काले धन के दो मुहाने


भारत में कालेधन की समानान्तर अर्थव्यवस्था चल रही है और इस पैसे ने कई तरह से हम सभी को प्रभावित किया है। इससे समाज में असमानता, भ्रष्टाचार , महंगाई और देश को जड़ता में ले जाने का काम किया है। लोकतंत्र का मजाक बन गया है सो अलग। काले धन की समानांतर अर्थव्यवस्था बताती है कि भारत में भ्रष्टïचार कितना गहरे पैठ चुका है। काला धन है ही भ्रष्ट और गलत तरीके कमाया गया धन। यह घूस, चोरी, डकैती, कमीशन, टैक्स न देना वगैरह तमाम गलत तरीकों से कमाया गया पैसा है। काले धन की पैदावार जितनी सरकारी सेक्टर में है उतनी ही निजी सेक्टर में भी है। 
भारत ने युनाइटेड नेशन कन्वेंशन एगेंस्ट करप्शन-2005 के प्रावधानों पर हस्ताक्षर किया है। इसके तहत सरकार देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून और दूसरे तरीके से प्रभावी कदम उठाने के प्रति प्रतिबद्ध है। हमारे यहां कानून में आईपीसी के तहत कई ऐसी धाराएं हैं, जो भ्रष्टाचार को रोकने में सहायक हैं। जनता के हाथों में ऐसे कई औजार दिए गए हैं, जिनके इस्तेमाल से हर नागरिक भ्रष्टाचार से लड़ सकता है। 


सूचना का अधिकार : 
यह सबसे बड़ा हथियार है। कोई भी नागरिक सूचना के अधिकार का प्रयोग कर सूचनाएं प्राप्त कर सकता है। इससे उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ लडऩे में मदद मिलती है।  
व्हिसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट :
 घोटाले, भ्रष्टïचार आदि का भंडाफोड़ करनेवाले को सुरक्षा प्रदान करने का प्रवाधान है। 
राइट टू पब्लिक सॢवस एक्ट :
 नागरिकों को नियत समय के भीतर सेवा मिलने का अधिकार इस कानून के तहत दिया गया है। समय पर काम नहीं करने पर सजा का प्रावधान है।   
लोकपाल व लोकायुक्त एक्ट :
 भ्रष्टाचार की शिकायत कोई भी नागरिक लोकपाल या लोकायुक्त के यहां कर सकता है। लोकायुक्त राज्य के अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों पर भ्रष्टाचार के मामलों की जांचता है।
इसके अलावा अलग-अलग विभागों में विजिलेंस महकमा होता है जिससे शिकायत की जा सकती है। इसी तरह सीबीआई से भी घूसखोरी वगैरह की शिकायत की जा सकती है। 
ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार भारत में 62 प्रतिशत लोग घूस देते हैं।
ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेशनल की 2015 की रिपोर्ट में 168 देशों की सूची में भारत का भ्रष्टाचार के मामले में 68वां स्थान है।
डेनमार्क, न्यूजीलैंड, फिनलैंड, स्वीडेन व नार्वे दुनिया के टॉप 5 देश हैं, जहंा बहुत कम भ्रष्टाचार है। इनमें डेनमार्क नंबर वन है। भ्रष्टï देशों में म्यांमार (156वां), बांग्लादेश (139), नेपाल (130) और पाकिस्तान 117वें स्थान पर है।
भ्रष्टाचार कम करने के डेनमार्क मॉडल की खूबी 
राज्य पर समाजिक सुरक्षा की जिम्मेदारी।
स्वास्थ्य व शिक्षा की सुविधाएं आसानी से उपलब्ध।
सभी को पेंशन की सुविधा।  
भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कानून।
बजट व दूसरे सरकारी खर्च सार्वजनिक।
मजबूत और स्वतंत्र मीडिया।
सरकार से टैक्स की चोरी
मेडिकल सेक्टर में उपभोक्ता यानी मरीज के नाम पर टैक्स की बड़ी चोरी होती है। डॉक्टर फीस लेते हैं लेकिन रसीद शायद ही कोई देता हो। यदि कोई डॉक्टर दिन में १०० मरीज देखता है तो अपने आयकर रिटर्न में दस मरीज से प्राप्त फीस ही दिखाता है। लखनऊ का ही उदाहरण लें तो केजीएमसी व पीजीआई जैसे बड़े चिकित्सा केन्द्र होने के बावजूद मरीजों को प्राइवेट डॉक्टरों व अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है। प्राइवेट प्रैक्टिस रोकने के दावों के विपरीत तमाम सरकारी डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस में लगे हुए हैं और लाखों रुपए का ‘कारोबार’ हर महीने करते हैं। मरीज तो  सिर्फ पर्चे पर दवाई का नाम पाता है। कोई आधिकारिक रसीद नहीं पाता। पूरी तरह कैश के इस काम में कर चोरी बहुत आसान है। प्राइवेट प्रैक्टिस में लगे सरकारी डॉक्टर दोगुनी कमाई करते हैं। एक अनुमान के मुताबित तीन चौथाई से अधिक सरकारी डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं। सरकारी डॉक्टर होने के कारण वे प्राइवेट प्रैक्टिस स्वीकार ही नहीं सकते अत: लिखापढ़ी में कोई कमाई दिखाई नहीं जाती। इसी तरह डायगनोस्टिक सेंटर का भी बड़ा गोरखधंधा है। ऐसे सेंटर अपने एजेंटों और डॉक्टरों को कमीशन देते हैं। कमीशन का खर्चा लिखापढ़ी में दिखाया नहीं जाता। जांच फीस का कोई मानक नहीं है। यह भी पूरी तरह कैश का बिजनेस है। बाजार को देखें तो वहां टैक्स चोरी के बहुत रास्ते हैं और यही वजह है कि व्यापार कर विभाग घूसखोरी में हमेशा आगे रहता है। दुकानों में टैक्स चोरी इनवायस और रिकॉर्ड में हेर फेर करके होती है लेकिन उन दुकानों का तो कहना ही क्या जहां रोजाना जबर्दस्त बिक्री होती है और कोई खाता-बही नहीं रखा जाता। मिसाल के तौर पर मिठाई की दुकानें। ८० फीसदी दुकानों पर कोई रसीद नहीं दी जाती। कितना माल बिका और किस रेट पर, कोई हिसाब नहीं। यह कहानी सिर्फ मिठाई व बेकरी वाले की नहीं है बल्कि खाने-पीने के धंधे में लगी तमाम अन्य दुकानों की भी है। हर शहर में कुछ खास और मशहूर चाट, समोसा, कचौड़ी, खस्ता व खाने-पीने का सामान बेचने वाली दुकानें होती हैं। इनके यहां भारी भीड़ रहती है। बेहिसाब बिक्री होती है लेकिन सब बिना किसी लिखापढ़ी के। इसी तरह ढेरों दुकानों में बिल और बिना बिल से बिक्री होती है। बिना बिल वाली बिक्री वह जिस पर टैक्स चुराया जाता है। 
जेब पर डाके से कमाया गया काला धन
