सपा साइकिल और उसका संविधान 

संजय तिवारी 
समाजवादी पार्टी के दंगल में कई तरह के शेड देखने को मिल रहे है। इस पूरे प्रकरण में सबसे गंभीर स्थिति मुख्यधारा की मीडिया को लेकर चिंतनीय लगती है।  वजह यह की बड़ी बड़ी बहस में मशगूल मीडिया का कोई विद्वान समाजवादी पार्टी के मात्र 16 पेज के उस संविधान तक को पढने की जहमत नहीं उठा रहा जिसमे सब कुछ दूध और पानी की तरह साफ़ है। इस बीच पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर जिस तरह की अटकले मीडिया लगा रहा है उस पर भी अजीब ही लग रहा है। कुल मिला कर लगाने लगा है की मीडिया को सपा के चुनाव चिन्ह के फ्रीज़ होने में ज्यादा मज़ा आ रहा है जब की यदि संविधान के मुताबिक़ अखिलेश गट की कार्यसमिति ही अवैधानिक हो गयी है तो उसके निर्णय का क्या औचित्य रह जाता है। 


संविधान के मुताबिक़ समाजवादी पार्टी के संविधान में राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष को होता है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह हैं। रविवार को हुए अधिवेशन को रामगोपाल यादव ने बुलाया था। वे पार्टी के जनरल सेक्रेटरी थे। मुलायम सिंह ने अधिवेशन बुलाने को लेकर सहमति नहीं दी थी, इसलिए ये असंवैधानिक है। इस बात को कहीं भी नहीं दिखाया गया है कि क्या 40 फीसदी मेंबर्स ने विशेष अधिवेशन बुलाने के लिए लेटर लिखा या इसकी डिमांड की थी। ऐसा कहीं पर नहीं बताया गया है कि 15 दिन पहले राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सामने इस बात का प्रस्ताव रखा गया था। कार्यकारिणी ने इस पर सहमति दी या नहीं। इस अधिवेशन में मेंबर्स को कैसे जानकारी दी गई, कौन लोग आए और पार्लियामेंट्री बोर्ड का बहुमत किसके साथ था, ये भी अभी साफ नहीं है।"

सपा के संविधान के सेक्शन-16 के अनुसार, राष्ट्रीय सम्मेलन या विशेष अधिवेशन बुलाने का हक सिर्फ अध्यक्ष यानी मुलायम सिंह को ही है। सेक्शन-16 के मुताबिक, राष्ट्रीय अध्यक्ष ही इस अधिवेशन की अध्यक्षता करेगा। सेक्शन-14 के मुताबिक, राष्ट्रीय अधिवेशन के 40% मेंबर्स की मांग पर राष्ट्रीय अध्यक्ष विशेष अधिवेशन कभी भी बुला सकता है। सेक्शन-15 के मुताबिक, राष्ट्रीय अधिवेशन का कोई मेंबर यदि अधिवेशन में कोई प्रस्ताव लाना चाता है तो वो सम्मेलन की मीटिंग से कम से कम 15 दिन पहले नेशनल एग्जीक्यूटिव के सामने अपना प्रस्ताव भेजेगा। नेशनल एग्जीक्यूटिव उसके प्रस्ताव से सहमत होने पर अधिवेशन बुला सकती है।

 अब क्या करेंगे अखिलेश
जानकारों का कहना है कि अखिलेश अब खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष साबित करने के लिए विधायकों, सांसदों और पूर्व संसद सदस्यों के लिए सिग्नेचर कैम्पेन चला सकते हैं। पार्लियामेंट्री बोर्ड के मेंबर्स को अपने पाले में लाने की कोशिश करेंगे, क्योंकि अधिवेशन में आजम खान, अमर सिंह, शिवपाल यादव जैसे बोर्ड मेंबर नहीं पहुंचे थे। नेशनल एग्जीक्यूटिव के सदस्यों को भी अपने पाले में करने की कोशिश करेंगे। जानकारों का कहना है कि सब कुछ इस बात पर ही निर्भर करेगा कि राष्ट्रीय सम्मेलन के सदस्यों का बहुमत किसके साथ है।



