योगी सरकार की योजनाएं बन रहीं है पानी का बुलबुला

योगी सरकार की योजनाएं बन रहीं है पानी का बुलबुला
संजय तिवारी 

उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार के लगभग दो महीने पूरे होने जा रहे हैं। इन दो महीनों में योगी आदित्य नाथ की अगुवाई वाली सरकार के कैबिनेट की ७ बैठकें हो चुकी हैं। इसी अवधि में विधानसभा का एक सत्र भी चला और दिन-दिन भर काम हुआ। स्वंय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने शपथग्रहण के दिन से ही अनवरत रूप से सक्रिय हैं और सूबे के, खासकर राजधानी के अफसरों को भी सक्रिय रहने को विवश किया है। वे दफ्तर जहां पहले अधिकारी कर्मचारी बहुत कम दिखा करते थे अब सभी दफ्तरों में  सुबह ९:२० बजे से ही काम शुरू हो जा रहा है और शाम ६ बजे तक दफ्तर खुले रह रहे हैं। इस बीच प्रतिदिन प्राय: मुख्यमंत्री किसी न किसी विभाग का प्रजेन्टेशन भी देखते हैं। उत्तर प्रदेश में सरकार और शासनतंत्र से लंबे समय से जुड़े हुए लोग यह स्वीकार करने लगे हैं कि केवल दो महीनों में मुख्यमंत्री ने अपने कार्यालय में बैठकर कामकाज को जितना समय दिया है उतना अब तक के सभी मुख्यमंत्रियों को मिला लिया जाये तब भी ज्यादा है। प्रतिदिन सुबह अपने आवास से लेकर दफ्तर तक और फिर देर रात तक आवास में अफसरों को बुलाकर विभागीय समीक्षाएं करते हुए काम को रफ्तार देने की योगी आदित्यनाथ की मुहिम के सभी कायल हैं। सरकार बनने के साथ ही जिस तरह से योगी ने ताबड़तोड़ फैसले लिये हैं वह बेमिसाल हैं। उत्तर प्रदेश के किसानों का कर्ज माफ करना इस सरकार की सबसे बड़ी चुनौती थी जिसे उन्होंने वादे के मुताबिक अपनी पहली कैबिनेट बैठक में ही पूरा कर दिया। चुनावी वादों में गन्ना किसानों को सरकार बनने के १४ दिन के भीतर भुगतान दिलाने की व्यवस्था भी मुख्यमंत्री ने बना दी। लड़कियों और महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए किये गये एंटी रोमियो स्क्वायड का भी वादा उन्होंने पूरा कर दिया। अवैध बूचडख़ाने बंद कर दिये गये। सभी के लिए नई एम्बुलेंस सेवा शुरू कर दी गई। परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाये गये । गोमती रिवरफ्रंट की जांच शुरू कर दी गई। मानसरोवर यात्रा के लिए एक लाख रूपये का अनुदान देने का निर्णय लिया गया। प्रदेश में अनावश्यक रूप से दी जाने वाली छुट्टियों को कम किया गया। प्रदेश में सभी को २४ घंटे बिजली मुहैया कराने के लिए एमओयू  साइन हुआ। नई खनिज नीति बनाने की कवायद शुरू हुई। परिवहन व्यवस्था को दुरूस्त किया गया, नई औद्योगिक नीति पर काम शुरू हुआ। अधिकारियों और मंत्रियों की गाडिय़ों से लालबत्ती हटा दी गई और सभी कार्यालयों में नियमित उपस्थिति बनाये रखने के लिए बायोमिट्रिक प्रणाली लागू की गई।
वास्तव में उत्तर प्रदेश को बदलने की कवायद मुख्यमंत्री ने शपथ के बाद से ही शुरू कर दी और इसके लिए उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के सभी सहयोगियों को भी उसी रफ्तार से जुटने का निर्देश दिया। यह उनकी कार्यशैली की तेजी का ही असर है कि उत्तर प्रदेश में सरकार ताबड़तोड़ फैसले ले रही है और दो महीने के भीतर कैबिनेट की ७ बैठकें हो चुकी हैं। मुख्यमंत्री स्वयं मंडल स्तर पर कार्यों की समीक्षा में जुटें हैं और उन्होंने जिला स्तर पर समीक्षा के लिए भी कमर कस ली है।
अब यहां प्रश्र यह उठता है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार उत्तर प्रदेश को किस दिशा में लेकर जायेगी। यह प्रश्र इस लिए उठा रहा है, क्योंकि कानून व्यवस्था के मुददे पर कहीं न कहीं सरकार की पकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री ने डीजीपी से लगायत अन्य पुलिस अधिकारियों को कानून व्यवस्था दुरूस्त करने के लिए कड़े निर्देश भी दिये हैं। उत्तर प्रदेश में जिस तरह से निर्णय हो रहे हैं उन निर्णयों के क्रियान्वयन को लेकर भी सवाल अवश्य उठेंगे। मसलन सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट में कहा था कि १५ जून तक प्रदेश की सभी सड़कें गड्ढामुक्त हो जायेंगी, लेकिन अब जब कि १५ जून आने में कुछ ही दिन बाकी हैं, ऐसा पूरा होना संभव नहीं दिख रहा। इसी तरह सरकार ने ४५ दिन के भीतर गोमती रिवरफ्रंट के घोटाले की रिपोर्ट सामने लाने की बात की थी। पता चला है कि ऐसी कोई रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई है, लेकिन उस रिपोर्ट के बारे में सामान्य जानकारी शून्य है। एंटी रोमियो स्क्वायड की सक्रियता शुरूआती दिनों की तरह नहीं रह गई। बूचडख़ानों को लेकर भी सब कुछ गडमगड है।
उत्तर प्रदेश की नई सरकार और उसके मुखिया योगी आदित्यनाथ की नीयत को लेकर कोई संदेह नहीं है। लेकिन इस सरकार में जिस तरह से तबादले हो रहे हैं उनको लेकर चर्चाएं जरूर हो रही हैं। इन तबादलों में बहुत सी विसंगतियां हैं। मसलन ऐसे अफसरों को अच्छी तैनाती दी गई है जिनके बारे में खुद भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव के दौरान चुनाव आयोग से शिकायत की थी। इसी तरह गन्ना विभाग की जिम्मेदारी अभी भी मुख्य सचिव के पास रहने को लेकर भी चर्चाएं चल रही हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि सरकार को योजनाएं बना सकती है, बना भी रही है, लेकिन इन योजनाओं का आखिर क्रियान्वयन कौन करेगा और कैसे होगा। मुख्यमंत्री ने सभी अफसरों और मंत्रियों से १५ दिन  के भीतर अपनी सम्पत्तियां घोषित करने का आदेश दिया था, लेकिन उस आदेश का आखिर क्या हुआ?

