विनोद खन्ना का जाना

विनोद खन्ना का जाना

विनोद खन्ना का जाना
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संजय तिवारी 

विनोद खन्ना नहीं रहे। यह खबर बड़ी अजीब है। एक लम्बे सफर का ऐसा अंत जिसके लिए अभी कोई तैयार नहीं। विनोद खन्ना का जाना केवल एक फ़िल्मी एक्टर के निधन की खबर नहीं बनती , वस्तुतः एक ठेठ भारतीय संवेदनशील मन की कला, संस्कृति , अध्यात्म और राजनीति से गुजरते हुए एक ऐसे पथिक  की यात्रा का पड़ाव है जिसका असर भारत के हर मन पर पड़ा है। निधन भारत की संसद के एक सदस्य का भी है।  दरअसल विनोद खन्ना वृहत्तर भारत के सांस्कृतिक सिंबल बन कर कला , फिल्म और राजनीति में बराबर की भागीदारी करते हुए अध्यात्म की चेतन परंपरा को भी जी रहे थे। देखा जाय तो उनकी उम्र अभी उतनी नहीं थी जोउनहे इस धरा से विदा की तैयारी कराती  बड़े और उनके समकक्ष बहुत से कलाकार अभी बिलकुल स्वस्थ और सक्रिय हैं। पिछले दिनों विनोद जी की कुछ तस्वीरें मीडिया में आयीं तब सभी को बड़ा ही आश्चर्य हुआ था उनको उस दशा में देख कर। 70 साल के विनोद खन्ना काफी समय से बीमार थे और मुंबई के एचएन फाउंडेशन अस्पताल में भर्ती थे। 
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 उन्हें गाल ब्लेडर कैंसर था। उन्होंने सुबह 11 बजे आखिरी सांस ली। पिछले ढाई महीने से विनोद का गिरगांव के एचएन रिलायंस फाउंडेशन एंड रिसर्च सेंटर में इलाज चल रहा था। अप्रैल की शुरुआत में उनकी एक फोटो भी सामने आई थी। इसमें वे बेहद कमजोर नजर आ रहे थे। उन्होंने करीब 144 फिल्मों में काम किया। हॉस्पिटल की ओर से जारी किए गए ऑफिशियल स्टेटमेंट के मुताबिक, "सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल में भर्ती वेटरन एक्टर और सांसद विनोद खन्ना ने सुबह 11.20 बजे ब्लैडर कार्सिनोमा के चलते अंतिम सांस ली।

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 जीवन का सफर
 विनोद खन्ना का जन्म एक व्यापारिक परिवार में 6 अक्टूबर,1946 को पेशावर में हुआ था। उनका परिवार अगले साल 1947 में हुए भारत-पाक विभाजन के बाद पेशावर से मुंबई आ गया था। उनके माता-पिता का नाम कमला और किशनचंद खन्ना था। 1960 के बाद की उनकी स्कूली शिक्षा नासिक के एक बोर्डिग स्कूल में हुई वहीं उन्होने सिद्धेहम कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक किया था। विनोद खन्ना पांच भाई बहनों में से एक हैं. उनके एक भाई और तीन बहने हैं. आजादी के समय हुए बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से मुंबई आकर बस गया।  1960 के बाद की उनकी स्कूली शिक्षा नासिक के एक बोर्डिग स्कूल में हुई वहीं उन्होने सिद्धेहम कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया था. बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई के दौरान विनोद खन्ना ने ‘सोलवां साल’ और ‘मुगल-ए-आज़म’ जैसी फिल्में देखीं और इन फिल्मों ने उन पर गहरा असर छोड़ा.
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फ़िल्मी सफर
उन्होंने अपने फ़िल्मी सफर की शुरूआत 1968 मे आई फिल्म “मन का मीत” से की जिसमें उन्होने एक खलनायक का अभिनय किया था. कई फिल्मों में उल्लेखनीय सहायक और खलनायक के किरदार निभाने के बाद 1971 में उनकी पहली सोलो हीरो वाली फिल्म हम तुम और वो आई. कुछ वर्ष के फिल्मी सन्यास, जिसके दौरान वे आचार्य रजनीश के अनुयायी बन गए थे, के बाद उन्होने अपनी दूसरी फिल्मी पारी भी सफलतापूर्वक खेली और अभी तक भी फिल्मों में सक्रिय हैं. एक इंटरव्यू के दौरान, विनोद खन्ना ने कहा था कि उनके समय भी हीरो फिट होते थे परंतु तब बॉडी दिखाने का ट्रेंड नहीं था.
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ये हैं यादगार फिल्में
विनोद खन्ना ने ‘मेरे अपने’, ‘कुर्बानी’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रेशमा और शेरा’, ‘हाथ की सफाई’, ‘हेरा फेरी’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, चाँदनी  जैसी कई शानदार फिल्में की हैं. विनोद खन्ना का नाम ऐसे एक्टर्स में शुमार था जिन्होंने शुरुआत तो विलेन के किरदार से की थी लेकिन बाद में हीरो बन गए. विनोद खन्ना ने 1971 में सोलो लीड रोल में फिल्म ‘हम तुम और वो’ में काम किया था.
 गुरदासपुर से सांसद विनोद खन्ना की फिल्म ‘एक थी रानी ऐसी भी’ छह दिनों पहले रिलीज हुई थी. राजमाता विजयाराजे सिंधिया के जीवन पर बनी फिल्म ‘एक थी रानी ऐसी भी’ फिल्म 21 अप्रैल को देश भर में रिलीज हुई थी. इस फिल्म में अभिनेत्री एवं मथुरा लोकसभा सीट से भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने विजयाराजे की भूमिका निभाई है. उनके अलावा फिल्म में विनोद खन्ना, सचिन खेडेकर एवं राजेश शृंगारपुरे ने भी अहम किरदार अदा किया था.
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राजनीतिक सफर
वर्ष 1997 और 1999 में वे दो बार पंजाब के गुरदासपुर क्षेत्र से भाजपा की ओर से सांसद चुने गए. 2002 में वे संस्कृति और पर्यटन के केन्द्रिय मंत्री भी रहे. सिर्फ 6 माह पश्चात् ही उनको अति महत्वपूर्ण विदेश मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री बना दिया गया.उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में पर्यटन और विदेश राज्य मंत्री बनाया गया। खन्ना 2014 का लोकसभा चुनाव भी गुरदासपुर से जीते थे। वह गुरदासपुर से चार बार जीते। खन्ना 2009 का लोकसभा चुनाव हार गये थे। पिछले काफी दिनों से वह अपनी बीमारी के चलते राजनीति में सक्रिय नहीं दिखाई दे रहे थे। पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान भी वह स्वास्थ्य कारणों से प्रचार के लिए नहीं आ पाये थे। पिछले दिनों एक तसवीर वायरल हुई थी जिसमें अस्पताल में भर्ती अभिनेता का स्वास्थ्य काफी गिरा हुआ दिख रहा था और वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ थे। यह बताया जा रहा था कि अभिनेता कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे।
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विनोद खन्ना के बारे में कुछ खास बातें:

1. विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर 1946 को पेशावर (ब्रिटिश इंडिया) में हुआ था जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है.

2. विनोद खन्ना के पिता का कपड़ों और केमिकल बनाने का कारोबार था लेकिन विभाजन के बाद इनका पूरा परिवार पेशावर से मुंबई चला आया.

3. पढ़ाई के दौरान ही विनोद खन्ना को 'सलवा साल' और 'मुगल ए आजम' जैसी फिल्मों के प्रति काफी प्रेम हो गया था. विनोद खन्ना ने सीडेनहम कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया था.

4. विनोद खन्ना ने सुनील दत्त की 1968 की फिल्म 'मन का मीत' से फिल्मों में डेब्यू किया था. इस फिल्म में विनोद ने एक विलेन का किरदार निभाया था. उस फिल्म में सुनील दत्त के भाई सोम दत्त मुख्य भूमिका में थे. यह फिल्म एक बड़ी हिट साबित हुई.

