महिलायें बदल देंगी दुनिया की तस्वीर

महिलायें बदल देंगी दुनिया की तस्वीर 
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डॉ. अर्चना तिवारी 
विश्व की आर्थिक दशा को महिलायें बदल सकती हैं। यदि अवसर की समानता और सुविधाएं उपलब्ध हो तो आधी दुनिया सच में विश्व की अर्थशक्ति में कई गुना वृद्धि हो जायेगी। यह केवल कल्पना या कहने की बात नहीं है। ऐसा होने जा रहा है। दुनिया इस ताकत को समझ भी रही है और इसकी व्यवस्था भी बन रही है। दुनिया की आर्थिक ताकत में लगभग 55 ख़रब का इजाफा अकेले इस प्रयास से हो सकता है जिसके लिए अभी से तैयारियां शुरू कर दी गयी हैं। 

इस बात की पुष्टि अभी हाल में प्रकाशित एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट भी कर रही है। अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन  ने कहा है कि अगर कामकाज की दुनिया में महिलाओं को भी भरपूर मौक़े मिलें तो दुनिया की अर्थव्यवस्था को अरबों-खरबों डॉलर का फ़ायदा हो सकता है.संगठन की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि कामकाज की दुनिया में महिलाओं और पुरुषों के बीच के अन्तर को अगर साल 2025 तक सिर्फ़ 25 फ़ीसदी तक भी कम कर दिया जाए तो दुनिया भर को 5.8 ट्रिलियन यानी क़रीब 55 खरब डॉलर की आमदनी हो सकती है.

संगठन दुनिया भर में रोज़गार और कामकाज की दुनिया में हो रही हलचल पर नज़र रखता है और हर साल विश्व के आर्थिक और सामाजिक नज़रिए पर रिपोर्ट जारी करता है.अपनी ताज़ा रिपोर्ट में संगठन ने कहा है कि उत्तरी अफ्रीका, अरब देश और दक्षिणी एशियाई देशों में ज़्यादा फ़ायदा होगा, क्योंकि इन्हीं क्षेत्रों में महिलाओं को कामकाज के समुचित मौक़े नहीं मिल पाते हैं.संगठन की ये ताज़ा रिपोर्ट कामकाज की दुनिया में महिलाओं की स्थिति की तस्वीर पेश करती है और पिछले 20 वर्षों के दौरान हुए बदलाव का भी एक आकलन पेश करती है.

रिपोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष बिन्दु ये है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच कामकाज के क्षेत्र में बहुत बड़ा अन्तर बना हुआ है और वो ये कि महिलाओं को कामकाज और प्रगति के समुचित अवसर और उपयुक्त माहौल नहीं मिल पाते हैं. संगठन का कहना है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच कामकाज की दुनिया में इस अन्तर को अगर दूर कर दिया जाए और महिलाओं को कामकाज करने और प्रगति करने के लिए अनुकूल माहौल मिले तो अर्थव्यवस्थाओं को बहुत बड़ा फ़ायदा हो सकता है.

रिपोर्ट में चिन्ता जताई गई है कि कामकाज की दुनिया में महिलाओं के सक्रिय होने के रास्ते में अनेक बाधाएँ आती हैं.पहली बात तो यही है कि पुरुषों के मुक़ाबले बहुत कम संख्या में महिलाएँ कामकाज की दुनिया में क़दम रखना चाहती हैं.उस पर तुर्रा ये है कि अगर वो कामकाज की दुनिया में क़दम रख भी लें तो पहले तो उन्हें उपयुक्त कामकाज या रोज़गार नहीं मिलता और अगर मिल भी जाए तो उन्हें वहाँ सही माहौल नहीं मिलता.अक्सर ये भी देखा गया है कि महिलाओं को अच्छे दर्जे, प्रतिष्ठा या गुणवत्ता वाला कामकाज या रोज़गार नहीं मिलता.

इस रिपोर्ट के लेखकों में शामिल स्टीवन टॉबिन का कहना है कि दुनिया भर में लोगों को महिलाओं के कामकाज करने पर अपने नज़रिए में बदलाव लाना होगा.और ये बदलाव कामकाज की दुनिया और व्यापक रूप में पूरे समाज को लाना होगा. अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ये रिपोर्ट निष्कर्ष पेश करते हुए कहती है कि समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धान्त असलियत में लागू हो.यानी समान कामकाज करने के बदले दिए जाने वाले वेतन में महिलाओं और पुरुषों के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.देखा गया है कि एक जैसा कामकाज करने के लिए भी अक्सर महिलाओं को पुरुषों के मुक़ाबले कम मेहनताना या वेतन मिलता है.

रिपोट् ये भी कहती है कि महिलाएँ अपने घरों में जो बच्चों और अन्य परिजनों की देखभाल और अन्य कामकाज करती हैं, वो या तो बन्द हो या फिर उसके बदले उन्हें मेहनताना मिलना चाहिए.साथ ही कामकाज और रोज़गार के क्षेत्रों में महिलाओं और पुरुषों के बीच मौजूद भेदभाव के माहौल में सुधार लाया जाए.इसके अलावा कामकाज के स्थानों पर महिलाओं और पुरुषों पर होने वाली किसी भी तरह की हिंसा और उनकी प्रताड़ना को भी रोकने की पुकार लगाई गई है.



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