हवा के आपातकाल का जिम्मेवार कौन, 2017 में कैसी रहेगी जिंदगी
डॉ अर्चना तिवारी
लेखिका शिक्षाविद है
9450887187
जाते हुए साल ने बहुत डराया धमकाया और सामान्य आदमी को कई नसीहते देता गया। जब सारा देश दीपावली की जगमग करने में लगा था उसी समय दिल्ली में अंधेरा छाने लगा। हालात यह हो गयी की दिन में भी गाड़ियों की लाइट जल कर रास्ते देखने पड़े। आकाश में ऐसा घना परदा पहली बार दिखा। देखते ही देखते लगाने लगा की पूरा का पूरा उत्तर भारत अँधेरे में डूब जाएगा। हर तरफ भय और आशंकाओ का माहौल बन गया। दिल्ली की तर्ज पर यूपी की राजधानी लखनऊ भी धुंध की चपेट में आ गयी । दिल्ली की जहरीली धुंध ने अब यूपी को भी अपनी चपेट में ले लिया । देर सुबह तक धुंध की चादर दिखायी देने लगी। राजधानी लखनऊ को धुंध की चादर ने चारों तरफ से घेर लिया । विशेषज्ञओ की चेतावनी आने लगी कि लखनऊ की हवा इतनी जहरीली हो गई है कि इससे ब्रेन और फेफड़े भी डैमेज हो सकते हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश में सबसे खतरनाक जहरीली हवा लखनऊ की थी , जो सामान्य से नौ गुना ज्यादा खतरनाक हो चुकी थी । बीमार कर देने वाली प्रदूषित हवा के कारण दिल्ली के कई स्कूलों और निर्माण स्थलों को बंद किया गया। वायु प्रदूषण की बयार बहते हुए दिल्ली से लगे एनसीआर और भारत के सबसे घनी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भी पहुंच गई । लखनऊ के क्षेत्रीय मौसम विभाग के निदेशक ने चेतावनी जारी कर कहा कि यह स्मॉग देश के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में करीब 21 करोड़ लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है।
दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद शहर में भी स्कूलों को बंद रखे जाने के आदेश दे दिए गए। दिल्ली के पास स्थित एनसीआर के इन शहरों में अब तक वायु प्रदूषण को मापने के लिए कोई मॉनिटर नहीं लगे हैं. दिल्ली की ही तरह लखनऊ में भी हवा की जांच दिखाती है कि उसमें पीएम 2.5 नाम के ऐसे छोटे कण मिले हुए हैं, जो सांस के साथ फेफड़ों में पहुंच कर उन्हें जाम कर सकते हैं. इनकी मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन की बताई गई सुरक्षित सीमा से कम से कम 40 गुना अधिक पाई गई है. भारतीय कानून के हिसाब से यह मात्रा सुरक्षित से छह गुना ज्यादा है। नई दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरमेंट ने बताया कि सरकारी आंकड़ों को देख कर पता चलता है कि बीते एक हफ्ते से दिल्ली पर छाया स्मॉग पिछले 17 सालों में सबसे बुरा पाया गया दिल्ली के बाद स्मॉग ने लखनऊ को अपने कब्जे में कर लिया । रिपोर्ट में बताया गया कि लखनऊ की हवा इतनी जहरीली हो गई है कि इससे ब्रेन और फेफड़े भी डैमेज हो सकते हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश में सबसे खतरनाक जहरीली हवा लखनऊ की है, जो सामान्य से नौ गुना ज्यादा खतरनाक हो चुकी है।
कहां पर कितनी मिली जहरीली हवा
लखनऊ के लालबाग की सबसे ज्यादा जहरीली हवा मिली ।वहां का स्तर 8 नवंबर 2016 को 541 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रहा। तालकटोरा में ये आंकड़ा थोड़ा कम होकर 523 माइक्रोग्राम और सेंट्रल स्कूल के आसपास ये 500 माइक्रोग्राम प्रतिघनमीटरपाया गया।

यूपी के इन शहरों में भी है खतरा
शहर धूल के कण (माइक्रोग्राम प्रतिघनमीटर)
वाराणसी 285
कानपुर 310
आगरा 325