यह काली कमाई होती है - जनता की जेब पर डाका डाल कर कर। चूंकि यह डाके का पैसा है सो यह डिक्लेयर नहीं किया जाता अत: टैक्स का कोई सवाल नहीं है। इस काले धन का सबसे विकृत स्वरूप है सरकारी सेक्टर। काले धन के इस जनरेशन को ही आमतौर पर भ्रष्टïचार कहा जाता है। सरकारी सेक्टर से प्रत्येक नागरिक का साबका पड़ता है। केंद्रीय सेक्टर की बात करें तो सबसे पहले आता है रेलवे। ट्रेन में सीट के लिए टीटी-कंडक्टर पैसे लेते हैं। इसके अलावा पैसा लेकर बिना बुकिंग के सामान यात्री बोगियों में ढोया जाता है। जीआरपी,आरपीएफ, नियत दर से महंगा सामान बेचने वाले वैध-अवैध वेंडर यह सब काली कमाई ही कर रहे हैं। राज्य सेक्टर को देखें तो शहरों के विकास प्राधिकरण,नगर निगम, व्यापार कर, आरटीओ, बिजली, परिवहन, पीडब्लूडी, सिंचाई विभाग, रजिस्ट्री और न जाने कितने महकमे ऐसे हैं जहां बिना घूस दिए जायज काम भी नहीं होता। नक्शा पास कराना हो, पार्किंग की जगह दुकानें बनाना हो, मीटर बदलवाना हो, नया कनेक्शन लेना हो, दुकान का पंजीकरण कराना हो, सोसाइटी पंजीकरण कराना हो, जमीन रजिस्ट्री करानी हो, यानी कोई भी काम हो बिना पैसे दिए होना दुष्कर है। इस भ्रष्टï सरकारी तंत्र में बाबू से बड़े से बड़ा अफसर तक शामिल है। सबसे ज्यादा जरूरी तो सरकारी तंत्र के भ्रष्टïाचार की कमर तोडऩा है क्योंकि यही हर नागरिक को सबसे ज्यादा परेशान करता है और समाज को गलीज बनाता है। पुलिस विभाग तो घूस और लूट का पर्याय माना जाता रहा है। इस महकमे से जुड़े किसी भी व्यक्ति को कोई भी ईमानदार मानता ही नहीं है। सिपाही से अफसर तक की काली कमाई का अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। यही हाल एजूकेशन सेक्टर का है। काले धन पर केंद्र की विशेष जांच टीम ने भी माना है कि काले धन के जनरेशन में शिक्षा सेक्टर का भी बड़ा योगदान है। मोटा डोनेशन लेकर एडमिशन, टीचरों को कम पैसा दे कर ज्यादा की रसीद पर हस्ताक्षर, कैश में फीस, यह सब काले धन को विस्तार देते हैं। 
जनरेशन काले धन का 
भ्रष्टïचार
एलडीए अफसर हैं श्रीमन कमाई काली। वह श्री शॉर्टकट से कोई काम कराने (मिसाल के तौर पर बिल्डिंग का नक्शा) के बदले में एक लाख रुपए घूस मांगते हैं। श्री शॅार्टकटनम नकद एक लाख कमाई काली जी को देते हैं क्योंकि कोई भी ड्राफ्ट या चेक से घूस नहीं लेता। अब यह पैसा कमाई काली जी अपने हिसाब किताब में तो दिखाएंगे नहीं सो इस पर टैक्स भी नहीं देंगे। अब कमाई काली ने दो अपराध किए - शॉर्टकटनम की जबे पर डाका डाला और सरकार को टैक्स भी नहीं दिया। अब १ लाख रुपए का काला धन जनरेट हो गया। 
संपत्ति की बिक्री 
श्रीमन लालच प्रसाद ने श्री बे-ईमान से ५० लाख रुपए कीमत की संपत्ति खरीदी। लालच प्रसाद ने ३५ लाख रुपए तो चेक या डीडी से लिए और बाकी कैश में। अब वह ३५ लाख पर स्टांप ड्यूटी देंगे और श्री बे-ईमान ३५ लाख की वैल्यू पर कैपिटल गेन टैक्स देंगे। यानी इस सौदे से १५ लाख रुपए का काला धन जनरेट हुआ।
बिना बिल माल या सेवा की बिक्री
आप किसी फर्नीचर की दुकान से सोफासेट खरीदते हैं। दुकानदार दाम बताता है ५८ हजार रुपए तथा १४.५ फीसदी टैक्स। डिस्काउंट मांगने पर वह बिना बिल के ५५ हजार में देने की बात करता है। रसीद के बदले वह सादे कागज पर या एक कोटेशन दे देता है। अब यहां ५८ हजार रुपए का काला धन जनरेट हुआ।
