अपने उपनिषदों पर गर्व कीजिये , व्यवस्था बनाइये

अपने उपनिषदों पर गर्व कीजिये ,  व्यवस्था बनाइये 
संजय तिवारी 
उपनिषद् केवल  भारतीय जिज्ञासुओं के लिए ही अद्भुत नहीं हैं बल्कि  अनेक पाश्चात्य विद्वानों को भी उपनिषदों को पढ़ने और समझने का अवसर प्राप्त हुआ है। तभी वे इन उपनिषदों में छिपे ज्ञान के उदात्त स्वरूप से प्रभावित हुए है। इन उपनिषदों की समुन्नत विचारधारा, उदात्त चिन्तन, धार्मिक अनुभूति तथा अध्यात्मिक जगत् की रहस्यमयी गूढ़ अभिव्य्क्तियों से वे चमत्कृत होते रहे हैं और मुक्त कण्ठ से इनकी प्रशंसा करते आये हैं।लगभग पूरा पश्चिम आज उपनिषद् से प्रभावित भी है और इस बारे में अधिक से अधिक जानना चाहता है। ये तो हम भारतीय है जो लगातार पश्चिम की ओर मुँह उठाये कुछ पाना चाहते हैं। ज़रा पश्चिम को देखिये किस तरह से वह भारत के इस ज्ञान के लिए जिज्ञासु है और पा लेने के लिए लालायित है। 
भारतीय-संस्कृति की प्राचीनतम एवं अनुपम धरोहर के रूप में वेदों का नाम आता है। 'ॠग्वेद' विश्व-साहित्य की प्राचीनतम पुस्तक है। मनीषियों ने 'वेद' को ईश्वरीय 'बोध' अथवा 'ज्ञान' के रूप में पहचाना है। विद्वानों ने उपनिषदों को वेदों का अन्तिम भाष्य 'वेदान्त' का नाम दिया है। इससे पूर्व वेदों के लिए 'संहिता' 'ब्राह्मण' और 'आरण्यक' नाम भी प्रयुक्त किये जाते हैं। उपनिषद ब्रह्मज्ञान के ग्रन्थ हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है- ‘समीप बैठना‘ अर्थात् ब्रह्म विद्या को प्राप्त करने के लिए गुरु के समीप बैठना। इस प्रकार उपनिषद एक ऐसा रहस्य ज्ञान है जिसे हम गुरु के सहयोग से ही समझ सकते हैं। ब्रह्म विषयक होने के कारण इन्हें 'ब्रह्मविद्या' भी कहा जाता है। उपनिषदों में आत्मा-परमात्मा एवं संसार के सन्दर्भ में प्रचलित दार्शनिक विचारों का संग्रह मिलता है। उपनिषद वैदिक साहित्य के अन्तिम भाग तथा सारभूत सिद्धान्तों के प्रतिपादक हैं, अतः इन्हें 'वेदान्त' भी कहा जाता है। उपनिषदों ने जिस निष्काम कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग का दर्शन दिया उसका विकास श्रीमद्भागवतगीता में हुआ। यहाँ यह जानने की कोशिश करते हैं कि पश्चिमी दुनिया ने उपनिषदों को किस रूप में देखा है। पश्चिम के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण विद्वानों की दृष्टि में यह क्या है -

जर्मन दार्शनिक आर्थर शोपेन हॉवर
'मेरा दार्शनिक मत उपनिषदों के मूल तत्त्वों के द्वारा विशेष रूप से प्रभावित है। मैं समझता हूं कि उपनिषदों के द्वारा वैदिक-साहित्य के साथ परिचय होना, वर्तमान शताब्दी का सनसे बड़ा लाभ है, जो इससे पहले किसी भी शताब्दी को प्राप्त नहीं हुआ। मुझे आशा है कि चौदहवीं शताब्दी में ग्रीक-साहित्य के पुनर्जागरण से यूरोपीय-साहित्य की जो उन्नति हुई थी, उसमें संस्कृत-साहित्य का प्रभाव, उसकी अपेक्षा कम फल देने वाला नहीं था। यदि पाठक प्राचीन भारतीय ज्ञान में दीक्षित हो सकें और गम्भीर उदारता के साथ उसे ग्रहण कर सकें, तो मैं जो कुछ भी कहना चाहता हूं, उसे वे अच्छी तरह से समझ सकेंगे उपनिषदों में सर्वत्र कितनी सुन्दरता के साथ वेदों के भाव प्रकाशित हैं। जो कोई भी उपनिषदों के फ़ारसी, लैटिन अनुवाद का ध्यानपूर्वक अध्ययन करेगा, वह उपनिषदों की अनुपम भाव-धारा से निश्चित रूप से परिचित होगा। उसकी एक-एक पंक्ति कितनी सुदृढ़, सुनिर्दिष्ट और सुसमञ्जस अर्थ प्रकट करती है, इसे देखकर आंखें खुली रह जाती है। प्रत्येक वाक्य से अत्यन्त गम्भीर भावों का समूह और विचारों का आवेग प्रकट होता चला जाता है। सम्पूर्ण ग्रन्थ अत्यन्त उच्च, पवित्र और एकान्तिक अनुभूतियों से ओतप्रोत हैं। सम्पूर्ण भू-मण्डल पर मूल उपनिषदों के समान इतना अधिक फलोत्पादक और उच्च भावोद्दीपक ग्रन्थ कही नहीं हैं। इन्होंने मुझे जीवन में शान्ति प्रदान की है और मरते समय भी यह मुझे शान्ति प्रदान करेंगे।'
'भारत में हमारे धर्म की जड़े कभी नहीं गड़ेंगी। मानव-जाति की ‘पौराणिक प्रज्ञा’ गैलीलियो की घटनाओं से कभी निराकृत नहीं होगी, वरन् भारतीय ज्ञान की धारा यूरोप में प्रवाहित होगी तथा हमारे ज्ञान और विचारों में आमूल परिवर्तन ला देगी। उपनिषदों के प्रत्येक वाक्य से गहन मौलिक और उदात्त विचार प्रस्फुटित होते हैं और सभी कुछ एक विचित्र, उच्च, पवित्र और एकाग्र भावना से अनुप्राणित हो जाता है। समस्त संसार में उपनिषदों-जैसा कल्याणकारी व आत्मा को उन्नत करने वाला कोई दूसरा ग्रन्थ नहीं है। ये सर्वोच्च प्रतिभा के पुष्प हैं। देर-सवेर ये लोगों की आस्था के आधार बनकर रहेंगे।' शोपेन हॉवर के उपरान्त अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने उपनिषदों पर गहन विचार किया और उनकी महिमा को गाया।

