महाशिवरात्रि : ॐ नमः शिवाय

महाशिवरात्रि : ॐ नमः शिवाय

महाशिवरात्रि : ॐ नमः शिवाय 
Image result for काशी विश्वनाथ
आचार्य संजय
सम्पूर्ण जगत शिवमय है, संसार में ऐसा कुछ भी नहीं, जो शिव के बिना हो। यदि रात शिव है तो दिन भी शिव है, सुख शिव हैं तो दुःख भी शिव हैं, जन्म शिव हैं, तो मृत्यु भी शिव है । शिव, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कण-कण को धारण करने वाली एक सत्ता है। इस जगत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जो अभी तक ज्ञात है और जो अज्ञात है, सब जगह शिव ही शिव व्याप्त हैं। शिव कोई आकार नहीं बल्कि  सभी आकार उसी के ही हैं। शिव परमसत्ता, परमात्मा, परमब्रह्म, अनादि, अनन्त और शून्य हैं । इस जगत का बीज शिव हैं। शिव चैतन्य स्वरुप हैं । जब वो चाहते हैं स्पंदित हो जाते हैं, जब चाहते हैं निःस्पन्दित हो जाते हैं । शिव  में जो ई की मात्रा है, वो शक्ति का ही प्रतीक है, बिना शक्ति के शिव शव कहलाते हैं। जैसे जब शरीर से शक्ति निकल जाती है, तब शरीर शव कहलाता है। शिव का जब भी वर्णन किया जाता है शक्ति का प्रयोग जरूर होता है, क्योंकि शक्ति जीवन रूपा है और शिव जीवन का आधार हैं, दोनों को एक दूसरे से पृथक करना संभव नहीं है। इसलिए शिव के उपासक शक्ति की उपासना अवश्य करते हैं। प्रकाश तो शिव हैं ही लेकिन प्रकाश के अतिरिक्त सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में छाया अन्धेरा भी शिव ही है। उस अन्धकार में भी शिव और शक्ति प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहती है । अतः ब्रह्माण्ड में ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ शिव विद्यमान ना हो । सभी जीव शिव से ही उत्पन्न होते हैं और शिव में ही समा जाते हैं। इसलिए शिवलिंग उत्पत्ति का द्योतक है और शिव की शक्ति जीवन का द्योतक है तथा प्रलय भी शिव ही है। शिव के पास सांप, बैल, भभूत, चद्रमा, गंगा, त्रिशूल, बाघ की खाल तीसरी आँख आदि सभी चिह्न कुछ इशारा करते हैं। जैसे सांप यानि सभी रेंगने वाले जानवर, बैल यानि चलने वाले जानवर, शमशान की भभूत यानि मृत्यु, गंगा यानि नदी आदि, चन्द्रमा अर्थात समस्त सौरमंडल, त्रिशूल अर्थात सभी वस्तुएं, बाघ की खाल अर्थात मृत्यु के बाद की गति, तीसरी आँख यानी प्रलय आदि ये सभी चिह्न ये ही दर्शाते हैं कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में शिव तत्त्व ही समाया हुआ है। शिव व शक्ति उपासक शिवरात्रि का बेशब्री से इंतज़ार करते हैं, क्योंकि ये रात अपने भीतर शिव तत्त्व को अनुभव करने की महत्वपूर्ण रात होती है । इस रात को शिव साधना से भी उस तत्त्व अनुभव किया जा सकता है । यदि इस रात को एकाग्र चित्त के साथ ध्यान की अवस्था में शिव मंत्र का उच्चारण  किया जाए तो  शीघ्रता ही समाधि लाभ प्राप्त हो जाता है। शिव का अनुभव होना ही समाधि है। इस दिन में साधक फलाहार करते हैं, जिससे शरीर मलरहित होकर हल्का बना रहे, जिससे रात को साधना के समय नींद ना आये। असलियत में स्व को जानने की रात ही शिवरात्रि है, क्योंकि हम शरीर ,मन, बुद्धि, अहंकार या नाम-रूप नहीं है । हम तो शिवरूप आत्मा है, इसलिए आदि गुरु शंकराचार्य ने शिवोहम शिवोहम कहा है । इस रात को कुण्डिलिनी शक्ति के जागरण और उसके शिव के साथ लीन होने के लिए बाह्य वातावरण में व्याप्त ऊर्जा साधक का साथ देने लगता है।

Image result for bhagwan shiv
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने
शंकर जी को जप करते देख पार्वती को आश्चर्य हुआ कि देवों के देव , महादेव भला किसका जप कर रहे हैं। पूछने पर महादेव ने कहा , ' विष्णुसहस्त्रनाम का। ' पार्वती ने कहा , इन हजार नामों को साधारण मनुष्य भला कैसे जपेंगे ? कोई एक नाम बनाइए , जो इन सहस्त्र नामों के बराबर हो और जपा जा सके। महादेव ने कहा- राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे , सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने। यानी राम-नाम सहस्त्र नामों के बराबर है। भगवान शिव , विष्णु , ब्रह्मा , शक्ति , राम और कृष्ण सब एक ही हैं। केवल नाम रूप का भेद है , तत्व में कोई अंतर नहीं। किसी भी नाम से उस परमात्मा की आराधना की जाए , वह उसी सच्चिदानन्द की उपासना है। इस तत्व को न जानने के कारण भक्तों में आपसी मतभेद हो जाता है। परमात्मा के किसी एक नाम रूप को अपना इष्ट मानकर , एकाग्रचित्त होकर उनकी भक्ति करते हुए अन्य देवों का उचित सम्मान व उनमें पूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिए। किसी भी अन्य देव की उपेक्षा करना या उनके प्रति उदासीन रहना स्वयं अपने इष्टदेव से उदासीन रहने के समान है। शिव पुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा , विष्णु व शिव एक-दूसरे से उत्पन्न हुए हैं , एक-दूसरे को धारण करते हैं , एक-दूसरे के अनुकूल रहते हैं। भक्त सोच में पड़ जाते हैं। कहीं किसी को ऊंचा बताया जाता है , तो कहीं किसी को। विष्णु शिव से कहते हैं , ' मेरे दर्शन का जो फल है वही आपके दर्शन का है। आप मेरे हृदय में रहते हैं और मैं आपके हृदय में रहता हूं। ' कृष्ण , शिव से कहते हैं , ' मुझे आपसे बढ़कर कोई प्यारा नहीं है , आप मुझे अपनी आत्मा से भी अधिक प्रिय हैं। ' संसार में निरंतर तीन प्रकार के कार्य चलते रहते हैं- उत्पत्ति , पालन और संहार। इन्हीं तीन भिन्न कार्यों के लिए तीन नाम दे दिए गए हैं- ब्रह्मा , विष्णु व महेश। विष्णु सतमूर्ति हैं , ब्रह्मा रजोगुणीमूर्ति व शिव तामसमूर्ति हैं। एक-दूसरे से स्नेह के कारण एक-दूसरे का ध्यान करने से शिव गोरे हो गए और विष्णु का रंग काला हो गया। शिव तामसी गुणों के अधिष्ठाता हैं। तामसी गुण यानी निंदा , क्रोध , मृत्यु , अंधकार आदि। तापसी भोजन यानी कड़वा , विषैला आदि। जिस अपवित्रता से , जिस दोष के कारण किसी वस्तु से घृणा की जाती है , शिव उसकी ओर बिना ध्यान दिए उसे धारण कर उसे भी शुभ बना देते हैं। समुद्र मंथन के समय निकले विष को धारण कर वे नीलकंठ कहलाए। मंथन से निकले अन्य रत्नों की ओर उन्होंने देखा तक नहीं। जिससे जीव की मृत्यु होती है , वे उसे भी जय कर लेते हैं। तभी तो उनका नाम मृत्य़ु़ंजय है। क्रोध उनमें है , पर वे केवल जगत कल्याण के लिए उसका प्रयोग करते हैं , जैसे कामदेव का संहार। उन्हें घोर तपस्या या सुदीर्घ भक्ति नहीं चाहिए। थोड़ी सी भक्ति से ही वे प्रसन्न हो जाते हैं। वे शव की राख अपने ऊपर लगाते हैं और श्मशान में निवास करते हैं। वे जीव को जीवन की अनित्यता की शिक्षा देते हैं। उनके जीवन में वैराग्य है , त्याग है। इसी कारण उनकी पूजा में ऐश्वर्य की वस्तुओं का प्रयोग नहीं होता। हर उस चीज से उनकी पूजा होती है , जिन्हें आमतौर पर कोई पसंद नहीं करता। शिव के उपासक को शिव की ही तरह वैरागी होना चाहिए। वे अपनी ही बरात में बैल पर चढ़कर , बाघंबर ओढ़ कर चल दिए , क्योंकि उन्हें किसी तरह के भौतिक ऐश्वर्य से मोह नहीं है। वे आशुतोष हैं , जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं , भोलेनाथ हैं। पर इसका यह मतलब नहीं कि वे बुद्धि का प्रयोग नहीं करते। बुद्धि की उत्पत्ति का स्थान भगवान शिव ही हैं। शिव दरिद्र की तरह रहते हैं , क्योंकि वे सूचित करते हैं कि वैराग्य सुख से बढ़कर कोई सुख नहीं। सत्व , रज और तम , तीनों गुणों की महत्ता आवश्यक है। उत्पत्ति के बाद जीव अपने और दूसरों के पालन-पोषण के लिए काम करता हुआ इतना थक जाता है कि सब कुछ छोड़कर निंदा यानी तम में लीन होना चाहता है। व्याकुल व्यक्ति को विश्राम की आवश्यकता होती है , ऐसे ही पाप बढ़ जाने पर ईश्वर विश्राम देने के लिए विश्व का संहार करते हैं। तम ही मृत्यु है , तम ही काल है , इसीलिए वे महामृत्युंजय हैं , महाकालेश्वर हैं। वे विष और शेषनाग को गले में धारण कर लेते हैं। पर नाश केवल शरीर का होता है। जीवात्मा तो परमात्मा में मिल जाती है। जीवात्मा को मुक्त करती श्रीगंगा भी उन्होंने अपनी जटा में धारण कर ली है। वे संहार करते हैं , तो मुक्ति भी देते हैं। बिना विश्राम के , बिना संहार के न उत्पत्ति हो सकती है और न ही पालन की क्रिया।Image result for bhagwan shiv

