पकिस्तान के अंदरूनी हालात
संजय तिवारी
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत के साथ ही पाकिस्तान की भी हालात पर चर्चा बहुत जरूरी है। पाकिस्तान की एक कमजोरी है की वह की पूरी सियासत कश्मीर मुद्दे और भारत के विरोध को ही आधार बनाकर की जाती है। पकिस्तान के इतिहास से यही प्रमाणित भी हो रहा है की जिस भी पाकिस्तानी लीडर को सत्ता पानी होती है वह सीधे तौर पर भारत के विरोध का स्वर अलापने लगता है। वह एक तरह से राजनीति की धुरी ही भारत का विरोध है। दूसरी बात यह की लोकतंत्र होते हुए भी पाकिस्तान का असली सत्ताकेंद्र वह की सेना के हाथ ही होता है। पाकिस्तानी सेना के अलंबरदारों को लोकतंत्र रास नहीं आता। यही कारण है की बहुत छोटी उमरा के इस देश को बार बार तानाशाही के हाथो संचालित होने की मज़बूरी भी है। इस समय भी हालात बहुत अच्छे नहीं दिख रहे तभी तो नवाज़ शरीफ को खुद को सुरक्षित करने के लिए बिलकुल अनोखा बयान देना पड़ा। उन्हें अपनी राष्ट्रीय नीति से इतर उत्तर कर कहना पड़ा की यदि आतंकियों पर सेना ने शिकंजा नहीं जमाया तो पकिस्तान दुनिया में अलग थलग पद जाएगा। देखा जाय तो एक तरह से यह भारत की बहुत बड़ी कूटनीटिक विजय भी है। जो नवाज़ संयुक्त राष्ट्र में मंच से कश्मीर का मुद्दा उछाल कर भारत को ही कठघड़े में खड़ा करने की जुगत कर रहे थे उन्ही नवाज़ का यह बयान यह साबित करता है की पकिस्तान में सेना और सरकार में सब ठीक नहीं है।
पकिस्तान के अंदरूनी हालात पर बारीक नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार तथा विदेश मामलो के जानकार कमर आगा जैसे लोग भी इस समय पकिस्तान की दशा कुछ ऐसी ही देख रहे है। वे भी मानते है कि इस वक्त पाकिस्तान के अंदरूनी हालात बहुत खराब हो चुके हैं और सरकार बिल्कुल ही अप्रभावी नजर आ रही है। एक तो पाक सेना वहां की नागरिक सरकार की सुन नहीं रही है और दूसरे विपक्षी पार्टियां भी उसे एक कमजोर सरकार मान रही हैं। पाकिस्तान तहरीके- इंसाफ पार्टी के सदर इमरान खान ने तो यहां तक कह दिया है कि पाकिस्तानी अवाम नवाज शरीफ जैसा बुजदिल नहीं है और हम सब अपनी सेना के साथ खड़े हैं. जब भी पाकिस्तान के अंदरूनी हालात खराब होते हैं और वहां की सेना और सरकार के बीच सामंजस्य बिगड़ता है, तब-तब सत्ता-पलट की आशंका बढ़ जाती है. दूसरी ओर, उड़ी आतंकी हमले के बाद से भारत और कुछ पड़ोसी देशों में पाकिस्तान-विरोध में जो भी गतिविधियां हुई हैं, उससे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्तर पर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान कुछ अलग-थलग तो पड़ ही गया है. पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के मद्देनजर इस बात की संभावना बढ़ रही है कि वहां सत्ता-पलट हो सकता है. लेकिन, यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि अब तक पाकिस्तान में जब-जब सत्ता-पलट हुआ, तब-तब पाकिस्तान को अमेरिका का समथर्न मिल जाता था और सत्ता-पलट के बाद अमेरिका उसे मान्यता दे देता था. अब देखना यह होगा कि क्या इस बार भी अमेरिका उसका साथ देगा, क्योंकि फिलहाल पाक-अमेरिका के बीच संबंध पूर्व की तरह बहुत अच्छे नहीं हैं. अमेरिका ने अपने आधिकारिक बयान में पाकिस्तान को फटकारा है कि वह परमाणु हमले की धमकी न दे. ऐसे में अगर पाकिस्तान में सत्ता-पलट होता है, तो उसे सिर्फ चीन पर ही निभर्र रहना पड़ेगा।
