बाबा गोरखनाथ की खिचड़ी के लिए ज्वाला देवी का खौलता अदहन

बाबा गोरखनाथ की खिचड़ी के लिए ज्वाला देवी का खौलता अदहन




संजय तिवारी 
माता आदि शक्ति की 52 स्थापित पीठो में से एक हैं माता ज्वाला देवी। आज के हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में माता की शक्ति पीठ है। एक पौराणिक आख्यान के अनुसार त्रेता युग में एक बार इस स्थान पर श्रीधर पंडित नाम के एक भक्त ने भंडारे का आयोजन किया। इस भंडारे में उस समय के प्रख्यात नाथ संत गोरखनाथ जी भी अपने 300 शिष्यों और तांत्रिक गुरु भैरवनाथ के साथ शामिल हुए। जब माता को पता चला कि नाथ प्रणेता गुरु गोरखनाथ स्वयंयहाँ आये हैं तो वह प्रकट होकर गोकरखनाथ जी से मिलने पहुंचीं। वह का दृश्य देख कर गोरखनाथ जी ने भोजन स्वीकार नहीं किया। गोरखनाथ जी शुद्ध वैष्णव संत थे। देवी स्थान पर वामाचार विधि से पूजन अर्चन होने की वजह से म़द्य एवं मांसयुक्त तामसी भोजन बाबा गोरखनाथ ग्रहण करना नहीं चाहते थे। इसलिए गोरखनाथ ने कहा कि वह खिचड़ी खाते हैं वह भी मधुकरी से। 
बाबा गोरखनाथ की बातों को सुनकर देवी ने कहा कि वे भी अब खिचड़ी ही खाएंगी। उन्होंने बाबा गोरखनाथ से कहा कि तुम भिक्षाटन से खिचड़ी की सामग्री लाओ वह अदहन गरम कर रही हैं। इसके बाद देवी स्वयं अदहन गरम करने में लग गयीं। कथा आती है कि गुरु गोरखनाथ भिक्षा मांगते हुए कौशल प्रदेश के सरयू पार के कारूपथ नामक क्षेत्र में पहुंच गए।ताप्ती और रोहिन नदियों के संगम पर यहाँ चारो तरफ जंगल था लेकिन यह स्थान बेहद सुंदर, शांत और मनोरम था। इस जगह से प्रभावित होकर गुरु गोरखनाथ यहीं समाधिस्थ हो गए। बाद में हिमालय की तलहटी का यह क्षेत्र गुरु गोरखनाथ के नाम पर गोरखपुर कहलाया। मान्यता है कि समाधि लिए गुरु गोरखनाथ के खप्पर में लोग खिचड़ी चढ़ाने लगे। न कभी बाबा का खप्पर भरा और न ही वे वापस कांगड़ा लौटे जहां ज्वाला देवी स्थान पर देवी के तप से अदहन खौल रहा है । कहा जाता है कि तभी से लोग आकर गुरु गोरख के खप्पर में खिचड़ी चढ़ाते हैं लेकिन आज तक वह खप्पर भरा नहीं। गुरु गोरखनाथ के इंतजार में ज्वाला देवी में आज भी अदहन खौल रहा है।


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