पाकिस्तान न पहले था ,फिर पाकिस्तान नहीं होगा
सिंहासन सख्त नहीं होगा , सीमा पर रक्त नहीं होगा
अब पांचजन्य की घोष सुनो , फिर आगे वक्त नहीं होगा
जो शीश कटे है बेटो के उनका संधान यही होगा
पाकिस्तान न पहले था ,फिर पाकिस्तान नहीं होगा।
शांति कपोत उड़ाने से कोई अभिमान नहीं होगा
हदे पार हो जाने से कोई अनुमान नहीं होगा
आदते पडोसी की अड़ियल,बातो से कोई लाभ नहीं,
परिणाम न ऐसे निकलेगा कोई अंजाम नहीं होगा
अब तो लाहौर की छाती पर चढ़ कर बोलो जय भारत की
पाकिस्तान न पहले था ,फिर पाकिस्तान नहीं होगा।
आज हिमालय सिसक रहा है , पीड़ा में तरुणाई है
गंगा की हर लहर शोक में ,आँखे भर भर आयी है।
चार श्वान घुस गए सहन, चीथड़े उड़ाकर चले गए
सवा अरब अस्तित्ववान प्राणों पर छा कर चले गए।
सत्तर साल पुरानी दुनिया का एहसान नहीं होगा
सहनशीलता की कीमत पर यह बलिदान नहीं होगा।
किसकी उजड़ी मांग उडी में, किसकी गोद उजाड़ हुई
किसके सपने जले ,जिंदगी किसके लिए पहाड़ हुई।
भारत की छाती पर यह बारूद बिछाया है जिसने
माँ के आँचल में छिप कर विध्वंस मचाया है जिसने।
चलो सुधारे मानचित्र वह, भाल कटा जो माता का
सिंधु नदी की धारा से अब कुछ भी दान नहीं होगा।
निंदाओं , प्रस्तावों से ,अब बात बनेगी नहीं यहाँ
दिल्ली आँखे खोलो ऐसे चिता सजेगी नहीं यहाँ।
चूड़ी, बिंदी , कुमकुम, रोली की अब बात नहीं होगी
राखी और महावर वाले भस्म हुए जज्बात यहाँ
शोणित से श्रृंगार करो अब कहो फौज होली खेले
सीमाओ पर कभी तिरंगे का अपमान नहीं होगा।
सुनो कायरो , व्यर्थ शहीदों का बलिदान नहीं होगा
भारत माँ की तरफ देखना भी आसान नहीं होगा
रावलपिंडी और कराची की आवाज़ न निकलेगी
सिंह सवारी के आगे इस्लामाबाद नहीं होगा
अब होंगे भारती पुत्र अब तक्षशिला भी देखेगा
पाकिस्तान न पहले था ,फिर पाकिस्तान नहीं होगा।
संजय तिवारी