दिल्ली में सबसे ज्यादा कहां हुई जहरीली हवा
दिल्ली में 8 नवंबर 2016 को दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास सबसे ज्यादा धूल के कणों की मात्रा थी। जोकि, 445 माइक्रोग्राम घनमीटर थी। दिल्ली में साफ हवा सिविल लाइंस की थी, जहां पर इसकी मात्रा 42.75 माइक्रोग्राम प्रतिघनमीटर थी।
देश के इन दस शहरो में भी लखनऊ से अच्छी है हवा
शहर मात्रा (माइक्रोग्राम प्रतिघनमीटर)
पटना 241
जयपुर 505
अहमदाबाद 74.88
हैदराबाद 66.50
बांद्रा 41.93
बैगलूरु 38.44
इतनी मात्रा होने पर भी मानी जाती है सामान्य हवा
वैज्ञानिक अशोक वर्मा का कहना है कि वातावरण में अगर 60 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर धूल के कण मिले हो तब भी सामान्य हवा मानी जाती है। लेकिन इससे ज्यादा प्रदूषित होने पर हवा जहरीली होने लगती है। वहीं, वार्षिक औसत मात्रा 40 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर होनी चाहिए।
तारीख मात्रा (माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर)
1 नवंबर 301
2 नवंबर 229
3 नवंबर 187
4 नवंबर 185
5 नवंबर 153
6 नंवबर 484
7 नवंबर 373
8 नवंबर 541
जब दिल्ली से लखनऊ तक अँधेरा छाने लगा और स्थिति भयावह होने लगी तब नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण विभाग के अधिकारियों को तलब किया । एनजीटी ने अधिकारियों से धुंध के लिए जिम्मेदार कारणों का शीघ्र पता लगाकर इसका सलूशन करने की बात कही । हाईकोर्ट ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए अधिकारियों को जवाब तलब के लिए बुलाया । इधर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नियमों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया और कहा कि कूड़े के निस्तारण की समुचित व्यवस्था करने के साथ उसे जलाने से परहेज किया जाए। यह भी सुनिश्चित किया जाए कि वाहन और जनरेटर आदि प्रदूषण नियन्त्रण के निर्धारित मानकों के अधीन संचालित हों। खेतों में फसलों के अवशेष का निस्तारण इस प्रकार सुनिश्चित कराया जाए कि प्रदूषण के स्तर में बढ़ोत्तरी न हो। इसके तहत प्रदेश में ‘ग्रीन यूपी-क्लीन यूपी‘ कार्यक्रम संचालित करने का ऐलान भी हुआ।
बताया गया कि लखनऊ में इतना प्रदूषण हाल फिलहाल में कभी रिकॉर्ड नहीं किया गया| प्रदूषण का रिकॉर्ड तोड़ते हुए लखनऊ में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम10) रविवार को 1200 तक पहुंच गया| सबसे खतरनाक माना जाने वाला पीएम 250, जिसे 60 के नीचे होना चाहिए वह रविवार को सुबह 9:00 बजे 633 तक पहुंच गया| आमतौर पर लखनऊ में पीएम 250 का लेवल 100 के आस-पास होता है लेकिन रविवार को पूरे दिन का औसत 350 के ऊपर था| प्रदूषण का ये स्तर दिवाली के दिन से भी ज्यादा है| दिवाली के दिन यह 300 से नीचे था|
भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान द्वारा जारी छह नवंबर की रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा पीएम 2.5 इंदिरा नगर में 445.7 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकार्ड किया गया| चौक में 421.3, विकास नगर में 373.6 व आईआईटीआर, एमजी मार्ग पर 372.6 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर रिकार्ड हुआ| यह मानक 60 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर के मुकाबले पांच से छह गुना के स्तर में है| यही स्थिति पीएम10 की है| चौक में पीएम 10 सर्वाधिक 698.6 मापा गया जो मानक से सात गुना अधिक है| इंदिरा नगर में मानक के मुकाबले छह गुना से अधिक 674.9, आईआईटीआर में 594.4, अलीगंज में 576.4, विकास नगर में 568.4 रिकार्ड किया गया|
