बौद्धिक सम्पदा पर पड़ता साइबर डाका
संजय तिवारी
अध्यक्ष , भारत संस्कृति न्यास
नयी दिल्ली
9450887186
यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे देश का इतिहास बहुत प्राचीन है और उतनी ही प्राचीन है यहाँ की ज्ञान की परंपरा। इन्टरनेट के इस युग में दुनिया के साइबर अपराधियो की नज़र हमारे इस खजाने पर भी है। इस ज्ञान परंपरा में इतनी प्राचीन तकनीक सुरक्षित है जिसको दुनिया तलाश रही है और निश्चित तौर पर उसमे सेंध लगाने की भी कोशिश हो रही है।इसे हम एक तरह का डाका भी कह सकते है जिसके बारे में देश अभी बहुत जागरूक भी नहीं दिखता। प्राचीन समय में रचनात्मकता, बौद्धिकता व ज्ञान कौशल का व्यावसायिक इस्तेमाल करने की मनोवृत्ति विकसित नहीे हुई थी इसलिए बौद्धिक संपदा अधिकार एवं उसका संरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं था, परंतु वर्तमान समय में ज्ञान, विवेकशीलता, रचनात्मकता को पूंजी माना जाता है। मिशेल फूको का मत है कि, ‘ज्ञान शक्ति है। ज्ञान को प्राप्त करने के सभी तरीके शक्ति को प्राप्त करने के तरीके हैं।’ ज्ञान वर्तमान में ‘नवाचार’ व 'उद्यमिता’ को आधारस्तंभ बनाकर पूंजी सृजन का सशक्त माध्यम बन गया है और जिस कारक के चलते इन साधनों को बचाने अथवा बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण की जरूरत है, वह है ‘अस्वस्थ और अनियंत्रित प्रतिस्पर्धा’। व्यक्ति, समुदाय, राष्ट्र सभी इस प्रतिस्पर्धा की दौड़ में आगे निकल जाना चाहते हैं। श्रेष्ठ व सर्वोत्तम बनने की महत्वाकांक्षा में पेटेंट, ट्रेडमार्क, कॉपीराइट भौगोलिक संकेतकों के नियमों, कानूनों का उल्लंघन किया जाता है।
बौद्धिकता एवं रचनात्मकता की चोरी ‘अस्मिता की चोरी’ (identity theft) है। विभिन्न संदर्भ ग्रंथों, पुस्तकों आदि से आवश्यक सूचनाएं, तथ्य को हुबहू नकल कर अपनी मौलिक रचना के रूप में पेश करने से कॉपीराइट विवादों को जन्म मिलता है। कुछ समय पूर्व भारतीय मूल के विदेशी पत्रकार, लेखक फरीद जकारिया जो ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के लिए कॉलम लिखते हैं, पर कापीराइट नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था। जकारिया को जील लेपोर के लेख को हुबहू नकल (Plagiarize) कर टाइम व सीएनएन’ कॉम में प्रकाशित करने का दोषी पाया गया। टाइम मैगजीन व सीएनएन ने उन्हें इस अपराध के लिए निलंबित कर दिया था। एक अन्य बौद्धिक संपदा अधिकार विवाद नोवारटिस मामलें में देखा जा सकता है। नोवारटिस ने ल्यूकेमिया की औषधि ग्लिवेक को भारत में पेटेंट कराने का प्रयास किया लेकिन यह भारतीय पेटेंट अधिनियम की धारा 3(d) के उस मानक को पूरा नहीं करता जिसके अनुसार एक ज्ञात तत्व/पदार्थ (Known Substance) के केवल नये रूप में खोज (mere discovery of a new form) के आधार पर पेटेंट नहीं कराया जा सकता जब तक कि यह उस तत्व/पदार्थ की ‘औषधीय प्रभावोत्पादकता’ (therapeutic efficacy) में सुधार न करें। इसी आधार पर नोवारटिस के पेटेंट आवेदन को भारत में अस्वीकार कर दिया गया था। वैश्विक स्तर पर भी बौद्धिक संपदा अधिकार विवाद अक्सर उभरते हैं। ब्राजील के बौद्धिक संपदा कार्यालय ने कुछ समय पूर्व एप्पल के आइफोन ट्रेडमार्क आवेदन (स्मार्टफोन के विक्रय के लिए) को नामंजूर किया था। इसके अलावा एप्पल और सैमसंग के मध्य भी पेटेंट विवाद देखा गया। कुछ समय पूर्व नेसले के विरोध के उपरांत यूनाइटेड किंगडम के न्यायालय के निर्देशों के उपरांत कैडबरी (चाकलेट निर्माता) को अपने अपने पर्पल टेडमार्क से हाथ धोना पड़ा था। जुलाई 2013 में फ्रेंच कंपनी कैसटेल (castel) द्वारा एक चीनी प्रतिद्वंदी ट्रेडमार्क का उल्लंघन करने के अपराध में 5 मिलियन डॉलर का जुर्माना देना पड़ा था। दिसंबर 