5. करियर के शुरुआत में विनोद खन्ना ने ज्यातदार सपोर्टिंग या विलेन वाले रोल किए. इन फिल्मों में 'पूरब और पश्चिम', 'सच्चा झूठा', 'आन मिलो सजना', 'मस्ताना', 'मेरा गाँव मेरा देश' और 'एलान' जैसी फिल्में थी.

6. विनोद खन्ना का नाम ऐसे एक्टर्स में शुमार था जिन्होंने शुरुआत तो विलेन के किरदार से की थी लेकिन बाद में हीरो बन गए. विनोद खन्ना ने 1971 में सोलो लीड रोल में फिल्म 'हम तुम और वो' में काम किया था.

7. साल 1980 में विनोद खन्ना ने फिरोज खान की 'कुर्बानी' फिल्म में काम किया जो उस साल की सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाली फिल्म बन गयी.

8. विनोद खन्ना ने 137 फिल्मों में काम किया है जिसमें से वह 101 फिल्मों में लीड रोल और 36 फिल्मों में सपोर्टिंग किरदार में नजर आये हैं.

9. साल 1982 में विनोद खन्ना 'ओशो' के अनुयायी बन गए और 5 साल तक कोई भी फिल्म नहीं की. फिर 1987 में 'इन्साफ' फिल्म से वापसी की. बाद में राजनीति‍ के क्षेत्र में भी विनोद खन्ना ने कदम रखा.

10. विनोद खन्ना की पहली शादी गीतांजलि से 1971 में हुई थी जिनसे अक्षय खन्ना और राहुल खन्ना बेटे हुए. उसके बाद किन्ही कारणों से उनका गीतांजलि से तलाक हो गया. और दोबारा साल 1990 में विनोद खन्ना ने कविता से शादी की और उन दोनों का एक बेटा साक्षी खन्ना और बेटी श्रद्धा खन्ना है.
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ओशो की  शरण में
जब वो अपने फ़िल्मी करियर के चरम पर थे तब उन्होंने बॉलीवुड को अलविदा कह दिया. जी हां, विनोद खन्ना फ़िल्में छोड़ कर आचार्य रजनीश (ओशो) के शरण में चले गये थे.ये बात तब की है जब उनका नाम बेहद सफल अभिनेताओं में गिना जाता था. लेकिन उस बीच उनकी मां का निधन हो गया जिससे वो काफी दुखी रहने लगे. इस दौरान विनोद खन्ना की मुलाकात ओशो से हुई.ओशो से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर से संन्यास ले लिया और अपनी बीवी को तलाक दे दिया. जिसके बाद वो अमेरिका जाकर ओशो के आश्रम में बस गये. ओशो ने उन्हें स्वामी विनोद भारती नाम दिया था.
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पांच साल बाद एक बार फिर उन्होंने रुपहले पर्दे पर शानदार एंट्री की. उन्होंने फिल्म ‘इंसाफ’ से अपनी नयी पारी की शुरुआत की. 1987 में आई इस फिल्म में उनकी एक्ट्रेस डिंपल कपाड़िया थी. फिल्म में एक्ट्रेस डिंपल के साथ उनकी केमेस्ट्री को काफी पसंद किया गया.कहा जाता है कि अगर विनोद खन्ना आचार्य रजनीश के चक्कर में न पड़ते तो शायद बॉलीवुड का इतिहास कुछ और होता। शायद अमिताभ बच्चन इतनी आसानी से सुपर स्टार नहीं बनते और विनोद खन्ना का करियर उनके आसपास ही होता। ओशो का जादू विनोद खन्ना के सिर चढ़कर बोला लेकिन आखिर क्यों अमिताभ बच्चन उनसे बचे रहे और बॉलीवुड में कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते चले गए।

 
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आखिरी बार ‘दिलवाले’में नजर आए...

 विनोद खन्ना 2015 में शाहरुख-काजोल स्टारर ‘दिलवाले’ के बाद फिल्मों में नजर नहीं आए। उन्होंने गुरदासपुर में कुछ महीने पहले कहा था कि उन्हें 2010 से कैंसर है। इसी वजह से वे पब्लिक लाइफ से दूर हैं।
 उनके परिवार में पहली पत्नी गीतांजलि और बेटे राहुल-अक्षय हैं। दूसरी पत्नी से कविता, बेटा साक्षी और बेटी श्रद्धा है।

 बनना चाहते थे इंजीनियर

 विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर, 1946 को पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था। बंटवारे के बाद उनका परिवार मुंबई में बस गया। पिता टेक्सटाइल बिजनेसमैन थे, लेकिन विनोद साइंस के स्टूडेंट रहे और पढाई के बाद इंजीनियर बनने का सपना देखा करते थे। पिता चाहते थे कि वे कॉमर्स लें और पढ़ाई के बाद घर के बिजनेस से जुड़ें। स्कूलिंग के बाद पिता ने उनका एडमिशन एक कॉमर्स कॉलेज में भी करा दिया था, लेकिन विनोद का पढ़ाई में मन नहीं लगा।

सुनील दत्त के जरिए हुई बॉलीवुड में एंट्री
 विनोद की सुनील दत्त से एक पार्टी में मुलाकात हुई थी। उस वक्त सुनील के छोटे भाई सोम दत्त अपने होम प्रोडक्शन में ‘मन का मीत’ बना रहे थे। इसमें सुनील दत्त को अपने भाई के किरदार के लिए किसी नए एक्टर की तलाश थी। विनोद खन्ना की पर्सनैलिटी, ऊंची कद-काठी को देखकर सुनील दत्त ने उन्हें वह रोल ऑफर किया। यह फिल्म 1968 में रिलीज हुई और बॉलीवुड में विनोद की एंट्री हुई।

पिता ने कहा था- फिल्मों में गए तो वे उन्हें गोली मार देंगे
 जब विनोद खन्ना ने सुनील दत्त का ऑफर कबूल किया तो उनके पिता नाराज हो गए। उन्होंने विनोद पर बंदूक तान दी और कहा कि यदि वे फिल्मों में गए तो वो उन्हें गोली मार देंगे।
 हालांकि, विनोद की मां ने उनके पिता को इसके लिए राजी कर लिया। पिता ने कहा कि अगर विनोद दो साल तक कुछ ना कर पाए तो उन्हें फैमिली बिजनेस ज्वाइन करना होगा।

करियर का टर्निंग प्वाइंट
 विनोद के करियर में टर्निंग प्वाइंट 1971 में आया। उसी साल में उन्होंने सुनील दत्त और अमिताभ बच्चन स्टारर ‘रेशमा और शेरा’ की। गुलजार की ‘मेरे अपने’ में उनकी एक्टिंग की तारीफ हुई। इस साल उन्होंने करीब 10 फिल्में कीं।
1973 में गुलजार के डायरेक्शन में बनी ‘अचानक’ से उन्होंने बॉलीवुड में अपने पैर मजबूती से जमा लिए।
कॉलेज में मिला था पहला प्यार

 विनोद खन्ना ने एक बार बताया था कि कॉलेज लाइफ में उन्होंने थिएटर में काम करना शुरू किया था। वहां उनकी कई गर्लफ्रेंड्स थीं। यहीं उनकी मुलाकात गीतांजलि से हुई। दोनों ने 1971 में शादी की। विनोद और गीतांजलि के दो बेटे अक्षय और राहुल खन्ना हैं।

