पेपर बिना रुकेे लगातार पानी की तरह ही गिरता रहे। ताकि यह एकदम रियल लगे। बर्फ के बुरादे के लिए भी हमने टिशू पेपर का ही इस्तेमाल किया गया था। इसे लोगों ने खूब पसंद किया है। झरने की शूटिंग केरल की है। झरने का नीचे का हिस्सा असली है। ऊपर से झरना गिरने का सीन टिशू की मदद से है।

2.पैलेस की नक्काशी राजस्थान के मंदिर की
बाहुबली-2 में बना माहिष्मति किंगडम पैलेस देश में किसी भी फिल्म के लिए बनाया गया अब तक का सबसे ऊंचा पैलेस है। इसके पीछे सोच थी कि इसमें भव्यता दिखे। इसकी ऊंचाई 300 मीटर है। ये पेरिस के एफिल टॉवर के बराबर है। राजस्थान के 2 मंदिरों पर रिसर्च करने के बाद पैलेस के अंदर की नक्काशी की गई थी। यह काफी बारीक है। इसे बिल्कुल रियल लुक देने के लिए राजस्थान से पेड़, मार्बल और बुल्गारिया से रॉ मटेरियल मंगाया गया था। माहिष्मति पैलेस के सेट को बनाने के लिए 1900 लोगों ने 90 से 100 दिन तक लगातार काम किया।

3. धान काटने की मशीन से रथ का आइडिया

पहले भाग में  सिंगल ब्लेड का रथ दिखाया गया  था। दूसरे पार्ट के लिए 4 ब्लेड का रथ बनाया गया । टीम को इसका विचार किसानों की धान काटने की मशीन को देखकर आया था। इसे चलाने के लिए एक लाख रु. की बुलेट खरीदी गई और उसके इंजन को रथ में फिट किया गया था। जिसे बनाने में एक माह का समय लगा था।

4.1500 सैनिक थे, युद्ध में दिखाए सवा लाख

फर्स्ट पार्ट के क्लाइमेक्स सीन में माहिष्मति के 25 हजार सैनिक दुश्मन के 1 लाख सैनिकों से लड़ते दिखाए गए हैं। ये रियल टाइम नहीं था। रियल टाइम में एक समय में 1500 से ज्यादा सैनिकों को शूट करना नामुमकिन था। यही कारण है कि इस सीन में बाकी के 1.24 लाख योद्धाओं को 3डी तकनीक से दिखाया गया। इन नकली सैनिकों को बाद में कंप्यूटर से जोड़ा गया। इसके अलावा भी युद्ध के सभी दृश्यों में अधिकतम 1500 असली सैनिक ही लिए गए हैं। क्लाइमेक्स का यह सीन भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा क्रोमा सीन है। इसमें एल शेप का ग्रीन पर्दा इस्तेमाल हुआ।

5. 100 ट्रक मिट्‌टी डाली फिर बाहुबली मरा

बाहुबली को मारने वाले सीन की शूटिंग चंबल वैली में होनी थी। लेकिन शूट के एक हफ्ते पहले अचानक बारिश होने से वैली में घांस उग आई थी। जबकि, ये सीन प्लेन और बिना हरियाली वाली जगह में शूट करना था। फिर इसे हैदराबाद के आउटर में "क्वेरी' में शूट किया गया । यहां ना रोड थी ना पहाड़। रातोरात 100 ट्रक मिट्टी गिरवाकर रोड़ बनवाई गई। 60 फीट ऊंचे नकली पहाड़ बनाकर उस पर लाल कलर का टैक्सचर पेंट किया गया। राजस्थान से पेड़ मंगाकर फाइबर ग्लास की मदद से इन पेड़ों की नकल बनाई गई। बाहुबली के मरने वाले सीन का सेट तैयार करने के लिए 45 दिन तक 200 लोगों ने दिन-रात काम किया।

6. हेलीकॉप्टर विंग मैटेरियल से बने हल्के हथियार

इस फिल्म के लिए  सांड, घोड़े, सांप आदि सभी जानवर और छोटे-बड़े हथियार हेलीकॉप्टर के विंग को बनाने वाले मैटेरियल कार्बन फाइबर से बनाए गए थे। देश में पहली बार किसी फिल्म में कार्बन फाइबर का इस्तेमाल हुआ है। फौलाद जैसे ताकतवर फाइबर का वजन हल्का होता है। युद्ध के कई दृश्यों में पचासों बार हथियार चलाना था। हथियार चलाने में हाथ दर्द ना हो और वे असली भी लगे, इसी मकसद से  कार्बन फाइबर का इस्तेमाल किया गया है। 2000 के करीब कारिगारों ने महल, किला और अन्य सैट बनाए। 4 क्रेन सेट एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करने के लिए खड़ी रहती थीं।

7. 5 साल तक शूटिंग के लिए उठना पड़ा सुबह 3.30 बजे

 सभी क्रू मेंबर्स रोजाना सुबह 3.30 बजे उठ जाते थे। 4.30 बजे लोकेशन के लिए निकलना होता था। एक घंटे के ट्रैवल के बाद सभी सेट पर पहुंचते थे। कुछ दिनों को छोड़कर बाकी सभी दिन सुबह 6-6:15 पर शूटिंग शुरू हो जाती थी। 5 साल तक सभी लोगों ने इसी रूटीन को फॉलो किया था। बाहुबली के दोनों पार्ट की शूटिंग 615 दिन चली थी। काम जुलाई 2013 में शुरू किया गया था और जनवरी 2017 तक चला। विदेशी स्टूडियोज़ की भी मदद ली गयी । 30 स्टूडियो ने फिल्म में विजुअल इफेक्ट पर काम किया है। 3.5 साल का समय लगा। यूक्रेन, सर्बिया, इरान और चीन के स्टूडियो में काम हुआ।

8. ‘बाहुबली' और ‘भगवान कृष्ण' का ये संबंध है

यह  पूरी तरह से फिक्शन मूवी है। कोई भी कैरेक्टर रियल स्टोरी से मैच नहीं करता है। हां, ये जरूर है कि बाहुबली को भगवान कृष्ण की महाभारत से इन्सपायर होकर लिखा गया है। बिज्जलदेव का कैरेक्टर महाभारत के शकुनि मामा जैसा है। भल्लालदेव दुर्योधन जैसा है, जिसे लगता है उसके साथ गलत हुआ है और हर हाल में साम्राज्य पाना चाहता है। महेंद्र बाहुबली कुछ-कुछ भगवान कृष्ण और भगवान राम की तरह है। कटप्पा रामायण के हनुमान की तरह है। चार भाषाओं में फिल्म डब की गई है। तमिल, तेलुगु, मलयालम और हिन्दी में। पार्ट 2 देश के 6500 थियेटरों में लगी है।

9. 2 मिनट के सीन की शूटिंग में लगे 100 दिन

मूवी की स्क्रिप्टिंग के दौरान  सबसे बड़ी डिमांड युद्ध, मार-धाड़, लड़ाई, टेक्नोलॉजी का जबरदस्त इस्तेमाल जैसी चीजें थीं। प्रभास के रूप में  मूवी का एक्टर पहले ही तय कर लिया गया था। बाद में उसकी पर्सनैलिटी और इन सारी जरूरतों के आधार पर स्क्रिप्टिंग के लिए कहा गया था।  सबसे मुश्किल लास्ट की लड़ाई को शूट करना था। 2 मिनट के सीन की शूटिंग में करीब 100 दिन लग गए थे। इसमें तकनीक का भी बेहतर इस्तेमाल किया गया  है। 10 करोड़ लोगों ने फिल्म का ट्रेलर इसके जारी हाेने के एक सप्ताह के भीतर देखा। भारत में किसी फिल्म का ट्रेलर पहले कभी इतना नहीं देखा गया।

10. बाहुबली’ के 90% सीन हैं पूरी तरह से नकली

दोनों पार्ट के 90 फीसदी सीन नकली हैं। फिर चाहे वो कटप्पा द्वारा बाहुबली को मारने वाला सीन ही क्यों न हो। फिल्म में दिखे पहाड़ से लेकर जानवर तक सभी के निर्माण में  तकनीक के बेहतर इस्तेमाल पर जोर दिया गया  है। इन सीन्स को कम्प्यूटर ग्रॉफिक्स इमेज (सीजीआई) और 3डी की मदद से शूट किया गया है। अगर किसी को असली-नकली सीन्स की पहचान करनी हो तो उसे शूट का एंगल देखना चाहिए। करीब से लिए गए सभी शॉट ओरिजनल हैं। 20 से 25 फीट की दूरी से लिए गए सीन ही फिल्म में केवल रियल हैंं। दूर से लिए गए सभी तकनीक और सेट के कमाल से बने हैं।

11. 4 हिस्सों में बना भल्लाल का 400 किलो का स्टैच्यू

माहिष्मति किंगडम में लगे भल्लालदेव के स्टैच्यू का वजन 400 किलो है। इसे करीब 400 लोगों की  टीम ने बनाया है। इसे 4 अलग-अलग हिस्सों में तैयार किया गया है। जिसमें करीब 1 महीने का समय लगा था। मूवी के क्रू मेंबर्स को भल्लालदेव का स्टैच्यू लगाने का आइडिया ग्रीस के कोलोस्सस ऑफ रोहड्स को देखकर आया था। ग्रीस के इस स्टैच्यू को प्राचीन संसार के 7 अजूबों में से एक माना जाता है।

12. क्रू मेंबर्स ने कहा, ड्रामा लाओ- तो मरा बाहुबली

बाहुबली की शुरुआती स्क्रिप्ट में कटप्पा द्वारा बाहुबली को मारे जाने का प्लान नहीं था। इस सीन की जगह कहानी कुछ और ही थी। लेकिन जब मूवी क्रू ने फिल्म में ड्रामा ऐड करने को कहा, उसके बाद ये सीन सबसे आखिरी में जोड़ा गया । अगर टीम द्वारा ड्रामे की डिमांड ना होती तो शायद ये सवाल वायरल ना हो पाता कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा...? आज ये मूवी की जान है।  उस समय यह उम्मीद नहीं थी कि यह इतना हिट हो जाएगा।
विदेश के 30 थियेटरों में भी यह रिलीज़ हो रही है। बाहुबली ऐसी फिल्म है जिसमें इसके कलाकारों से ज्यादा चर्चा इसके निर्देशक की है।