महाशिवरात्रि की व्रत-कथा

हज़ारों वर्ष पूर्व ईक्ष्वाकु वंश के एक राजा हुए। उनका नाम था- ‘चित्राभानु’। महाशिवरात्रि के दिन उनके दरबार में ब्रह्मर्षि अष्टावक्र जी का आगमन हुआ। राजा और रानी को शिवरात्रि का व्रत रखता देख उन्होंने पूछ लिया- ‘राजन्! इस व्रत का उद्देश्य क्या है?’
‘ट्टषिवर, दैवी कृपा से मुझे अपना पिछला जन्म याद आ गया है। सो उसमें निहित दैवी प्रेरणा के कारण मैंने और मेरी भार्या ने यह व्रत रखा है।’- राजा ने उत्तर में कहा।
असल में राजा चित्राभानु पिछले जन्म में एक शिकारी थे। उनका नाम था- ‘सुस्वर’। एक बार वे शिकार करने के लिए जंगल में गए। जंगल में अपने श्वान के संग शिकार को ढूँढ़ते हुए उनको शाम हो गई। सो, उन्होंने उसी जंगल में रात्रि बिताने की सोची। रात के अंधियारे में जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा के लिए उन्होंने एक वृक्ष के ऊपर चढ़ने की सोची। वे अपने श्वान को नीचे छोड़कर पास ही के बेल-वृक्ष के ऊपर चढ़कर बैठ गए। पूरे दिन की भूख से तो वे बेहाल थे ही। साथ ही, उन्हें आज शिकार न मिलने की चिंता भी सता रही थी। खैर, रात गहराती गई। समय काटने के लिए वे वृक्ष की पत्तियों को तोड़कर नीचे ज़मीन पर फेंकते गए। साथ ही, अनजाने में, उनकी मशक से भी पानी बूँद-बूँद टपक कर नीचे गिरता गया। ऐसा करते हुए कब रात्रि बीत गई, उन्हें मालूम ही न चला। सुबह होते ही, वे अपने घर वापिस लौट चले।
कहानी आगे बताती है कि ज़िन्दगी के आखिरी पलों में जब वे मृत्यु-शैया पर थे, तब दो शिव-दूत उनकी आत्मा को शिवधाम ले गए। वहाँ पहुँचकर सुस्वर को पता चला कि उस रात्रि बेल-वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था, जिस पर अनजाने में ही उनके द्वारा बेल-पत्र और जल से अभिषेक हो गया था। पूरी रात्रि खाली पेट उपवास रखकर जागने की वजह से वे शिव की उपासना कर बैठे थे। इसी के फलस्वरूप उनको शिवधाम की प्राप्ति हुई। फिर अगला जन्म उनको ‘चित्राभानु’ के रूप में उस उपासना को पूर्ण करने के लिए मिला।
 लगभग हर श्रद्धालु ने यह कथा सुनी होगी। पर क्या मात्रा खाली पेट रहने से शिवलिंग पर बेल पत्र, जल, दूध इत्यादि का अभिषेक करने से भगवान शिव की सच्ची उपासना हो जाती है? आज का युवा एवं बुद्धिजीवी वर्ग तो ऐसी कहानियों को कपोल-कल्पित ही मानता है। क्योंकि जब वे इस कथा के पीछे मर्म को पूछना या जानना चाहते हैं, तो उन्हें सामने से यही उत्तर सुनने को मिलता है- ‘ऐसा ही दादा-परदादाओं के समय से होता आया है।’ स्पष्ट और संतोषजनक जवाब के अभाव में वे इन सब कहानियों को ‘मनगढ़ंत’ ही मान लेते हैं। हमारे आर्ष-ग्रंथों में वर्णित प्रसंग किसी मानुष की कोरी-कल्पनाएँ न होकर, ब्रह्मज्ञानी ऋषियों के अंतःकरण से उद्धृत साक्षात् ब्रह्म-वाक्य हैं। इनमें निहित गूढ़ भाव को बड़े ही अलंकारिक रूप से प्रस्तुत किया गया है। अतः इन प्रसंगों के मर्म को समझने के लिए आत्म-चिन्तन की गहराइयों में गोता लगाने की आवश्यकता है। ठीक ऐसे ही, महाशिवरात्रि की इस व्रत कथा का मर्म गूढ़ के साथ-साथ प्रेरणादायी भी है। भक्तगणों आइए, इस कथा में निहित सार को पंक्ति-दर-पंक्ति समझने का प्रयास करते हैं।
 
Image result for काशी विश्वनाथ

अज्ञानता की घोर रात्रि!

कथा प्रसंग : सुस्वर को शिकार ढूँढ़ते हुए रात्रि हो जाती है। यह रात्रि मात्र सूर्यास्त होने का संकेत नहीं है। अपितु यह तो अज्ञानता के घोर अंधकार- ‘अज्ञानतिमिरान्ध्स्य’ का प्रतीक है। ऐसी अज्ञानता, जो मानुष में व्याप्त दिव्यता पर पर्दा डाल देती है, जिसके कारण वह अपने और दूसरों के भीतर विद्यमान ईश्वर के प्रकाश को नहीं देख पाता है। जीवन भर इस माया-रूपी जंगल में ही भटकता रहता है।


पाश्विकता से दिव्यता की ओर!

 जंगली जानवरों से बचने के लिए सुस्वर किसी वृक्ष पर आश्रय लेने का निर्णय लेता हैऔर अपने श्वान को नीचे छोड़कर नजदीकी बेल वृक्ष पर चढ़ बैठता है। सुस्वर के इस कृत्य के पीछे गूढ़ संदेश छिपा है। यहाँ श्वान मानव की पाश्विक वृत्तियों को दर्शाता है। उसको नीचे छोड़कर पेड़ पर चढ़ना उर्ध्वगामी होना है। यानी दिव्यता की ओर कदम बढ़ाना है। विशेषकर बेल के पेड़ पर चढ़ने का भी अपना महत्त्व है। 

ऋग्वेद के श्री सूक्तम (6) में लिखा है-

आदित्यवर्णे तपसोऽध्जिातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाहया अलक्ष्मीः।।

सरल शब्दों में कहें तो, बिल्व वृक्ष ताप का परिचायक है। इस सूक्ति में बिल्व वृक्ष से आर्त प्रार्थना की गई है कि वह अपने तपो-फल से आध्यात्मिक दरिद्रता को मिटाए; उपासक को ‘श्री’ (आत्मिक और व्यावहारिक समृद्धि की प्राप्ति कराए।

फल ही नहीं, इस वृक्ष की डालियाँ और पत्ते भी महिमावान हैं। इसके विषय में हमारे आर्ष-ग्रंथों में वर्णित है-

...पतरैर्वेदस्वरूपिण स्कंधे वेदांतरुपया
तरुराजया ते नमः।

अर्थात् बेल वृक्ष के पत्ते वेदों की ऋचाओं के सार हैं, उसकी डालियाँ उपनिषदों में निहित ज्ञान की निचोड़ हैं। इसलिए ऐसे वृक्षों के राजा बेल को शत-शत नमन है। व्याध का बेल वृक्ष पर चढ़कर बैठना, वेद-वेदांत के मर्म यानी तत्त्वज्ञान या ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति का प्रतीक है। अंतर्घट में शिव-तत्त्व को जानने की ओर संकेत है। इसकी प्राप्ति या ऐसी जिज्ञासा का अंत एक श्रोत्रिय-ब्रह्मनिष्ठ गुरु के पास जाकर ही संभव हो पाता है। पूर्ण गुरु ही जिज्ञासु को अलौकिक ब्रह्मज्ञान प्रदान करते हैं-

तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्
समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्।।
(मुंडकोपनिषद् 1/2/12)

 ब्रह्मज्ञान के द्वारा सनातन शिव-तत्त्व की प्राप्ति होती है और अज्ञान रूपी महाग्रंथि का उन्मूलन होता है- ‘छ्रित्त्वाऽविद्यामहाग्रन्थिं शिवं गच्छेत्सनातनं।।’ (रुद्रहृदयोपनिषद् 37)। जब एक पूर्ण गुरु दीक्षा के समय शिष्य को ब्रह्मज्ञान प्रदान करते हैं, उसी क्षण जिज्ञासु का तृतीय नेत्रा सक्रिय हो जाता है और वह शिव-तत्त्व का साक्षात् दर्शन अपनी हृदय-गुहा में कर लेता है। फिर आरम्भ होती है, ध्यान की शाश्वत प्रक्रिया।


बेल-पत्र और शिवलिंग का रहस्य!

 सुस्वर समय काटने हेतु बेल-पत्तियों को नीचे फेंकता रहता है। संयोगवश ये पत्तियाँ नीचे स्थापित शिवलिंग पर अर्पित होती जाती हैं। ये बेल पत्र और शिवलिंग एक प्रगाढ़ रहस्य समेटे हुए हैं। क्या कभी आपने बेल की पत्तियों पर ध्यान दिया है? एक डांठ पर तीन पत्तियाँ उगती हैं और ये त्राय पत्तियाँ मानवीय शरीर की 72,000 सूक्ष्म नाड़ियों में से प्रमुख तीन नाड़ियों की ओर इंगित करती हैं-

प्रधनाः प्राणवाहिन्यो भूयास्तासु दशस्मृताः।
इडा च पिड्गला चैव सुषुम्ना च तृतीयगा।।
(योग चूड़ामणि उपनिषद् 16)

इनको इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना के नाम से जाना जाता है। बेल-पत्र प्रतीक है- इन तीन नाड़ियों के मिलन का। यह मिलन कहाँ पर घटता है? हमारे ऋषिगण इसे ‘आज्ञाचक्र’ से संबोधित करते हैं। यह आज्ञाचक्र हमारे मस्तिष्क की पिंडी में, जो शिवलिंग के समान आकार वाली है, स्थित होता है। जब शिष्य अपनी भौहों के बीच स्थित इस आज्ञाचक्र पर ध्यान केन्द्रित करता है-
 ‘आज्ञा नाम भुवोर्मध्ये द्विदलं चक्रमुत्तमम्।...’ (योगशिखोपनिषद् 175)- 
तब इस स्थल पर तीनों नाड़ियों का मिलन होता है। अतः व्याध द्वारा शिवलिंग पर बेल पत्र अर्पित करना ध्यान की प्रक्रिया के दौरान आज्ञाचक्र में तीन नाड़ियों के मिलन को दर्शाता है।


बूँद-बूँद जल का टपकना!

पहले पेड़ पर चढ़ना, फिर बेल पत्तों को गिराना और फिर व्याध की मशक से शिवलिंग के ऊपर पानी का टपकना। भक्तजनों! यह शृंखला मात्रा संयोग नहीं है। यह स्पष्ट और सूक्ष्म संकेत है, प्रभु शिव की शाश्वत भक्ति अर्थात् ब्रह्मज्ञान की ध्यान-प्रक्रिया का जो एक साधक के अंतस् में चलती है। जैसे कि मंदिरों में कलश से बूँद-बूँद करके शिवलिंग पर जल टपकता है; ठीक इसी तरह कबीर जी कहते हैं-

‘गगन मंडल अमृत का कुआँ, जहाँ ब्रह्म का वासा’- हमारे ब्रह्मरंध्र या सहस्रार चक्र में अमृत का एक सूक्ष्म व शाश्वत स्रोत मौजूद है। जब एक साधक सद्गुरु द्वारा दिए गए ब्रह्मज्ञान की ध्यान पद्धति को अपनाकर ध्यान करता है, तब उसके ब्रह्मरंध्र से भी बूँद-बूँद अमृत रस झरता है। ध्यान की गहराई में पहुँचने पर वह इस अमृत का पान कर पाता है-

सगुरा होई सो भर-भर पीवै, निगुरा मरत प्यासा।

ब्रह्मानंद जी ने भी जब अपने गुरुदेव की अनुकंपा से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति की, तो वे अपने भीतर ही इस अमृत को झरता हुआ अनुभव कर पाए-

अचरज देखा भारी रे साधे, अचरज देखा भारी रे।
गगन बीच अमृत का कुआँ, सदा झरे सुखकारी रे।।

अतः व्याध द्वारा शिवलिंग पर जल को बूँद-बूँद गिराना, ब्रह्मज्ञान की अमृत पान की प्रक्रिया को ही दर्शाता है।


उपवास से उपासना!

यह मात्र संयोग नहीं था कि पूरी रात्रि सुस्वर क्षुध से बेहाल था। इस अलंकारिक भाषा के पीछे झाँकने से ज्ञात होता है कि यह स्थिति ‘उपवास’ की प्रतीक है। इसमें ‘उप’ का अर्थ है, ‘निकट’ और ‘वास’ का अर्थ है- ‘रहना’। किसके निकट? ईश्वर के! अतः उपवास का अर्थ हुआ- ‘ईश्वर के निकट वास करना।’ यही तो ध्यान की शाश्वत पद्धति है, जो हमें ईश्वर के प्रकाश स्वरूप का साक्षात् दर्शन कराती है और उस पर एकाग्र होने की युक्ति है। वास्तव में, ब्रह्मज्ञान की ध्यान-प्रक्रिया ही सच्चा उपवास है, प्रभु की सच्ची उपासना है। ‘उपासना’ शब्द का अर्थ भी ईश्वर के नज़दीक बैठना है।
 यही है शिवरात्रि-व्रत कथा का गूढ़ मर्म। इसी के साथ दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान आप सभी भक्तजनों को महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य पर हार्दिक बधइयाँ देता है। आशा करते हैं कि आप भी शिव-तत्त्व की शाश्वत उपासना करने के इच्छुक हुए होंगे और ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने की ओर अग्रसर होंगे। ऊँ नमः शिवाय।
Image result for काशी विश्वनाथ

