विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी सरकार


 विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी सरकार

संजय तिवारी 
अध्यक्ष भारत संस्कृति न्यास , नयी दिल्ली 
9450887186 

विपक्ष के लोग यद्यपि मोदी की यात्राओ पर तरह तरह की टिप्पणियां करते है लेकिन इन यात्राओ की अनगिनत उपलब्धियों के कारण ही आज दुनिया जिस तरह से भारत की तरफ देख रही है वह ऐतिहासिक है। कुछ पंडित भारत के इस स्वरुप में इस विदेश नीति को आक्रामक होने की बात कहते है लेकिन यह समय के साथ होने वाली स्पर्धा है जिसमे हमारे प्रधानमंत्री को यह सब करना पड़ा है , इससे इनकार नहीं किया जा सकता। अब जबकि मोदी के सत्ता में आये तीन वर्ष पूरे होने जा रहे है तथा अंग्रेजी कैलेंडर में वर्ष बदलने जा रहा है , भारत की विदेश नीति को लेकर चर्चाये होना स्वाभाविक है। क्योकि इसी दौर में दुनिया एक नए तरह के वातावरण में प्रवेश कर रही है। अमेरिका सहित दुनिया के कई देशो में दक्षिणपंथ का उदय हो रहा है। वैश्वीकरण पर संकट के बादल हैं और दुनिया नयी परिभाषाओ के साथ सामने आकार ले रही है। ऐसे में विवेचना दोनों की ही होनी चाहिए - इतिहास की भी और वर्त्तमान से जुड़े भविष्य की भी।  एक तरह से देखने पर नरेंद्र मोदी की विदेश नीति भारत को अधिक प्रतिस्पर्धी, विशस्त और सुरक्षित देश के रूप में नए सिरे से तैयार करने में सक्षम प्रतीत होती है । यद्यपि मजबूत विदेश नीति की बुनियाद मजबूत घरेलू नीति ही होती है | वह भारत ,जहाँ सम्पूर्ण विश्व का छठवा भाग निवास करता है, हमेशा  अपनी शक्ति से बहुत कम प्रहांर करता है । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह नियम-निर्माता नहीं नियम मानने वाला देश रहा है। 