--------------------------------------------------------
बाहुबली 3 भी बन सकती है


 बाहुबली 3 भी बन सकती है।  भाग दो की कहानी यह कह रही है। भले ही भाग 2 की तरह भाग 3 अपेक्षित न हों, लेकिन बाहुबली: द कॉन्क्लूज़न में कई घटनाएं और कहानियों का रुख अगले भाग की ओर इशारा कर रहे हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर एस राजामौली बाहुबली 3 बनाने की घोषणा कर दें। क्यों बननी चाहिए भाग 3 या क्यों बन सकती है बाहुबली 3, इसके एक दो नहीं कुल 10 कारण हैं-

1- जिंदा हैं भल्लाल के पिता बिज्जलदेव

बाहुबली (प्रभास) को अपनी रणनीतियों से मरवाने वाला भल्लालदेव (राणा दुग्गुबाती) का पिता बिज्जलदेव (नस्सर) अभी भी जिंदा है। महेंद्र बाहुबली ने भल्लालदेव को तो मार दिया लेकिन बिज्ज्लदेव को छोड़ दिया। ऐसे में ये सवाल उठा रहा है कि बाहुबली के दोनों भागों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला ये शख्स अगर जिंदा है तो इसके पीछे कुछ तो कारण होगा ही।

2- कटप्पा को जिंदा रखने का कारण

पहले भाग की तरह इस भाग में भी कटप्पा (सत्यराज) की भूमिका सबसे महत्वपूण रही। या यों कहें कि कटप्पा का रोल सब पर भारी रहा। बूढ़े हो चुके कटप्पा को इस भाग में खत्म किया जा सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

3- महेंद्र बाहुबली और अवंतिका की शादी

महेन्द्र बाहुबली और अवंतिका (तमन्ना भाटिया) की शादी इस भाग में नहीं हुई। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि अगले भाग में दोनों की शादी होगी और कहानी और आगे बढ़ेगी।

4- अवंतिका का रोल छोटा करना

पहले भाग में देवसेना (अनुष्का शेट्टी) का रोल कम था। इस भाग में अवंतिका की झलक मात्र दिखाई गई है। चूंकि देवसेना सख्त तेवर की हैं, तो ऐसे में अगले भाग में सास-बहू की कहानी को बिज्जलदेव अपने सकूनि चाल से आगे बढ़ा सकता है। बाहुबली 2 में महेंद्र भले ही अपनी मां देवसेना से मिल गया हो लेकिन प्रेमिका अवंतिका से उसका मिलन अभी अधूरा है। यानी बाहुबली 3 बनने का रास्ता पूरी तरह खुला है।

5- राजामौली ने भी बनाए रखा है सस्पेंस

बाहुबली 2 को लेकर हुए तमाम प्रमोशनल इवेंट्स में राजामौली के सामने ये सवाल आया कि क्या बाहुबली 3 बनेगी। इसको लेकर उन्होंने कुछ स्पष्ट नहीं कहा। वैसे उन्होंने यह बात कबूली कि पहले बाहुबली को लेकर वेब सीरीज बनाएंगे। ऐसे में राजामौली खुद भाग 3 कही ओर इशारा कर रहे हैं।

6- बाहुबली 2 का आखिरी सीन याद करिए

राजा बनने के बाद महेंद्र बाहुबली ने कहा कि मेरा वचन ही मेरा शासन है। उनके पिता को भी प्रजा राजा के रूप देखना चाहती थी लेकिन उनकी हत्या हो गई। ऐसे में महेंद्र बाहुबली अपने पिता और प्रजा के लिए शासक बन सकते हैं। अगले भाग में उनको कुशल शासक के रूप में पेश किया जा सकता है।

7- पिंडारियों का खत्म न होना

पिंडारियों पर पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं। वीर में सलमान खान पिंडार के रुप में दिखे थे। देवसेना की राज्य को बचाने के लिए बाहुबली ने कुछ पिंडारियों को मारा तो जरूर लेकिन उनका खात्मा नहीं हुआ। ऐसे में अगले भाग में पिंडारी महेंद्र बाहुबली से बदला ले सकते हैं। इसलिए भी अगला भाग बनाया जा सकता है।

8- शिवडु और संगा की कहानी

शिवडु और और उसकी मांग संगा की कहानी तो आपको याद ही होगी। बाहुबली के पहले भाग में जबतक बाहुबली पहाड़ के ऊपर नहीं जाते जबतक उनको अपनी सच्चाई नहीं पता चलती तब तक उनका नाम शिवडु था और उनकी मां का नाम संगा था। भाग दो में संगा के कैरेक्टर को साइलेंट रखा गया है। ऐसे में में उनकी भूमिका को जीवंत करने के लिए भाग तीन बनाई जा सकती है।

9- संन्यासी ने बताई शिव की मर्जी

फिल्म के एकदम आखिरी में एक बच्चा सवाल पूछता है कि माहिष्मती पर शासन किसने किया। क्या महेंद्र बाहुबली और उनके बच्चों का राज चला। इस पर बाहुबली वाले संन्यासी की आवाज में जवाब आता है- शिव की मर्जी मैं क्या जानूं। मतलब इसका जवाब अगले भाग में बताया जा सकता है।

10- हिट फिल्मों की सीरीज का चलन

जैसा की हम हॉलीवुड में देख चुके हैं। हिट फिल्मों की पूरी सीरीज चलती है। दोनों भाग के हिट होने के बाद अगले भाग का तुक इसलिए भी बढ़ सकता है।
-----------------------------------------------------------------
 विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी सरकार

विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी सरकार


 विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी सरकार

संजय तिवारी 
अध्यक्ष भारत संस्कृति न्यास , नयी दिल्ली 
9450887186 

विपक्ष के लोग यद्यपि मोदी की यात्राओ पर तरह तरह की टिप्पणियां करते है लेकिन इन यात्राओ की अनगिनत उपलब्धियों के कारण ही आज दुनिया जिस तरह से भारत की तरफ देख रही है वह ऐतिहासिक है। कुछ पंडित भारत के इस स्वरुप में इस विदेश नीति को आक्रामक होने की बात कहते है लेकिन यह समय के साथ होने वाली स्पर्धा है जिसमे हमारे प्रधानमंत्री को यह सब करना पड़ा है , इससे इनकार नहीं किया जा सकता। अब जबकि मोदी के सत्ता में आये तीन वर्ष पूरे होने जा रहे है तथा अंग्रेजी कैलेंडर में वर्ष बदलने जा रहा है , भारत की विदेश नीति को लेकर चर्चाये होना स्वाभाविक है। क्योकि इसी दौर में दुनिया एक नए तरह के वातावरण में प्रवेश कर रही है। अमेरिका सहित दुनिया के कई देशो में दक्षिणपंथ का उदय हो रहा है। वैश्वीकरण पर संकट के बादल हैं और दुनिया नयी परिभाषाओ के साथ सामने आकार ले रही है। ऐसे में विवेचना दोनों की ही होनी चाहिए - इतिहास की भी और वर्त्तमान से जुड़े भविष्य की भी।  एक तरह से देखने पर नरेंद्र मोदी की विदेश नीति भारत को अधिक प्रतिस्पर्धी, विशस्त और सुरक्षित देश के रूप में नए सिरे से तैयार करने में सक्षम प्रतीत होती है । यद्यपि मजबूत विदेश नीति की बुनियाद मजबूत घरेलू नीति ही होती है | वह भारत ,जहाँ सम्पूर्ण विश्व का छठवा भाग निवास करता है, हमेशा  अपनी शक्ति से बहुत कम प्रहांर करता है । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह नियम-निर्माता नहीं नियम मानने वाला देश रहा है। 

सुखी और शांत पडोसी 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की विदेश नीति में सुखी और शांत पडोसी बनाने की पहल सबसे बड़ी ताकत है। मोदी ने अपने शपथग्रहण के दिन से ही इसकी शुरुआत कर दी थी जिसे 5 मई को कर के भी दिखा दिया। यह अलग बात है कि इस दिशा में पकिस्तान एक नासूर ही बन कर सामने आता रहा है। पकिस्तान को छोड़ दीजिये तो आज हम यह कह सकने की स्थिति में हैं कि समूचा दक्षिण एशिया आज एक कुटुंब के रूप में उभर कर सामने आया है जो मोदी की नीतियों की सबसे बड़ी विजय है। इस बात को दक्षिण एशिया के सभी देशो ने भी स्वीकार किया है।
इसरों की तरफ से दक्षिण एशिया संचार उपग्रह जीसेट-9 को लांच करने के बाद दक्षिण एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भारत को शुक्रगुजार मानते हुए कहा  कि भारत के इस कदम से क्षेत्रीय देशों का आपसी संपर्क बढ़ेगा। सैटेलाइट में उपग्रह छोड़े जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यह लांच इस बात को प्रमाणित करता है कि जब क्षेत्रीय सहयोग की बात हो तो आसमान में कोई सीमा नहीं होती है। पीएम ने कहा कि क्षेत्रीय जरूरतों के हिसाब से इसरो की टीम ने दक्षिण एशिया सैटेलाइट का निर्माण किया। मोदी ने आगे कहा कि इस लांचिंग के मौके पर मुझसे जुड़ने के लिए अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भुटान, नेपाल, मालदीव और श्रीलंका के अपने सहयोगी नेताओं का शुक्रिया करता हूं। मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने कहा कि सैटेलाइट का लांच होना पहले पड़ोसी की भारत की नीति को जाहिर करता है। जबकि, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना ने इसे ऐतिहासिक मौका बताते हुए पीएम मोदी को बधाई देते दी। उन्होंने कहा कि सार्क देशों के बीच समन्वय की दूरदृष्टि और मधुर संबंधों के महत्व को जाहिर करता है। मैत्रिपाला ने आगे कहा कि यह ऐसा कदम है जो सभी क्षेत्रों में लोगों की मदद करेगा, आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी और गरीबी को उन्मूलन में कारगर साबित होगा। भूटान के प्रधानमंत्री सेरीन टोबगे ने कहा कि इस सैटेलाइट के लांच करने के बाद आपसी क्षेत्रीय सहयोग बढ़ेगा और क्षेत्र की प्रगति होगी। तो वहीं, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत सरकार को बधाई देते हुए आशा जताई है कि यह कदम क्षेत्र में आपसी सहयोग का नया द्वार खोलेगा।
 दुनिया में एक मिशन के तहत सबसे अधिक सैटेलाइट्स की सफल लॉन्चिंग के बाद भारत दक्षिण एशियाई देशों के लिए GSAT-9 को अंतरिक्ष में भेज दिया। इस क्षेत्र के देशों के लिए यह काफी अहम उपहार है। बदलते दौर में अपने पड़ोसियों से संबंधों को मजबूत करने के लिए भी यह सैटेलाइट काफी अहम भूमिका निभाएगा। नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका के लिए भारत का यह उपहार कई मायनों में अहम इसलिए भी है क्‍योंकि इन देशों का अपना या तो कोई सैटेलाइट है ही नहीं या फिर उससे मिलने वाली सेवाएं इतनी खास नहीं हैं। इस सैटेलाइट लॉन्चिंग से जुड़ी एक अहम बात यह भी है कि इस सैटेलाइट की सेवाओं के लिए भारत ने किसी भी अन्‍य देश से कोई राशि नहीं ली है। इसका अर्थ है कि इस क्षेत्र के सभी देश इस सैटेलाइट से मिलने वाली जानकारियों को अपने हित के लिए इस्‍तेमाल कर सकेंगे। हालांकि पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान ने इसमें भागीदार नहीं है। अपनी 11वीं उड़ान के ज़रिए जीएसएलवी रॉकेट एक खास उपग्रह साउथ एशिया सैटलाइट को अंतरिक्ष में अपनी कक्षा में स्थापित करेग। यह नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, श्रीलंका को दूरसंचार की सुविधाएं मुहैया कराएगा। इसके ज़रिए सभी सहयोगी देश अपने-अपने टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण कर सकेंगे। किसी भी आपदा के दौरान उनकी संचार सुविधाएं बेहतर होंगी। इससे देशों के बीच हॉट लाइन की सुविधा दी जा सकेगी और टेली मेडिसिन सुविधाओं को भी बढ़ावा मिलेगा। 

