कामशास्त्र और गृहस्थ जीवन

 
एस  शांडिल्य 

पहले ही स्पष्ट करना समीचीन है की कामशास्त्र और कामसूत्र अलग अलग ग्रन्थ है। कामशास्त्र वास्तव में एक शास्त्रीय विद्या है जिसकी रचना गृहस्थ जीवन और सृष्टि प्रवाह के लिए की गयी है। इसके रचनाकार के बारे में कोई नहीं बता सकता।  महर्षि वात्स्यायन की रचना कामसूत्र सदियों पहले लिखी गई ऐसी कृति है जिसे आज भी उतना ही तर्कसंगत माना जाता है, लेकिन इसका संबंध महिला-पुरुष के बीच संभोग की कलाओं से है इसलिए इसे कभी भी सार्वजनिक तौर पर वार्ता का विषय नहीं माना गया।जबकि यह भी अन्य ग्रंथों की तरह ‘काम’, जो कि मानव जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है, से जुड़ा है लेकिन फिर भी इसे कभी सामाजिक स्वीकार्यता प्राप्त नहीं हो पाई। इसका स्पष्ट कारण है समाज में ‘सेक्स’ शब्द को हमेशा से ही निषेध मानकर रखना। यहाँ जिस विषय पर चर्चा की जा रही है  थोड़ा अलग है।
 आपने कामसूत्र के विषय में सुना होगा, बहुत से लोग कामशास्त्र को भी जानते होंगे। लेकिन हैरानी की बात ये है कि अकसर कामसूत्र और कामशास्त्र को एक ही मान लिया जाता है, जबकि ये दोनों अलग-अलग शास्त्र हैं। जहां कामशास्त्र ऐसा ग्रंथ है जो केवल ‘काम’ से जुड़ी जानकारी उपलब्ध करवाता है, लेकिन कामसूत्र में ये जानकारी व्यवहारिक और विस्तृत तरीके से मिलती है। कामसूत्र में संभोग की हर कला का विस्तृत वर्णन दिया गया है, जबकि कामशास्त्र में कुछ मेल सामुद्रिक शास्त्र का भी है।
गृहस्थ जीवन का आधार 
पत्नी ही गृहस्थ जीवन का आधार है।  उसी की सौम्यता और सुगंधि से सृष्टि और प्रकृति का पालन -पोषण हो पाटा है।  एक गृहस्थ पर ही सृष्टि को पालने की समूची जिम्मेदारी होती है। उसी के परिश्रम के परिणाम से प्रकृति अपने सभी पाल्यो को पालती है। इसलिए गृहस्थ की अर्धांगिनी का कुलीन, गुणवान और स्नेहिल होना बहुत आवश्यक है। 



कामशास्त्र के अनुसार ऐसी होनी चाहिए पत्नी 

कामशास्त्र में इस बात की जानकारी भी है कि कैसे लक्षण वाले स्त्री या पुरुष अच्छे जीवन साथी साबित होते हैं और साथ ही इस बात का भी उल्लेख है कि विवाह के लिए किन लक्षणों को जांचना अत्याधिक आवश्यक है। आज कामशास्त्र के अंतर्गत लिखित उन लक्षणों को जानते हैं जो अगर किसी महिला में हैं तो उससे विवाह करना शुभ फलदायी साबित होता है।

विवाह के लिए स्वीकृति

अगर आप विवाह के लिए आगे बढ़ रहे हैं और आपके होने वाली पत्नी में ये लक्षण दिखाई देते हैं तो आपको बिना दोबारा सोचे विवाह के लिए स्वीकृति दे देनी चाहिए।

सम्यक सम्मानित  कुल परंपरा 

पत्नी की कुल परंपरा भी सम्यक सम्मानित होनी चाहिए। आजकल के लोग भले ही जाति और ओहदे को ज्यादा अहमियत नहीं देते लेकिन कामशास्त्र के अनुसार पुरुष को कभी भी ऐसी स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए जिसका संबंध उससे कम या नीचे ओहदे या जाति से हो। हमेशा उसी कन्या से विवाह करना चाहिए जिसका  परिवार भी अच्छी पहचान रखता हो और समाज में उनका मान हो। संतति की सुरक्षा और उसके स्वाभिमान के लिए यह बहुत ही आवश्यक है ,अन्यथा संतान को इससे कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है और अगली पीढ़ी कुंठा की शिकार हो जाती है। 