सुखी और शांत पडोसी 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की विदेश नीति में सुखी और शांत पडोसी बनाने की पहल सबसे बड़ी ताकत है। मोदी ने अपने शपथग्रहण के दिन से ही इसकी शुरुआत कर दी थी जिसे 5 मई को कर के भी दिखा दिया। यह अलग बात है कि इस दिशा में पकिस्तान एक नासूर ही बन कर सामने आता रहा है। पकिस्तान को छोड़ दीजिये तो आज हम यह कह सकने की स्थिति में हैं कि समूचा दक्षिण एशिया आज एक कुटुंब के रूप में उभर कर सामने आया है जो मोदी की नीतियों की सबसे बड़ी विजय है। इस बात को दक्षिण एशिया के सभी देशो ने भी स्वीकार किया है।
इसरों की तरफ से दक्षिण एशिया संचार उपग्रह जीसेट-9 को लांच करने के बाद दक्षिण एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भारत को शुक्रगुजार मानते हुए कहा  कि भारत के इस कदम से क्षेत्रीय देशों का आपसी संपर्क बढ़ेगा। सैटेलाइट में उपग्रह छोड़े जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यह लांच इस बात को प्रमाणित करता है कि जब क्षेत्रीय सहयोग की बात हो तो आसमान में कोई सीमा नहीं होती है। पीएम ने कहा कि क्षेत्रीय जरूरतों के हिसाब से इसरो की टीम ने दक्षिण एशिया सैटेलाइट का निर्माण किया। मोदी ने आगे कहा कि इस लांचिंग के मौके पर मुझसे जुड़ने के लिए अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भुटान, नेपाल, मालदीव और श्रीलंका के अपने सहयोगी नेताओं का शुक्रिया करता हूं। मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने कहा कि सैटेलाइट का लांच होना पहले पड़ोसी की भारत की नीति को जाहिर करता है। जबकि, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना ने इसे ऐतिहासिक मौका बताते हुए पीएम मोदी को बधाई देते दी। उन्होंने कहा कि सार्क देशों के बीच समन्वय की दूरदृष्टि और मधुर संबंधों के महत्व को जाहिर करता है। मैत्रिपाला ने आगे कहा कि यह ऐसा कदम है जो सभी क्षेत्रों में लोगों की मदद करेगा, आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी और गरीबी को उन्मूलन में कारगर साबित होगा। भूटान के प्रधानमंत्री सेरीन टोबगे ने कहा कि इस सैटेलाइट के लांच करने के बाद आपसी क्षेत्रीय सहयोग बढ़ेगा और क्षेत्र की प्रगति होगी। तो वहीं, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत सरकार को बधाई देते हुए आशा जताई है कि यह कदम क्षेत्र में आपसी सहयोग का नया द्वार खोलेगा।
 दुनिया में एक मिशन के तहत सबसे अधिक सैटेलाइट्स की सफल लॉन्चिंग के बाद भारत दक्षिण एशियाई देशों के लिए GSAT-9 को अंतरिक्ष में भेज दिया। इस क्षेत्र के देशों के लिए यह काफी अहम उपहार है। बदलते दौर में अपने पड़ोसियों से संबंधों को मजबूत करने के लिए भी यह सैटेलाइट काफी अहम भूमिका निभाएगा। नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका के लिए भारत का यह उपहार कई मायनों में अहम इसलिए भी है क्‍योंकि इन देशों का अपना या तो कोई सैटेलाइट है ही नहीं या फिर उससे मिलने वाली सेवाएं इतनी खास नहीं हैं। इस सैटेलाइट लॉन्चिंग से जुड़ी एक अहम बात यह भी है कि इस सैटेलाइट की सेवाओं के लिए भारत ने किसी भी अन्‍य देश से कोई राशि नहीं ली है। इसका अर्थ है कि इस क्षेत्र के सभी देश इस सैटेलाइट से मिलने वाली जानकारियों को अपने हित के लिए इस्‍तेमाल कर सकेंगे। हालांकि पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान ने इसमें भागीदार नहीं है। अपनी 11वीं उड़ान के ज़रिए जीएसएलवी रॉकेट एक खास उपग्रह साउथ एशिया सैटलाइट को अंतरिक्ष में अपनी कक्षा में स्थापित करेग। यह नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, श्रीलंका को दूरसंचार की सुविधाएं मुहैया कराएगा। इसके ज़रिए सभी सहयोगी देश अपने-अपने टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण कर सकेंगे। किसी भी आपदा के दौरान उनकी संचार सुविधाएं बेहतर होंगी। इससे देशों के बीच हॉट लाइन की सुविधा दी जा सकेगी और टेली मेडिसिन सुविधाओं को भी बढ़ावा मिलेगा। 

अरब देशों से रिश्ते बेहतर करने की पहल

पश्चिम एशियाई देशों से भारत की बढ़ती नजदीकी बहुत ज्यादा सुर्खियां नहीं बटोर रही है. मगर मोदी सरकार का अरब देशों से ताल्लुक बेहतर करने का मिशन कई लोगों को पसंद आया है.कई जानकारों को लगता है कि, अरब मुल्कों से नजदीकी बढ़ाने से घरेलू मोर्चे पर मोदी सरकार ये संदेश भी देने में कामयाब होगी कि वह धर्मनिरपेक्ष है.
प्रधानमंत्री मोदी का इरादा विदेश नीति में पश्चिमी एशियाई देशों को अहमियत देने का है. उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ईरान, इराक और कतर के अलावा फिलिस्तीन से ताल्लुक बेहतर करने पर जोर दिया है.
हालांकि, इन नीतियों से भारत अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर संदेश देना चाह रहा है. मगर इसका घरेलू राजनीति पर भी असर होगा. भारत में 14 करोड़ मुसलमान रहते हैं, जो दुनिया के किसी देश में मुसलमानों की दूसरी सबसे ज्यादा आबादी है.
प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक और विदेश नीति में काफी दिलचस्पी है. अरब देशों के साथ संबंध बेहतर करके वो मुस्लिम देशों के बीच पाकिस्तान के असर को भी कम करना चाह रहे हैं. ताकि भारत के साथ विवाद में इन देशों का पाकिस्तान को मिल रहा समर्थन कमजोर हो. बहुत से लोग पीएम मोदी की इस नीति के समर्थक हैं. सूत्रों के मुताबिक, मोरक्को की राजधानी रबात से कुछ जानकारियां ऐसी मिली हैं कि आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा मोरक्को की जमीन का इस्तेमाल अपनी गतिविधियों के लिए कर रहे हैं.

