रिमझिम गिरे सावन सुलग-सुलग जाए मन

सावन विशेष 
रिमझिम गिरे सावन सुलग-सुलग जाए मन


Image result for रिमझिम गिरे सावन सुलग-सुलग जाए मन


संजय तिवारी 
प्रख्यात गीतकार योगेश जी की ये पंक्तिया हैं। फिल्म मंजिल के लिए उन्होंने इन पंक्तियों को रचा है। पूरा गीत कुछ इस तरह से है -

रिमझिम गिरे सावन
सुलग-सुलग जाए मन
भीगे आज इस मौसम में
लगी कैसी ये अगन

पहले भी यूँ तो बरसे थे बादल
पहले भी यूँ तो भीगा था आंचल
अब के बरस क्यूँ सजन, सुलग-सुलग जाए मन
भीगे आज...

इस बार सावन दहका हुआ है
इस बार मौसम बहका हुआ है
जाने पी के चली क्या पवन, सुलग-सुलग जाए मन
भीगे आज...

जब घुंघरुओं सी बजती हैं बूंदे
अरमाँ हमारे पलके न मूंदे
कैसे देखे सपने नयन, सुलग-सुलग जाए मन
भीगे आज...

महफ़िल में कैसे कह दें किसी से
दिल बंध रहा है किस अजनबी से
हाय करें अब क्या जतन, सुलग-सुलग जाए मन
भीगे आज...

भारतीय ही नहीं विश्व साहित्य में भी सावन पर बहुत कुछ लिखा गया है।  यहाँ इस बात का जिक्र करना इसलिए जरूरी हो गया क्योकि जब हम साहित्य पढ़ते हैं तो वह केवल शब्द ही होते हैं लेकिन जब उन्ही शब्दों को संगीत  और स्वर मिल जाते हैं तो वे बहुत गहरे तक असर कर जाते हैं। सावन पर कुछ बात करना संभव नहीं है क्योकि सावन केवल एक और महीना भर नहीं है। यहाँ इस बार इस सावन को विषय चुनने की ख़ास वजह है। वह है सावन की खुद की गेयता को भारतीय , खासकर हिंदी फिल्मकारों द्वारा पहचान पाना और उसका चित्रांकन। चित्रांकन शब्द के प्रयोग के पीछे भी ख़ास वजह है। इसे हम फिल्मांकन भी लिख सकते थे लेकिन चित्रांकन इसलिए क्योकि सावन को फिल्माना संभव ही नहीं है , इसे सिर्फ चित्रित करने की कलाकारी की जा सकती है। 
सावन का महीना प्रकृति के श्रृंगार का होता है, इस मौसम में प्रेम के उद्दीपन मन की बहार बन के खिलते हैं। सावन का नजारा कवियों, गीतकारों की नई रचनाओं को जन्म देता है। इस मौसम में प्रकृति और इंसान दोनों ही रोमांटिक हो उठते हैं। हरे भरे इस मौसम में पवन भी कुछ ज्यादा ही शोर करती है। यहां की वादियों में जब पवन अपनी उमंग का अहसास कराती है तो होठों से यह गीत निकलना लाजिमी है... सावन का महीना पवन करे शोर...। हम आपको ले चलते हैं हिंदी फिल्मों के उन गीतों की दुनिया में जिनमें सावन के सौंदर्य और इस मौसम में जवां दिलों में उठने वाली उमंग और तरंग का बोध कराया गया है।

