मोदी ने कहा था, ‘क्या हो अगर काले धन के खिलाफ भी एक सर्जिकल स्ट्राइक हो जाए


सटीक समय ,अचूक निशाना

 संजय तिवारी 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक कुछ नहीं करते। वह इस तरह से करते है की सब अचानक लगता है। चाहे पाकिस्तान के खिलाफ की गयी सर्जिकल स्ट्राइक हो या फिर कला धन के खिलाफ। वह सीधे हल्लाबोलते है। हल्ला नहीं करते। यही उनके काम करने का तरीका है जो उनका हर कदम लोगो को और खासकर उनके विरोधियो को चौकात रहता है। यह भी खास बात है की उनका निशाना कभी भी चूकता नहीं है। काला धन के खिलाफ अभी ताज़ी कार्रवाई इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जिसमे खासकर उत्तर प्रदेश के उनके विरोधियो की साँसे ही टंग  गयी है। अब से ठीक 15 दिन पहले वडोदरा में एक समारोह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘क्या हो अगर काले धन के खिलाफ भी एक सर्जिकल स्ट्राइक हो जाए।’ तब किसी को उनकी मंशा का अंदाजा नहीं था। लेकिन मंगलवार रात मोदी ने अचानक राष्ट्र को संबोधित करते हुए आधी रात से देश में 500 और 1000 रुपये के नोटों को खत्म करने का एलान किया, तब उनकी बात की गहराई का पता चला। 




प्रधानमंत्री के इस फैसले को अगले साल उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यो में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी चुनाव प्रचार के वक्त लोगों के सामने ‘निर्णयात्मक सरकार’ की छवि प्रस्तुत करना चाहती है। हालांकि, सरकार के इस फैसले के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं। नोट बंद होने की वजह से चुनाव में खड़े कई केंडिडेट चुनाव में खर्च की जाने वाली राशि को लेकर परेशान हो सकते हैं। मोदी सरकार इससे विपक्षी दल के लोगों का मुंह बंद करना चाहती है जो उसे काले धन को रोकने के लिए किए गए प्रयासों के लिए घेर रहे थे या फिर आगे घेर सकते थे। हालांकि, यह अचानक से लिया गया फैसला नहीं है। मोदी सरकार इसपर पिछले 6 महीने से काम कर रही थी। इसको लागू करने से पहले कुछ बाकी काम निपटाने की वजह से इसे छिपाकर रखा गया। वित्त मंत्री अरुण जेटली के अलावा प्रिंसिपल सेक्रेटरी निरिपेंद्र मिश्रा, पिछले और मौजूदा आरबीआई गवर्नर, वित्त सचिव अशोक लवासा, आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास को ही इस बात की जानकारी थी।



 दरअसल मोदी ने नोटों पर अचानक प्रतिबन्ध लगाकर यूपी, हरियाणा और गुजरात सहित उन पांच राज्यों की धनबल की  सियासत पर ही  ग्रहण लगा दिया है जहाँ चुनाव सर पर आ गए हैं और धन्ना सेठों ने चुनाव लड़ने की रक़म अपने ठिकानों पर बोरों और दीवानों के भीतर छुपा रखी है. यह रक़म इतनी बड़ी है कि इन्हें बैंकों में जमा कर इन्कम टैक्स विभाग से बच पाना संभव नहीं होगा. सपा और बसपा जैसी पार्टियों के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती मानी जा रही है। इस खर्चीले दौर में करोड़ों रूपये चुनाव में खर्च हो जाते हैं. चुनाव आम आदमी की पहुँच से बहुत दूर हो चुका है. एसोसियेशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स की रिसर्च में भी यह बात साफ़ हो चुकी है कि देश में सिर्फ 16 फीसदी बुद्धिजीवी ही चुनाव लड़ते हैं. चुनाव लड़ने वाले शेष 84 फीसदी लोग खनन या शिक्षा माफिया हैं. बिल्डिंग बनाने वाले और ठेकेदार हैं. जिन लोगों के पास बेहिसाब सम्पत्ति है वही चुनाव लड़ पाते हैं। ब्लैक मनी रखने वाले अपने पास बड़े नोट ही रखते हैं. चुनाव सर पर हैं. तैयारियां अंतिम चरण में हैं. कई लोगों के टिकट भी फाइनल हो चुके हैं ऐसे समय में अचानक बगैर समय दिए हुए प्रधानमंत्री ने तुरंत 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने का एलान कर ऐसे लोगों की धडकनें बढ़ा दी हैं जिनके गोदामों में बेहिसाब धन भरा हुआ है. सरकार ने मौक़ा दिया है कि बैंकों में अपने गोदामों में भरे नोटों को नये नोटों से बदल लें। 