मोरक्को से गुजारिश

 भारत पिछले 10 साल से मोरक्को से गुजारिश कर रहा था कि वो अपने देश में लश्कर की गतिविधियों की जानकारी साझा करे. मगर भारत की अपील अनसुनी कर दी जा रही थी. अब हालात बदल रहे हैं.मोदी की मुस्लिम देशों से संबंध बढ़ाने की इस नीति के पीछे हैं विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर. अकबर सीरिया, इराक और फिलिस्तीन का दौरा कर चुके हैं, ताकि इन देशों से भारत के रिश्तों को नए सिरे से गढ़ा जा सके. सरकार मुस्लिम देशों से ताल्लुक बेहतर करने पर बहुत जोर दे रही है. इसी का नतीजा था कि इस बार गणतंत्र दिवस की परेड में संयुक्त अरब अमीरात के शहजादे शेख मोहम्मद बिन जायद अल नहयान को मुख्य अतिथि बनाया गया था.इस एक कदम से भारत ने ये साफ कर दिया है कि वो खाड़ी देशों से अपने रिश्तों को नई दशा-दिशा देना चाहता है. सूत्रों ने कहा कि, पूर्व प्रधानमंत्री कई बार अमेरिका गए मगर उन्होंने सिर्फ एक बार संयुक्त अरब अमीरात का दौरा किया जबकि, वहां बीस लाख से ज्यादा भारतीय रहते हैं. मोदी सरकार का ये कदम घरेलू राजनीति के लिहाज से भी कारगर है. संयुक्त अरब अमीरात के युवराज शेख मोहम्मद बिन जायद अल नहयान सरकार के मुखिया नहीं हैं. लेकिन वो संयुक्त अरब अमीरात के नेताओं की नई पीढ़ी की नुमाइंदगी करते हैं.
नहयान खाड़ी देश में बेहद लोकप्रिय हैं. उनकी वजह से संयुक्त अरब अमीरात और भारत की सुरक्षा एजेंसियों के बीच तालमेल बढ़ा है. पूर्व राजनयिक हरदीप पुरी कहते हैं कि ये भारत के लिए फायदे की बात है. हरदीप पुरी के मुताबिक ऐसे कदम से भारतीय मुसलमानों के बीच भी अच्छा संदेश जाता है.

संयुक्त अरब अमीरात से उम्मीदें

 भारत के मुसलमान मानसिक सहयोग के लिए संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब की तरफ उम्मीद भरी निगाह से देखते हैं. मोदी सरकार खाड़ी देशों से ताल्लुक पर जोर देकर भारतीय मुसलमानों के बीच अच्छा संदेश दे सकते हैं. साथ ही इससे इन देशों में पाकिस्तान का असर कम करने में भी आसानी होगी.शेख जायद अल-नहयान के दौरे से भारत को खाड़ी देशों में ब्रांड इंडिया को मजबूत करने में मदद मिलेगी. संयुक्त अरब अमीरात को भारत के निर्यात का दूसरा बड़ा हिस्सा जाता है, साथ ही संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा बड़ा कारोबारी साझीदार है. उसका नंबर चीन और अमेरिका के बाद आता है. दोनों देशों के बीच करीब पचास अरब डॉलर का कारोबार होता है.भारत के लिए फायदे की बात ये है कि दोनों देशों के बीच रक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ रहा है. साथ ही दोनों देशों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 75 अरब डॉलर के निवेश के समझौते पर भी बात चल रही है. छह देशों के सदस्यों वाली गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल, भारत की तेल और गैस की जरूरतों का आधा हिस्सा सप्लाई करती है.इन देशों के पास दुनिया के 45 फीसद तेल और 20 प्रतिशत गैस के भंडार हैं. खाड़ी देश भारत के बड़े बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाना चाहते हैं. हाल के दिनों में भारत ने फिलिस्तीन से भी संबंध बेहतर करने पर जोर दिया है. सीरिया और इराक के संघर्ष में भारत का रोल न के बराबर है. ऐसे में फिलिस्तीन से बेहतर ताल्लुक से भारत इस इलाके में अपना असर बनाए रखना चाहता है.