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट ने चीनी कंपनी शियाओमी (Xiaomi) के स्मार्टफोन भारत में बेचने पर अस्थायी प्रतिबंध लगाया है क्योकि स्वीडिश कंपनी एरिक्सन के साथ इसके पेटेंट विवाद हैं। इस प्रकार देखों तो हर दिन भारी मात्रा में बौद्धिक संपदा अधिकारों के हनन के मुद्दे और संबंधित विवाद सामने आते हैं। वर्तमान वाणिज्यिक युग में गला काट प्रतिस्पर्धा (cut throat competition) ने इन विवादों को बढ़ा दिया है। अतः इन विवादों से निपटने में वैश्विक स्तर पर वाइपो (WIPO) जैसी जिम्मेदार संस्थाओं व राष्ट्रीय/क्षेत्रीय स्तरों पर पेंटट विधायनों, संस्थाओं, कार्यालयों को अधिक विशेषज्ञता, दक्षता व अनुभव के साथ कार्य करने की जरूरत है।
जिस तरह से भारतीय ग्रंथो , उनके अंशो , अध्यायों , श्रुतियो , पुराणों आदि को इन्टरनेट पर प्रस्तुत किया जा रहा है और कोई कुछ बोल नहीं रहा है वह अंततः भारत के लिए ही घातक है। एक तो संस्कृत के ग्रंथो का गलत अनुवाद और अनर्थ प्रतुत हो रहा है दूसरी तरफ हमारे ही तथ्य अंग्रेजी में गढ़ के हमें ही बेचे भी जा रहे है। दरअसल यह इतना बड़ा विषय है कि केवल इस अध्याय में इस पर पूरी बात भी संभव नहीं लगती।
गूगल पर आरोप
वर्ष 2010 में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी गूगल ने चीन (Google China) से अपना कारोबार समेटने की धमकी देकर बड़ा धमाका कर दिया । गूगल की इस घोषणा के चंद घंटे बाद ही अमेरिकी कांग्रेस की तत्कालीन स्पीकर नैन्सी पलोसी (Nancy Pelosi) ने बयान देकर अमेरिका का नैतिक समर्थन भी गूगल को दे दिया। इंटरनेट और कारोबारी दुनिया की यह सबसे बड़ी खबर थी । भारत के पड़ोस का घटनाक्रम के नाते इस पर सभी का ध्यान भी गंभीर हुआ। दरअसल गूगल का चीन (Google China) में 35 फीसदी मार्केट शेयर था और आंकड़े बताते हैं कि वह लगातार बढ़ रहा था। यानी गूगल ने यह घोषणा ऐसे समय की जब उसका कारोबार बढ़ रहा था । उसने चीन से कारोबार (Google China Business) समेटने की धमकी देने के पीछे जो खास वजह बताई उसके मुताबिक चीन में उसके कारोबार पर साइबर अटैक (Cyber Attack) हो रहे थे, वहां के टेक्नीशियन या आईटी एक्सपर्ट (IT Experts) गूगल के डेटा बेस (Google China Data Base) (आंकड़ों के भंडार में) में सेंध लगाकर उस डेटा को हैक (Data Hacking) कर रहे थे। गूगल के पास जिन कंपनियों का डेटा था, गूगल ने उन्हें उनसे फौरन अवगत करा दिया। वहां की सरकार भी गूगल को सहयोग नहीं कर रही थी । गूगल की शिकायतों के बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने सारी शिकायतों को अनसुना और अनदेखा कर दिया। गूगल ने 2006 में चीन में कदम रखा था। उस समय वहां की सरकार ने सबसे पहली शर्त यही लगाई थी कि उसे सेंसरशिप (Censorship) माननी होगी। जब गूगल ने उस शर्त को मान लिया तो उसे कारोबार की इजाजत दे दी गई। पर, गूगल पर भी चीन में कई गंभीर आरोप थे । उस पर यह आरोप अमेरिका में भी लगे थे और वहां इसे लेकर मुकदमा भी लड़ा जा रहा था । यह मामला था कॉपीराइट कानून (Copyright Law) के उल्लंघन का। गूगल पर इस तरह के आरोप कई देशों में लगे और इसके खिलाफ बाकायदा लॉबी बन गई जो इसका विरोध भी कर रही है। ऐसा ही आरोप चीन में भी लगा, वहां की एक लेखिका के किताब के अंश उडा़कर गूगल ने उसे डिजिटल प्रकाशित कर दिया। इस पर वहां की लेखिका ने सख्त ऐतराज जताया और चीन सरकार ने भी इस पर आपत्ति की। लेकिन अमेरिका में गूगल पर यह आरोप एक-दो लेखकों ने नहीं लगाया, बल्कि तमाम लेखकों ने लगाए और उन्होंने गूगल पर कई करोड़ डॉलर रॉयल्टी लेने का मुकदमा भी कर दिया। गूगल आज तक अमेरिका में इस आरोप पर अपनी सफाई पेश किया या नहीं ,इस बारे में अभी कुछ साफ़ नहीं है।