एक हफ्ते में साइन की थीं 15 फिल्में

विनोद की पहली फिल्म 'मन का मीत' को दर्शकों का मिला-जुला रिस्पॉन्स मिला। लेकिन इसके बाद एक हफ्ते में ही विनोद ने करीब 15 फिल्में साइन कीं।
 उन्होंने अपने करियर में 144 फिल्में की हैं। उन्हें खासतौर पर 'मेरे अपने', 'मेरा गांव मेरा देश', 'इम्तिहान', 'इनकार', 'अमर अकबर एंथोनी', 'लहू के दो रंग', 'दयावान', ‘अचानक’ और जुर्म के लिए जाना जाता है।

5 साल ओशो के आश्रम में माली थे विनोद
 एक वक्त था जब परिवार के लिए विनोद संडे को काम नहीं करते थे। ऐसा करने वाले वे शशि कपूर के बाद दूसरे एक्टर थे। लेकिन बाद में वे ओशो से प्रभावित हो गए। इसके बाद उनकी पर्सनल लाइफ बदल गई।
 विनोद हर वीकेंड पुणे में ओशो के आश्रम जाते थे। यहां तक कि उन्होंने अपने कई शूटिंग शेड्यूल भी पुणे में ही रखवाए। शूटिंग के लिए भी वे कुर्ता और माला पहनकर पहुंचने लगे थे। धीरे-धीरे विनोद खन्ना प्रोड्यूसरों को साइनिंग अमाउंट लौटाने लगे। दिसंबर 1975 में विनोद ने फिल्मों से अचानक ब्रेक ले लिया।
 दरअसल, अोशो यूएस के ओरैगन शिफ्ट हो गए थे। विनोद भी वहीं चले गए। ओशो के साथ उनके रजनीशपुरम आश्रम में करीब 5 साल गुजारे। वे वहां उनके माली थे। यहीं से विनोद खन्ना की फैमिली लाइफ बिखरने लगी।

गीतांजलि से टूट गया रिश्ता
5 साल तक यूएस में रहे विनोद का परिवार टूट गया था। 1985 में पत्नी गीतांजलि ने उन्हें तलाक देने का फैसला किया। फैमिली बिखरने के बाद 1987 में विनोद ने डिंपल कपाड़िया के साथ फिल्म 'इंसाफ' से बॉलीवुड में फिर से एंट्री की। इसके बाद उन्होंने फिरोज खान के साथ ‘दयावान’ में लीड एक्टर का रोल किया।

1990 में की दूसरी शादी
 दोबारा फिल्मी करियर शुरू करने के बाद विनोद ने 1990 में कविता से शादी की। दोनों का एक बेटा साक्षी और एक बेटी श्रद्धा खन्ना है।
1997 में पॉलिटिक्स में एंट्री
 1997 में बीजेपी के मेंबर बनने के बाद विनोद नेता भी बन गए। वे गुरदासपुर, पंजाब से बीजेपी सांसद थे।
राजनीति के साथ विनोद खन्ना फिल्मों में भी एक्टिव रहे। सलमान खान स्टारर 'दबंग' सीरीज की फिल्मों में अहम किरदार निभा चुके विनोद को आखिरी बार डायरेक्टर रोहित शेट्टी की फिल्म 'दिलवाले' (2015) में देखा गया था। इस फिल्म में शाहरुख खान, काजोल, वरुण धवन और कृति सेनन अहम भूमिका में थे।

श्रद्धांजलि 

विनोद खन्ना अपने लार्जर देन लाइफ परफॉर्मेंस और ग्रेशियसनेस के लिए याद किए जाएंगे। उनके जैसे कम ही लोग होते हैं...सर आप बहुत याद आएंगे।- अनुपम खेर
 फिल्मों और राजनीति में विनोद खन्ना का एक शानदार करियर था। उन्होंने करोड़ों भारतीयों के दिलों में एक विशेष जगह बनाई। विनोद खन्नाजी के निधन के साथ भारत के लोगों ने एक शानदार एक्टर और सेंसेटिव पॉलिटिशियन को खो दिया है। उनकी आत्मा को शांति मिले।- राजनाथ सिंह
 विनोद खन्ना वास्तव में 'मेरे अपने', एक प्रभावशाली और प्यारे पर्सनैलिटी, बेहद हैंडसम और टैलेंटेड सुपरस्टार अब हमारे बीच नहीं रहे। फिल्मों से लेकर राजनीति तक विनोद और मैं साथ रहे। वे अपने पीछे पूरी एक जनरेशन, कई फैन्स एडमाइरीज, दोस्त और शुभचिंतकों को छोड़ गए हैं। लव यू, मिस यू। उनके लिए मेरी प्रार्थना और उनके परिवार के लिए संवेदना है। हम सभी के लिए बहुत बुरा दिन। भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। - शत्रुघ्न सिन्हा
 विनोद खन्नाजी के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ। वे आखिरी वक्त तक एक अच्छे इंसान और स्टार रहे। उनके परिवार के साथ मेरी संवेदना है।- आशा भोसले
 अमर (अमर अकबर एंथोनी में विनोद खन्ना का कैरेक्टर) तुम बहुत याद आओगे।- ऋषि कपूर
अब मुसलमानो ने शुरू कर दी श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने की मुहिम 



संजय तिवारी
 लखनऊ।  अयोध्या में माहौल फिर गरम होने लगा है। एक तरफ श्रीराम के नाम पर राजनीति कर के प्रचंड जीत का जश्न मना रही पार्टी अभी अपनी जीत के मद में ही है जबकि खुद मुसलमानो ने आगे बढ़ कर राम के मंदिर के निर्माण का संकल्प ले लिया है। इस समय अयोध्या में विभिन्न क्षेत्रो से आये हुए मुसलमानो का जमावड़ा शुरू हो गया है। ये सभी लोग अपने साथ ईटे भी लेकर आये हैं। ये लोग विश्व हिन्दू परिषद् से भी संपर्क कर रहे हैं। अयोध्या के निवासियों को भी ये लोग अपनी मुहिम में शामिल कर रहे हैं। 
यह पहले भी संकेत मिल रहा था कि अयोध्या के लोग तथा देश के सामान्य मुसलमान इस विवाद से काफी ऊब चुके हैं। वे अब हर हाल में इस विवाद को ख़त्म कर विकास को ओर कदम बढ़ाना चाहते है। यदि भाजपा या विहिप ज्यादा विलम्ब करते हैं तो निश्चित तौर पर सामान्य मुसलमान आगे बढ़ कर इस मुद्दे को निपटाना चहेगा। क्योकि अब किसी के पास इस मुद्दे को लटकाने का कोई बहाना नहीं है। केंद्र और उत्तेर प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार हैं। 
अयोध्या पहुंचे मुस्लिम कारसेवक, बोले- कराओ राम मंदिर का निर्माण

 अयोध्या राम मंदिर निर्माण के लिए मुस्लिम मंच भी सामने आ गया है। श्री राम मंदिर निर्माण मुस्लिम कारसेवक मंच राम मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रक ईटों के साथ अयोध्या पहुंचा। मुस्लिम कारसेवकों ने अयोध्या में स्थानीय लोगों के साथ मुलाकात कर जय श्री राम के नारे लगाए। मुस्लिम कारसेवक के राष्ट्रीय अध्यक्ष आज़म खान ने कहा कि राम मंदिर निर्माण मुस्लिम समाज का मकसद है अब राम लाल टेंट में नहीं रहेंगे। मंदिर निर्माण से देश की तरक्की होगी और नफरत की खाई खत्म होगी। मुस्लिम कारसेवकों में लगभग 50 से ज्यादा मुस्लिम अयोध्या पहुंचे।