भारतीय मुसलमानों को संदेश

मोदी सरकार का अब तक पूरा जोर इजराइल से संबंध बेहतर करने पर रहा है. इससे कई अरब देश नाखुश भी हुए हैं. इसका भारतीय मुसलमानों के बीच भी अच्छा संदेश नहीं गया है. फिलिस्तीन से रिश्ते बेहतर करके मोदी सरकार इस नाखुशी को दूर करना चाहती है. भारत हमेशा से फिलिस्तीन का समर्थक रहा है. अब इस पर नए सिरे से जोर देकर वो इजराइल से बढ़ते रिश्तों से हो रही नाराजगी को दूर कर सकता है. साझा आयोग की बैठक में फिलिस्तीनी अधिकारियों ने इस बात पर खुशी जताई कि भारत ने उनसे संबंध बढ़ाने में फिर से दिलचस्पी दिखाई है. उन्हें लगता है कि, इसका फायदा फिलिस्तीन को भी मिल सकता है क्योंकि भारत के इजराइल से काफी अच्छे रिश्ते हैं. आज की तारीख में आधे अरब देश खुद ही इजराइल से रिश्ते बेहतर करने पर जोर दे रहे हैं. भारत इजराइल से बड़े पैमाने पर हथियार खरीद रहा है. दोनों देशों के बीच सुरक्षा साझीदारी बढ़ रही है. दोनों देश अब एटमी हथियारों की तकनीक के लेनदेन पर भी बात कर रहे हैं. साथ ही मौजूदा सरकार इजराइल की पानी के बेहतर इस्तेमाल की तकनीक का भी फायदा उठाना चाहती है.
 मोदी सरकार की फिलिस्तीन में दिलचस्पी की एक और वजह भी है. भारत, फिलिस्तीन के गाजा शहर मे इन्फोटेक पार्क बनाना चाहता है. ये फिलिस्तीन की तरक्की में भारत का अब तक का सबसे बड़ा योगदान होगा. विदेश मंत्रालय इस दिशा में तेजी से काम कर रहा है. पिछले महीने एम जे अकबर ने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को एक चिट्ठी लिखी थी. इसमें उन्होंने तीन फिलिस्तीनी यूनिवर्सिटी से सहयोग के समझौते को लागू करने में नाकामी पर नाखुशी जताई थी. चिट्ठी में उन्होंने जामिया के वाइस चांसलर तलत अहमद से पूछा था कि फिलिस्तीन की अल- कुद्स, अल इस्तिकाल और हेब्रान यूनिवर्सिटी से समझौता अधर में क्यों लटका है?

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति

प्रधानमंत्री मोदी अपनी कोशिशों के फौरी नतीजे चाहते हैं. वो मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत की जगह बेहद अहम है. वो देख रहे हैं कि ईरान और इजराइल से बहुत से देशों से अच्छे रिश्ते नहीं हैं. आज भारत और ईरान के ताल्लुक काफी अच्छे हो गए हैं. शायद किसी भी अरब देश से भारत के रिश्ते उतने अच्छे नहीं, जितनी आज की तारीख में ईरान से है. अगर अमेरिका, ईरान से पाबंदियां हटाता है तो इसका सबसे ज्यादा फायदा भारत को होगा. हालांकि ट्रंप प्रशासन से इसकी उम्मीद कम ही है.
भारत, ईरान और इजराइल के करीब आने से दुनिया की राजनीति पर भी असर पड़ना तय है. मोदी सरकार मानती है कि अरब देशों और ईरान-इजराइल से अच्छे संबंध से भारत को एनर्जी सिक्योरिटी मिलेगी, जो देश की तरक्की के लिए जरूरी है. साथ ही इसके जरिए वो दुनिया के नक्शे पर विश्व नेता की छाप छोड़ने में भी कामयाब होंगे. मोदी को ऐसे नेता के तौर पर देखा जाएगा जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना असर छोड़ा. पर सवाल ये है कि क्या ऐसा होगा? 'मोदी डॉक्ट्रिन' किताब के लेखक डॉक्टर अनिर्बान गांगुली ने भी माना हैं कि, बरसों से भारत की पश्चिमी एशिया नीति, पाकिस्तान के चश्मे से देखी जाती रही. जबकि, इसका भारतीय मुसलमानों पर गहरा असर होता है. अब मोदी सरकार अपनी नई विदेश नीति से इस तस्वीर को बदलना चाहती है. भारत के मुसलमान हमेशा से चाहते रहे हैं कि, भारत के मुस्लिम देशों से ताल्लुक अच्छे रहें. ऐसा कदम अब मोदी सरकार उठा रही है ताकि वो मुसलमानों की अपेक्षाओं पर खरी उतर सके.