बहरहाल यह तो गूगल और चीन की कथा है और इसके बहुत दूसरे पहलू भी है। हम यहाँ चर्चा कर रहे है भारत के सन्दर्भ में और चिंता है की हमारी बौद्धिक सम्पदा इस युग में कैसे और कितनी सुरक्षित है। है भी या नहीं। आज मीडिया से लेकर शैक्षणिक संस्थाओ तक में जब भी किसी विषय पर सामग्री की आवश्यकता होती है ,सामान्य तौर पर हर व्यक्ति गूगल पर सर्च करने लगता है। हर आदमी के लिए गूगल ही आज सबसे बड़े सन्दर्भ पुस्तकालय के रूप में सामने है। कोई पढना नहीं चाहता बल्कि हर विषय को वह गूगल पर ही पा लेना चाहता है। इसका सबसे बड़ा नुक्सान यह हो रहा है की भारत की प्राचीनता को भी लोग ठीक से समझ नहीं पा रहे। हमारी श्रुति , स्मृति, पुराण और इतिहास की अति गंभीर विरासत पर भी एक तरह की डकैती पड़ रही है। बिना जाने , समझे अर्थ का अनर्थ किया जा रहा है। कई जगह तो खुलेआम हमारी विरासत को किसी विदेशी लेखक या शोद्यार्थी के कॉपीराइट के रूप में भी प्रस्तुत किया जा रहा है। उदाहरण के लिए भारत आयुर्वेद का एकमात्र जनक है लेकिन आयुर्वेद की अनगिनत औषधियों का पेटेंट दूसरे ऐसे देशो के नाम किया जा चूका है जिन देशो का उस समय कोई अस्तित्व भी नहीं था जब भारत में आचार्य चरक और सुश्रुत जैसे चिकित्साविज्ञानी काम कर रहे थे। सुश्रुत संहिता और चरक संहिता के अनेक तथ्य विदेशी लोगो के नाम से पेटेंट मिलते है और हम कुछ नहीं कर पा रहे। नीम , हल्दी , अदरक , लहसुन, प्याज , सोवा , अजवाइन आदि देसी नुस्खे भी लोग अपने नाम पेटेंट करने में लगे है।
भारत की सबसे बड़ी विरासत ही यहाँ की बौद्धिक सम्पदा है और इसे साइबर आकाश के जरिये खूब चुराया जा रहा है। साइबर अपराध रोकने वाले क़ानून भी अभी इतने लचर है की एक तो वे कारगर नहीं हो पा रहे और दूसरे हमारे पास अभी इन अपराधों को ठीक से रोक पाने की दक्षता भी नहीं आ सकी है। इस विंदु के विस्तार में जाने से पहले भारत में इन्टरनेट की शुरुआत और साइबर आकाश के विस्तार के इतिहास में भी जाना होगा।
भारत में इन्टरनेट की पैठ
भारत का पहला डोमेन नेम सन 1996 में रजिस्टर किया गया था। पंद्रह वर्ष की अवधि में देश में इंटरनेट का ढांचा और उसके जरिए मिलने वाली सेवाएं, सुविधाएं तथा सूचनाएं कहां से कहां आ चुकी हैं! जानिए आज लगभग पंद्रह साल पहले की बात है। वीएसएनएल ने भारत में पहली बार आम लोगों के लिए इंटरनेट की सुविधा जारी करते हुए आगाह किया था कि इसका इस्तेमाल करने के लिए आपके कंप्यूटर में कम से कम चार एमबी रैम और विंडोज 3.1 होना जरूरी है। पांच सौ बारह केबीपीएस की स्पीड से लीज लाइन के जरिए इंटरनेट सíफंग के लिए 40,000 रुपए की रजिस्ट्रेशन फीस और 36 लाख रुपए का सालाना शुल्क तय किया गया। इंटरनेट जब तक सामान्य भारतीय नागरिक तक पहुंचा तब तक भारत में उसके फैलते साम्राज्य का पहला साल गुजर चुका था। उन्नीस सौ सत्तानवे की किसी शाम अपने कंप्यूटर से जब पहली बार टेलीफोन-मोडम के जरिए 2.4 केबीपीएस की गति से चलने वाले इंटरनेट नामक चमत्कार का अनुभव किया तो पहला कनेक्शन मिलते ही आई ‘हैंडशेक’ की आवाज में मानो निर्वाण प्राप्त हो गया।
भारत का पहला डोमेन नेम रीडिफ डॉट कॉम 1996 में रजिस्टर हुआ था। उस जमाने में आम भारतीय के लिए इंटरनेट का मतलब याहू, हॉटमेल, एमएसएन और रीडिफ ही होता था। आज की नंबर एक इंटरनेट कंपनी गूगल का उस समय दूर-दूर तक नामोनिशान भी नहीं था। याद नहीं पड़ता कि उन दिनों हमने कभी यह सोचा हो कि कंपनियों की वेबसाइटों, कुछेक समाचार पोर्टलों, ईमेल और चैट से आगे भी इंटरनेट का कोई मतलब है। आज 15 साल बाद जब अल्पावधि में ही पूर्ण-वयस्कता को प्राप्त हो चुके इंटरनेट को देखते हैं तो अहसास होता है कि हम कितने नादान थे।
इंटरनेट की छलांग:
कंप्यूटर में आज चार एमबी रैम नहीं, उससे ढाई सौ-पांच सौ गुना यानी एक जीबी-दो जीबी रैम होती है। इंटरनेट टेलीफोन की सीमा से मुक्त होकर आंखें चौंधियाती रफ्तार वाले ब्रॉडबैंड और फाइबर ऑप्टिक केबल का वरण कर चुका है और उसकी गति सैंकड़ों गुना बढ़ चुकी है (बीएसएनएल पर 24 एमबीपीएस और एअरटेल पर 16 एमबीपीएस तक स्पीड वाले कनेक्शन उपलब्ध हैं। तब 512 केबीपीएस के जिस कनेक्शन को पाने भर के लिए तब 36 लाख रुपए देने पड़ते थे, वह आज मुफ्त के इन्स्टॉलेशन के साथ दो-ढाई सौ रुपए तिमाह तक के टैरिफ में उपलब्ध है। आज जो 2 एमबीपीएस का कनेक्शन बिल्कुल आम है, वह तब एक करोड़ रुपए के सालाना टैरिफ पर उपलब्ध हुआ करता था। बीएसएनएल आज ऐसे कनेक्शन के ढाई सौ रुपए प्रति माह लेता है! माना कि ग्रामीण इलाकों में कंप्यूटर और ब्रॉडबैंड का सार आज भी एक चुनौती बनी हुई है, लेकिन इंटरनेट के क्षेत्र में भारत का लगातार आगे बढ़ना जारी है।
मामले का दूसरा पहलू भी है। इंटरनेट का प्रसार सिर्फ इंटरनेट कनेक्शनों की उपलब्धता पर निर्भर नहीं है। उसके प्रसार की शर्त है- ज्यादा से ज्यादा लोगों के पास कंप्यूटर हों, उन्हें चलाने के लिए बिजली आए, इंटरनेट कनेक्शनों के लिए जरूरी धन हो और इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए जरूरी जागरूकता तथा शिक्षा हो। एक सकारात्मक बात यह है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय तेजी से बढ़ रही है और पिछले एक दशक में वह लगभग ढाई गुना हो चुकी है। इसने पहले की तुलना में अधिक लोगों को शिक्षा और कंप्यूटर के प्रति जागरूक बनाया है। हालांकि सफर फिर भी लंबा है। भारत में कंप्यूटरों के प्रसार का आंकड़ा तीन फीसदी है। चीन (15 फीसदी) की तुलना में भी यह बौनी लगती है। जब सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की विश्व शक्ति के रूप में भारत की कल्पना करते हैं तो लगता है कि चीजें उतनी तेज गति से आगे नहीं बढ़ रहीं जितनी कि बढ़नी चाहिए।
विशेषज्ञों के अनुसार अगले पच्चीस साल भारत में इंटरनेट के प्रसार के होंगे। इस दौरान सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में किस क्रांतिकारी किस्म का कायापलट होगा, इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है।
सफलता की कहानी
इसका एक अहम पहलू है। विश्व आईटी बाजार में भारत की बढ़ती भूमिका और उसके जरिए हमारी अर्थव्यवस्था को मिल रही मजबूती। इन्फोसिस, टाटा कन्सलटेंसी सर्विसेज, विप्रो, महिंद्रा सत्यम, एचसीएल, पटनी और ऐसी ही दर्जनों कंपनियों का उभार देश की तरक्की में अहम भूमिका निभा रहा है। सन् 1998 में आईटी सर्विसेज इंडस्ट्री ने जहां भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 1.2 फीसदी का योगदान दिया था, वहीं सन 2010 में यह बढ़कर 6.1 फीसदी तक जा पहुंचा है। रीडिफ, हिंदुस्तानटाइम्स, एनडीटीवी, आईबीएन, इंडियाटाइम्स, सुलेखा, इंडियामार्ट, आईबीबो, बिगअड्डा, जोहो, इंडियाबुल्स, मेकमाईट्रिप, मैपमाईइंडिया, शादी, नौकरी, इंडियागेम्स, एडुकोम्प, इंडियाइन्फोलाइन और जपैक जैसी वेबसाइटें सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रही हैं। ऐसी मिसालें हिंदी और दूसरी भाषाओं में भी मिलती हैं।
हॉटमेल का विकास कर उसे 1700 करोड़ रुपए में माइक्रोसॉफ्ट को बेचने वाले सबीर भाटिया से प्रेरणा लेकर और अपने नए विचारों, नई परिकल्पनाओं, तकनीकी कौशल, उद्यमिता की लगन और यौवन के हौंसलों के साथ अनंत संभावनाओं वाले इंटरनेट विश्व में छलांग लगाने वाले जोशीले भारतीय युवकों ने भारत में इस नए माध्यम की सफलता की पटकथा लिखी है। भले ही वे इंडियावर्ल्ड के राजेश जैन (जिन्होंने अपनी वेबसाइट को सिफी को 500 करोड़ रुपए में बेचा) हों, बाजी डॉटकॉम के अवनीश बहल (जिनकी वेबसाइट का अमेरिकी कंपनी ईबे ने 200 करोड़ रुपए में अधिग्रहण किया) हों या फिर संजीव बीखचंदानी (जिनकी नौकरी डॉटकॉम की मार्केट कैपिटल 2000 से 2500 करोड़ रुपए के बीच है) हों, या फिर भारतीय रेलवे कैटरिंग एवं पर्यटन कारपोरेशन हो जो रोजाना इंटरनेट के जरिए करोड़ों रेल टिकट बेच रहा है, ने इंटरनेट आधारित उद्यमिता का लोहा मनवाया है। पिछले दिनों आई खबर ने सबका ध्यान खींचा था कि भारत में नौकरी बदलने वाले 40 फीसदी लोगों को उनकी नई नौकरी इंटरनेट के जरिए मिली।