अरब देशों से रिश्ते बेहतर करने की पहल

पश्चिम एशियाई देशों से भारत की बढ़ती नजदीकी बहुत ज्यादा सुर्खियां नहीं बटोर रही है. मगर मोदी सरकार का अरब देशों से ताल्लुक बेहतर करने का मिशन कई लोगों को पसंद आया है.कई जानकारों को लगता है कि, अरब मुल्कों से नजदीकी बढ़ाने से घरेलू मोर्चे पर मोदी सरकार ये संदेश भी देने में कामयाब होगी कि वह धर्मनिरपेक्ष है.
प्रधानमंत्री मोदी का इरादा विदेश नीति में पश्चिमी एशियाई देशों को अहमियत देने का है. उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ईरान, इराक और कतर के अलावा फिलिस्तीन से ताल्लुक बेहतर करने पर जोर दिया है.
हालांकि, इन नीतियों से भारत अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर संदेश देना चाह रहा है. मगर इसका घरेलू राजनीति पर भी असर होगा. भारत में 14 करोड़ मुसलमान रहते हैं, जो दुनिया के किसी देश में मुसलमानों की दूसरी सबसे ज्यादा आबादी है.
प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक और विदेश नीति में काफी दिलचस्पी है. अरब देशों के साथ संबंध बेहतर करके वो मुस्लिम देशों के बीच पाकिस्तान के असर को भी कम करना चाह रहे हैं. ताकि भारत के साथ विवाद में इन देशों का पाकिस्तान को मिल रहा समर्थन कमजोर हो. बहुत से लोग पीएम मोदी की इस नीति के समर्थक हैं. सूत्रों के मुताबिक, मोरक्को की राजधानी रबात से कुछ जानकारियां ऐसी मिली हैं कि आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा मोरक्को की जमीन का इस्तेमाल अपनी गतिविधियों के लिए कर रहे हैं.

मोरक्को से गुजारिश

 भारत पिछले 10 साल से मोरक्को से गुजारिश कर रहा था कि वो अपने देश में लश्कर की गतिविधियों की जानकारी साझा करे. मगर भारत की अपील अनसुनी कर दी जा रही थी. अब हालात बदल रहे हैं.मोदी की मुस्लिम देशों से संबंध बढ़ाने की इस नीति के पीछे हैं विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर. अकबर सीरिया, इराक और फिलिस्तीन का दौरा कर चुके हैं, ताकि इन देशों से भारत के रिश्तों को नए सिरे से गढ़ा जा सके. सरकार मुस्लिम देशों से ताल्लुक बेहतर करने पर बहुत जोर दे रही है. इसी का नतीजा था कि इस बार गणतंत्र दिवस की परेड में संयुक्त अरब अमीरात के शहजादे शेख मोहम्मद बिन जायद अल नहयान को मुख्य अतिथि बनाया गया था.इस एक कदम से भारत ने ये साफ कर दिया है कि वो खाड़ी देशों से अपने रिश्तों को नई दशा-दिशा देना चाहता है. सूत्रों ने कहा कि, पूर्व प्रधानमंत्री कई बार अमेरिका गए मगर उन्होंने सिर्फ एक बार संयुक्त अरब अमीरात का दौरा किया जबकि, वहां बीस लाख से ज्यादा भारतीय रहते हैं. मोदी सरकार का ये कदम घरेलू राजनीति के लिहाज से भी कारगर है. संयुक्त अरब अमीरात के युवराज शेख मोहम्मद बिन जायद अल नहयान सरकार के मुखिया नहीं हैं. लेकिन वो संयुक्त अरब अमीरात के नेताओं की नई पीढ़ी की नुमाइंदगी करते हैं.
नहयान खाड़ी देश में बेहद लोकप्रिय हैं. उनकी वजह से संयुक्त अरब अमीरात और भारत की सुरक्षा एजेंसियों के बीच तालमेल बढ़ा है. पूर्व राजनयिक हरदीप पुरी कहते हैं कि ये भारत के लिए फायदे की बात है. हरदीप पुरी के मुताबिक ऐसे कदम से भारतीय मुसलमानों के बीच भी अच्छा संदेश जाता है.

संयुक्त अरब अमीरात से उम्मीदें

 भारत के मुसलमान मानसिक सहयोग के लिए संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब की तरफ उम्मीद भरी निगाह से देखते हैं. मोदी सरकार खाड़ी देशों से ताल्लुक पर जोर देकर भारतीय मुसलमानों के बीच अच्छा संदेश दे सकते हैं. साथ ही इससे इन देशों में पाकिस्तान का असर कम करने में भी आसानी होगी.शेख जायद अल-नहयान के दौरे से भारत को खाड़ी देशों में ब्रांड इंडिया को मजबूत करने में मदद मिलेगी. संयुक्त अरब अमीरात को भारत के निर्यात का दूसरा बड़ा हिस्सा जाता है, साथ ही संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा बड़ा कारोबारी साझीदार है. उसका नंबर चीन और अमेरिका के बाद आता है. दोनों देशों के बीच करीब पचास अरब डॉलर का कारोबार होता है.भारत के लिए फायदे की बात ये है कि दोनों देशों के बीच रक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ रहा है. साथ ही दोनों देशों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 75 अरब डॉलर के निवेश के समझौते पर भी बात चल रही है. छह देशों के सदस्यों वाली गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल, भारत की तेल और गैस की जरूरतों का आधा हिस्सा सप्लाई करती है.इन देशों के पास दुनिया के 45 फीसद तेल और 20 प्रतिशत गैस के भंडार हैं. खाड़ी देश भारत के बड़े बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाना चाहते हैं. हाल के दिनों में भारत ने फिलिस्तीन से भी संबंध बेहतर करने पर जोर दिया है. सीरिया और इराक के संघर्ष में भारत का रोल न के बराबर है. ऐसे में फिलिस्तीन से बेहतर ताल्लुक से भारत इस इलाके में अपना असर बनाए रखना चाहता है.

भारतीय मुसलमानों को संदेश

मोदी सरकार का अब तक पूरा जोर इजराइल से संबंध बेहतर करने पर रहा है. इससे कई अरब देश नाखुश भी हुए हैं. इसका भारतीय मुसलमानों के बीच भी अच्छा संदेश नहीं गया है. फिलिस्तीन से रिश्ते बेहतर करके मोदी सरकार इस नाखुशी को दूर करना चाहती है. भारत हमेशा से फिलिस्तीन का समर्थक रहा है. अब इस पर नए सिरे से जोर देकर वो इजराइल से बढ़ते रिश्तों से हो रही नाराजगी को दूर कर सकता है. साझा आयोग की बैठक में फिलिस्तीनी अधिकारियों ने इस बात पर खुशी जताई कि भारत ने उनसे संबंध बढ़ाने में फिर से दिलचस्पी दिखाई है. उन्हें लगता है कि, इसका फायदा फिलिस्तीन को भी मिल सकता है क्योंकि भारत के इजराइल से काफी अच्छे रिश्ते हैं. आज की तारीख में आधे अरब देश खुद ही इजराइल से रिश्ते बेहतर करने पर जोर दे रहे हैं. भारत इजराइल से बड़े पैमाने पर हथियार खरीद रहा है. दोनों देशों के बीच सुरक्षा साझीदारी बढ़ रही है. दोनों देश अब एटमी हथियारों की तकनीक के लेनदेन पर भी बात कर रहे हैं. साथ ही मौजूदा सरकार इजराइल की पानी के बेहतर इस्तेमाल की तकनीक का भी फायदा उठाना चाहती है.
 मोदी सरकार की फिलिस्तीन में दिलचस्पी की एक और वजह भी है. भारत, फिलिस्तीन के गाजा शहर मे इन्फोटेक पार्क बनाना चाहता है. ये फिलिस्तीन की तरक्की में भारत का अब तक का सबसे बड़ा योगदान होगा. विदेश मंत्रालय इस दिशा में तेजी से काम कर रहा है. पिछले महीने एम जे अकबर ने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को एक चिट्ठी लिखी थी. इसमें उन्होंने तीन फिलिस्तीनी यूनिवर्सिटी से सहयोग के समझौते को लागू करने में नाकामी पर नाखुशी जताई थी. चिट्ठी में उन्होंने जामिया के वाइस चांसलर तलत अहमद से पूछा था कि फिलिस्तीन की अल- कुद्स, अल इस्तिकाल और हेब्रान यूनिवर्सिटी से समझौता अधर में क्यों लटका है?