आत्मशिव में आराम पाने का पर्व : महाशिवरात्रि
 फाल्गुन  कृष्ण चतुर्दशी को 'महाशिवरात्रि' के रूप में मनाया जाता है | यह तपस्या, संयम, साधना बढ़ाने का पर्व है, सादगी व सरलता से बिताने का दिन है, आत्मशिव में तृप्त रहने का, मौन रखने का दिन है | महाशिवरात्रि देह से परे आत्मा में, सत्यस्वरूप शिवतत्त्व में आराम पाने का पर्व है | भाँग पीकर खोपड़ी खाली करने का दिन नहीं है लेकिन रामनाम का अमृत पीकर हृदय पावन करने का दिन है | संयम करके तुम अपने-आपमें तृप्त होने के रस्ते चल पडो, उसीका नाम है महाशिवरात्रि पर्व | महाशिवरात्रि जागरण, साधना, भजन करने की रात्रि है | 'शिव' का तात्पर्य है 'कल्याण' अर्थात यह रात्रि बड़ी कल्याणकारी है | इस रात्रि में किया जानेवाला जागरण, व्रत-उपवास, साधन-भजन, अर्थ सहित शांत जप-ध्यान अत्यंत फलदायी माना जाता है | 'स्कन्द पुराण' के ब्रह्मोत्तर खंड में आता है : 'शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है | उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और दुर्लभ है | लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वसिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं | इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है | 'जागरण' का मतलब है जागना | जागना अर्थात अनुकूलता-प्रतिकूलता में न बहना, बदलनेवाले शरीर-संसार में रहते हुए अब्दल आत्मशिव में जागना | मनुष्य-जन्म कही विषय-विकारों में बरबाद न हो जाय बल्कि अपने लक्ष्य परमात्म-तत्त्व को पाने में ही लगे - इस प्रकार की विवेक-बुद्धि से अगर आप जागते हो तो वह शिवरात्रि का 'जागरण' हो जाता है |आज के दिन भगवान साम्ब-सदाशिव की पूजा, अर्चना और चिंतन करनेवाला व्यक्ति शिवतत्त्व में विश्रांति पाने का अधिकारी हो जाता है | जुड़े हुए तीन बिल्वपत्रों से भगवान शिव की पूजा की जाती है, जो संदेश देते हैं कि ' हे साधक ! हे मानव ! तू भी तीन गुणों से इस शरीर से जुड़ा है | यह तीनों गुणों का भाव 'शिव-अर्पण' कर दें, सात्विक, राजस, तमस प्रवृतियाँ और विचार अन्तर्यामी साम्ब-सदाशिव को अर्पण कर दे | बिल्वपत्र की सुवास तुम्हारे शरीर के वात व कफ के दोषों को दूर करती है | पूजा तो शिवजी की होती है और शरीर तुम्हारा तंदुरुस्त हो जाता है | भगवान को बिल्वपत्र चढ़ाते-चढ़ाते अपने तीन गुण अर्पण कर डालो, पंचामृत अर्पण करते-करते पंचमहाभूतों का भौतिक विलास जिस चैतन्य की सत्ता से हो रहा है उस चैतन्यस्वरूप शिव में अपने अहं को अर्पित कर डालो तो भगवान के साथ तुम्हारा एकत्व हो जायेगा | जो शिवतत्त्व है वही तुम्हारा आत्मा है और जो तुम्हारा आत्मा है वही शिवस्वरूप परमात्मा है | शिवरात्रि के दिन पंचामृत से पूजा होती है, मानसिक पूजा होती है और शिवजी का ध्यान करके हृदय में शिवतत्त्व का प्रेम प्रकट करने से भी शिवपूजा मानी जाती है | ध्यान में आकृति का आग्रह रखना बालकपना है | आकाश से भी व्यापक निराकार शिवतत्त्व का ध्यान .......! 'ॐ....... नमः ........ शिवाय.......' - इस प्रकार प्लुत उच्चारण करते हुए ध्यानस्थ हो जायें |
शिवरात्रि पर्व यह संदेश देता है कि जैसे शिवजी हिमशिखर पर रहते हैं, माने समता की शीतलता पर विराजते हैं, ऐसे ही अपने जीवन को उन्नत करना हो तो साधना की ऊँचाई पर विराजमान होओ तथा सुख-दुःख के भोगी मत बनो | सुख के समय उसके भोगी मत बनो, उसे बाँटकर उसका उपयोग करो | दुःख के समय उसका भोग न करके उपयोग करो | रोग का दुःख आया है तो उपवास और संयम से दूर करो | मित्र से दुःख मिला है तो वह आसक्ति और ममता छुडाने के लिए मिला है | संसार से जो दुःख मिलता है वह संसार से आसक्ति छुडाने के लिए मिलता है, उसका उपयोग करो | शिवजी के पास मंदिर में जाते हो तो नंदी मिलता है - बैल | समाज में जो बुद्धू होते हैं उनको बोलते हैं तू तो बैल है, उनका अनादर होता है लेकिन शिवजी के मंदिर में जो बैल है उसका आदर होता है | बैल जैसा आदमी भी अगर निष्फल भाव से सेवा करता है, शिवतत्त्व की सेवा करता है, भगवतकार्य क्या है कि 'बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय' जो कार्य है वह भगवतकार्य है | जो भगवन शिव की सेवा करता है, शिव की सेवा माने हृदय में छुपे हुए परमात्मा की सेवा के भाव से जो लोगों के काम करता है, वह चाहे समाज की नजर से बुद्धू भी हो तो भी देर-सवेर पूजा जायेगा | यह संकेत है नंदी की पूजा का | शिवजी के गले में सर्प है | सर्प जैसे विषैले स्वभाववाले व्यक्तियों से भी काम लेकर उनको समाज का श्रृंगार, समाज का गहना बनाने की क्षमता, कला उन ज्ञानियों में होती है | भगवन शिव भोलानाथ हैं अर्थात जो भोले-भाले हैं उनकी सदा रक्षा करनेवाले हैं | जो संसार-सागर से तैरना चाहते हैं पर कामना के बाण उनको सताते हैं, वे शिवजी का सुमिरण करते हैं तो शिवजी उनकी रक्षा करते हैं | शिवजी ने दूज का चाँद धारण किया है | ज्ञानी महापुरुष किसी का छोटा-सा भी गुण होता है तो शिरोधार्य कर लेते हैं | शिवजी के मस्तक से गंगा बहती है | जो समता के ऊँचे शिखर पर पहुँच गये हैं, उनके मस्तक से ज्ञान की तरंगें बहती हैं इसलिए हमारे सनातन धर्म के देवों के मस्तक के पीछे आभामण्डल दिखाया जाता है |
शिवजी ने तीसरे नेत्र द्वारा काम को जलाकर यह संकेत किया कि 'हे मानव ! तुझमे भी तेरा शिवतत्त्व छुपा है, तू विवेक का तीसरा नेत्र खोल ताकि तेरी वासना और विकारों को तू भस्म कर सके, तेरे बंधनों को तू जला सके |'
भगवान शिव सदा योग में मस्त है इसलिए उनकी आभा ऐसे प्रभावशाली है कि उनके यहाँ एक-दूसरे से जन्मजात शत्रुता रखनेवाले प्राणी भी समता के सिंहासन पर पहुँच सकते हैं | बैल और सिंह की, चूहे और सर्प की एक ही मुलाकात काफी है लेकिन वहाँ उनको वैर नही है | क्योंकि शिवजी की निगाह में ऐसी समता है कि वहाँ एक-दूसरे के जन्मजात वैरी प्राणी भी वैरभाव भूल जाते हैं | तो तुम्हारे जीवन में भी तुम आत्मानुभव की यात्रा करो ताकि तुम्हारा वैरभाव गायब हो जाय | वैरभाव से खून खराब होता है | तो चित्त में ये लगनेवाली जो वृत्तियाँ हैं, उन वृत्तियों को शिवतत्त्व के चिंतन से ब्रह्माकार बनाकर अपने ब्रह्मस्वरूप का साक्षात्कार करने का संदेश देनेवाले पर्व का नाम है शिवरात्रि पर्व |
समुद्र-मंथन के समय शिवजी ने हलाहल विष पीया है | वह हलाहल न पेट में उतारा, न वमन किया, कंठ में धारण किया इसलिए भोलानाथ 'नीलकंठ' कहलाये | तुम भी कुटुम्ब के, घर के शिव हो | तुम्हारे घर में भी अच्छी-अच्छी समग्री आये तो बच्चों को, पत्नी को, परिवार को दो और घर में जब विघ्न-बाधा आये, जब हलाहल आये तो उसे तुम कंठ में धारण करो तो तुम भी नीलकंठ की नाई सदा आत्मानंद में मस्त रह सकते हो | जो समिति के, सभा के, मठ के, मंदिर के, संस्था के, कुटुम्ब के, आस-पड़ोस के, गाँव के बड़े हैं उनको उचित है कि काम करने का मौका आये तो शिवजी की नाई स्वयं आगे आ जाये और यश का मौका आये तो अपने परिजनों को आगे कर दें |
 अगर पत्नी हो तो पार्वती माँ को याद करो, जगजननी, जगदम्बा को याद करो कि वे भगवान शिवजी की समाधि में कितना सहयोग करती है ! तो तुम भी यह विचार करो कि 'आत्मशिव को पाने की यात्रा में आगे कैसे बढ़े ?' और अगर तुम पत्नी की जगह पर हो तो यह सोचो कि 'पत्नी पार्वती की नाई उन्नत कैसे हो ?' इससे ग्रहस्थ-जीवन धन्य हो जायेगा | शिवरात्रि का पर्व यह संदेश देता है कि जितना-जितना तुम्हारे जीवन में निष्कामता आती है, परदुःखकातरता आती है, परदोषदर्शन की निगाह कम होती जाती है, दिव्य परम पुरुष की ध्यान-धरणा होती है उतना-उतना तुम्हारा वह शिवतत्त्व निखरता है, तुम सुख-दुःख से अप्रभावित अपने सम स्वभाव, इश्वरस्वभाव में जागृत होते हो और तुम्हारा हृदय आनंद, स्नेह, साहस एवं मधुरता से छलकता है |
 
वाह इसरो

वाह इसरो


अंतरिक्ष बाज़ार पर भारत की पकड़ सबसे आगे 
वाह इसरो 

संजय तिवारी 

दुनिया भौचक्क है। आज से ३६ वर्ष पहले जब भारत ने अपना पहला रॉकेट लांच किया था तो कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता था कि महज़ साढ़े तीन दशक की यात्रा में ही वही भारत अंतरिक्ष का सबसे बड़ा खिलाड़ी बन सकता है। भारत की संकल्पशक्ति और भारत की मेधा ने आज यह साबित कर के दुनिया को विवश कर दिया कि भारत के बिना इस दुनिया का कोई वज़ूद नहीं। एक ही रॉकेट से रिकॉर्ड 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण कर इसरो ने ना सिर्फ अंतरिक्ष में भारत की धाक जमा दी है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक बड़ा और सफल वैज्ञानिक देश साबित करने का काम भी किया है। जिस देश की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संपेरों और भूखे-नंगों की बनायी गयी थी आज वह ना सिर्फ अपने बल्कि अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के उपग्रह भी सफलता के साथ प्रक्षेपित कर रहा है। इसरो ने अपने इस अभियान के साथ रूस के एक साथ 37 उपग्रह प्रक्षेपित करने के रिकॉर्ड को भी ध्वस्त कर दिया है। निश्चित रूप से फागुन का यह बुधवार भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में इस दिन को ‘‘युगांतकारी दिन’’ के तौर पर जाना जायेगा। पीएसएलवी-सी37 की कक्षा में रिकॉर्ड 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण पर इसरो की पूरी टीम बधाई की पात्र है। इसरो के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, प्रौद्योगिकीविदों और इस महान अभियान से जुड़े अन्य लोगों ने देश के हर नागरिक को गौरवान्वित करने का काम किया है।
Image result for isro
हाल ही में रक्षा मंत्रालय से सम्मानित हुए प्रसिद्ध रक्षा विशेषज्ञ और गोरखपुर विश्वविद्यालय में रक्षा एवं स्ट्रेटेजिक विभाग के प्रो हर्ष कुमार सिन्हा बताते हैं कि अब तक इसरो 226 उपग्रह प्रक्षेपित कर चुका है, जिनमें से 179 उपग्रह विदेशी हैं। तकनीकी लिहाज से देखा जाए तो एक ही रॉकेट के जरिए 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित कर देना एक जटिल मिशन था। लेकिन इसरो की टीम ने मुश्किल और चुनौती भरे काम को सफल कर दिखाया। इस प्रक्षेपण ने निश्चित तौर पर जटिल अभियानों को पेशेवर तरीके से पूरा करने की इसरो की क्षमता को दोहराया है। यह इसरो द्वारा अब तक अंजाम दिए गए कठिनतम अभियानों में से एक है। इसरो का यह कहना कि ‘‘पीएसएलवी के जरिये हम अंतरिक्ष प्रक्षेपण के बाजार के एक खास हिस्से पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं’’, देश को गर्व से भर देता है।