वैसे भी विदेश नीति के मोर्चे पर वर्ष 2016 भारत के लिए बेहतरीन वर्ष साबित हुआ। बेहतरीन इस अर्थ में कि इस मोर्चे पर भारत की झोली में नाकामियां गिनी चुनी रही, मगर उपलब्धियों का भरमार रहा। खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताबड़तोड़ विदेश दौरे ने दुनिया के मंच पर भारत को नई पहचान दी। प्रधानमंत्री ने ताकवतर देशों के राष्ट्राध्यक्षों से बेहतर संबंध स्थापित करने के अलावा पाकिस्तान के वर्चस्व वाले मुस्लिम देशों में भी भाजपा की पैठ मजबूत कर दी। हालांकि साल 2016 के जाते जाते वैश्विक राजनीति में एकाएक आए परिवर्तन ने आने वाले साल के लिए मोदी सरकार की विदेश नीति के लिए अग्नि परीक्षा की  नींव रख दी । इसका कारण अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति बनना और कई मोर्चे पर नीति स्पष्ट न होना, रूस-पाकिस्तान-चीन की बन रही मजबूत तिकड़ी के अलावा मोदी सरकार की ओर से लिया गया नोट बंदी का फैसला है। वर्तमान वैश्विक दौर में विदेश नीति की सफलता-असफलता के लिए किसी भी देश की आर्थिक परिस्थिति सबसे बड़ा कारण बनती है। उपलब्धियों की बात करें तो साल 2016 ने भारत को दुनिया में एक नई पहचान दी। भारत ताकतवर देशों ही नहीं बल्कि सामरिक, कूटनीतिक दृष्टिï से महत्वपूर्ण देशों को भी साधने में सफल रहा। खासतौर पर आतंकवाद के सवाल पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति मजबूती से आगे बढ़ी और भारत ने कई मौकों पर चीन के समर्थन के बावजूद पाकिस्तान को आईना दिखाया। हम इस साल एमटीआर के सदस्य बने, रूस के साथ एयर डिफेंस सिस्टम समझौता हुआ। एनएसजी और यूएन की सदस्यता मामले में दावेदारी और मजबूत हुई। पड़ोसी देशों में पाकिस्तान-चीन को छोड़ कर अन्य देशों से रिश्तों में मजबूती आई। खासतौर पर इस दौरान पीएम मोदी-अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच बने परस्पर विश्वसनीय संबंध बड़ी उपलब्धि साबित हुई।

देश आज कहां खड़ा है?

 दुनिया, वैश्वीकरण के युग में, प्रौद्योगिकी के कारण , आर्थिक संबंधों, देशों से बड़ी संख्या में और देशों द्वारा बड़ी संख्या में लोगों की आवाजाही , उनके किनारे पर संसाधनों और आर्थिक अवसरों का दोहन करने के लिए निर्धारित प्रयासों के साथ एक दूसरे के साथ गहराई से जुड़े हैं । उसके बड़े और काफी परिष्कृत अर्थव्यवस्था, बड़े और युवा कर्मचारियों की संख्या, तकनीकी शिक्षा के उच्च स्तर, चौड़े भौगोलिक पहुंच के साथ मजबूत रक्षा बलों, और, कम महत्वपूर्ण नहीं, सांस्कृतिक सारसंग्रहवाद की अपनी स्थायी परंपरा – ज़ाहिर है, बिना अंग्रेजी भाषा पर कमांड की भूल जैसी परिस्थितियों की वजह से भारत को सामाजिक-आर्थिक प्रगति के अपने राष्ट्रीय उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए अवसर प्रदान करते हैं। ये सभी कारक उन विविध देशों के लिए जो विरोधाभासी हितों का अनुसरण कर रहें हैं, भारत को एक आकर्षक आर्थिक और राजनीतिक पार्टनर बनाते हैं। भारत की सैन्य पहुंच, उसके भविष्य क्षमता के साथ, मदद करता है – और अपने हित के क्षेत्रों में शक्ति संतुलन प्रभावित करने के लिए आगे भी मदद कर सकता है। उपरोक्त कारणों के लिए, एक शक्ति या अन्य के साथ संबंध निर्माण के विकल्पों में भारत के लचीलेपन के कारण वैश्विक मामलों में उसकी साख आज महत्वपूर्ण विदेश नीति और कूटनीतिक लाभ उठाने की है। यही कारण है कि अपने पहले संबोधन में हाल ही प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय राजदूत को सलाह दी है कि भविष्य में भारत की भूमिका, एक एक संतुलन शक्ति के बजाय एक प्रमुख शक्ति के रूप में हो।