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति

प्रधानमंत्री मोदी अपनी कोशिशों के फौरी नतीजे चाहते हैं. वो मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत की जगह बेहद अहम है. वो देख रहे हैं कि ईरान और इजराइल से बहुत से देशों से अच्छे रिश्ते नहीं हैं. आज भारत और ईरान के ताल्लुक काफी अच्छे हो गए हैं. शायद किसी भी अरब देश से भारत के रिश्ते उतने अच्छे नहीं, जितनी आज की तारीख में ईरान से है. अगर अमेरिका, ईरान से पाबंदियां हटाता है तो इसका सबसे ज्यादा फायदा भारत को होगा. हालांकि ट्रंप प्रशासन से इसकी उम्मीद कम ही है.
भारत, ईरान और इजराइल के करीब आने से दुनिया की राजनीति पर भी असर पड़ना तय है. मोदी सरकार मानती है कि अरब देशों और ईरान-इजराइल से अच्छे संबंध से भारत को एनर्जी सिक्योरिटी मिलेगी, जो देश की तरक्की के लिए जरूरी है. साथ ही इसके जरिए वो दुनिया के नक्शे पर विश्व नेता की छाप छोड़ने में भी कामयाब होंगे. मोदी को ऐसे नेता के तौर पर देखा जाएगा जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना असर छोड़ा. पर सवाल ये है कि क्या ऐसा होगा? 'मोदी डॉक्ट्रिन' किताब के लेखक डॉक्टर अनिर्बान गांगुली ने भी माना हैं कि, बरसों से भारत की पश्चिमी एशिया नीति, पाकिस्तान के चश्मे से देखी जाती रही. जबकि, इसका भारतीय मुसलमानों पर गहरा असर होता है. अब मोदी सरकार अपनी नई विदेश नीति से इस तस्वीर को बदलना चाहती है. भारत के मुसलमान हमेशा से चाहते रहे हैं कि, भारत के मुस्लिम देशों से ताल्लुक अच्छे रहें. ऐसा कदम अब मोदी सरकार उठा रही है ताकि वो मुसलमानों की अपेक्षाओं पर खरी उतर सके.

वैसे भी विदेश नीति के मोर्चे पर वर्ष 2016 भारत के लिए बेहतरीन वर्ष साबित हुआ। बेहतरीन इस अर्थ में कि इस मोर्चे पर भारत की झोली में नाकामियां गिनी चुनी रही, मगर उपलब्धियों का भरमार रहा। खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताबड़तोड़ विदेश दौरे ने दुनिया के मंच पर भारत को नई पहचान दी। प्रधानमंत्री ने ताकवतर देशों के राष्ट्राध्यक्षों से बेहतर संबंध स्थापित करने के अलावा पाकिस्तान के वर्चस्व वाले मुस्लिम देशों में भी भाजपा की पैठ मजबूत कर दी। हालांकि साल 2016 के जाते जाते वैश्विक राजनीति में एकाएक आए परिवर्तन ने आने वाले साल के लिए मोदी सरकार की विदेश नीति के लिए अग्नि परीक्षा की  नींव रख दी । इसका कारण अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति बनना और कई मोर्चे पर नीति स्पष्ट न होना, रूस-पाकिस्तान-चीन की बन रही मजबूत तिकड़ी के अलावा मोदी सरकार की ओर से लिया गया नोट बंदी का फैसला है। वर्तमान वैश्विक दौर में विदेश नीति की सफलता-असफलता के लिए किसी भी देश की आर्थिक परिस्थिति सबसे बड़ा कारण बनती है। उपलब्धियों की बात करें तो साल 2016 ने भारत को दुनिया में एक नई पहचान दी। भारत ताकतवर देशों ही नहीं बल्कि सामरिक, कूटनीतिक दृष्टिï से महत्वपूर्ण देशों को भी साधने में सफल रहा। खासतौर पर आतंकवाद के सवाल पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति मजबूती से आगे बढ़ी और भारत ने कई मौकों पर चीन के समर्थन के बावजूद पाकिस्तान को आईना दिखाया। हम इस साल एमटीआर के सदस्य बने, रूस के साथ एयर डिफेंस सिस्टम समझौता हुआ। एनएसजी और यूएन की सदस्यता मामले में दावेदारी और मजबूत हुई। पड़ोसी देशों में पाकिस्तान-चीन को छोड़ कर अन्य देशों से रिश्तों में मजबूती आई। खासतौर पर इस दौरान पीएम मोदी-अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच बने परस्पर विश्वसनीय संबंध बड़ी उपलब्धि साबित हुई।

देश आज कहां खड़ा है?

 दुनिया, वैश्वीकरण के युग में, प्रौद्योगिकी के कारण , आर्थिक संबंधों, देशों से बड़ी संख्या में और देशों द्वारा बड़ी संख्या में लोगों की आवाजाही , उनके किनारे पर संसाधनों और आर्थिक अवसरों का दोहन करने के लिए निर्धारित प्रयासों के साथ एक दूसरे के साथ गहराई से जुड़े हैं । उसके बड़े और काफी परिष्कृत अर्थव्यवस्था, बड़े और युवा कर्मचारियों की संख्या, तकनीकी शिक्षा के उच्च स्तर, चौड़े भौगोलिक पहुंच के साथ मजबूत रक्षा बलों, और, कम महत्वपूर्ण नहीं, सांस्कृतिक सारसंग्रहवाद की अपनी स्थायी परंपरा – ज़ाहिर है, बिना अंग्रेजी भाषा पर कमांड की भूल जैसी परिस्थितियों की वजह से भारत को सामाजिक-आर्थिक प्रगति के अपने राष्ट्रीय उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए अवसर प्रदान करते हैं। ये सभी कारक उन विविध देशों के लिए जो विरोधाभासी हितों का अनुसरण कर रहें हैं, भारत को एक आकर्षक आर्थिक और राजनीतिक पार्टनर बनाते हैं। भारत की सैन्य पहुंच, उसके भविष्य क्षमता के साथ, मदद करता है – और अपने हित के क्षेत्रों में शक्ति संतुलन प्रभावित करने के लिए आगे भी मदद कर सकता है। उपरोक्त कारणों के लिए, एक शक्ति या अन्य के साथ संबंध निर्माण के विकल्पों में भारत के लचीलेपन के कारण वैश्विक मामलों में उसकी साख आज महत्वपूर्ण विदेश नीति और कूटनीतिक लाभ उठाने की है। यही कारण है कि अपने पहले संबोधन में हाल ही प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय राजदूत को सलाह दी है कि भविष्य में भारत की भूमिका, एक एक संतुलन शक्ति के बजाय एक प्रमुख शक्ति के रूप में हो।

भूमंडलीकरण की चुनौतियां

जैसेकि वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं और बलों का लाभ लेने के लिए भारत के पास संस्थागत चपलता है, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मौजूदा परिस्थितियां पूर्ववर्ती अवधि की तुलना में और अधिक जटिल हैं। और यह अहसास संस्थागत क्षमता निर्माण में व्यापक दिशा प्रयासों, राजनयिक सहित, की ओर ले जाना चाहिए चूंकि कई देशों को उनकी अक्षमता के कारण भयंकर नुकसान उठाना पड़ा है। इस भूमंडलीकरण अवधि को प्रक्रियाओं के मामले में और अंतरराष्ट्रीय संस्थागत क्षमता की अपर्याप्तता के मामले, दोनों में काफी अनिश्चितता और अनुनमेय के रूप में वर्गीकृत किया गया है । प्रौद्योगिकी ने व्यक्तियों सशक्त बनाया है – दोनों तरह से अच्छी तरह से निपटारे और रूग्‍न निपटारे – की तुलना में राज्‍य जिसने सूचना के आधार पर और विनाशकारी शक्ति पर अपने एकाधिकार को खो दिया है। राष्ट्रीय सीमाओं के पार वैश्विक व्यापार और उत्पादन-लिंकेज में भारी उछाल ने, अपर्याप्त बहुपक्षीय संस्थागत क्षमता के कारण विनियमन के कठिन होने ने वैश्विक आर्थिक संकट को लगातार और अप्रत्याशित बना दिया है जिसमें कोई भी देश अछूता नहीं रहा- क्षमता की इस कमी ने गहराई से सभी देशों को ही प्रभावित नहीं किया है बल्कि अमेरिका के प्रभाव और चीन की त्वरित वृद्धि में कमी के रूप में वैश्विक शक्ति संतुलन को भी कम किया है।

विफल रही / असफल रहने वाले राज्यों की घटना, वर्तमान वैश्वीकरण के युग में हालांकि अनोखी नहीं है और अधिक व्यापक रूप से विश्‍व के अलग-अलग हिस्सों में इन दिनों आज हमारे अपने सहित दुनिया देखी है। आंशिक रूप से 1991 में महाशक्तियों में घरेलू भागीदारी के अंत की वजह से, राज्य की विफलता की प्रक्रिया प्रौद्योगिकी, अतिवादी विचारधाराओं और आतंकवाद में विश्वास रखने वाले व्यक्तियों के समूह के उद्भव के कारण और गंभीर हो गयी है ; इस सामाजिक विघटन के वातावरण ने प्रदेशों के नाममात्र नियंत्रण में राज्‍यों के खिलाफ “अनियमित” या “शहरी” युद्ध के चरण के लिए प्रेरित किया। विफल राज्यों ने, बहुपक्षीय वैश्विक संस्थानों की अपर्याप्त क्षमता के साथ संयोजन में, विद्यमान और नये बहुसंख्यक सुरक्षा खतरों को गंभीर बना दिया है। इन अपर्याप्त राज्य क्षमताओं ने भोजन, पानी और ऊर्जा की उपलब्धता पर और उनके अंतर-रिश्तों की जटिलता पर नकारात्मक रूप से प्रभाव डाला है। वैश्विक कनेक्टिविटी और प्रौद्योगिकी के कारण, अतीत में क्‍या अप्रासंगिक होगा, वैश्विक चिंता का विषय बन गया है – जैसे सार्स या ईबोला के रूप में वैश्विक महामारी की तरह तेजी से प्रसार। इससे भी अधिक गंभीर भयावह जलवायु परिवर्तन, जिससे एक अस्तित्व खतरे की संभावना है, लेकिन यहां तक कि वर्तमान में, इस तरह के चक्रवात और सूखे के रूप में गंभीर मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति, राज्यों की राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता के लिए गंभीर निहितार्थ हैं।

