तब प्रलय बन कर उमड़ेगी गंगा

विशेष : ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन 

तब प्रलय बन कर उमड़ेगी गंगा 
संजय तिवारी 
हालात बहुत बदतर हो चुके हैं। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की दर खतरनाक विंदु को छू रही हैं। यदि यही रफ़्तार रही तो भारत में जीवनदायिनी के रूप में पूज्य गंगा सीधे प्रलय बन कर उमड़ पड़ेगी और फिर सबकुछ तबाह हो जायेगा। इससे उत्पन्न बाढ़ और तबाही में कुछ भी नहीं बचेगा। दुनिया में भूखमरी और कंगाली आ जाएगी। कही भयंकर सूखा और कही भयंकर बाढ़ से मानवता संकट में आ जाएगी। 

यह केवल कोरी भविष्यवाणी नहीं है। यह आकलन है उस गंभीर शोध का जिसे ब्रिटैन की  यूनिवर्सिटी ऑफ एक्जीटर के शोधकर्ताओं ने किया है। उनकी रिपोर्ट के मुताबिक दो डिग्री तापमान बढ़ने पर गंगा का बहाव दोगुना हो जाएगा।इसकी धारा में आने वाले खेत-खलिहान नष्ट हो जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के चलते दुनियाभर में कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ आने से भोजन की भारी कमी होने की आशंका है। 122 विकासशील और अल्प विकसित देशों पर हुआ यह शोध फिलॉसाफिकल ट्रांसेक्शन ऑफ द रॉयल सोसाइटी जर्नल में प्रकाशित है। इस शोध ने दुनिया के वैज्ञानिको और पर्यावरणशास्त्रियो को बेचैन कर दिया है। 

इसमें बताया जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग प्रभाव देखने को मिलेगा। कहीं अत्यधिक बाढ़ आएगी तो कहीं भीषण सूखा पड़ेगा। अनियमित मौसम के चलते साफ पानी की उपलब्धता अभी के मुकाबले कहीं बड़ी चुनौती बन जाएगी। बड़ी आबादी के लिए पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक अन्न उगाना मुश्किल होगा। अभी ही दुनिया के तकरीबन 8 करोड़ लोगों को नियमित भोजन नसीब नहीं होता है। आगे स्थिति और खराब हो सकती है। इस शोध के नतीजे बता रहे हैं कि बाढ़ व जलप्लावन का प्रभाव दक्षिण व पूर्वी एशिया में देखा जाएगा। यहां ग्लोबल वार्मिंग दो डिग्री बढ़ने पर गंगा नदी का बहाव दोगुने से अधिक हो जाएगा। सूखे के कारण दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे जहां अमेजन नदी का बहाव 25 फीसद तक कम होने की आशंका है।

 इस रिसर्च में लगे शोधार्थियों ने समुद्री सतह के तापमान और समुद्री बर्फ के पैटर्न पर आधारित ग्लोबल मॉडल के इस्तेमाल से 122 देशों का अध्ययन किया जिनमें से अधिकतर एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में हैं। शोध परिणाम में कहा गया है कि  अगर पेरिस जलवायु समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक रोका जा सकेगा तो स्थिति कुछ नियंत्रण में रहेगी। लेकिन अगर इस सदी के अंत तक तापमान वृद्धि दो डिग्री हो जाती है तो तकरीबन 76 फीसद विकासशील देश गंभीर परिस्थितियों का सामना करने को मजबूर होंगे।


ग्लोबल वार्मिंग से खतरे में ग्लेशियर पृथ्वी के तापमान में निरंतर होती वृद्वि से गंगा बेसिन क्षेत्र के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। गंगोत्री से कुछ किमी पैदल दूरी पर गंगा का उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर निरंतर पीछे खिसक रहा है। ताजा आकड़े के अनुसार वर्ष 1990 से लेकर 2006 तक गोमुख ग्लेशियर 22.8 हेक्टेयर पीछे खिसका है। इंटरनेशनल कमीशन फार स्नो एण्ड आइस के एक समूह द्वारा हिमालय स्थित ग्लेशियरों का अध्ययन किया गया। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार आने वाले 50 वषा में मध्य हिमालय के तकरीबन 15 हिमखंड पिघलकर समाप्त हो जाएंगे। गोमुख ग्लेशियर पर अध्ययन से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार कुछ चौकानें वाले तथ्य सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1935 से 1956 तक गोमुख ग्लेशियर 5.25 हेक्टेयर, 1952 से 1965 तक 3.65 हे., 1962 से 1971तक 12 हे., 1977 से लेकर 1990 तक 19.6 हे. पिघलकर समाप्त हुआ है। वर्ष 1962 से 2006 तक गोमुख ग्लेशियर डेढ़ किमी. पिघला है।
भूगर्भीय सर्वे आफ इंडिया, रिमोट सेंसिग एप्लीकेशन सेंटर, जवाहर लाल नेहरू विश्वविघालय आदि संस्थानो के द्वारा किये गये अध्ययन से स्पष्ट है कि पृथ्वी का तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर पिछले 40 सालों में 25 से 30 मीटर पीछे खिसक चुका है। यदि यही स्थित रही तो 2035 तक ग्लेशियर पिघलकर समाप्त हो जायेगा। समुद्र तल से 12,770 फीट एवं 3770 मीटर ऊचाई पर स्थित गोमुख ग्लेशियर 2.5 किमी चौड़ा व 27 किमी लम्बा है, जबकि कुछ साल पहले गोमुख ग्लेशियर 32 किमी लम्बा व 4 किमी चौडा था। गोमुख ग्लेशियर पिघलने से गंगा बेसिन के क्षेत्र उत्तारांचल, बिहार, उत्तार प्रदेश का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। गोमुख क्षेत्र में लोगों का हजारों की संख्या में पहुंचना भी एक हद तक ग्लेशियर को नुकसान पहुंचा रहा है। यदि ग्लेशियर पर पर्वतारोही दलों के अभ्यास को बंद करने के साथ ही ग्लेशियर पर चढ़ने की सख्त पाबंदी लगा दी जाए तो काफी तक गोमुख ग्लेशियर की उम्र बढ़ सकती है।