भूमंडलीकरण की चुनौतियां

जैसेकि वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं और बलों का लाभ लेने के लिए भारत के पास संस्थागत चपलता है, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मौजूदा परिस्थितियां पूर्ववर्ती अवधि की तुलना में और अधिक जटिल हैं। और यह अहसास संस्थागत क्षमता निर्माण में व्यापक दिशा प्रयासों, राजनयिक सहित, की ओर ले जाना चाहिए चूंकि कई देशों को उनकी अक्षमता के कारण भयंकर नुकसान उठाना पड़ा है। इस भूमंडलीकरण अवधि को प्रक्रियाओं के मामले में और अंतरराष्ट्रीय संस्थागत क्षमता की अपर्याप्तता के मामले, दोनों में काफी अनिश्चितता और अनुनमेय के रूप में वर्गीकृत किया गया है । प्रौद्योगिकी ने व्यक्तियों सशक्त बनाया है – दोनों तरह से अच्छी तरह से निपटारे और रूग्‍न निपटारे – की तुलना में राज्‍य जिसने सूचना के आधार पर और विनाशकारी शक्ति पर अपने एकाधिकार को खो दिया है। राष्ट्रीय सीमाओं के पार वैश्विक व्यापार और उत्पादन-लिंकेज में भारी उछाल ने, अपर्याप्त बहुपक्षीय संस्थागत क्षमता के कारण विनियमन के कठिन होने ने वैश्विक आर्थिक संकट को लगातार और अप्रत्याशित बना दिया है जिसमें कोई भी देश अछूता नहीं रहा- क्षमता की इस कमी ने गहराई से सभी देशों को ही प्रभावित नहीं किया है बल्कि अमेरिका के प्रभाव और चीन की त्वरित वृद्धि में कमी के रूप में वैश्विक शक्ति संतुलन को भी कम किया है।

विफल रही / असफल रहने वाले राज्यों की घटना, वर्तमान वैश्वीकरण के युग में हालांकि अनोखी नहीं है और अधिक व्यापक रूप से विश्‍व के अलग-अलग हिस्सों में इन दिनों आज हमारे अपने सहित दुनिया देखी है। आंशिक रूप से 1991 में महाशक्तियों में घरेलू भागीदारी के अंत की वजह से, राज्य की विफलता की प्रक्रिया प्रौद्योगिकी, अतिवादी विचारधाराओं और आतंकवाद में विश्वास रखने वाले व्यक्तियों के समूह के उद्भव के कारण और गंभीर हो गयी है ; इस सामाजिक विघटन के वातावरण ने प्रदेशों के नाममात्र नियंत्रण में राज्‍यों के खिलाफ “अनियमित” या “शहरी” युद्ध के चरण के लिए प्रेरित किया। विफल राज्यों ने, बहुपक्षीय वैश्विक संस्थानों की अपर्याप्त क्षमता के साथ संयोजन में, विद्यमान और नये बहुसंख्यक सुरक्षा खतरों को गंभीर बना दिया है। इन अपर्याप्त राज्य क्षमताओं ने भोजन, पानी और ऊर्जा की उपलब्धता पर और उनके अंतर-रिश्तों की जटिलता पर नकारात्मक रूप से प्रभाव डाला है। वैश्विक कनेक्टिविटी और प्रौद्योगिकी के कारण, अतीत में क्‍या अप्रासंगिक होगा, वैश्विक चिंता का विषय बन गया है – जैसे सार्स या ईबोला के रूप में वैश्विक महामारी की तरह तेजी से प्रसार। इससे भी अधिक गंभीर भयावह जलवायु परिवर्तन, जिससे एक अस्तित्व खतरे की संभावना है, लेकिन यहां तक कि वर्तमान में, इस तरह के चक्रवात और सूखे के रूप में गंभीर मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति, राज्यों की राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता के लिए गंभीर निहितार्थ हैं।

