क्या है बैकुंठ और क्या है मुक्ति की गति मुक्त जीवात्मा की अंतिम यात्रा

संजय शांडिल्य
अध्यक्ष , भारत संस्कृति न्यास , नयी दिल्ली

भारतीय शास्त्रों में वर्णित बैकुंठ कोई कल्पना मात्र नहीं है। यह ठीक वैसे ही एक हकीकत है जैसे भारतीय अंक गणना , आयुर्विज्ञान , शून्य , खगोल शास्त्र , व्याकरण , गणित अथवा अन्य वे सभी तथ्य है जिन्हे दुनिया आज से पहले कोरी कल्पना मानती थी लेकिन जब पश्चिम के विज्ञानं ने उन सभी को प्रमाणित कर दिया तो उसे सभी ने स्वीकार कर लिया। दरअसल भारतीय वांग्मय में अनगिनत ऐसे तथ्य भरे पड़े है जिनके बारे में दुनिया को अभी तक या तो पता ही नहीं है अथवा उनको समझ सकने योग्य शोक्षा का ही अभी तक विकास नहीं हो सका है। भारत के प्राचीन शास्त्रों में वर्णित हर तथ्य पर आज कल कही न कही काम हो रहा है। योग को पूरी दुनिया स्वीकार कर चुकी है। शून्य से ही साड़ी दुनिया का संचालन चल रहा है। यहाँ तक की जो लोग भारतीयता का घनघोर विरोध करते है उनके धार्मिक ग्रंथो के पृष्ठों पर भी भारत के अंक शास्त्र के ही अंक दर्ज़ दिखते है। यदि भारत के अंक न होते तो वे अपने धर्म शास्त्र के पैन तक नहीं गईं पाते।