राम मंदिर निर्माण को 3000 ईंट लेकर पहुंचे मुस्लिम


धर्मनगरी में गुरुवार की शाम विभिन्न क्षेत्रों से मुस्लिम समाज के लोग पहुंचे और जुलूस की शक्ल में सड़क पर ‘मुसलमानों हक और ईमान के साथ आओ, श्रीराम मंदिर का निर्माण कराओ’ के नारे लगाने लगे। राम मंदिर निर्माण के लिए 3000 ईंटें लेकर अधिगृहीत परिसर में विराजमान रामलला का दर्शन करने जा रहे जत्थे को पुलिस ने रोक दिया। श्रीराम मंदिर निर्माण मुस्लिम कारसेवक मंच के सदस्य गुरुवार शाम छह बजे अयोध्या पहुंचे और यहां भव्य राम मंदिर निर्माण का संकल्प लेते हुए जय श्रीराम के नारे लगाए। मंच के अध्यक्ष आजम खान ने बताया कि हम लखनऊ से आ रहे हैं। हमारा मकसद है राम मंदिर निर्माण। कोतवाल अरविंद कुमार पांडेय ने बताया कि मुस्लिम मंच के सदस्य बस्ती, महाराजगंज, गोरखपुर, लखनऊ आदि जगहों से आए थे। मंदिर निर्माण में अपना सहयोग ईंटों के माध्यम से करना चाहते थे लेकिन मंदिर बंद होने की बात इनको बताई गई तो इन लोगों ने विहिप के लोगों से संपर्क साधा है। उन ईंटों को वहां ले जाकर जमा करने की बात कह रहे हैं। फिलहाल इस समय उन्होंने अपनी ट्रक को नयाघाट बंधा तिराहे के पास खड़ा कर रखा है। सभी चले गए हैं।

मुस्लिम कार सेवा शुरू,टेंट में नहीं रहेंगे भगवान राम

 मुस्लिम समाज के लोगों ने एक संदेश देते हुए कहा कि अब अयोध्या में श्रीराम लगा कृपाल में नहीं रहेंगे और उनके लिए भव्य मंदिर निर्माण किया जाएगा। श्री राम मंदिर निर्माण कार्य सेवा मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष आज़म खान ने मंदिर निर्माण पर मुस्लिम समाज की तरफ से प्रतिज्ञा देते हुए कहा की भगवान राम में मुस्लिमों की आस्था है जिसे मंदिर निर्माण के लिए और मुस्लिम समाज को आवाहन किया जाएगा।
मुस्लिम समाज ने अयोध्या पहुंचकर कहां की लोग  ac में बैठे हैं और भगवान राम टेंट में रह रहे हैं ऐसे में भगवान राम को टेंट में नहीं रखा जाएगा साथ ही मुस्लिमों का कहना है कि मुस्लिम समाज अब जाग गया है। नफरत की खाई को खत्म करते हुए अयोध्या में श्रीराम का भव्य मंदिर निर्माण कराया जाएगा।
 मुस्लिम कार सेवकों ने 50 से अधिक संख्या में अयोध्या पहुंच अयोध्या वासियों से मुलाकात की। इतना ही नहीं मां भव्य मंदिर निर्माण के लिए मुस्लिम कारसेवक एक तरफ पत्थर भी साथ लेकर आए थे। हालांकि जब इस बात की जानकारी पुलिस को हुई तो उन्होंने मुस्लिम समाज के लोगों को समझा बुझा कर वापस उनके गंतव्य पर भेजने का काम किया।

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आईएसआईएस के निशाने पर मोदी और योगी

आईएसआईएस के निशाने पर मोदी और योगी

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संजय तिवारी 
लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आतंकियों के निशाने पर हैं। लंदन में बैठे कुछ कश्मीरी आतंकियों ने दोनों बड़े नेताओं की हत्या की साजिश रची है।खबर है कि  कश्मीर से एक दर्जन से अधिक आत्मघाती आतंकियों को लखनऊ की ओर भेजा गया है। सेंट्रल इंटेलीजेंस और खुफिया विभाग से मिले इनपुट के बाद यूपी पुलिस के आइजी सिक्योरिटी ने बरेली सहित सभी जिलों के डीएम और एसएसपी को अलर्ट किया है। 
खुफिया विभाग के इनपुट के मुताबिक, दोनों बड़े नेताओं को टारगेट करने के लिए कश्मीर से आत्मघाती आतंकियों और स्लीपर सेल का दस्ता भेजा गया है, जो मार्च के आखिरी सप्ताह में कश्मीर से लखनऊ के लिए रवाना हुआ। अप्रैल में इनके दिल्ली और उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने की सूचना है। इनपुट के बाद वीआइपी और अतिविशिष्ट व्यक्तियों के मूवमेंट और कार्यक्रमों पर सतर्कता बढ़ा दी गई है

इसी बीच  दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गुरूवार की  सुबह यूपी एटीएस के साथ एक संयुक्त ऑपरेशन में 3 अाईएसअाईएस संदिग्धों को जालंधर, मुंबई और बिजनौर से गिरफ्तार कर लिया। बताया जा रहा है कि बिजनौर के बढ़ापुर की मस्जिद से एटीएस और एसटीएफ ने छापा मारकर दो लोगों को हिरासत में लिया है। इस बारे में पता चला है कि  सूचना मिली थी कि आतंकवादी घटनाएं करने के लिए एक गिरोह तैयार हो रहा है जिसके कुछ अति-सक्रिय सदस्य नए सदस्य बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इस सूचना के आधार पर यह ऑपरेशन किया गया। बिजनौर के बढ़ापुर की मस्जिद से  मुफ्ती फैजान और तंजीर अहमद नाम को दो अाएसअाईएस संदिग्धों को एटीएस ने मस्जिद में पकड़ा है। वे काफी समय से बढ़ापुर की मस्जिद में रह रहे थे। दिल्ली पुलिस के इस अॉपरेशन में 5 राज्यों की पुलिस मदद कर रही है। इसमें अाध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश अौर महाराष्ट्र की एटीएस तथा बिहार व पंजाब की पुलिस शामिल है।
खुफिया सूत्र बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को तो आईएस के एक आतंकी माडयूल ने पिछले वर्ष दशहरे के मौके पर लखनऊ रैली में विस्फोट से उड़ाने की भी साजिश रची थी. इस बात का ुालासा हाल में कानपुर से गिर तार आईएसआईएस संदिग्ध दानिश ने एनआईए की पूछताछ में किया है. इसी तरह यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी आईएसआईएस के निशाने पर है. इतना ही नहीं, जैश ए मोहमद, इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन भी योगी को पहले से ही अपने राडार पर लिए हुए हैं. इसी के मद्देनजर केन्द्र सरकार ने पिछले दिनों योगी को जेड प्लस सिक्योरटी के साथ कमांडों की चार घेरों वाली सुरक्षा व्यवस्था मुहैय्या कराया है. 

इस पूरे नेटवर्क को समझने के लिए कुछ माह पहले से ही हो रही घटनाओ का विश्लेषण बहुत जरूरी है। उत्तर प्रदेश  एटीएस और एनआईए द्वारा मोहमद दानिश और आतिफ मुज फर से पूछताछ में सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक  आतंकी संगठन आईएसआईएस से संबंध रखने वाले इन दोनों और इनके अन्य साथियें ने बीते वर्ष अक्टूबर माह में लखनऊ रामलीला मैदान मं बम लगाने की साजिश रची थी, जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रैली कोसंबोधित करने वाले थे. यह दोनों फिलहाल एनआईए (राष्टï्रीय सुरक्षा एजेंसी) की हिरासत में है. मध्यप्रदेश के उज्जैन में रेलवे पटरी पर बीते सात मार्च को हुए विस्फोट के बाद एनआईए ने आतिफ समेत अन्य छह लोगों को गिर तार किया था. खबरों के मुताबिक आईएसआईएस से प्रेरित यह संगठन विस्फाट की खबर का बेसब्री से इंतजार कर रहा था लेकिन यह खबर कभी आई ही नहीं. दानिश ने अपने बयान में कबूल किया कि यह समूह चरमपंथ के प्रभाव के स्तर को जानने के लिए विस्फोट करने को बेसब्र हो रहा था और इस प्रक्रिया के दौरान समूह ने विभिन्न स्थानों पर बम लगाने के कई प्रयास भी किये थे. उसने बताया कि आतंकी समूह के स्वयंभू आमिर (प्रमुख) अतिफ मुज फर ने स्टील के पाइपोकं और बल्बों की मदद से बम भी तैयार किया जिसमें उसने भी मदद की.  दानिश ने जांचकर्ताओं को बताया कि आतिफ ने इंटरनेट की साइट इंस्पायर से बम बनाना सीखा था. इसे कथित तौर पर प्रतिबंधित अलकायदा संगठन से संबद्धता रखने वाले एक संगठन ने अपलोड किया था. आरोपी ने दावा किया किआतिफ ने साइकिल की एक दुकान से लोहे के छर्रें के दो पैकेट खरीदे थे, इसके अलावा उसने आतिफ नाम के ही एक अन्य आरोपी के साथ उस स्थान की रेकी भी की थी. 