भीगी-भीगी रातों में / अजनबी (1974)
ताल से ताल मिला / ताल (1999)
कहाँ से आए बदरा / चश्मे बद्दूर (1981)
एक लड़की भीगी-भागी सी / चलती का नाम गाडी (1958)
बरसो रे / गुरु (2007)
मिलन / सावन का महीना
सावन के बादलो! / रतन
रुमझुम बरसे बादरवा / रतन
चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाये/ अमर प्रेम
मेघा छाये आधी रात / शर्मीली
मेघा रे मेघा रे मत परदेश जा रे / प्यासा सावन
सावन बरसे तरसे दिल / दहक
सावन बीतो जाय पिहरवा /
मेघा रे मेघा तेरा मन तरसा रे / लम्हें
मेघा ओ रे मेघा तू तो जाए देश-विदेश / सुनयना
हाय हाय ये मजबूरी / रोटी, कपड़ा और मकान
तुम्हें गीतों में ढालूंगा सावन को आने दो / सावन को आने दो
सावन के झूलों ने मुझको बुलाया / निगाहें
रिमझिम गिरे सावन सुलग-सुलग जाए मन / मंजिल
लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है / चाँदनी
रिमझिम के गीत सावन गाये / अंजाना
हिन्दी सिनेमा में 50 के दशक से लेकर साल 2001 तक की फिल्मों में सावन की छटा घुमड़ती रही है। श्रोताओं ने एक से बढक़र एक गीत सुने मगर पिछले कुछ सालों से सिनेमा में बरखा की बहार नहीं दिखाई दे रही और कभी यह दृश्य दिखता भी है तो उसमें भावप्रवणता कम, जिस्म की नुमाइश ज्यादा होती है। हालांकि दो साल पहले फिल्म गुरु में ऐश्वर्या राय पर पर फिल्माया 'बरसो रे मेघा' गीत जरूर सुंदर था और श्रोताओं ने सराहा भी। पचास से लेकर अस्सी के दशक के दौरान कई वर्षा गीत रचे गए। यह वह कालखंड है जब सावन का महीना ढोल बजा कर हरियाली आने का संदेश देता है। विमल राय की दो बीघा जमीन का यह यादगार गीत नई पीढी ने बेशक न सुना हो, मगर पुराने लोग इसे याद कर झूम उठते हैं। इसी तरह 'दो आंखें बारह हाथ' में 'उमड़-घुमड़ कर आई रे घटा' प्रफुल्लित कर देने वाला गीत बना। यह गीत मानसून के आने का संदेश देता है। वहीं फिल्म गाइड में भी मेघों को पुकारते किसानों को सुना। वर्षा गीत के रूप में किसानों की गुहार हमने फिल्म 'लगान' में भी सुनी जब वे काली घटाओं को घनन-घनन गहराते देखते हैं।
सावन आते ही दो दिलों में प्रेम उमड़ने लगता है। अब तो यह बात वैज्ञानिक तथ्य के रूप में सामने आ चुकी है। सावन में प्रिय की याद और मिलन की कामना पुलकित कर देती है। हिंदी सिनेमा के नायक-नायिका इससे अछूते नहीं हैं। प्रेम में डूबी किसी नायिका के लिए यह सावन लाखों का है, जिसे दो टकिया की नौकरी की चिंता में नायक गंवा देता है। फिल्म 'रोटी कपड़ा और मकान' में बारिश में झूमती जीनत अमान को दर्शक आज भी नहीं भूले होंगे, मगर जहां तक भाव प्रवणता की बात है तो फिल्म परख का गीत 'ओ सजना बरखा बहार आई, रस की फुहार आई, आंखियों में प्यार आए को श्रेष्ठ रचना मान सकते हैं। इसके संगीत का भी क्या कहना। सितार का इसमें इतनी खूबसूरती से प्रयोग किया गया है कि मन शीतल हो जाता है।
 पचास और साठ के दशक के बीच आई फिल्मों में कई शानदार वर्षा गीत रचे गए। इसमें मादकता भी है और भावप्रवणता भी। इस कड़ी में 1955 में आई फिल्म 'श्री 420' का सॉफ्ट रोमानी गीत 'प्यार हुआ इकरार हुआ है प्यार से फिर क्यों डरता है दिल' सर्वश्रेष्ठ गीत है। मन्नाडे और लता मंगेशकर के गाए इस गीत ने लाखों दिलों में हलचल मचा दी थी। इसी तरह फिल्म अनजाना में राजेंद्र कुमार और बबीता पर फिल्माया 'रिमझिम' के गीत सावन गाए हाय भीगी-भीगी राताें में... को सुन कर युवा श्रोता आज भी रोमांचित हो उठते हैं। इसी तरह फिल्म हमजोली में जीतेंद्र और लीला चंद्रावरकर को 'हाय रे हाय, नींद नहीं आए, दिल में तू समाय, आया प्यार भरा मौसम दीवाना' हृदय की वीणा को झंकृत कर देता है। बरसात का मौसम रिमझिम के तराने लेकर भी आता है। 1985 में आई फिल्म 'काला बाजार' में 'रिमझिम' के तराने लेके आई बरसात' हिंदी सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक है। बारिश में राजेश खन्ना पर फिल्माए तीन गीतों की भी बरबस याद आती है। पहला 'दो रास्ते' में छुप गए सारे नजारे ओय क्या बात हो गई, दूसरा 'रोटी' में गोरे रंग पे इतना गुमां न कर, तेरा रंग दो दिन में ढल जाएगा' और तीसरा प्रेम कहानी फिल्म का गीत 'प्रेम कहानी में एक लड़का होता है एक लड़की होती है।'
बारिश की रात धान के खेत में फिरोज खान और निकिता पर फिल्माया गीत 'रूत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बांहाें के सहारे' को सुन कर दिल में आज भी प्रेम की सुलगन पैदा हो जाती है। 1963 में तो 'बरसात की रात' नाम से फिल्म ही आई थी जिसके एक यादगार गीत 'जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात' को श्रोता आज भी नहीं भूल पाए। बारिश में जब दो दिल मिलते हैं तो पल भी छोटे लगने लगते हैं। तभी तो चंबल की कसम में राजकुमार और मौसमी चटर्जी पर फिल्माया गया गीत सिमटी हुई ये घड़ियां फिर से न बिखर जाएं' को सुनकर दिल को बहुत सुकून मिलता है।
सावन का महीना प्रेमियों को मिलने के लिए प्रेरित करता है। तभी तो इस दौरान नायिकाओं को इस समय का बेसब्री से इंजतार रहता है। भूख खत्म हो जाती है, नींद नहीं आती। तभी तो फिल्म मेरा गांव मेरा देश में धर्मेंद्र अपनी नायिका से यही पूछते हैं- 'कुछ कहता है ये सावन, क्या कहता है...।' फिल्म 'आया सावन झूम के' में भी धर्मेंद्र पर एक अच्छा गीत फिल्माया गया- 'बदरा छाए कि झूले पड़ गए हाय मेले लग गए हाय मच गई धूम रे' को श्रोता आज भी नहीं भूले हैं।  किशोर दा का गाया एक वर्षा गीत 'जलवा है जिया मेरा भीगी-भीगी रातों में आ जा गोरी चोरी-चोरी अब तो रहा नहीं जाए रे' को आज भी सावन के महीने में श्रोता सुनते हैं तो उनका दिल प्रिय से मिलने के लिए बेताब हो जाता है। इसी तरह फिल्म रजनीगंधा में नायिका बारिश में भीगने के बाद घर पर गाती है- रजनीगंधा फूल हमारे, महके यूं ही जीवन में।' वर्षा ऋतु में यह गीत सुन कर मन में खुशबू बिखर जाती है। नब्बे के दशक में आई फिल्म चांदनी का गीत 'लगी आज सावन की फिर तो झड़ी है और फिल्म 1942 लव स्टोरी में मनीषा पर फिल्माया गीत रिमझिम-रिमझिम और मिस्टर इंडिया में श्रीदेवी पर फिल्माया वर्षा गीत 'काटे नहीं कटते ये दिन ये रात, कहनी थी तुमझे दिल की बात' उन चुनिंदा ट्रैक में से हैं, जिन्हें श्रोता आज भी पसंद करते हैं।  बारिश में जहां फिसलने का डर होता है वहीं युगल बहक भी जाते हैं। नमक हलाल मेंं अमिताभ ने गाकर यही इशारा किया- 'आज रपट जाएं तो हमें न बचइयो' फिल्म मोहरा और महेश भट्ट की फिल्म 'सर' में भी बारिश के गीत का अच्छा फिल्मांकन हुआ। कुछ साल पहले फिल्म 'गुरु' में बारिश में रचा गया एक सुंदर गीत सुनने को मिला। मगर इसके बाद से ऐसे गीत ठीक उसी तरह गायब हैं जैसे आजकल भारत में अक्सर सावन-भादो के महीने में बादल गायब हो जाते हैं। श्रोताओं को आज भी भावप्रवण वर्षा गीत का इंतजार है।

