चैत्र-नवरात्रि

चैत्र-नवरात्रि 
नवरात्रि कब है 2017 के लिए चित्र परिणाम
 वस्तुतः नवरात्रि को एक हिंदू पर्व मात्र ही नही अपितु नये वर्ष का आगाज भी माना जाता है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन  जो की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाया जाता है तथा इसमें माँ दुर्गा की आराधना पूजा आदि करके उन्हें प्रसन्न करते हैं । दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष चैत्रीय नवरात्रि के प्रारम्भकाल को लेकर व्यर्थ में कुछ मिथ्या भ्रामक स्थिति उतपन्न की गयी है कुछ कलेंडर के कारण किन्तु इस लेख के माध्यम से शास्त्रीय प्रामाणो को ध्यान देते हुए पूर्ण स्पष्ट किया जा रहा है । इस वर्ष चैत्रशुक्लप्रतिपदा 28 मार्च मंगलवार को प्रातः 08:14 से प्रारम्भ हो रही है किन्तु सूर्योदय के समय अमावस्या तिथि होने से इस दिन चैत्र नवरात्र प्रारम्भ को अमान्य मानकर अगले दिन 29 मार्च को ए वत्सर के साथ चैत्रीय नवरात्रो के आरम्भ काल को प्रमाणित किया जाता है उसके विषय में निर्णय सिंधु के पृ०सं०143 में स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है...तत्र -"चैत्रशुक्लप्रतिपदि वत्सरारम्भः" तत्रौदयिकी ग्राह्य।।अर्थात सनातन परम्परानुसार प्रमुखरूप से चैत्र शुक्लप्रतिपदा से ही नए वर्ष की शुरुवात माना जाता है और उसमें भी सूर्योदय के समय प्रतिपदा तिथि को वरीयता प्रदान की गयी है।।
हेमाद्रि में ब्रह्मपुराण का कथन है-
 "चैत्रे मासि जगद्ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेंहनि। शुक्लपक्षे समग्रम् तू तदा सूर्योदये सति
 अर्थात चैत्रमास के प्रथमदिन शुक्लपक्ष में सूर्योदय होने के समय में ही ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की। उसी बात को ज्योतिर्निबन्ध में भी कहा गया है कि""चैत्रे सितप्रतिपदि यो वारोर्कोदये स वर्षेशः,,,अर्थात चैत्र शुक्लप्रतिपदा के सूर्योदय के समय जो वार होगा वही वर्षेश माना जायेगा ,तथा इस वर्ष चूँकि बुधवार 29 मार्च को चैत्र शक्लप्रतिपदा तिथि को सूर्योदय प्राय हो रहा है तो इस वर्ष का राजा भी '"बुध"' ही होंगे। इस प्रकार पूर्ण स्पस्ट है कि प्रति वर्ष की भाति ही इस वर्ष भी नए वत्सर के साथ ही चैत्रीय नवरात्रों का आरम्भ 29 मार्च से हो रहा है तथा जो की 05 अप्रैल बुधवार को नवमी तिथि को हवन एवम व्रत का पारण किया जाएगा ।।

 शक्ति की आराधना
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 नवरात्रि के नौ रातों में वशेष रूप से तीन देवियों - माँ महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती के साथ ही माँदुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जो की निम्न प्रकार से है-

शैलपुत्री - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।

ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।

चंद्रघंटा - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।

कूष्माण्डा - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।

स्कंदमाता - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।

कात्यायनी - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।

कालरात्रि - इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।

महागौरी - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।

सिद्धिदात्री - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।
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  कलश स्थापना का मुहूर्त
इस वर्ष प्रतिपदा तिथि 28 मार्च को प्रातः 08:15 से प्रारम्भ होकर 29 मार्च को 06:33 तक है । किंतु देवीपुराण में स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि अमायुक्ता न कर्तव्या प्रतिपच्चण्डिकार्चने। मुहूर्तमात्रा कर्तव्या द्वितीयादिगुणान्विता,,अर्थात अमावस्या युक्त प्रतिपदा तिथि को ग्रहण न करके द्वितीया को गुणान्वित मुहूर्त मात्र भी हो तो भी द्वितीया युक्त प्रतिपदा को चन्डीपुजा में ग्रहण करना चाहिए तथा 29 मार्च को प्रातः 06:33 ही तक होने से कलश स्थपना के लिए प्रतिवर्ष की भांति अधिक समय नही प्राप्त हो रहा तदपि भक्तजन 29 मार्च को ही सूर्योदये से लेकर अपनी सुविधा के अनुसार कलश स्थापना कर सकते है क्योंकि आचार्यो का मत है कि सूर्योदय कालीन तिथि सम्पूर्ण दिन मान्य रहती है।

 कैसे करें माता को प्रसन्न
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इन नव रात्रियों में माता के भक्तों को चाहिए की अपने घर के मंदिर में माता की भव्य चौकी सजाकर दिव्य आसन लगाये तथा प्रतिपदा तिथि को ही कलश स्थापित करके देवी के परमप्रिय दुर्गाशप्तसती का सम्पूर्ण पाठ किसी विद्वान आचार्य से पाठ करावे वा आरती में परिवार सहित उपस्थित होकर माता का आशीर्वाद ग्रहण करें एवम माता से प्राथना करें की हमारे परिवार में सुखशांति बनाये रखे व अपनी कृपादृष्टि सदा रखें ।

नोट--इसके अतिरिक्त स्वयं भी दुर्गाशप्तसती का पाठ (हिंदीरूपांतरण)एवं दुर्गानवार्ण मंत्र का अधिकाधिक जाप करे।अंत में नवमी तिथि को शप्तसती के मंत्रों से हवन आदि करें तथा यथा शक्ति कन्या व ब्राहाम्ण भोज भी करावें ।
नोट--उच्चारण का विशेष ध्यान रखे यदि संस्कृत में पाठ सम्भव न हो तो हिंदी में ही करें क्योंकि अशुद्ध उच्चारण फलप्राप्ति का मार्ग ही बदल देता है इसके विषय में निम्न कथा का उल्लेख भी प्राप्त होता है-

लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग 'कमलनयन नवकंच लोचन' कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी। इसलिये चंडी पाठ के उच्चारण में विशेष ध्यान देना अनिवार्य है।

एकअन्यकथा
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इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। और प्रत्याशित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए। महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा है। तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी। इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं।
नए वर्ष एवम चैत्र नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं तथा मातारानी आपके सम्पूर्ण जीवन को खुशियो व आनन्द से भर दे . यही हमारी सस्नेह शुभकामना है आप सबको।
आचार्य संजय शांडिल्य
           

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