बहरहाल , आज यहाँ मई चर्चा उस बैकुंठ की कर रहा हूँ जिसे भगवान् का परमधाम कहा जाता है। मई इस परमधाम के अस्तित्व से आपको परिचित कराने की कोशिश कर रहा हूँ। इसमें कोई कल्पना नहीं है। यह सब हमारे ऋषियों, मुनियों , महात्माओ और मीमंसकारो द्वारा प्रमाणित और वेदो तथा उपनिषदों में वर्णित तथ्य है। भगवान् के निवास यानि परमधाम यानि बैकुंठ की बात केवल कल्पना नहीं है बल्कि ऐसा ही सच है जैसे दिल्ली, बम्बई, कोलकाता जैसी जगहें आप जानते और देखते है। उस बैकुंठ की अवस्थापना के बारे में बता दो की यह अप्राकृत परम धाम हमारे कोटि कोटि ब्रह्मांडो वाली दिख सकने वाली प्रकृति से तीनगुना बड़ा है। इसकी देख रख के लिए भगवान् के ९६ करोड़ पार्षद तैनात है। हमारी प्रकृति से मुक्त होने वाली हर जीवात्मा इसी परमधाम में शंख, चक्र, गदा और पद्म के साथ प्रविष्ट होती है। वहां से वह जीवात्मा फिर कभी भी वापस नहीं होती। इस तथ्य को समझने के लिए यह भी जान लेना आवश्यक है कि यह कोई देवलोक नहीं है। यह केवल परमपिता परमेश्वर का निवास स्थल है जिसमे वह अपनी चार पटरानियों श्रीदेवी , भूदेवी , नीला और महालक्ष्मी के साथ निवास करते है।
बैकुंठ को थोड़ा और गहराई से समझने की आवश्यकता है। हम जिस ब्रह्माण्ड में रहते है ऐसे करोडो ब्रह्माण्ड इस सृष्टि में मौजूद है। इन सभी ब्रह्मांडो के अलावा देवलोक , यमलोक , वायुलोक , ब्रह्मलोक , अतल, वितल , पाताल लोक आदि करोडो की संख्या में लोक भी अवस्थित है जिनमे अलग अलग प्रकार के देवी देवता , यक्ष , किन्नर , आदि निवास करते है। अमूमन बिना मुक्ति पाये हुए हर जीवात्मा को इन्ही लोको में भ्रमण करना पड़ता है। हमारे शास्त्रों में वर्णित ३३ कोटि देवताओ की संख्या भी अनन्त है। ३३ कोटि की संख्या तो केवल उनके प्रकार है। ३३ कोटियो में अनन्त संख्या में देवताओ का अस्तित्व होता है। इन देवताओ के बारे में जानने के लिए वेदांत की मीमांसा की गहराइयों में उतरना पड़ेगा। उस बारे में कभी विस्तार से चर्चा कर ली जायेगी। अभी तो मई बात कर रहा हूँ सिर्फ उन जीवात्माओं के बारे में जिनको प्रभु की शरणागति के आधार पर वास्तव में मुक्ति मिलती है तो वे कहा जाकर अपने नारायण से किस प्रकार से मिल पाती है।
जो जीवात्मा वास्तव में अपनी शरणागति यानि प्रभु में लीं होकर धरती से विदा होती है उनको विदा करने के लिए समय के देवता, प्रहार के देवता , दिवस के देवता , रात्रि के देवता , दिन के देवता , ग्रहों के देवता , नक्षत्रों के देवता , मॉस के देवता , मौसम के देवता , पक्ष के देवता , उत्तरायण के देवता , दक्षिणायन के देवता सभी तलो के देवता सभी ३३ कोटियों के देवता पहले तो विरोध करते है की यह बैकुंठ न जाने पाये लेकिन नारायण की शरणागति के कारण उस जीवात्मा को विदा करने के लिए एकपाद विभूति के अंतिम सीमा तक जाते है और त्रिपाद विभूति के बाहर प्रवाहित होने वाली बिरजा नदी के तट पर छोड़ देते है ,.
इसी एकपाद विभूति में हमारे करोडो ब्रह्माण्ड और सारे लोक अवस्थित है। इस एकपाद विभूति की सीमा के बाद शुरू होता है बैकुंठ धाम। बैकुंठ धाम और एकपाद विभूति के मध्य एक नदी बहती है जिसका नाम है बिराज। बिराज नदी से ही त्रिपाद विभूति शुरू होती है जो बैकुंठ है। इसी त्रिपाद विभूति में भगवान् अपनी चार पटरानियों और ९६ करोड़ पार्षदों के साथ निवास करते है। मुक्त होने वाली जीवात्मा को जब सभी देवता बिराज नदी तक छोड़ कर जाते है तब वह जीवात्मा नदी मर डुबकी लगाती है और नदी के पार चली जाती है जहां उसका शख चक्र गदा पद्मयुक्त स्वरुप हो चूका होता है। वह से पार्षदगण उसको सीधे नारायण के पास ले जाते है। ऐसी जीवात्मा को नारायण अपनी गॉड में बिठा कर अतिशय प्रेम करते है और इस प्रकार त्रिपाद विभहूति में ही वह जीवात्मा सदा के लिए स्थापित हो जाती है। यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि एकपाद विभूति में , जिसमे करोडो ब्रह्माण्ड और सारे लोक अवस्थित है , इसकी तीन गुना क्षेत्रफल में परमपिता परमेश्वर का परमधाम स्थित है।
मित्रों , आधुनिक पशिमि विज्ञानं पढ़ने वालो को इस बात में शायद केवल कल्पना ही नज़र आएगी , लेकिन इसका हमें कोई गम नहीं है। यह तो भारत की महान ज्ञान परम्परा है जिसमे करोडो साल पहले ही परमपिता का निवास तक खोज कर बता दिया गया है। अभी तो एकपाद विभूति के एक तुक्ष अंश पृथ्वी के ही चन्द्रमा और मंगल की यात्रा कर पाने वाला कुछ सौ सालो की उम्र वाला पश्चिमी विज्ञान भला भगवान् के त्रिपाद विभूति की कल्पना भी कैसे कर पाएगा।
मुक्त जीवात्मा जब भगवान तक पहुंच जाती है तब वह गाती है........
पुनश्च भूयोपि नमो नमस्ते
हमारे शास्त्र कहते है कि जीव की इस महायात्रा का स्मरण प्रति दिन प्रातः उठते ही करना चाहिए।
सदा पश्यन्ति सूरयः
यही है शुद्ध , तत्वमय परमात्मा का देश।

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8 January 2019 at 07:02

Sir I am overwhelmed reading this. What a wonderful article given me a great peace and happiness. Thanks a lot for writing this article.

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26 January 2019 at 07:27

It is universal truth and greatest knowledge bro

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