उत्तर प्रदेश में वंशवाद और जातिवाद से इतर, विकास की राजनीति की शुरुआत करने का दावा करने वाली योगी सरकार, अपने कार्यकाल के दो महीने पूरे करने जा रही है। 19 मार्च को शपथ लेने के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्री मंडल ने जिस मुस्तैदी से साथ उत्तर प्रदेश में बदलाव लाने का दृढ संकल्प दिखाया है। वो काबिल-ए-तारीफ़ है। वैसे तो,किसी सरकार के दो महीने का रिपोर्ट मांगना अपने में हास्यास्पद है। पर जब किसी सरकार पर आशाओं का बोझ इतना ज्यादा हो, तब इसकी जरुरत और अहमियत दोनों ही बढ़ जाती है।कानून-व्यवस्था के नाम पर पूर्ववर्ती सरकार को घेरकर करीब दो महीने पहले नये तेवर के साथ सत्ता में आई योगी आदित्यनाथ सरकार के सामने यही मुद्दा सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. योगी आदित्यनाथ सरकार अपने शुरुआती 100 दिनों के कार्यकाल का ‘रिपोर्ट कार्ड’ अगले महीने के अंत में जारी करेंगे मगर बिगड़ी कानून-व्यवस्था को पटरी पर लाना सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है. प्रदेश भाजपा का कहना है कि योगी सरकार बनने के बाद से प्रदेश की तस्वीर में बदलाव शुरू हो चुका है. गुंडागर्दी खत्म हो रही है और अपराध का ग्राफ गिर रहा है. सरकार में जनता का विश्वास बहाल हो रहा है. मगर सहारनपुर में जातीय संघर्ष, बुलन्दशहर, सम्भल और गोंडा में हाल में हुई साम्प्रदायिक घटनाओं ने सरकार के लिये चिंता खड़ी कर दी है. ज्यादा चिंता की बात यह है कि इन वारदात में भाजपा और तथाकथित हिन्दूवादी संगठनों के लोगों की संलिप्तता के आरोप लगे हैं। 

मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) समेत तमाम विपक्षी दल उस भाजपा सरकार को कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर घेर रहे हैं, जो इसी मसले पर पूर्ववर्ती सपा सरकार की आलोचना करके सत्ता में आई है. बुलंदशहर में एक लड़की को साथ ले जाने की घटना में अल्पसंख्यक समुदाय के एक व्यक्ति की हत्या मामले में योगी आदित्यनाथ द्वारा गठित हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं पर आरोप लगा है. हालांकि योगी वाहिनी सदस्यों को कानून हाथ में ना लेने के लिये चेतावनी दे चुके हैं. सहारनपुर में भाजपा कार्यकर्ताओं ने कथित रूप से क्षेत्रीय सांसद राघव लखनपाल शर्मा की अगुवाई में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के घर पर हमला किया. इस मामले में विपक्ष सांसद की गिरफ्तारी की मांग कर रहा है.

