नारी सशक्तिकरण में मीडिया और नये माध्यमों की भूमिका

नारी सशक्तिकरण में मीडिया और नये माध्यमों की भूमिका

विश्व में सृष्टि के साथ ही स्त्री और पुरूष के बीच एक ऐसी समानान्तर रेखा विद्यमान है जिसे आपस में जोडऩे की जुगत हर सभ्यता करती आई है। युगों से यह चला आ रहा है कि स्त्री को किसी प्रकार से सशक्त बनाया जाये। नारी की भारतीय अवधारणा हमेशा शक्ति के रूप में रही है। यानी भारत में और भारत की चिंतन परम्परा में दर्शन के स्तर पर नारी जितनी सशक्त है उतनी पूज्य और संरक्षण के योग्य मानी गई है।  नारी को यहां हमेशा सृष्टि का सर्वोच्च आसन दिया गया है। यह अलग बात है कि सभ्यताओं के विकास के दौर में समय-समय पर भारत में भी नारी को भौतिक रूप से सशक्त बनाने की वकालत और कवायद चलती रही है। भारतीय इतिहास और पुराख्यानों मेंं स्त्री जिस रूप में दिखती है उसी रूप में पश्चिम की स्त्री नहीं दिखती, लेकिन आधुनिक सभ्यता के विकास क्रम में जब नारी सशक्तिकरण की बात आती है तो समस्त अवधारणाएं पश्चिम से ही उठाई जाती हैं। वस्तुत: आधुनिक शिक्षा प्रणाली की पश्चिमी अवधारणा से भारत भी पूरी तौर पर अभिसिंचित हैं और यहां भी प्रत्येक मुददे पर जब भी समाज को तौलने और टटोलने की बात आती है तो उदाहरण और संदर्भ हमें पश्चिम से ही लेने पड़ते हैं। 
यहां विषय उभर का आता है कि आधुनिक युग मेें जो संचार माध्यम, शिक्षा व्यवस्था, मीडिया और विज्ञापन के साथ उपजे अधुनातन तंत्र हैं वे एक स्त्री को किसी प्रकार से सशक्त या सुदृढ़ बना रहे हैं। प्रकाशित पुस्तकों, साहित्य से इतर अखबारों पत्र-पत्रिकाओं समाचार के अन्य माध्यमों से भी ज्यादा प्रभावी दृश्य और श्रव्य रूप में सिनेमा और टेलीविजन जैसे घर-घर की पहुंच रखने वाले माध्यम भी इस समय चलन में हैं। इनमें भी आगे इंटरनेट की सुविधाओं के साथ मोबाइल स्क्रीन  ने सूचनाओं और जानकारियों के आदान-प्रदान की मजबूत व्यवस्था मुहैया कराई है। ऐसे में समाज के संचालन की धुरी कही जाने वाली एक स्त्री जिन-जिन रूपों में और भूमिकाओं में समाज में स्थापित होती है वह उन सभी भूमिकाओं में  अलग-अलग प्रकार से अपने समय में उपलब्ध संचार माध्यमों मीडिया और आधुनिक मीडिया जैसे उपकरणों से खुद को जोड़ती है उनका इस्तेमाल करती है। वहां  कुछ प्राप्त करती है और वहां कुछ प्रसारित भी करती है। 
आधुनिक संचार सेवाओं के युग मेें नारी निश्चित रूप से सशक्त बनी है। उदाहरण के लिए हम देख सकते हैं कि जब यह संसाधन नहीं थी तब उसे अपनी बात सक्षम मंच या फोरम या पदाधिकारी तक पहुंचाने के लिए बहुत मशक्कत करती पड़ती थी। उसकी आवाज समय से लक्ष्य तक पहुंच नहीं पाती थी, लेकिन आज ऐसा नहीं है। उसके मोबाइल के ऐप उसे हर उस जगह पहुंचा सकते हैं और पहुंचा रहे हैं जहां वह पहुंचना चाहती है। इसमें सरकारी और गैरसरकारी दोनों स्तरों पर होने वाले प्रयासों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। उदाहरण के लिए भारत की केन्द्र के अलावा कई सरकारों ने महिलाओं के लिए अलग से संचार केन्द्र स्थापित किये हैं। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में डायल १०० और १०९० जैसी अवधारणाएं निश्चित तौर पर नारी को सशक्त बना रही हैं। ऐसा नहीं कि आज सबकुछ बहुत ठीक हो गया है लेकिन यह कहने भी कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि आधुनिक संसाधनों में काफी कुछ ठीक कर दिया है। फिल्में और टेलीविजन बहुत सशक्त माध्यम है जिनसे परिवार सीधे जुड़ते हैं। आज यह स्वीकार करना ही होगा कि इन दोनों माध्यमों में स्त्री ही केन्द्रीय भूमिका में है। खासतौर पर यहां समाचार चैनलों का उल्लेख करना आवश्यक लगता है। भारत के समाचार संस्थानों और सभी इलेक्ट्रानिक माध्यमों में ऑनस्क्रीन  स्त्री ही प्रभावी है। यह बड़ी उपलब्धि है। सोशल मीडिया में फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे माध्यमों पर करोड़ों की संख्या में स्त्री आईडी सक्रिय है। यह मामूली उपलब्धि नहीं है।
जब हम महिला सशक्तिकरण की चर्चा करते हैं तो इसके जो पहलू सामने उभर कर आते हैं उनमें सबसे पहले स्त्री की सुरक्षा, शिक्षा, सेहत, स्वतंत्रता, आर्थिक स्वतंत्रता, निर्णय लेने की स्वतंत्रता, समाज में सांस्कृतिक स्वतंत्रता जैसे बिन्दु भी सामने आते हैं। सामान्य तौर पर इस विषय पर चर्चाओं और अध्ययन के नतीजों में वस्तु स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाती। वजह यह कि अकादमिक और ग्लोबल फेनामेनन में लिखते, पढ़ते, आंकड़े जुटाते और निष्कर्ष निकालत- निकालते  हम उन्हीं नतीजों की ओर देखने लगते हैं जो पहले से निष्कर्ष स्वरूप रख दिये गये हैं। समाज में जिस तेजी से हर घटनाक्रम हो रहा है और बदलाव की जो तेज गति सामने दिख रही है उसको नजरअंदाज कर कोई नतीजा नहीं निकाला जा सकता। यह मानने में क्या दिक्कत है कि भारत की आबादी जब तीस करोड़ थी उस समय देश में स्त्री जिस अवस्था में थी आज सवा अरब से ऊपर की आबादी में वह बहुत कुछ पा चुकी है। यहां यह स्पष्ट करना भी उचित है कि सबकुछ कभी नहीं मिला था और कभी नहीं मिलने वाला। जिस सामानान्तर रेखा की  बात ऊपर कही गई वह सामानान्तर रेखा हमेशा नदी के दो किनारों की तरह सभ्यता के विकास के साथ चल रही है।  इसके बीच का गैप कभी कम हो सकता है और कभी ज्यादा।


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