भारत में साइबर अपराधों
के आंकड़ो पर एक नज़र
2013 की तुलना में 2014 में भारत में साइबर क्राइम में 69 फीसदी की ग्रोथ आई है।
7201 मामले इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी कानून, जबकि 2272 मामले भारतीय दंड सहिंता के तहत दर्ज किए गए हैं।
2014 में साइबर क्राइम के रूप में सबसे ज्यारा चीटिंग के मामले दर्ज हुए, इसके तहत कुल 1115 मामले दर्ज किए गए।
अन्य प्रमुख साइबर क्राइम में लालच/वित्तीय लाभ, यौन उत्पीड़न, महिलाओं का अपमान, कॉपीराइट उल्लंघन शामिल हैं।
2014 में सबसे ज्यादा साइबर क्राइम महाराष्ट्र में दर्ज किए गए, यहां 1879 मामले सामने आए, इसके बाद यूपी में 1737, कर्नाटक में 1020 और तेलंगाना में 703 मामले दर्ज हुए।
2020 तक भारत में 17.5 करोड़ ई-शॉपर्स होंगे
नए आंकड़े बता रहे है कि वर्ष 2020 तक भारत में 17.5 करोड़ ई-शॉपर्स होंगे और जून 2016 के अंत तक देश में 46.2 करोड़ इंटरनेट यूजर हो जाएंगे। जितनी अविश्वसनीय गति से डिजिटल इंडिया का प्रसार हो रहा है उसके साथ एक बुराई भी उतनी तेजी से बढ़ रही है और यह है साइबर क्राइम। भारत में एक साइबर क्राइम की औसत कीमत 16,000 रुपए है और यहां 11.3 करोड़ भारतीय हर साल साइबर अपराध का शिकार होते हैं और प्रत्येक प्रभावित नागरिक को यह रकम डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तौर पर चुकानी पड़ती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले 10 सालों के दौरान भारत में साइबर क्राइम की संख्या में 19 गुना ज्यादा वृद्धि हुई है। 2005 में साइबर क्राइम से संबंधित केवल 481 मामले दर्ज किए गए थे, जिनक संख्या 2014 में बढ़कर 9622 हो गई। पुलिस विभाग की सक्रियता के चलते इस दौरान साइबर क्राइम से जुड़े अपराधियों की गिरफ्तारी की संख्या भी बढ़ी है। 2005 में 569 सायबर अपराधियों को पकड़ा गया, जबकि 2014 में यह संख्या बढ़कर 5752 हो गई। वास्तव में, साइबर अपराध के हब के रूप में भारत की छवि पूरी दुनिया में विख्यात है। वर्तमान में भारत दुनिया में तीसरा ऐसा सबसे बड़ा देश है, जहां सबसे ज्यादा साइबर क्राइम होते हैं। इतना ही नहीं हैकिंग के मामले में दुनियाभर में भारत का दूसरा स्थान है। ओरिजिन ऑफ वेब अटैक के मामले में भारत का स्थान दुनिया में चौथा और नेटवर्क अटैक के मामले में आठवां है। देश में बढ़ते साइबर क्राइम को रोकने के लिए सरकार ने मिलिट्री स्टाइल में एक सीक्रेट टास्क फोर्स का गठन किया है, जो हाई लेवल की टेक्नोलॉजी और स्ट्रैट्जी की मदद से भारत में साइबर क्राइम को रोकने का काम कर रही है। पिछले साल देश में चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बढ़ते ग्राफ को देखते हुए साइबर क्राइम को-ऑर्डीनेशन सेंटर (आईसी4) का गठन किया गया था। साइबर अपराधियों से निपटने के लिए आईसी4 को 400 करोड़ रुपए का स्पेशल बजट भी सरकार की ओर से आबंटित किया गया है।