 भागीरथी गंगा का प्रमुख श्रोत हैं किन्तु जलभराव की दृष्टि से अलकनंदा की हिस्सेदारी आधिक अल्टीट्यूड उदगम से लेकर समुद्र तक पहुंचने की नदी यात्रायें गम्भीर निगरानी और सुधार चाहती हैं । अलकनंदा के साथ पिंडर, घौलीगंगा, रामगंगा और मंदकिनी जैसी धाराएं भी मिलती हैं । कर्णप्रयाग में ही अलकनंदा पिंडर से मिलती है। अब पिंडर पर अनेक पन बिजली परियोजनायें प्रस्तवित हैं । इस सम्पूर्ण क्षेत्र में वनों की कटाई, निर्माण और भारी भरकम परियोजनाआें से पूरा परिस्थितिक ढांचा बदला और बिगडा है इसका परिणाम 2013 में केदारनाथ त्रासदी के रूप में हम देख चुके हैं । पर्यटन, बेतरतीब निर्माण, पनबिजली योजनायें और बांधों के निर्माण से समूचा हिमालच क्षेत्र आति संवेदनशील हो चुका है। नदियों के मार्ग, नदी के तट में अवरोध पहिüडयों पर बारूदी विस्फोट और सडकों, सुरंगों के निर्माण से स्थितियां बद से बदतर हुई हैं । 557 बांध परियोजनायें जो प्रस्तवित हैं यदि क्रियान्वित हुइ तो हिमालच, गंगा, उत्तराखंड का पर्यावरणीय विनाश तय है। गंगा बहती है, इसलिए नदी है, आविरल है, नदी का बहना बंद होने का अर्थ नदी की मृत्यु है। फिर गंगा की मृत्यु का अर्थ कितना भयावह हो सकता है?  

गंगा पर संकट बेशुमार
इस समय भारत में गंगा के आस्तित्व और भविष्य पर बेशुमार संकट है । लगातार सरकारी वादों और योजनाओ के बाद भी गंगा की दशा खराब ही होती जा रही है। हमारी नीतियों और करतूतों ने हालात को और भी बदतर बना दिया है 1979 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने गंगा में प्रदूषण की विकरालता को समझते हुए एक समीक्षा की थी । 1985 में गंगा एक्शन प्लान का प्रारम्भ हुआ, पर गंगा की हालत नहीं बदली । गंगा बेसिन अथारिटी की स्थापना 2009 में हुई पर नतीजे नहीं मिले । 2014 में नममि गंगे परियोजना की घोषणा हुई है ।इसके अंतर्गत 2037 करोड खर्च होंगे , किनारों के बडे नगरों में घाटों के विकास हेतु 100 करोड रू खर्च होंगे । अप्रवासी भारतीयों को भी सहयोग हेतु कहा गया है । शहरी विकास मंत्रालय ने निर्मल धारा योजना के अंतर्गत गंगा तट पर बसे 118 नगरों में जल-मल शुद्धिकरण के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की योजना बनाई है । जिस पर 51000 करोड रू० खर्च होंगे । गंगा के प्रवाह को जल परिवहन के लिए भी उपयोग करने की योजना है । इलाहाबाद से हल्दिया तक जलमार्ग विकास परियोजना । 42000 करोड रू० की योजना 2020 तक पूरी होगी । हालांकि इस जलमार्ग योजना पर अनेक प्रश्न उठाए गए हैं। जैवविविधता की क्षति से लेकर नदी की सम्पूर्ण परिस्थितिकी के बिगाड तक के खतरों की आशंका जैसे प्रश्न हैं ।
 

गंगा प्रदूषण या गंगा बचाओ
लोग गंगा के प्रदूषण की बात करते हैं लेकिन मैं कहता हूं कि गंगा को बचाना अधिक महत्वपूर्ण है. टिहरी बांध के बाद गंगा नाले जैसी बहती है. कहां है गंगा. गंगोत्री पीछे जा चुका है. इतनी गंदगी है.ग्लेशियर को बचाने का कोई उपाय नहीं किया जा रहा है। जब भूकंप होता है या ऐसी कोई बड़ा कंपन होता है तो ग्लेशियर पर प्रभाव पड़ता है. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तो है ही। 
- डॉ डोभाल, ग्लेशियर विशेषज्ञ  


 उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री के बीच बड़ी परियोजनाओं ने भी ग्लेशियर को नुकसान पहुंचाया है। भैरों घाटी में मनेरी बांध बना है. इसके अलावा लोहारीनाग पाला पनबिजली परियोजना चल रही है जिसके तहत पहाड़ों को काटा जा रहा है. प्रकृति के साथ खिलवाड़ तो सही नहीं है। मुझे लगता है कि इन परियोजनाओं के लिए जिस तरह से पहाड़ो में विस्फोट किए जा रहे हैं वो ग्लेशियरों को नुकसान पहुंचा रहा है। गंगोत्री से उत्तरकाशी के रास्ते में जगह जगह पर हमने भी यह देखा कि पहाड़ों में विस्फोट किए जा रहे हैं जिससे पूरी हिमालय शृंखला हिलती होगी इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। 
ब्रह्मचारी अनिल स्वरुप





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