 प्रदेश में अपराध का ग्राफ चढ़ने से चिन्तित मुख्यमंत्री योगी ने एक विशेष प्रकोष्ठ गठित करने का फैसला किया. योगी खुद इसकी निगरानी करेंगे. हालांकि योगी ने मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश की नौकरशाही को सुधारने का कड़ा संदेश दिया. इसका परिणाम भी नजर आ रहा है. मंत्री और अधिकारी अब 10 बजे से पहले ही दफ्तर पहुंच रहे हैं. करीब एक महीने के दौरान योगी ने विभिन्न विभागों की समीक्षा के लिये करीब 80 प्रस्तुतीकरण देखकर आवश्यक निर्देश दिये हैं.

अपने कार्यकाल के शुरआती करीब दो महीनों में योगी सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. उनमें किसानों की 36 हजार 500 करोड़ रपये की कर्जमाफी भी शामिल है. योगी सरकार ने केन्द्र के साथ ‘पॉवर फॉर ऑल’ समझौते पर दस्तखत किये और जिला मुख्यालयों को 24 घंटे तथा गांवों को 18 घंटे बिजली देने का फैसला किया.  भाजपा के प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक का दावा है कि योगी ने अपने 50 दिन के शुरआती कार्यकाल में जितना काम कर दिया है, उतना तो पूर्व के मुख्यमंत्री एक साल में नहीं कर पाते थे. उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्ववर्ती सपा सरकार ने उत्तर प्रदेश को अंधेरे में धकेल दिया था. उसने केवल कुछ वीआईपी जिलों को ही बिजली दी, बाकी इलाकों की उपेक्षा की.

उत्तरप्रदेश में 36,359 करोड़ का क़र्ज़ माफ़ करना, वो भी इस वादे के साथ की इस क़र्ज़ माफ़ी का अतिरिक्त बोझ, किसी भी तरह जनता को वहन नहीं करना पड़ेगा। अपने में बड़ा साहसिक फैसला था। ये फैसला विपक्ष उन सभी नेताओं को करारा जवाब था। जिन्होंने आज तक किसानों की समस्या का मज़ाक बनाया है। जिनके लिए किसान मात्र एक राजनितिक उल्लू सीधा करने का माध्यम भर है। इन सब के बीच हमे इस बात पर ध्यान देना होगा कि आखिर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में 36,359 करोड़ का क़र्ज़ माफ़ करने की नौबत क्यों आ गई। कभी अपने गन्ने उत्पादन को मशहूर उत्तरप्रदेश कैसे दिन-ब-दिन चीनी मिलों के लिए तरसने लगा। आखिर कैसे एक-एक करके उत्तरप्रदेश में सारे चीनी मील बंद होते गए। किस प्रकार 2007 में मायावती सरकार ने अमरोहा, बिजनोर, बुलंदशहर जैसे जगहों पर चलते हुए चीनी मीलों को औने-पौने भाव बेच दिया। योगी आदित्यनाथ सरकार का इन मामलों में जाँच के आदेश के बाद से ही उत्तर प्रदेश के पूरे राजनितिक परिदृश्य में भूचाल सा आ गया हैं। तमाम राजनितिक पार्टीयों के अंदर दोषारोपण का माहौल स्वतः ही उत्पन्न नहीं हुआ है। योजनाओं के क्रियांवहन में तेज़ी का जो उदाहरण योगी आदित्यनाथ सरकार ने अवैध बूचड़खानों को बंद करके पेश किया है। उससे तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले तमाम पार्टियां हतप्रभ हो गई है।

गुंडाराज का पर्याय बन चुके उत्तर प्रदेश ने वर्षो बाद प्रशासन की गरिमामय ताक़त को पहचाना। हालाकिं अपने नियत के अनुसार विपक्षियों ने इसे किसी खास धर्म से जोड़ने की पुरज़ोर कोशिश की। पर अवैध और वैध के बीच के अतंर को योगी सरकार लोगों तक पहुचाने में पूरी तरह कामयाब रही।

सरकारी तंत्र को मजबूत बनाने हेतु, मंत्रियों के संपत्ति का ब्यौरा मांगना हो या लाल बत्ती का बहिष्कार करना हो। सरकारी बाबु से लेकर पुलिस के आला अफसरों की पूरी खोजबीन को योगी सरकार ने प्राथमिकता के साथ लिया है। महिलाओं के हितों को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश के सारे माध्यमिक विद्यालयों को को- ऐड करने का फैसला लिया है। हर थाने में एक पुरष और एक महिला को रिसेप्शन पर नियुक्त करना महिला सुरक्षा के लिहाज से बहुत अहम् फैसला है।

इसी सन्दर्भ में एंटी रोमियो स्क्वाड के गठन पर भी प्रकाश डालने की जरुरत है। इसमें कोई दो मत नहीं है योगी सरकार उत्तर प्रदेश में भयमुक्त माहौल देना चाहती है। पर उचित कार्यशैली के आभाव में इसके दुषपरिणाम भी देखने को मिले हैं। योगी सरकार को गौ रक्षक के नाम पर मारपीट करने वालों से उसी प्रकार कड़ाई से निपटना होगा, जिस प्रकार किसी एक अपराधी के साथ न्यायोचित व्यव्हार किया जाता है।