दुनियादारी का ज्ञान

भले ही वह स्त्री कामकाजी ना हो लेकिन उसे सामाजिक हालातों और दुनियादारी का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। ऐसा इसलिए ताकि वह स्वयं अपने और परिवार के लिए जागरुकता ला सके।

अच्छा बर्ताव

विवाह करने के लिए स्त्री में एक गुण होना बेहद आवश्यक है और वो है अपने से नीचे और ऊंचे, दोनों ही ओहदे के लोगों को सम्मान देना, इसके अलावा अच्छा बर्ताव होना भी जरूरी है। जो स्त्री दूसरों का सम्मान करना नहीं जानती वो पति और परिवार के लिए सही नहीं होती।

आध्यात्मिक तत्व 

धार्मिक स्त्री जो अपनी संस्कृति और परंपराओं का पालन करती हो, परिवार के लिए शुभ साबित होती है। ऐसी पत्नी अपने पति के लिए सौभाग्य का मार्ग खोलती है। सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने वाली स्त्री को उत्तम माना गया है।

सौभाग्यशाली स्त्री

ऐसी स्त्री जो बचत करती है और परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में सहयोग देती है उसे लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। जिसकी आवाज, देवी सरस्वती की तरह मीठी हो और जो अपने पति के लिए पूर्ण रूप से समर्पित हो, वही एक सौभाग्यशाली स्त्री होती है।


परिवार के प्रति तन्मय 

जो स्त्री अपने पति को सही सलाह दे पाए और उसके परिवार का ध्यान पूरी तन्मयता के साथ रखे, वह स्त्री ही सौभाग्य लेकर आती है।

स्नेहिल संरक्षक की भूमिका 

स्त्री की भूमिका स्नेहिल संरक्षक की होती है तभी परिवार प्रसन्न और सुखी हो सकता है। जो स्त्री अपने भाई-बहनों के साथ अच्छा व्यवहार करती है, अपने बच्चों की सही परवरिश करती है और अपने संबंधों को लेकर सुरक्षात्मक रवैया रखती है, वही उत्तम स्त्री है।

प्रेम जताने वाली स्त्री

अपनी मर्यादाओं में रहकर प्रेम जताने वाली स्त्री, संभोग के दौरान पति का साथ देने वाली स्त्री एक अच्छी पत्नी कहलाती है।

अच्छी जीवनसाथी

अपने से बड़ों का सम्मान करने वाली स्त्री जो दूसरों के बारे में भी सोचती है अच्छी जीवनसाथी बनती है। उसके भीतर अहंकार की भावना नहीं होनी चाहिए, दूसरों से मिलने-जुलने में उसे कोई परेशानी ना हो।

पति को प्यार करने वाली

वह अपने पति को प्यार करने वाली तो होनी ही चाहिए लेकिन उसे पाक कला में भी निपुण होना चाहिए। भूखे और असहाय लोगों को खाना खिलाने वाली स्त्री उत्तम होती है।

विवाह करने योग्य

यूं तो स्त्री को कोमलता का स्वरूप माना गया है लेकिन जो स्त्री समय पड़ने पर मजबूत हो जाती है, सशक्त होकर अपने पति का साथ देती है, बुरे समय में उसका सहारा बनती है, अपने प्रेम भरे स्वभाव से वह परिवार के दुःख हर लेती है, वही स्त्री विवाह करने योग्य है। वैसे एक ही स्त्री के भीतर ये सभी गुण मिलना मुश्किल है। लेकिन अगर आपको मिल जाएं तो वाकई आप बहुत भाग्यशाली है। 