आईटी उद्योग के संगठन नैसकॉम ने कहा कि साइबर हमलों के बढ़ते मामलों तथा वैश्विक स्तर पर डेटा सुरक्षा प्रयासों में तेजी आने से 35 अरब डॉलर के कारोबारी अवसर पैदा होने की उम्मीद है। इसके साथ ही इससे 2025 तक भारत में रोजगार के लगभग 10 लाख अवसर सृजित होने का अनुमान है। नैसकॉम के साइबर सुरक्षा कार्यबल के अध्यक्ष राजेंद्र पवार ने यहां यह अनुमान व्यक्त किया। उन्होंने कहा, हमारा अनुमान है कि साइबर सुरक्षा क्षेत्र लगभग 2.5-3.0 अरब डॉलर या 150 अरब डॉलर के भारतीय आईटी उद्योग का लगभग दो प्रतिशत है। यह क्षेत्र 2025 तक 350 अरब डॉलर की ओर बढ़ रहा है तो हमारा मानना है कि इसका 10 प्रतिशत हिस्सा साइबर सुरक्षा में जाएगा। उन्होंने कहा कि इससे लगभग दस लाख लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। पवार ने कहा, एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू स्टार्टअप है। हमारा मानना है कि इस क्षेत्र में 1000 स्टार्टअप शुरू होंगे। नैसकॉम ने डेटा सिक्युरिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (डीएससीआई) व सुरक्षा सॉफ्टवेयर कंपनी सिमेनटेक के साथ मिलकर 10 साइबर सुरक्षा रोजगारों के लिए नेशनल ऑक्यूपेशनल स्टेंडर्ड जारी किए।
ब्रिटेन की कंपनी ब्रिटिश टेलीकॉम एक साल के भीतर विश्वभर से 900 साइबर सुरक्षा पेशेवरों की नियुक्ति करने की योजना बना रही है।कंपनी ने एक बयान में बताया कि अपने सुरक्षा कारोबार में अगले 12 महीनों में ब्रिटिश टेलीकॉम 900 लोगों को नियुक्त करने जा रही है। यह योजना बढ़ते साइबर अपराधों से लोगों, कारोबारियों और सरकारों को बचाने के लिए है। मौजूदा समय में ब्रिटिश टेलीकॉम में करीब 2,500 सुरक्षा पेशेवर काम करते हैं और यह विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अपने सुरक्षा कंपनी का परिचालन करती है।
साइबर कानून और साइबर अपराध
साइबर या कंप्यूटर कानून क्या होता है। भारत में साइबर कानून।। साइबर कानून का उल्लंघन और उसके उपाय।। कंप्यूटर या सर्वर को लक्षय कर किये गये साईबर अपराध।। साइबर अपराध, जिनका लक्षय कंप्यूटर नहीं होता है।। अन्तरजाल, एकांतता का अन्त है। सूचना प्रौद्योगिकी एक नयी तकनीक है। इसका जन्म निम्न चार कारणों से हुआ-
कंप्यूटर,मोबाइल फोन और इंटरनेट, साइबर स्पेस: कंप्यूटर के द्वारा संवाद करते समय सूचनाओं का आदान प्रदान ईमेल, ऑडियो क्लिप, वीडियो क्लिप के जरिये होता है। सूचना का यह आदान प्रदान एक काल्पनिक जगह (Virtual space) में होता है। इसे साइबर स्पेस (Cyber Space) कहते हैं। इन से मिल कर, सूचना प्रौद्योगिकी का जन्म हुआ। इस तकनीक ने कानून के क्षेत्र में जितनी मुश्किलें पैदा की वह अन्य किसी आविष्कार या तकनीक ने नहीं। इन मुश्किलों के अलग अलग हल ढूंढे जा रहे है। देश कानून बना रहे हैं। सरकारें नियम व अधिनियम बना रही हैं। न्यायालय फैसले दे रही हैं। इन सारे समाधानों को मोटे तौर पर, कंप्यूटर कानून, या इंटेरनेट कानून या साइबर कानून कहा जाता है।
भारत में साइबर कानून
इस नयी तकनीक के कारण पैदा हुई मुशकलों का हल निकालने के लिये सबसे पहले अपने देश में कानून में बदलाव, बौद्धिक सम्पदा अधिकार के क्षेत्र में किया गया। कॉपीराइट अधिनियम को 1994 एवं 1999 में संशोधित कर, इस तकनीक के द्वारा लायी गयी और मुश्किलों को दूर किया गया। वर्ष 2002 में, पेटेंट अधिनियम में भी संशोधन किया गया।वर्ष 2004 में एक अध्यादेश के द्वारा, पेटेंट अधिनियम में किये गये संशोधन को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया। लेकिन जब यह अध्यादेश, 2005 में अधिनियम के रूप में लाया गया तब इस स्पष्टीकरण को अधिनियम में नहीं जोड़ा गया। इसका अर्थ यह हुआ कि पेटेंट अधिनियम में, 2002 में किया गया संशोधन ही लागू है। इस क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण अधिनियम 2000 में, सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act) (आईटी अधिनियम) के नाम से बनाया गया। इस नियम के अन्तर्गत निम्न चार अधिनियमों में भी संशोधन कया गया-
The Indian Penal Code, 1860;
The Indian Evidence Act, 1872;
The Bankers’ Book Evidence Act, 1891;
The Reserve Bank of India Act, 1934.