दरअसल बात यह है कि पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के खराब होने और उस पर उसका नियंत्रण न होने के कई पहलू हैं। बलूचिस्तान में काफी दिनों से पाक-विरोधी आग लगी हुई है। गिलगित, बाल्टिस्तान और सिंध में प्रदर्शन हो रहे हैं। पाक सेना चारों तरफ फैली हुई है. वहीं, एक तरफ तो कट्टरपंथियों का पाक सरकार पर दबाव है कि वह भारत के खिलाफ गतिविधियों को अंजाम दे, दूसरी तरफ पाक सेना वहां की सरकार पर हावी है। ऐसे हालात में कोई भी सरकार अपना काम ठीक ढंग से कर ही नहीं सकती और पूरी शासन-व्यवस्था अनियंत्रित हो जाती है। यही वजह है कि पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ बिल्कुल ही अलग-थलग पड़ गये हैं। पाक सेना हमेशा से किसी चीज को सैन्य-नजरिये से ही देखती है, पाक सरकार की विदेश नीतियों और मजबूरियों की ओर ध्यान भी नहीं देती। हर मसले को पाक सेना जोर-जबरदस्ती और हथियार से ही हल करना जानती है, जो कि एक लोकतंत्र में बहुत दिनों तक नहीं चल सकती. ऐसे में अगर फिर सत्ता-पलट हुआ, तो पाकिस्तान के लिए बहुत महंगा पड़ेगा. सेना कुछ समय तक तो देश को संभालने की कोशिश करेगी, लेकिन लोकतांत्रिक स्तर पर जब पाकिस्तान के हालात बिगड़ेगे, तो उसके लिए संभालना बहुत मुश्किल हो जायेगा।
इस बार पकिस्तान की राजनीति में इमरान एक नए बड़े खिलाड़ी बन कर उभरे है।
ऐसा कहा जा रहा है कि इमरान राहील शरीफ के नजदीकी हैं। पाक सेना की मदद की वजह से ही इमरान अब तक अपनी पोजीशन बनाने में कामयाब रहे हैं और वे सेना के ‘पोस्टर ब्वॉय’ कहलाते हैं। पाक सेना जो चाहती है, इमरान वही करते हैं। इधर बीच इमरान की जो भी रैलियां हुई हैं या हो रही हैं, वे इस बात का संकेत कर रही हैं कि इमरान सेना के साथ मिल कर नवाज को अपदस्थ करना चाहते हैं। इन हालात के बीच कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि नवाज शरीफ को हटा कर पाक सेना कोई ऐसी शासनिक व्यवस्था बना दे, जिसमें इमरान को बिठा कर चुनाव की ओर बढे़। इस तरह से सेना पूरी तरह से नागरिक सरकार पर नियंत्रण कर सकती है।
पाकिस्तान की राजनीति इस समय अलग अंदाज में है। सेना का साथ इमरान को इसलिए भी है ताकि नवाज शरीफ को हटाने को लेकर पाक अवाम के बीच एक जनमत बन सके। नागरिक सरकार की इतनी हालत खराब हो जाती है कि पाकिस्तानी जनता कहने लगती है कि इससे अच्छा तो सेना ही है। यही वह महत्वपूर्ण पहलू है, जो पाकिस्तान में सत्ता-पलट के लिए खाद-पानी बन जाती है. सेना यह समझती है कि अगर वह सीधे तौर पर सत्ता-पलट करेगी, तो पाकिस्तानी जनता का भरोसा नहीं जीत पायेगी। इसलिए वह मौजूदा सरकार को बेबस करने की रणनीति पर काम करती है। हालांकि नवाज शरीफ भी सेना की एक कठपुतली ही हैं, लेकिन मुश्किल यह है कि पाक सेना नवाज पर भरोसा नहीं करती। इस बीच नवाज़ के नए बयान ने भी सेना को मुश्किल में डाला है। उधर एक और पहलू यह है कि पाक सेनाध्यक्ष राहील शरीफ रिटायर होनेवाले हैं। पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के