डी लुक और गर्माहट भरे शॉल और स्टोल


इन दिनों सर्दी का मौसम है! जल्दी ही जोरदार सर्दी अपना रंग दिखाना शुरू कर देगी। ऐसे में आप चाहती हैं कि सर्दी भी ना लगे और आपका स्टाइल भी हैपनिंग बना रहे तो यह ज्यादा मुश्किल नहीं है। जब बात हो सर्दियों में गर्माहट की तो स्टोल/शॉल सर्दी में गर्म अहसास देने के साथ ही ट्रेंडी लुक भी देते हैं।  
इनके बिना सर्दियों में पहनावा अधूरा सा लगता है। आप घरेलू हों, कॉलेज गोइंग या हों कामकाजी, रंग-बिरंगे शॉल या स्टोल के बिना बात नहीं बनती। पर उलझन में हैं कि किस पहनावे के साथ क्या जचेगा तो हम आपकी मुश्किल दूर किये देते हैं। 
यूं तो बाजार में बहुत प्रकार के शॉल उपलब्ध होते हैं पर अपने पहनावे के हिसाब लिया गया शॉल जहां आपकी सुन्दरता में चार चांद लगता है, वहीं गलत चुनाव से आपका पूरा पहनावा अस्त-व्यस्त लग सकता है। पारम्परिक या स्थानीय शॉल/ स्टोल न केवल आपके भारतीय पहनावे को पूरा करते हैं, चयन में थोड़ी सावधानी बरत कर आप इन्हें पाश्चात्य परिधानों के साथ पहन कर भी खुद को दे सकती हैं एक अलग अंदाज!



पश्मीना शॉल 
बात शॉल की हो और कश्मीर के सुप्रसिद्ध पश्मीना शॉल का जिक्र न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। असल पश्मीना धागे से बुने गए ये शॉल न केवल बेहद गर्म, साथ ही बेहद खूबसूरत भी होते हैं। हर उम्र, हर अवसर के लिए एक रंग से लेकर विभिन्न मनमोहक रंगों में बुनावट के साथ-साथ ये शॉल हर वार्डरोब में शामिल होने के लायक हैं। गहरे चटख रंगों में बरसों से सबकी पसंद बने पश्मीना शॉल अब आपको हलके रंगों में भी मिल जायेंगे।
सिल्क शॉल हर रोज ऑफिस में पहनना हो या शादियों के इस मौसम में किसी शादी में जाना हो, सिल्क शॉल आपके पहनावे को पूरा कर एक अलग ही लुक देंगे। जहां सलवार सूट और साड़ी जैसे भारतीय परिधान पर थोड़ा कढ़ाईदार सिल्क शॉल उपयुक्त है, वहीं जीन्स आदि पश्चिमी परिधानों पर आप प्लेन, धारीदार, चेक, ब्लॉक प्रिंट के सिल्क स्टोल से अपने लुक को निखार सकती हैं।
वूलेन शॉल वूलेन शॉल / स्टोल में हर शहर के बाजार में विस्तृत रेंज उपलब्ध है। जहां धागे से मशीन द्वारा बुने गए शॉल हर भारतीय स्त्री की वार्डरोब में पाए जाते हैं। वहीं हाथ से बुने हुए ऊन के शाल भी अब दोबारा फैशन में हैं। रोजाना पहनने से लेकर शादी-पार्टी के अवसर तक परिधान से मैच करते वूलेन शॉल के बिना सर्दियों का मजा अधूरा है। क्रोशिया द्वारा बुने गए शॉल आप सूट, साड़ी के साथ लें या जीन्स के साथ कैरी करें, आपको लुक को कम्पलीट करने के साथ-साथ ये आपको गर्माहट भी देते हैं! 
फर स्टोल 
फर स्टोल का जादू किसके सर चढ़ कर नहीं बोलता। कड़ाकेदार सर्दी में भी यदि आप जीन्स के साथ किसी भी तरह के स्टोल कैरी करने को लेकर संशय में हैं तो बेझिझक एक फर स्टोल को गले लगा लिजिए कोई भी आपके अंदाज को नजरअंदाज नहीं कर पाएगा। डिजाईन के चयन को लेकर आपको थोड़ी सावधानी बरतनी होगी। यदि आप प्रिंटेड स्वेटर, ब्लेजर या कोट पहन रही हैं तो उसके साथ प्लेन फर स्टोल का चयन आपको एलीगेंट लुक देगा और यदि आप चाहती हैं ग्लैमरस लुक तो प्लेन जीन्स कोट के साथ बोल्ड प्रिंट का फर स्टोल चुनें।

सर्दियों में इन बूट्स से खुद 
को दें स्टाइलिश लुक
सर्दी के मौसम में जहां कपड़ों के मामले में पहनने-ओढऩे का अंदाज बदल जाता है, वहीं फुटवियर को लेकर भी काफी कुछ बदल जाता है। सर्दियों में लॉग बूट्स का चलन आमतौर पर बढ़ जाता है। पहले जहां लॉग बूट्स में काले, भूरे और सफेद जैसे गिने-चुने रंग ही पहने जाते थे, वहीं अब सर्दियों में बूट्स में कई चटख रंग देखने को मिल रहे हैं। शायद यही वजह है कि इस बार सर्दियों में लड़कियों का रूझान लांग बूट्स की तरफ ज्यादा है। सर्दियों के बदलते फैशन में लांग बूट्स की मांग बढ़ जाती है, क्योंकि यह सर्द मौसम में पैरों को सुरक्षा देने के साथ-साथ पर्सनालिटी को एक स्टाइल स्टेटमेंट भी देते हैं। बूट्स की खासियत यह भी है कि स्कर्ट हो या जींस, यह सभी के साथ अच्छे लगते हैं।