  प्रो हर्ष के मुताबिक़ इस बार के अभियान में इसरो ने भारतीय उपग्रहों को कक्षा में प्रवेश कराए जाने के बाद विदेशी ग्राहकों के अन्य 101 नैनो उपग्रहों को श्रृंखलाबद्ध तरीके से कक्षा में प्रवेश कराया। आईएनएस-1ए और आईएनएस-1बी इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर और लेबोरेट्री फॉर इलेक्ट्रो ऑप्टिक्स सिस्टम्स से कुल चार पेलोडों से लैस हैं, जिनका इस्तेमाल विभिन्न प्रयोगों में किया जाना है। काटरेसैट-2 श्रृंखला का उपग्रह ऐसी तस्वीरें भेजेगा, जो तटीय भू प्रयोग एवं नियमन, सड़क तंत्र निरीक्षण, जल वितरण, भू-प्रयोग नक्शों का निर्माण आदि कार्यों में शामिल होंगी। इस मिशन की अवधि पांच साल की है। इस मिशन के तहत भारतीय उपग्रहों के साथ गए 101 सहयात्री उपग्रहों में से 96 उपग्रह अमेरिका के हैं। इसके अलावा पांच उपग्रह इसरो के अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के हैं, जिनमें इजराइल, कजाखस्तान, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के इन नैनो उपग्रहों को इसरो की वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड और अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के बीच हुए समझौते के तहत प्रक्षेपित किया गया है। इसरो मंगलयान मिशन को ग्रहण की लंबी अवधि में बचे रहने के योग्य बना रहा है, जिसके बाद वह कम से कम दो-तीन साल तक काम कर सकेगा। भारत की अंतरिक्ष व्यापार कंपनी एंट्रिक्स कॉपरेरेशन का कहना है कि कंपनी को अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों से 500 से 600 करोड़ रुपये मूल्य के आर्डर मिले हैं। इसरो इसी साल मार्च में सार्क देशों के लिए भी उपग्रह प्रक्षेपित करने जा रहा है। साफ है कि दक्षिण एशिया ही नहीं एशिया में भी भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी धाक जमा ली है।
Image result for isro
प्रख्यात रक्षा वैज्ञानिक और प्रयाग राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति  प्रो राजेंद्र प्रसाद कहते हैं कि पिछले वर्ष भी अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए भारत ने एक ही मिशन में पीएससलवी-सी34 के माध्यम से 20 उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था। तब भी 20 में से 17 सैटेलाइट विदेशी थे। वाकई यह गर्व का विषय है कि कभी अंतरिक्ष क्षेत्र में दूसरों पर निर्भर रहा भारत आज दूसरे देशों को सेवा प्रदान करने वाला प्रमुख देश बन गया है। निश्चित रूप से अब यह कहा जा सकता है कि इसरो लगातार नए आयाम गढ़ रहा है। पीएसएलवी यकीनन भारत और इसरो के लिए सफलता का प्रतीक बन गया है। इसरो लगातार अपने पुराने रिकॉर्डों को तोड़ता जा रहा है। आज इसरो ने अपने पिछले साल एक साथ किये गये 20 उपग्रहों के प्रक्षेपण के रिकॉर्ड को तोड़ा और इसी तरह पिछले साल इसरो ने 20 उपग्रहों के प्रक्षेपण के साथ 2008 के अपने उस रिकॉर्ड को तोड़ दिया था जब उसने एक साथ 10 उपग्रहों को कक्षाओं में स्थापित किया था। ख़ास तो यह है कि विश्व के मीडिया में आज केवल भारत की इस महानतम उपलब्धि की ही चर्चा है। विदेशी अखबारों के बड़े बड़े पैन इसरो की कामयाबी की कथा कह रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया का कहना है कि भारत अंतरिक्ष आधारित सर्विलांस और संचार के तेजी से बढ़ते वैश्विक बाजार में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनकर उभरा है।वॉशिंगटन पोस्ट ने कहा है कि यह प्रक्षेपण ‘‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के लिए यह एक और बड़ी सफलता है। कम खर्च में सफल मिशन को लेकर इसरो की साख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से बढ़ रही है।’’ सफल प्रक्षेपण के संबंध में वाशिंगटन पोस्ट ने यह भी रेखांकित किया है कि भारत पहले भी दर्जनों उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर चुका है जिसमें पिछले साल एक बार में 20 उपग्रहों का प्रक्षेपण शामिल है। द न्यूयॉर्क टाइम्स का कहना है कि एक दिन में उपग्रहों के प्रक्षेपण के पिछले रिकॉर्ड के मुकाबले करीब तीन गुना ज्यादा, 104 उपग्रहों को प्रक्षेपण के बाद उनकी कक्षाओं में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया है। इसने अंतरिक्ष आधारित सर्विलांस और संचार के बढ़ते व्यावसायिक बाजार में भारत को ‘‘महत्वपूर्ण पक्ष’’ के रूप में स्थापित कर दिया है। अखबार का कहना है, ‘‘प्रक्षेपण में खतरा बहुत ज्यादा था क्योंकि 17,000 मील प्रति घंटा की रफ्तार से जा रहे एक रॉकेट से जिस प्रकार प्रति कुछ सेंकेंड में गोली की रफ्तार से उपग्रहों को उनकी कक्षाओं में स्थापित किया गया है, उसे देखते हुए यदि एक भी उपग्रह गलत कक्षा में चला जाता तो वे एक-दूसरे से टकरा सकते थे।’’ सीएनएन का कहना है, ‘‘अमेरिका और रूस की प्रतिद्वंद्विता को भूल जाएं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में वास्तविक दौड़ तो एशिया में हो रही है।’’ लंदन के टाइम्स अखबार का कहना है कि इस कारनामे के साथ ही भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रभावशाली देशों के समूह में शामिल होने के लक्ष्य को स्पष्ट कर दिया है। ब्रिटिश अखबार ने अपने लेख में कहा है कि भारत के कई महत्वपूर्ण मिशन का खर्च उनके रूसी, यूरोपीय और अमेरिकी समकक्षों के मुकाबले बहुत कम रहा है। इसरो के मंगल मिशन का खर्च महज 7.3 करोड़ डॉलर था, जबकि नासा के ‘मावेन मार्स लांच’ में 67.1 करोड़ डॉलर का खर्च आया था। ब्रिटेन के ही गार्जियन अखबार का कहना है कि नया रिकॉर्ड बनाने वाला यह प्रक्षेपण तेजी से बढ़ते निजी अंतरिक्ष बाजार में एक गंभीर पक्ष के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत बनाएगा। ब्रिटिश अखबार का कहना है, ‘‘वर्ष 1980 में अपना रॉकेट प्रक्षेपित करने वाला महज छठवां देश बने भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान को बहुत पहले ही अपनी प्राथमिकता बना ली थी। भारत सरकार ने इस वर्ष अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए बजट बढ़ा दिया है और शुक्र तक मिशन भेजने की घोषणा भी कर दी है।’’ पर्यवेक्षकों के हवाले से बीबीसी का कहना है कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में आज की सफलता ‘‘इसका प्रतीक है कि भारत अरबों डॉलर के इस अंतरिक्ष बाजार में बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर रहा है।’’ भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी होने का दावा करने वाले चीनी मीडिया ने भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की सफलता पर लिखा है। सरकारी संवाद समिति शिन्हुआ के अनुसार, ‘‘एक अंतरिक्ष मिशन में 104 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर भारत ने इतिहास बनाया है और वर्ष 2014 में रूस द्वारा एक साथ 37 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किए जाने का रिकॉर्ड भी तोड़ा है।’’ वास्तव में यह भारत के लिए विज्ञान और अंतरिक्ष की दिशा में बहुत बड़ी उपलब्धि है।

  
काश , किसी इरफ़ान हबीब और रोमिला थापर ने इस सच को भी पाठ्यक्रमो में लिखा होता !

Image result for ram janmabhoomi
संजय तिवारी 

रामजन्मभूमि का खूनी इतिहास केवल उतना ही पुराना है जितना हमारे विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला इतिहास का विषय है। भारतीय इतिहास को प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक के बटवारे में डाल कर पढ़ाने की व्यवस्था विश्वविद्यालयो में की गयी है। आधुनिक और मध्यकालीन इतिहास लिखने वाले और उनके पाठ्यक्रम तय करने वाले लोगो को ही असली इतिहासकार बता कर भारत के तथाकथित सेक्युलर , सहिष्णु विद्वान् लंबी लंबी बहस करते हैं और पिछले 60 -70  वर्षो से उन्हें ही भारत के इतिहास के अधिकृत विद्वान् बताकर उन्ही के प्रमाणन को सत्य का दर्ज़ा देते आ रहे हैं।  ये वे ही इतिहासकार हैं जिनको रानी पद्मिनी और उनका जौहर भी काल्पनिक लगता है। इनको वह कुछ भी नहीं दिखाई देता जो भारत का अपना और खुद के गौरव से जुड़ा हो। इनको ही आइना दिखने के लिए यह आलेख सामने है।  सबकुछ तिथिवार है। यह है श्रीरामजन्मभूमि का रक्तरंजित इतिहास -  
Image result for ram janmabhoomi

जब बाबर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ उस समय जन्मभूमि सिद्ध महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी। महात्मा श्यामनन्द की ख्याति सुनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकान अयोध्या आये । महात्मा जी के शिष्य बनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा ने योग और सिद्धियाँ प्राप्कर ली और उनका नाम भी महात्मा श्यामनन्द के ख्यातिप्राप्त शिष्यों में लिया जाने लगा। ये सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी महात्मा श्यामनन्द के पास आया और उनका शिष्य बनकर सिद्धियाँ प्राप्त करने लगा। जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था, और उसको एक ही सनक थी, हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना । अत: जलालशाह ने अपने काफिर गुरू की पीठ में छुरा घोंपकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिलकर ये विचार किया की यदि इस मदिर को तोड़ कर मस्जिद बनवा दी जाये तो इस्लाम का परचम हिन्दुस्थान में स्थायी हो जायेगा। धीरे धीरे जलालशाह और
ख्वाजा कजल अब्बास मूसा इस साजिश को अंजाम देने की तैयारियों में जुट गए ।
Image result for ram janmabhoomi
सर्वप्रथम जलालशाह और ख्वाजा बाबर के विश्वासपात्र बने और दोनों ने अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए जन्मभूमि के आसपास की जमीनों में बलपूर्वक मृत मुसलमानों को दफन करना शुरू किया॥ और मीरबाँकी खां के माध्यम से बाबर को उकसाकर मंदिर के विध्वंस का कार्यक्रम बनाया। बाबा श्यामनन्द जी अपने मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख के बहुत दुखी हुए और अपने निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ।

दुखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित किया और खुद हिमालय की और
तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर रामलला की रक्षा के लिए खड़े हो गए। जलालशाह की आज्ञा के अनुसार उन चारो पुजारियों के सर काट लिए गए. जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने की घोषणा हुई उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकले थे,अयोध्या पहुचने पर रास्ते में उन्हें ये खबर मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर
दी और अपनी छोटी सेना में रामभक्तों को शामिल कर १ लाख चौहत्तर हजार लोगो के साथ बाबर की सेना के ४
लाख ५० हजार सैनिकों से लोहा लेने निकल पड़े।

रामभक्तों ने सौगंध ले रक्खी थी रक्त की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने
देंगे। रामभक्त वीरता के साथ लड़े ७० दिनों तक घोर संग्राम होता रहा और अंत में राजा महताब सिंह समेत
सभी १ लाख ७४ हजार रामभक्त मारे गए। श्रीराम जन्मभूमि रामभक्तों के रक्त से लाल हो गयी। इस भीषण
कत्ले आम के बाद मीरबांकी ने तोप लगा के मंदिर गिरवा दिया । मंदिर के मसाले से ही मस्जिद का निर्माण हुआ
पानी की जगह मरे हुए हिन्दुओं का रक्त इस्तेमाल किया गया नीव में लखौरी इंटों के साथ ।

इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखता है की एक लाख चौहतर हजार
हिंदुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीरबाँकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान मे सफल हुआ और उसके बाद जन्मभूमि के चारो और तोप लगवाकर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया.. इसी प्रकार हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में लिखता है की " जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बना के लखौरी ईटों की नीव
मस्जिद बनवाने के लिए दी गयी थी। उस समय अयोध्या से ६ मील की दूरी पर सनेथू नाम का एक गाँव के पंडित देवीदीन पाण्डेय ने वहां के आस पास के गांवों सराय सिसिंडा राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित किया॥ देवीदीन पाण्डेय ने सूर्यवंशीय क्षत्रियों से कहा भाइयों आप लोग मुझे अपना राजपुरोहित मानते हैं ..अप के पूर्वज
श्री राम थे और हमारे पूर्वज महर्षि भरद्वाज जी। आज मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि को मुसलमान
आक्रान्ता कब्रों से पाट रहे हैं और खोद रहे हैं इस परिस्थिति में हमारा मूकदर्शक बन कर जीवित रहने की बजाय जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध करते करते वीरगति पाना ज्यादा उत्तम होगा॥

देवीदीन पाण्डेय की आज्ञा से दो दिन के भीतर ९० हजार क्षत्रिय इकठ्ठा हो गए दूर दूर के गांवों से लोग समूहों में इकठ्ठा हो कर देवीदीन पाण्डेय के नेतृत्व में जन्मभूमि पर जबरदस्त धावा बोल दिया । शाही सेना से लगातार ५
दिनों तक युद्ध हुआ । छठे दिन मीरबाँकी का सामना देवीदीन पाण्डेय से हुआ उसी समय धोखे से उसके अंगरक्षक ने एक लखौरी ईंट से पाण्डेय जी की खोपड़ी पर वार कर दिया। देवीदीन पाण्डेय का सर बुरी तरह फट गया मगर उस वीर ने अपने पगड़ी से खोपड़ी से बाँधा और तलवार से उस कायर अंगरक्षक का सर काट दिया। इसी बीच मीरबाँकी ने छिपकर गोली चलायी जो पहले ही से घायल देवीदीन पाण्डेय जी को लगी और वो जन्मभूमि की रक्षा में वीर गति को प्राप्त हुए..जन्मभूमि फिर से 90 हजार हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गयी। देवीदीन पाण्डेय के वंशज सनेथू ग्राम के ईश्वरी पांडे का पुरवा नामक जगह पर अब भी मौजूद हैं॥ पाण्डेय जी की मृत्यु के १५ दिन बाद हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने सिर्फ २५ हजार सैनिकों के साथ मीरबाँकी की विशाल और शस्त्रों से सुसज्जित सेना से रामलला को मुक्त कराने के लिए आक्रमण किया । 10 दिन तक युद्ध चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गए। जन्मभूमि में 25 हजार हिन्दुओं का रक्त फिर बहा। रानी जयराज कुमारी हंसवर के स्वर्गीय महाराज रणविजय सिंह की पत्नी थी। जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी ने उनके कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया और हुमायूं के समय तक उन्होंने छापामार युद्ध जारी रखा। रानी के गुरु स्वामी महेश्वरानंद जी ने रामभक्तों को इकठ्ठा करके सेना का प्रबंध करके जयराज कुमारी की सहायता की। साथ ही स्वामी महेश्वरानंद जी ने सन्यासियों की सेना बनायीं इसमें उन्होंने २४ हजार सन्यासियों को इकठ्ठा किया और रानी जयराज कुमारी के साथ , हुमायूँ के समय में कुल १० हमले जन्मभूमि के उद्धार के लिए किये। १०वें हमले में शाही सेना को काफी नुकसान हुआ और जन्मभूमि पर रानी जयराज कुमारी का अधिकार हो गया।

लेकिन लगभग एक महीने बाद हुमायूँ ने पूरी ताकत से शाही सेना फिर भेजी ,इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी कुमारी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ मारे गए और जन्मभूमि पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया। श्रीराम जन्मभूमि एक बार फिर कुल 24 हजार सन्यासियों और 3 हजार वीर नारियों के रक्त से लाल हो गयी। रानी जयराज कुमारी और स्वामी महेश्वरानंद जी के बाद यद्ध का नेतृत्व स्वामी बलरामचारी जी ने अपने हाथ में ले लिया। स्वामी बलरामचारी जी ने गांव गांव में घूम कर रामभक्त हिन्दू युवकों और सन्यासियों की एक मजबूत सेना तैयार करने का प्रयास किया और जन्मभूमि के उद्धारार्थ २० बार आक्रमण किये. इन २० हमलों में काम से काम १५ बार स्वामी बलरामचारी ने जन्मभूमि पर अपना अधिकार कर लिया मगर ये अधिकार अल्प समय के लिए रहता था थोड़े दिन बाद बड़ी शाही फ़ौज आती थी और जन्मभूमि पुनः मुगलों के अधीन हो जाती थी..जन्मभूमि में लाखों हिन्दू बलिदान होते रहे। उस समय का मुग़ल शासक अकबर था।

शाही सेना हर दिन के इन युद्धों से कमजोर हो रही थी..अतः अकबर ने बीरबल और टोडरमल के कहने पर खस
की टाट से उस चबूतरे पर ३ फीट का एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया. लगातार युद्ध करते रहने के कारण स्वामी बलरामचारी का स्वास्थ्य गिरता चला गया था और प्रयाग कुम्भ के अवसर पर त्रिवेणी तट पर स्वामी बलरामचारी की मृत्यु हो गयी . इस प्रकार बार-बार के आक्रमणों और हिन्दू जनमानस के रोष एवं हिन्दुस्थान पर मुगलों की ढीली होती पकड़ से बचने का एक राजनैतिक प्रयास की अकबर की इस कूटनीति से कुछ दिनों के लिए जन्मभूमि में रक्त नहीं बहा। यही क्रम शाहजहाँ के समय भी चलता रहा। फिर औरंगजेब के हाथ सत्ता आई वो कट्टर मुसलमान था और उसने समस्त भारत से काफिरों के सम्पूर्ण सफाये का संकल्प लिया था। उसने लगभग 10 बार अयोध्या मे मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलकर यहाँ के सभी प्रमुख मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ डाला। औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्री रामदास जी महाराज जी के शिष्य श्री वैष्णवदास जी ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों मे अयोध्या के आस पास के गांवों के सूर्यवंशीय क्षत्रियों ने पूर्ण सहयोग दिया जिनमे सराय के ठाकुर सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुँवर गोपाल सिंह तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे। ये सारे वीर ये जानते हुए भी की उनकी सेना और हथियार बादशाही सेना के सामने कुछ भी नहीं है अपने जीवन के आखिरी समय तक शाही सेना से लोहा लेते रहे। लम्बे समय तक चले इन युद्धों में रामलला को मुक्त कराने के लिए हजारों हिन्दू वीरों ने अपना बलिदान दिया और अयोध्या की धरती पर उनका रक्त बहता रहा। ठाकुर गजराज सिंह और उनके साथी क्षत्रियों के वंशज आज भी सराय मे मौजूद हैं। आज भी फैजाबाद जिले के आस पास के सूर्यवंशीय क्षत्रिय
सिर पर पगड़ी नहीं बांधते,जूता नहीं पहनते, छता नहीं लगाते, उन्होने अपने पूर्वजों के सामने ये प्रतिज्ञा ली थी की जब तक श्री राम जन्मभूमि का उद्धार नहीं कर लेंगे तब तक जूता नहीं पहनेंगे,छाता नहीं लगाएंगे, पगड़ी नहीं पहनेंगे। 1640 ईस्वी में औरंगजेब ने मन्दिर को ध्वस्त करने के लिए जबांज खाँ के नेतृत्व में एक जबरजस्त सेना भेज दी थी, बाबा वैष्णव दास के साथ साधुओं की एक सेना थी जो हर विद्या मे निपुण थी इसे चिमटाधारी साधुओं की सेना भी कहते थे । जब जन्मभूमि पर जबांज खाँ ने आक्रमण किया तो हिंदुओं के साथ चिमटाधारी साधुओं की सेना की सेना मिल गयी और उर्वशी कुंड नामक जगह पर जाबाज़ खाँ की सेना से सात दिनों तक भीषण युद्ध किया ।
चिमटाधारी साधुओं के चिमटे के मार से मुगलों की सेना भाग खड़ी हुई। इस प्रकार चबूतरे पर स्थित मंदिर की रक्षा हो गयी । जाबाज़ खाँ की पराजित सेना को देखकर औरंगजेब बहुत क्रोधित हुआ और उसने जाबाज़ खाँ को हटाकर एक अन्य सिपहसालार सैय्यद हसन अली को 50 हजार सैनिकों की सेना और तोपखाने के साथ अयोध्या की ओर भेजा और साथ मे ये आदेश दिया की अबकी बार जन्मभूमि को बर्बाद करके वापस आना है ,यह समय सन् 1680 का था । बाबा वैष्णव दास ने सिक्खों के गुरु गुरुगोविंद सिंह से युद्ध मे सहयोग के लिए पत्र के माध्यम संदेश भेजा । पत्र पाकर गुरु गुरुगोविंद सिंह सेना समेत तत्काल अयोध्या आ गए और ब्रहमकुंड पर
अपना डेरा डाला । ब्रहमकुंड वही जगह जहां आजकल गुरुगोविंद सिंह की स्मृति मे सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है। बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खों के गुरुगोविंद सिंह रामलला की रक्षा हेतु एकसाथ रणभूमि में कूद पड़े ।इन वीरों कें सुनियोजित हमलों से मुगलो की सेना के पाँव उखड़ गये सैय्यद हसन अली भी युद्ध मे मारा गया। औरंगजेब हिंदुओं की इस प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया था और इस युद्ध के बाद 4 साल तक उसने अयोध्या पर हमला करने की हिम्मत नहीं की। औरंगजेब ने सन् 1664 मे एक बार फिर श्री राम जन्मभूमि पर आक्रमण किया । इस
भीषण हमले में शाही फौज ने लगभग 10 हजार से ज्यादा हिंदुओं की हत्या कर दी नागरिकों तक को नहीं छोड़ा। जन्मभूमि हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गयी। जन्मभूमि के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप नाम का कुआं था, सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलों ने उसमे फेककर चारों ओर चहारदीवारी उठा कर उसे घेर दिया। आज भी कंदर्पकूप “गज शहीदा” के नाम से प्रसिद्ध है,और जन्मभूमि के पूर्वी द्वार पर स्थित है। शाही सेना ने जन्मभूमि का चबूतरा खोद डाला बहुत दिनो तक वह चबूतरा गड्ढे के रूप मे वहाँ स्थित था । औरंगजेब के क्रूर अत्याचारो की मारी हिन्दू जनता अब उस गड्ढे पर ही श्री रामनवमी के दिन भक्तिभाव से अक्षत,पुष्प और जल चढाती रहती थी. नबाब
सहादत अली के समय 1763 ईस्वी में जन्मभूमि के रक्षार्थ अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह और पिपरपुर के राजकुमार सिंह के नेतृत्व मे बाबरी ढांचे पर पुनः पाँच आक्रमण किये गये जिसमें हर बार हिन्दुओं की लाशें अयोध्या में गिरती रहीं। लखनऊ गजेटियर मे कर्नल हंट लिखता है की “ लगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नबाब ने हिंदुओं और
मुसलमानो को एक साथ नमाज पढ़ने और भजन करने की इजाजत दे दी पर सच्चा मुसलमान
होने के नाते उसने काफिरों को जमीन नहीं सौंपी। “लखनऊ गजेटियर पृष्ठ 62” नासिरुद्दीन हैदर के समय मे
मकरही के राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुनः अपने रूप मे लाने के लिए हिंदुओं के तीन आक्रमण हुये जिसमें
बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गये। परन्तु तीसरे आक्रमण में डटकर नबाबी सेना का सामना हुआ 8वें दिन हिंदुओं
की शक्ति क्षीण होने लगी ,जन्मभूमि के मैदान मे हिन्दुओं और मुसलमानो की लाशों का ढेर लग गया । इस संग्राम
मे भीती,हंसवर,,मकर ही,खजुरहट,दीयरा अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मलित थे। हारती हुई हिन्दू सेना के साथ वीर चिमटाधारी साधुओं की सेना आ मिली और इस युद्ध मे शाही सेना के चिथड़े उड गये और उसे रौंदते हुए हिंदुओं ने जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। मगर हर बार की तरह कुछ दिनो के बाद विशाल शाही सेना ने पुनः जन्मभूमि पर अधिकार कर लिया और हजारों हिन्दुओं को मार डाला गया। जन्मभूमि में हिन्दुओं का रक्त प्रवाहित होने लगा। नावाब वाजिदअली शाह के समय के समय मे पुनः हिंदुओं ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ आक्रमण किया । फैजाबाद गजेटियर में कनिंघम ने लिखा "इस संग्राम मे बहुत ही भयंकर खूनखराबा हुआ ।दो दिन और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं नें राम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। क्रुद्ध हिंदुओं की भीड़ ने कब्रें तोड़ फोड़ कर बर्बाद कर डाली मस्जिदों को मिसमार करने लगे और पूरी ताकत से मुसलमानों को मार-मार कर अयोध्या से खदेड़ना शुरू किया।मगर हिन्दू भीड़ ने मुसलमान स्त्रियों और बच्चों को कोई हानि नहीं पहुचाई। अयोध्या मे प्रलय मचा हुआ था ।
इतिहासकार कनिंघम लिखता है की ये अयोध्या का सबसे बड़ा हिन्दू मुस्लिम बलवा था। हिंदुओं ने अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस बनाया । चबूतरे पर तीन फीट ऊँची खस की टाट से एक छोटा सा मंदिर बनवा लिया ॥जिसमे पुनः रामलला की स्थापना की गयी। कुछ जेहादी मुल्लाओं को ये बात स्वीकार नहीं हुई और कालांतर में जन्मभूमि फिर हिन्दुओं के हाथों से निकल गयी। सन 1857 की क्रांति मे बहादुर शाह जफर के समय में बाबा रामचरण दास ने एक मौलवी आमिर अली के साथ जन्मभूमि के उद्धार का प्रयास किया पर 18 मार्च सन 1858 को कुबेर टीला स्थित एक इमली के पेड़ मे दोनों को एक साथ अंग्रेज़ो ने फांसी पर लटका दिया । जब अंग्रेज़ो ने ये देखा कि ये पेड़ भी देशभक्तों एवं रामभक्तों के लिए एक स्मारक के रूप मे विकसित हो रहा है तब उन्होने इस पेड़ को कटवा कर इस आखिरी निशानी को भी मिटा दिया...
इस प्रकार अंग्रेज़ो की कुटिल नीति के कारण रामजन्मभूमि के उद्धार का यह एकमात्र प्रयास विफल हो गया ...