दूसरी तरफ आतिफ ने भी दानिश के इस बयान की पुष्टि की. उसने बताया कि वह कानपुर के मूलगंज में पटाखे की सामग्री खरीदने गए थे. आतिफ ने कहा कि उसने वह बम भारतीय वायु सेना के सेवानिवृत कर्मी जीएम खान को देदिया था. खान इस बम को अपनी बाइक पर लेकर लखनऊ गए थे. उसकी बाइक पर भारतीय वायुसेना का स्टीकर भी लगा था. गत 11 अक्टूबर को वह औा समूह के अनरू सदस्य लखनऊ पहुंचे, वहां उन्होंने नया सीम कार्ड खरीदा और खान से संपर्क किया ताकि उस स्थान पर या उसके आसपास कहीं बम लगाया जा सके. इसी तरह मीडिया में ुाफिया एजेंसियों के हवाले से आई खबरों के अनुसार  योगी आदित्यनाथ सीएम बनने से पहले ही आतंकियों के निशाने पर तो थे ही, पर हाल में यूपी विधान सभा के लिए हुए चुनावों में भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत के बाद उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद उन पर आतंकी संगठनों के हमले का खतरा और बढ़ गया है.  लिहाजा खुफिया एजेंसियों ने आशंका व्यक्त की  है कि आतंकी संगठन कभी भी कोई खौफनाक वारदात को अंजाम दे सकते हैं. 
दरअसल लखनऊ मुठभेड़ आईएस के खतरे का ट्रेलर मात्र था . इसके जरिये आतंकवादी संगठन आईएसआईएस ने अपनी मौजूदगी का एहसास करा दिया  और बगदादी एंड कंपनी अब भारत को भी सीरिया और इराक जैसा बनाने की कोशिश कर रही है. बीते दिनों मध्यप्रदेश के शाजापुर में भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में एक धमाका हुआ था. इसके बाद आतंकवादियों ने धमाके की तस्वीर सीरिया में मौजूद आईएसआईएस के आकाओं को भी भेजी थीं. यह धमाका देश में आईएसआईएस का पहला हमला था, जिसमें 9 लोग ज मी हो गए थे. आतंकवादियों के पास से जो विस्फोटक मिले हैं, उन पर लिखा था आईएसआईएस, हम भारत में हैं. इसके बाद मध्यप्रदेश पुलिस ने कानपुर के रहने वाले दानिश अख़्तर, आतिश मुज फर और अलीगढ़ के रहने वाले सैय्यद मीर हुसैन को गिर तार किया था. मध्यप्रदेश पुलिस से मिली जानकारी के आधार पर उत्तर प्रदेश की पुलिस और एटीएस ने लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में एक घर की घेराबंदी कर ली, जिसमें मोह मद सैफुल्लाह नाम का एक आतंकवादी छिपा हुआ था. पुलिस इस आतंकवादी को जिन्दा पकडऩे की कोशिश कर रही थी. लेकिन वो सरेंडर करने के लिए तैयार नहीं था. आखिरकार 11 घंटे के मुठभेड़ के बाद रात करीब ढाई बजे इस आतंकवादी को मार गिराया गया. हालांकि, उत्तर प्रदेश के एडीजी कानून एवं व्यवस्था दलजीत चौधरी ने स्पष्ट किया है कि मारा गया आतंकवादी सैफुल्लाह था. इस आतंकवादी को सीधे आईएसआईएस से कोई निर्देश मिले थे या नही, यह अभी नहीं कहा जा सकता. लेकिन वह आईएसआईएस की विचारधारा से कहीं ना कहीं प्रभावित जरूर था. इस बीच उत्तर प्रदेश पुलिस के आतंकवाद रोधी स्क्वायड (एटीएस)  ने लखनऊ आतंकी आपरेशन के सिलसिले में नौ मार्च को दो और संदिग्धों को गिर तार किया. 


इससे पूर्व एटीएस ने लखनऊ आपरेशन में संदिग्ध आतंकी सैफुल्लाह को मार गिराया था. एडीजी (कानून व्यवस्था) दलजीत चौधरी ने बताया कि गिर तार संदिग्धों में से एक भारतीय वायुसेना का पूर्व कर्मी मोह मद गौस खान है. उन्होंने बताया कि खान माड्यूल का मु य आरोपी और मास्टरमाइंड है. उसे कानपुर से पकड़ा गया. खान ने पूछताछ के दौरान कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं. पुलिस उससे मिली जानकारी के आधार पर जांच आगे बढा रही है. एडीजी ने कहा, मोह मद गौस खान माडयूल का कट्टर सदस्य है और वह तकनीकी स्तर पर जानकार है. उन्होंने बताया कि एक अन्य आरोपी अजहर भी पकड़ा गया है. चौधरी ने यह नहीं बताया कि अजहर को कहां से पकड़ा गया है. अजहर माडयूल को हथियारों की आपूर्ति करता था. चौधरी ने बताया कि आज की दो गिर तारियों के साथ ही माडयूल के सभी प्रमुख सदस्य पकड़े जा चुके हैं. आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने इससे पूर्व तीन संदिग्ध गिर तार किये थे. इस प्रकार अब तक कुल पांच लोग गिर तार किये जा चुके हैं. सैफुल्लाह के तार भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन विस्फोट से जुडे होने का संदेह था. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ये आतंकी संगठन उत्तर प्रदेश की नेपाल से सटी ल बी सीमा, घनी आबादी, बेइंतहा बेरोजगारी और पिछड़ेपन के मद्देनजर यूपी को अपने खुरासन योजना का ट्रांजिट प्वाइंट बनाना चाहते हैं. अपनी इसी योजना के तहत इस्लामिक स्टेट (आईएस) आतंक के जरिए देश में अपने नापाक मंसूबे खुरासन को अंजाम देने के लिए यूपी के नौवाजनों को मोहरा बना रहा है. इसके लिए इन दिनों सोशल मीडिया के जरिए यूपी के युवा तेजी से आईएस की ओर जुड़ रहे है. जिसका खुलासा खुद यूपी एटीएस के आई असीम अरूण ने एक विशेष बातचीत के दौरान किया है. आईएस के इस नापाक मंसूबे की साजिश से यूपी एटीएस पूरी तरह वाकिफ  है. यही वजह है कि अभी बीते दिनों लखनऊ में कानपुर के रहने वाले आईएस के आतंकी सैफुल्लाह को यूपी एटीएस ने एनकाउंटर में मार गिराया. जिस कमरे में सैफुल्लाह छिपा हुआ था, उसमें से बड़ी सं या में विस्फोटक मिले हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि इस आतंकवादी के कमरे से आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के झंडे के साथ साथ, भारतीय रेलवे का नक्शा भी बरामद किया गया है. इसके अलावा पुलिस ने कानपुर के ही रहने वाले दो और संदिग्ध लोगों गिर तार किया है. इसके अलावा इटावा से भी एक संदिग्ध आतंकवादी को गिर तार किया है. कानपुर से गिर तार किए गए दो संदिग्ध आतंकवादियों के पास से एक भी कई आपत्तिजनक सामग्री मिले हैं.
 गौर करने वाली बात ये है, कि उनके साहित्य आईएसआईएस से संबंधित हैं और युवाओं का ब्रेनवाश करके उन्हें भडक़ाने वाला भी था. इसके अलावा एटीसी के अब तक की जांच में जो बातें सामने आई हैं वे बेहद चौकाने वाली हैं. यूपी के रहने वाले 14 संदिग्धों पर इस वक्त एटीसी ने पैनी नजर टिका रखी है जिनके तार आईएस आतंकी सैफुल्लाह और आईएस जुड़े मिले हैं. वहीं दूसरी ओर एटीएस की ओर से यूपी के ही अन्य 16 लडक़ों को डी रेडिकलाइज किया जा रहा है. इनमें से चार लडक़ों को संदिग्ध पाए जाने पर गिर तार भी किया जा चुका है, जोकि इस वक्त जेल में हैं. जबकि 12 अपने घरों में है, जिनसे एटीएस लगातार संपर्क बनाए हुए है. दरअसल उत्तर प्रदेश में आतंकी संगठन आईएसआईएस की विचारधारा से प्रभावित होने वाले दर्जनों नौजवानों पर यूपी एटीएस की कड़ी नजर टिकी हुई है. असीम अरूण ने बताया कि उत्तर प्रदेश के कई नौजवानों को सोशल मीडिया के जरिए जेहाद की तरफ  ले जाने की कोशिश को जांच ऐजेंसियों ने पूरी तरह से बेनकाब कर दिया है. यही वजह है कि साल 2016 में एक बड़े माड्यूल का खुलासा भी किया गया था. तभी से उत्तर प्रदेश में रहने वाले तकरीबन 16 लडक़ों पर एटीएस की कड़ी नजर है. वहीं आईएस आतंकी सैफुल्लाह के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद इस मामले की जांच एनआईए (नेशनल इनविस्टीगेशन ब्यूरो) के अलावा यूपी एटीएस भी कर रही है. अन्य 14 लडक़ों पर भी एटीएस नजर टिकाए हुए है जोकि मारे गए सैफुल्लाह से लगातार संपर्क में थे. इनमें से कई लडक़े उसके रिश्तेदार भी है. 