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में 2008 में संशोधन किया गया और कम्यूनिकेशन कंर्वजेन्स बिल के कई प्रावधानों को, संशोधन के द्वारा इसमे सम्मिलित कर लिया गया है। हांलाकि इस संशोधन के बाद भी, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम सारी कमियां दूर नहीं हुई है। साइबर कानून के उल्लंघन को मोटे तौर से दो क्षेत्रों में बांटा जा सकता है। पहला, बौद्विक सम्पदा अधिकार के क्षेत्र में उल्लघंन ,दूसरा, अन्य क्षेत्र में उल्लघंन: यह उल्लघंन मुख्य रूप से सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लघंन है। इसे सामान्य भाषा में साइबर अपराध (Cyber crime) कहा जाता है। सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम में साइबर अपराध के लिए दो तरह के उपाय दिए गये है। पहला, दीवानी उपाय (Civil relief): इसमें जो भी व्यक्ति आपको नुकसान पहुँचाता है उससे आप हर्जाना प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन यह मुकदमे सिविल न्यायालयों में नही चलते। इन मुकदमे को तय करने के लिए एक अलग से अधिकारी (Adjudicating Officer) नियुक्त किया जाता है। इस समय प्रत्येक राज्य में उनके इंफॉरमेशन तकनीक के सक्रेटरी ही यह अधिकारी है। इनके फैसले की अपील साइबर ट्रियूब्नल मे होती है। उसके बाद इनकी अपील हाई कोर्ट में दाखिल की जा सकती है। दूसरा फौजदारी अभियोग (Criminal Prosecution): इसमें साइबर कानून के उल्लघंन करने वालो को सजा हो सकती है। इसके लिए पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करानी पड़ती है और मुकदमा फौजदारी अदालत में ही चलता है। साईबर अपराधों को मुख्यतः दो श्रेणी में बांटा जा सकता है। पहला, जहां कंप्यूटर या सर्वर लक्षय है। दूसरा, जहां कंप्यूटर का प्रयोग अपराध करने के लिये किया जाता है पर उनका लक्षय कंप्यूटर या सर्वर नहीं होता है। दूसरे तरह के साईबर अपराधों को भी दो तरह से बांटा जा सकता हैं। पहला, जो आपकी सम्पति के विरुद्ध हैं। दूसरा यौन और एकांतता से सम्बन्धित हैं। हांलाकि इन श्रेणियों की सीमायें ठीक प्रकार से परिभाषित नहीं हैं। कुछ अपराध एक से अधिक श्रेणी में भी रखे जा सकते हैं।
चर्चा करते हैं पहली श्रेणी के अपराधों के बारे में।
डिनायल आफ सर्विस (Denial of Service) (DoS)
अलग अलग वेब साइटें, अलग तरह की सेवायें देते हैं। यदि उस वेबसाइट पर बहुत सारी ई-मेल भेज दी जांय या हिट होने लगें, तब उसका कानूनन प्रयोग करने वाले, उसकी सेवायें नही ले पाते हैं। वह बंद हो जाती है। इसे डिनायल आफ सर्विस कहते हैं।
वायरस ( Virus)
कम्यूटर में वायरस दूषित पेन ड्राइव, या फलॉपी या सीडी लगाने से आ सकते हैं यह किसी ई-मेल से भी मिल सकते हैं। यह आपके कम्पयूटर के डाटा को समाप्त कर सकता है। इसके लिए किसी भी ईमेल के साथ लगे संलग्नक को मत खोलिये, यदि वह किसी आपके जानने वाले व्यक्ति ने न भेजा हो।
वेबसाइट हैकिंग और डाटा की चोरी। कंप्यूटर डाटा भी कॉपीराइट की तरह सुरक्षित होता है। बहुत से कंप्यूटरों, वेबसाइटों में डाटा गुप्त, या निज़ी, या फिर गोपनीय होता है। वेब साइट या कंप्यूटर को हैक कर इसे कॉपी या नष्ट करना, इसी श्रेणी में आता है। साइबर अपराध, जिनका लक्षय कंप्यूटर नहीं होता है। बहुत से साइबर अपराध, कंप्यूटर का प्रयोग करके किये जाते हैं पर उनका लक्षय कंप्यूटर या सर्वर नहीं होता है। इस तरह के अपराधों को मुख्यतः निम्न श्रेणी में बांटा जा सकता है।
साइबर आतंकवाद (Cyber Terrorism)
साइबर गतिविधियों के द्वारा धार्मिक, राजनैतिक उन्माद पैदा करना साइबर आतंकवाद के अन्दर आता है। यह किसी भी देश की आंतरिक सुरक्षा को समाप्त कर सकता है।
आर्थिक अपराध
इस समय अधिकतर बैंक का काम अन्तरजाल पर हो रहा है। व्यापार भी अन्तरजाल पर हो रहा है। क्रेडिट कार्ड से गलत तरह से पैसा निकाल लेना। ऑनलाइन व्यापार या बैकिंग में धोखाधडी करना – यह सब आर्थिक अपराध की श्रेणी में आता है।
फिशिंग (Phishing)
अक्सर कुछ ऎसे ईमेल मिलते है जिससे प्रतीत होता है कि वे किसी बैंक में या किसी अन्य संस्था की बेब साइट से हैं। यह आपके बैंक के खाते या अन्य व्यक्तिगत सूचना पूछने का प्रयत्न करते हैं। ये सारी ई-मेल फर्जी है और यह आपकी व्यक्तिगत सूचना को जानकर कुछ गड़बड़ी पैदा कर सकते है। इसे फिशिंग कहा जाता है। इस तरह की ईमेल का जवाब न दें। मेरी पत्नी शुभा, एक बार इनके जाल में फंस चुकी है। हमें सारे पासवर्ड बदलने पड़े।