काले धन पर एक नजर

वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी किए गए 1999 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में मौजूद कुल जीडीपी का 20.7 प्रतिशत पैसा काला धन था। वहीं 2007 में इसका साइज बढ़कर 23.2 प्रतिशत हो गया। कुल 180 देशों में भारत का काला धन है। इसमें से 70 हजार करोड़ रुपए तो सिर्फ स्विस बैंक में ही है। इस बैंक में भारत का सबसे ज्यादा काला धन है। सभी बैंकों में कुल मिलाकर कितना काला धन है इस बात की जानकारी नहीं हो सकी है। 500 और 1000 के नोटों पर प्रतिबन्ध दरअसल भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और नकली नोटों की बढ़ती समस्या से बचने के मकसद से लगाया गया है. दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत ऐसा देश है जहाँ के बारे में यह माना जाता है कि जितना पैसा बैंकों में है उससे बहुत ज्यादा पैसा लोगों के पास कैश के रूप में मौजूद है. बैंक में तो वह पैसा रखा जाता है जिस पर टैक्स जमा होता है. लेकिन चुनाव लड़ने के लिए, बिल्डिंगें बनाने के लिए, ठेके लेने के लिए, रिश्वत देने के लिए और बिजनेस करने के लिए जो पैसा अपने पास रखा जाता है वह ज्यादातर 500 और 1000 के ही नोट होते हैं.


 बिगड़ेगा पांच राज्यो में चुनाव का गणित 



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 500 और 1 हजार के नोट बंद कर देने के बाद राजनीतिक पार्टियों के लिए उत्तरप्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में होने वाले चुनाव में वित्तीय संकट खड़ा हो सकता है। उत्तर प्रदेश और पंजाब एक ऐसा राज्या है जहां पैसा चुनाव मैनजमेंट का एक बड़ा हिस्सा होता है। इस फैसले के बाद पैसा खर्च करने की पार्टियों की रणनीतियों में बदलाव हो सकते हैं।

एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना है कि 'चुनाव से पहले राजनीतिक दलो के पास अभियान चलाने के लिए पहले ही कालाधन रखा हो सकता है। इस फैसले के बाद नकदी का यह ढेर अब एक बेकार ढेर हो गया है। चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियों के लिए आज का यह फैसला किसी आपदा से कम नहीं है। राजनीतिक पार्टिया अब चुनावी रणनीतियों में बदलाव करने के लिए मजबूर हो जाएंगी।'
राजनीतिक विशलषकों का कहना है कि 500 और 1,000 रुपये के नोटों के बंद होने से दूसरों की तुलना में राजनीतिक दल अधिक प्रभावित हो सकते हैं। विशेष रूप से उन क्षेत्रीय खिलाड़ियों को जो अभी तक नियमों को चकमा देकर नकदी की सतत प्रवाह को सुनिश्चित करने के जटिल तरीके में महारथ रखते थे



2014 में आम चुनाव में जब्त हुए थे 330 करोड़ रुपए



आपको बता दें चुनाव आयोग द्वारा सभी राजनीतिक पार्टियों को यह दिशा निर्दश जारी होते है कि चुनाव प्रचार में लगाई जाने वाली राशि पहले से ही घोषित करें जिससे पारदर्शिता रहे, लेकिन फिर भी राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव प्रचार में बड़े पैमाने पर काले धन का इस्तेमाल होता है। साल 2014 में आम चुनाव में 330 करोड़ रुपए जब्त किए गए थे।


