राम तिरपाल में रहे और आप राजभवन या राष्ट्रपति भवन में , यह कैसे संभव है ?

राम तिरपाल में रहे और आप राजभवन या राष्ट्रपति भवन में , यह कैसे संभव है ?  Image result for ram janmabhoomi ayodhya
संजय तिवारी 
राम के नाम पर इज्जत।  राम के नाम पर शोहरत।  राम के नाम पर प्रसिद्धि।  राम के नाम पर बहस।  राम के नाम पर राजनीति।  राम के नाम पर सत्ता का सुख। राम के नाम पर चक्रवर्ती  बन जाने की चाहत।  लेकिन राम खुद तिरपाल में रहें.. ना तो राम की सुधि और न ही अयोध्या की।  राम धुप में तप रहे हो तो तपे।  राम बारिश में भीग रहे हों तो भीगते रहें। राम जाड़े में ठिठुरते हैं तो ठिठुरते रहें .. अयोध्या मरघट बने कब्रगाह।  उनको इससे क्या फर्क पड़ता है। यह सोचने की बात है कि भारत की करोडो करोड़ जनता की आस्था जिस राम में है उस राम को छलने वालो को सजा तो मिलनी ही थी। इन्होने केवल राम को ही नहीं छला है। इन सभी ने समगरा सनातन परम्परा को छला है। ये न तो हिन्दू हैं और ना ही भारतीय।  
ये लोग केवल राजनीतिक लोग हैं।  इन्हे केवल केवल सत्ता के सुख से मतलब है।  इन्हे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की ये किसको अपनी राजनीति का माध्यम बना रहे हैं।  वह कोई व्यक्ति हो सकता है।  कोई समाज हो सकता है।  कोई स्त्री हो सकती है।  कोई पुरुष हो सकता है।  कोई आस्था हो सकती।  कोई मज़हब हो सकता है।  कोई नदी हो सकती है।  कोई पशु हो सकता है।  कोई आस्था का प्रतीक हो सकता है।  कोई महामानव हो सकता है।  कोई देवी हो सकती है कोई देवता हो सकता है। ये किसी को भी जरिया बना सकते हैं।  इन्हे इसमें न तो किसी प्रकार का संकोच होता है न ही शर्म।  इनको बस अपनी राजननीति महत्वाकांक्षा से मतलब होता है। 
आज जब राम मंदील आंदोलन के आंदोलनकारी कहे जाने वाले लोगो के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है , तब यह लिखना बहुत ही उचित लगता है की अभी भी उन लोगो के लिए समाया है जो राम को छाला कर राजनीति कर रहे हैं।  यह तो राम का वार है।  इसमें कोई शब्द नहीं होता।  बस यह लग जाता है और शिकार धरती में समा जाता है। आज जिन लोगो के खिलाफ फैसला आया , उन सभी को देश , जनता और पूरा हिन्दू समाज बड़ी श्रद्धा से देखता था। बड़ी शोहरत और इज्जत थी इनके प्रति।  सनातन परम्परा के अलम्बरदार कहे जाते थे ये लोग।  लेकिन तब जनता की भावनाये आहात होने लगी जब उसने देखा की इनको राम की कोई फिकरा ही नहीं है।  ये तो राम के नाम की राजनीति कर के केवल अपनी सत्ता के बारे में विचारशील हैं।  कोई ज़रा इनसे पूछी की अयोध्या में राम मंदिर बनाने की कसम खाने के बाद इनमे से कितने ऐसे हैब जिन्होंने दुबारा अयोध्या की यात्रा की।  एक या दो लोग ऐसे जरूर निकल सकते हैं , लेकिन बाकी तो राष्ट्रीय राजधानी की ही शोभा बढ़ाते रहे। 
इनमे से कुछ तो ऐसे भी हैं जो वर्त्तमान सत्ता संस्थान का सुख भोग रहे हैं।  कुछ ऐसे हैं जो भारत के प्रथम पुरुष के रूप में खुद को देखना चाहते थे। वे सच में राम को छल रहे थे।  जब उनकी सरकार नहीं बन पाती थी तो जनता से वे इसलिए वोट माँगते थे की पूर्ण बहुमत में आने पर वे क़ानून बना कर अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर बनाएंगे। जनता ने जब से उन्हें पूर्ण बहुमत दिया , इनमे से कोई भी अयोध्या नहीं गया।  ये मूर्ख इस बात को क्यों नहीं समझ सके की इस देश में आदमी यदि किसी भी मंदिर या तीर्थ में कोई मन्नत मांगता है तो काम पूरा होते ही वह वह जाकर सबसे पहले उस जगह , देवता का क़र्ज़ चुकाने के बाद ही कोई काम करता है। लेकिन ये तो अपने कद और अपने मद में इतने चूर हैं की इनको राम की क्या चिंता।  इस बार राम जन्म के दिन भी अयोध्या में जाने की इनको जरूरत नहीं महसूस हुई।  आज अयोध्या की हालत यह है की वह का मुसलमान खुद इस टाक में है की वह किसी तरह राम का मंदिर बनवा दे ताकि राम की कृपा अयोध्या पर हो और वह का विकास हो सके।  वह के मुसलमान जानते हैं की राम के नाम पर राजनीति करने वाले कभी भी इस मुद्दे को शांत नहीं होने देंगे और इस कारण वह कभी भी विकास नहीं हो सकता।  आज यदि कोई सार्थक बात चीत हो तो अयोध्या में तत्काल राम मंदिर बन सकता है। अयोध्या तो इस बात का दो वर्ष से इंतज़ार कर रही है की कोई आये और इस मुद्दे पर मिल बैठ कर बात करे।  अयोध्या का मुसलमान भी चाहता है की उसके शहर का समुन्नत विकास हो।  आज हालत यह है की अयोध्या की सडको पर चलना दूभर है।  वह की गलियों में गंगाजी का साम्राज्य है।  सार्वजनिक स्थलों पर न तो पीने का पानी मिलेगा और न ही शौचालय।  यहाँ आज भी समय समय पर लाखो श्रद्धालु आते हैं लेकिन व्यवस्था के नाम पर कुछ भी नहीं है। मैंने खुद अयोध्या में कई बार वह की आबादी , खासकर उन मुसलमानो से भी बात की है जो वह के मूल निवासी के रूप में रह रहे हैं।  वे साफ़ साफ़ कहते हैं की इस राजनीति ने हम लोगो को जानवर बना दिया है।  अब मन में आता है की हम लोग ही आगे चलें और खुद ही कारसेवक पुरम से पत्थर उठा कर राम का मंदिर बना दे लेकिन खुराफातियों के कारण हम नहीं कर पाते।  वे कहते हैं की केवल राजनीतिक मुद्दा बना कर इस मामले को लटकाया गया है वार्ना वास्तव में यदि सर्कार चाहती तो मिल बैठ कर यह प्रकरण बहुत पहले ही सुलझ गया होता। 
आज के फैसले से उन लोगो को भी सबक लेना चाहिए जो निहुरे निहुरे ऊँट चुराना चाहते हैं।  राम को देगा देने वालो का तो यह हश्र होना ही था।  राम तिरपाल में रहे और आप राजभवन या राष्ट्रपति भवन में , यह कैसे संभव है ?  

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