घटनाक्रम  : यादव कुल का दंगल
रविवार को लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में हुए पार्टी के अधिवेशन में शिवपाल यादव को स्टेट प्रेसिडेंट पोस्ट से हटा दिया गया। अखिलेश नेशनल प्रेसिडेंट बना दिए गए और अमर सिंह को पार्टी से बाहर कर दिया गया। हालांकि अधिवेशन से ठीक पहले मुलायम सिंह यादव ने लेटर जारी कर इसे पार्टी संविधान के खिलाफ बताया था और समारोह को खारिज कर दिया था। इसमे तीन प्रस्ताव पास किये गए।
पहला प्रस्‍ताव-अखिलेश को पार्टी का नेशनल प्रेसिडेंट बनाया गया। अखिलेश को यह अधिकार है कि राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड और देश के सभी संगठनों का जरूरत के मुताबिक गठन करें। इस प्रस्‍ताव की सूचना चुनाव आयोग को दी जाएगी।
दूसरा प्रस्‍ताव- मुलायम को समाजवादी पार्टी का संरक्षक और मार्गदर्शक बनाया गया।
तीसरा प्रस्‍ताव- शिवपाल यादव को पार्टी के स्टेट प्रेसिडेंट के पद से हटाया गया और अमर सिंह को पार्टी से बाहर किया गया।
अखिलेश बोले- मेरे खिलाफ लेटर लिखने के लिए घर से टाइपराइटर लाए। अधिवेशन में अखिलेश ने शिवपाल यादव पर निशाना साधा।  उन्होंने कहा, "नेताजी ने मुझे मुख्यमंत्री बनाया था और इन लोगों ने मेरे खिलाफ साजिश करके न केवल पार्टी को नुकसान पहुंचाने का काम किया, वहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष जी के सामने भी संकट पैदा किया।"  'नेताजी के खिलाफ साजिश हो तो मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं ऐसे लोगों के खिलाफ बोलूं। लोगों ने अपने घर से टाइपराइटर लाकर मेरे खिलाफ चिट्ठियां छपवाईं।"नेताजी का पहले से ज्यादा सम्मान करूंगा।  अखिलेश ने यह भी कहा, "मैं नेताजी का जितना सम्मान पहले करता था, राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर उससे ज्यादा सम्मान करूंगा।"
 "नेताजी का जो स्थान है, वह सबसे बड़ा स्थान है। मैं नेताजी का बेटा हूं और रहूंगा। ये रिश्ता कोई खत्म नहीं कर सकता। परिवार के लोगों को बचाना पड़ेगा तो वह करूंगा।"
रामगोपाल बोले- अखिलेश के साथ साजिश हुई, "पार्टी के दो व्‍यक्तियों ने साजिश करके अखिलेश को प्रदेश अध्‍यक्ष पद से हटा दिया। इसके बाद सब आपके सामने है। इसमें बहुत से लोगों को निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाए बगैर ही टिकट बांट दिए गए। ये लोग नहीं चाहते कि अखिलेश फिर सीएम बनें।"
मुलायम ने खारिज किया सम्मेलन
इस बीच अधिवेशन शुरू होने से ठीक पहले मुलायम सिंह यादव ने लेटर जारी कर इसे पार्टी संविधान के खिलाफ बता दिया था। उन्होंने कार्यकर्ताओं से अपील की  कि वे इसमें शामिल न हों। साथ ही किसी लेटर पर दस्तखत न करें। मुलायम ने फैसले से पहले शिवपाल यादव के साथ बैठक की थी। अधिवेशन से पहले कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति भी मुलायम से मिलने पहुंचे थे। इस अधिवेशन के लिए शहर में लगे पोस्टर होर्डिंग्स से शिवपाल की तस्वीरें भी गायब रहीं।
अखिलेश ने तख्तापलट के इस अधिवेशन में ताबड़तोड़ कई फैसले लिए। अखिलेश  ने शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया, अमर सिंह निष्कासित किये गए । उधर  मुलायम ने रामगोपाल, किरनमय नंदा, नरेश अग्रवाल को निकाल दिया । इसी दौर में अखिलेश ने  एमएलसी नरेश उत्तम को  प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। वर्चस्व की जंग में दो फाड़ हुई समाजवादी पार्टी (सपा) में नए साल की सुबह  ही तख्तापलट हो गया। प्रतिनिधि अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को अध्यक्ष पद से हटाकर उनके पुत्र व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया। शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद और अमर सिंह को पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया।मुलायम को संरक्षक की भूमिका दी गई है।

