जलपुरुष राजेंद्र सिंह

 जलपुरुष राजेंद्र सिंह 

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वैसे तो सारे इंसान अपने निहित स्वार्थों के तहत चलते और बर्ताव करते हैं, लेकिन इस सभी के बीच कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो दुनिया की बेहतरी के लिए अपना सबकुछ न्योछावर करने पर आमादा होते हैं।  राजेंद्र सिंह भी एक ऐसी ही शख्सियत का नाम है और इस जाने-माने जल संरक्षक को 'वॉटरमैन ऑफ इंडिया' कहा जाता है।  वे साल 1959 में 6 अगस्तको पैदा हुए थे।  साल 1975 में राजेंद्र सिंह ने 'तरुण भारत संघ' की नींव रखी. जिसने करीब एक हजार गांवों को पानी मुहैया कराया। इसी साल उन्हें स्टॉकहोम वॉटर प्राइज से नवाजा गया, जिसे पानी के लिए मिलने वाला 'नोबेल पुरस्कार' कहा जाता है. साल 2001 मे उन्हें रमन मैग्सेसे अवॉर्ड से नवाजा गया।  भागीरथी पर बनने वाले लोहारीनाग पाला हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को रोकने में अहम भूमिका अदा की।  वे बारिश का पानी बचाने की प्राचीन भारतीय तकनीक का आधुनिक तरीका अपनाते हैं।  इसमें जमीन में कम ऊंचाई वाली बाढ़ बनाई जाती है, जिससे बारिश में पानी का बहाव रुक जाता है और वही पानी जमीन में चला जाता है. जिसे सूखे मौसम में इस्तेमाल कर सकते हैं। द  गार्डियन ने उन्हें दुनिया के उन 50 लोगों में शुमार किया है जो पृथ्वी बचा सकते हैं। पिछले कई दिनों से राजेंद्र सिंह उत्तर प्रदेश की राजधानी में हैं। वह यहाँ के राजनेताओ को जगाने के अभियान में लगे हैं। इसी क्रम में धरती के इस जलपुरुष से अपना भारत की लंबी बातचीत हुई। प्रस्तुत हैं उसी बातचीत  के प्रमुख अंश - 


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पर्यावरण  को लेकर अब आपकी क्या विशेष योजना है?

देखिये , साल में एक दिन केवल पर्यावरण दिवस मनाने भर से पर्यावरण का सुधार नहीं हो सकता है। इसके लिए कुछ करने का पक्का संकल्प और अच्छे काम की शुरुआत करनी होती है। हम चाहते हैं कि इस पर्यावरण दिवस पर हम प्रण लें कि इस प्रकृति से लेन-देन का हिसाब रखेंगे। हम प्रकृति से जितना ऑक्सीजन लें, उससे अधिक पेड़ लगाएं। प्रकृति से जितना पानी लें उससे ज्यादा पानी वर्षा के जल संरक्षण से उसे वापस कर दें। भ्रष्टाचार से बने गंदे नाले भी जल संस्कार से नदी बन सकते हैं। यदि राजस्थान के लोग पानी की बूंदों को पकड़ कर अपनी सात नदियों को पुनर्जीवित कर सकते हैं, तो बाकी देशवासी क्यों नहीं कर सकते? नदियों को समाज से जोड़कर नदियों को सदानीरा बनाया जा सकता है, नदी जोड़ योजना से नहीं। नदियों को जोड़ने की योजना बनाने वाली सरकारों की नीयत में ही खोट है, क्योंकि यह योजना किसानों और गरीबों को पानी उपलब्ध कराने के लिए नहीं बल्कि पानी पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए है। यह योजना देश की पानी की जरूरत को पूरा तो नहीं ही करेगी, उल्टे भारत की धरती पर प्रलय का कारण जरूर बनेगी।

यानि नदियों को जोड़ने की जो बाते कही जा रही है ,उनका कोई लाभ नहीं है ?