बड़े नोट बन्द होने से उड़े नेताओं के होश


 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बड़े नोट बन्द करने के अचानक फैसले से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगे नेताओं के होश फाख्ता हो गये हैं। राज्य विधानसभा के चुनाव चार महीने में होने हैं, और इसकी तैयारी में संभावित उम्मीदवारों के साथ ही राजनीतिक दल पूरी ताकत से लगे हैं। ऐसे में 500 और 1000 के नोट अचानक बन्द कर दिये जाने से चुनाव की तैयारी में लगे नेताओं के होश उड़ गये।काले धन पर मोदी के सबसे बड़े वार को भाजपा यूपी में भुनाने की तैयारी में जुट गई है। नेतृत्व ने मोदी सरकार के इस फैसले को यूपी में परिवर्तन यात्रा समेत पार्टी की रैली और सम्मेलनों में प्रमुखता से उठाने के निर्देश दिए हैं। बुधवार को दिल्ली में शीर्ष नेताओं के साथ बैठक के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यूपी के रणनीतिकारों को कालेधन के मुद्दे को पूरी मजबूती के साथ जनता के बीच ले जाने को कहा है। 500 और 1000 के नोट बंद करने के फैसले के बाद पार्टी की रणनीति काले धन को लेकर विरोधियों पर हल्ला बोलने की है। सपाई कुनबे में सियासी ड्रामे के बीच ठंडे पड़ रहे पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे से चिंतित नजर आ रहे यूपी भाजपा के नेताओं को मोदी ने विधान सभा चुनाव से पहले सबसे बड़ा मुद्दा थमा दिया है। आम जनता से सीधे जुड़े इस मुद्दे को पार्टी किसी भी हाल में ठंडा नहीं होने देना चाहती है। पार्टी के नेताओं का मानना है कि पुराने नोट अचानक चलन से बाहर होने का सीधा और सबसे बड़ा असर यूपी में सपा व बसपा के चुनाव प्रचार अभियान पर पड़ेगा। हाई प्रोफाइल चुनाव अभियान की शुरुआत कर चुकी दोनों पार्टियों के लिए अपने कार्यकर्ताओं को बांधे रखना मुश्किल होगा। भाजपा की योजना चुनाव प्रचार के मोर्चे पर सपा व बसपा को काले धन पर घेरने की है।  



देशभर में 500 रूपए और 1000 रूपए के नोटों को समाप्त कर और 500 रूपए के नए नोट व 2000 रूपए के नए नोट चलन में लाने का केंद्र सरकार का यह निर्णय काले धन को जमा करने वालों के लिए मुश्किल भरा हो सकता है। मगर इस निर्णय ने उत्तरप्रदेश चुनाव की तैयारियों को प्रभावित किया है। दरअसल देशभर में बड़े नोट्स को लेकर किए गए इस निर्णय से हड़कंप मच गया है।उत्तरप्रदेश में व्यापक चुनाव प्रचार अभियान कर रहे दलों समेत अन्य पार्टियों को भी इस तरह के निर्णय से झटका लगा है। दरअसल कथिततौर पर ये दल अपने बड़े खर्च के लिए इन नोट्स को चलन में नहीं ला सकेंगे और न ही ये अपने नोटों को बैंकों में जमा कर अपनी आय की घोषणा नहीं कर पाऐंगे। ऐसे में इनके नोट बर्बाद माने जा सकते हैं। फौरी तौर पर बाजार में पुराने नोटों के मंगलवार मध्यरात्रि से ही चलन से बाहर हो जाने के कारण बुधवार की सुबह से ही ये अपने खर्च पुराने नोटों से नहीं कर पाऐंगे ऐसे में यह रकम बर्बाद हो जाएगा। इन पार्टियों का बड़ा धन व्यर्थ हो जाएगा। चुनाव में प्रचार-प्रसार करने वाली इन कंपनियों को अपने खर्च पर नियंत्रण रखना होगा। हालांकि इस निर्णय से भाजपा को भी नुकसान हो सकता है। सरकार द्वारा इस तरह के प्रयास को कालेधन के विरूद्ध बड़ा प्रयास माना जा रहा है। हालाकि छोटे बजट वाले दलों को कुछ आसानी हो सकती है। अपनी चुनावी तैयारी करने वाली कांग्रेस, सपा और बसपा को भी इस निर्णय से बड़ा नुकसान हो सकता है।

 एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘प्रधानमंत्री का यह निर्णय अव्यवहारिक है। नोटों के चलन को बन्द करने से पहले एक ‘एलार्म’ देना चाहिए था। नोट बन्द करने की तिथि घोषित होने पर लोग अपनी जरूरत का सामान तो खरीद लेते।’ उनका तर्क था, ‘मेरे चुनाव क्षेत्र में कई शादियां हैं, ऐसे में इस निर्णय से शादियों के इन्तजाम प्रभावित हो रहे हैं। सब्जी की व्यवस्था कैसे हो। शादी के लिए अन्य जरूरी सामान कैसे खरीदे जायेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘एक दिन बाद 2000 और उसके कुछ दिन बाद 4000 रूपये मात्र निकालने से कैसे काम चलेगा। यह निर्णय मोदी के तानाशाह रवैये को ही दर्शाता है।’पूरब के एक जिले में चुनाव की तैयारियों में जोर शोर से लगे इन नेताजी ने कहा अचानक लिए गये इस फैसले से जन सामान्य के सामने कठिनाई खड़ी कर दी है। तमाम किसान ऐसे हैं जो गन्ना जैसे कैश क्राप के जरिये लाखों रूपये आर्जित करते हैं और वे ज्यादातर पैसे घर में ही रखते हैं। उनके सामने तो विकट समस्या पैदा हो जायेगी।सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी(बसपा) के नेता इस निर्णय पर खुलकर बोलने को तैयार नहीं हैं, जबकि कांग्रेस फैसले को सही लेकिन इसके तरीके को गलत ठहरा रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मोदी के फैसले को सही ठहरा रही है। भाजपा नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री ने 500 और 1000 के नोट बन्द कर काले धन पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की है। सपा के एक नेता ने स्वीकार किया कि अचानक इन नोटों के चलन बन्द करने से चुनाव लडऩे में दिक्कत आयेगी। आमतौर पर चुनाव के लिए लोग पैसा रखते हैं। इनमें बड़े लोग ही ज्यादातर होते हैं, लेकिन यह भी सही है कि इसमें ज्यादातर पैसे चन्दे के ही होते हैं। चन्दा देने वाले का कभी कभी नाम पता भी नहीं लिखा होता। ऐसे में अब नये सिरे से चुनाव तैयारियों के लिए चन्दा एकत्र करना होगा। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष सत्य देव त्रिपाठी ने कहा कि निर्णय तो सही है, लेकिन हड़बड़ी में लिया गया है। हड़बड़ी में लिये गये निर्णय आमतौर पर सही नहीं होते। त्रिपाठी ने कहा कि 1000 के नोट बन्द कर 2000 के नोट चलन में लाने का क्या औचित्य है। एक हजार के नोट से कालाबाजारी हो सकती है तो दो हजार के नोट से कालाबाजारियों को और मदद मिलेगी। 
 भाजपा ने मोदी के निर्णय को देश की अर्थव्यवस्था के लिए ऐतिहासिक कदम बताया और कहा कि इससे आने वाले दिनों में भारत एक मजबूत आर्थिक ताकत बनकर सामने आयेगा। भाजपा विधानमण्डल दल के नेता सुरेश कुमार खन्ना ने कहा कि काले धन की वजह से गरीबों का जीवन दूभर हो गया था। रोजमर्रा की जरुरतों के सामान की कीमत आकाश छू रही थी। सामान्य आदमी मकान नहीं ले सकता था। घर और जमीन की कीमत दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही थी। खन्ना ने कहा कि मोदी के निर्णय से आम आदमी बहुत खुश है। काला धन रखने वाले निराश हैं। केन्द्र की भाजपा की सरकार गरीबों के लिए समर्पित है। मोदी ने शपथ लेने के तत्काल बाद ही कह दिया था कि उनकी सरकार गरीबों के लिए समर्पित रहेगी। यह निर्णय लेकर मोदी ने साबित कर दिया कि वह और उनकी सरकार वास्तव में गरीबों के लिए समर्पित है।