 अन्तिम बलिदान ...
Image result for ram janmabhoomi
३० अक्टूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने वोट-बैंक के लालची मुलायम सिंह यादव के द्वारा खड़ी की गईं अनेक
बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया। लेकिन
२ नवम्बर १९९० को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें
सैकड़ों रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं। सरकार ने मृतकों की असली संख्या छिपायी परन्तु प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार सरयू तट रामभक्तों की लाशों से पट गया था। ४ अप्रैल १९९१ को कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दिया। लाखों राम भक्त ६ दिसम्बर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया। परन्तु हिन्दू समाज के अन्दर व्याप्त घोर संगठनहीनता एवं
नपुंसकता के कारण आज भी हिन्दुओं के सबसे बड़े आराध्य भगवान श्रीराम एक फटे हुए तम्बू में विराजमान हैं।
जिस जन्मभूमि के उद्धार के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना रक्त पानी की तरह बहाया। 
Image result for ram janmabhoomi
आज वही हिन्दू बेशर्मी से इसे "एक विवादित स्थल" कहता है। सदियों से हिन्दुओं के साथ रहने वाले मुसलमानों ने आज
भी जन्मभूमि पर अपना दावा नहीं छोड़ा है। वो यहाँ किसी भी हाल में मन्दिर नहीं बनने देना चाहते
हैं ताकि हिन्दू हमेशा कुढ़ता रहे और उन्हें नीचा दिखाया जा सके। जिस कौम ने अपने ही भाईयों की भावना को नहीं समझा वो सोचते हैं हिन्दू उनकी भावनाओं को समझे। आज तक किसी भी मुस्लिम संगठन ने जन्मभूमि के
उद्धार के लिए आवाज नहीं उठायी, प्रदर्शन नहीं किया और सरकार पर दबाव नहीं बनाया आज भी वे बाबरी-विध्वंस
की तारीख 6 दिसम्बर को काला दिन मानते हैं। और मूर्ख हिन्दू समझता है कि राम जन्मभूमि राजनीतिज्ञों और मुकदमों के कारण उलझा हुआ है।

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
भारत के खिलाफ इतना जहर क्यों उपजाता है जे एन यू ?

भारत के खिलाफ इतना जहर क्यों उपजाता है जे एन यू ?


Image result for prof nivedita menon

भारत के खिलाफ इतना जहर क्यों उपजाता है जे एन यू ?


संजय तिवारी 

जवाहर लाल नेहरू के नाम पर बने विश्वविद्यालय में ही भारत विरोधी बाते क्यों होती है ? उसी विश्वविद्यालय में भारत के मानचित्र को उलटा क्यों लटकाया जाता है ? उसी विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को यह किसने आज़ादी दे रखी है कि वे राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय संगोष्ठियों में जाकर भारत के खिलाफ जहर उगलें ? उन्हें भारत माता नहीं पसंद हैं , उन्हें राष्ट्रीय ध्वज नहीं पसंद है , उन्हें चरित्र नहीं पसंद है , उन्हें भारतीय होना नहीं पसंद है , फिर वे भारत के लोगो के कर से उपजी धनराशि को वेतन के रूप में क्यों लेते है ? उन्हें फिर जनता की मेहनत की कमाई का धन सरकार देती क्यों है ? इनको यह आज़ादी किसने दे राखी है की ये जब जहा चाहे देश को गालियां दे दें और कोई इनके खिलाफ कार्रवाई तक नहीं हो ? ऐसे संस्थान , जहा राष्ट्रविरोधी तत्व पाले पोसे  जा रहे हैं , ख़त्म क्यों नहीं कर दिए जाते ? 
इसी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग की प्रोफ़ेसर हैं नवोदिता मेनन। इनको प्रोफ़ेसर कहने में भी काम से काम मुझको तो शर्म ही आ रही है। इनके विचार और इनकी मंशा जानकार आपको भी जरूर घृणा हो जायेगी इनसे। ये इसी भारत के लोगो के खून  पसीने से कमाई गयी रकम में से दो ढाई लाख रुपये हर महीने लेकर देश के खिलाफ जहर बो रही हैं। 
Image result for prof nivedita menon








 प्रोफेसर निवोदिता मेनन ने जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में एक संगोष्ठी में देश की सेना, राष्ट्रीय ध्वज और भारता माता की तस्वीर के लिए इतनी विवादित बातें बोलीं कि यहां एकाएक माहौल गर्मा गया और आयोजक भी परेशान हो गए। जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी के कुलपति आर पी सिंह ने कहा, ‘‘हमने मेनन और सेमिनार के आयोजन सचिव राज श्री राणावत के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है । हमने एक जांच टीम का भी गठन किया है जो पूरे मामले की छानबीन करेगी।’’ छात्रों एवं एबीवीपी कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद यह कार्रवाई की गई निवेदिता मेनन को यहां अंग्रेजी विभाग की ओर से आयोजित एक संगोष्ठी में बुलाया गया था। जब प्रो. मेनन मंच पर आई तो उन्होंने खुद को देशविरोधी बताते हुए अपना परिचय दिया। उन्होंने अपने विषषय पर स्लाइड के साथ बोलना शुरू किया तो पीछे प्रोजेक्टर से देश का नक्शा उल्टा दिखाया जा रहा था। कुछ देर तो हॉल में मौजूद प्रतिभागियों ने सोचा कि शायद गलती से लग गया है लेकिन बाद में प्रो. मेनन ने कहा-'मेरे तो विभाग में भी उल्टा नक्शा लगा है। मुझे इस नक्शे में कोई भारत माता नजर नहीं आती है। रही बात नक्शे की, तो दुनिया गोल है और नक्शे को कैसे भी देखा जा सकता है। सेना के जवान देश सेवा के लिए नहीं, रोटी के लिए काम करते हैं। उन्हें सियाचीन में भेजकर क्यों मरवा रहे हैं। भारत माता की फोटो ये ही क्यों है। इसकी जगह दूसरी फोटो होनी चाहिए। भारत माता के हाथ में जो झंडा है, वह तिरंगा क्यों है। यह झंडा देश के आजाद होने के बाद का है, पहले ऐसा नहीं था। पहले इसमें चक्र नहीं था। मैं नहीं मानती इस भारत माता को।' लोगों ने आपत्ति भी ली उनकी बातें सुन कर हर कोई हैरान रह गया। इस पर वहां मौजूद इतिहास के रिटायर्ड प्रोफेसर एनके चतुर्वेदी ने आपत्ति जताते हुए कहा कि आपने देश को बहुत कोस लिया, अब अपना भाषषण समाप्त करें। बहस ब़़ढती देख आयोजकों ने टी ब्रेक की घोषषणा कर दी।  बाद में आयोजक डॉ. राजश्री राणावत ने सिंडिकेट सदस्य प्रो. चंद्रशेखर चौधरी को सफाई दी कि प्रो. मेनन ने ऐसी स्पीच के बारे में पहले ऐसा कुछ नहीं बताया था।
घी गेहूँ नहीं रोज़गार चाहिए साहब

घी गेहूँ नहीं रोज़गार चाहिए साहब

चुनाव आयोग द्वारा चुनाव से पहले आचार संहिता लागू कर दी जाती है। आज जब विभिन्न राजनैतिक दल इस प्रकार की घोषणा करके वोटरों को लुभाने की कोशिश करते हैं तो यह देश और लोकतंत्र दोनों के हित में है कि चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करे कि पार्टियाँ अपने चुनावी मेनिफेस्टो को पूरा करें और जो पार्टी सत्ता में आने के बावजूद अपने चुनावी मेनिफेस्टो को पूरा नहीं कर पाए वह अगली बार चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दी जाए।
 