उसी दिन  मुलायम ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अधिवेशन को ही अवैध घोषित कर दिया। फिर अधिवेशन के सूत्रधार प्रो. रामगोपाल यादव, किरनमय नंदा और नरेश अग्रवाल को सपा से निष्कासित कर दिया। मुलायम ने पांच जनवरी को सपा का राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया है। दूसरी ओर अखिलेश ने विधान परिषद सदस्य नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। ओहदा, अधिकार और वर्चस्व हासिल करने के प्रयासों में समाजवादी परिवार की कलह पहले संग्राम में बदली। फिर जनशक्ति प्रदर्शन के माध्यम से रविवार को राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन की शक्ल में सामने आई। राजधानी लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में 25 बरस पहले समाजवादी पार्टी के गठन से लेकर अब तक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाल रहे मुलायम सिंह को पद से बेदखल करने का अकल्पनीय फैसला किया गया।


 राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित होते ही अखिलेश ने शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के साथ परिवार में लड़ाई की जड़ ठहराए जाने वाले राज्यसभा सदस्य अमर सिंह को सपा से ही निष्कासित कर दिया गया। नवघोषित राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश को संसदीय बोर्ड, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, आनुषांगिक संगठनों के पदाधिकारियों के चयन का अधिकार भी सौंप दिया गया। मुलायम के साथ वर्षो से दिख रहे लगभग सभी वरिष्ठ नेता रामगोपाल और अखिलेश के साथ मंच पर दिखे। इन ताजा घटनाक्रमों से मुलायम और शिवपाल पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं। शनिवार को भी सपा के 229 में से 204 विधायक अखिलेश के समर्थन में जुटे थे।

नेताजी के खिलाफ भी हुई साजिश

राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के बाद चंद मिनट के भावुकता भरे भाषण में अखिलेश यादव ने कहा, मुझे प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के लिए उस व्यक्ति ने (इशारा अमर सिंह की ओर) टाइपराइटर मंगवाया था। नेताजी ने मुझे मुख्यमंत्री बनाया था। मगर इन लोगों ने मेरे खिलाफ साजिश कर न केवल पार्टी को नुकसान पहुंचाने का काम किया बल्कि राष्ट्रीय अध्यक्ष (मुलायम सिंह) के सामने संकट भी पैदा किया। नेताजी के खिलाफ साजिश हो तो यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं ऐसे लोगों के खिलाफ बोलूं और कार्रवाई करूं। अब कार्रवाई कर रहा हूं।

नए प्रदेश अध्यक्ष ने दफ्तर पर किया कब्जा

शिवपाल की जगह प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए नरेश उत्तम ने अपने समर्थकों के साथ पहुंच पार्टी दफ्तर पर कब्जा कर लिया। शिवपाल के नाम की नेमप्लेट भी हटा दी।

एक नज़र
 अखिलेश का अधिवेशन और लिए गए फैसले

-अखिलेश राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे।
-मुलायम संरक्षक होंगे।
-शिवपाल प्रदेश अध्यक्ष पद से बर्खास्त।
-महासचिव अमर सिंह पार्टी से निष्कासित।
-अखिलेश पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड और सभी राज्य संगठनों को जरूरत के मुताबिक गठित करने को अधिकृत।
-इन फैसलों की सूचना यथाशीघ्र निर्वाचन आयोग को उपलब्ध कराई जाए।