साइबर छल (Cyber Fraud)
अक्सर ई-मेल ,एसएमएस मिलते है कि भेजने वाली विधवा है जिसके पति का बहुत सारा पैसा फंसा हुआ है और वह पैसा निकालने में आपकी सहायता चाहती है। इस तरह के भी ईमेल या एसएमएस आते हैं कि आपके ई-मेल या फोन नम्बर ने करोड़ों की लॉटरी जीत ली है, जिसे पाने के लिए सम्पर्क करें। यह सब फर्जी होता है। यह धोखाधडी कर, आपको फसाना चाहते हैं। यह साइबर अपराध है और इस पर कभी भी अमल नहीं करना चाहिए।
साइबर जासूसी (Cyber Espionage)
इसे एडवेयर (Adware) या स्पाईवेयर (Spyware) भी कहा जाता है। आपके कंप्यूटर में कभी आपकी अनुमति से कभी बिना अनुमति के स्थापित हो जाते हैं। यह आपकी गतिविधियों की आपकी व्यक्तिगत सूचना एकत्र कर, अन्य को देतें है। जिसके द्वारा वे स्थापित किये जाते हैं। यह हमेशा आपके कंप्यूटर को धीमा भी कर देते हैं।
पहचान की चोरी (Identify Theft)
किसी व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति की पहचान चोरी करना या उसका इलेक्ट्रानिक हस्ताक्षर को हैक करना या किसी अन्य के नाम से फर्जी काम करना ,पहचान की चोरी कहलाता है। अपने पास वर्ड में नम्बर तथा तथा वर्णमाल दोनो का प्रयोग करें। उसे बदलते रहें। किसी को न बतायें।
स्पैम (Spam)
स्पैम माने अनचाही ई-मेल। यह भी साइबर अपराध है। हिन्दी चिट्ठाजगत में, यह काफी है। अक्सर चिट्ठाकार बन्धु आपको अपनी चिट्ठी भेज कर उनकी चिट्ठियों को पढ़ने के लिये कहते हैं। यह गलत है। आप इस तरह का ईमेल तभी किसी व्यक्ति को भेजें जब उस व्यक्ति से आप उस चिट्ठी में कुछ करने के लिये कहते हैं या उसके बारे में लिखते हैं। यह न केवल अन्तरजाल शिष्टाचार के विरुद्ध है पर साइबर अपराध भी है।
स्पिम (Spim)
यदि स्पैम अनचाहे ई-मेल है तो स्पिम अन्तरजाल के बातों के दौरान अनचाही बातें।
अन्तरजाल पर पीछा करना (Cyber Stalking)
पीछा करना, तंग करना, इस हद तक घूरना कि दूसरा खीज जाये, डर जाय। यही काम जब अन्तरजाल पर हो तो साइबर स्टॉकिंग कहलाता है।
अशलीलता
अश्लील ईमेल, अशलील चित्र, चित्रों को बदल कर किसी अन्य का चित्र लगा देना, यह सब अशलीलता के अन्दर आता है। इस तरह के साइबर अपराध सबसे अधिक हैं। इस समय जितने साइबर अपराध हो रहें हैं वे सारे रिपोर्ट नहीं हो रहें शायद न लोगों का समझ में आता है कि उनसे कैसे निपटा जाय और न ही उन्हें विश्वास है कि इसका संतोषजनक हल निकल सकता है। सच यह भी है कि इस समय हमारे पास इस तरह के अपराधों को जांच करने के लिये न ही प्रशिक्षित अन्वेषक हैं और न ही तय करने वाले न्यायधीश। लेकिन यह बदल रहा है। लोग अक्सर साइबर अपराध यह सोच कर करते हैं कि वे अज्ञात हो कर साइबर अपराध कर सकते हैं लेकिन यह सच नहीं है। यहाँ पीटर स्टेनर के एक कार्टून का उल्लेख करना बहुत समीचीन लगता है। प्रख्यात कार्टूनिस्ट पीटर स्टेनर (Peter Steiner) ने 5 , जुलाई में न्यूयॉर्कर में एक कार्टून निकाला था। यह अपने आप में मील का पत्थर था। इसमें दो कुत्ते कंप्यूटर पर बैठे दिखाए गए हैं। वह कुत्ता जो कम्यूटर पर काम कर रहा है वह दूसरे से कहता है -
‘On the Internet, nobody knows that you are a dog.’
अन्तरजाल पर कोई नहीं जानता कि आप एक कुत्ते हैं।
लेकिन यह अन्तरजाल का विरोधाभास है, धोखा है। यही अन्तरजाल पर साइबर अपराधों की जड़ है। लोग समझते हैं कि वे अन्तरजाल पर अज्ञात रह कर अपराध कर सकते हैं। लेकिन यह सच से परे है। सच तो यह है कि,
‘On the Internet, everybody knows that you are a dog.’
अन्तजाल पर सबको मालुम है कि आप कुत्ते हैं।
आने वाले समय में, न ही इस तरह के अपराधों की जांच करने वाले अन्वेषक भी बढ़ेगें, न्यायधीश भी सीखेंगे और लोगों का इस का विश्वास होगा कि इनका संतोषजनक हल निकाला जा सकता है। साइबर अपराधी बच कर नहीं जा सकता। वह हमेशा पकड़ा जा सकता है। अन्तरजाल पर कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है। अन्तरजाल एकांतता का अन्त है। वास्तव में इस आभासी दुनिया को जो लोग बहुत ही गोपनीय मान रहे है उन्हें अपना भ्रम बिलकुल तोड़ लेने चाहिए। यहाँ कुछ भी न तो गोपनीय है और नहीं व्यक्तिगत। सब कुछ सब लोग देख रहे है इसलिए इस मंच पर मर्यादा बहुत जरुरी है।