 फैशन स्टेटस है

हेयर कलर 
खूबसूरत बाल अपके लुक को आकर्षक बना देते हैं। बालों का रंग कैसा हो जो आपके व्यक्तित्व पर फिट बैठे अलग-अलग तरह के कलर प्रयोग करने के पहले कुछ जरूरी बातें जान लेना जरूरी है


बालों को केवल जवां दिखने के लिए ही नहीं रंगा जाता। आजकल हेयर कलर एक फैशन स्टेट्स बन चुका है। अब वह पुराने समय की बात हो गई है, जब बालों को काले रंग से रंगा जाता था। लोग अपने लुक्स को लेकर किसी भी तरह के एक्सपेरीमेंट से नहीं डरते। सबसे बड़ा कनफ्यूजन इस बात को लेकर होता है कि बालों के लिए कौन सा कलर परफेक्ट होगा। बाजार में हर तरह के हेयर कलर मौजूद है बस जरूरत है सही पहचान की। हेयर कलर चुनने से पहले आपको कई बातों का खयाल रखना पड़ता है। सिर्फ बालों को कलर करना ही फैशन नहीं है उससे भी ज्यादा जरूरी है उस हेयर कलर का आपके चेहरे से मेल। इसी समस्या के समाधान के लिए हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे टिप्स जो आपको सही हेयर कलर चुनने में मदद करेंगे।
क्या आपको सूट करेगा ब्राउन हेयर कलर
आपको अपनी स्किन टोन के हिसाब से बालों में कलर कराना चाहिए।
बालों को नेचुरल लुक देना चाहते हैं तो ब्राउन कलर अच्छा रहेगा।
आप बालों में जो कलर कराएं वह अच्छी क्वालिटी का होना चाहिए।
हेयर कलर के बाद परेशानी होने पर तुरंत त्वचा रोग विशेषज्ञ से मिलें।
बाल आपकी खूबसुरती को निखार भी सकते हैं और उसे बिगाड़ भी सकते हैं। बाल लोगों की पर्सनैल्टी के लिए काफी मायने रखते हैं। एक हेयर कट आपको टफ लुक भी दे सकता है और कोमल लुक भी। ऐसे में अगर बालों को कलर कर सकते हैं तो ध्यान रखें, क्योंकि बालों की कलरिंग पर्सनैल्टी को काफी स्ट्रॉन्ग बना देती है। बालों को कलर करने का चलन पिछले कुछ सालों से बढ़ा भी है। लेकिन चलन के अनुसार आप तभी चलते हुए दिखाई देंगे जब वो आप पर फबेगा। ऐसे में बालों को अच्छा लुक देने के लिए अच्छे कलर का चुनाव करें।

ब्राउन हेयर कलर का फैशन
बालों को कलरफुल कराने के लिए आमतौर पर ब्राउन कलर को सबसे ज्यादा यूज किया जाता है। बाजार में इसके कई शेड्स आते हैं। आप भी अपनी स्किन टोन के हिसाब से कलर का शेड पसंद कर सकते हैं। चॉकलेट ब्राउन, ब्राउन विद हनी गोल्ड, गोल्ड, रेड विद  हनी गोल्ड, रेड विद ऑरेंज कलर जैसे शेड्स में से आप अपनी पसंद का कलर चुन सकते हैं। ब्लॉन्ड हेयर का क्रेज भी बढ़ा है। बालों में ग्लोबल कलर करवाना भी युवाओं को पसंद आता है। इसमें बालों को कलर करके स्ट्रीकिंग की जाती हैं। इनमें ब्राउन कलर से ग्लोबल और हनी गोल्ड से स्ट्रीकिंग करना अच्छा लगता है। इसी तरह रेड के साथ हनी गोल्ड का तालमेल भी खूबसूरत लगता है। कुछ लोग सिर्फ स्ट्रीकिंग कराना पसंद करते हैं। इसमें बालों की कुछ लटें निकालकर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर उन्हें कलर किया जाता है। स्ट्रीकिंग से मिलता-जुलता हेयर लाइटनिंग भी है जिसमें सिर के आगे के कुछ बालों को बाकी हेयर्स की अपेक्षा थोड़ा लाइट कलर किया जाता है, जिससे नया लुक मिलता है।
हेयर कलर चुनते समय इन बातों का रखें ध्यान
अगर आप बालों को बहुत ज्यादा हाइलाइट नहीं करना चाहती तो ब्राउन शेड की मदद ले सकती हैं। ब्राउन शेड के हेयर कलर बालों को प्राकृतिक रुप देते हैं, क्योंकि हर किसी के बाल बिल्कुल काले नहीं होते। ऐसे में अगर आप ब्लैक हेयर कलर का प्रयोग करेंगी तो आपके बाल नेचुरल नहीं लगेंगे।
जिन लोगों का रंग गोरा होता है उन्हें ब्लैक हेयर कलर के प्रयोग से बचना चाहिए। ऐसे लोग अगर ब्राउन हेयर कलर के शेड्स का प्रयोग करेंगे तो वे ज्यादा खूबसूरत दिखेंगे। आप बढ़ती उम्र के हिसाब से हेयर कलर का चुनाव करें तो ब्राउन कलर बेहतर होगा। अगर आप युवा हैं तो कोई भी ब्राइट रंग आप पर अच्छा लगेगा। यदि आप उम्र दराज हैं तो आप पर डार्क शेड ही अच्छा लगेगा।
लंबे बालों में वैसे तो हर तरह का हेयर कलर सूट करता है लेकिन ब्राउन शेड खासकर इस स्टाइल पर जंचता है। इस हेयर कलर में आपके बालों में सॉफ्ट वेव्स दिखेंगी। साथ ही आपके बाल रूट्स से ही बाउंसी दिखेंगे।