भारत की मौजूदा चुनौतियां

जैसेकि वैश्विक रुझान की भविष्यवाणी करना मुश्किल है,शक्ति का वैश्विक संतुलन बदल रहा है। उभरते देश जैसेकि चीन और भारत महसूस करते हैं कि वैश्विक शासन संरचना पर्याप्त रूप से उनके हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करते – और इन शासन संरचनाओं के मौजूदा प्रबंधक, संरचना के अंतर्गत इन बढ़ती शक्तियों के “सह विकल्प” के मुद्दे का सामना कर रहे हैं। शीत युद्ध के बाद की अवधि में, इसके विभिन्न चरणों के दौरान, कार्रवाई की अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए राजनीतिक और आर्थिक एजेंडे को लागू करने के लिए भारत का लक्ष्‍य महा शक्ति के दबाव का विरोध करना, राजनीतिक, सैन्य और अर्ध सैनिक विध्वंसक गतिविधियों की पूरी रेंज का मुकाबला, रक्षा तैयारियों को बनाए रखना और हमारी तकनीकी आत्मनिर्भरता की संभावनाओं की सुरक्षा और सामाजिक-आर्थिक विकास है।
 अगर चीन-पाकिस्तान-रूस की तिकड़ी मजबूत हुई तो भारत को चौतरफा मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। वैसे भी रूस की पाकिस्तान से बढ़ रही नजदीकियां भारत के लिए पहले से मुश्किलें खड़ी कर रहा है। फिर अगर ट्रंप अपने वादे के मुताबिक चीन की नकेल कसने में लगे तो दक्षिण चीन महासागर में दोनों देशों के बीच तकरार बढ़ेगा। फिर अमेरिका चीन को सबक सिखाने के लिए भारत की समुद्री सीमा का उपयोग करना चाहेगा। ऐसे में भारत और चीन की तनातनी बढ़ेगी। लेकिन  दुनिया यह भी देख रही है कि भारत आज एक वैश्विक उपस्थिति के साथ का एक देश है। भारत प्रभावित करता है और दुनिया भर के देशों की एक विशाल संख्या के साथ अपने संबंधों से प्रभावित है। संचार और प्रौद्योगिकी विकास दुनिया को छोटा करने के लिए जारी है, वैश्विक समुदाय के अन्योन्याश्रय ही इसमें तेजी लांयेगे ।
यहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस उक्ति का उल्लेख आवश्यक लगता है जब एक इंटरव्यू में उनसे उनके विदेशी यात्राओ पर सवाल किया गया था। प्रधान मंत्री ने साफ़ साफ़ कहा था - मई किसी स्थापित राजनीतिक परिवार या खानदान से नहीं आता हूँ। मेरे बारे में अब तक दुनिया के लोग सिर्फ उतना ही जानते है जितना उनको मीडिया ने बताया है। अब जबकि भारत के प्रधानमंत्री के रूप में उन सभी से मुझे परिचय करना है तो मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। उन सभी को हमारे बारे में सत्य की जानकारी तब हो सकेगी जब मैं  निजी तौर पर उनके साथ बाथ कर विमर्श करूंगा और समझ सकूंगा। इसलिए हर राष्ट्राध्यक्ष से निजी मुलाकात करना मज़बूरी भी है। दरअसल भारत ने इस दौर में जिस तेज़ी के साथ दुनिया के बड़े देशो के साथ ही छोटे छोटे देशो से प्रगाढ़ता विकसित  की है वह इससे पहले इतिहास में तो कभी भी नहीं हुआ था। सच है कि तीन वर्षो में मोदी सरकार की वैश्विक नीति और सघन यात्राओं ने भारत को बहुत ऊचाई दी है। 

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
योगी सरकार की योजनाएं बन रहीं है पानी का बुलबुला

योगी सरकार की योजनाएं बन रहीं है पानी का बुलबुला

योगी सरकार की योजनाएं बन रहीं है पानी का बुलबुला
संजय तिवारी 

उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार के लगभग दो महीने पूरे होने जा रहे हैं। इन दो महीनों में योगी आदित्य नाथ की अगुवाई वाली सरकार के कैबिनेट की ७ बैठकें हो चुकी हैं। इसी अवधि में विधानसभा का एक सत्र भी चला और दिन-दिन भर काम हुआ। स्वंय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने शपथग्रहण के दिन से ही अनवरत रूप से सक्रिय हैं और सूबे के, खासकर राजधानी के अफसरों को भी सक्रिय रहने को विवश किया है। वे दफ्तर जहां पहले अधिकारी कर्मचारी बहुत कम दिखा करते थे अब सभी दफ्तरों में  सुबह ९:२० बजे से ही काम शुरू हो जा रहा है और शाम ६ बजे तक दफ्तर खुले रह रहे हैं। इस बीच प्रतिदिन प्राय: मुख्यमंत्री किसी न किसी विभाग का प्रजेन्टेशन भी देखते हैं। उत्तर प्रदेश में सरकार और शासनतंत्र से लंबे समय से जुड़े हुए लोग यह स्वीकार करने लगे हैं कि केवल दो महीनों में मुख्यमंत्री ने अपने कार्यालय में बैठकर कामकाज को जितना समय दिया है उतना अब तक के सभी मुख्यमंत्रियों को मिला लिया जाये तब भी ज्यादा है। प्रतिदिन सुबह अपने आवास से लेकर दफ्तर तक और फिर देर रात तक आवास में अफसरों को बुलाकर विभागीय समीक्षाएं करते हुए काम को रफ्तार देने की योगी आदित्यनाथ की मुहिम के सभी कायल हैं। सरकार बनने के साथ ही जिस तरह से योगी ने ताबड़तोड़ फैसले लिये हैं वह बेमिसाल हैं। उत्तर प्रदेश के किसानों का कर्ज माफ करना इस सरकार की सबसे बड़ी चुनौती थी जिसे उन्होंने वादे के मुताबिक अपनी पहली कैबिनेट बैठक में ही पूरा कर दिया। चुनावी वादों में गन्ना किसानों को सरकार बनने के १४ दिन के भीतर भुगतान दिलाने की व्यवस्था भी मुख्यमंत्री ने बना दी। लड़कियों और महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए किये गये एंटी रोमियो स्क्वायड का भी वादा उन्होंने पूरा कर दिया। अवैध बूचडख़ाने बंद कर दिये गये। सभी के लिए नई एम्बुलेंस सेवा शुरू कर दी गई। परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाये गये । गोमती रिवरफ्रंट की जांच शुरू कर दी गई। मानसरोवर यात्रा के लिए एक लाख रूपये का अनुदान देने का निर्णय लिया गया। प्रदेश में अनावश्यक रूप से दी जाने वाली छुट्टियों को कम किया गया। प्रदेश में सभी को २४ घंटे बिजली मुहैया कराने के लिए एमओयू  साइन हुआ। नई खनिज नीति बनाने की कवायद शुरू हुई। परिवहन व्यवस्था को दुरूस्त किया गया, नई औद्योगिक नीति पर काम शुरू हुआ। अधिकारियों और मंत्रियों की गाडिय़ों से लालबत्ती हटा दी गई और सभी कार्यालयों में नियमित उपस्थिति बनाये रखने के लिए बायोमिट्रिक प्रणाली लागू की गई।
वास्तव में उत्तर प्रदेश को बदलने की कवायद मुख्यमंत्री ने शपथ के बाद से ही शुरू कर दी और इसके लिए उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के सभी सहयोगियों को भी उसी रफ्तार से जुटने का निर्देश दिया। यह उनकी कार्यशैली की तेजी का ही असर है कि उत्तर प्रदेश में सरकार ताबड़तोड़ फैसले ले रही है और दो महीने के भीतर कैबिनेट की ७ बैठकें हो चुकी हैं। मुख्यमंत्री स्वयं मंडल स्तर पर कार्यों की समीक्षा में जुटें हैं और उन्होंने जिला स्तर पर समीक्षा के लिए भी कमर कस ली है।
अब यहां प्रश्र यह उठता है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार उत्तर प्रदेश को किस दिशा में लेकर जायेगी। यह प्रश्र इस लिए उठा रहा है, क्योंकि कानून व्यवस्था के मुददे पर कहीं न कहीं सरकार की पकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री ने डीजीपी से लगायत अन्य पुलिस अधिकारियों को कानून व्यवस्था दुरूस्त करने के लिए कड़े निर्देश भी दिये हैं। उत्तर प्रदेश में जिस तरह से निर्णय हो रहे हैं उन निर्णयों के क्रियान्वयन को लेकर भी सवाल अवश्य उठेंगे। मसलन सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट में कहा था कि १५ जून तक प्रदेश की सभी सड़कें गड्ढामुक्त हो जायेंगी, लेकिन अब जब कि १५ जून आने में कुछ ही दिन बाकी हैं, ऐसा पूरा होना संभव नहीं दिख रहा। इसी तरह सरकार ने ४५ दिन के भीतर गोमती रिवरफ्रंट के घोटाले की रिपोर्ट सामने लाने की बात की थी। पता चला है कि ऐसी कोई रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई है, लेकिन उस रिपोर्ट के बारे में सामान्य जानकारी शून्य है। एंटी रोमियो स्क्वायड की सक्रियता शुरूआती दिनों की तरह नहीं रह गई। बूचडख़ानों को लेकर भी सब कुछ गडमगड है।
उत्तर प्रदेश की नई सरकार और उसके मुखिया योगी आदित्यनाथ की नीयत को लेकर कोई संदेह नहीं है। लेकिन इस सरकार में जिस तरह से तबादले हो रहे हैं उनको लेकर चर्चाएं जरूर हो रही हैं। इन तबादलों में बहुत सी विसंगतियां हैं। मसलन ऐसे अफसरों को अच्छी तैनाती दी गई है जिनके बारे में खुद भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव के दौरान चुनाव आयोग से शिकायत की थी। इसी तरह गन्ना विभाग की जिम्मेदारी अभी भी मुख्य सचिव के पास रहने को लेकर भी चर्चाएं चल रही हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि सरकार को योजनाएं बना सकती है, बना भी रही है, लेकिन इन योजनाओं का आखिर क्रियान्वयन कौन करेगा और कैसे होगा। मुख्यमंत्री ने सभी अफसरों और मंत्रियों से १५ दिन  के भीतर अपनी सम्पत्तियां घोषित करने का आदेश दिया था, लेकिन उस आदेश का आखिर क्या हुआ?