मद्देनजर नवाज शरीफ की यह पूरी कोशिश होगी कि उनका कोई विश्वस्त ही सेना की कमान संभाले. लेकिन, यह मुश्किल है, क्योंकि राहील ने भी यह तय कर रखा है कि वे अभी यह पद नहीं छोड़ेगे और एक्सटेशन लेंगे, या अगर रिटायर होंगे, तो किसी अपने को सेनाध्यक्ष बनायेंगे। पाकिस्तान के अंदरूनी हालात कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। फिलहाल यह अभी देखनेवाली बात होगी जिसका सबसे ज्यादा इंतज़ार भारत को होगा। क्योकि पड़ोसी पाकिस्तान में जो कुछ भी होगा, उसका थोड़ा-बहुत तो भारत पर असर पड़ेगा ही। भारत यह बात जानता है, इसलिए वह हमेशा अपनी सुरक्षा-व्यवस्था को बनाये रखता है। और इसके लिए भारतीय सेना बहुत ही सक्षम है। भारत कभी नहीं चाहता कि पाकिस्तान के साथ जंग हो. भारत का केवल इतना ही कहना है कि पाकिस्तान आतंकवाद पर रोक लगाये. अभी तक तो यह था कि भारत सीमा-पार के आतंकवाद को रोकने की रणनीति में वह अपनी सीमा में रह कर ही लड़ाई लड़ता था, लेकिन अब भारत ने एक रणनीतिक फैसला लिया है कि वह आतंकियों को खत्म करने के लिए सीमा पार भी जा सकता है और इसको कर के भारत ने पकिस्तान को नए सिरे से नयी नीति अपनाने पर विवश भी कर दिया है।
बीते दिनों हुआ सर्जिकल स्ट्राइक इसकी मिसाल है. इस बात से पाकिस्तान काफी परेशान है। दूसरी बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अमेरिका का भी यह मानना है कि भारत को यह हक है कि वह सीमा पार या पाक अधिकृत क्षेत्र में पल रहे उन कट्टरपंथी समूहों पर हमले करने का, जिनको संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादी समूह घोषित कर रखा है। यह बात भी पाकिस्तान को परेशान कर रही है और इसिलए वहां के आतंकी समूह सरकार पर दबाव बनाते हैं कि वह भारत के खिलाफ कुछ करे. तीसरी बात यह कि पूरे दक्षिण एशिया में पाकिस्तान बिल्कुल अकेला हो गया है। सार्क में भारत के हिस्सा न लेने को जिस तरह से बाकी सार्क देशों से समथर्न में मिला है, उससे भी पाकिस्तान पर एक अंतरराष्ट्रीय दबाव बना है, जिसके चलते सार्क सम्मेलन स्थगित करना पड़ा। भारत अपनी कूटनीतिक रणनीति में अब तक कामयाब होता दिख रहा है। ये सारे हालात पाकिस्तान को परेशान करने के लिए काफी हैं। पाकिस्तान जब भी परेशान होता है तो वह धमकी देता है कि वह परमाणु हमला करने से नहीं हिचकेगा ,हो सकता है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद वहां के आतंकी समूह चुप नहीं बैठेंगे। भारत भी इसे समझता है, इसलिए, यहां महत्वपूर्ण यह हो जाता है कि भारतीय सेना को भी समय-समय पर सीमा पार कारर्वाइयां करनी चाहिए, चाहे जो भी हो. पाकिस्तान को भारत ने अब तक बहुत बर्दाश्त किया है, अब हद पार हो चुकी है. अब भारत को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए और ‘सॉफ्ट नेशन’ की अपनी छवि को तोड़ते हुए पाक द्वारा पल रहे आतंकवाद को खत्म करने के लिए सीमा पार तक रणनीतिक लड़ाई लड़नी चाहिए।