राज्य प्रदूषण बोर्ड के चीफ एनवायरमेंटल ऑफिसर एस आर सचान ने बताया कि ऐसा मौसम में बदलाव की वजह से हुआ। हवा की गति अचानक बेहद कम हो गई , नमी बढ़ गई और मौसम भी कुछ ठंडा हो गया | इन तीनों कारणों के एक साथ हो जाने से शहर में हो रहा प्रदूषण यहीं पर अटक गया | विशेषज्ञ बताते हैं कि इस तरह के प्रदूषण से धरातल पर ओजोन बनने लगता है| वायुमंडल में ओजोन की छतरी हमें अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है लेकिन धरातल वही ओजोन सेहत के लिए बेहद खतरनाक है|
यूपी के इन शहरों में भी है खतरा
शहर धूल के कण (माइक्रोग्राम प्रतिघनमीटर)
वाराणसी 285
कानपुर 310
आगरा 325
दिल्ली में सबसे ज्यादा कहां हुई जहरीली हवा
दिल्ली में 8 नवंबर 2016 को दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास सबसे ज्यादा धूल के कणों की मात्रा थी। जोकि, 445 माइक्रोग्राम घनमीटर थी। दिल्ली में साफ हवा सिविल लाइंस की थी, जहां पर इसकी मात्रा 42.75 माइक्रोग्राम प्रतिघनमीटर थी।
देश के इन दस शहरो में भी लखनऊ से अच्छी है हवा
शहर मात्रा (माइक्रोग्राम प्रतिघनमीटर)
पटना 241
जयपुर 505
अहमदाबाद 74.88
हैदराबाद 66.50
बांद्रा 41.93
बैगलूरु 38.44
इतनी मात्रा होने पर भी मानी जाती है सामान्य हवा
वैज्ञानिक अशोक वर्मा का कहना है कि वातावरण में अगर 60 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर धूल के कण मिले हो तब भी सामान्य हवा मानी जाती है। लेकिन इससे ज्यादा प्रदूषित होने पर हवा जहरीली होने लगती है। वहीं, वार्षिक औसत मात्रा 40 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर होनी चाहिए।
तारीख मात्रा (माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर)
1 नवंबर 301
2 नवंबर 229
3 नवंबर 187
4 नवंबर 185
5 नवंबर 153
6 नंवबर 484
7 नवंबर 373
8 नवंबर 541
जब दिल्ली से लखनऊ तक अँधेरा छाने लगा और स्थिति भयावह होने लगी तब नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण विभाग के अधिकारियों को तलब किया । एनजीटी ने अधिकारियों से धुंध के लिए जिम्मेदार कारणों का शीघ्र पता लगाकर इसका सलूशन करने की बात कही । हाईकोर्ट ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए अधिकारियों को जवाब तलब के लिए बुलाया । इधर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नियमों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया और कहा कि कूड़े के निस्तारण की समुचित व्यवस्था करने के साथ उसे जलाने से परहेज किया जाए। यह भी सुनिश्चित किया जाए कि वाहन और जनरेटर आदि प्रदूषण नियन्त्रण के निर्धारित मानकों के अधीन संचालित हों। खेतों में फसलों के अवशेष का निस्तारण इस प्रकार सुनिश्चित कराया जाए कि प्रदूषण के स्तर में बढ़ोत्तरी न हो। इसके तहत प्रदेश में ‘ग्रीन यूपी-क्लीन यूपी‘ कार्यक्रम संचालित करने का ऐलान भी हुआ।
बताया गया कि लखनऊ में इतना प्रदूषण हाल फिलहाल में कभी रिकॉर्ड नहीं किया गया| प्रदूषण का रिकॉर्ड तोड़ते हुए लखनऊ में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम10) रविवार को 1200 तक पहुंच गया| सबसे खतरनाक माना जाने वाला पीएम 250, जिसे 60 के नीचे होना चाहिए वह रविवार को सुबह 9:00 बजे 633 तक पहुंच गया| आमतौर पर लखनऊ में पीएम 250 का लेवल 100 के आस-पास होता है लेकिन रविवार को पूरे दिन का औसत 350 के ऊपर था| प्रदूषण का ये स्तर दिवाली के दिन से भी ज्यादा है| दिवाली के दिन यह 300 से नीचे था|
भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान द्वारा जारी छह नवंबर की रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा पीएम 2.5 इंदिरा नगर में 445.7 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकार्ड किया गया| चौक में 421.3, विकास नगर में 373.6 व आईआईटीआर, एमजी मार्ग पर 372.6 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर रिकार्ड हुआ| यह मानक 60 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर के मुकाबले पांच से छह गुना के स्तर में है| यही स्थिति पीएम10 की है| चौक में पीएम 10 सर्वाधिक 698.6 मापा गया जो मानक से सात गुना अधिक है| इंदिरा नगर में मानक के मुकाबले छह गुना से अधिक 674.9, आईआईटीआर में 594.4, अलीगंज में 576.4, विकास नगर में 568.4 रिकार्ड किया गया|
राज्य प्रदूषण बोर्ड के चीफ एनवायरमेंटल ऑफिसर एस आर सचान ने बताया कि ऐसा मौसम में बदलाव की वजह से हुआ। हवा की गति अचानक बेहद कम हो गई , नमी बढ़ गई और मौसम भी कुछ ठंडा हो गया | इन तीनों कारणों के एक साथ हो जाने से शहर में हो रहा प्रदूषण यहीं पर अटक गया | विशेषज्ञ बताते हैं कि इस तरह के प्रदूषण से धरातल पर ओजोन बनने लगता है| वायुमंडल में ओजोन की छतरी हमें अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है लेकिन धरातल वही ओजोन सेहत के लिए बेहद खतरनाक है|
क्या होता है स्मॉग
स्मोक (धुएं) और फॉग (धुंध) के मिश्रण स्मॉग से भारत ही नहीं चीन और सिंगापुर जैसे देश भी प्रभावित हैं। उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने बताया कि आने वाले दिनों में वहां भी 'एक्रिड स्मॉग' होने की संभावना है। एक्रिड को गंध से जोड़ कर देखा जाता है। यह इस तरह का वायु प्रदूषण है जो केवल देख कर ही नहीं, बल्कि सूंघ कर भी महसूस किया जा सकता है। यानी जब स्मॉग दिखता है तब हवा एक्रिड होती है। इसमें तमाम ऐसी गैसों का मिश्रण होता है जो ग्रीन हाउस इफेक्ट और जलवायु परिवर्तन का कारण होती हैं। करीब एक हफ्ते से नई दिल्ली के आकाश में ऐसी गहरी धुंध पसरी है जो लोगों की आंखों में चुभ रही है और उनके गले में दर्द या खराश की शिकायत पैदा कर रही है। वायु प्रदूषण विशेषज्ञ इसके लिए कई तरह के प्रदूषकों को जिम्मेदार मानते हैं। उनका मानना है कि डीजल से चलने वाली कारें, मौसमी उपज के बाद खेतों की आग, कूड़े को जलाने, केरोसीन और गाय-भैंस के उपले या कंडे से जलने वाले चूल्हे तक से जहरीले तत्व हवा में घुल रहे हैं। जाड़ों के मौसम में गर्मी के मुकाबले हवा कम होती है जिससे वायु का बहाव भी कम हो जाता है और चीजें ठहरने से प्रदूषकों की परत जम जाती है।
जिम्मेदार कौन
