मलिक काफूर का प्रेमी था अल्लाउद्दीन खिलजी

 मलिक काफूर का प्रेमी था अल्लाउद्दीन खिलजी 

वस्सफ अब्दल्लाह इब्न फदलल्लाह शरीफ अल-दिन शिराज़ी
14वीं शताब्दी के पर्सियन इतिहासकार

Image result for alauddin khilji

"रानी पद्मावती एक काल्पनिक चरित्र हैं" तथाकथित इतिहासकार इरफ़ान हबीब का यह कहना बिलकुल सही है, इसे मान लेने में मुझे अब कोई हर्ज नहीं दिखता। हबीब कैसे सही कह रहे हैं इसे ठीक संदर्भ में देखिये, आप भी सहमत होंगे की इस वामपंथी इतिहासकार ने दुरुस्त बात कही है। यही तथ्य लेकर अब जावेद अख्तर भी इस इतिहास में अपना कुछ सेकने को उत्तर आये है। 

वस्सफ अब्दल्लाह इब्न फदलल्लाह शरीफ अल-दिन शिराज़ी ,14वीं शताब्दी के पर्सियन इतिहासकार, के मुताबिक अलाउद्दीन खिलजी एक होमो सेक्सुअल (समलैंगिक) था और उसके हरम में हजारों लड़के सेक्स स्लेव्स के तौर पर थे। मलिक काफूर नामक उसके समलैंगिक प्रेमी का बाकायदा जिक्र भी आता है जबकि रानी पद्मावती से अनुराग का इतिहास में कोई जिक्र नहीं।