घी गेहूँ नहीं रोज़गार चाहिए साहब
 डॉ नीलम महेंद्र

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और चुनाव किसी भी लोकतंत्र का महापर्व होते हैं ऐसा कहा जाता है। पता नहीं यह गर्व का विषय है या फिर विश्लेषण का कि हमारे देश में इन महापर्वों का आयोजन लगा ही रहता है । कभी लोकसभा  कभी विधानसभा तो कभी नगरपालिका के चुनाव। लेकिन अफसोस की बात है कि चुनाव अब नेताओं के लिए व्यापार बनते जा रहे हैं और राजनैतिक दलों के चुनावी मैनाफेस्टो व्यापारियों द्वारा अपने व्यापार के प्रोमोशन के लिए बाँटे जाने वाले पैम्पलेट !
और आज इन पैम्पलेट , माफ कीजिए चुनावी मैनिफेस्टो में  लैपटॉप स्मार्ट फोन जैसे इलेक्ट्रौनिक उपकरण  से  लेकर प्रेशर कुकर जैसे बुनियादी आवश्यकता की वस्तु बाँटने से शुरू होने वाली बात घी , गेहूँ और पेट्रोल  तक पंहुँच गई।
कब तक हमारे नेता गरीबी की आग को पेट्रोल और घी से बुझाते रहेंगे?
सबसे बड़ी बात यह कि यह मेनिफेस्टो उन पार्टीयों के हैं जो इस समय सत्ता में हैं।
राजनैतिक दलों की निर्लज्जता और इस देश के वोटर की बेबसी दोनों ही दुखदायी हैं। क्यों कोई इन नेताओं से नहीं पूछता कि  इन पांच सालों या फिर स्वतंत्रता के बाद इतने सालों के शासन में तुमने क्या किया?
उप्र की समाजवादी पार्टी हो या पंजाब का भाजपा अकाली दल गठबंधन दोनों को सत्ता में वापस आने के लिए या फिर अन्य पार्टियों को  राज्य के लोगों को आज इस प्रकार के प्रलोभन क्यों देने पड़ रहे हैं?
लेकिन बात जब पंजाब में लोगों को घी बाँटने की हो तो मसला बेहद गंभीर हो जाता है क्योंकि पंजाब का तो नाम सुनते ही जहन में हरे भरे लहलहाते फसलों से भरे खेत उभरने लगते हैं और घरों के आँगन में बँधी गाय भैंसों के साथ खेलते खिलखिलाते बच्चे  दिखने से लगते हैं। फिर वो पंजाब जिसके घर घर में दूध दही की नदियाँ बहती थीं , वो पंजाब जो अपनी मेहमान नवाज़ी के लिए जाना जाता था जो अपने घर आने वाले मेहमान को दूध दही घी से ही पूछता था आज  उस पंजाब के वोटर को उन्हीं चीजों को सरकार द्वारा मुफ्त में देने की स्थिति क्यों और कैसे आ गई?
सवाल तो बहुत हैं पर शायद जवाब किसी के पास भी नहीं।
जब हमारा देश आजाद हुआ था तब भारत पर कोई कर्ज नहीं था तो आज इस देश के हर नागरिक पर औसतन 45000 से ज्यादा का कर्ज क्यों है?
जब अंग्रेज हम पर शासन करते थे तो भारतीय रुपया डालर के बराबर था तो आज वह 68.08 रुपए के स्तर पर कैसे आ गया?
हमारा देश कृषी प्रधान देश है तो स्वतंत्रता के इतने सालों बाद भी आजतक  किसानों को 24 घंटे बिजली एक चुनावी वादा भर क्यों है?
चुनाव दर चुनाव पार्टी दर पार्टी वही वादे क्यों दोहराए जाते हैं?
क्यों आज 70 सालों बाद भी पीने का स्वच्छ पानी,  गरीबी और बेरोजगारी जैसे बुनियादी जरूरतें ही मैनिफेस्टो का हिस्सा हैं?
हमारा देश इन बुनियादी आवश्यकताओं से आगे क्यों नहीं जा पाया?
और क्यों हमारी पार्टियाँ रोजगार के अवसर पैदा करके हमारे युवाओं को स्वावलंबी बनाने से अधिक मुफ्त चीजों के प्रलोभन देने में विश्वास करती हैं?
यह वाकई में एक गंभीर मसला है कि जो वादे राजनैतिक पार्टियाँ अपने मैनिफेस्टो में करती हैं वे चुनावों में वोटरों को लुभाकर वोट बटोरने तक ही क्यों सीमित रहते हैं।चुनाव जीतने के बाद ये पार्टियाँ अपने मैनिफेस्टो को लागू करने के प्रति कभी भी गंभीर नहीं होती और यदि उनसे उनके मैनिफेस्टो में किए गए वादों के बारे में पूछा जाता है तो सत्ता के नशे में अपने ही वादों को  'चुनावी जुमले ' कह देती हैं।
इस सब में समझने वाली बात यह है कि वे अपने मैनिफेस्टो को नहीं बल्कि अपने वोटर को हल्के में लेती हैं।
आम आदमी तो लाचार है चुने तो चुने किसे आखिर में सभी तो एक से हैं। उसने तो अलग अलग पार्टी   को चुन कर भी देख लिया लेकिन सरकारें भले ही बदल गईं मुद्दे वही रहे।
पार्टी और नेता दोनों  ही लगातार तरक्की करते गए लेकिन वो सालों से वहीं के वहीं खड़ा है। क्योंकि बात सत्ता धारियों द्वारा भ्रष्टाचार तक ही सीमित नहीं है बल्कि सत्ता पर काबिज होने के लिए दिखाए जाने वाले सपनों की है।
मुद्दा वादों  को हकीकत में बदलने का सपना दिखाना नहीं उन्हें सपना ही रहने देना है।
चुनाव आयोग द्वारा चुनाव से पहले आचार संहिता लागू कर दी जाती है। आज जब विभिन्न राजनैतिक दल इस प्रकार की घोषणा करके वोटरों को लुभाने की कोशिश करते हैं तो यह देश और लोकतंत्र दोनों के हित में है कि चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करे कि पार्टियाँ अपने चुनावी मेनिफेस्टो को पूरा करें और जो पार्टी सत्ता में आने के बावजूद अपने चुनावी मेनिफेस्टो को पूरा नहीं कर पाए वह अगली बार चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दी जाए।
जब तक इन राजनैतिक दलों की जवाबदेही अपने खुद के मेनीफेस्टो के प्रति तय नहीं की जाएगी हमारे नेता भारतीय राजनीति को किस स्तर तक ले जाएंगे इसकी कल्पना की जा सकती है। इस लिए चुनावी आचार संहिता में आज के परिप्रेक्ष्य में कुछ नए कानून जोड़ना अनिवार्य सा दिख रहा है।
यह हैं असली नायिकाएँ

यह हैं असली नायिकाएँ

रानी पद्मावती एक काल्पनिक पात्र है लेकिन भंसाली शायद यह भी भूल गए कि काल्पनिक होने के बावजूद रानी पद्मावति एक भारतीय  रानी थी जो किसी भी सूरत में स्वप्न में भी  किसी क्रूर मुस्लिम आक्रमण कारी पर मोहित हो ही नहीं सकती थी।

यह हैं असली नायिकाएँ

डॅा नीलम महेंद्र
भंसाली का कहना है कि पद्मावती एक काल्पनिक पात्र है ।इतिहास की अगर बात की जाए तो  राजपूताना इतिहास में चित्तौड़ की  रानी पद्मिनी का नाम बहुत ही आदर और मान सम्मान के साथ लिया जाता है।
भारतीय इतिहास में कुछ औरतें आज भी वीरता और सतीत्व की मिसाल हैं जैसे सीता द्रौपदी संयोगिता और पद्मिनी। यह चारों नाम केवल हमारी जुबान पर नहीं आते बल्कि इनका नाम लेते ही जहन में इनका चरित्र कल्पना के साथ जीवंत हो उठते है।
रानी पद्मिनी का नाम सुनते ही एक ऐसी खूबसूरत वीर राजपूताना नारी की तस्वीर दिल में उतर आती है जो चित्तौड़ की आन बान और शान के लिए 16000 राजपूत स्त्रियों के साथ  जौहर में कूद गई थीं। आज भी रानी पद्मिनी और जौहर दोनों एक दूसरे के पर्याय से लगते हैं। इतिहास गवाह है कि जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के महल में प्रवेश किया था तो वो जीत कर भी हार चुका था क्योंकि एक तरफ रानी पद्मिनी को जीवित तो क्या मरने के बाद भी वो हाथ न लगा सका ।
Image result
लेकिन भंसाली तो रानी पद्मिनी नहीं पद्मावती पर फिल्म बना रहे हैं । बेशक उनके कहे अनुसार वो एक काल्पनिक पात्र हो सकता है लेकिन जिस काल खण्ड को वह अपनी फिल्म में दिखा रहे हैं वो कोई कल्पना नहीं है। जिस चित्तौड़ की वो बात कर रहे हैं वो आज भी इसी नाम से जाना जाता है। जिस राजा रतनसिंह की पत्नी के रूप में रानी पद्मावती की  " काल्पनिक कहानी" वे दिखा रहे हैं वो राजा रतन सिंह कोई कल्पना नहीं हमारे इतिहास के वीर योद्धा हैं। और 'लास्ट बट नौट द लीस्ट ' जो अलाउद्दीन खिलजी आपकी इस फिल्म में पद्मावती पर फिदा है उसके नाम भारतीय इतिहास का सबसे काला पन्ना और खुद मुग़ल इतिहास में सबसे क्रूर शासक के नाम से दर्ज है।
तो सोचने वाली बात यह है कि यह कैसी काल्पनिक कहानी है जिसका केवल ' एक ' ही पात्र काल्पनिक है ? कोई भी कहानी या तो कल्पना होती है या सत्य घटना पर आधारित होती है । भंसाली शायद भूल रहे हैं कि  यदि अतीत की किसी सत्य घटना में किसी कल्पना को जोड़ा जाता है तो इसी को  'तथ्यों को गलत तरीके से पेश करना ' या फिर 'इतिहास से छेड़छाड़ करना ' कहा जाता है।
चलो मान लिया जाए कि रानी पद्मावती एक काल्पनिक पात्र है लेकिन भंसाली शायद यह भी भूल गए कि काल्पनिक होने के बावजूद रानी पद्मावति एक भारतीय  रानी थी जो किसी भी सूरत में स्वप्न में भी  किसी क्रूर मुस्लिम आक्रमण कारी पर मोहित हो ही नहीं सकती थी।
हमारे इतिहास की यह स्त्रियाँ ही हर भारतीय नारी की आइकान हैं । रानी पद्मिनी जैसी रानियाँ किसी पटकथा का पात्र नहीं असली नायिकाएँ हैं , वे किवदन्तियाँ नहीं हैं आज भी हर भारतीय नारी में जीवित हैं।
कई सच छुपाए गए तो कई अधूरे बताए गए

कई सच छुपाए गए तो कई अधूरे बताए गए

जिस स्वतंत्रता को अहिंसा से प्राप्त करने का दावा किया जाता है उसमें 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा ' का नारा देकर आजाद हिन्द फौज से अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजाने वाले नेताजी को इतिहास में अपेक्षित स्थान मिलने का आज भी इंतजार है।
.

कई सच छुपाए गए तो कई अधूरे बताए गए
 डॉ नीलम महेंद्र

अपनी आजादी की कीमत तो हमने भी चुकाई है
तुम जैसे अनेक वीरों को खो के जो यह पाई है।

