जीवन में सबसे कठिन
और लंबा रास्ता कौन सा?

साधना का मार्ग कठिन और लंबा होता है। बिना विचलित हुए साधक इस मार्ग पर निरंतर चलता रहे तो निश्चित ही उसे परम सत्य का ज्ञान होता है। कठिन और लंबे रास्तों के बाद मिली सफलता स्थायी और आनंददायी होती है। आसान और शार्टकट वाली संस्कृति भ्रष्टाचार ला रही है। इंसान को अपने जीवन के लिए वो रास्ता अपनाना चाहिए, जिसके अंत में शांति, सुख और परमात्मा की प्राप्ति हो। जिन मार्गों पर ये नहीं मिलते, उन पर चलकर दु:ख, अशांति और निराशा की प्राप्ति होती है।
मानव को सत्याग्रह करने से पूर्व सत्याग्रही बनना चाहिए। सत्याग्रही बने बिना किया जाने वाला सत्याग्रह का कोई मोल नहीं है। मनुष्य को पहले स्वयं सत्य का साक्षात्कार करना चाहिए। जिस प्रकार एक आध्यात्मिक व्यक्ति की साधना सम्यक होती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी चाहिए कि वो अपने जीवन में तथा क्रियाकलापों में एक सम्यता बनाए रखे। सम्यता का अर्थ है मध्य मार्ग। जिस प्रकार वीणा के तार यदि कम कसे हों या ज्यादा कस दिए जाएं तो सुर नहीं निकलते। सुर निकालने के लिए अधिक और कम के मध्य की स्थिति श्रेष्ठ होती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन में एक मध्य मार्ग अपनाकर चलना चाहिए।
मनुष्य को परिवार में सभी सदस्यों का हाथ पकड़े रहना चाहिए लेकिन उनसे हाथ भर की दूरी भी बनाए रखे। इस प्रकार सांसारिक जीवन में एक प्रकार की प्रामाणिक दूरी बनाए रखे। भाव यह है कि इतना नजदीक न हो कि दूर जाते हुए डर लगे व इतना दूर न रहो कि पास आते हुए भय सताए। यही प्रमाणिकता है। किसी के बारे में शुभ कल्पना करो तो एक माह में सत्य हो जाती है। अपने बारे में की गई कल्पना को सत्य होने में कुछ ज्यादा समय लगता है। इसमें स्वार्थ आ जाता है, इसलिए इसमें साधक की क्षमतानुसार समय लगता है। सज्जनों एवं संतों के कथनों को परमात्मा स्वयं सत्य करता है।