उत्तर प्रदेश में वंशवाद और जातिवाद से इतर, विकास की राजनीति की शुरुआत करने का दावा करने वाली योगी सरकार, अपने कार्यकाल के दो महीने पूरे करने जा रही है। 19 मार्च को शपथ लेने के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्री मंडल ने जिस मुस्तैदी से साथ उत्तर प्रदेश में बदलाव लाने का दृढ संकल्प दिखाया है। वो काबिल-ए-तारीफ़ है। वैसे तो,किसी सरकार के दो महीने का रिपोर्ट मांगना अपने में हास्यास्पद है। पर जब किसी सरकार पर आशाओं का बोझ इतना ज्यादा हो, तब इसकी जरुरत और अहमियत दोनों ही बढ़ जाती है।कानून-व्यवस्था के नाम पर पूर्ववर्ती सरकार को घेरकर करीब दो महीने पहले नये तेवर के साथ सत्ता में आई योगी आदित्यनाथ सरकार के सामने यही मुद्दा सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. योगी आदित्यनाथ सरकार अपने शुरुआती 100 दिनों के कार्यकाल का ‘रिपोर्ट कार्ड’ अगले महीने के अंत में जारी करेंगे मगर बिगड़ी कानून-व्यवस्था को पटरी पर लाना सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है. प्रदेश भाजपा का कहना है कि योगी सरकार बनने के बाद से प्रदेश की तस्वीर में बदलाव शुरू हो चुका है. गुंडागर्दी खत्म हो रही है और अपराध का ग्राफ गिर रहा है. सरकार में जनता का विश्वास बहाल हो रहा है. मगर सहारनपुर में जातीय संघर्ष, बुलन्दशहर, सम्भल और गोंडा में हाल में हुई साम्प्रदायिक घटनाओं ने सरकार के लिये चिंता खड़ी कर दी है. ज्यादा चिंता की बात यह है कि इन वारदात में भाजपा और तथाकथित हिन्दूवादी संगठनों के लोगों की संलिप्तता के आरोप लगे हैं। 

मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) समेत तमाम विपक्षी दल उस भाजपा सरकार को कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर घेर रहे हैं, जो इसी मसले पर पूर्ववर्ती सपा सरकार की आलोचना करके सत्ता में आई है. बुलंदशहर में एक लड़की को साथ ले जाने की घटना में अल्पसंख्यक समुदाय के एक व्यक्ति की हत्या मामले में योगी आदित्यनाथ द्वारा गठित हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं पर आरोप लगा है. हालांकि योगी वाहिनी सदस्यों को कानून हाथ में ना लेने के लिये चेतावनी दे चुके हैं. सहारनपुर में भाजपा कार्यकर्ताओं ने कथित रूप से क्षेत्रीय सांसद राघव लखनपाल शर्मा की अगुवाई में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के घर पर हमला किया. इस मामले में विपक्ष सांसद की गिरफ्तारी की मांग कर रहा है.

 प्रदेश में अपराध का ग्राफ चढ़ने से चिन्तित मुख्यमंत्री योगी ने एक विशेष प्रकोष्ठ गठित करने का फैसला किया. योगी खुद इसकी निगरानी करेंगे. हालांकि योगी ने मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश की नौकरशाही को सुधारने का कड़ा संदेश दिया. इसका परिणाम भी नजर आ रहा है. मंत्री और अधिकारी अब 10 बजे से पहले ही दफ्तर पहुंच रहे हैं. करीब एक महीने के दौरान योगी ने विभिन्न विभागों की समीक्षा के लिये करीब 80 प्रस्तुतीकरण देखकर आवश्यक निर्देश दिये हैं.

अपने कार्यकाल के शुरआती करीब दो महीनों में योगी सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. उनमें किसानों की 36 हजार 500 करोड़ रपये की कर्जमाफी भी शामिल है. योगी सरकार ने केन्द्र के साथ ‘पॉवर फॉर ऑल’ समझौते पर दस्तखत किये और जिला मुख्यालयों को 24 घंटे तथा गांवों को 18 घंटे बिजली देने का फैसला किया.  भाजपा के प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक का दावा है कि योगी ने अपने 50 दिन के शुरआती कार्यकाल में जितना काम कर दिया है, उतना तो पूर्व के मुख्यमंत्री एक साल में नहीं कर पाते थे. उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्ववर्ती सपा सरकार ने उत्तर प्रदेश को अंधेरे में धकेल दिया था. उसने केवल कुछ वीआईपी जिलों को ही बिजली दी, बाकी इलाकों की उपेक्षा की.

उत्तरप्रदेश में 36,359 करोड़ का क़र्ज़ माफ़ करना, वो भी इस वादे के साथ की इस क़र्ज़ माफ़ी का अतिरिक्त बोझ, किसी भी तरह जनता को वहन नहीं करना पड़ेगा। अपने में बड़ा साहसिक फैसला था। ये फैसला विपक्ष उन सभी नेताओं को करारा जवाब था। जिन्होंने आज तक किसानों की समस्या का मज़ाक बनाया है। जिनके लिए किसान मात्र एक राजनितिक उल्लू सीधा करने का माध्यम भर है। इन सब के बीच हमे इस बात पर ध्यान देना होगा कि आखिर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में 36,359 करोड़ का क़र्ज़ माफ़ करने की नौबत क्यों आ गई। कभी अपने गन्ने उत्पादन को मशहूर उत्तरप्रदेश कैसे दिन-ब-दिन चीनी मिलों के लिए तरसने लगा। आखिर कैसे एक-एक करके उत्तरप्रदेश में सारे चीनी मील बंद होते गए। किस प्रकार 2007 में मायावती सरकार ने अमरोहा, बिजनोर, बुलंदशहर जैसे जगहों पर चलते हुए चीनी मीलों को औने-पौने भाव बेच दिया। योगी आदित्यनाथ सरकार का इन मामलों में जाँच के आदेश के बाद से ही उत्तर प्रदेश के पूरे राजनितिक परिदृश्य में भूचाल सा आ गया हैं। तमाम राजनितिक पार्टीयों के अंदर दोषारोपण का माहौल स्वतः ही उत्पन्न नहीं हुआ है। योजनाओं के क्रियांवहन में तेज़ी का जो उदाहरण योगी आदित्यनाथ सरकार ने अवैध बूचड़खानों को बंद करके पेश किया है। उससे तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले तमाम पार्टियां हतप्रभ हो गई है।

गुंडाराज का पर्याय बन चुके उत्तर प्रदेश ने वर्षो बाद प्रशासन की गरिमामय ताक़त को पहचाना। हालाकिं अपने नियत के अनुसार विपक्षियों ने इसे किसी खास धर्म से जोड़ने की पुरज़ोर कोशिश की। पर अवैध और वैध के बीच के अतंर को योगी सरकार लोगों तक पहुचाने में पूरी तरह कामयाब रही।

सरकारी तंत्र को मजबूत बनाने हेतु, मंत्रियों के संपत्ति का ब्यौरा मांगना हो या लाल बत्ती का बहिष्कार करना हो। सरकारी बाबु से लेकर पुलिस के आला अफसरों की पूरी खोजबीन को योगी सरकार ने प्राथमिकता के साथ लिया है। महिलाओं के हितों को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश के सारे माध्यमिक विद्यालयों को को- ऐड करने का फैसला लिया है। हर थाने में एक पुरष और एक महिला को रिसेप्शन पर नियुक्त करना महिला सुरक्षा के लिहाज से बहुत अहम् फैसला है।

इसी सन्दर्भ में एंटी रोमियो स्क्वाड के गठन पर भी प्रकाश डालने की जरुरत है। इसमें कोई दो मत नहीं है योगी सरकार उत्तर प्रदेश में भयमुक्त माहौल देना चाहती है। पर उचित कार्यशैली के आभाव में इसके दुषपरिणाम भी देखने को मिले हैं। योगी सरकार को गौ रक्षक के नाम पर मारपीट करने वालों से उसी प्रकार कड़ाई से निपटना होगा, जिस प्रकार किसी एक अपराधी के साथ न्यायोचित व्यव्हार किया जाता है।

बीते 2 महीनों में योगी आदित्यनाथ सरकार ने राजनीति के तौर तरीके में बदलाव के संकेत दिए और कहीं कहीं उसकी धरातली सच्चाई दिखने भी लगी है। पर कुछ संवेदनशील विषयों पर शांति और स्थिरता से काम करने की जरुरत है। सहारनपुर जैसे मामलों में सरकार को थोड़ी और मुस्तैदी दिखानी होगी और बीते कुछ साल के सरकारों की गलतियों से बहुत कुछ सीखना होगा।

यूपी में पिछले पांच बरस क़ानून व्यवस्था बेहाल थी। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि पुलिस के खुद के रेकॉर्ड इस बात की तस्दीक़ कर रहे हैं। मुज़फ्फरनगर, फैज़ाबाद, कोसी कलाँ दंगा, जवाहरबाग मथुरा काण्ड, डिप्टी एसपी जियाउलहक हत्याकाण्ड, राजधानी का श्रवण साहू हत्याकाण्ड, अम्बेडकरनगर का रामबाबू गुप्ता हत्याकांड, लखनऊ, सहारनपुर में सर्राफा व्यवसाइयों के यहाँ हुई डकैती और एनआईए अधिकारी तंज़ील अहमद हत्याकाण्ड तो सिर्फ इस की बानगी भर है। क़ानून व्यव्स्था बेहतर करने के मक़सद से सरकार ने बीते 5 वर्ष में 8 पुलिस महानिदेशक बदल डाले लेकिन हालात जस के तस ही रहे। मुज़फ्फरनगर दंगा अखिलेश यादव सरकार की सब से बड़ी नाकामी मानी जाती रहे है. खुद अखिलेश यादव वक़्त बेवक़्त मुज़फ्फरनगर दंगे को अपने कैरियर पर सब से बड़ा दाग बताते रहे है. मुज़फ्फरनगर के साथ मथुरा का कोसी कला और फैज़ाबाद का दंगा यूपी सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हुवा। इन सब के बीच अम्बेडकरनगर में हुवे राम बाबू गुप्ता हत्यकांड ने पूरे अम्बेडकरनगर समेत आसपास के ज़िलों की फ़िज़ा बिगाड़ कर रख दी थी। 

खाकी रही अपराधियों के निशाने 

यूपी बिगड़ी क़ानून व्यवस्था का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की अखिलेश यादव के ५ साल के राज में खाकी बदमाशों के निशाने पर रही। इस दौरान आधा दर्जन पुलिस अफसरों के साथ क़रीब दो दर्जन पुलिस के जवान अपराधियों की गोली का शिकार हुवे। कुण्डा में डिप्टी एसपी जियाउलहक, इलाहाबाद में एसओ बारा राजेन्द्र प्रसाद द्विवेदी, हरदोई में एसओ पिहानी जेपी सिंह, बिजनौर में एनआईए में तैनात अफसर तंज़ील अहमद, जवारबाग कांड मथुरा मे एएसपी मुकुल दिवेदी, एसओ फराह संतोष यादव समेत २ दर्जन पुलिस कर्मी अपराधियों की गोली का शिकार हुवे। सब से ख़ास बात ये है कि हत्याकाण्ड के किसी भी आरोपियों को अभी तक सज़ा नहीं हो सकी है। 
ह्त्या, लूट, डकैती की रही बाढ़ 
यूपी में क़ानून नाम का भय अपराधियों के बीच नहीं था। यही वजह थी की अपराधी जब जहां चाहते थे वारदात को अंजाम देकर फरार हो जाते थे। किसी भी प्रदेश की राजधानी की क़ानून व्यवस्था को आईने के तौर पर देखा जाता है। लखनऊ के हालात कुछ ऐसे थे की बेटे को इन्साफ दिलाने के लिए जंग लड़ रहा बाप का सीना गोलियों से छलनी कर दिया जाता था। सहादतगंज में श्रवण साहू बेटे को इन्साफ दिलाना चाहते थे। जिस का क़त्ल कर दिया गया था। लेकिन क़ातिल पुलिस की शह मिलने पर इस क़दर बेलगाम हो गए की श्रवण साहू को गोलियों से भून दिया।
साल दर साल बढ़ता गया क्राइम का ग्राफ 
यूपी में साल दर साल अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ता गया। ह्त्या, लूट, डकैती, अपहरण, चोरी, और बलवे की बाढ़ रही है। यूपी में लगातार बढ़ते अपराध का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले एक वर्ष में ही अपराधियों ने 4497 ह्त्या की वारदातों को अंजाम दिया तो डकैती की 250 वारदातें हुई हैं. जबकि बलात्कार के 3395 मामले दर्ज किये गए है। लूट की वारदातों में भी बेतहाशा वृद्धि हुई 2016  में लूट की 3744 घटनाएं हुई है. ये आंकड़े अपने आप में स्थिति बयान करने के लिए काफी है 

