गीता का ज्ञान पाने वाले पांचवे व्यक्ति थे अर्जुन

गीता का ज्ञान पाने वाले पांचवे व्यक्ति थे अर्जुन

संजय तिवारी
श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान पाने वाले प्रथम व्यक्ति अर्जुन नही हैं। वह पांचवे व्यक्ति है। भगवान श्रीकृष्ण ने यह बात स्वयं गीता के चौथे अध्याय के प्रथम श्लोक में कही है। कृष्ण ने स्पष्ट किया है कि परमात्मा के रूप में उन्होंने यह ज्ञान सर्वप्रथम विवस्वान को दिया है। विवस्वान से यह ज्ञान धर्मसंस्कृति प्रवर्तक भगवान मनु को प्राप्त हुआ। भगवान मनु से यही ज्ञान राजर्षि इक्ष्वाकु को प्राप्त हुआ। द्वापर आते आते कोई ऐसा राजर्षि न बचजो इस ज्ञान को संरक्षित कर सके। इसलिए , अब जबकि यह भौतिकवादी पूरी सभ्यता महाभारत के इस युद्ध मे नष्ट होने जा रही है , उस ज्ञान को मैं तुम्हे, अपने सखा को सौप रहा हूँ। 
श्री भगवान् उवाच -
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विव्स्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।1।।
श्री भगवान बोलेः मैंने इन अविनाशी योग को सूर्य से कहा था। सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा।
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परंतप।।2।।
हे परंतप अर्जुन ! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, किन्तु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्तप्राय हो गया।
स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्।।3।।
तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है, इसलिए यह पुरातन योग आज मैंने तुझे कहा है, क्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है अर्थात् गुप्त रखने योग्य विषय है।

दरअसल जब कृष्ण गीता का उपदेश दे रहे है तब वह कभी अर्जुन के मित्र, कभी भाई, कभी सहयोगी और कभी सारथी, इन सबसे इतर अपने परमात्मस्वरूप में भी जाते है, यह तथ्य इन श्लोकों में व्यक्त भाषा के अनुशीलन से पता चलता है। यह एक बात ध्यान देने योग्य है कि चंद्रवंशी श्रीकृष्ण इस ज्ञान को कुरुवंशीय यानी चंद्र वंशी अर्जुन को उस स्वरूप में दे रहे है जिस स्वरूप में परमात्मा ने विवस्वान को सौपा था।
अब यह विवस्वान का विवेचन आवश्यक है ।विवस्वान उस सूर्य का नाम है जिनके सौर मंडल में यह सृष्टि है। स्पष्ट करना जरूरी है कि इस तरह के अनेक सौर मंडल है। इस सृष्टि में इसके संचालन के लिए यह ज्ञान परमात्मा ने विवस्वान यानी इसके अधिष्ठाता सूर्य को दिया। उनसे यह ज्ञान आगे बढ़ता रहा।
गीता से एक और भी बहुत बड़ा तथ्य सामने आता है। वह यह कि जिस प्रकार से ऊर्जा कभी न तो अलग से जन्म लेती है और न ही समाप्त होती है उसीप्रकार ज्ञान भी है।ज्ञान सदा से विद्यमान है। वह किसी के द्वारा पैदा नही किया जाता। ज्ञानी जन इसे जान लेते है। इसीलिए इस ज्ञान की सुरक्षा जरूरी है। विवस्वान से मनु को यह ज्ञान इसलिए प्राप्त हुआ क्योकि मनु से ही यह सृष्टि प्रारम्भ हो रही थी। मनु से इसे राजर्षि इक्ष्वाकु को दिए जाने के पीछे कारण यह था कि राजा ही संरक्षक होता है। सृष्टि के साथ जितने भी राजा हुए वे सभी क्षत्रिय  थे जिनमे  एक समढ़त संरक्षक का सामर्थ्य था। बाद के क्रम में जब राजा केवल विलासी होते गए तब ज्ञान के संरक्षण के दायित्व से दूर होते गए और द्वापर का अंत आते आते ज्ञान विलुप्त होने के कगार पर आ गया। राजा केवल अपने ऐश्वर्य एवं भोग विलास में लिप्त हो गए थे। 
यह जानने योग्य है कि ज्ञान न तो कही पैदा होता है और नहीं कभी ख़त्म होता है। यह केवल परंपरा से आगे बढ़ता है। अब इस परंपरा शब्द को भी जान लेना  जरुरी है। परंपरा कोई रूढ़ि नहीं है। इसका आशय प्रवाह है। निरंतरता।  अविरल प्रवाह।
क्रमशः

SHARE THIS
Previous Post
Next Post