बाबरी और भंवरी - 6

वरिष्ठ पत्रकार भाई राघवेंद्र दुबे इन दिनों एक अति गंभीर श्रंखला लिख रहे है। उनकी भीत पर इसकी 6 किस्तें दिख रही हैं। उनके सवालो को उत्तेर की तलाश भी है।  कौन दे सकेगा ? उसी श्रंखला का सांसे ताजा हिस्सा यहाँ प्रस्तुत है।  पढ़िए जरूर -
बाबरी और भंवरी - 6


ख्वाबों के बुनकरी की एक और बानगी ।
प्रधानसेवक ने कहा --
' मैं अम्बेडकर की वजह से प्रधानमंत्री बना ।'
सवाल यह है कि राम ( कबीर के
राम नहीं ) क्या फिलवक्त मुल्तवी
कर दिये गये । क्या हालिया या नये सिरे से उठ खड़े
दलित विमर्श के दवाब में यह नया पैंतरा है ?
और अगर " राम ' या राममंदिर ही
2019 के लोकसभा चुनाव का
सर्वाधिक जिताऊ कार्ड बनना है तो राम और
शम्बूक को एक पांत
करने , कथित समरसता लाने ( वस्तुतः भाजपा फोल्ड में ) की हर कोशिश , वृहत्तर दलित समाज में छुपी रह जायेगी ?
भाजपा यह क्यों नहीं
समझ पा रही कि इतिहास वहां पहुंच चुका है कि यदि देश ने अपना
सामाजिक पुनर्गठन नहीं किया तो
विघटित हो सकता है । अतीत गौरव की कहानियां और सम्मान
की सांकेतिक पहल ( चप्पल पहनना ) बहुत दूर तक नहीं जायेगी । हम भारत के जिस इतिहास को मिथ कथाओं में
बदल कर महिमामण्डित कर रहे
हैं , वह अपने को नये ढंग से समझे जाने की
मांग कर रहा है ।
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की एका इसी दिशा
में एक पहल है ।
कई लोगों को इस एका में कोई दर्शन नहीं दिखता ।
लोग यह जान गये हैं कि गौरव गाथा और सांकेतिक पहल
वस्तुतः किसी की जमीन में
सेंध की कोशिश है । अपना वोट बढ़ाने की यह कोशिश वास्तविक
लोकतंत्र के अपहरण की मंशा
से प्रेरित है ।
एक ने कहा अगर गोरखपर - फूलपुर लोकसभा चुनाव न हारे
होते तो अम्बेडकर इतना न याद
आये होते ।
अम्बेडकर के नव भक्तों से
पूछना चाहता हूं कि क्या वे
संघ के परम पूज्य गुरुजी गोलवलकर की इस उक्ति से
असहमत होने का साहस दिखा
सकते हैं --
' .....स्मृति ईश्वरनिर्मित है और
उसमें बताई गयी चातुर्वर्ण्य व्यवस्था भी ईश्वरनिर्मित है । किंबहुना वह ईश्वरनिर्मित होने
के कारण ही उसमें तोड़ - मरोड़
हो जाती है , तब भी हम चिंता
नहीं करते । क्योंकि मनुष्य तोड़ -फोड़ करता भी है तब भी जो
ईश्वरनिर्मित योजना है , वह
पुनः - पुनः प्रस्थापित होकर ही
रहेगी ।
( पेज 163 , श्री गुरुजी समग्र : खण्ड 9 )
वह कहते हैं --
जन्म से प्राप्त होने वाली चार वर्ण वाली व्यवस्था में अनुचित कुछ भी नहीं है । यह उचित ही है ।
अब दलितों को यह सोचना ही होगा कि अम्बेडकर के लिए भरा
गला आखिर किसका है ?

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