बीते 2 महीनों में योगी आदित्यनाथ सरकार ने राजनीति के तौर तरीके में बदलाव के संकेत दिए और कहीं कहीं उसकी धरातली सच्चाई दिखने भी लगी है। पर कुछ संवेदनशील विषयों पर शांति और स्थिरता से काम करने की जरुरत है। सहारनपुर जैसे मामलों में सरकार को थोड़ी और मुस्तैदी दिखानी होगी और बीते कुछ साल के सरकारों की गलतियों से बहुत कुछ सीखना होगा।

यूपी में पिछले पांच बरस क़ानून व्यवस्था बेहाल थी। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि पुलिस के खुद के रेकॉर्ड इस बात की तस्दीक़ कर रहे हैं। मुज़फ्फरनगर, फैज़ाबाद, कोसी कलाँ दंगा, जवाहरबाग मथुरा काण्ड, डिप्टी एसपी जियाउलहक हत्याकाण्ड, राजधानी का श्रवण साहू हत्याकाण्ड, अम्बेडकरनगर का रामबाबू गुप्ता हत्याकांड, लखनऊ, सहारनपुर में सर्राफा व्यवसाइयों के यहाँ हुई डकैती और एनआईए अधिकारी तंज़ील अहमद हत्याकाण्ड तो सिर्फ इस की बानगी भर है। क़ानून व्यव्स्था बेहतर करने के मक़सद से सरकार ने बीते 5 वर्ष में 8 पुलिस महानिदेशक बदल डाले लेकिन हालात जस के तस ही रहे। मुज़फ्फरनगर दंगा अखिलेश यादव सरकार की सब से बड़ी नाकामी मानी जाती रहे है. खुद अखिलेश यादव वक़्त बेवक़्त मुज़फ्फरनगर दंगे को अपने कैरियर पर सब से बड़ा दाग बताते रहे है. मुज़फ्फरनगर के साथ मथुरा का कोसी कला और फैज़ाबाद का दंगा यूपी सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हुवा। इन सब के बीच अम्बेडकरनगर में हुवे राम बाबू गुप्ता हत्यकांड ने पूरे अम्बेडकरनगर समेत आसपास के ज़िलों की फ़िज़ा बिगाड़ कर रख दी थी। 

खाकी रही अपराधियों के निशाने 

यूपी बिगड़ी क़ानून व्यवस्था का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की अखिलेश यादव के ५ साल के राज में खाकी बदमाशों के निशाने पर रही। इस दौरान आधा दर्जन पुलिस अफसरों के साथ क़रीब दो दर्जन पुलिस के जवान अपराधियों की गोली का शिकार हुवे। कुण्डा में डिप्टी एसपी जियाउलहक, इलाहाबाद में एसओ बारा राजेन्द्र प्रसाद द्विवेदी, हरदोई में एसओ पिहानी जेपी सिंह, बिजनौर में एनआईए में तैनात अफसर तंज़ील अहमद, जवारबाग कांड मथुरा मे एएसपी मुकुल दिवेदी, एसओ फराह संतोष यादव समेत २ दर्जन पुलिस कर्मी अपराधियों की गोली का शिकार हुवे। सब से ख़ास बात ये है कि हत्याकाण्ड के किसी भी आरोपियों को अभी तक सज़ा नहीं हो सकी है। 
ह्त्या, लूट, डकैती की रही बाढ़ 
यूपी में क़ानून नाम का भय अपराधियों के बीच नहीं था। यही वजह थी की अपराधी जब जहां चाहते थे वारदात को अंजाम देकर फरार हो जाते थे। किसी भी प्रदेश की राजधानी की क़ानून व्यवस्था को आईने के तौर पर देखा जाता है। लखनऊ के हालात कुछ ऐसे थे की बेटे को इन्साफ दिलाने के लिए जंग लड़ रहा बाप का सीना गोलियों से छलनी कर दिया जाता था। सहादतगंज में श्रवण साहू बेटे को इन्साफ दिलाना चाहते थे। जिस का क़त्ल कर दिया गया था। लेकिन क़ातिल पुलिस की शह मिलने पर इस क़दर बेलगाम हो गए की श्रवण साहू को गोलियों से भून दिया।
साल दर साल बढ़ता गया क्राइम का ग्राफ 
यूपी में साल दर साल अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ता गया। ह्त्या, लूट, डकैती, अपहरण, चोरी, और बलवे की बाढ़ रही है। यूपी में लगातार बढ़ते अपराध का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले एक वर्ष में ही अपराधियों ने 4497 ह्त्या की वारदातों को अंजाम दिया तो डकैती की 250 वारदातें हुई हैं. जबकि बलात्कार के 3395 मामले दर्ज किये गए है। लूट की वारदातों में भी बेतहाशा वृद्धि हुई 2016  में लूट की 3744 घटनाएं हुई है. ये आंकड़े अपने आप में स्थिति बयान करने के लिए काफी है 