मुलायम का पलटवार

-पार्टी का रविवार को हुआ राष्ट्रीय अधिवेशन असंवैधानिक।
-अधिवेशन में लिए गए सभी फैसले अवैध।
-रामगोपाल यादव पार्टी से फिर छह साल के लिए बाहर।
-अधिवेशन में शामिल होने पर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरनमय नंदा के साथ नरेश अग्रवाल भी निष्कासित।
-पार्टी द्वारा जारी की गई उम्मीदवारों की सूची अब नहीं बदलेगी।
-5 जनवरी को लखनऊ में पार्टी का आकस्मिक राष्ट्रीय अधिवेशन होगा। हलाकि यह अधिवेशन बाद में स्थगित होने की जानकारी आ गयी।


इन सवालों के जवाब बाकी

-अधिवेशन के लिए रामगोपाल और अन्य को पार्टी से निष्कासित किया तो अखिलेश को क्यों नहीं?
-क्या मुलायम अब भी बेटे को अपने पाले में कर लेने की संभावना देखते हैं?
-बेटे के भारी पड़ने पर शनिवार को अखिलेश और रामगोपाल का निष्कासन समाप्त किया था, क्या फिर से वैसा ही करने को मजबूर होंगे?
-क्या पार्टी औपचारिक तौर पर टूट जाएगी? पार्टी टूटने पर चुनाव चिह्न साइकिल पर कब्जा किसका?
-चुनाव आयोग अखिलेश, मुलायम में से किसका दावा मानेगा?
-क्या साइकिल चिह्न 'जब्त' हो जाएगा और दोनों गुट अलग-अलग निशान पर लड़ेंगे?

किसने क्या कहा

''मैं नेताजी का जितना सम्मान पहले करता था। राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर उससे ज्यादा सम्मान करूंगा। नेताजी का जो स्थान है, वह सबसे बड़ा है। मैं नेताजी का बेटा हूं और रहूंगा। यह रिश्ता कोई खत्म नहीं कर सकता। परिवार के लोगों को बचाना पड़ेगा तो वह कार्य भी करूंगा।''
अखिलेश यादव (राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के प्रस्ताव के बाद)

''पार्टी के दो व्यक्तियों ने साजिश कर अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया। इसके बाद सब आपके सामने है। यहां मौजूद लोगों में से बहुतों को निष्कासित कर दिया गया। संसदीय बोर्ड की बैठक के बगैर टिकट बांट दिए, ये लोग नहीं चाहते कि अखिलेश फिर सीएम बने।''
-प्रो. रामगोपाल यादव (अधिवेशन में)

''यह अधिवेशन अवैध है। पार्टी संविधान के विरुद्ध है। अनुशासनहीनता करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है, संसदीय बोर्ड ने रामगोपाल के निष्कासन पर मंजूरी की मुहर लगाई है।''
-मुलायम सिंह यादव

-नेता जी ही समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष है। मैं  मरते दम  तक नेता जी के साथ ही हूँ और रहूँगा। 
-शिवपाल सिंह यादव 

-अगर उनके (मुलायम) साथ रह के कभी नायक बने, तो अगर खलनायक भी बने तो बनने को तैयार हैं। 
-अमर सिंह
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सोमवार को सक्रिय हुए मुलायम

इस बीच सोमवार सुबह मुलायम सिंह काफी सक्रिय दिखे। लखनऊ से दिल्ली रवाना होते वक्त मुलायम ने कहा- "मैं बीमार नहीं हूं। मैं पूरी तरह ठीक हूं।" पार्टी सिम्बल के विवाद पर कहा कि साइकिल तो मेरी है। इससे पहले सोमवार सुबह मुलायम ने 5 जनवरी को होने वाले आपात अधिवेशन को रद्द कर दिया। शिवपाल यादव ने ट्वीट कर यह जानकारी दी।  शिवपाल यादव ने सोमवार को दो ट्वीट किए। पहले ट्वीट में लिखा- "नेताजी के आदेशानुसार समाजवादी पार्टी का 5 जनवरी का अधिवेशन फिलहाल स्थगित किया जाता है।" दूसरे ट्वीट में बताया- "सभी नेता और कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्र में चुनाव की तैयारियों में जुटें और जीत हासिल करने के लिए जी-जान से मेहनत करें।"
दरअसल, अखिलेश और मुलायम ने यूपी चुनाव के मुद्देनजर विधानसभा कैंडिडेट्स की अलग-अलग लिस्‍ट जारी की हैं। अब पार्टी के इस झगड़े में दोनों ही खेमे पार्टी के सिम्‍बल (साइकिल) से चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसी को लेकर सोमवार को दिल्‍ली में आगे की रणनीति तय हो सकती है। शिवपाल पहले ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए हैं।
पार्टी सिम्‍बल के झगड़े पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स:

मुलायम या अखिलेश के पास अब विकल्प
" दोनों गुट यह दावा करेंगे कि वो असली समाजवादी पार्टी हैं, इसके बाद इलेक्शन कमीशन देखेगा कि किससे पास पार्टी के ज्यादा विधायक, सांसद, एमएलसी और पदाधिकारी हैं। इसको देखते हुए फैसला होगा कि पार्टी का सिंबल (साइकल) किसे दिया जाए। हो सकता है कि किसी को भी सिंबल ना दिए जाए। दूसरी ओर, अगर तस्वीर साफ नहीं रही तो इलेक्शन कमीशन दोनों गुटों को नए सिंबल भी दे सकता है।"
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप 

 रद्द हो सकते हैं अधिवेशन के प्रस्ताव
 "रविवार को अखिलेश ने राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया था। इसमें जो प्रस्ताव पास हुए हैं, उसके लिए उन्हें अधिवेशन के 40 फीसदी मेंबर्स का बहुमत चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो सभी प्रस्ताव रद्द हो जाएंगे और इलेक्शन कमीशन में मुलायम गुट की दावेदारी मजबूत हो जाएगी। मुलायम गुट इलेक्शन कमीशन के सामने ये बात रख सकता है।"
संविधान विशेषज्ञ और पूर्व जज चंद्रभूषण 

सिम्बल फ्रीज हुआ तो क्या होगा?
 "अगर मुलायम चुनाव आयोग चले जाते हैं और खुद का दावा ठोकते हैं तो ऐसे में सिंबल को फ्रीज कर सकता है। ऐसे में दोनों ही दलों को अलग-अलग सिंबल पर चुनाव लड़ना पड़ेगा, जैसा कि अपना दल के मामले में हुआ। इसके बाद जब दोनों दल चुनाव लड़कर आएंगे तो सपा का सिंबल उसी को ही मिलेगा, जिसके बाद ज्यादा विधायक और संख्याबल होगा।"

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गद्दार है रामगोपाल : आशीष यादव 

इस बीच एटा के सदर विधायक आशीष यादव ने अपने आवास पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा रामगोपाल पार्टी के लिए गद्दार थे हैं और रहेंगे। उन्होंने सी बी आई जांच से बचने के लिए पार्टी को डुबो दिया। उन्होंने कहा कि असली सपा मुलायम सिंह यादव की है। चुनाव आयोग साइकिल चुनाव चिन्ह मुलायम सिंह को ही देगा। कहा अखिलेश को रामगोपाल यादव ने बरगलाकर पार्टी को डुबो दिया। कहा अखिलेश ने पुत्र मोह नहीं निभाया। उन्होंने कहा कि जनता तय करेगी कि कौन नेता हैं । कहा अखिलेश की सभा में सम्मिलित होने वाले विधायको और पूर्व घोषित प्रत्याशियों के टिकटो की दुवारा सूची जारी होगी।  कहा रामगोपाल यादव,उनके पुत्र और  पुत्र बधू सी बी आई जांच में फंसे है उससे बचने के लिए रामगोपाल यादव ने बी जे पी से मिलकर पार्टी को डुबो दिया। उन्होंने कहा कि अखिलेश ने मुलायम सिंह से माफ़ी मांग ली थी और दोनोंके बीच समझौता हो गया था।   65 सीटो पर विवाद था वह हल हो गया था जिसमे 20 सीटे अखिलेश,20 मुलायम और 20 शिवपाल यादव को मिली थी और 5 सीटे आजम खान को मिली थी परंतु इसके बाद भी रामगोपाल यादव ने समझौता नहीं माना और समझौता विफल करवाकर पार्टी को डुबो दिया।
रामगोपाल
यादव को चुनौती देते हुए उन्हें पार्टी का गद्दार बताया और कहा कि रामगोपाल यादव ,उनका बेटा और बहू बी जे पी से मिले हैं और रामगोपाल ने सी बी आई जांच से बचने के लिए पार्टी को डुबो दिया। उन्होंने अखिलेश पर भी
पुत्र धर्म नहीं निभाने का आरोप लगाया। असली सपा नेताजी की है और रहेगी।  पार्टी  का चुनाव चिंन्ह साइकिल भी नेता जी के पास रहेगा। आशीष यादव विधान परिषद् के सभापति रमेश यादव के बेटे हैं और रमेश यादव मुलायम सिंह के बेहद  करीबी माने जाते हैं। इससे पूर्व भी आशीष यादव ने ही उत्तर प्रदेश में सबसे पहले  सपा के
तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव के खिलाफ मोर्चा खोला था और उनपर भ्रस्टाचार के आरोप लगाते हुए  नेताजी से उनके पार्टी से निष्काशन की मांग की थी और उसके बाद ही पहली बार नेताजी ने रामगोपाल को पार्टी से
बाहर कर दिया था।