बॉक्स 
2012 से लेकर 2016 के आंकड़े 
मार्च 2012 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री का पड़ संभाला था। इस दौरान यूपी में अपराध वर्ष दर वर्ष बढ़ते गए वर्ष 2012 में जहां ह्त्या की 2809 ह्त्या के मामले दर्ज हुवे तो वही 2013 में ये आकड़ा बढ़ कर 3278 हो गया। 2014 में ह्त्या का अकड़ा 3664 पर पहुँच गया। 2015 में ह्त्या के 4139 मामले दर्ज किये गए। जिस की संख्या 2016 में बढ़ कर 4497 हो गई। ऐसा नहीं है सिर्फ ह्त्या की वारदातों में ही बढ़ोतरी हुई हो बल्कि लूट, डकैती और चोरी की वारदातों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई। वर्ष 2012 बलात्कार के 2287, 2013 में 2560, 2014 में 2929, 2015 में 3127 जबकि वर्ष 2016 में बलात्कार 3395 मामले दर्ज किये गए है। डकैती के 198 मामले जहा 2012 में दर्ज हुवे तो 2013 में ये आकड़ा 217 पर रुका। 2014 में डकैती की 244 वारदातें हुई वही 2015 में ये आकड़ा 240 था जो 2016 में बढ़ कर 250 पर पहुँच गया। लूट की घटनाएं भी यूपी में लगातार बढ़ते गए। वर्ष 2012 में 2741, 2013 में 2944, 2014 में 3199, 2015 में 3476 मामले दर्ज किये गए तो वर्ष 2016 में ये आकड़ा 3744 पर पहुँच गया। 

5 साल 8 पुलिस महानिदेशक 

यूपी में पुलिस महानिदेशक बदले जाते रहे लेकिन हालात जस के तस बने रहे. सरकार बनते ही सरकार ने एसी शर्मा को यूपी पुलिस की कमाल सौंपी लेकिन उन्हें असफ़ल माना गया। उन की जगह पर ए एल बैनर्जी ने कुर्सी संभाली लेकिन शराब के नशे में आफिस में ही गिर कर ज़ख़्मी होने के कुछ दिनों बाद उन्हें हटा दिया गया। इस के बाद यूपी में 5 डीजीपी बने जिस में से चार रिटायर होने के बाद हटे। हालांकि इन का कार्यकाल बहुत कम रहा। ए एल बैनर्जी को हटा कर सरकार ने साफ़ सुथरी छवि के देवराज नगर को डीजीपी बनाया जो रिटायर हो कर हटे। उस के बाद सरकार ने एक महीने के लिए अरुण कुमार गुप्ता को तैनात किया। अरुण कुमार के सेवानव्रित्ति के बाद मायावती के बेहद क़रीबी अफसरों में शुमार ए के जैन ने तीन महीने के लिए कमान संभाली जो बाद में बढ़ कर छह माह हो गई. ए के जैन के बाद छह माह के लिए यूपी पुलिस की कमान जगमोहन यादव ने संभाली। उन के रिटायरमेंट के बाद सरकार ने कई सीनियर अफसरों को दरकिनार कर 1 जनवरी 2016 को एस जावीद अहमद को यूपी का डीजीपी बना दिया गया 

 प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कानून व्यवस्था की स्थिति को बड़ा मुद्दा बनाया था और दावा किया था कि पार्टी के सत्ता में आने पर इस मोर्चे पर बड़ा बदलाव दिखेगा मगर पार्टी के सत्ता में आने के बाद कानून व्यवस्था की स्थिति बेहद खराब दिख रही है। योगी राज में प्रदेश हत्याओं से दहल गया है। दो महीने के योगी राज में हत्याओं का आंकड़ा 127 तक पहुंच गया है। योगी सरकार के लिए जगह-जगह हो रहे जातीय संघर्ष भी बड़ी मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। सहारनपुर, शामली, अमरोहा, गोंडा, बिजनौर और संभल में हिंसा के अलावा खाकी पर हमले की घटनाएं भी बढ़ी हैं। सीएम आदित्यनाथ योगी भले ही कानून का राज स्थापित करने का दावा करें, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। अब सीएम ने विधानसभा में बयान दिया है कि अपराधियों के साथ अपराधियों जैसा ही सुलूक होगा। 

कई जिलों में डबल मर्डर की घटनाएं 
अपराधियों के बेलगाम होने का सबसे बड़ा सबूत यह है कि योगी आदित्यनाथ के 60 दिनों के राज में हत्या की 127 घटनाएं हो चुकी हैं। मथुरा, लखनऊ, लखीमपुर खीरी, मैनपुरी, कन्नौज, महोबा, सुल्तानपुर, नोएडा, झांसी, कुशीनगर, जौनपुर, फतेहपुर, देवरिया, हमीरपुर और बरेली में डबल मर्डर की घटनाओं ने लोगों की नींद हराम कर दी है। इलाहाबाद में सगी बहनों से रेप के बाद बेखौफबदमाशों ने दोनों युवतियों व माता-पिता की भी हत्या कर दी। इलाहाबाद के अलावा चित्रकूट में भी चार बच्चों समेत एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या से लोगों में दहशत है। मथुरा में सर्राफा व्यवसायियों के हुए डबल मर्डर के बाद योगी सरकार दबाव में हैं। सीएम ने डीजीपी सुलखान सिंह को तलब कर कानून व्यवस्था में सुधार करने का निर्देश जारी किया है।  

खाकी पर बढ़े हमले, चार की हत्या 
योगी आदित्यनाथ के राज में खाकी पर हमले बढ़े हैं। सीएम के शपथ लेने के 48 घंटे के भीतर ही अलीनगर अलीगढ़ में पुलिस कांस्टेबिल खजाना सिंह की हत्या कर दी गई। वे पुलिस सब इंस्पेक्टर उन्मेद सिंह के साथ हाइवे पर चेङ्क्षकग कर रहे थे। पांच अप्रैल को शमशाबाद आगरा में एसओजी कांस्टेबिल अजय यादव को बेखौफ अपराधियों ने गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया और पिस्टल लूटकर फरार हो गए। इसके बाद बदमाशों ने प्रतापगढ़ में कांस्टेबिल राजकुमार की गोली मार कर हत्या कर दी। अभी विभाग के साथी इस सदमे से उबरे भी नहीं थे कि 8 अप्रैल की रात फिरोजाबाद में खनन माफिया ने कांस्टेबिल रवि कुमार रावत को ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला। सहारनपुर में तत्कालीन एसएसपी लव कुमार के घर पर हमला कर तोडफ़ोड़ की गई। शाहजहंापुर में तैनात सीओ पुवायां अरुण कुमार ने ट्रक सीज किया तो उनके घर पर हमला कर तोडफ़ोड़ की गई। फतेहपुर सीकरी आगरा में थाने के अंदर घुसकर बलवाइयों ने बवाल काटा और सीओ रविकान्त पराशर की थाने के अन्दर ही पिटाई कर दी।  एटा में थानेदार को थाने के अंदर थप्पड़ मारे जाने जैसी घटनाएं खराब कानून व्यवस्था और मनबढ़ अपराधियों के हौसलों की गवाही दे रही हैं। वही सिकंदरा आगरा में खनन माफिया ने पुलिस और खनिज अधिकारी कमल कश्यप को पीट-पीटकर घायल कर दिया गया। 

सहारनपुर सहित कई जगहों पर हिंसा 
कानून व्यवस्था यूपी चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा था। सत्ता में आने के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए सहारनपुर में जातीय संघर्ष परेशानी का सबब बन रहा है। 19 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती के मौके पर जुलूस निकालने को लेकर शुरू हुआ उपद्रव अभी तक पूरी तरह शांत नहीं हुआ है। जनकपुरी, बड़ागांव, कोतवाली देहात, कुतुबशेर, चिलकाना और रामपुर मनिहारन में हुई हिंसा में करोड़ों का नुकसान हुआ है। यहां आगजनी में एक बस व दो दर्जन गाडिय़ों को आग के हवाले कर दिया गया। सहारनपुर में पिछले तीन हफ्तों में जातीय संघर्ष की तीन घटनाएं हो चुकी हैं। उपद्रवियों ने पुलिस और प्रशासन के बड़े अधिकारियों को भी निशाना बनाकर पथराव किया।  सहारनपुर के अलावा अमरोहा, शामली, संभल और गोंडा में हुई जातीय व साम्प्रदायिक हिंसा से पुलिस की नींद हराम है। 

छेडख़ानी के विरोध पर मारी गोली 
अपराधियों के बुलंद हौसले यूपी में बिगड़ी कानून व्यवस्था की गवाही दे रहे हैं। चित्रकूट में बेखौफ अपराधी ने छेडख़ानी का विरोध करने पर लडक़ी के भाई को गोली मार दी। यह मामला 7 मई का है। भगवतपुर राजापुर में राजाराम की बहन की शादी थी। शादी में राजू सिंह अपने साथियों के साथ पहुंच गया और छेड़छाड़ करने लगा। विरोध करने पर राजू ने राजाराम को गोली मार दी जिसका इलाहाबाद में चल रहा है। यही नहीं गोण्डा में छह वर्षीय मासूम के साथ रेप और सहारनपुर में पांच साल की बच्ची से दरिन्दिगी की घटनाएं पुलिसिया इकबाल पर सवाल उठा रही हैं।