ऐसा खर्चा जो हुआ ही नहीं
एक व्यापारी अगर अपने अकाउंटेंट से कहे कि मैं इतना टैक्स नहीं दे सकता, कुछ जुगाड़ करो तो क्या होता है? अकाउंटेंट फर्जी खर्चे खाता-बही में दर्ज कर देता है। अब अगर व्यापारी वास्तविक २५ लाख मुनाफे की जगह सिर्फ १५ लाख का मुनाफा दिखाता है तो दस लाख रुपए का काला धन जनरेट हो जाता है। 
कमीशन
२जी, कोयला ब्लॉक, सडक़-पुल-रेलवे वगैरह के ठेके यह सब कहीं न कहीं घोटाले की शक्ल तब्दील होते नजर आते हैं। पैसा खर्च होने के बाद काम नहीं होता या घटिया काम होता है। वजह है मंत्रियों और बड़े अफसरों तक घूस दिया जाना। यह कहीं न कहीं हम सबको प्रभावित करता है। यह पैसा समाज में असमानता बढ़ाता है, कल्याणकारी योजनाओं को ठप करता है और नकली अर्थव्यवस्था को जन्म देता है जहां चीजों की कीमतें नकली होती हैं। 
मलाईदार पोस्टिंग
सरकारी कर्मचारी के लिए तो कोई भी सीट, कहीं भी तैनाती एक समान होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है। मलाईदार पोस्टिंग यानी ऐसी तैनाती जहां खूब घूस ली जा सके। इसी लालच में सरकारी कर्मचारी अपने सीनियर को भी घूस देता है और यही काले धन का हिस्सा बनता है।
कैसे बन जाता है गोरा?
काला धन पैदा करने के बाद बिना कोई टैक्स दिए उसका रंग बदलना थोड़ा मुश्किल काम होता है। काला धन बैंक में तो जमा किया नहीं जा सकता। सो या तो इस पैसे को सूटकेसों, अलमारियों, गद्दों, बोरों में भर कर रखा जाए या संपत्ति या सामान खरीदने में खर्च किया जाए। 
खेती की कमाई
खेती की आमदनी पर टैक्स नहीं पड़ता। काली कमाई वाले कृषि उत्पादों का कारोबार करने वालों से फर्जी रसीदें ले लेते हैं और कागजों में दिखाते हैं जैसे यह उनके द्वारा की गयी बिक्री है। ऐसे लोग अपनी या पत्नी की किसी गांव में पुश्तैनी जायदाद का जिक्र दस्तावेजों में कर देते हैं और किसानी की कमाई दिखाते हैं। 
दाम बढ़ा कर बिक्री
कोई ग्राहक किसी बड़े सरकारी अफसर से प्लाट खरीदना चाहता है। प्लाट है ४० लाख का लेकिन अफसर चाहता है कि चेक से ६० लाख का पेमेंट किया जाए। बदले में वह २० लाख रुपए कैश में दे देगा और साथ में रजिस्ट्री फीस और स्टांप ड्यूटी भी नकद में खरीदार को देगा। अब चेक से मिला पैसा तो बिना टैक्स दिए गोरा हो गया और यह पैसा वह किसी अन्य संपत्ति में लगा कर लॉंग टर्म टैक्स छूट भी ले लेगा। 
हवाला का रास्ता
मान लीजिए कि किसी नेता या अफसर के पास ५० लाख रुपया कैश है। यह काला पैसा है सो बैंक में जा नहीं सकता। अब इसे किसी हवाला एजेंट को पकड़ाया जाएगा। एजेंट यह पैसा लेगा। इस पैसे के बराबर डॉलर, दिरहम या पाउंड किसी अन्य देश में किसी सहयोगी एजेंट को सौंप देगा। नेता या अफसर को यह रकम विदेश से किसी निजी कंपनी में निवेश, एफडीआई आदि के रूप में वापस मिलेगी। या फिर यह रकम विदेश में कहीं निवेश कर दी जाएगी। इस तरह बिना टैक्स दिए काले को गोरा बना दिया गया। नोटबंदी में सबसे तगड़ी मार हवाला के इसी रैकेट को लगी है।