हिंदी फिल्मों में प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए सावन के गीतों का जमकर उपयोग किया गया है। ये गीत सुपर हिट भी हुए और सदाबहार बन गए। गीत संगीत प्रेमी इन्हें सावन के महीने में सुनना पसंद करते हैं क्योंकि इनके बोल इस मौसम का दिल की गहराईयों से बोध कराते हैं।
सुपर स्टार बिग बी यानी अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया गीत "रिमझिम घिरे सावन बहक बहक जाए रे मन" सावन में हर कोई सुनना पसंद करता है। मंजिल फिल्म का यह गीत गाया है किशोर कुमार ने। सावन की झड़ी के बीच मनोज कुमार और जीनत अमान पर फिल्माया गया रोटी कपड़ा और मकान फिल्म का गीत "हाय हाय ये मजबूरी ये मौसम और ये दूरी" आज भी पसंद किया जाता है।
सावन के मौसम में जवां दिलों की हसरतों को बयां करता मिलन फिल्म का गीत "सावन का महीना पवन करे शोर" इस मौसम में युवा दिलों में शोर मचाता है। मिलन फिल्म का यह गीत सुनील दत्त और नूतन पर फिल्माया गया है। "आया सावन झूम के" टाइटल से बनाई गई फिल्म के गीत के बोल भी यही हैं। इस गीत को धर्मेंद्र और आशा पारिख पर मस्ती भरे अंदाज में फिल्माया गया है।
यशुदास की आवाज में रिकार्ड किया गया गीत सावन को आने दो भी इस मौसम में श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर देता है। सावन में जुदाई के दर्द को बयान करने वाले गीत भी काफी प्रसिद्ध हुए हैं। महबूबा फिल्म का किशोर की आवाज में रिकार्ड किया गया गीत मेरे नैना सावन भादों फिर भी मेरा मन प्यासा ऐसे ही गीतों में शुमार है। इसी तरह किशोर द्वारा गाया गया जब दर्द नहीं था सीने में तब खाक मजा था जीने में, अबके शायद हम भी रोये सावन के महीने में नायक के दर्द-ए-दिल को जाहिर करता है।

SHARE THIS
Previous Post
Next Post