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 कैसे साधना के करीब आए थे शादीशुदा मुलायम...

समाजवादी पार्टी का फैमिली ड्रामा थमता नजर नहीं आ रहा। कभी अखिलेश मुलायम पर तो कभी नेताजी अपने सीएम बेटे पर हावी हो रहे हैं। दोनों के बीच तल्खी के पीछे अखिलेश की सौतेली मां साधना गुप्ता का रोल भी अहम बताया जा रहा है। 
- अखिलेश यादव की बायोग्राफी 'बदलाव की लहर' में उनके पिता मुलायम की शुरुआती जिंदगी के बारे में भी बताया गया है।
- किताब में मुलायम और साधना गुप्ता की रिलेशनशिप के डीटेल्स भी हैं।
- किताब की लेखिका सुनीता आरोन के मुताबिक मुलायम की मां मुरती देवी बीमार रहती थीं। 
- साधना ने लखनऊ के एक नर्सिंग होम और बाद में सैफई मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान मुरती देवी की देखभाल की। 
- मेडिकल कॉलेज में एक नर्स मुरती देवी को गलत इंजेक्शन लगाने जा रही थी। 
- उस समय साधना वहां मौजूद थीं और उन्होंने नर्स को ऐसा करने से रोक दिया।
- साधना की वजह से ही मुरती देवी की जिंदगी बची थी।
- मुलायम इसी बात से इंप्रेस हुए और दोनों की रिलेशनशिप शुरू हो गई।
- तब अखिलेश यादव स्कूल में इंटर के स्टूडेंट थे।
1994 से ही साधना जताने लगी थीं मुलायम के घर पर अधिकार
- अक्टूबर 2016 में सीबीआई ने मुलायम यादव की प्रॉपर्टी से रिलेटेड स्टेटस रिपोर्ट जारी की।
- रिपोर्ट में साधना गुप्ता और मुलायम के रिलेशनशिप से जुड़े फैक्ट्स भी शामिल थे।
- रिपोर्ट के मुताबिक साधना गुप्ता ने 4 जुलाई 1986 को चंद्र प्रकाश गुप्ता से शादी रचाई थी।
- 7 जुलाई 1987 को साधना के बेटे प्रतीक का जन्म हुआ।
- 1990 में साधना ने पहले पति से औपचारिक तलाक ले लिया।
- रिपोर्ट के मुताबिक 1994 में प्रतीक गुप्ता ने एक फॉर्म में अपने पर्मानेंट रेसिडेंस में मुलायम सिंह का ऑफीशियल एड्रेस लिखा था।
- स्टेटस रिपोर्ट में यह भी है कि साल 2000 में प्रतीक के गार्जियन के तौर पर मुलायम का नाम दर्ज हुआ था।
-  मुलायम की पहली पत्नी मालती देवी का निधन साल 2003 में हुआ।
- 23 मई 2003 को मुलायम ने साधना गुप्ता से शादी कर उन्हें पत्नी का दर्जा दिया।

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