ग्रहण, भूकंप और उर्जाप्रवाह

गीता जीवन संस्कृति -6 
ग्रहण, भूकंप और उर्जाप्रवाह 
संजय तिवारी 

चंद्र ग्रहण शुरू हो चुका  है। दुनिया में लगातार अध्ययन हो रहे हैं।  डाटा जुटाए जा रहे हैं। दुनिया, इस सदी की विस्मयकारी खगोलीय घटना की गवाह बन रही है। भारत और दुनिया के अलग अलग हिस्सों में चंद्रग्रहण का नजारा देखने को मिलेगा। ग्रहण को लेकर आमतौर पर मान्यता है कि इससे बड़े पैमाने पर उथल-पुथल होता है। बुधवार को दोपहर में चंद्रग्रहण से पहले जलजले ने दस्तक दी। अफगानिस्तान-पाकिस्तान की सीमा पर हिंदुकुश पर्वत भूकंप का केंद्र था। यूएसजीएस के मुताबिक भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.0 थी और केंद्र जमीन की सतह से 200 किमी नीचे था। तीन लाख चौरासी हजार किलोमीटर ऊपर चन्द्रमा के साथ थोड़ी सी ऊर्जा में विचलन और धरती के 200  किलो मीटर नीचे उथल पुथल।




वस्तुतः  ऊर्जा प्रवाह का ही एक क्रम है। इस क्रम को पूरा ज्योतिर्विदों ने ठीक से जान लिया था।  विज्ञान  अभी इसे समझने में लगा है। ग्रहण कोई अकस्मात् होने वाली घटना नहीं है। यह सृष्टि की गति के क्रम में होना ही है। आधुनिक पश्चिमी वैज्ञानिक साहित्य और शोध के पास इसके बारे में कुछ ख़ास नहीं है। इसको समझने के लिए भारतीय सांख्यिकी और गणित को जानना जरुरी है। दुर्भाग्य यह है कि भारतीय दर्शन की इस आद्य विद्या पर भारत में ही पिछले हजार वर्षो में कोई काम नहीं हुआ। यह लिखने में मुझे कोई संकोच भी नहीं है कि स्वाधीन भारत में विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों पर काबिज विद्वानों ने भी केवल पश्चिम का ही मुख देखा और उन्ही के कृपा पात्र बनने को अपनी उपलब्धि मान ली।यदि ये कथित विद्वान् लोग ७० वर्षो में ७० बार भी भारतीय चिंतन और मनीषा के द्वार पर दस्तक दिए होते तो आज इन्हे ग्रहण , भूकंप, आपदा , प्राकृतिक कोप , अतिवृष्टि , अनावृष्टि जैसी घटनाओ के बारे में किसी यन्त्र का सहारा नहीं लेना पड़ता। भारत के किसी संस्थान में यदि ज्योतिर्विज्ञान के लिए विकसित  विभाग तक होता तो आज पश्चिमी पुड़िया का ज्ञान न पसरता। मैं जब ज्योतिर्विज्ञान विभाग की बात कह रहा हूँ तो इसे किसी भी रूप में उन कुकुरमुत्ता जैसे ज्योतिषीय संस्थानों से जोड़ कर न देखें जो भाग्य बांचते हैं।   

सृष्टि ही नहीं वरन ब्रह्माण्ड में जीतनी भी सृष्टियाँ हैं उन सभी को एक निश्चित ऊर्जा बंधन में रचनकार ने निबद्ध कर रखा है। सभी सृष्टियाँ अपनी उसी ऊर्जा वलय में निर्धारित हैं। कुछ समयांतर पर इन ऊर्जा कक्षों में कुछ विभवान्तर पैदा होता है। अपने सौर मंडल के जिस पिंड से इनके उर्जाप्रवाह में किसी प्रकार का अंतर या विचलन आता है , उसी पिंड से इनको कुछ प्रतीक्षित क्रियाये मिलती हैं।  ये क्रियाये सृष्टि को प्रभावित करती हैं। 
अभी इस सृष्टि में कितने ग्रहण होंगे , कब कब होंगे , उनका क्या क्या असर होगा , यह सब निर्धारित है। ग्रहण के कारन कोई घटना विशेष होना सामान्य प्रक्रिया है।  आप आग जला लेते हैं तो गर्मी पाते हैं।  ऐरकण्डीशनर चलते हैं तो ठण्ड पाते हैं।  पंखे चला लेते हैं तो हवा पाते हैं। आप खुद सोचिये , बहुत मामूली ऊर्जा को इधर -उधर कर के आप अपने लायक वातावरण बना लेते हैं। जब सृष्टि में ब्रह्माण्ड की ऊर्जा जरा भी बदलेगी तो कितना परिवर्तन करा सकती है ? अनुमान लगा पाएंगे आप ? यह ऊर्जा ही है जो गतिमान भी है और प्रगतिमान भी। ऊर्जा को समझना है तो भारत को समझिये।

क्रमशः  

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