सूत्रों के अनुसार  इसके अलावा अन्य संदिग्ध पाए गए सभी 16 लडक़ों को डी रेडिकलाइज किया जा रहा है. उनसे बातचीत की जा रही है. जो चार लडक़े जेल में बंद हैं, उनसे भी एटीएस लगातार संपर्क में है. आईजी एटीएस के मुताबिक सभी लडक़ों को अच्छे मौलानाओं से मिलवाकर धर्म का सही तरीका बताया जा रहा ह. इसके अलावा उन्हें स्किल डेवलपमेंट से जुड़े कोर्स भी करवाए जा रहे हैं. जो जेल में बंद हैं. उन्होंने बताया कि उनके बाहर आने पर उनकी नौकरी के बारे में भी सोचा जाएगा, जो लडक़े बाहर हैं, उन्हें अलग अलग ट्रेनिंग दिलाई जा रही है. आईजी असीम अरूण के मुताबिक सोशल मीडिया के जरिए लडक़ों को टारगेट किया जा रहा है. आईएस की जाल में फंसने वाले ज्यादातर बेरोजगार युवक हैं या फिर ऐसे हैं जिनका छोटा मोटा अपराधिक इतिहास है. उन्होंने बताया कि एक बार कोई लडक़ा इनके जाल में फंस जाए तो उसे जेहाद और पैसे का लालच दिया जाता है. इसके बाद उन युवकों से टेलीग्राम मैसेंजर पर बातचीत शुरु होती है. गौरतलब है कि बीते कुछ वर्षों में यूपी तेजी से आतंकियों का ट्रांजिट पाइंट बन रहा है. खासतौर से आईएस माड्यूल्स का. यही वजह है कि साल 2016 में भी लखनऊ के इंदिरानगर से यूपी एटीएस व एनआईए ने संयुक्त अभियान में मोह मद अलीम को गिर तार किया था. एनआईए का दावा था कि अलीम आईएस से जुड़ा हुआ था. वहीं अलीम की निशानदेही पर कुशीनगर से मोह मद रिजवान को पकड़ा गया. इन दोनों ने ही लखनऊ में मुंशी पुलिया स्थित एक स्थान पर आईएस के लिए तमाम मीटिंग आयोजित की थी. इंटरनेट में वायरल होते जा रहे आईएस के साहित्य दबिक्य ने सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों की नींद उड़ा दी है. सोशल मीडिया के जरिए इस साहित्य से भटके हुए युवाओं को आईएस व अन्य आतंकी संगठन खुद से जोडऩेे का काम कर रहे हैं. इंटरनेट पर बार बार इसे सर्च करने वाले भटके युवा आतंकी संगठनों के निशाने पर आ जाते हैं. इसके बाद उन्हें धर्म व जेहाद के नाम पर साथ ही पैसों का लालच देकर आतंक की आग में झोंक दिया जाता है.

आखिर क्या है खुरासान? 
 इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने 2020 तक भारत समेत दुनिया के कई देशों पर कब्जे का प्लान तैयार कर रखा है. इसके तहत आईएस यूरोप, चीन, भारत और नार्थ अफ्रीका तक अपना राज फैलाना चाहता है. अपने मंसूबे को अंजाम तक पहुंचाने के लिए आईएस ने एक नक्शा बनाया है. नक्शे में स्पेन, पुर्तगाल और फ्रांंस के हिस्से को अरबी में अंदालुस्य नाम दिया गया है. जबकि भारत समेत एशिया के बड़े हिस्से को खुरासान नाम दिया गया है. इसी संगठन से जोडऩे के लिए भारतीय मुसलमानों के बीच काम भी हो रहा है. गौरतलब है कि ईरान के पूरब आमू नदी के दक्षिण और हिंदूकुश के उत्तर स्थित विस्तृत भू भाग का नाम खुरासान था, लेकिन अब इस नाम का प्रयोग अत्यंत सीमित अर्थ में होता है. यह ईरान के उस उत्तर पूर्वी प्रांत का नाम है जो उत्तर में रूसी कैस्पियन प्रदेश में लगा है. आईएस अपने आतंकवादियों से कहता है कि जो लोग इस्लाम कबूल नहीं करेंगे उन्हें मौत की सजा दी जानी चाहिए. इसके अलावा आईएस यह भी कहता है कि सिवाए मुसलमानों के दुनिया पर किसी और धर्म के लोग शासन नहीं कर सकते हैं. गैर मुस्लिमों की हकूमत नाजायज हुकूमत है. और आईएस अपनी योजनाओं में खिलाफत का भी जिक्र करता है. यानी दुनिया भर में मुसलमानों की एक ही हुकूमत होनी चाहिए. आईएस कैसे कट्टरपंथी सोच का फायदा उठाकर युवाओं को भडक़ा रहा है. यह समझाने के लिए हम आपको पाकिस्तान के इस्लामिक स्कालर जावेद अहमद गमीदी का एक बयान सुनाना चाहते हैं. गमीदी पाकिस्तान के उन गिने चुने लोगों में शामिल हैं, जो यह मानते हैं कि इस्लाम की गलत व्या या करके लोगों को भडक़ाया जा रहा है. उनका एक एक शब्द आपको ध्यान से सुनना चाहिए. यह आईएस का वो सच है, जो पूरी दुनिया के लिए खतरा बना हुआ है. लेकिन अफसोस इस बात का है कि भारत समेत कई देशों में मौजूद कट्टरपंथी लोग भी ऐसी ही शिक्षाएं देते हंै और इसका नतीजा यह होता है कि आईएस जैसे आतंकवादी संगठनों को आसानी से ऐसे लोग मिल जाते हैं, जो उसके नाम पर दहशत फैलाते हैं और लोगों की हत्या करते हैं. आईएस को इराक और सीरिया में काफी नुकसान हुआ है, और उसकी ताकत कम हो रही है. लेकिन भारत सहित दुनिया के अलग अलग हिस्सों में विचारधारा के तौर आईएस का पोषण आज भी हो रहा है, और लखनऊ में आईएस से प्रभावित आतंकवादी का पकड़ा जाना इसी बात का सबूत है.