कैलिफोर्नियम


1 ग्राम की कीमत 1 अरब 82 करोड़ रुपए से ज्यादा।


दुनियाभर में कई ऐसे मेटल हैं, जो काफी महंगे होते हैं। इनमें हीरा, सोना, प्लैटिनम जैसी धातुओं के बारे में हम जानते भी हैं। लेकिन क्या आप किसी ऐसे मेटल के बारे में जानते हैं, जिसके 1 ग्राम की कीमत 3,12,500 अरब रुपए (3125 खरब रुपए) से ज्यादा है। इस कीमत में आप दुनिया के कई छोटे देशों को खरीद सकते हैं। जानिए किस काम आता है ये मेटल...
नासा के मुताबिक, एंटीमैटर धरती का सबसे महंगा मेटल है। 1 मिलीग्राम एंटीमैटर बनाने में 250 लाख डॉलर रुपए तक लग जाते हैं। जहां ये बनता है, वहां पर विश्व की सबसे बेहतरीन सुरक्षा व्यवस्था मौजूद है। इतना ही नहीं नासा जैसे संस्थानों में भी इसे रखने के लिए एक पुख्ता सुरक्षा घेरा है। कुछ खास लोगों के अलावा एंटीमैटर तक कोई भी नहीं पहुंच सकता है। दिलचस्प है कि एंटीमैटर का इस्तेमाल अंतरिक्ष में दूसरे ग्रहों पर जाने वाले विमानों में ईंधन की तरह किया जा सकता है। बता दें कि दुनियाभर के कई छोटे देशों का एरिया आधा किलोमीटर से लेकर सौ किलोमीटर के बीच में है। ऐसे में इन देशों को आराम से इतने पैसों में खरीदा जा सकता है।