अब सवाल यह खड़ा होता है कि इस संकट के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है। उत्तर सभी जानते है लेकिन अमल कोई नहीं करता। सच तो यह है कि जिस कथित विकास की बुनियाद के साथ हम नयी रफ़्तार पकड़ने का सपना पाल चुके है उस विकास के साथ की विनाशकारी शक्ति को न तो हम समझने की कोशिश कर रहे है और ना ही उन मानको के अनुपालन की ईमानदार कोशिश करते है जिनके अनुपालन के बाद विकास के साथ पैदा होने वाली विनाश की शक्ति को रोका जा सके। खनन, उत्सर्जन , उद्योगों के कचरे और अन्य प्रकार के प्रदूषकों को रोकने वाले सारे नियम क़ानून हमारे लिए सिर्फ कागज़ी भर रह गए है। कही भी पर्यावरण को संरक्षित करने के उपायो पर कोई गंभीर नहीं दिखता। जो मामले अदालतों तक पहुचते है उन पर कार्रवाई जब शुरू होती है , उसी समय राजनीति भी तेज हो जाती है। न तो उद्योगों की चिमनियों के धुएं और नहीं उनके कचरो को नियंत्रित करने की वास्तविक कोशिश कभी दिखती है। सड़को पर जिस तेजी से वाहनों की संख्या बढ़ी है , उनके साथ जलने वाले पेट्रोल और डीजल से उपजे धुएं की परत को वातावरण में जाने से बहाल कौन रोकने का प्रयास कर रहा है। ऐसे में स्मोग का संकट यदि आने वाले समय में और भी गहरा हो जय तो कोई ताज्जुब नहीं किया जाना चाहिए। नायर साल में यह संकट बहुत बड़ी चुनौती के रूप में आएगा और तब फिर सरकार अफरा तफरी में जुटेंगी विकल्प तलाशने।
दुनिया ने क्या किया
प्रदूषण या स्मोग को लेकर केवल भारत में ही चिंता नहीं बढ़ी बल्कि दुनिया के कई देशो में यहाँ से ज्यादा गंभीर होकर काम शुरू करने पड़े। रिहायशी इलाको को प्रदूषण से मुक्त बनाने के प्रयास तेजी से किये जाने लगे। दुनिया के चार बड़े महानगरों ने 2025 तक डीजल कारों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। मैक्सिको सिटी में हुए मेयरों के सम्मेलन में यह फैसला किया गया। हवा में फैला प्रदूषण कई देशों में सिरदर्द बन चुका है। दुनिया के कई बड़े महानगरों में तो यह इतने खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है कि लोगों का जीना मुहाल हो गया है। अब कई बड़े महानगरों में इस पर काबू पाने के लिए कार्ययोजना पर काम चल रहा है। दुनिया के चार बड़े महानगरों मैक्सिको सिटी,पेरिस, मेड्रिड और एथेंस ने इस दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए 2025 तक डीजल कारों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। यह फैसला मैक्सिको सिटी में आयोजित मेयरों के सम्मेलन में किया गया। कार का उत्पादन करने वाली कंपनियों से भी इस दिशा में काम करने की अपील की गयी। साथ ही इन महानगरों में लोगों के पैदल या बाइक या दूसरी ऊर्जा से चलने वाली कार से चलने को प्रोत्साहन देने पर जोर दिया गया।
प्रदूषण से हर साल तीस लाख मौतें
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर साल करीब तीस लाख लोगों की मौत हो जाती है। इनमें से ज्यादातर मौतें बड़े शहरों में होती हैं। डीजल कारों से ज्यादा प्रदूषण फैलने के कारण इन महानगरों में डीजल कारों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया गया है। जानकारों का मानना है कि इन कारों से कार्बन डाइ आक्साइड के साथ ही नाइट्रोजन डायोक्साइड व अन्य छोटे-छोटे कण निकलते हैं जो शहरी इलाकों में हवा में प्रदूषण फैलाने में मददगार साबित होते हैं। गार्जियन के मुताबिक वैसे अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह प्रतिबंध पूरी तरह लगा दिया जाएगा या शहर के कुछ इलाकों में ही इसे लागू किया जाएगा और यदि कुछ इलाकों में ही इसे लागू किया जाएगा तो वे इलाके कौन से होंगे।
प्रदूषण के साथ ट्रैफिक भी समस्या