बॉक्स 
2012 से लेकर 2016 के आंकड़े 
मार्च 2012 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री का पड़ संभाला था। इस दौरान यूपी में अपराध वर्ष दर वर्ष बढ़ते गए वर्ष 2012 में जहां ह्त्या की 2809 ह्त्या के मामले दर्ज हुवे तो वही 2013 में ये आकड़ा बढ़ कर 3278 हो गया। 2014 में ह्त्या का अकड़ा 3664 पर पहुँच गया। 2015 में ह्त्या के 4139 मामले दर्ज किये गए। जिस की संख्या 2016 में बढ़ कर 4497 हो गई। ऐसा नहीं है सिर्फ ह्त्या की वारदातों में ही बढ़ोतरी हुई हो बल्कि लूट, डकैती और चोरी की वारदातों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई। वर्ष 2012 बलात्कार के 2287, 2013 में 2560, 2014 में 2929, 2015 में 3127 जबकि वर्ष 2016 में बलात्कार 3395 मामले दर्ज किये गए है। डकैती के 198 मामले जहा 2012 में दर्ज हुवे तो 2013 में ये आकड़ा 217 पर रुका। 2014 में डकैती की 244 वारदातें हुई वही 2015 में ये आकड़ा 240 था जो 2016 में बढ़ कर 250 पर पहुँच गया। लूट की घटनाएं भी यूपी में लगातार बढ़ते गए। वर्ष 2012 में 2741, 2013 में 2944, 2014 में 3199, 2015 में 3476 मामले दर्ज किये गए तो वर्ष 2016 में ये आकड़ा 3744 पर पहुँच गया। 

5 साल 8 पुलिस महानिदेशक 

यूपी में पुलिस महानिदेशक बदले जाते रहे लेकिन हालात जस के तस बने रहे. सरकार बनते ही सरकार ने एसी शर्मा को यूपी पुलिस की कमाल सौंपी लेकिन उन्हें असफ़ल माना गया। उन की जगह पर ए एल बैनर्जी ने कुर्सी संभाली लेकिन शराब के नशे में आफिस में ही गिर कर ज़ख़्मी होने के कुछ दिनों बाद उन्हें हटा दिया गया। इस के बाद यूपी में 5 डीजीपी बने जिस में से चार रिटायर होने के बाद हटे। हालांकि इन का कार्यकाल बहुत कम रहा। ए एल बैनर्जी को हटा कर सरकार ने साफ़ सुथरी छवि के देवराज नगर को डीजीपी बनाया जो रिटायर हो कर हटे। उस के बाद सरकार ने एक महीने के लिए अरुण कुमार गुप्ता को तैनात किया। अरुण कुमार के सेवानव्रित्ति के बाद मायावती के बेहद क़रीबी अफसरों में शुमार ए के जैन ने तीन महीने के लिए कमान संभाली जो बाद में बढ़ कर छह माह हो गई. ए के जैन के बाद छह माह के लिए यूपी पुलिस की कमान जगमोहन यादव ने संभाली। उन के रिटायरमेंट के बाद सरकार ने कई सीनियर अफसरों को दरकिनार कर 1 जनवरी 2016 को एस जावीद अहमद को यूपी का डीजीपी बना दिया गया 

 प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कानून व्यवस्था की स्थिति को बड़ा मुद्दा बनाया था और दावा किया था कि पार्टी के सत्ता में आने पर इस मोर्चे पर बड़ा बदलाव दिखेगा मगर पार्टी के सत्ता में आने के बाद कानून व्यवस्था की स्थिति बेहद खराब दिख रही है। योगी राज में प्रदेश हत्याओं से दहल गया है। दो महीने के योगी राज में हत्याओं का आंकड़ा 127 तक पहुंच गया है। योगी सरकार के लिए जगह-जगह हो रहे जातीय संघर्ष भी बड़ी मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। सहारनपुर, शामली, अमरोहा, गोंडा, बिजनौर और संभल में हिंसा के अलावा खाकी पर हमले की घटनाएं भी बढ़ी हैं। सीएम आदित्यनाथ योगी भले ही कानून का राज स्थापित करने का दावा करें, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। अब सीएम ने विधानसभा में बयान दिया है कि अपराधियों के साथ अपराधियों जैसा ही सुलूक होगा। 

कई जिलों में डबल मर्डर की घटनाएं 
अपराधियों के बेलगाम होने का सबसे बड़ा सबूत यह है कि योगी आदित्यनाथ के 60 दिनों के राज में हत्या की 127 घटनाएं हो चुकी हैं। मथुरा, लखनऊ, लखीमपुर खीरी, मैनपुरी, कन्नौज, महोबा, सुल्तानपुर, नोएडा, झांसी, कुशीनगर, जौनपुर, फतेहपुर, देवरिया, हमीरपुर और बरेली में डबल मर्डर की घटनाओं ने लोगों की नींद हराम कर दी है। इलाहाबाद में सगी बहनों से रेप के बाद बेखौफबदमाशों ने दोनों युवतियों व माता-पिता की भी हत्या कर दी। इलाहाबाद के अलावा चित्रकूट में भी चार बच्चों समेत एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या से लोगों में दहशत है। मथुरा में सर्राफा व्यवसायियों के हुए डबल मर्डर के बाद योगी सरकार दबाव में हैं। सीएम ने डीजीपी सुलखान सिंह को तलब कर कानून व्यवस्था में सुधार करने का निर्देश जारी किया है।  