 आई पी सिंह का ट्वीट चर्चा में 



भाजपा प्रवक्ता आइपी सिंह ने तो ट्वीट कर बसपा प्रमुख मायावती, सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति, विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी समेत कई चर्चित नौकरशाहों पर हमला बोला है। आइपी सिंह ने लिखा है कि लुटेरों की दुकान 12 बजे रात के बाद से बंद हो गयी है। बुधवार को बातचीत में आइपी सिंह ने कहा कि यह नई आर्थिक क्रांति है और इससे गरीबों के हक में माहौल बनेगा। उधर, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि प्रधानमंत्री ने इस फैसले से साबित कर दिया कि अब कालाधन रखने वालों की खैर नहीं है। इससे आम आदमी के समानता के अधिकार की बुनियाद पड़ेगी और देश खुशहाली की ओर बढ़ेगा।

पीएम मोदी को दिया था प्रस्ताव

दरअसल, अनिल बोकिल ने पीएम मोदी को प्रस्ताव दिया था कि वह कालेधन पर रोक लगाने के लिए बाजार से 1000 रुपए और 500 रुपए के सभी नोट वापस ले लें। यही कारण है कि इस समय अनिल चर्चा में आ गए हैं और लोग कह रहे हैं कि इन्ही के प्रस्ताव पर अमल करते हुए पीएम मोदी ने ये अहम कदम उठाया है। हालांकि, मोदी सरकार की तरफ से अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया है कि उन्होंने किसके प्रस्ताव पर ये कदम उठाया।

कौन हैं अनिल बोकिल

अनिल बोकिल अर्थक्रान्ति संस्थान के एक प्रमुख सदस्य हैं। आपको बता दें कि अर्थक्रांति संस्थान महाराष्ट्र के पुणे का एक संस्थान हैं, जो एक इकोनॉमिक एडवाइजरी बॉडी की तरह काम करता है। इस संस्थान में चार्टर्ट अकाउंटेट और इंजीनियर सदस्य हैं।


9 मिनट टाइम देकर 2 घंटे सुना था पीएम मोदी ने

अर्थक्रान्ति की वेबसाइट पर किए गए दावे के अनुसार जब अनिल बोकिल अर्थक्रान्ति की तरफ से तैयार किए गए 'अर्थक्रान्ति प्रपोजल' को मोदी के सामने बता रहे थे, जो शुरुआत में उन्हें सिर्फ 9 मिनट का वक्त दिया गया था। लेकिन पीएम मोदी को उनके प्रस्ताव और बातें इतनी पसंद आईं कि वह अनिल बोकिल को 2 घंटे तक सुनते रहे।


अर्थक्रान्ति प्रपोजल में थे 5 प्वाइंट

अर्थक्रान्ति प्रपोजल में 5 प्वाइंट थे, जिन्हें पीएम मोदी के सामने प्रस्तुत किया गया था। आइए जानते हैं क्या थे वो 5 प्वाइंट-

1- सभी 56 टैक्सों को खत्म कर दिया जाए, जिसमें इनकम टैक्स और इंपोर्ट ड्यूटी को भी खत्म करने का प्रस्ताव था।
2- बाजार से 100, 500 और 1000 रुपए के सभी नोट वापस ले लिए जाएं।
3- सभी अधिक कीमत के ट्रांजैक्शन सिर्फ बैंकिंग सिस्टम के जरिए ही किए जाएं, जैसे चेक, डीडी, ऑनलाइन आदि।
4- कैश ट्रांजैक्शन की लिमिट को निर्धारित किया जाए और कैश ट्रांजैक्शन पर कोई टैक्स न लगे।
5- सरकार की आय के लिए सिंगल टैक्स सिस्टम होना चाहिए जो सीधे बैंकिंग सिस्टम पर लगे, जिसे बैंकिंग ट्रांजैक्शन टैक्स भी कहा जा सकता है। इसकी सीमा 2 फीसदी से 0.7 फीसदी तक हो सकती है। यह टैक्स सिर्फ क्रेडिट अमाउंट पर लगाए जाने का प्रस्ताव दिया गया था।

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