पागल पैदा कर रही है आज की शिक्षा : ओशो 


हम सभी दौड़ रहे हैं। सारे जगत में एक पागलपन पैदा कर रहे हैं। इसीलिए इतनी बेचैनी है , इतनी परेशानी है , इतनी प्रतिस्पर्धा है , इतना संघर्ष है। शिक्षित आदमी उस संघर्ष में ज्यादा है , उस में अशांति ज्यादा है। जिस देश में जितने ज्यादा लोग पागल होते हैं , समझ लेना चाहिए कि उस देश में उतनी ज्यादा शिक्षा फैल गई है। आज अमेरिका सबसे ज्यादा शिक्षित देश है। आज सबसे ज्यादा आदमियों को पागल वही कर रहा है , क्योंकि हर आदमी एक ऐसी दौड़ में है जो पूरी नहीं हो सकती। और अगर पूरी भी हो जाए तो दौड़ के अंत में पता चलता है कि हाथ खाली रह गए और कुछ भी नहीं मिला। एक बहुत ही बुनियादी भ्रम है कि आनंद कहीं पहुंचने पर मिलेगा। आज की सारी शिक्षा इसी भ्रम को पैदा और मजबूत करती है। वह कहता है , फलां मुकाम पर पहुंच जाओ तो आनंदित हो सकते हो। वह डिग्री या वह प्रमाण पत्र मिल जाता है , लेकिन आनंद नहीं मिलता। तब हाथ में पकड़े हुए कागज का बोझ घबराने वाला हो जाता है। लेकिन हम आदमी को फिर भी दौड़ाते रहते हैं। वह प्राइमरी में पढ़ता है , तो उससे कहते हैं कि हाईस्कूल में पहुंचो , हाईस्कूल में पढ़ता है तो कहते हैं कि लक्ष्य है युनिवर्सिटी में। युनिवर्सिटी के बाहर निकलता है तो हम कहते हैं कि अब जिंदगी में , शादी में , विवाह में वह आनंद तुम्हें मिल जाएगा। और सब कहानियां , सब उपन्यास और सब फिल्में जहां शादी-विवाह हुआ , वहीं ' द एण्ड ' आ जाता है। सब कहानियां पढ़ें तो एक बड़ी मजेदार बात मिलती है। सभी में लिखा होता है कि इस तरह दोनों की शादी हो गई और वे दोनों सुख से रहने लगे , हालांकि ऐसा होता नहीं। इसके बाद की कहानी कोई सुनाता नहीं , क्योंकि वह बेहद खतरनाक मोड़ पर पहुंच जाती है , उलझन भरी हो जाती है। सचाई यह है कि न तो शिक्षित होने से आनंद मिल पाता है , न विवाह से , न संपत्ति से और न पद-प्रतिष्ठा से। काश , दुनिया के सब लोग जो बड़े पदों पर पहुंच जाते हैं , ईमानदारी से कह सकें तो वे कहेंगे कि उन्हें वास्तव में जीवन में कुछ भी नहीं मिला। लेकिन इतना कहने की हिम्मत वे नहीं जुटा सकते। उसका कारण है। जो आदमी जिंदगी भर दौड़ा हो और जब उसने उस चीज को पा लिया हो , जिसके लिए वह दौड़ता रहा , अब अगर वह लोगों से कहे कि कुछ भी नहीं मिला तो लोग कहेंगे कि तुम व्यर्थ ही दौड़े , तुम्हारा तो जीवन बेकार हो गया। अब वह अपने अहंकार को बचाने की कोशिश करता है। नंबर एक होना बहुत खतरनाक है। 



पीछे खड़े सब लोग प्रार्थना करते हैं कि यह आदमी कब मर जाए , कब विदा हो जाए , कब यह जगह खाली हो और हम वहाँ पहुंच सकें। हम अपने बच्चों को भी उसी दौड़ से भर देते हैं , जिससे हमारे बूढ़े भरे हुए हैं। महत्वाकांक्षा की दौड़ से , एम्बिशन की दौड़ से। जिस आदमी को एक बार महत्वाकांक्षा का पागलपन चढ़ जाता है , उसका जीवन विषाक्त हो जाता है। उसके जीवन में फिर कभी शांति नहीं होगी , फिर कभी आनंद न होगा और उसके जीवन में फिर कभी विश्राम न होगा। मेरी दृष्टि में ठीक शिक्षा उसी दिन पैदा हो पाएगी , जिस दिन शिक्षित व्यक्ति गैर महत्वाकांक्षी होगा , जिस दिन शिक्षित व्यक्ति कतार में पीछे खड़े होने में भी राजी होगा। मैं अशिक्षित उसको कहता हूं जो प्रथम होने की दौड़ में है , क्योंकि वह नासमझ है। मैं शिक्षित उसको कहता हूं जो अंत में खड़े होने के लिए भी राजी है। अंतिम खड़े होने के लिए राजी होने का मतलब है कि अब दौड़ नहीं रही , जिंदगी अब जीना हो गई। दौड़ने वाला हमेशा भविष्य की तरफ देखता रहता है। जब इतना धन मिलेगा तब जीऊंगा। जब इतनी बड़ी गाड़ी होगी तब जीऊंगा। जब इतना बड़ा मकान होगा तब जीऊंगा। अभी कैसे जी सकता हूं ? फिर उतना बड़ा मकान बन जाता है , लेकिन जब उतना बड़ा मकान बनता है , तब तक आकांक्षाओं का जाल और आगे चला गया होता है।

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