अस्तित्व है प्रेम 


प्रेम कोई भावना नहीं है। यह आपका अस्तित्व है। मैं आपसे बताता हूं, आपके भीतर एक परमानंदका फव्वारा है, प्रसन्नता का झरना है। आपके मूल के भीतर सत्य, प्रकाश, प्रेम है, वहां कोई अपराध बोध नहीं है, वहां कोई डर नहीं है। मनोवैज्ञानिकों ने कभी इतनी गहराई में नहीं देखा। श्रद्धा यह समझने में है कि आप हमेशा वो पा जाते हैं जिसकी आपकी ज़रुरत होती है। आज भगवान का दिया हुआ एक उपहार है- इसीलिए इसे प्रेजेंट कहते हैं। मानव विकास के दो चरण हैं- कुछ होने से कुछ ना होना और कुछ न होने से सबकुछ होना। यह ज्ञान दुनिया भर में योगदान और देखभाल ला सकता है। जब आप अपना दु:ख बांटते हैं, वो कम नहीं होता। जब आप अपनी ख़ुशी बांटने से रह जाते हैं, वो कम हो जाती है।अपनी समस्याओं को सिर्फ ईश्वर से सांझा करें और किसी से नहीं, क्योंकि ऐसा करना सिर्फ आपकी समस्या को बढ़ाएगा।अपनी ख़ुशी सबके साथ बांटें। दूसरों को सुनो, फिर भी मत सुनो। अगर तुम्हारा दिमाग उनकी समस्याओं में उलझ जाएगा, न सिर्फ वो दुखी होंगे, बल्कि तुम भी दुखी हो जओगे। हमेशा आराम की चाहत में, तुम आलसी हो जाते हो। हमेशा पूर्णता की चाहत में तुम क्रोधित हो जाते हो।
हमेशा अमीर बनने की चाहत में तुम लालची हो जाते हो। बुद्धिमान वो है जो औरों की गलती से सीखता है। थोड़ा कम बुद्धिमान वो है जो सिर्फ अपनी गलती से सीखता है। मूर्ख एक ही गलती बार बार दोहराते रहते हैं और उनसे कभी सीख नहीं लेते। एक निर्धन व्यक्ति नया साल  वर्ष में एक बार मनाता है। एक धनाड्य व्यक्ति हर दिन। लेकिन  जो  सबसे समृद्ध होता है वह हर क्षण मनाता है। अपने कार्य के पीछे की  मंशा को देखो। अक्सर तुम उस चीज के लिए नहीं जात जो तुम्हे सच में चाहिए। यदि तुम लोगों का भला करते हो, तुम अपनी प्रकृति की वजह  से करते हो। स्वर्ग से कितना दूर? बस अपनी आंखें खोलो और  देखो। तुम स्वर्ग में हो। तुम दिव्य हो। तुम मेरा  हिस्सा  हो। मैं  तुम्हारा हिस्सा हूं। तुम्हे सर्वोच्च आशीर्वाद दिया गया है, इस गृह का सबसे अनमोल ज्ञान दिया गया है। तुम दिव्य हो, तुम परमात्मा का हिस्सा हो। विश्वास के साथ बढ़ो। यह अहंकार नहीं है, यह पुन: प्रेम है। तुम्हारा मस्तिष्क भागने की सोच रहा है और उस अस्तर पर जाने का प्रयास नहीं कर रहा है जहां गुरु ले जाना चाहत हैं, तुम्हे उठाना  चाहते हैं। चाहत, या  इच्छा  तब पैदा होती  है जब आप खुश नहीं होते। क्या आपने देखा है? जब आप बहुत खुश होते हैं तब संतोष होता है। संतोष का अर्थ है कोई इच्छा न होना। इच्छा हमेशा मैं पर लटकती रहती है। जब स्वयं मैं लुप्त हो रहा हो, इच्छा भी समाप्त हो जाती है, ओझल हो  जाती है। 
यदि आपकी ख़ुशी दूसरो पर निर्भर करती है तो आप एक गुलाम हो। अभी आप पूरी तरह से मुक्त नही हुए हो अभी आप बंधन (गुलामी) में बंधे हो। एक बच्चे को विशाल एकांतता की जरुरत होती है, उसे ज्यादा से ज्यादा एकांतता में रहने देना चाहिये, ताकि वह अपनेआप को विकसित कर सके। अपने रिश्ते में हमेशा सुखद रहे, तन्हाई में हमेशा सतर्क रहे। ये दोनों बातो आपके लिए हमेशा मददगार साबित होंगी क्योकि ये बाते एक पक्षी के दो पंखो के समान है। सिर्फ आपके पाप ही आपको दुखी कर सकते है। जो आपको अपने आप से दूर ले जाने की कोशिश करते है, ऐसी चीजो को अनदेखा करना ही बेहतर होंगा।

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