 इसमे भला कौन सा लाभ होगा। सरकारें नदी जोड़ो योजना को देश के लिए फायदेमंद बता रही हैं, लालच दे रही हैं। लेकिन, हकीकत कुछ और ही है। अब तक देश में न जाने कितने बड़े बांध बने। जब बांध बनने की बारी आई, तब बताया गया कि बड़ी मात्रा में बिजली का उत्पादन होगा। क्या वाकई में ऐसा हुआ? नहीं हुआ। यही कुछ इस योजना के साथ होने वाला है। आप जानते हैं कि सामान्य से अधिक बारिश होने पर ही नदियों में बाढ़ आ जाती है, क्योंकि उनके आसपास अतिक्रमण है। देश की कम ही नदियां ऐसी है, जिन्हें इस विभिषिका का सामना न करना पड़ता होगा। जब बाढ़ से जूझने वाली नदियों को जोड़ा जाएगा, तब क्या होगा, इसकी कल्पना करना आसान नहीं है।“हम उपनिषद, वेद आदि में जल प्रलय की कहानियां पढ़ते हैं। यही कुछ भारत में होगा नदी जोड़ो योजना से। नदियों को जोड़कर बांध बनाकर पानी तो रोक लिया जाएगा, मगर जब बाढ़ की स्थिति बनेगी तो क्या होगा, इसकी अभी कल्पना तक नहीं की जा सकती है। जिन सरकारों का बड़े जोड़, बड़े बांध पर ध्यान है, वह वास्तव में भ्रष्टाचार व प्रदूषण का बड़ा जोड़ है। वह नदियों का बड़ा जोड़ नहीं है। जब भी बड़ा बांध बना तो बिजली व सिंचाई का लालच दिया गया, मगर किसी भी बांध से वह लाभ नहीं मिला, जो वादा किया गया था।

तब फिर किया क्या जाना चाहिए ?

 नदी को नदी से नहीं बल्कि समाज को नदी से से जोड़ना जरूरी है। नदी जोड़ो योजना से समाज में पानी को लेकर झगड़े बढ़ जाएंगे। अंतर्राज्यीय, अंतर जिला स्तर पर पानी के बंटवारे को लेकर होने वाले झगड़ों का निपटारा आसान नहीं होगा। कर्नाटक और तामिलनाडु के बीच चल रहे कावेरी विवाद को सरकारों को समझना होगा। इस मामले का निपटारा न्यायालय से नहीं बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के स्तर पर संभव है। इसके लिए हमारे संविधान में भी व्यवस्था की गई है। जहां तक न्यायपालिका का सवाल है तो उसकी दृष्टि व दर्शन केवल कानून पालन कराना होता है, जबकि कानून के पालन से पानी की कमी दूर नहीं होती।पानी की समस्या के निदान के लिए नदी जोड़ा नहीं बल्कि समाज जोड़ो अभियान की जरूरत है। राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों को अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर देशहित में फैसले लेने होंगे। राजस्थान वह राज्य है, जहां औसत से कम बारिश होती है लेकिन यहां तीन फसलें ली जा रही हैं। अकाल के हालात बनने पर भी पानी की कमी नहीं होती। यह सब संभव हुआ है, समाज के मिलकर काम करने से।


जल मंत्रालय और गंगा पुनर्जीवन में नरेंद्र मोदी की क्या भूमिका होनी चाहिए?

मैं समझता हूं मोदी जी गंगा से जुड़े सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बात करके गंगा मैया की जमीन का चिन्हीकरण कर उसे अतिक्रमण मुक्त कराएं। देश में गंगा मैया को राष्ट्रीय सम्मान देने वाले कानून बनाने की जरूरत है।

उमा भारती गंगा एक्शन प्लान की मुखिया बनाई गई हैं, उनसे कोई खास उम्मीद?