आईएसआईएस के इरादों से वाकिफ है यूपी एटीएस 

आईएस सहित अन्य आतंकी संगठनों के हर नापाक साजिशों से यूपी एटीएस पूरी तरह वाकिफ  है. अन्य सुरक्षा एजेंंसियों से समन्वय बना कर एटीएस लगातार यूपी में पनप रहे आतंक के खिलाफ  कार्रवाई कर रही है. लखनऊ एनकाउंटर में मारे गए आईएस संदिग्ध सैफुल्लाह से जुड़े 14 लडक़ों पर हमारी बराबर नजर टिकी हुई है. इसके अलावा आईएस की ओर भटक रहे अन्य 16 लडक़ो का डी रेडिकलाइजेशन किया जा रहा है. इन लडक़ों व उनके परिवार से एटीएस लगातार बातचीत कर रही है. उमीद है यह लडक़े डी रेडिकलाइजेशन के बाद अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे.
असीम अरूण, आईजी यूपी एटीएस

आईएसआईएस की खतरनाक पाठशाला!
 अनाथालय के बच्चों के लिए आईएसआईएस की अंग्रेजी किताब में बी से बैटल और जी से गन का पाठ पढ़ाया जा रहा था. फाक्स न्यूज की एक रिपोर्ट के अनुसार इराकी सैनिकों ने पिछले माह उत्तरी मोसुल पर फिर से कब्जा करने के बाद एक अनाथालय से इंग्लिश फार द इस्लामिक स्टेट नाम की किताबें मिलीं जिसमें ए, बी, सी इस तरह पढ़ाया जा रहा था. किताब में बी से बैटल (जंग) और जी से गन (बंदूक) दिया गया है. बंदूक की जगह एक एके 47 राइफल की तस्वीर दी गई है. किताब में एस से स्नाइपर या निशानेबाज सिखाया गया है और इसको समझने के लिए एक आईएसआईएस लड़ाका की तस्वीर दी गई है. लड़ाका अपनी राइफल ताने है. गणित की किताबों में भी उदाहरणों के लिए एके.47 राइफलों और बमों का उपयोग किया गया है. फाक्स न्यूज के अनुसार इराकी सैनिक अधिकारियों ने बताया कि जिस अनाथालय से यह किताबें बरामद की गई हैं वहां बच्चों को आईएसआईएस के बाल सैनिक या मुखिबर बनाया जाता है.

बंद नहीं हुई आतंक की फैक्ट्री : 
आतंकी सैफुल्लाह का मारा जाना और आज तीन आतंकियों के पकड़े जाने के बाद यह स्पष्ट है कि आईएसआईएस की फैक्ट्री बंद नहीं हुई है. बल्कि इस आतंकवादी संगठन ने दुनिया के दूसरे देशों में अपनी फ्रेंचाइजी खोलना शुरू कर दिया है. और आईएसआईएस की विचारधारा से प्रभावित आतंकवादी अब किसी के निर्देश पर आन साइट अपने प्रोजेक्ट पूरे करने की बजाय. अपनी इच्छा से फ्रीलांस कर रहे हैं. लखनऊ में एनकाउंटर में मारा गया आईएसआईएस का आतंकवादी सैफुल्लाह भी एक ऐसा ही आईएसआईएस आतंकवादी था. सवाल यह है कि आईएसआईएस की विचारधारा में आखिर ऐसा क्या है कि इराक और सीरिया में मिल रही हार के बावजूद यह संगठन दुनियाभर के युवाओं का ब्रेन वाश कर रहा है. इसका जवाब है आतंक फैलाने का एक नया तरीका. आईएसआईएस पूरी दुनिया के जिहादियों को लोन ऊल्फ अटैक के लिए उकसा रहा है. लोन ऊल्फ अटैक एक ऐसा आतंकवादी हमला होता है, जिसे कोई व्यक्ति अकेले ही अंजाम देता है. इसके लिए सीधे तौर पर किसी कमांड स्ट्रक्चर की जरूरत नहीं होती है. आईएसआईएस की विचारधारा से प्रभावित कोई आतंकवादी जब लोन ऊल्फ अटैक करता है तो बाद में आईएसआईएस उस हमले की जि मेदारी ले लेता है. आईएआईएस एक तरह से इन हमलों और हमलावरों को सर्टिफाइ करने का काम करता है. इससे आईएसआईएस को दो फायदे होते हैं. पहला आईएसआईएस का खर्चा बचता है और दूसरा आईएसआईएस का खौफ  बढ़ता है. यानी कम खर्च में ज़्यादा खौफ. इसलिए जब भी दुनिया में कहीं भी आईएसआईएस का नाम लेकर कोई आतंकवादी हमला होता है तो आईएसआईएस कभी भी उसका खंडन नहीं करता, बल्कि आगे बढक़र हमले की जि ेादारी ले लेता है. जी न्यूज को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आईएसआईएस ने अपने भारतीय माड्यूल्स से कहा है कि उन्हें अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए सीरिया या इराक आने की जरूरत नहीं है. यानी आतंकवादी जिस भी देश में मौजूद हैं वो हमलों को वहीं से अंजाम दे सकते हैं. लेकिन ब्रेन वाश किए गए लोगों के मन में आतंकवादी भावनाएं भडक़ाने के लिए आईएसआईएस आनलाइन ट्रेनिंग और अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराता है. आपने देखा होगा कि बहुत सारे डिस्टेंस लर्निंग से कोर्स या पत्राचार से कोर्स करते हैं और उन्हें अध्ययन सामग्री भेज दिया जाता है. ठीक इसी तरह आईएसआईएस भी आतंकवाद का डिसटेंस लर्निंग कोर्स करवा रहा है. पहले सेमेस्टर में वह विचारधारा में जहर भरता है और दूसरे सेमेस्टर में बम बनाने और हत्या करने के तरीके सिखाए जाते हैं. फिर कोर्स खत्म होते होते एक युवा आतंकवादी बन जाता है.

ऑनलाइन कक्षा 
इंटरनेट की मदद से आईएसआईएस ऐसी तकनीकी जानकारी शेयर करता है, जिसमें घर के सामान से ही बम बनाने के तरीके मौजूद होते हैं.. युवाओं को आईएस में शामिल करने के लिए ग्रुप बनाए जाते हैं. इन्हीं युवाओं को कट्टर बनाया जाता है और दहशतगर्दी करने के लिए उकसाया जाता है. पिछले कुछ महीनों में आईएस ने भारत से जिन लोगों की भर्ती किया है, उनमें से ज्यादातर इनटरनेट के माध्यम से ही आईएस के संपर्क में आए हैं. आईएस भले ही इराक और सीरिया का युद्ध हार रहा हो, लेकिन उसकी योजना अब भी भारतीय उपमहाद्वीप पर कब्जा करने की है. आईएस की इस योजना को खुरासान कहा जाता है. लखनऊ में जो आतंकवादी मारा गया , वह भी  इसी खुरासान योजना का हिस्सा था. खुरासान का मतलब होता है वह जमीन जहां सूर्य उगता है. खुरासान या ग्रेटर खुरासान मध्य एशिया से लेकर अफगानिस्तान और भारत तक फैले एक इलाके को कहा जाता है. आईएस की योजना वर्ष 2020 तक इस पूरे इलाके पर कब्जा करने की है. वर्ष 2015  में आईएस ने एक घोषणा पत्र भी जारी किया था. जिसमें 2020 तक भारत पर कब्जे का  जिक्र करने के साथ देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम का भी उल्लेख था. यह दूसरी बात है कि इसमें नरेन्द्र मोदी के लिए प्रधानमंत्री की जगह प्रेसिडेट आफ इंडिया कहा गया है.