खाकी पर बढ़े हमले, चार की हत्या 
योगी आदित्यनाथ के राज में खाकी पर हमले बढ़े हैं। सीएम के शपथ लेने के 48 घंटे के भीतर ही अलीनगर अलीगढ़ में पुलिस कांस्टेबिल खजाना सिंह की हत्या कर दी गई। वे पुलिस सब इंस्पेक्टर उन्मेद सिंह के साथ हाइवे पर चेङ्क्षकग कर रहे थे। पांच अप्रैल को शमशाबाद आगरा में एसओजी कांस्टेबिल अजय यादव को बेखौफ अपराधियों ने गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया और पिस्टल लूटकर फरार हो गए। इसके बाद बदमाशों ने प्रतापगढ़ में कांस्टेबिल राजकुमार की गोली मार कर हत्या कर दी। अभी विभाग के साथी इस सदमे से उबरे भी नहीं थे कि 8 अप्रैल की रात फिरोजाबाद में खनन माफिया ने कांस्टेबिल रवि कुमार रावत को ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला। सहारनपुर में तत्कालीन एसएसपी लव कुमार के घर पर हमला कर तोडफ़ोड़ की गई। शाहजहंापुर में तैनात सीओ पुवायां अरुण कुमार ने ट्रक सीज किया तो उनके घर पर हमला कर तोडफ़ोड़ की गई। फतेहपुर सीकरी आगरा में थाने के अंदर घुसकर बलवाइयों ने बवाल काटा और सीओ रविकान्त पराशर की थाने के अन्दर ही पिटाई कर दी।  एटा में थानेदार को थाने के अंदर थप्पड़ मारे जाने जैसी घटनाएं खराब कानून व्यवस्था और मनबढ़ अपराधियों के हौसलों की गवाही दे रही हैं। वही सिकंदरा आगरा में खनन माफिया ने पुलिस और खनिज अधिकारी कमल कश्यप को पीट-पीटकर घायल कर दिया गया। 

सहारनपुर सहित कई जगहों पर हिंसा 
कानून व्यवस्था यूपी चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा था। सत्ता में आने के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए सहारनपुर में जातीय संघर्ष परेशानी का सबब बन रहा है। 19 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती के मौके पर जुलूस निकालने को लेकर शुरू हुआ उपद्रव अभी तक पूरी तरह शांत नहीं हुआ है। जनकपुरी, बड़ागांव, कोतवाली देहात, कुतुबशेर, चिलकाना और रामपुर मनिहारन में हुई हिंसा में करोड़ों का नुकसान हुआ है। यहां आगजनी में एक बस व दो दर्जन गाडिय़ों को आग के हवाले कर दिया गया। सहारनपुर में पिछले तीन हफ्तों में जातीय संघर्ष की तीन घटनाएं हो चुकी हैं। उपद्रवियों ने पुलिस और प्रशासन के बड़े अधिकारियों को भी निशाना बनाकर पथराव किया।  सहारनपुर के अलावा अमरोहा, शामली, संभल और गोंडा में हुई जातीय व साम्प्रदायिक हिंसा से पुलिस की नींद हराम है। 

छेडख़ानी के विरोध पर मारी गोली 
अपराधियों के बुलंद हौसले यूपी में बिगड़ी कानून व्यवस्था की गवाही दे रहे हैं। चित्रकूट में बेखौफ अपराधी ने छेडख़ानी का विरोध करने पर लडक़ी के भाई को गोली मार दी। यह मामला 7 मई का है। भगवतपुर राजापुर में राजाराम की बहन की शादी थी। शादी में राजू सिंह अपने साथियों के साथ पहुंच गया और छेड़छाड़ करने लगा। विरोध करने पर राजू ने राजाराम को गोली मार दी जिसका इलाहाबाद में चल रहा है। यही नहीं गोण्डा में छह वर्षीय मासूम के साथ रेप और सहारनपुर में पांच साल की बच्ची से दरिन्दिगी की घटनाएं पुलिसिया इकबाल पर सवाल उठा रही हैं।

रिटायर्ड आईएएस ने सरकार को घेरा 
रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह ने बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर सोशल मीडिया पर सरकार को घेरने की कोशिश की है। अपने फेसबुक वाल पर वे लिखते हैं कि अप्रैल में प्रतिदिन 13 रेप, 14 हत्या, 15 लूट और डकैती की एक घटना हुई यानी सिर्फ अप्रैल में 390 रेप, 420 हत्या, 450 लूट और 30 डकैती की घटनाएं हुई हैं।

विधानसभा में बोले योगी-कानून का राज होगा 
मथुरा में हुए डबल मर्डर के बाद सीएम आदित्यनाथ योगी ने विधानसभा में कहा कि मथुरा की घटना दुखद है। सहारनपुर में स्थानीय सांसद व पूर्व विधायक की भूमिका सामने आई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कानून का राज होगा और अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण नहीं दिया जाएगा।