गिफ्ट की रकम
किसी भी रकम को अपने घर के किसी समारोह में दिए गए उपहार के तौर पर दिखा देना तो आसान चोरी है। गैर-रिश्तेदारों और दोस्तों से मिली उपहार स्वरूप रकम पर टैक्स पड़ता है। लेकिन मोटा काला पैसा रखने वाले गिफ्ट में पैसा दिखा कर उस पर टैक्स दे देते हैं और काला धन सफेद हो जाता है। अगर कोई नेता कहे कि उसके जन्मदिन पर शुभचिंतकों ने २०० करोड़ रुपए गिफ्ट में दिए तो बस इस रकम पर टैक्स दे देना है और रकम हो गयी सफेद।
फर्जी बिक्री 
कोई माल या सेवा बिकी नहीं नहीं लेकिन बही खाता में खूब बिक्री दिखाई जाए। या फिर जैसे कोई नेता काली कमाई से पिक्चर बनवाए जो पूरी तरह पिट जाए लेकिन सिनेमा घर में महीनों तक हाउसफुल दिखाई जाए। इस फर्जी काम में बिजनेसमैन सहयोग करता है। 
काले धन का  खर्चा
संपत्ति में निवेश
श्रीमन एबीसी ९० लाख में मकान बेचते हैं। इसमें ३० लाख रुपए कैश लते हैं। फिर ६० लाख का मकान खरीदते हैं और वही ३० लाख रुपए कैश मेंं देते हैं। इस तरह काला पैसा फिर काले में खर्च किया जाता है। यह ढर्रा खास तौर पर मध्यमवर्ग के काले धन वालों में पाया जाता है। 
कैश में खर्चा
आलीशान शादियों, समारोहों, घरों के इंटीरियर में मोटा खर्च, व्हाइट गुड्स की खरीदारी, महंगी सेवाएं वगैरह ऐसे खर्च जहां भुगतान के समय आईडी की दरकार नहीं होती वहां काला पैसा जम कर खर्च किया जाता है। एडमिशन के लिए डोनेशन फीस, वगैरह में कैश भुगतान भी इसी में शामिल है। 
सोना, हीरे-जवाहरात
कैश जमा करने की बजाए हीरे-जवाहरात में पैसा खपाया जाता है। काली कमाई वाले अलग-अलग दुकानों से छोटी-छोटी मात्रा में सोना और जेवर खरीदते हैं वह भी अलग अलग नामों से।
चुनाव में खर्च
लोकसभा चुनाव हो या ग्राम प्रधान या पार्षद का, सबमें बेहिसाब खर्च होता है। चुनाव आयोग के अनुसार लोकसभा चुनाव मेन खर्च की सीमा ७० लाख है लेकिन खर्च होता है दसियों करोड़। यह सब वही भ्रष्टïाचार वाला काला धन है। 
अफवाहों का बाजार
काले धन पर कार्रवाई के साथ साथ इंटरनेट और सोशल मीडिया पर तरह-तरह के मजाक तो चल निकले ही, साथ में अफवाहों का बाजार गर्म हो गया। अधकचरी जानकारियां, जानबूझ कर भ्रम फैलाना और लोगों को उकसाने वाले वाले ढेरों मैसेज चले और आज भी चल रहे हैं। 
ऐसा ही एक मैसेज था कि पहली अप्रैल से सभी प्रापर्टी एक साल के लिए प्रतिबंधित हो जाएंगी और जबतक हर व्यक्ति अपनी प्रापर्टी को ई-पासबुक में रजिस्टर नहीं कर लेता तब तक प्रापर्टी बेचना-खरीदना निषेध होगा।
बहरहाल यह मैसेज पूरी तरह गलत निकला। अभी तक तो ऐसा कोई आदेश नहीं आया है लेकिन यह सच्चाई है कि प्रापर्टी की ई-पासबुक नाम चीज है। दिल्ली, केरल, उड़ीसा आदि तमाम जगह यह व्यवस्था लागू है। दक्षिण दिल्ली नगर निगम के प्रॉपर्टी टैक्स डिपार्टमेंट ने 2016-17 से ई-पासबुक की स्कीम शुरू की है। 