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राम तिरपाल में रहे और आप राजभवन या राष्ट्रपति भवन में , यह कैसे संभव है ?

राम तिरपाल में रहे और आप राजभवन या राष्ट्रपति भवन में , यह कैसे संभव है ?

राम तिरपाल में रहे और आप राजभवन या राष्ट्रपति भवन में , यह कैसे संभव है ?  Image result for ram janmabhoomi ayodhya
संजय तिवारी 
राम के नाम पर इज्जत।  राम के नाम पर शोहरत।  राम के नाम पर प्रसिद्धि।  राम के नाम पर बहस।  राम के नाम पर राजनीति।  राम के नाम पर सत्ता का सुख। राम के नाम पर चक्रवर्ती  बन जाने की चाहत।  लेकिन राम खुद तिरपाल में रहें.. ना तो राम की सुधि और न ही अयोध्या की।  राम धुप में तप रहे हो तो तपे।  राम बारिश में भीग रहे हों तो भीगते रहें। राम जाड़े में ठिठुरते हैं तो ठिठुरते रहें .. अयोध्या मरघट बने कब्रगाह।  उनको इससे क्या फर्क पड़ता है। यह सोचने की बात है कि भारत की करोडो करोड़ जनता की आस्था जिस राम में है उस राम को छलने वालो को सजा तो मिलनी ही थी। इन्होने केवल राम को ही नहीं छला है। इन सभी ने समगरा सनातन परम्परा को छला है। ये न तो हिन्दू हैं और ना ही भारतीय।  
ये लोग केवल राजनीतिक लोग हैं।  इन्हे केवल केवल सत्ता के सुख से मतलब है।  इन्हे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की ये किसको अपनी राजनीति का माध्यम बना रहे हैं।  वह कोई व्यक्ति हो सकता है।  कोई समाज हो सकता है।  कोई स्त्री हो सकती है।  कोई पुरुष हो सकता है।  कोई आस्था हो सकती।  कोई मज़हब हो सकता है।  कोई नदी हो सकती है।  कोई पशु हो सकता है।  कोई आस्था का प्रतीक हो सकता है।  कोई महामानव हो सकता है।  कोई देवी हो सकती है कोई देवता हो सकता है। ये किसी को भी जरिया बना सकते हैं।  इन्हे इसमें न तो किसी प्रकार का संकोच होता है न ही शर्म।  इनको बस अपनी राजननीति महत्वाकांक्षा से मतलब होता है। 
आज जब राम मंदील आंदोलन के आंदोलनकारी कहे जाने वाले लोगो के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है , तब यह लिखना बहुत ही उचित लगता है की अभी भी उन लोगो के लिए समाया है जो राम को छाला कर राजनीति कर रहे हैं।  यह तो राम का वार है।  इसमें कोई शब्द नहीं होता।  बस यह लग जाता है और शिकार धरती में समा जाता है। आज जिन लोगो के खिलाफ फैसला आया , उन सभी को देश , जनता और पूरा हिन्दू समाज बड़ी श्रद्धा से देखता था। बड़ी शोहरत और इज्जत थी इनके प्रति।  सनातन परम्परा के अलम्बरदार कहे जाते थे ये लोग।  लेकिन तब जनता की भावनाये आहात होने लगी जब उसने देखा की इनको राम की कोई फिकरा ही नहीं है।  ये तो राम के नाम की राजनीति कर के केवल अपनी सत्ता के बारे में विचारशील हैं।  कोई ज़रा इनसे पूछी की अयोध्या में राम मंदिर बनाने की कसम खाने के बाद इनमे से कितने ऐसे हैब जिन्होंने दुबारा अयोध्या की यात्रा की।  एक या दो लोग ऐसे जरूर निकल सकते हैं , लेकिन बाकी तो राष्ट्रीय राजधानी की ही शोभा बढ़ाते रहे। 
इनमे से कुछ तो ऐसे भी हैं जो वर्त्तमान सत्ता संस्थान का सुख भोग रहे हैं।  कुछ ऐसे हैं जो भारत के प्रथम पुरुष के रूप में खुद को देखना चाहते थे। वे सच में राम को छल रहे थे।  जब उनकी सरकार नहीं बन पाती थी तो जनता से वे इसलिए वोट माँगते थे की पूर्ण बहुमत में आने पर वे क़ानून बना कर अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर बनाएंगे। जनता ने जब से उन्हें पूर्ण बहुमत दिया , इनमे से कोई भी अयोध्या नहीं गया।  ये मूर्ख इस बात को क्यों नहीं समझ सके की इस देश में आदमी यदि किसी भी मंदिर या तीर्थ में कोई मन्नत मांगता है तो काम पूरा होते ही वह वह जाकर सबसे पहले उस जगह , देवता का क़र्ज़ चुकाने के बाद ही कोई काम करता है। लेकिन ये तो अपने कद और अपने मद में इतने चूर हैं की इनको राम की क्या चिंता।  इस बार राम जन्म के दिन भी अयोध्या में जाने की इनको जरूरत नहीं महसूस हुई।  आज अयोध्या की हालत यह है की वह का मुसलमान खुद इस टाक में है की वह किसी तरह राम का मंदिर बनवा दे ताकि राम की कृपा अयोध्या पर हो और वह का विकास हो सके।  वह के मुसलमान जानते हैं की राम के नाम पर राजनीति करने वाले कभी भी इस मुद्दे को शांत नहीं होने देंगे और इस कारण वह कभी भी विकास नहीं हो सकता।  आज यदि कोई सार्थक बात चीत हो तो अयोध्या में तत्काल राम मंदिर बन सकता है। अयोध्या तो इस बात का दो वर्ष से इंतज़ार कर रही है की कोई आये और इस मुद्दे पर मिल बैठ कर बात करे।  अयोध्या का मुसलमान भी चाहता है की उसके शहर का समुन्नत विकास हो।  आज हालत यह है की अयोध्या की सडको पर चलना दूभर है।  वह की गलियों में गंगाजी का साम्राज्य है।  सार्वजनिक स्थलों पर न तो पीने का पानी मिलेगा और न ही शौचालय।  यहाँ आज भी समय समय पर लाखो श्रद्धालु आते हैं लेकिन व्यवस्था के नाम पर कुछ भी नहीं है। मैंने खुद अयोध्या में कई बार वह की आबादी , खासकर उन मुसलमानो से भी बात की है जो वह के मूल निवासी के रूप में रह रहे हैं।  वे साफ़ साफ़ कहते हैं की इस राजनीति ने हम लोगो को जानवर बना दिया है।  अब मन में आता है की हम लोग ही आगे चलें और खुद ही कारसेवक पुरम से पत्थर उठा कर राम का मंदिर बना दे लेकिन खुराफातियों के कारण हम नहीं कर पाते।  वे कहते हैं की केवल राजनीतिक मुद्दा बना कर इस मामले को लटकाया गया है वार्ना वास्तव में यदि सर्कार चाहती तो मिल बैठ कर यह प्रकरण बहुत पहले ही सुलझ गया होता। 
आज के फैसले से उन लोगो को भी सबक लेना चाहिए जो निहुरे निहुरे ऊँट चुराना चाहते हैं।  राम को देगा देने वालो का तो यह हश्र होना ही था।  राम तिरपाल में रहे और आप राजभवन या राष्ट्रपति भवन में , यह कैसे संभव है ?