आश्रम और परिवार

आश्रम और परिवार

संजय तिवारी 
सनातन संस्कृति में आश्रम वह स्थान है जहां संस्कारयुक्त मनुष्य निवास करते है। यह आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यासी सभी का और सभी के लिए है। आश्रम वस्तुतः वह स्थल है जिसे आज घर की संज्ञा दी गयी है लेकिन रूढ़ि ऐसी स्थापित कर दी गयी है कि आश्रम केवल सन्यासी का निवास ही है। ऐसा सांस्कृतिक क्षरण और हजारों वर्षों के संघर्ष से उपजी सभ्यता के कारण हुआ है। मानव जीवन को सनातन संहिता में जिन चार आश्रमो में विभाजित किया गया है उनमें कहीं यह नही कहा गया कि आश्रम केवल जंगल मे होंगे और वहां सन्यास के बाद ही रहना है। ब्रह्मचर्य , गृहस्थ और वानप्रस्थ की अवस्था भी आश्रम ही है । जो परिवार की परिकल्पना और स्थापना है उसमें ब्रह्मचर्य अवस्था से सन्यास की अवस्था तक के सभी सदस्यों के लिए स्थान है। इसलिए आश्रम शब्द से उलझने की आवश्यकता नही। जीवन की चारों अवस्थाओं के लिए आश्रम है। इसे इस प्रकार से भी समझिए कि हमारे सभी ऋषि मुनि आश्रम में रहते थे। सभी की पूरी गृहस्थी थी। ऋषि पत्नियां और ऋषि कुमार या ऋषि कन्याएं भी साथ रहती थीं। उस समय केवल राजा के निवास को  प्रासाद की संज्ञा मिली थी। 
सनातन संस्कृति में कुल या परिवार के लिए भी आवश्यक अवयवों का निर्धारण शास्त्रों में किया गया है। एक सनातन परिवार में उसके सभी सदस्यों के साथ ही गंगा, गौरी अर्थात कन्या, गोमाता, गीता, गायत्री अर्थात वेद और गोविंद अर्थात मंदिर और गुरु की अनिवार्यता बताई गई है। यदि कुल, कुटुंब अर्थात परिवार में ये सभी अवयव हैं तो वहां शील, संस्कार और मर्यादा स्वतः स्थापित होती है।
- संस्कृति पर्व

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