Inline image 1


Inline image 2


नोटबंदी से मोदी विरोध तक : दीदी का दर्द


संजय तिवारी 

दीदी दर्द में है। वह मोदी को हटा कर ही दम लेंगी चाहे मरना क्यों न पड़े।  मोदी ने पाप ही ऐसा किया है।  बड़े नोट क्यों बंद किये ? इसी बंदी के बहाने ममता बनर्जी अब नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता से बाहर करने की ठान चुकी है। इसकी औपचारिक शुरुआत के लिए दीदी ने लखनऊ की जमीन को चुना। लखनऊ  इसलिए क्योकि यहाँ उन्ही की तरह मोदी की विरोधी सुश्री मायावती जी भी है और मुलायम सिंह भी। यहाँ जमीनहीं हो चुकी कांग्रेस भी शायद उन्ही के सुर में सुर मिला सके।  यह अलग बात है कि दीदी की कल यानी २८ नवम्बर की भारत बंद की घोषणा से सभी ने खुद को इतना अलग कर लिया था कि प्रधानमन्त्री तक यह बात ठीक से पहुच सके की वे लोग दीदी के भारत बंद में नहीं शामिल है। इसीलिए कल कांग्रेस ने आक्रोश दिवस मनाकर अपनी इति कर ली तो मायावती ने ऐलान ही कर दिया की वह नोटबंदी के विरोध में तो है पर भारत बंद में नहीं। जनता दल यू ने पहले ही किनारा कर लिया और नितीश कुमार तो इस मुद्दे पर जैम कर मोदी की तारीफ़ भी कर रहे है। समाजवादी पार्टी जरूर बंद में शामिल हुई और आज दीदी के मंच पर भी अखिलेश यादव अपने दलबल के साथ जिस तरह लख़नऊ में ताल थोक रहे है उसके निहितार्थ बहुत ही गहरे है।  
दरअसल दीदी का दर्द केवल नोटबंदी ही भर नहीं है। दीदी को लगता है कि जिस तरह से कांग्रेस का पतन हो रहा है और नरेंद्र मोदी जैसे कद्दावर नेता को चुनौती देने की हैसियत में कोई नेता दिख नहीं रहा है , ऐसे में वह यदि म्हणत करे तो शायद बड़े राष्ट्रीय विकल्प के रूप में उनको बाकी दल स्वीकार कर सकते है। इसीलिए नोटबंदी से बात करते करते ममता बनर्जी अब सीधे मोदी को हटाने की आवाज़ बुलद करने लगी है। वैसे भी दीदी की राजनीतिक जमीन कुछ ऐसी है जिसमे उनका मोदी विरोधी चेहरा ही उन्हें बनाये रह सकता है। पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी अवैध नागरिक दीदी के अपने वोट बैंक है। वह के भ्रष्ट जमाखोर और आथिक कारोबारी दीदी के निकट माने जाते है। शारदा जैसी  अभी कई संस्थाए है जिनसे दीदी को फंडिंग मिलती है , ऐसा वही के लोग कहते है। पश्चिम बंगाल की राजनीति को ठीक से समझने वालो का कहना है कि हवाई चप्पल, फिएट गाडी और गरीबी की ब्रांडिंग के साथ जिस ममता बनर्जी को मीडिया ने उभारा है , ममता बनर्जी सिर्फ उतनी ही नहीं है।
 सच तो यह है कि ममता बनर्जी अव्वलदर्जे की अवसरवादी  रही है। जब भी मौक़ा मिलता रहा है ममता को कांग्रेस या बीजेपी किसी से भी अपना लाभ लेने में कोई संकोच नहीं रहा। उन्हें जब भी मौक़ा मिला सत्ता में शामिल हुई और खूब लाभ लिया। ममता के एजेंडे में वैसे भी कभी राष्ट्र नहीं रहा। यह सही है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति में उन्होंने वामदलों को चुनौती के लिए जो तरीके अपनाये उनमे आम आदमी की बाते ही शामिल थी। यह भी सही है कि  पश्चिम बंगाल से वाम की राजनीति के सफाये के लिए सभी गैर वाम दलो  ने ममता को चेहरा बना कर काम किया।  यह काम कांग्रेस ने बहुत ज्यादा किया। एक तरह से कांग्रेस ने अपने खुद के लिए ही ममता  की  भरपूर मदद की। लेकिन ममता को लगा कि किसी के लिए इस्तेमाल होने से बेहतर है की खुद की जमीन बना ली जाय। उन्होंने ऐसा ही किया और खूब सफल हुई। यहाँ तक की सिंगूर से जब नैनो का कार संयंत्र हटा तब भी लोग ममता के साथ रहे। यह अलग बात है की रातोरात वह कारखाना मोदी जी गुजरात लेकर चले गए। 
  ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी के इस पूरे एकीकरण को नए सिरे से भी देखना जरूरी लगता है क्योकि  अब जनता दल यूनाईटेड, राष्ट्रीय लोकदल तथा आरके चौधरी की बीएस-4 समाजवादी से अलग होकर एक मंच पर हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले एक मजबूत साथी की जरूरत थी जो ममता बनर्जी के रूप में इनको मिल गया है। कांग्रेस ने अभी तक अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है। ऐसे में अब समाजवादी पार्टी को ममता बनर्जी के रूप में मजबूत साथी मिल गया है। ममता बनर्जी का कल देर शाम मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एयरपोर्ट पर काफी जोरदार ढंग से इस्तकबाल कर नए सियासी रिश्तों के द्वार खोलना शुरू किया है। कल जब दीदी आयी तो लखनऊ एयरपोर्ट पर अखिलेश अपने करीबी मंत्री राजेंद्र चौधरी के साथ मौजूद थे। सवाल पूछने पर अखिलेश यादव ने कहा कि 'वह (ममता) उनसे सीनियर है। यूपी आई हैं इसलिए इस्तकबाल को गये थे। हलाकि इस दावे से इतर यादव की इस पहल को रिश्तों की मजबूती का नया प्रयास माना जा रहा है। अखिलेश तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के प्रदर्शन का मंच साझा कर रहे है । इसे गैरभाजपा व गैरकांग्रेस एका की दिशा में पहल के रूप में भी देखा जा रहा है। यह भी साफ हो रहा है कि सत्ता के पांचवें साल में अखिलेश ने यूपी के बाहर की राजनीति में भी पांव पसारना शुरू किया है। इससे पहले वर्ष 2012 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव व ममता बनर्जी के बीच अच्छे राजनीतिक रिश्ते थे। राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी को लेकर मतभेद हो गये थे। इसके बाद से दोनों दलों के बीच दूरी बढ़ गई थी, मगर जब ममता बनर्जी ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तब अखिलेश वहां मौजूद थे। जाहिर है कि इससे रिश्तों की दूरियां कुछ कम हुई थी। अब लखनऊ में ममता के जोरदार सरकारी खैरमकदम और साझा प्रदर्शन के साथ ही अखिलेश ने भी राष्ट्रीय राजनीति की तरफ कदम बढ़ दिया है , इसमे कोई संदेह नहीं। जाहिर है इसके पीछे कही नहीं मुलायम की मंशा भी शामिल है। यह भी हो सकता है की आगामी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव की यह व्यूह रचना बन रही हो क्योकि मुलायम को प्रधानमन्त्री न बन पाने की पीड़ा तो है ही।  
जहा तक दीदी का सवाल है , उनके पीछे की शक्तियों को भी समझना पड़ेगा।  दरअसल ममता बनर्जी यदि नोट बंद करने के विरोध के साथ ही अब यह कह रही है की मोदी को वह हटा कर ही दम लेंगी तो , उनके इस स्वर के तरंगो को ठीक से समझने की जरूरत लगती है। यह मोदी का कुछ वैसा ही विरोध शुरू होता दिखाई पड़ रहा है जैसा गुजरात के दौरान हुआ था। गोधरा 2002 से 2014  तक मोदी को घेरने, रोकने और ख़त्म  साज़िशो को देश अभी भूला नहीं है। अब तो वे बहुत से तथ्य भी खुल कर सामने आ चुके है जिनमे मोदी को रोकने और मिटाने के गहरे षड़यंत्र रचे गए थे।  






लेखक भारत संस्कृति न्यास, नयी दिल्ली  के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार है 

ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा 


संजय तिवारी 

रात्रि के अंतिम प्रहर के तत्काबाद का समय को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है। ब्रह्म  मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: 4 से 5.30 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।

“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।
(ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।)

सिख मत में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है--*"अमृत वेला"* ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।



ब्रह्म मुहूर्त में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।

पौराणिक महत्व -- वाल्मीकि रामायण  के अनुसार श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद मंत्रो का पाठ करते माता सीता को सुना
शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है--
वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।
ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥*
अर्थात- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।

ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति :--
ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।

इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि

आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है

ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।

ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सफल, सुखी और समृद्ध होता है, क्यों? क्योंकि जल्दी उठने से दिनभर के कार्यों और योजनाओं को बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए न केवल जीवन सफल होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने वाला हर व्यक्ति सुखी और समृद्ध हो सकता है। कारण वह जो काम करता है उसमें उसकी प्रगति होती है। विद्यार्थी परीक्षा में सफल रहता है। जॉब (नौकरी) करने वाले से बॉस खुश रहता है। बिजनेसमैन अच्छी कमाई कर सकता है। बीमार आदमी की आय तो प्रभावित होती ही है, उल्टे खर्च बढऩे लगता है। सफलता उसी के कदम चूमती है जो समय का सदुपयोग करे और स्वस्थ रहे। अत: स्वस्थ और सफल रहना है तो ब्रह्म मुहूर्त में उठें।



वेदों में भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का महत्व और उससे होने वाले लाभ का उल्लेख किया गया है।*

प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ - ऋग्वेद-1/125/1
अर्थात- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।
यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। सुवाति सविता भग:॥ - सामवेद-35
अर्थात- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की उपासना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।
उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे।
अथर्ववेद- 7/16/२
अर्थात- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।

व्यावहारिक महत्व - व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है.