चूंकि भारतीय उपमहाद्वीप पर यह ऐतिहासिक तथ्य.... 14वीं शताब्दी के किसी आरएसएस अथवा कट्टर हिंदू इतिहासकार ने नहीं लिखा तो यह मान लेना बनता है कि पर्सिया के इन इतिहासकार ने गलत नहीं लिखा होगा।जब इरफ़ान हबीब यह कहते हैं कि रानी पद्मावती एक काल्पनिक चरित्र हैं, और रंगीन गिरोह उसका समर्थन करता है तो वह गलत कहाँ है ? ध्यान रखिए, पद्मावती जी काल्पनिक चरित्र हैं ऐसा उन्होंने इस खिलजी-पद्मावती प्रेमकथा वाली फिल्म के संदर्भ में कहा है। इस कहानी में वाकई पद्मावती एक काल्पनिक कैरेक्टर ही हैं।
Image result for alauddin khilji
दरअसल हम सबने संदर्भ सही से नहीं समझा। हबीब अलाउद्दीन खिलजी के होमो सेक्सुअल होने की पर्सियन इतिहासकार की बात के आधार पर ही ऐसा कह रहे हैं। अगर खिलजी एक होमोसेक्सुअल था, हजारों लौंडे उसके हरम में थे, मलिक काफूर उसका प्रेमी / प्रेमिका था : तो भला एक स्त्री रानी पद्मावती से उसका कोई संबंध कैसे संभव था ? हमारे समकालीन छद्म भारतीय 'धर्मनिरपेक्ष-उदारवादी",  संस्कृति, इतिहास और परंपराओं से कितने अनभिज्ञ हैं, कितने पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं ! उनके कपट, झूठ और संवेदनहीनता की तो कोई सीमा ही नहीं है ! यही देश की सबसे बड़ी समस्या है। पहली बात तो यह कि पद्मिनी की ऐतिहासिकता, उनका महान व्यक्तित्व और पवित्र स्मृति वंश परंपरा से लाखों हिंदुओं के मन में जिंदा है, जिसे ये जाहिल, उजड्ड, असभ्य और अशिष्ट 'धर्मनिरपेक्ष तबके' के लोग कभी नहीं समझ सकते, यह उनकी कल्पनाशीलता की तुलना में कहीं अधिक जटिल है। चित्तौड़ के कण कण में, वहां से सदियों पुराने मंदिरों और धार्मिक स्थलों में रानी पद्मिनी के जौहर की गाथा लोकगीतों और भजनों के रूप में सुनने व अनुभव करने की पात्रता भी इन दुराग्रही धनपशुओं में नहीं है ।
 ये समझ लें कि महारानी पद्मिनी का चित्रण अगर होगा तो केवल पारंपरिक पवित्रता के साथ ही होगा ! कोई भी अन्य प्रयत्न राजपूताने को ही नहीं, समूचे भारत को धधका सकता है । इसी मनोदशा में विरोध प्रदर्शन की वैधता को देखा और समझा जाना चाहिए ! ऐतिहासिक साक्ष्य को लेकर एक तथ्य देखा जाना चाहिए कि भीष्म, द्रौपदी, विक्रमादित्य या राजा भोज, भारत की संस्कृति में पीढ़ियों से रचे बसे हैं ! इतिहास लिखने में तत्वचिन्तक भारतीयों की रूचि नहीं रही ! आज की भाषा में वे सदा लो प्रोफाईल रहे ! किन्तु आमजन ने अपने तीज त्योहारों में, उत्सवों में उन्हें जिन्दा रखा !
"धर्मनिरपेक्षतावादी" बढ़चढ़ कर जिस ऐतिहासिक साक्ष्य की बात करते हैं, क्या वे इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा मध्यकालीन युग में किये गए व्यापक भीषण नर संहार, जबरन धर्मांतरण और मंदिरों के विनाश को भी इस आधार पर नकारेंगे, क्योंकि किसी मुग़ल इतिहासकार ने तो ऐसा कुछ लिखा नहीं ? आखिर ये लोग उस समय के अत्याचारियों को, खल नायकों को कोमल भावों बाला, उदार और नायक के रूप में क्यों स्थापित करना चाहते हैं ?
दुर्भाग्य से आजादी के बाद भारत के शैक्षणिक जगत पर वामपंथी काबिज हो गए, जिनके कारण सत्ताधीशों ने प्रो. के. एस. लाल जैसे विचारक इतिहासकार को दरकिनार कर दिया और उनकी लिखी पुस्तकें ‘The Legacy of Muslim Rule in India’ और ‘Muslim slave system in Medieval India’ आदि को विचार बाह्य कर दिया ! अब इसे सुनियोजित षडयंत्र नहीं तो क्या कहा जाये ? भारत की संघर्ष पूर्ण गौरव गाथा को भुलाना और हिंसक आतताईयों, आक्रान्ताओं को महिमा मंडित करना, यही इन अंग्रेजीदां धर्मनिरपेक्षता वादियों का एकसूत्री कार्यक्रम है !
इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि केंद्र की सत्ता में बैठी आज की भाजपा, जिससे औसत राष्ट्रभक्तों को बड़ी आशा थी, कि अब शायद स्थिति कुछ बदलेगी, वह आशा भी तब टूट गई, जब कल बुल्डोग नुमा मुखाकृति बनाकर एक केन्द्रीय मंत्री ने करणी सेना के प्रदर्शन पर आक्रोश व्यक्त किया !
साक्ष्य उपलब्ध न होने का अर्थ यह नहीं है कि घटना हुई ही नहीं ! थोड़ी देर के लिए पद्मिनी की चर्चा को छोड़कर चंद्रगुप्त की ओर आते हैं ! क्या किसी यूनानी रिकोर्ड में मौर्य पुरातनता के प्रतीक चंद्रगुप्त के अस्तित्व की पुष्टि होती है ? सोमनाथ पर महमूद गजनवी के आक्रमण के दस्तावेजी प्रमाण कहाँ हैं ? किन्तु ये दर्दनाक ऐतिहासिक घटनायें जन स्मृति में कायम है और समय के उलटफेर में भी हिंदुओं ने इन्हें भुलाया नहीं है । भले ही प्रस्तुति उतनी अच्छी नही हुई हो, किन्तु बीके करकरा ने एक शोधपूर्ण पुस्तक लिखी है “चित्तोड़ की नायिका - रानी पद्मिनी” ! उक्त पुस्तक में करकरा ने जोर देकर कहा है कि मलिक मोहम्मद जायसी की 'पद्मावत' में पद्मिनी का उल्लेख 1526 में सारंगपुर के नारायण दास द्वारा लिखी गई छिताई चरित से प्रभावित है ! करकरा का प्रभावी तर्क है कि जब नारायण दास और जायसी जैसे ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध हैं, तो पद्मिनी की ऐतिहासिकता को किवदंती बताना निरी मूर्खता है ! जन चेतना में गुजरात की देवल रानी भी विद्यमान हैं, जिनका विवाह अपहरण के बाद जबरन सुल्तान के बेटे से करा दिया गया था । इसके अलावा, खिलजी के प्रसिद्ध दरबारी कवि अमीर खुसरो द्वारा 1303 में खिलजी के चित्तौड़ मार्च के समय लिखी गई कहानी “सुलैमान और शबा की रानी” में छुपे सन्दर्भ को भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिये । खिलजी के सैन्य अभियानों के दौरान हुए जौहर के अन्य उदाहरण भी मिलते हैं, जैसे कि रणथंभौर की रानी रंगा देवी द्वारा किया गया जौहर । भले ही वामपंथी पोंगे इन साक्ष्यों को अप्रत्यक्ष कहकर नकारें, किन्तु पद्मिनी की ऐतिहासिकता स्वयंसिद्ध है ! और भला मुस्लिम दरबारी इतिहासकार अपने आका हुजूर खिलजी की असफलता की इस दर्दनाक घटना को क्यूं और कैसे लिख सकते थे ?
ऐतिहासिक प्रामाणिकता की मांग बेमतलब है, क्योंकि इतना तो तय है कि अलाउद्दीन खिलजी एक हत्यारा दरिंदा था, जो सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर गद्दी पर बैठा था । हिन्दू राजाओं के खिलाफ अपने सैन्य अभियानों में उसने क्रूरतम जघन्य कत्लेआम किये थे ! स्वयं अमीर खुसरो लिखता है कि चित्तोड़ में हिन्दू आबादी को सूखी घांस की तरह काटा गया ! इतिहासकार आर सी मजुमदार ने लिखा है कि खिलजी की अर्थनीति ने देश को खून से नहला दिया ! सुल्तान अलाउद्दीन ने अपने उलेमाओं से ऐसे नियम बनाने को कहा, जिससे हिन्दू जमींदोज रहें, यह सुनिश्चित किया जाए कि उनके पास कोई संपत्ति न हो ! उन्हें केवल जीवित भर रहने के लिए जजिया कर देना ही होगा, उन्हें इतना दयनीय बना दो, ताकि वे विद्रोह की सोच भी न सकें ! उसके कालखंड में अपने सम्मान की रक्षा के लिए हजारों हिंदू महिलाओं द्वारा जौहर किये जाने की एक नहीं तीन तीन घटनाएँ हुई थीं ! और हमारे फिल्मी धनपशु कहते हैं वह एक रसिक प्रेमी था ? घिन आती है इन लोगों पर !

SHARE THIS
Previous Post
Next Post