डीजीपी बोले-जल्द सुधरेंगे हालात 
यूपी पुलिस के मुखिया सुलखान सिंह कहते हैं कि पुलिस अपना काम कर रही हैं। अपराधियों ने कुछ घटनाएं की हैं जिन्हें वर्कआउट किया जा रहा है। वे कहते हैं कि बहुत जल्द हालात बेहतर होंगे। अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करने के लिए कहा गया है। वे खुद जोन वार पुलिस अफसरों के साथ मीटिंग कर अपराध पर लगाम लगाने की रणनीति बना रहे हैं। डीजीपी के मुताबिक मथुरा जैसी घटनाएं रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई किये जाने की तैयारी है। रिटायर्ड डीजीपी अरविन्द कुमार जैन कहते हैं कि यूपी में अभी बदलाव का दौर चल रहा है। सीनियर पुलिस अफसरों के ट्रांसफर हो रहे हैं। जिलों के पुलिस अफसर भी बदले गए हैं। इस दौरान अपराधियों ने सनसनीखेज घटनाओं को अंजाम दिया है। उनका कहना है कि एक बार जब सबकुछ स्थिर हो जाएगा तो हालात बदल जाएंगे। 
--------------------------

 मुुख्य मंत्री पद की शपथ लेने के दिन से ही योगी आदित्य नाथ लगातार दावे ही करते चले आ रहे हैं। उनका ज्यादा जोर प्रदेश की कानून और व्यवस्था की स्थिति को पटरी पर लाने को लेकर रहा है। हाल ही में उन्होंने गोरखपुर में कहा था कि एक महीने में ही वह प्रदेश की कानून और व्यवस्था की स्थिति को सुधार देंगे। मुख्य मंत्री योगी अब तक कई बार यह भी कह चुके है कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को किसी भी गलत दबाव के आग झुकने अथवा डरने की जरूरत नहीं है। वे बिना किसी भय के निष्पक्ष होकर विधिसम्मत कार्य करें। लेकिन, जमीनी हकीकत मे ऐसा कुछ भी होता नहीं दिख रहा है।


पुलिस का कमजोर होता मनोबल

आरोप है कि मेरठ में भाजपा नेता संजय त्यागी के पुलिस से उलझने का कारण यह था कि पुलिस ने उनके पुत्र की कार में हूटर लगाने से रोक दिया था। इसलिये उनके बेटे को जबरन छुडाने के लिये थाने पर भी खासा हंगामा किया गया था। इस पर उनके बेटे को तो छोड दिया गया। लेकिन, पुलिस अधिकारी को हटा दिया गया। इसी तरह भाजपा नेताओं की शिकायत पर सहारनपुर के एस.एस.पी.को हटा दिया गया। आगरा के निकट फतेहपुर सीकरी में विहिप और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं पर दर्ज मुकदमा वापस लेने और इंसपेक्टर को हटाने के लिये थाने पर जमकर संघर्ष हुआ। इसमें एक नेता ने सीओ पर हाथ छोड दिया और एक दरोगा की मोटर साइकिल में आग लगा दी गयी थी। आरोप है कि शाहजहांपुर में भाजपा के नेताओं ने थाने में पुलिस वालों को चूडियां पहनाने की कोशिश की थी। इस पर भी बवाल हुआ था। लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं की  गयी।

बेहाल पुलिस और बदहाल लोग

इसी मंगलवार की सुबह राजधानी लखनऊ के थाना पारा के तहत रातबिहार कालानी में सेवानिवृत्त फौजी लालबहादुर के घर में घुसकर उनकी दो बेटियों की धारदार हथियार से हत्या कर दी गयी। सहारनपुर में हुए हिंसात्मक उपद्रव को लेकर कल पुलिस और दलितों के बीच हुए हिंसात्मक उपद्रव में पुलिस की जीप तोडने के साथ ही पुलिस चैकी को आग के हवाले कर दिया गया। इसमें ए.डी.एम. और डिप्टी एस.पी. की पिटाई भी की गयी।

पति के सामने ही पत्नी से गैंगरेप

जालौन जिला में बदमाशों ने रास्ते में पतिपत्नी को पकड लिया और पति के ही सामने उसकी पत्नी से सामूहिक बलात्कार कियां। इसी तरह चंदौली में हाईस्कूल में पढने वाली एक छात्रा के साथ दो युवकों ने बलात्कार कर उसको जलाकर मार डालाा। मोहनलाल गंज के मऊ गांव में झाडियों के बीच सोनू नामक एक युवक का शव मिला। उसके मुंह से काफी खून निकला था। आपसी रंजिश में इसकी हत्या कर दी गयी थी। मोहनलालगंज इलाके में ही एक युवती का बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या का प्रयास किया गया।