वैसे यह कदम मैक्सिको सिटी के लिए काफी फायदेमंद होगा। इस शहर में हवाई प्रदूषण के कारण इस साल करीब दस लाख कारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। मैक्सिको सिटी के मेयर मिगेल एंजिल मनसेरा ने एक बयान में कहा कि यह किसी से छिपा नहीं है कि मैक्सिको सिटी में हम दोहरी समस्याओं से जूझ रहे हैं। ये समस्याएं हैं प्रदूषण व ट्रैफिक। उन्होंने कहा कि महानगर में हम बस जैसी पब्लिक परिवहन की व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहते हैं। इसके साथ ही साइकिल के इंफ्रास्ट्रचर को भी मजबूत किया जाएगा।
एथेंस के मेयर जार्जस कामिनीज ने कहा कि हम एक कदम और आगे बढ़ते हुए शहर से कारों को खत्म करना चाहते हैं। पेरिस के मेयर एनी हिडाल्गो ने कार उद्योग से प्रदूषण की समस्या को गंभीरता से लेने को कहा। उन्होंने कहा कि आज हम यह कहने के लिए खड़े हो गए हैं कि प्रदूषण, स्वास्थ्य संबंधी समस्या और उससे होने वाली मौतों की समस्या को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि प्रदूषण से निपटने के लिए साहसिक फैसले लेने होंगे। हम कार व बस उत्पादकों से इस मुहिम में शामिल होने की अपील करेंगे।
कोपेनहेगन में साइकिल ज्यादा, कारें कम
डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में साइकिलें ज्यादा हैं और कारें कम। शहर में २० जगह इलेक्ट्रिकल सेंसर लगे हुए हैं जो सडक़ पर चलती साइकिलों को ट्रैक करते हैं। पहले की तुलना में २०१५ में ३५०८० ज्यादा साइकिलें ट्रैक की गयीं जिन्हें मिलाकर कुल साइकिलों की संख्या २,६५,७०० पायी गयी है। इसकी तुलना में कुल कारों की संख्या २,५२,६०० है। साइकिलों की तादाद बढऩे का कारण सरकार द्वारा इन्हें जबर्दस्त तरीके से बढ़ावा दिया जाना है। यही वजह है कि पिछले २० साल में साइकिल ट्रैफिक ६८ फीसदी बढ़ा है। कोपेनहेगन में साइकिल इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए २००५ से अब तक सरकार १४३ मिलियन डॉलर खर्च कर चुकी है। दुर्घटनाएं न हों और साइकिल सवार कारों के प्रदूषण से बचे रहें इसके लिए साइकिल और पैदल यात्रियों के लिए अलग से पुल बनाए गए हैं। इन सबका असर यह है कि पिछले साल की तुलना में साइकिल ट्रैफिक १५ फीसदी बढ़ा है और कारों की तादाद १ फीसदी घटी है। लेकिन अभी यह कारवां रुका नहीं है। सरकार का प्लान है कि सन् २०२५ तक शहर का आधा ट्रैफिक साइकिल का हो जाए।
स्वच्छ ऊर्जा पर भारी निवेश करेगा चीन
चीन में भी प्रदूषण की समस्या चिंताजनक स्तर पर पहुंच गयी है। इस समस्या के निदान के लिए चीन ने स्वच्छ ऊर्जा पर लंबा चौड़ा निवेश करने का फैसला किया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने अगले चार सालों के दौरान हाइड्रोइलेक्ट्रिक व हवाई ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं पर 174 बिलियन डॉलर का निवेश करने का फैसला किया है। चीन के नेशनल एनर्जी एडमिनिस्ट्रेशन की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी है। यह राशि 2016 से 2020 के बीच खर्च की जाएगी। इस भारी भरकम राशि का अधिकांश हिस्सा विंड फाम्र्स बनाने पर खर्च किया जाएगा। इससे अगले चार सालों में करीब तीन लाख लोगों को जॉब मिलने की संभावना जताई जा रही है। वैसे चीन को नजदीक से जानने वालों के लिए यह खबर कोई आश्चर्य पैदा करने वाली नहीं है। चीन में स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं को हाल के दिनों में काफी महत्व दिया जा रहा है। चीन कोयला से पैदा होने वाली ऊर्जा से धीरे-धीरे हाथ खींच रहा है। चीन ने पेरिस में हाल में हुए जलवायु समझौते पर अमेरिका के साथ ही हस्ताक्षर किए हैं।