इसमें सभी करदाताओं को ई-पासबुक दी गयी है। ई-पासबुक के लिए एक सॉफ्टवेयर है जिसमें दिए गए टैक्स, बकाए टैक्स का पूरा विवरण रहता है। इससे ऑनलाइन ही प्रॉपर्टी टैक्स जमा कराने की सुविधा है। एमसीडी की वेबसाइट में ऑन लाइन ई-पासबुक के लिए रजिस्टर कर सकेंगे और इसके बाद उन्हें अपने प्रॉपर्टी टैक्स से जुड़ी तमाम जानकारी मिलेगी। एमसीडी मैन्युअल और ऑनलाइन दोनों प्लैटफॉर्म पर मौजूदा प्रॉपर्टी टैक्स के विवरण को एक सिस्टम में लाएगी। केरल और उड़ीसा का उदाहरण देखें तो सभी भू-मालिकों, पट्टïाधारकों के लिए ई-पासबुक की व्यवस्था है।

नोटबंदी के लांगटर्म फायदे 
घटेगी ब्लैकमनी: बड़े नोटों को बंद करने से देश में करीब तीन लाख करोड़ का कालाधन खत्म होने का अनुमान लगाया गया है। भारतीय अर्थव्यवस्था में ब्लैकमनी का अधिकांश हिस्सा पांच सौ व एक हजार के नोट के रूप में है और इन नोटों के बंद होने से इस पर करारी चोट लगनी तय है। देश में फर्जी करेंसी भी मार्केट में दौड़ रही है जो बैंकिंग सिस्टम से दूर है। नोटबंदी से यह फर्जी करेंसी चलन से बाहर हो जाएगी जिसका कीमतों पर भी असर पडऩा तय माना जा रहा है। ग्रोथरेट बढ़ेगी:  इस फैसले से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में एक से दो फीसदी की तेजी आने का अनुमान है। भारत में जीडीपी की 12 फीसदी करेंसी सर्कुलेशन में है जबकि इमर्जिंग इकोनॉमी में यह तीन से चार फीसदी और विकसित देशों में उससे भी कम है। सरकार का रेवेन्यू बढ़ेगा। विकास परियोजनाएं चलाने में मदद मिलेगी।सस्ता होगा कर्ज:इस कदम से बैंकों में जमा राशि बढ़ेगी जिससे इंटरेस्ट रेट में कमी करना आसान हो जाएगा। कुछ बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती शुरू भी कर दी है। वैसे भी दुनिया के विकसित देशों में ब्याज दर दो से ढाई फीसदी के बीच है जबकि उसकी तुलना में भारत में काफी ज्यादा है। प्रॉपर्टी रिसर्च कंपनी जेएलएल का अनुमान है कि अगले छह महीनों में प्रॉपर्टी की कीमतों में 25-30 फीसदी कमी आएगी। बैंकिंग व आईटी सेक्टर को फायदा:नोटबंदी से कैशलेस इकोनॉमी मजबूत होगी। बैंकिंग सिस्टम में बारह लाख करोड़ से अधिक की राशि आ जाएगी। कैशलेस इकोनॉमी तैयार करने आईटी कंपनियों की खासी मदद की जरूरत होगी और इससे आईटी इंडस्ट्री को काफी मजबूती मिलेगी।टैक्स बेस बढऩे से सबको फायदा:अप्रैल,2017 से जीएसटी लागू होने जा रहा है। इस लिहाज से यह इंटीग्रेटेड स्टेप है जिससे आगे देश को खासा फायदा होने जा रहा है। देश की सवा सौ करोड़ से अधिक की आबादी में अभी करीब 2.87 करोड़ लोग ही टैक्स रिटर्न दाखिल करते हैं और इनमें से सिर्फ 1.25 करोड़ लोग ही टैक्स देते हैं। इससे टैक्स देने वालों की संख्या में खासी बढ़ोतरी होने की उम्मीद जताई जा रही है। टैक्स बेस बढऩे से सरकार के खजाने में ज्यादा पैसा आएगा और आगे सरकार टैक्स की दर घटा सकती है जिससे टैक्सपेयर्स को फायदा होगा। 

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