अलबरुनी
उपनिषदों की सार-स्वरूपा 'गीता' भारतीय ज्ञान की महानतम् रचना है।

दारा शिकोह
 'मैने क़ुरान, तौरेत, इञ्जील, जुबर आदि ग्रन्थ पढ़े। उनमें ईश्वर सम्बन्धी जो वर्णन है, उनसे मन की प्यास नहीं बुझी। तब हिन्दुओं की ईश्वरीय पुस्तकें पढ़ीं। इनमें से उपनिषदों का ज्ञान ऐसा है, जिससे आत्मा को शाश्वत शान्ति तथा आनन्द की प्राप्ति होती है। हज़रत नबी ने भी एक आयत में इन्हीं प्राचीन रहस्यमय पुस्तकों के सम्बन्ध में संकेत किया है।

इमर्सन
पाश्चात्य विचार निश्चय ही वेदान्त के द्वारा अनुप्राणित हैं।


मैक्समूलर
मृत्यु के भय से बचने, मृत्यु के लिए पूरी तैयारी करने और सत्य को जानने के इच्छुक जिज्ञासुओं के लिए, उपनिषदों के अतिरिक्त कोई अन्य-मार्ग मेरी दृष्टि में नहीं है। उपनिषदों के ज्ञान से मुझे अपने जीवन के उत्कर्ष में भारी सहायता मिली है। मै उनका ॠणी हूं। ये उपनिषदें, आत्मिक उन्नति के लिए विश्व के समस्त धार्मिक साहित्य में अत्यन्त सम्मानीय रहे हैं और आगे भी सदा रहेंगे। यह ज्ञान, महान, मनीषियों की महान् प्रज्ञा का परिणाम है। एक-न-एक दिन भारत का यह श्रेष्ठ ज्ञान यूरोप में प्रकाशित होगा और तब हमारे ज्ञान एवं विचारों में महान् परिवर्तन उपस्थित होगा।

प्रो. ह्यूम
 सुकरात, अरस्तु, अफ़लातून आदि कितने ही दार्शनिक के ग्रन्थ मैंने ध्यानपूर्वक पढ़े है, परन्तु जैसी शान्तिमयी आत्मविद्या मैंने उपनिषदों में पायी, वैसी और कहीं देखने को नहीं मिली।

प्रो. जी. आर्क
 मनुष्य की आत्मिक, मानसिक और सामाजिक गुत्थियां किस प्रकार सुलझ सकती है, इसका ज्ञान उपनिषदों से ही मिल सकता है। यह शिक्षा इतनी सत्य, शिव और सुन्दर है कि अन्तरात्मा की गहराई तक उसका प्रवेश हो जाता है। जब मनुष्य सांसरिक दुःखो और चिन्ताओं से घिरा हो, तो उसे शान्ति और सहारा देने के अमोघ साधन के रूप में उपनिषद ही सहायक हो सक्ते हैं।

पॉल डायसन
वेदान्त (उपनिषद-दर्शन) अपने अविकृत रूप में शुद्ध नैतिकता का सशक्ततम आधार है। जीवन और मृत्यु कि पीड़ाओं में सबसे बड़ी सान्तवना है।

डा. एनीबेसेंट
भारतीय उपनिषद ज्ञान मानव चेतना की सर्वोच्च देन है।

बेबर
भारतीय उपनिषद ईश्वरीय ज्ञान के महानतम ग्रन्थ हैं। इनसे सच्ची आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है। विश्व-साहित्य की ये अमूल्य धरोहर है।

उपनिषदों का प्रतिपाद्य विषय
उपनिषदों के रचयिता ॠषि-मुनियों ने अपनी अनुभुतियों के सत्य से जन-कल्याण की भावना को सर्वोपरि महत्त्व दिया है। उनका रचना-कौशल अत्यन्त सहज और सरल है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि इन ॠषियों ने कैसे इतने गूढ़ विषय को, इसके विविधापूर्ण तथ्यों को, अत्यन्त थोड़े शब्दों में तथा एक अत्यन्त सहज और सशक्त भाषा में अभिव्यक्त किया है। भारतीय दर्शन की ऐसी कोई धारा नहीं है, जिसका सार तत्त्व इन उपनिषदों में विद्यमान न हो। सत्य की खोज अथवा ब्रह्म की पहचान इन उपनिषदों का प्रतिपाद्य विषय है। जन्म और मृत्यु से पहले और बाद में हम कहां थे और कहां जायेंगे, इस सम्पूर्ण सृष्टि का नियन्ता कौन है, यह चराचर जगत् किसकी इच्छा से परिचालित हो रहा है तथा हमारा उसके साथ क्या सम्बन्ध है— इन सभी जिज्ञासाओं का शमन उपनिषदों के द्वारा ही सम्भव हो सका है।

क्रमशः 


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