वास्तु 


  • वास्तु एक प्राचीन विज्ञान है, जो हमें बताता है कि घर, ऑफिस, व्यवसाय इत्यादि में कौन सी चीज होनी चाहिए और कौन सी नहीं. साथ हीं हमें यह भी बतलाता है कि किस चीज के लिए कौन सी दिशा सही होगी. यह हमें बताता है कि वास्तु दोषों का निवारण कैसे किया जा सकता है. यह मिथक या अन्धविश्वास पर आधारित बातें नहीं बताता है. कौन-सा कमरा किस दिशा में ज्यादा अच्छा रहेगा, कौन से पौधे आपको घर में लगाने चाहिए और कौन से नहीं इत्यादि. तो आइए जानते हैं कि वास्तुशास्त्र के अनुसार घर के लिए क्या-क्या सही है और क्या-क्या गलत।
 

  • घर के लिए कुछ महत्वपूर्ण वास्तु टिप्स :
  • पूजा घर उत्तर-पूर्व दिशा अर्थात ईशान कोण में बनाना सबसे अच्छा रहता है. अगर इस दिशा में पूजा घर बनाना सम्भव नहीं हो रहा हो, तो उत्तर दिशा में पूजा घर बनाया जा सकता है. लेकिन ध्यान रखें कि ईशान कोण सर्वश्रेष्ठ दिशा है.

  • पूजा घर से सटा हुआ या पूजा घर के ऊपर या नीचे शौचालय नहीं होना चाहिए.
  • पूजा घर में प्रतिमा स्थापित नहीं करनी चाहिए क्योंकि घर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति का ध्यान उस तरह से नहीं रखा जा सकता है जैसा कि रखा जाना चाहिए. अतः छोटी मूर्तियाँ और चित्र हीं पूजा घर में लगाने चाहिए.
  • रसोई के लिए दक्षिण-पूर्व दिशा सबसे अच्छी होती है.सीढ़ी के नीचे पूजा घर नहीं बनाना चाहिए.

  • फटे हुए चित्र, या खंडित मूर्ति पूजा घर में बिल्कुल नहीं होनी चाहिए.

  • पूजा घर और रसोई या बेडरूम एक हीं कमरे में नहीं होना चाहिए.
  • घर के मालिक का कमरा दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए. अगर इस दिशा में सम्भव न हो, तो उत्तर-पश्चिम दिशा दूसरा सर्वश्रेष्ठ विकल्प है.
  • गेस्ट रूम उत्तर-पूर्व की ओर होना चाहिए. अगर उत्तर-पूर्व में कमरा बनाना सम्भव न हो, तो उत्तर पश्चिम दिशा दूसरा सर्वश्रेष्ठ विकल्प है.
  • उत्तर-पूर्व में किसी का भी बेडरूम नहीं होना चाहिए.
  • शौचालय और स्नानघर दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना सर्वश्रेष्ठ है.
  • घर की सीढ़ी सामने की ओर से नहीं होनी चाहिए, और सीढ़ी ऐसी जगह पर होनी चाहिए कि घर में घूसने वाले व्यक्ति को यह सामने नजर नहीं आनी चाहिए.
  • सीढ़ी के पायदानों की संख्या विषम 21, 23, 25 इत्यादि होनी चाहिए.
  • सीढ़ी के नीचे शौचालय, रसोई, स्नानघर, पूजा घर इत्यादि नहीं होने चाहिए. सीढ़ी के नीचे कबाड़ भी नहीं रखना चाहिए.
  • सीढ़ी के नीचे कुछ उपयोगी सामान रख सकते हैं और सीढ़ी के नीचे रखे हुए सामान सुसज्जित होने चाहिए.
  • घर का कोई भी रैक खुला नहीं होना चाहिए. उसमें पल्ले जरुर लगाने चाहिए.
  • घर में कबाड़ नहीं रखना चाहिए.
  • कमरे की लाइट्स पूर्व या उत्तर दिशा में लगी होनी चाहिए.
  • घर के ज्यादातर कमरों की खिड़कियाँ और दरवाजे उत्तर या पूर्व दिशा में खुलने चाहिए.
  • सीढ़ी पश्चिम दिशा में होनी चाहिए.
  • घर का मुख्य दरवाजा दक्षिणमुखी नहीं होना चाहिए. अगर मजबूरी में दक्षिणमुखी दरवाजा बनाना पड़ गया हो, तो दरवाजे के सामने एक बड़ा सा आईना लगा दें.
  • घर के प्रवेश द्वार में ऊं या स्वस्तिक बनाएँ या उसकी थोड़ी बड़ी आकृति लगाएँ.
  • पूजा घर या उत्तर-पूर्व दिशा में जल से भरकर कलश रखें.
  • शयनकक्ष में भगवान की या धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी तस्वीर नहीं लगानी चाहिए.
  • ताजमहल एक मकबरा है, इसलिए न तो इसकी तस्वीर घर में लगानी चाहिए. और न हीं इसका कोई शो पीस घर में रखना चाहिए.
  • जंगली जानवरों के फोटो घर में नहीं रखने चाहिए.
  • पानी के फुहारे को घर में नहीं लगाना चाहिए. क्योंकि इससे धन नहीं ठहरता है.
  • नटराज की तस्वीर या मूर्ति घर में नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि इसमें शिवजी ने विकराल रूप लिया हुआ है.