कहने को तो हमारे देश को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली थी लेकिन क्या यह पूर्ण स्वतंत्रता थी?
स्वराज तो हमने हासिल कर लिया था लेकिन उसे ' सुराज ' नहीं बना पाए ।
क्या कारण है कि हम आज तक आजाद नहीं हो पाए सत्ता धारियों की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं से जिनकी कीमत आज तक पूरा देश चुका रहा है?
आजादी के समय से  ही नेताओं द्वारा अपने निजी स्वार्थों को राष्ट्र हित से ऊपर रखा जाने का जो सिलसिला आरंभ हुआ था वो आज तक जारी है।
राजनीति के इस खेल में न सिर्फ इतिहास को तोड़ा मरोड़ा गया बल्कि कई सच छुपाए गए तो कई अधूरे बताए गए।
22 अगस्त 1945, जब टोक्यो रेडियो से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 18 अगस्त, ताइवान में एक प्लेन क्रैश में मारे जाने की घोषणा हुई , तब से लेकर आज तक उनकी मौत इस देश की अब तक की सबसे बड़ी अनसुलझी पहेली बनी हुई है।
किन्तु महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि मृत्यु के लगभग 70 सालों बाद भी यह एक रहस्य है या फिर किसी स्वार्थ वश इसे रहस्य बनाया गया है ?
उनकी 119 वीं जयन्ति पर जब मोदी सरकार ने जनवरी2016 में उनसे जुड़ी गोपनीय फाइलों को देश के सामने रखा, ऐसी उम्मीद थी कि अब शायद रहस्य से पर्दा उठ जाएगा लेकिन रहस्य बरकरार है।
यह अजीब सी बात है कि उनकी मौत की जांच के लिए 1956 में शाहनवाज समिति और 1970 में खोसला समिति दोनों के ही अनुसार नेताजी उक्त विमान दुर्घटना में मारे गये थे  इसके बावजूद उनके परिवार की जासूसी  कराई जा रही थी क्यों?
जबकि 2005 में गठित मुखर्जी आयोग ने ताइवान सरकार की ओर से बताया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई विमान दुर्घटना हुई ही नहीं थी !जब दुर्घटना ही नहीं तो मौत कैसी ?
उन्हें 1945 के बाद भी उन्हें रूस और लाल चीन में देखे जाने की बातें पहली दो जांच रिपोर्टों पर प्रश्न चिह्न लगाती हैं।
इस देश का वो स्वतंत्रता सेनानी जिसके जिक्र के बिना स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अधूरा है वो  किसी गुमनाम मौत का हकदार कदापि नहीं था।
इस देश को हक है उनके विषय में सच जानने का, एक ऐसा वीर योद्धा  जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों की नाक में जीते जी ही नहीं बल्कि अपनी मौत की खबर के बाद भी दम करके रखा था ।
उनकी मौत की खबर पर न सिर्फ अंग्रेज बल्कि खुद नेहरू को भी यकीन नहीं था जिसका पता उस पत्र से चलता है जो उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली को लिखा था, 27 दिसंबर 1945  कथित दुर्घटना के चार महीने बाद। खेद का विषय यह है कि इस चिठ्ठी में नेहरू ने भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी को ब्रिटेन का 'युद्ध बंदी ' कह कर संबोधित किया, हालांकि कांग्रेस द्वारा इस प्रकार के किसी भी पत्र का खंडन किया गया है।
नेताजी की प्रपौत्री राज्यश्री चौधरी का कहना है कि अगर मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट बिना सम्पादित करे सामने रख दी जाए तो सच सामने आ जाएगा ।
बहरहाल फाइलें तो खुल गईं हैं सच सामने आने का इंतजार है।
जिस स्वतंत्रता को अहिंसा से प्राप्त करने का दावा किया जाता है उसमें 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा ' का नारा देकर आजाद हिन्द फौज से अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजाने वाले नेताजी को इतिहास में अपेक्षित स्थान मिलने का आज भी इंतजार है।
मात्र 15 वर्ष की आयु में  सम्पूर्ण विवेकानन्द साहित्य पढ़ लेने के कारण उनका व्यक्तित्व न सिर्फ ओजपूर्ण था अपितु राष्ट्र भक्ति से ओत प्रोत भी था। यही कारण था कि अपने पिता की इच्छा के विपरीत आईसीएस में चयन होने के बावजूद उन्होंने देश सेवा को चुना और भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने की कठिन डगर पर चल पड़े। उन्हें अपने इस फैसले पर आशीर्वाद मिला अपनी माँ प्रभावति के उस पत्र द्वारा जिसमें उन्होंने लिखा  " पिता, परिवार के लोग या अन्य कोई कुछ भी कहे मुझे अपने बेटे के इस फैसले पर गर्व है  "।
20 जुलाई 1921 को गाँधी जी से वे पहली बार मिले और शुरू हुआ उनका यह सफर जिसमें लगभग 11 बार अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कारावास में डाला।
कारावास से बाहर रहते हुए अपनी वेश बदलने की कला की बदौलत अनेकों बार अंग्रेजों की नाक के नीचे से फरार भी हुए।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 1938 में जिन गाँधी जी ने नेता जी को काँग्रेस का अध्यक्ष बनाया , उनकी कार्यशैली और विचारधारा से असन्तोष के चलते आगे चलकर उन्हीं गाँधी जी का विरोध नेता जी को सहना पड़ा ।
लेकिन उनके करिश्माई व्यक्तित्व के आगे गाँधी जी की एक न चली।
किस्सा कुछ यूँ है कि गाँधी जी नेता जी को अध्यक्ष पद से हटाना चाहते थे लेकिन कांग्रेस में कोई नेताजी को हटाने को तैयार नहीं था तो बरसों बाद कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ। गाँधी जी ने नेहरू का नाम अध्यक्ष पद के लिए आगे किया किन्तु हवा के रुख को भाँपते हुए नेहरू जी ने मौलाना आजाद का नाम आगे कर दिया । मौलाना ने भी हार के डर से अपना नाम वापस ले लिया । अब गाँधी जी ने पट्टाभि सीतारमैया का नाम आगे किया। सब जानते थे कि गाँधी जी सीतारमैया के साथ हैं इसके बावजूद नेता जी को 1580 मत मिले और गाँधी जी के विरोध के बावजूद सुभाष चन्द्र बोस 203 मतों से विजयी हुए। लेकिन जब आहत गाँधी जी ने इसे अपनी 'व्यक्तिगत हार' करार दिया तो नेताजी ने अपना स्तीफा दे दिया और अपनी राह पर आगे बढ़ गए।
यह उनका बड़प्पन ही था कि 6 जुलाई 1944 को आजाद हिन्द रेडियो पर आजाद हिन्द फौज की स्थापना एवं उसके उद्देश्य की घोषणा करते हुए गाँधी जी को राष्ट्र पिता सम्बोधित करते हुए न सिर्फ उनसे आशीर्वाद माँगा किन्तु उनके द्वारा किया गया अपमान भुलाकर उनको सम्मान दिया।
बेहद अफसोस की बात है कि अपने विरोधियों को भी सम्मान देने वाले नेताजी अपने ही देश में राजनीति का शिकार बनाए गए लेकिन फिर भी उन्होंने आखिर तक हार नहीं मानी।
वो नेताजी जो अंग्रेजों के अन्याय के विरुद्ध अपने देश को न्याय दिलाने के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़े उनकी आत्मा आज स्वयं के लिए न्याय के इंतजार में हैं ।
ऐसे महानायकों के लिए ही कहा जाता है कि धन्य है वो धरती जिस पर तूने जन्म लिया, धन्य है वो माँ जिसने तुझे जन्म दिया।
मायावती को मोदी के मुकाबले खड़ा कर रहा पाकिस्तान

मायावती को मोदी के मुकाबले खड़ा कर रहा पाकिस्तान

मायावती को मोदी के मुकाबले खड़ा कर रहा पाकिस्तान 

संजय तिवारी 
उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए मायावती को पूरी ताकत से पकिस्तान ने अपना समर्थन करना शुरू कर दिया है। पकिस्तान को लगता है कि एक मायावती ही है जो मोदी को जवाब दे सकती हैं। इसके लिए मोदी के बारे में मीडिया में खूब जहर उगला जा रहा है और कहा जा रहा है कि मोदी चुनाव जीतने के लिए पकिस्तान पर हमला कर सकता है। इस बात के प्रमाण के रूप में पाकिस्तानी चैनलो पर मायावती के एक भाषण के अंश दिखाए जा रहे हैं जिसमे वह मुसलमानो को डरा  रही हैं और कह रही हैं कि चुनाव जीतने के लिए नरेंद्र मोदी कुछ भी कर सकते हैं ,यहाँ तक कि फसाद और पाकिस्तान पर हमला भी कर सकते हैं। 
मायावती को लेकर चल रही एक बहस में मायावती को वास्तविक हीरो कहते हुए तनवीर नाम के एक पैनलिस्ट का कहना है कि मायावती आजकल मोदी को खूब आइना दिखा रही हैं और जब उनके जैसा जिम्मेदार नेता कह रहा है कि मोदी किसी भी हद तक गिर सकते हैं तो इस पर सभी को गंभीरता से सोचना होगा क्यों कि मायावती को विकीलीक्स भी प्रधानमंत्री के दावेदार के रूप में देखता है। मायावती के पास अति दलितों के भारी समर्तन और उसमे मुसलमानो का साथ मिल जाने पर वह मोदी के लिए सटीक जवाब बन जाएँगी। 
इसी चैनल पर इसी बहस में एक हिलाली साहब हैं जो मोदी को जहरीला बता कर कहते हैं कि मोदी ने पाकिस्तान पर हमले की योजना की शुरुआत भी कर दी है। वह कहते हैं की टू  सीटर हेलीकॉप्टर वाला विवाद मोदी बढ़ाना चाहते हैं और अपने चुनाव में पाकिस्तान को अर्दब में लेकर लाभ लेना चाहते है।  दिल्ली यह तक कहते नहीं चूकते की मोदी जाहिल, अनपढ़ और चाय बेचने वाला आदमी है , उसके मुकाबले मायावती बहुत ही समझदार और अक्लमंद है। इन बहसों में यह बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानो की हालात बहुत बुरी है और केवल मायावती जैसा लीडर ही कुछ कर सकता है। जिस चैनल पर बहस प्रसारित हो रही है उसमे से एक का लिंक इस प्रकार है -


https://www.youtube.com/watch?v=CVTzB-8jEVw


 इसी बीच मायावती ने उत्तर प्रदेश में अपनी  चुनावी सभाओं का आगाज करते हुए दलित-मुस्लिम मतदाताओं को ही रिझाने की कोशिश की। भाजपा का खूब भय दिखाते हुए कहा कि मुसलमान बंटे तो भाजपा को ही इसका फायदा होगा। दलितों को चेताया कि भाजपा सत्ता में आ गयी तो आरक्षण खत्म कर देगी। सत्ता में आने पर सपा के कार्यकाल में हुई पुलिस भर्ती की जांच का भी उन्होंने ऐलान किया। बसपा अध्यक्ष ने आज दो चुनावी सभाएं कीं। पहली मेरठ, दूसरी अलीगढ़ में। तीन तलाक और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी व जामिया मिलिया इस्लामिया के अल्पसंख्यक स्वरूप में मोदी सरकार की कथित दखलंदाजी का भी जिक्र किया। समझाया कि सपा अखिलेश व शिवपाल के खेमों में बंट चुकी है। दोनों एक-दूसरे को हराने में जुटे हैं। इससे आपका वोट भी दो खेमों में बंटा तो भाजपा को ही फायदा पहुंचेगा। इन्हें सत्ता मिली तो आरएसएस के एजेंडे पर चलते हुए आरक्षण खत्म कर देंगे। इन्हें सिर्फ बसपा ही रोक सकती है। उन्होंने कहा कि अच्छे दिन वालों के चुनाव बाद बुरे दिन आएंगे। उन्होंने आर्थिक आधार पर मुस्लिमों व गरीबों को आरक्षण देने की बात कही और गेंद भी केंद्र के पाले में खिसका दी। सत्ता में आने पर बेकसूर मुसलमानों की रिहाई का वादा भी किया।
अलीगढ़ के नुमाइश मैदान में करीब 45 मिनट के संबोधन में माया ने सर्वाधिक भाजपा को ही कोसा। कहा, मोदी सरकार ने कालाधन, भ्रष्टाचार व राष्ट्रवाद के नाम पर धन्नासेठों को मालामाल कर दिया। पूरे देश में चर्चा है कि नोटबंदी से 10 महीने पहले ही भाजपा नेताओं व धन्नासेठों का कालाधन ठिकाने लगा दिया गया। अब ध्यान बांटने के लिए संस्कृति, राष्ट्रवाद, सर्जिकल स्ट्राइक व परिवर्तन यात्रा का नाटक कर रहे हैं। गुमराह करने के लिए बाबा साहब के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं। मूर्तियों व स्मारकों से मिली आलोचना से सबक लेते हुए माया ने कहा कि ये काम पूरे हो गए, अब सिर्फ विकास पर फोकस रहेगा। उन्होंने किसानों-मजदूरों का एक लाख तक का कर्ज माफ करने, लैपटॉप की बजाय नकद राशि देने, स्कूलों में दूध, केक, अंडा व बिस्किट बांटने, गरीबों को जमीन के पïट्टे देने जैसे वादे किए। दावा किया कि मेट्रो रेल व गंगा हाईवे का काम उन्हीं की सरकार में शुरू हुआ था। इससे पहले मेरठ की जन चेतना रैली में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा के परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक में मायावती ने सेंधमारी की कोशिश की। यहां भी मुसलमानों को भाजपा के सत्ता में आने का खौफ दिखाया। कहा कि मुस्लिमों का हित और सम्मान बसपा में है। सपा अखिलेश व शिवपाल के खेमों में बंट गई है। दोनों एक-दूसरे को हराने में जुटे हैं। उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की उपेक्षा और पलायन के लिए कांग्रेस और सपा को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि सत्ता में आए तो सपा के दौर में हुई पुलिसभर्तियों की जांच की जाएगी। पुलिस भर्तियां की जाएंगी पर इनमें भ्रष्टाचार नहीं होगा। बसपा सुप्रीमो ने पर बजट के जरिए चुनावी लाभ लेने का आरोप लगाया। कहा कि मुजफ्फरनगर, दादरी, मथुरा समेत 500 दंगे सपा के कार्यकाल में हुए। मुलायम सिंह ने पुत्र मोह में शिवपाल यादव को अपमानित कराया। अब शिवपाल समर्थक ही सीएम को सबक सिखाएंगे।