भारत की मौजूदा चुनौतियां

जैसेकि वैश्विक रुझान की भविष्यवाणी करना मुश्किल है,शक्ति का वैश्विक संतुलन बदल रहा है। उभरते देश जैसेकि चीन और भारत महसूस करते हैं कि वैश्विक शासन संरचना पर्याप्त रूप से उनके हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करते – और इन शासन संरचनाओं के मौजूदा प्रबंधक, संरचना के अंतर्गत इन बढ़ती शक्तियों के “सह विकल्प” के मुद्दे का सामना कर रहे हैं। शीत युद्ध के बाद की अवधि में, इसके विभिन्न चरणों के दौरान, कार्रवाई की अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए राजनीतिक और आर्थिक एजेंडे को लागू करने के लिए भारत का लक्ष्‍य महा शक्ति के दबाव का विरोध करना, राजनीतिक, सैन्य और अर्ध सैनिक विध्वंसक गतिविधियों की पूरी रेंज का मुकाबला, रक्षा तैयारियों को बनाए रखना और हमारी तकनीकी आत्मनिर्भरता की संभावनाओं की सुरक्षा और सामाजिक-आर्थिक विकास है।
 अगर चीन-पाकिस्तान-रूस की तिकड़ी मजबूत हुई तो भारत को चौतरफा मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। वैसे भी रूस की पाकिस्तान से बढ़ रही नजदीकियां भारत के लिए पहले से मुश्किलें खड़ी कर रहा है। फिर अगर ट्रंप अपने वादे के मुताबिक चीन की नकेल कसने में लगे तो दक्षिण चीन महासागर में दोनों देशों के बीच तकरार बढ़ेगा। फिर अमेरिका चीन को सबक सिखाने के लिए भारत की समुद्री सीमा का उपयोग करना चाहेगा। ऐसे में भारत और चीन की तनातनी बढ़ेगी। लेकिन  दुनिया यह भी देख रही है कि भारत आज एक वैश्विक उपस्थिति के साथ का एक देश है। भारत प्रभावित करता है और दुनिया भर के देशों की एक विशाल संख्या के साथ अपने संबंधों से प्रभावित है। संचार और प्रौद्योगिकी विकास दुनिया को छोटा करने के लिए जारी है, वैश्विक समुदाय के अन्योन्याश्रय ही इसमें तेजी लांयेगे ।
यहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस उक्ति का उल्लेख आवश्यक लगता है जब एक इंटरव्यू में उनसे उनके विदेशी यात्राओ पर सवाल किया गया था। प्रधान मंत्री ने साफ़ साफ़ कहा था - मई किसी स्थापित राजनीतिक परिवार या खानदान से नहीं आता हूँ। मेरे बारे में अब तक दुनिया के लोग सिर्फ उतना ही जानते है जितना उनको मीडिया ने बताया है। अब जबकि भारत के प्रधानमंत्री के रूप में उन सभी से मुझे परिचय करना है तो मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। उन सभी को हमारे बारे में सत्य की जानकारी तब हो सकेगी जब मैं  निजी तौर पर उनके साथ बाथ कर विमर्श करूंगा और समझ सकूंगा। इसलिए हर राष्ट्राध्यक्ष से निजी मुलाकात करना मज़बूरी भी है। दरअसल भारत ने इस दौर में जिस तेज़ी के साथ दुनिया के बड़े देशो के साथ ही छोटे छोटे देशो से प्रगाढ़ता विकसित  की है वह इससे पहले इतिहास में तो कभी भी नहीं हुआ था। सच है कि तीन वर्षो में मोदी सरकार की वैश्विक नीति और सघन यात्राओं ने भारत को बहुत ऊचाई दी है। 

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