अनुलोम-विलोम काव्य


राघवयादवीयम


संजय तिवारी

सृजन भारत की मौलिक पहचान है। सृजन ही यहाँ की संस्कृति है और इस सृजनात्मकता के कारण ही भारतीय आद्य साहित्य की अलौकिकता प्रमाणित होती है। भाषा , शब्द , वाक्य विन्यास , रस , छंद , अलंकार , समास , कारक , संधि , विभक्ति आदि व्याकरण के अंग है।  भाषिक संरचना और सम्प्रेषणीयता के लिए भाषा के व्याकरण का बहुत महत्त्व है। आज दुनिया में हर भाषा अपनी वैयाकरणीय व्यवस्था के कारण ही स्थापित अथवा विमुक्त होती है। भारत का महाभाग्य है कि यहाँ संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा विद्यमान  रही है।  यद्यपि आज यह प्रचलन में बहुत कम हो गयी है लेकिन इसकी विरासत इतनी समृद्ध है जो इसे कभी विलुप्त नहीं होने देगी। इस संस्कृत की क्षमता ही है जिसमे ऐसे काव्य की रचना भी संभव है जिसे एक शैर से पढने पर एक अलग अर्थ हो और दूसरे शैर से पढने पर दूसरा अर्थ निकलता हो। यह भी केवल अर्थ तक ही सीमित नहीं है बल्कि एक सिरा रामकथा के आख्यान बताये और दूसरा सिरा कृष्ण कथा सुनाये , जब की काव्य केवल एक है। 
दुनिया की किसी भाषा में यह क्षमता नहीं है। भाषा की इस क्षमता को अनुलोम - विलोम काव्य कहा जाता है। संस्कृत भाषा में इसके उदाहरण मौजूद है। कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ "राघवयादवीयम्" ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक। पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ "राघवयादवीयम।"



उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

अर्थातः
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो
जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।

विलोमम्:

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

अर्थातः
मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के
चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ
विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।

" राघवयादवीयम" के ये 60 संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं:-

राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

विलोमम्:
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ २॥

विलोमम्:
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ २॥

कामभारस्स्थलसारश्रीसौधासौघनवापिका ।
सारसारवपीनासरागाकारसुभूरुभूः ॥ ३॥

विलोमम्:
भूरिभूसुरकागारासनापीवरसारसा ।
कापिवानघसौधासौ श्रीरसालस्थभामका ॥ ३॥

रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।
नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥ ४॥

विलोमम्:
यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।
तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥ ४॥

यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्येसौ ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता त्रातम् ॥ ५॥

विलोमम्:
तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं ख्यातं ।
सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो योधेगायन् ॥ ५॥

मारमं सुकुमाराभं रसाजापनृताश्रितं ।
काविरामदलापागोसमावामतरानते ॥ ६॥

विलोमम्:
तेन रातमवामास गोपालादमराविका ।
तं श्रितानृपजासारंभ रामाकुसुमं रमा ॥ ६॥

रामनामा सदा खेदभावे दया-वानतापीनतेजारिपावनते ।
कादिमोदासहातास्वभासारसा-मेसुगोरेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥

विलोमम्:
मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-सारसा भास्वताहासदामोदिका ।
तेन वा पारिजातेन पीता नवायादवे भादखेदासमानामरा ॥ ७॥

सारसासमधाताक्षिभूम्नाधामसु सीतया ।
साध्वसाविहरेमेक्षेम्यरमासुरसारहा ॥ ८॥

विलोमम्:
हारसारसुमारम्यक्षेमेरेहविसाध्वसा ।
यातसीसुमधाम्नाभूक्षिताधामससारसा ॥ ८॥

सागसाभरतायेभमाभातामन्युमत्तया ।
सात्रमध्यमयातापेपोतायाधिगतारसा ॥ ९॥

विलोमम्:
सारतागधियातापोपेतायामध्यमत्रसा ।
यात्तमन्युमताभामा भयेतारभसागसा ॥ ९॥

तानवादपकोमाभारामेकाननदाससा ।
यालतावृद्धसेवाकाकैकेयीमहदाहह ॥ १०॥

विलोमम्:
हहदाहमयीकेकैकावासेद्ध्वृतालया ।
सासदाननकामेराभामाकोपदवानता ॥ १०॥

वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरादहो ।
भास्वरस्थिरधीरोपहारोरावनगाम्यसौ ॥ ११॥

विलोमम्:
सौम्यगानवरारोहापरोधीरस्स्थिरस्वभाः ।
होदरादत्रापितह्रीसत्यासदनमारवा ॥ ११॥

यानयानघधीतादा रसायास्तनयादवे ।
सागताहिवियाताह्रीसतापानकिलोनभा ॥ १२॥

विलोमम्:
भानलोकिनपातासह्रीतायाविहितागसा ।
वेदयानस्तयासारदाताधीघनयानया ॥ १२॥

रागिराधुतिगर्वादारदाहोमहसाहह ।
यानगातभरद्वाजमायासीदमगाहिनः ॥ १३॥

विलोमम्:
नोहिगामदसीयामाजद्वारभतगानया ।
हह साहमहोदारदार्वागतिधुरागिरा ॥ १३॥

यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।
सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥ १४॥

विलोमम्:
यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।
गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥

दण्डकां प्रदमोराजाल्याहतामयकारिहा ।
ससमानवतानेनोभोग्याभोनतदासन ॥ १५॥

विलोमम्:
नसदातनभोग्याभो नोनेतावनमास सः ।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥

सोरमारदनज्ञानोवेदेराकण्ठकुंभजम् ।
तं द्रुसारपटोनागानानादोषविराधहा ॥ १६॥

विलोमम्:
हाधराविषदोनानागानाटोपरसाद्रुतम् ।
जम्भकुण्ठकरादेवेनोज्ञानदरमारसः ॥ १६॥

सागमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।
न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७॥

विलोमम्:
तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।
सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥ १७॥

तां स गोरमदोश्रीदो विग्रामसदरोतत ।
वैरमासपलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥

विलोमम्:
केशवं विरसानाविराहालापसमारवैः ।
ततरोदसमग्राविदोश्रीदोमरगोसताम् ॥ १८॥

गोद्युगोमस्वमायोभूदश्रीगखरसेनया ।
सहसाहवधारोविकलोराजदरातिहा ॥ १९॥

विलोमम्:
हातिरादजरालोकविरोधावहसाहस ।
यानसेरखगश्रीद भूयोमास्वमगोद्युगः ॥ १९॥

हतपापचयेहेयो लंकेशोयमसारधीः ।
राजिराविरतेरापोहाहाहंग्रहमारघः ॥ २०॥

विलोमम्:
घोरमाहग्रहंहाहापोरातेरविराजिराः ।
धीरसामयशोकेलं यो हेये च पपात ह ॥ २०॥

ताटकेयलवादेनोहारीहारिगिरासमः ।

हासहायजनासीतानाप्तेनादमनाभुवि  ॥ २१॥

विलोमम्:
विभुनामदनाप्तेनातासीनाजयहासहा ।
ससरागिरिहारीहानोदेवालयकेटता ॥ २१॥

भारमाकुदशाकेनाशराधीकुहकेनहा ।
चारुधीवनपालोक्या वैदेहीमहिताहृता ॥ २२॥

विलोमम्:
ताहृताहिमहीदेव्यैक्यालोपानवधीरुचा ।
हानकेहकुधीराशानाकेशादकुमारभाः ॥ २२॥

हारितोयदभोरामावियोगेनघवायुजः ।
तंरुमामहितोपेतामोदोसारज्ञरामयः ॥ २३॥

विलोमम्:
योमराज्ञरसादोमोतापेतोहिममारुतम् ।
जोयुवाघनगेयोविमाराभोदयतोरिहा ॥ २३॥

भानुभानुतभावामासदामोदपरोहतं ।
तंहतामरसाभक्षोतिराताकृतवासविम् ॥ २४॥

विलोमम्:
विंसवातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।
तं हरोपदमोदासमावाभातनुभानुभाः ॥ २४॥

हंसजारुद्धबलजापरोदारसुभाजिनि ।
राजिरावणरक्षोरविघातायरमारयम् ॥ २५॥

विलोमम्:
यं रमारयताघाविरक्षोरणवराजिरा ।
निजभासुरदारोपजालबद्धरुजासहम् ॥ २५॥

सागरातिगमाभातिनाकेशोसुरमासहः ।
तंसमारुतजंगोप्ताभादासाद्यगतोगजम् ॥ २६॥

विलोमम्:
जंगतोगद्यसादाभाप्तागोजंतरुमासतं ।
हस्समारसुशोकेनातिभामागतिरागसा ॥ २६॥

वीरवानरसेनस्य त्राताभादवता हि सः ।
तोयधावरिगोयादस्ययतोनवसेतुना ॥ २७॥

विलोमम्
नातुसेवनतोयस्यदयागोरिवधायतः ।
सहितावदभातात्रास्यनसेरनवारवी ॥ २७॥

हारिसाहसलंकेनासुभेदीमहितोहिसः ।
चारुभूतनुजोरामोरमाराधयदार्तिहा ॥ २८॥

विलोमम्
हार्तिदायधरामारमोराजोनुतभूरुचा ।
सहितोहिमदीभेसुनाकेलंसहसारिहा ॥ २८॥

नालिकेरसुभाकारागारासौसुरसापिका ।
रावणारिक्षमेरापूराभेजे हि ननामुना ॥ २९॥

विलोमम्:
नामुनानहिजेभेरापूरामेक्षरिणावरा ।
कापिसारसुसौरागाराकाभासुरकेलिना ॥ २९॥

साग्र्यतामरसागारामक्षामाघनभारगौः 
निजदेपरजित्यास श्रीरामे सुगराजभा ॥ ३०॥

विलोमम्:
भाजरागसुमेराश्रीसत्याजिरपदेजनि ।स
गौरभानघमाक्षामरागासारमताग्र्यसा ॥ ३०॥

॥ इति श्रीवेङ्कटाध्वरि कृतं श्री  ।।

 यह अद्भुत रचना केवल भारत और भारतीय साहित्य में ही संभव है। दुनिया की कोई भाषा इस तरह की काय रचाना की क्षमता नहीं रखती। भारतीय भाषा विज्ञान के इस तत्व को समझने और वितरित करने की आवश्यकता इस लिए भी है क्योकि अब तो पश्चिम के आधुनिक  विज्ञान ने भी संस्कृत की शक्ति का लोहा मान लिया है। उपरोक्त श्लोको को गौर से अवलोकन करें कि दुनिया में कहीं भी ऐसा नही पाया गया ग्रंथ है ।



क्या है प्रेम 

प्रेम क्या है? किसी को पाना या खुद को खो देना? एक बंधन या फिर मुक्ति? जीवन या फिर जहर? इसके बारे में सबकी अपनी अपनी राय हो सकती हैं,लेकिन वास्तव में प्रेम क्या है – आइए जानते हैं। 
मूल रूप से प्रेम का मतलब है कि कोई और आपसे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो चुका है। यह दुखदायी भी हो सकता है,क्योंकि इससे आपके अस्तित्व को खतरा है। जैसे ही आप किसी से कहते हैं, ’मैं तुमसे प्रेम करता हूं’, आप अपनी पूरी आजादी खो देते है। आपके पास जो भी है, आप उसे खो देते हैं। जीवन में आप जो भी करना चाहते हैं, वह नहीं कर सकते। बहुत सारी अड़चनें हैं, लेकिन साथ ही यह आपको अपने अंदर खींचता चला जाता है। यह एक मीठा जहर है, बेहद मीठा जहर। यह खुद को मिटा देने वाली स्थिति है। अगर आप खुद को नहीं मिटाते, तो आप कभी प्रेम को जान ही नहीं पाएंगे। आपके अंदर का कोई न कोई हिस्सा मरना ही चाहिए। आपके अंदर का वह हिस्सा, जो अभी तक ’आप’ था, उसे मिटना होगा, जिससे कि कोई और चीज या इंसान उसकी जगह ले सके। अगर आप ऐसा नहीं होने देते, तो यह प्रेम नहीं है, बस हिसाब-किताब है, लेन-देन है।