 मैं जानता हूँ ,उमा जी गंगा पुनरुद्धार से जुड़ी कार्यकर्ता रही हैं। सबसे पहले वह गंगा के प्रवाह क्षेत्र में आने वाले सभी पांच राज्यों उत्तराखंड, यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों को विश्वास में लें और सुनिश्चित करें कि यहां के गंदे नाले गंगा में न जाएं। इस दिशा में कठोर कानून बने और उनका अनुपालन हो। हमें उम्मीद है कि उमा जी इस दिशा में सभी संबंधित मुख्यमंत्रियों के साथ बैठकर गंगा की एक अच्छी विधि व्यवस्था बनाएंगी।

गोमती नदी के उद्धार के लिए समाधान बताइये?

गोमती एक बड़ी व्यापक सुंदर नदी है। शहर के बीचो-बीच बहती है, लेकिन आज वह लखनऊ शहर का मैला ढोने वाला नाला बन गई है। हम नदियों को कहते मां कहते हैं। मां बचपन में हमारा मैला धोती थी, लेकिन मां कभी मैला ढोती नहीं है। आज हमने नदियों को मां कहना नहीं छोड़ा है, लेकिन मैला ढोने वाली मालगाड़ी बना दी है। हमें नदियों के साथ अपना व्यवहार बदलना होगा। नदियों (गोमती भी) की तस्वीर अपने आप ही बदल जाएगी।
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जल संघर्ष की प्रेरणा कहां से मिली?

मैं जयपुर में भारत सरकार का मुलाजिम था। पांच साल बाद नौकरी छोड़कर राजस्थान के गोपालपुरा (अलवर) चला गया। वह इलाका बिना पानी के उजड़ गया था। मैं वहां पर बूढ़े लोगों को दवाई और बच्चों की पढ़ाई का काम करने लगा। एक दिन एक बूढ़े आदमी ने मुझसे कहा मुझे न तो तेरी दवाई चाहिए न ही तेरी पढ़ाई चाहिए, हमें तो पानी चाहिए सिर्फ पानी। मैंने उनसे वर्षा के जल को रोकना सीखा। पिछले तीस सालों में हमने दस हजार से ज्यादा जोहट, बांध, चेकडैम बिना किसी सरकारी सहायता के बनाए। वर्षा को जल को रोककर धरती का पेट पानी से भर दिया।

जल सुरक्षा अधिनियम पर सरकार से क्या आशाएं है?
सरकार जल सुरक्षा को यदि जरूरी मानती, तो हमें जल सुरक्षा अधिनियम के लिए आंदोलन नहीं करना पड़ता। हम उम्मीद करते हैं कि यूपी सरकार जल सुरक्षा अधिनियम की जरूरत को महसूस करेगी और जल्द ही जल सुरक्षा अधिनियम बनाएगी। यह काम एक व्यक्ति और एक गांव से शुरू हो जाए, तब भी बेहतर है।

देश में पानी की राजनीति की शुरुआत कैसे हो सकती है?
एक जमाना था जब लोग पानी को गंदा करने से डरते थे। अब जो पानी ज्यादा गंदा करेगा, ज्यादा कब्जा करेगा, ज्यादा बेचेगा वह बड़ा आदमी होगा। इस जमाने में जल दर्शन बदल गया है। इस बदले हुए दर्शन में हमें जल चेतना जगाने की जरूरत है। यही चेतना हमारे देशवासियों को आगे लेकर जाएगी। तभी देश में पानी की राजनीति की शुरुआत होगी।

सवा सौ करोड़ आबादी के साथ सतत विकास (Sustainable Development) कहां तक उचित होगा?
ये जो विकास है, उसकी शुरुआत विस्थापन से होती है। विकास सब प्रकार का विस्थापन करता है। उससे विकृति आती है और यह विकृति हमें विनाश के रास्ते पर पहुंचाती है। इसलिए हमें यह तथाकथित विकास नहीं चाहिए, बल्कि समृद्धि चाहिए। समृद्धि का कभी क्षय नहीं होता। विकास की शुरुआत लालची मन के लोभ की पूर्ति और लाभ कमाने के लिए होता है। समृद्धि का काम जीविका, जीवन, जमीर की जरूरत पूरा करने के लिए होता है। समृद्धि में विस्थापन और विकृति नहीं होती है, इसलिए हमें विकास नहीं प्रकृति की समृद्धि चाहिए।

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