रिटायर्ड आईएएस ने सरकार को घेरा 
रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह ने बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर सोशल मीडिया पर सरकार को घेरने की कोशिश की है। अपने फेसबुक वाल पर वे लिखते हैं कि अप्रैल में प्रतिदिन 13 रेप, 14 हत्या, 15 लूट और डकैती की एक घटना हुई यानी सिर्फ अप्रैल में 390 रेप, 420 हत्या, 450 लूट और 30 डकैती की घटनाएं हुई हैं।

विधानसभा में बोले योगी-कानून का राज होगा 
मथुरा में हुए डबल मर्डर के बाद सीएम आदित्यनाथ योगी ने विधानसभा में कहा कि मथुरा की घटना दुखद है। सहारनपुर में स्थानीय सांसद व पूर्व विधायक की भूमिका सामने आई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कानून का राज होगा और अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण नहीं दिया जाएगा।

डीजीपी बोले-जल्द सुधरेंगे हालात 
यूपी पुलिस के मुखिया सुलखान सिंह कहते हैं कि पुलिस अपना काम कर रही हैं। अपराधियों ने कुछ घटनाएं की हैं जिन्हें वर्कआउट किया जा रहा है। वे कहते हैं कि बहुत जल्द हालात बेहतर होंगे। अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करने के लिए कहा गया है। वे खुद जोन वार पुलिस अफसरों के साथ मीटिंग कर अपराध पर लगाम लगाने की रणनीति बना रहे हैं। डीजीपी के मुताबिक मथुरा जैसी घटनाएं रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई किये जाने की तैयारी है। रिटायर्ड डीजीपी अरविन्द कुमार जैन कहते हैं कि यूपी में अभी बदलाव का दौर चल रहा है। सीनियर पुलिस अफसरों के ट्रांसफर हो रहे हैं। जिलों के पुलिस अफसर भी बदले गए हैं। इस दौरान अपराधियों ने सनसनीखेज घटनाओं को अंजाम दिया है। उनका कहना है कि एक बार जब सबकुछ स्थिर हो जाएगा तो हालात बदल जाएंगे। 
--------------------------

 मुुख्य मंत्री पद की शपथ लेने के दिन से ही योगी आदित्य नाथ लगातार दावे ही करते चले आ रहे हैं। उनका ज्यादा जोर प्रदेश की कानून और व्यवस्था की स्थिति को पटरी पर लाने को लेकर रहा है। हाल ही में उन्होंने गोरखपुर में कहा था कि एक महीने में ही वह प्रदेश की कानून और व्यवस्था की स्थिति को सुधार देंगे। मुख्य मंत्री योगी अब तक कई बार यह भी कह चुके है कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को किसी भी गलत दबाव के आग झुकने अथवा डरने की जरूरत नहीं है। वे बिना किसी भय के निष्पक्ष होकर विधिसम्मत कार्य करें। लेकिन, जमीनी हकीकत मे ऐसा कुछ भी होता नहीं दिख रहा है।


पुलिस का कमजोर होता मनोबल

आरोप है कि मेरठ में भाजपा नेता संजय त्यागी के पुलिस से उलझने का कारण यह था कि पुलिस ने उनके पुत्र की कार में हूटर लगाने से रोक दिया था। इसलिये उनके बेटे को जबरन छुडाने के लिये थाने पर भी खासा हंगामा किया गया था। इस पर उनके बेटे को तो छोड दिया गया। लेकिन, पुलिस अधिकारी को हटा दिया गया। इसी तरह भाजपा नेताओं की शिकायत पर सहारनपुर के एस.एस.पी.को हटा दिया गया। आगरा के निकट फतेहपुर सीकरी में विहिप और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं पर दर्ज मुकदमा वापस लेने और इंसपेक्टर को हटाने के लिये थाने पर जमकर संघर्ष हुआ। इसमें एक नेता ने सीओ पर हाथ छोड दिया और एक दरोगा की मोटर साइकिल में आग लगा दी गयी थी। आरोप है कि शाहजहांपुर में भाजपा के नेताओं ने थाने में पुलिस वालों को चूडियां पहनाने की कोशिश की थी। इस पर भी बवाल हुआ था। लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं की  गयी।

बेहाल पुलिस और बदहाल लोग

इसी मंगलवार की सुबह राजधानी लखनऊ के थाना पारा के तहत रातबिहार कालानी में सेवानिवृत्त फौजी लालबहादुर के घर में घुसकर उनकी दो बेटियों की धारदार हथियार से हत्या कर दी गयी। सहारनपुर में हुए हिंसात्मक उपद्रव को लेकर कल पुलिस और दलितों के बीच हुए हिंसात्मक उपद्रव में पुलिस की जीप तोडने के साथ ही पुलिस चैकी को आग के हवाले कर दिया गया। इसमें ए.डी.एम. और डिप्टी एस.पी. की पिटाई भी की गयी।

पति के सामने ही पत्नी से गैंगरेप

जालौन जिला में बदमाशों ने रास्ते में पतिपत्नी को पकड लिया और पति के ही सामने उसकी पत्नी से सामूहिक बलात्कार कियां। इसी तरह चंदौली में हाईस्कूल में पढने वाली एक छात्रा के साथ दो युवकों ने बलात्कार कर उसको जलाकर मार डालाा। मोहनलाल गंज के मऊ गांव में झाडियों के बीच सोनू नामक एक युवक का शव मिला। उसके मुंह से काफी खून निकला था। आपसी रंजिश में इसकी हत्या कर दी गयी थी। मोहनलालगंज इलाके में ही एक युवती का बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या का प्रयास किया गया।

बदमाशों का पुलिस बल पर हिंसक हमला

इसी रविवार की रात में ही रामपुर जिला के सिविल लाइन कोतवाली क्षेत्र में दबिश डालने गयी पुलिसदल पर आरोपियों ने हमला कर उनकी राइफल और रिवाल्वर लूटने का प्रयास किया। इसी छीनाझपटी में राइफल और पुलिस का वायरलेस सेट तोड दिया गया। दरोगा को बंधक बनाकर उनकी खासी मरम्मत की गयी। जौनपुर में मारपीट के आरोपियों को पकडने के लिये गये पुलिस बल को ग्रामीणों ने दौडाकर मारापीटा तथा उनकी वर्दी तक फाड दी। इसके बाद दरोगा को बंधक बना कर उसका वायरलेस सेट भी तोड दिया।  

योगी की सुरक्षा के लिये हो गया था खतरा

इसी दिन मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ आगरा में थे। पुलिस की लापरवाही के चलते इनकी भी सुरक्षा उस समय खतरे में पड गयी थी, जब नगरिया गांव जाते समय इनकी भी फ्लीट में कई वाहन घुस गये थे। इसी तरह जौनपुर में मारपीट के आरोपियों को पकडने के लिये गये पुलिस बल को ग्रामीणों ने दौडाकर मारापीटा तथा उनकी वर्दी तक फाड दी।


नहीं सुन रहे अफसर

 इस साल देश के 1800 IAS ऑफिसर्स ने अपनी इम्मूवेबल प्रॉपर्टीज (अचल संपत्तियों) का सरकार को ब्योरा नहीं दिया है। 2016 के लिए यह रिटर्न इस साल जनवरी के आखिरी तक देनी थी। इनमें सबसे ज्यादा 255 ऑफिसर्स उत्तर प्रदेश कैडर के हैं। इसके बाद 153 राजस्थान के, 118 मध्य प्रदेश के, 109 वेस्ट बंगाल के और 104 अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम- यूनियन टेरेटरीज के हैं।  सभी IAS अॉफिसर्स को जनवरी के आखिरी तक इम्मूवेबल प्रॉपर्टीज रिटर्न (IPRs) देना जरूरी हाेता है। ऐसा नहीं करने पर ऑफिसर्स के प्रमोशन और लिस्ट में शामिल करने पर रोक लगाई जा सकती है। पर्सनल एंड ट्रेनिंग डिपार्टमेंट (DoPT) के डाटा के मुताबिक, 2016 के लिए 1856 IAS ऑफिसर्स ने IPR नहीं दिया है। नियमों के मुताबिक, सिविल सर्विसेज ऑफिसर्स को भी सरकार को अपनी प्रॉपर्टी और कर्ज का ब्योरा देना होता है। इसके अलावा ऑफिसर्स सरकार की परमिशन बगैर 5000 से ज्यादा का गिफ्ट भी नहीं ले सकते।अगर वो अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से भी 25000 से ज्यादा का गिफ्ट ले रहे हैं तो इसके बारे में सरकार को बताना होता है।

किस राज्य के कितने अफसर?
कर्नाटक- 82, आंध्र प्रदेश- 74, बिहार- 74, ओडिशा, असम, मेघालय- 72-72, पंजाब- 70, महाराष्ट्र- 67, मणिपुर-त्रिपुरा- 64-64, हिमाचल प्रदेश- 60, गुजरात- 56, झारखंड- 55, हरियाणा- 52, जम्मू-कश्मीर- 51, तमिलनाडु- 50, नागालैंड- 43, केरल- 38, उत्तराखंड- 33, सिक्किम- 29, तेलंगाना- 26

देशभर में 6500 IAS पोस्ट
देशभर में 1450 प्रामोशन पोस्ट के साथ IAS ऑफिसर्स की 6500 पोस्ट हैं। इनमें से 5004 IAS ऑफिसर्स देशभर में काम कर रहे हैं। प्रॉपर्टी का डिटेल नहीं देने वाले सबसे ज्यादा 255 ऑफिसर्स उत्तर प्रदेश कैडर के हैं।

सातवीं कैबिनेट चार महत्वपूर्ण फैसले 

 एक -अब दिव्यांगों को ₹300 की जगह ₹500 पेंशन मिलेगी। दो- गाजियाबाद में कैलाश मानसरोवर भवन के लिए नगर निगम निशुल्क जमीन देगा। 50 करोड़ की लागत से 500 श्रद्घालुओं की सुविधा वाला यह भवन दो वर्ष में बनकर तैयार हो जाएगा। तीन- वाराणसी के जजेज गेस्ट हाउस के अपग्रेड के लिए प्रस्ताव अनुमोदित हुआ है । जल निगम की सीएनडीएस संस्था इसका मरम्मत कराएगी। चार- पूर्व विधायकों के पेंशन नियमावली में संशोधन किया गया है। करीब 25 साल पूर्व विधायकों को मिलेगा लाभ। प्रदेष  2500 पूर्व विधायकों को मिलेगा इसका लाभ पूर्व विधायकों को मिलेगा 50 हज़ार का तेल पूर्व विधायकों को अब मिलेंगे 50 हज़ार के रेल कूपन मिलेंगे।