जीवन में हमने कई तरह के संबंध बना रखे हैं, जैसे पारिवारिक संबंध, वैवाहिक संबंध, व्यापारिक संबंध, सामाजिक संबंध आदि। ये संबंध हमारे जीवन की बहुत सारी जरूरतों को पूरा करते हैं। ऐसा नहीं है कि इन संबंधों में प्रेम जताया नहीं जाता या होता ही नहीं। बिलकुल होता है। प्रेम तो आपके हर काम में झलकना चाहिए। आप हर काम प्रेमपूर्वक कर सकते हैं। लेकिन जब प्रेम की बात हम एक आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में करते हैं, तो इसे खुद को मिटा देन की प्रक्रिया की तरह देखते हैं। जब हम ’मिटा देने’ की बात कहते हैं तो हो सकता है, यह नकारात्मक लगे। जब आप वाकई किसी से प्रेम करते हैं तो आप अपना व्यक्तित्व, अपनी पसंद-नापसंद, अपना सब कुछ समर्पित करने के लिए तैयार होते हैं। जब प्रेम नहीं होता, तो लोग कठोर हो जाते हैं। जैसे ही वे किसी से प्रेम करने लगते हैं, तो वे हर जरूरत के अनुसार खुद को ढालने के लिए तैयार हो जाते हैं। यह अपने आप में एक शानदार आध्यात्मिक प्रक्रिया है, क्योंकि इस तरह आप लचीले हो जाते हैं। प्रेम बेशक खुद को मिटाने वाला है और यही इसका सबसे खूबसूरत पहलू भी है। आप इसे कुछ भी कह लें – मिटाना कह लें या मुक्ति कह लें, विनाश कह लें या निर्वाण कह लें। जब हम कहते हैं, ’शिव विनाशक हैं,’ तो हमारा मतलब होता है कि वह मजबूर करने वाले प्रेमी हैं। 

जरूरी नहीं कि प्रेम खुद को मिटाने वाला ही हो, यह महज विनाशक भी हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किसके प्रेम में पड़े हैं। तो शिव आपका विनाश करते हैं, क्योंकि अगर वह आपका विनाश नहीं करेंगे तो यह प्रेम संबंध असली नहीं है। आपके विनाश से मेरा मतलब यह नहीं है कि आपके घर का, आपके व्यापार का या किसी और चीज का विनाश। जिसे आप ’मैं’ कहते हैं, जो आपका सख्त व्यक्तित्व है, प्रेम की प्रक्रिया में उसका विनाश होता है, और यही खुद को मिटाना है। जब आप प्रेम में डूब जाते हैं तो आपके सोचने का तरीका, आपके महसूस करने का तरीका, आपकी पसंद-नापसंद, आपका दर्शन, आपकी विचारधारा सब कुछ पिघल जाता है। आपके भीतर ऐसा अपने आप होना चाहिए, और इसके लिए आप किसी और इंसान का इंतजार मत कीजिए कि वह आकर यह सब करे। इसे अपने लिए खुद कीजिए, क्योंकि प्रेम के लिए आपको किसी दूसरे इंसान की जरूरत नहीं है। आप बस यूं ही किसी से भी प्रेम कर सकते हैं। अगर आप बस किसी के भी प्रति हद से ज्यादा गहरा प्रेम पैदा कर लेते हैं – जो आप बिना किसी बाहरी चीज के भी कर सकते हैं – तो आप देखेंगे कि इस ’मैं’ का विनाश अपने आप होता चला जाएगा।

बच्चो को अवश्य पढाये श्रीमद्भगवद्गीता 


श्रीमद्भगवद्गीता एक विशुध्द वैज्ञानिक ग्रन्थ है जो मानव विज्ञान और मनोविज्ञान की सलीके से व्याख्या करता है। इस ग्रन्थ को केवल आध्यात्मिक या धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक ज्ञान के लिए सभी को अवश्य पढना चाहिए। बच्चो और युवाओ के लिए तो यह एक औषधि एवं मार्गदर्शक जैसी है। कल्याण की इच्छा वाले मनुष्यों को उचित है कि मोह का त्याग कर अतिशय श्रद्धा-भक्तिपूर्वक अपने बच्चों को अर्थ और भाव के साथ श्रीगीताजी का अध्ययन कराएँ। स्वयं भी इसका पठन और मनन करते हुए भगवान की आज्ञानुसार साधन करने में समर्थ हो जाएँ क्योंकि अतिदुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर भोगों के भोगने में नष्ट करना उचित नहीं है। गीताजी का पाठ आरंभ करने से पूर्व निम्न श्लोक को भावार्थ सहित पढ़कर श्रीहरिविष्णु का ध्यान करें--


अथ ध्यानम्
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्यनाभं सुरेशं 
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं 
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
भावार्थ : जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो ‍देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो-
यस्तानं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।
भावार्थ : ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र और मरुद्‍गण दिव्य स्तोत्रों द्वारा जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित तद्‍गत हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुर गण (कोई भी) जिनके अन्त को नहीं जानते, उन (परमपुरुष नारायण) देव के लिए मेरा नमस्कार है।
इन मंत्रो के जप के साथ ही गीताध्ययन आरम्भ किया जाना चाहिए। इससे अतिशय एकाग्रता आती है और मस्तिष्क व्याख्या के अनुकूल कतियाशील होता है।