भारत के सामने स्थिति अलग है। भारत विश्व का सबसे बड़ा और सफल लोकतंत्र है। इस नाते सम्पूर्ण विश्व में उसकी एक पहचान है। उसे इस क्षेत्र की महाशक्ति के तौर पर देखा जाता है। इसलिए उसे इस दक्षिण एशियाई क्षेत्र में शांति स्थापना के अपने प्रयासों को छोड़ना नहीं चाहिए , उसे यह सन्देश भी दुनिया को देना जरुरी है। इस मामले में भारत की सरकार की रणनीति बहुत उम्दा है। खासकर वर्त्तमान सरकार ने अस्तित्व में आने के बाद से ही अपने शान्ति के प्रयासों को विश्व मंच पर प्रमाणित किया है। माना जा रहा है कि भारत ने अपनी विदेश नीति में कुछ बदलाव किए हैं। यह नीति ‘लुक ईस्ट’ कही जा रही है। मतलब भारत पश्चिमी देशों की बजाय अपने पास-पड़ोस और पूर्वी सीमा से लगने वाले देशों से अपने संबंधों को मजबूत बनाने की कोशिश कर रहा है। भारत ने पाकिस्तान को छोड़कर कमोबेश अपने सभी पड़ोसियों से आपसी रिश्ते सामंजस्यपूर्ण बना लिए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भूटान जाकर अपनी पहली विदेश यात्रा की थी। बांग्लादेश के साथ चार दशक पुराना सीमा विवाद सुलझा लिया गया है। श्रीलंका के साथ भी समुद्री सीमा और व्यापारिक आदान-प्रदान की बाधांए दूर की हैं। नेपाल में आंतरिक संघर्ष और अन्तर्विरोध के चलते भारत पर कुछ आक्षेप लगाए गए, लेकिन वहां शांति बहाली में अंतत: भारत की बड़े भाई वाली भूमिका ही काम आयी। बी.बी.आई.एन.(बांग्लादेश, भूटान, इंडिया और नेपाल) में सहयोग की पहल सफल हो गयी है। अब भारत उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर पर काम कर रहा है। ईरान के चा-बहार बंदरगाह से इसकी शुरूआत हो चुकी है। पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत इस रास्ते से अफगानिस्तान के साथ आपसी संबंधों को तरजीह दे रहा है। भारत वहां काफी पहले से शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि के क्षेत्र में सहयोग करता आ रहा है। भारत की हरसंभव कोशिश है कि वहां फिर से तालिबानी राज न आने पाए। कुछ लोगों की कोशिश थी कि अफगानिस्तान इस इलाके का इराक बन जाए। तब इस पूरे क्षेत्र में तबाही मच जाती। लेकिन भारत की पहल और सूझबूझ से अफगानिस्तान उन हालातों में जाने से बच गया। भारत उसकी पुनस्स्थापना में इसीलिए सहयोग कर रहा है। चा-बहार के रास्ते ईरान होते हुए भारत अफगानिस्तान तक अपनी पहुंच बनाए हुए है। ईरान से प्रतिबंध हटने के बाद भारत उसके साथ भी सहयोग बढ़ा रहा है। चा-बहार में भारत की मौजूदगी का मतलब सिर्फ मध्य एशिया से व्यापारिक आदान-प्रदान का नहीं है। बल्कि पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक पहुंचे चीन की चुनौती का जवाब भी है। लेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) रवि वत्रा कहते हैं कि भारत ताकत के जरिये शांति स्थापना की नीति पर नहीं चलता। ताकत के बल पर सत्ता परिवर्तन और उसके जरिये व्यवस्था परिवर्तन के सभी प्रयोग असफल हुए हैं, आज भी हो रहे हैं। भारत बातचीत के रास्ते स्थायी समाधान के खोज की नीति पर चल रहा है। इसका यह अर्थ नहीं कि भारत सैन्य नजरिये से अपनी ताकत नहीं बढ़ा रहा है। भारत आज सैन्य तैयारियों के लिहाज से बहुत मजबूत स्थिति में है। वह पहले भी अपने दुश्मनों के दांत खट्टे कर चुका है और आगे भी धूल चटाने का माद्दा रखता है। इसके बावजूद बातचीत की नीति और जांच में खुलेपन से उस पर आंच नहीं आती बल्कि उसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है।