बदमाशों का पुलिस बल पर हिंसक हमला

इसी रविवार की रात में ही रामपुर जिला के सिविल लाइन कोतवाली क्षेत्र में दबिश डालने गयी पुलिसदल पर आरोपियों ने हमला कर उनकी राइफल और रिवाल्वर लूटने का प्रयास किया। इसी छीनाझपटी में राइफल और पुलिस का वायरलेस सेट तोड दिया गया। दरोगा को बंधक बनाकर उनकी खासी मरम्मत की गयी। जौनपुर में मारपीट के आरोपियों को पकडने के लिये गये पुलिस बल को ग्रामीणों ने दौडाकर मारापीटा तथा उनकी वर्दी तक फाड दी। इसके बाद दरोगा को बंधक बना कर उसका वायरलेस सेट भी तोड दिया।  

योगी की सुरक्षा के लिये हो गया था खतरा

इसी दिन मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ आगरा में थे। पुलिस की लापरवाही के चलते इनकी भी सुरक्षा उस समय खतरे में पड गयी थी, जब नगरिया गांव जाते समय इनकी भी फ्लीट में कई वाहन घुस गये थे। इसी तरह जौनपुर में मारपीट के आरोपियों को पकडने के लिये गये पुलिस बल को ग्रामीणों ने दौडाकर मारापीटा तथा उनकी वर्दी तक फाड दी।


नहीं सुन रहे अफसर

 इस साल देश के 1800 IAS ऑफिसर्स ने अपनी इम्मूवेबल प्रॉपर्टीज (अचल संपत्तियों) का सरकार को ब्योरा नहीं दिया है। 2016 के लिए यह रिटर्न इस साल जनवरी के आखिरी तक देनी थी। इनमें सबसे ज्यादा 255 ऑफिसर्स उत्तर प्रदेश कैडर के हैं। इसके बाद 153 राजस्थान के, 118 मध्य प्रदेश के, 109 वेस्ट बंगाल के और 104 अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम- यूनियन टेरेटरीज के हैं।  सभी IAS अॉफिसर्स को जनवरी के आखिरी तक इम्मूवेबल प्रॉपर्टीज रिटर्न (IPRs) देना जरूरी हाेता है। ऐसा नहीं करने पर ऑफिसर्स के प्रमोशन और लिस्ट में शामिल करने पर रोक लगाई जा सकती है। पर्सनल एंड ट्रेनिंग डिपार्टमेंट (DoPT) के डाटा के मुताबिक, 2016 के लिए 1856 IAS ऑफिसर्स ने IPR नहीं दिया है। नियमों के मुताबिक, सिविल सर्विसेज ऑफिसर्स को भी सरकार को अपनी प्रॉपर्टी और कर्ज का ब्योरा देना होता है। इसके अलावा ऑफिसर्स सरकार की परमिशन बगैर 5000 से ज्यादा का गिफ्ट भी नहीं ले सकते।अगर वो अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से भी 25000 से ज्यादा का गिफ्ट ले रहे हैं तो इसके बारे में सरकार को बताना होता है।

किस राज्य के कितने अफसर?
कर्नाटक- 82, आंध्र प्रदेश- 74, बिहार- 74, ओडिशा, असम, मेघालय- 72-72, पंजाब- 70, महाराष्ट्र- 67, मणिपुर-त्रिपुरा- 64-64, हिमाचल प्रदेश- 60, गुजरात- 56, झारखंड- 55, हरियाणा- 52, जम्मू-कश्मीर- 51, तमिलनाडु- 50, नागालैंड- 43, केरल- 38, उत्तराखंड- 33, सिक्किम- 29, तेलंगाना- 26

देशभर में 6500 IAS पोस्ट
देशभर में 1450 प्रामोशन पोस्ट के साथ IAS ऑफिसर्स की 6500 पोस्ट हैं। इनमें से 5004 IAS ऑफिसर्स देशभर में काम कर रहे हैं। प्रॉपर्टी का डिटेल नहीं देने वाले सबसे ज्यादा 255 ऑफिसर्स उत्तर प्रदेश कैडर के हैं।

सातवीं कैबिनेट चार महत्वपूर्ण फैसले 

 एक -अब दिव्यांगों को ₹300 की जगह ₹500 पेंशन मिलेगी। दो- गाजियाबाद में कैलाश मानसरोवर भवन के लिए नगर निगम निशुल्क जमीन देगा। 50 करोड़ की लागत से 500 श्रद्घालुओं की सुविधा वाला यह भवन दो वर्ष में बनकर तैयार हो जाएगा। तीन- वाराणसी के जजेज गेस्ट हाउस के अपग्रेड के लिए प्रस्ताव अनुमोदित हुआ है । जल निगम की सीएनडीएस संस्था इसका मरम्मत कराएगी। चार- पूर्व विधायकों के पेंशन नियमावली में संशोधन किया गया है। करीब 25 साल पूर्व विधायकों को मिलेगा लाभ। प्रदेष  2500 पूर्व विधायकों को मिलेगा इसका लाभ पूर्व विधायकों को मिलेगा 50 हज़ार का तेल पूर्व विधायकों को अब मिलेंगे 50 हज़ार के रेल कूपन मिलेंगे।  

SHARE THIS
Previous Post
Next Post